भ्रष्टाचार को समाप्त करने की लिए प्राण प्रण से लगे अत्यंत ईमानदार लगनशील एवं भयंकर परिश्रम करने वाले राष्ट्र के लिए समर्पित प्रधानमंत्री जी से निवेदन साथ ही सरकार के सभी ईमानदार कर्मठ कर्मचारियों से क्षमायाचना के साथ निवेदन !
महोदय !सभी प्रकार के प्रदूषणों की जड़ है भ्रष्टाचार !उसे मिटाए बिना कैसे संभव है विकास !गंदगी सारी सरकारों प्रदेश सरकारों और सरकारी कार्यशैली की है उसे जनता योग के नाम पर हाल झूल कर कैसे ठीक कर दे ! साफ सफाई से रहना सबको अच्छा लगता है स्वस्थ सब रहना चाहते हैं योग बहुत लाभकारी है इसमें भी कोई संशय नहीं है किंतु कसरती योग के साथ साथ ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा परिश्रमशीलता जनसेवा भाव की भी तो आवश्यकता है उसके बिना बिगड़ रहे हैं सारे काम काज !सरकार की अच्छी से अच्छी योजनाएं जनता तक पहुंच ही नहीं पाती हैं अच्छे कानूनों का ईमानदारी से पालन न किए जाने की कारण कई बार अच्छे और ईमानदार लोगों का उत्पीड़न होते देखा जाता है ।
प्रधानमंत्री जी !आपने स्वच्छता अभियान चलाया,शौचालय निर्माण का अभियान चलाया किंतु सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार पकड़ना उतना जरूरी क्यों नहीं समझा ने के लिए आपने कोई प्रभावी अभियान चलाने की मुहिम क्यों नहीं छेड़ी !भ्रष्टाचार पकड़ने के लिए कोई प्रभावी मुहिम क्यों नहीं छेड़ी गई !वो भी तब जब भ्रष्टाचारी अर्थात घूस लेने वाले लोग वो सरकारी कर्मचारी हैं जिन्हें भारी भरकम सैलरी देती है सरकार !इसके बाद भी वो काम करने के लिए जनता से पैसे माँगते हैं अन्यथा खाली बैठे रहते हैं किंतु काम करनी से कतराते हैं भ्रष्टाचारियों ने देश की ऐसी दुर्दशा कर दी है कि चरित्रवान ईमानदार सीधे साधे लोगों का जीना दिनों दिन कठिन होता जा रहा है !भ्रष्टाचार का लेवल इतना ज्यादा बढ़ गया है देश में कि ईमानदारी से साँस लेने में भी दम घुटता है ये है सैंपल पीस आप स्वयं देखिए -
"दो तिहाई भारतीयों को देनी पड़ती है रिश्वत:" सर्वेsee more.... http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/two-thirds-indians-have-to-pay-bribe-highest-in-asia-pacific-transparency-international/articleshow/57517787.cms
सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार के कारण मचा रहता है सारे देश में हाहाकार!पहले इसे मिटावे सरकार फिर करे योग प्रचार !किसी फोड़े का पस निकाले बिना कितना भी अच्छा कोई मलहम क्यों न लगा लिया जाए किंतु फोड़ा समाप्त नहीं होता ऐसे ही सरकारी विभागों की पहले सफाई बाद में स्वच्छता अभियान फिर 'योग' !
सरकार का काम है भ्रष्टाचार मुक्त उत्तम सेवाएँ उपलब्ध कराना पहले उसमें पूरा ध्यान केंद्रित करे सरकार !और जनता को एहसास करवावे अपने उत्तम प्रयासों का ताकि सरकार को न बताना पड़े उत्तम सरकार अपितु जनता स्वयं गुणगान करने लगे !अन्यथा भ्रष्टाचार मिटाए बिना कैसा योग और कैसा 'स्वच्छता अभियान'?माना कि शौचालय बनाना बहुत आवश्यक है किंतु भ्रष्टाचार मिटाना उससे ज्यादा जरूरी है। सरकार की अच्छी से अच्छी योजनाएँ और अच्छे से अच्छे कानून भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं !नोट बंदी से जनता उतना तंग नहीं हुई जितना बैंकों के भ्रष्टाचार से !कालेधन वालों के विरुद्ध सरकार के द्वारा लिए गए निर्णय कालेधन वालों के समर्थन में बदल दिया बैंक वालों ने !
प्रधानमंत्री जी ! 'योग' तो जनता कर सकती है किंतु सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी करने ही नहीं देते हैं !वे घूस माँगते हैं घूस न मिले तो काम नहीं करते और जो घूस दे उसी का काम करते हैं भले वो सरकार और समाज विरोधी ही क्यों न हो !घूस तो जरूरी है किन्तु इन्हें सैलरी देना सरकार की मजबूरी है नहीं देगी तो कोर्ट चले जाएँगे ! घूस लेने देने का पाप भी चलता रहे और 'योग' भी होता रहे ऐसा कैसे हो सकता है योग करने के लिए ईमानदार होना बहुत जरूरी है हँसना भी और गाल फुलाना भी दोनों एक साथ नहीं किए जा सकते हैं !
आप प्रधानमंत्री हैं तो क्या हुआ आपने काला धन रोकने के लिए नोटबंदी की किंतु बहुत से बैंक वालों ने घूस लेकर काले धन वालों के नोटों के बोरे बदल दिए आप चेक कराइए बैंकों के वीडियो विरला ही बैंक होगा जो बचा होगा इस पाप से !कुल मिलाकर नोटबंदी से और कुछ हुआ हो न हुआ हो किंतु बहुत से बैंक वाले रईस जरूर हो गए होंगे !उनका दारिद्र्य दूर हो गया !अब देखना है कि उनसे कैसे निपटती है ईमानदार सरकार !
मुकदमों की संख्या बढ़ने के लिए जिम्मेदार कौन ? न्यायालयों का बोझ बढ़ता है इसका मुख्य कारण सरकारी विभागों की घूसखोरी ही है !जो काम गलत हैं ये जानते हुए भी सम्बंधित अधिकारी कर्मचारी लोग ईमानदारी पूर्वक अपनी सेवाएँ दें तो आधे से अधिक मामले घर के घर में ही निपट जाएँ न्यायालयों तक उन्हें जाना ही न पड़े ऐसे बचाया जा सकता है न्यायालयों का बहुमूल्य समय !किंतु अपराधी और माफिया या दबंग लोग घूस के बल पर इन्हीं अधिकारी कर्मचारियों को पटाकर मुकदमों का बेस बनवा लेते हैं और शुरू कर देते हैं भले लोगों पर मुकदमा !शांति से जीने की रूचि रखने वालों को फँसा देते हैं मुकदमों के झमेलों में !वो बेचारे घबड़ा जाते हैं दबंगों की गुंडई से थक हार कर चुप हो जाते हैं और दबंगों की जीत हो जाती है इसे न्याय कैसे कहा जा सकता है।
ऐसे प्रकरणों से न्यायालयों का बहुमूल्य समय बचाया जा सकता था !किंतु अधिकारियों कर्मचारियों से ये पूछे कौन कि वे अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाते हैं !
सरकार और सरकारी मशीनरी की मिली भगत से बढ़ते हैं बलात्कार !प्रदेश सरकार ही बलात्कारों का प्रोत्साहन यदि इस प्रकार से करेगी तब बलात्कार बढ़ेंगे नहीं तो घटेंगे क्या ?
नक़ल करने का समर्थन करने वाला मुख्यमंत्री कहता है काम बोलता है जिसके अपने मंत्री को पकड़ने के लिए पुलिस खोजती घूम रही हो और वो भागता फिर रहा हो वो मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था के नाम पर अपनी पीठ थपथपाए जा रहा हो ये दुर्भाग्य नहीं तो क्या है !पुलिस मंत्री को पकड़ न पा रही हो !फिर भी वो मुख्यमंत्री कहता घूम रहा हो कि काम बोलता है !अरे ! यदि तुम्हारे काम में इतनी ही दम है तो घर बैठो !गठबंधन और प्रचार करने की लिए क्यों मारे मारे घूम रहे हो !जिसका मंत्री ऐसा हो उस पार्टी के अन्य कार्यकर्ता कैसे होते होंगे !और जो पुलिस मंत्री जैसे सुरक्षा प्राप्त पापुलर व्यक्ति को नहीं पकड़ पा रही है वो आम अपराधियों को पकड़ेगी खाक !कुल मिलाकर सरकार और सरकारी मशीनरी की मिली भगत से बढ़ते हैं बलात्कार और अपराध !
प्रधानमंत्री जी !बेनामी संपत्तियाँ बनाने वाले दोषी हैं तो बनवाने वाले दोषी क्यों नहीं हैं जिन अधिकारियों कर्मचारियों ने घूस ले लेकर ये सारे कब्जे करवाए हैं उन बेईमानों को छोड़ देंगे क्या ?
बेनामी संपत्तियाँ बनाने वालों से घूस ले लेकर कब्जे करवाए गए हैं । सरकारी अधिकारी कर्मचारी एवं तत्कालीन सरकारों में सम्मिलित लोग भी अपना हिस्सा खाते रहे तभी तो चुनाव लड़ने से पहले किराए तक के लिए मोहताज नेता लोग चुनाव जीतते ही अरबो खरबोपति हो जाते रहे हैं ये उन्हीं बेनामी संपत्तियों और आपराधिक कार्यों से अपराधियों के द्वारा दिए गए कमीशन का ही तो धन होता है ।
इसलिए जिस सन में जिन संपत्तियों पर कब्ज़ा किया गया है उस सन में उसे रोकने की जिम्मेदारी जिनकी थी उन्हें सरकार इसी काम की सैलरी देती रही और वो देश की सैलरी खाकर गद्दारी करते रहे दॆश वालों के साथ !पहले उन्हें पकड़ा जाए और उनसे कबुलवाया जाए कि उन्होंने किससे कितने रूपए लेकर कौन कौन सी जमीनें कब्ज़ा करवाई थीं वो सारा पैसा सूत ब्याज सहित उनसेवसूला जाए तब कीजाए उन परकार्यवाही !
कुछ पाखंडी लोग तो व्यापार भी करते हैं और अपने को योगी भी कहते हैं जबकि योग करने के लिए व्यापार तो छोड़ना ही पड़ता है योगश्चित्र वृत्ति निरोधः किंतु कुछ लोग तो योगी होने के बाद व्यापारी हो जाते बिलकुल उसी तरह जैसा कोई वोमिटिंग करके खुद ही चाटने लगे !बिना वैराग्य का कैसा योग ?
भ्रष्टाचार का अंग बने रहकर कैसे और कौन सा योग किया जा सकता है !
सरकार अपने उस विभाग का नाम बता जहाँ बिना घूस लिए समय से ईमानदारी पूर्वक अपनेपन से जनता के काम किए जाते हों !अधिकारी कर्मचारी लोग कानूनों का पालन ईमानदारी से खुद करते हों और जनता से करवाने का प्रयास करते हों !तब तो हो सकता है योग अन्यथा काहे का योग !
सरकार कहती कुछ और है सरकारी मशीनरी करती कुछ और है !जनता सरकार की बातों पर भरोसा करे या सरकारी मशीनरी के आचरणों पर ?
जनता को योग सिखाकर नेता सरकारी कर्मचारी और बाबा लगा लें उद्योग !ये योग है यो ढोंग !!
सरकार जनता को तो योग सिखाती है जबकि सरकारी मशीनरी का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार का आनंद ले रहा है भ्रष्टाचार और योग साथ साथ नहीं चल सकता है ।
संसद का बहुमूल्य समय चर्चा से ज्यादा हुल्लड़ में जाता है इसके लिए दोषी हैं राजनैतिक ठेकेदार !उन्हें सिखाया जाए योग !
अपने नाते रिश्तदारों घर खानदान वालों को चुनावी टिकटें दी जाएंगी और जनता को सिखाया जाएगा योग !अरे ! जब सबको पता है कि संसद आदि चर्चा सदनों में चर्चा के लिए ज्ञान अनुभव एवं भाषा की आवश्यकता होती है किंतु जो अज्ञानी हों अनुभव विहीन हों और जिन्हें बोलने की अकल ही न हो उन्हें चुनावी टिकट देने का मतलब क्या संसद में चर्चा करना मान लिया जाए !और हम जैसों को केवल इसलिए न जुड़ने दिया जाए कि हम विद्वान् हैं सदाचारी हैं संस्कारों के संकल्प से बँधे हुए हैं और हमें योग करना सिखाया जा रहा है जिन्हें वास्तव में योग करने की जरूरत है वे या तो सरकार के अधिकारी कर्मचारी हैं या फिर राजनीति में किसी अच्छे मुकाम पर हैं किंतु गरीब ग्रामीण मजदूर या हम जैसे लोग जिनकी अपनी दिनचर्या ही पसीना बहा बहा कर पवित्र हो गई है ऐसे लोगों ने केवल भ्रष्टाचार का अंग बनने से मना कर दिया दो दो चार चार साल की सैलरी माँग रहे थे नौकरी लगवाने वाले जिम्मेदार लोग ! इसलिए हमें नौकरी नहीं मिली !चुनाव लड़ने के लिए टिकट खरीदने के पैसे नहीं हैं इसलिए सभी राजनैतिक पार्टियाँ हमें दूर रखना चाहती हैं राजनीति से !ऐसे लोग हमें योग सिखा रहे हैं जिनका शीर्ष नेतृत्व हमारे द्वारा सभी माध्यमों से भेजे गए सैकड़ों पत्रों का जवाब ही नहीं देता है वो हमें योग सिखाते हैं स्वच्छता सिखाते हैं शौचालय बनाना सिखाते हैं अरे जनता को लोकतंत्र में उसकी हिस्सेदारी दिलाई जाए तो अच्छा घर बनवाना, अच्छा पहनना साफ सफाई से रहना किसको अच्छा नहीं लगता आखिर हमें भी तो अपने जैसा नहीं तो नहीं सही किंतु कम से कम एक तरह इंसान तो समझते ही रहिए see http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html
'योग है या अंधेर'!हर कोई कछुए की तरह फूल पिचक रहा है हाथ पैर ऐंठ ग्वेंठ मोड़ मरोड़ रहा है कई बाबाओं का तो योग ऎसा बुरी तरह बहने लगा है या भगवान् जाने कि उन्हें योग का रिएक्सन हो गया है वे पहलवानी करते घूम रहे हैं !समझ में नहीं आता कि ये योग पतंजलि वाला है भी या नहीं कहीं डेंगू मलेरिया की तरह ही योग नाम की कोई बीमारी ही तो नहीं फैल रही है जो सबको हुई सी दिख रही है !
योग तो अंतर्यात्रा का माध्यम है संस्कारों और सदाचरणों के अभ्यास करने का माध्यम है योग !सांसारिक प्रपंचों स विरक्त होने का माध्यम है योग !आज व्यापारी लोग कसरतें सिखाते डाढ़ा झोटा रखाकर पहले पैसे माँगते हैं और बाद में उन्हीं पैसों से व्यापार करने लगते हैं !ये कैसा योग !येयोग है याढोंग ?वैराग्य दिखा दिखा कर जनता से माँगना और व्यापार में खर्च कर देना !ये कैसा योग !
स्वच्छता अभियान या शौचालय निर्माण क्या भ्रष्टाचार भगाने से भी ज्यादा जरूरी हैं क्या ?
महोदय ! जिस देश में व्यवस्था सुधारने के लिए सरकार जो कानून बनाती हो उन्हीं कानूनों को तोड़ने की अघोषित रेटलिस्ट उससे पहले ही दलालों को मुहैया करा दी जाती हो और दलाल लोग भ्रष्टाचार की मंडी में बेचने लगते हों वही कानून और पैसे लेकर बताने लगते हों उस कानून को तोड़ने के उपाय !सरकार के द्वारा बनाए गए उन्हीं कानूनों का अपराधीलोग मजाक उड़ाने लगते हों !अपराधियों के द्वारा कानून तोड़ने की अघोषित अग्रिम बुकिंग करा ली जाती हो और ठाट बाट से डंके की चोट पर दिन दोपहर में बड़े से बड़े शहरों में मुख्य राहों चौराहों पर बेधड़क होकर करते देखे जाते हों अपराध ! ऐसे देश में योग का क्या औचित्य ? कोई बीट अफसर घूस माँगने के लिए किसी को तंग कर रहा हो उससे परेशान होकर उस प्रताड़ित पुरुष ने ऊपर के अधिकारियों से शिकायत की हो उन्होंने जाँच आश्वासन दिया हो और जाँच करने की जिम्मेदारी उसी बीट अफसर को सौंप दी गई हो जिसकी शिकायत की गई हो इसका परिणाम ये निकलता है कि वो बीट अफसर पहले से ज्यादा तंग करने लगता है और पहले जो बीट अफसर एक हजार रूपए माँग रहा था अब शिकायत करने के कारण वो 5000 रूपए माँगने लगता हो !और जनता को मजबूरी में देने पड़ते हों ऐसा ही भ्रष्टाचार जिस सरकार के हर विभाग में व्याप्त हो वो सरकार जनता को योग सिखावे, स्वच्छता अभियान समझावे !शौचालय बनाने की सलाह दे तो सुनकर कैसा अजीब सा लगता है ।
जिस देश में अनैतिक रूप से दबंग या अपराधी लोग भले लोगों को प्रताड़ित करते हों उनका बिजली पानी नाली रास्ता रोड आदि बंद कर देते हों उनके घर के आस पास की सरकारी जमीन पर कब्ज़ा कर लेते हों छत पर रखी उनकी पानी की टंकियाँ फाड़ देते हों पाइप काट देते हों औरों की छतों पर मोबाईल टावर लगावाकर खुद किराया खाने लगते हों ऐसे लोगों की शिकायत सरकारी विभागों में करने पर सरकारी मशीनरी उन अपराधियों को शिकायत कर्ता और शिकायत की जानकारी देकर उनका उत्पीड़न करवाती हो, पीड़ित व्यक्ति उसकी शिकायत यदि मंत्री मुख्यमंत्री राज्यपाल गृह मंत्री प्रधानमंत्री तक से करता हो तो उसकी जाँच करने को उन्हीं लोगों को सौंप दिया जाता हो जो अपराधियों के साथ मिलकर शिकायत करता का उत्पीड़न करने के लिए जिम्मेदार हों वो जाँच रिपोर्ट पैसे के हिसाब से बनाने के आदी हो हों !ऐसे में वर्षों बाद भी अपराधियों पर कार्यवाही होनी तो दूर उस एप्लिकेशन पर कुछ किया भी गया या नहीं इसकी तक सूचना देना शिकायत कर्ता को जरूरी न समझा जाता हो महीनों वर्षों बीत जाते हों इसके बाद अपराधियों के द्वारा उत्पीड़न और अधिक बढ़ा दिया जाता हो ऐसी सरकार के 'योग'और स्वच्छता अभियान का क्या मतलब ! जहाँ सरकारी मशीनरी के साथ मिलकर सरकारी जमीनों पर कब्जा करके पाँच पाँच इंच चौड़ी दीवालों पर चार चार पाँच पाँच मंजिल के मकान बनाकर कमरे किराए पर उठा दिए जाते हों !मकान गिरने पर निरपराध लोग मारे जाते हों और सरकारी मशीनरी एवं भूमाफिया लोग बाल बाल बच जाते हों उस देश में योग का क्या औचित्य !
जिन कामों को गलत समझकर उन्हें रोकने के लिए सरकार धूमधाम से कानून बनाती हो उन्हीं के विरुद्ध सरकारी मशीनरी लाइसेंस दे देती हो सरकार को या तो ऐसे कानून नहीं बनाना चाहिए या फिर उनका पालन कठोरता से किया जाना चाहिए !अन्यथा इस कानूनों की कठोरता का भय दिखा दिखा कर सरकारी मशीनरी पैसे वसूला करती है ईमानदारजनता तंगहोती रहती है ।
सुना है कि दिल्ली में बोरिंग करना गैर क़ानूनी है किंतु लगभग हर घर में बोरिंग है और अभी भी की जा रही है किन्तु सरकारी मशीनरी पैसे लेकर करने देती है ।लगता है कि ऎसे कानून केवल पैसे वसूलने के लिए ही बनाए जाते हैं ।
दिल्ली जैसी राष्ट्रीय राजधानी में अपने बनाए हुए नियमों के विरुद्ध निगम या अन्य सरकारी मशीनरी पैसे लेकर वैसा ही हो जाने देती है पूर्व में बनाए गए नियमों के हिसाब से जिन कामों या व्यवस्थाओं को करने से रोका गया होता है उन्हीं के नियमों के विरुद्ध धन लेकर उन्हीं कामों को करने की अनुमति दे दी जाती है ऐसी परिस्थिति में सरकारी योग से समाज को क्या लाभ !
जिस देश में अपराधियों की आपराधिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों पर अंकुश लगाने के लिए देश की जनता के पास कोई विकल्प ही न हो और सरकारें भ्रष्टाचार रोकने का झूठा दंभ भरती हों उन्हें होश ही न हो कि उनके बनाए हुए कानूनों को उनकी मशीनरी दबंगों और अपराधियों से रौंदवाती चली जा रही है उनका दुरुपयोग सीधे साधे भोले भले लोगों को उत्पीड़ित करने के लिए किया जाता है ऐसे देश में योग का क्या अर्थ !
जिस देश में अपराधी लोग कानूनों का उपहास उड़ाते हों !अधिकारियों की मिली भगत से अपराध करनी के लिए स्वतन्त्र हों दूसरी ओर जनता से मजबूरी में होने वाली छोटी छोटी गलतियों के कारण उन्हें डरा धमका कर उनसे वसूली करके उन्हें छोड़ा जाता हो ऐसे देश में कानून बनाने का मतलब क्या सरकारी मशीनरी को वसूली करने के लिए एक नया हथियार पकड़ा देना नहीं माना जाना चाहिए !क्या ये न्यायसंगत है और ऐसे कानूनों से देशवासियों को कोई लाभ है क्या ? महोदय ! जनता को काम तो कराना ही होता है अगर सरकारी विभागों में घूस लिए दिए बिना समय से जनता का काम होने लगे अपने अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी पूर्वक अधिकारी कर्मचारी करने लगें तो लोगों की पवित्र दिनचर्या भी किसी योग से कम नहीं मानी जाएगी इसके बिना घूस का लेन देन भी बना रहे और योग भी होता रहे ऎसा नहीं हो सकता है हँसना और गाल फुलाना दोनों एक साथ नहीं किए जा सकते ! 'योग' पहले सरकार अपने अधिकारियों कर्मचारियों और नेताओं को सिखाए ! उन्हें समझाए योग का मतलब उसके बाद जनता को बताए कि केवल हाथ पैर मोड़ना मरोड़ना या कछुए की तरह फूलना पिचकना ही योग नहीं होता है अपितु सदाचार संस्कार ईमानदारी कर्तव्यपरायणता परोपकार जैसे गुणों को धारण करना ही योग है इन्हीं की बिना देश में मचा है हाहाकार !
भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध लड़ना ही है तो छोड़िए किसी को नहीं !बेनामी संपत्तियां सबसे ज्यादा सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों और नेताओं की ही मिलेंगी देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट यही लोग हैं सारे अपराधी इन्हीं लोगों की गन्दी संपत्तियों को बनाने के इंतजाम में लगे रहते हैं उसमें कुछ उन बेचारों को भी मिल जाता होगा पेट तो उनके भी है । वैसे वो जो भी काम करेंगे उससे पेट भरेंगे चूँकि सरकारी सुस्त मशीनरी उन्हें अपराध करने दे रही है इसलिए वे अपराध करके गुजारा कर रहे हैं सरकारी अधिकारी कर्मचारी और नेता लोग जिस दिन भ्रष्टाचार की कमाई खाना बंद कर देंगे उस दिन अपराधी भी अपराध करना छोड़ कर कोई और धंधा तलाशेंगे उन्हें तो परिश्रम करके कमाना है कुछ और भी कर लेंगे !समस्या सरकार के अपने अधिकारियों कर्मचारियों की है उनकी साइड की आमदनी कैसे होगी अपराधी यदि अपराध करना छोड़ देंगे तो !
सरकार केवल अपने भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी और नेताओं को योग ,सदाचरण ,संस्कार और कर्तव्य परायणता सिखा ले तो बाकी लोग तो मेहनत करके कमाते खाते ही हैं केवल सरकारी कर्मचारियों की नियुक्तियाँ जहाँ जिस काम को करने की लिए की गई हैं वो काम वही लोग बिगाड़ रही हैं जिन्हें उन्हें संभालने की सैलरी दी जाती है !आश्चर्य !!
मेहनत मजदूरी करनी वाली गरीबों ग्रामीणों किसानों का योग तो उनकी पवित्र दिनचर्या में ही हो जाता है किंतु सरकारी कर्मचारियों को ठीक करे सरकार !बस इस छोटे से काम से ही सुधर जाएगा सारा देश । ये है तो छोटा सा काम किन्तु सरकार करे तब तो क्योंकि इस वर्ग में प्रायः सरकार के अपने लोग होते हैं और अपनों के विरुद्ध कार्यवाही कर पाना आसान नहीं होता क्योंकि उसमें कई अपने लोगों की भी टाँगें फँसी निकल आती हैं वहीँ से सरकारों को पीछे लौट आना पड़ता है अन्यथा चुनावों के समय हर पार्टी भ्रष्टाचार के विद्ध शोर मचाती है किंतु !बाद में गड्डियाँ मिलती ही सब उसी पुराने ढर्रे में चलने लगते हैं ।
महोदय !सभी प्रकार के प्रदूषणों की जड़ है भ्रष्टाचार !उसे मिटाए बिना कैसे संभव है विकास !गंदगी सारी सरकारों प्रदेश सरकारों और सरकारी कार्यशैली की है उसे जनता योग के नाम पर हाल झूल कर कैसे ठीक कर दे ! साफ सफाई से रहना सबको अच्छा लगता है स्वस्थ सब रहना चाहते हैं योग बहुत लाभकारी है इसमें भी कोई संशय नहीं है किंतु कसरती योग के साथ साथ ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा परिश्रमशीलता जनसेवा भाव की भी तो आवश्यकता है उसके बिना बिगड़ रहे हैं सारे काम काज !सरकार की अच्छी से अच्छी योजनाएं जनता तक पहुंच ही नहीं पाती हैं अच्छे कानूनों का ईमानदारी से पालन न किए जाने की कारण कई बार अच्छे और ईमानदार लोगों का उत्पीड़न होते देखा जाता है ।
प्रधानमंत्री जी !आपने स्वच्छता अभियान चलाया,शौचालय निर्माण का अभियान चलाया किंतु सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार पकड़ना उतना जरूरी क्यों नहीं समझा ने के लिए आपने कोई प्रभावी अभियान चलाने की मुहिम क्यों नहीं छेड़ी !भ्रष्टाचार पकड़ने के लिए कोई प्रभावी मुहिम क्यों नहीं छेड़ी गई !वो भी तब जब भ्रष्टाचारी अर्थात घूस लेने वाले लोग वो सरकारी कर्मचारी हैं जिन्हें भारी भरकम सैलरी देती है सरकार !इसके बाद भी वो काम करने के लिए जनता से पैसे माँगते हैं अन्यथा खाली बैठे रहते हैं किंतु काम करनी से कतराते हैं भ्रष्टाचारियों ने देश की ऐसी दुर्दशा कर दी है कि चरित्रवान ईमानदार सीधे साधे लोगों का जीना दिनों दिन कठिन होता जा रहा है !भ्रष्टाचार का लेवल इतना ज्यादा बढ़ गया है देश में कि ईमानदारी से साँस लेने में भी दम घुटता है ये है सैंपल पीस आप स्वयं देखिए -
"दो तिहाई भारतीयों को देनी पड़ती है रिश्वत:" सर्वेsee more.... http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/two-thirds-indians-have-to-pay-bribe-highest-in-asia-pacific-transparency-international/articleshow/57517787.cms
सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार के कारण मचा रहता है सारे देश में हाहाकार!पहले इसे मिटावे सरकार फिर करे योग प्रचार !किसी फोड़े का पस निकाले बिना कितना भी अच्छा कोई मलहम क्यों न लगा लिया जाए किंतु फोड़ा समाप्त नहीं होता ऐसे ही सरकारी विभागों की पहले सफाई बाद में स्वच्छता अभियान फिर 'योग' !
सरकार का काम है भ्रष्टाचार मुक्त उत्तम सेवाएँ उपलब्ध कराना पहले उसमें पूरा ध्यान केंद्रित करे सरकार !और जनता को एहसास करवावे अपने उत्तम प्रयासों का ताकि सरकार को न बताना पड़े उत्तम सरकार अपितु जनता स्वयं गुणगान करने लगे !अन्यथा भ्रष्टाचार मिटाए बिना कैसा योग और कैसा 'स्वच्छता अभियान'?माना कि शौचालय बनाना बहुत आवश्यक है किंतु भ्रष्टाचार मिटाना उससे ज्यादा जरूरी है। सरकार की अच्छी से अच्छी योजनाएँ और अच्छे से अच्छे कानून भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं !नोट बंदी से जनता उतना तंग नहीं हुई जितना बैंकों के भ्रष्टाचार से !कालेधन वालों के विरुद्ध सरकार के द्वारा लिए गए निर्णय कालेधन वालों के समर्थन में बदल दिया बैंक वालों ने !
प्रधानमंत्री जी ! 'योग' तो जनता कर सकती है किंतु सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी करने ही नहीं देते हैं !वे घूस माँगते हैं घूस न मिले तो काम नहीं करते और जो घूस दे उसी का काम करते हैं भले वो सरकार और समाज विरोधी ही क्यों न हो !घूस तो जरूरी है किन्तु इन्हें सैलरी देना सरकार की मजबूरी है नहीं देगी तो कोर्ट चले जाएँगे ! घूस लेने देने का पाप भी चलता रहे और 'योग' भी होता रहे ऐसा कैसे हो सकता है योग करने के लिए ईमानदार होना बहुत जरूरी है हँसना भी और गाल फुलाना भी दोनों एक साथ नहीं किए जा सकते हैं !
आप प्रधानमंत्री हैं तो क्या हुआ आपने काला धन रोकने के लिए नोटबंदी की किंतु बहुत से बैंक वालों ने घूस लेकर काले धन वालों के नोटों के बोरे बदल दिए आप चेक कराइए बैंकों के वीडियो विरला ही बैंक होगा जो बचा होगा इस पाप से !कुल मिलाकर नोटबंदी से और कुछ हुआ हो न हुआ हो किंतु बहुत से बैंक वाले रईस जरूर हो गए होंगे !उनका दारिद्र्य दूर हो गया !अब देखना है कि उनसे कैसे निपटती है ईमानदार सरकार !
मुकदमों की संख्या बढ़ने के लिए जिम्मेदार कौन ? न्यायालयों का बोझ बढ़ता है इसका मुख्य कारण सरकारी विभागों की घूसखोरी ही है !जो काम गलत हैं ये जानते हुए भी सम्बंधित अधिकारी कर्मचारी लोग ईमानदारी पूर्वक अपनी सेवाएँ दें तो आधे से अधिक मामले घर के घर में ही निपट जाएँ न्यायालयों तक उन्हें जाना ही न पड़े ऐसे बचाया जा सकता है न्यायालयों का बहुमूल्य समय !किंतु अपराधी और माफिया या दबंग लोग घूस के बल पर इन्हीं अधिकारी कर्मचारियों को पटाकर मुकदमों का बेस बनवा लेते हैं और शुरू कर देते हैं भले लोगों पर मुकदमा !शांति से जीने की रूचि रखने वालों को फँसा देते हैं मुकदमों के झमेलों में !वो बेचारे घबड़ा जाते हैं दबंगों की गुंडई से थक हार कर चुप हो जाते हैं और दबंगों की जीत हो जाती है इसे न्याय कैसे कहा जा सकता है।
ऐसे प्रकरणों से न्यायालयों का बहुमूल्य समय बचाया जा सकता था !किंतु अधिकारियों कर्मचारियों से ये पूछे कौन कि वे अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाते हैं !
सरकार और सरकारी मशीनरी की मिली भगत से बढ़ते हैं बलात्कार !प्रदेश सरकार ही बलात्कारों का प्रोत्साहन यदि इस प्रकार से करेगी तब बलात्कार बढ़ेंगे नहीं तो घटेंगे क्या ?
नक़ल करने का समर्थन करने वाला मुख्यमंत्री कहता है काम बोलता है जिसके अपने मंत्री को पकड़ने के लिए पुलिस खोजती घूम रही हो और वो भागता फिर रहा हो वो मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था के नाम पर अपनी पीठ थपथपाए जा रहा हो ये दुर्भाग्य नहीं तो क्या है !पुलिस मंत्री को पकड़ न पा रही हो !फिर भी वो मुख्यमंत्री कहता घूम रहा हो कि काम बोलता है !अरे ! यदि तुम्हारे काम में इतनी ही दम है तो घर बैठो !गठबंधन और प्रचार करने की लिए क्यों मारे मारे घूम रहे हो !जिसका मंत्री ऐसा हो उस पार्टी के अन्य कार्यकर्ता कैसे होते होंगे !और जो पुलिस मंत्री जैसे सुरक्षा प्राप्त पापुलर व्यक्ति को नहीं पकड़ पा रही है वो आम अपराधियों को पकड़ेगी खाक !कुल मिलाकर सरकार और सरकारी मशीनरी की मिली भगत से बढ़ते हैं बलात्कार और अपराध !
प्रधानमंत्री जी !बेनामी संपत्तियाँ बनाने वाले दोषी हैं तो बनवाने वाले दोषी क्यों नहीं हैं जिन अधिकारियों कर्मचारियों ने घूस ले लेकर ये सारे कब्जे करवाए हैं उन बेईमानों को छोड़ देंगे क्या ?
बेनामी संपत्तियाँ बनाने वालों से घूस ले लेकर कब्जे करवाए गए हैं । सरकारी अधिकारी कर्मचारी एवं तत्कालीन सरकारों में सम्मिलित लोग भी अपना हिस्सा खाते रहे तभी तो चुनाव लड़ने से पहले किराए तक के लिए मोहताज नेता लोग चुनाव जीतते ही अरबो खरबोपति हो जाते रहे हैं ये उन्हीं बेनामी संपत्तियों और आपराधिक कार्यों से अपराधियों के द्वारा दिए गए कमीशन का ही तो धन होता है ।
इसलिए जिस सन में जिन संपत्तियों पर कब्ज़ा किया गया है उस सन में उसे रोकने की जिम्मेदारी जिनकी थी उन्हें सरकार इसी काम की सैलरी देती रही और वो देश की सैलरी खाकर गद्दारी करते रहे दॆश वालों के साथ !पहले उन्हें पकड़ा जाए और उनसे कबुलवाया जाए कि उन्होंने किससे कितने रूपए लेकर कौन कौन सी जमीनें कब्ज़ा करवाई थीं वो सारा पैसा सूत ब्याज सहित उनसेवसूला जाए तब कीजाए उन परकार्यवाही !
कुछ पाखंडी लोग तो व्यापार भी करते हैं और अपने को योगी भी कहते हैं जबकि योग करने के लिए व्यापार तो छोड़ना ही पड़ता है योगश्चित्र वृत्ति निरोधः किंतु कुछ लोग तो योगी होने के बाद व्यापारी हो जाते बिलकुल उसी तरह जैसा कोई वोमिटिंग करके खुद ही चाटने लगे !बिना वैराग्य का कैसा योग ?
भ्रष्टाचार का अंग बने रहकर कैसे और कौन सा योग किया जा सकता है !
सरकार अपने उस विभाग का नाम बता जहाँ बिना घूस लिए समय से ईमानदारी पूर्वक अपनेपन से जनता के काम किए जाते हों !अधिकारी कर्मचारी लोग कानूनों का पालन ईमानदारी से खुद करते हों और जनता से करवाने का प्रयास करते हों !तब तो हो सकता है योग अन्यथा काहे का योग !
सरकार कहती कुछ और है सरकारी मशीनरी करती कुछ और है !जनता सरकार की बातों पर भरोसा करे या सरकारी मशीनरी के आचरणों पर ?
जनता को योग सिखाकर नेता सरकारी कर्मचारी और बाबा लगा लें उद्योग !ये योग है यो ढोंग !!
सरकार जनता को तो योग सिखाती है जबकि सरकारी मशीनरी का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार का आनंद ले रहा है भ्रष्टाचार और योग साथ साथ नहीं चल सकता है ।
संसद का बहुमूल्य समय चर्चा से ज्यादा हुल्लड़ में जाता है इसके लिए दोषी हैं राजनैतिक ठेकेदार !उन्हें सिखाया जाए योग !
अपने नाते रिश्तदारों घर खानदान वालों को चुनावी टिकटें दी जाएंगी और जनता को सिखाया जाएगा योग !अरे ! जब सबको पता है कि संसद आदि चर्चा सदनों में चर्चा के लिए ज्ञान अनुभव एवं भाषा की आवश्यकता होती है किंतु जो अज्ञानी हों अनुभव विहीन हों और जिन्हें बोलने की अकल ही न हो उन्हें चुनावी टिकट देने का मतलब क्या संसद में चर्चा करना मान लिया जाए !और हम जैसों को केवल इसलिए न जुड़ने दिया जाए कि हम विद्वान् हैं सदाचारी हैं संस्कारों के संकल्प से बँधे हुए हैं और हमें योग करना सिखाया जा रहा है जिन्हें वास्तव में योग करने की जरूरत है वे या तो सरकार के अधिकारी कर्मचारी हैं या फिर राजनीति में किसी अच्छे मुकाम पर हैं किंतु गरीब ग्रामीण मजदूर या हम जैसे लोग जिनकी अपनी दिनचर्या ही पसीना बहा बहा कर पवित्र हो गई है ऐसे लोगों ने केवल भ्रष्टाचार का अंग बनने से मना कर दिया दो दो चार चार साल की सैलरी माँग रहे थे नौकरी लगवाने वाले जिम्मेदार लोग ! इसलिए हमें नौकरी नहीं मिली !चुनाव लड़ने के लिए टिकट खरीदने के पैसे नहीं हैं इसलिए सभी राजनैतिक पार्टियाँ हमें दूर रखना चाहती हैं राजनीति से !ऐसे लोग हमें योग सिखा रहे हैं जिनका शीर्ष नेतृत्व हमारे द्वारा सभी माध्यमों से भेजे गए सैकड़ों पत्रों का जवाब ही नहीं देता है वो हमें योग सिखाते हैं स्वच्छता सिखाते हैं शौचालय बनाना सिखाते हैं अरे जनता को लोकतंत्र में उसकी हिस्सेदारी दिलाई जाए तो अच्छा घर बनवाना, अच्छा पहनना साफ सफाई से रहना किसको अच्छा नहीं लगता आखिर हमें भी तो अपने जैसा नहीं तो नहीं सही किंतु कम से कम एक तरह इंसान तो समझते ही रहिए see http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html
'योग है या अंधेर'!हर कोई कछुए की तरह फूल पिचक रहा है हाथ पैर ऐंठ ग्वेंठ मोड़ मरोड़ रहा है कई बाबाओं का तो योग ऎसा बुरी तरह बहने लगा है या भगवान् जाने कि उन्हें योग का रिएक्सन हो गया है वे पहलवानी करते घूम रहे हैं !समझ में नहीं आता कि ये योग पतंजलि वाला है भी या नहीं कहीं डेंगू मलेरिया की तरह ही योग नाम की कोई बीमारी ही तो नहीं फैल रही है जो सबको हुई सी दिख रही है !
योग तो अंतर्यात्रा का माध्यम है संस्कारों और सदाचरणों के अभ्यास करने का माध्यम है योग !सांसारिक प्रपंचों स विरक्त होने का माध्यम है योग !आज व्यापारी लोग कसरतें सिखाते डाढ़ा झोटा रखाकर पहले पैसे माँगते हैं और बाद में उन्हीं पैसों से व्यापार करने लगते हैं !ये कैसा योग !येयोग है याढोंग ?वैराग्य दिखा दिखा कर जनता से माँगना और व्यापार में खर्च कर देना !ये कैसा योग !
स्वच्छता अभियान या शौचालय निर्माण क्या भ्रष्टाचार भगाने से भी ज्यादा जरूरी हैं क्या ?
महोदय ! जिस देश में व्यवस्था सुधारने के लिए सरकार जो कानून बनाती हो उन्हीं कानूनों को तोड़ने की अघोषित रेटलिस्ट उससे पहले ही दलालों को मुहैया करा दी जाती हो और दलाल लोग भ्रष्टाचार की मंडी में बेचने लगते हों वही कानून और पैसे लेकर बताने लगते हों उस कानून को तोड़ने के उपाय !सरकार के द्वारा बनाए गए उन्हीं कानूनों का अपराधीलोग मजाक उड़ाने लगते हों !अपराधियों के द्वारा कानून तोड़ने की अघोषित अग्रिम बुकिंग करा ली जाती हो और ठाट बाट से डंके की चोट पर दिन दोपहर में बड़े से बड़े शहरों में मुख्य राहों चौराहों पर बेधड़क होकर करते देखे जाते हों अपराध ! ऐसे देश में योग का क्या औचित्य ? कोई बीट अफसर घूस माँगने के लिए किसी को तंग कर रहा हो उससे परेशान होकर उस प्रताड़ित पुरुष ने ऊपर के अधिकारियों से शिकायत की हो उन्होंने जाँच आश्वासन दिया हो और जाँच करने की जिम्मेदारी उसी बीट अफसर को सौंप दी गई हो जिसकी शिकायत की गई हो इसका परिणाम ये निकलता है कि वो बीट अफसर पहले से ज्यादा तंग करने लगता है और पहले जो बीट अफसर एक हजार रूपए माँग रहा था अब शिकायत करने के कारण वो 5000 रूपए माँगने लगता हो !और जनता को मजबूरी में देने पड़ते हों ऐसा ही भ्रष्टाचार जिस सरकार के हर विभाग में व्याप्त हो वो सरकार जनता को योग सिखावे, स्वच्छता अभियान समझावे !शौचालय बनाने की सलाह दे तो सुनकर कैसा अजीब सा लगता है ।
जिस देश में अनैतिक रूप से दबंग या अपराधी लोग भले लोगों को प्रताड़ित करते हों उनका बिजली पानी नाली रास्ता रोड आदि बंद कर देते हों उनके घर के आस पास की सरकारी जमीन पर कब्ज़ा कर लेते हों छत पर रखी उनकी पानी की टंकियाँ फाड़ देते हों पाइप काट देते हों औरों की छतों पर मोबाईल टावर लगावाकर खुद किराया खाने लगते हों ऐसे लोगों की शिकायत सरकारी विभागों में करने पर सरकारी मशीनरी उन अपराधियों को शिकायत कर्ता और शिकायत की जानकारी देकर उनका उत्पीड़न करवाती हो, पीड़ित व्यक्ति उसकी शिकायत यदि मंत्री मुख्यमंत्री राज्यपाल गृह मंत्री प्रधानमंत्री तक से करता हो तो उसकी जाँच करने को उन्हीं लोगों को सौंप दिया जाता हो जो अपराधियों के साथ मिलकर शिकायत करता का उत्पीड़न करने के लिए जिम्मेदार हों वो जाँच रिपोर्ट पैसे के हिसाब से बनाने के आदी हो हों !ऐसे में वर्षों बाद भी अपराधियों पर कार्यवाही होनी तो दूर उस एप्लिकेशन पर कुछ किया भी गया या नहीं इसकी तक सूचना देना शिकायत कर्ता को जरूरी न समझा जाता हो महीनों वर्षों बीत जाते हों इसके बाद अपराधियों के द्वारा उत्पीड़न और अधिक बढ़ा दिया जाता हो ऐसी सरकार के 'योग'और स्वच्छता अभियान का क्या मतलब ! जहाँ सरकारी मशीनरी के साथ मिलकर सरकारी जमीनों पर कब्जा करके पाँच पाँच इंच चौड़ी दीवालों पर चार चार पाँच पाँच मंजिल के मकान बनाकर कमरे किराए पर उठा दिए जाते हों !मकान गिरने पर निरपराध लोग मारे जाते हों और सरकारी मशीनरी एवं भूमाफिया लोग बाल बाल बच जाते हों उस देश में योग का क्या औचित्य !
जिन कामों को गलत समझकर उन्हें रोकने के लिए सरकार धूमधाम से कानून बनाती हो उन्हीं के विरुद्ध सरकारी मशीनरी लाइसेंस दे देती हो सरकार को या तो ऐसे कानून नहीं बनाना चाहिए या फिर उनका पालन कठोरता से किया जाना चाहिए !अन्यथा इस कानूनों की कठोरता का भय दिखा दिखा कर सरकारी मशीनरी पैसे वसूला करती है ईमानदारजनता तंगहोती रहती है ।
सुना है कि दिल्ली में बोरिंग करना गैर क़ानूनी है किंतु लगभग हर घर में बोरिंग है और अभी भी की जा रही है किन्तु सरकारी मशीनरी पैसे लेकर करने देती है ।लगता है कि ऎसे कानून केवल पैसे वसूलने के लिए ही बनाए जाते हैं ।
दिल्ली जैसी राष्ट्रीय राजधानी में अपने बनाए हुए नियमों के विरुद्ध निगम या अन्य सरकारी मशीनरी पैसे लेकर वैसा ही हो जाने देती है पूर्व में बनाए गए नियमों के हिसाब से जिन कामों या व्यवस्थाओं को करने से रोका गया होता है उन्हीं के नियमों के विरुद्ध धन लेकर उन्हीं कामों को करने की अनुमति दे दी जाती है ऐसी परिस्थिति में सरकारी योग से समाज को क्या लाभ !
जिस देश में अपराधियों की आपराधिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों पर अंकुश लगाने के लिए देश की जनता के पास कोई विकल्प ही न हो और सरकारें भ्रष्टाचार रोकने का झूठा दंभ भरती हों उन्हें होश ही न हो कि उनके बनाए हुए कानूनों को उनकी मशीनरी दबंगों और अपराधियों से रौंदवाती चली जा रही है उनका दुरुपयोग सीधे साधे भोले भले लोगों को उत्पीड़ित करने के लिए किया जाता है ऐसे देश में योग का क्या अर्थ !
जिस देश में अपराधी लोग कानूनों का उपहास उड़ाते हों !अधिकारियों की मिली भगत से अपराध करनी के लिए स्वतन्त्र हों दूसरी ओर जनता से मजबूरी में होने वाली छोटी छोटी गलतियों के कारण उन्हें डरा धमका कर उनसे वसूली करके उन्हें छोड़ा जाता हो ऐसे देश में कानून बनाने का मतलब क्या सरकारी मशीनरी को वसूली करने के लिए एक नया हथियार पकड़ा देना नहीं माना जाना चाहिए !क्या ये न्यायसंगत है और ऐसे कानूनों से देशवासियों को कोई लाभ है क्या ? महोदय ! जनता को काम तो कराना ही होता है अगर सरकारी विभागों में घूस लिए दिए बिना समय से जनता का काम होने लगे अपने अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी पूर्वक अधिकारी कर्मचारी करने लगें तो लोगों की पवित्र दिनचर्या भी किसी योग से कम नहीं मानी जाएगी इसके बिना घूस का लेन देन भी बना रहे और योग भी होता रहे ऎसा नहीं हो सकता है हँसना और गाल फुलाना दोनों एक साथ नहीं किए जा सकते ! 'योग' पहले सरकार अपने अधिकारियों कर्मचारियों और नेताओं को सिखाए ! उन्हें समझाए योग का मतलब उसके बाद जनता को बताए कि केवल हाथ पैर मोड़ना मरोड़ना या कछुए की तरह फूलना पिचकना ही योग नहीं होता है अपितु सदाचार संस्कार ईमानदारी कर्तव्यपरायणता परोपकार जैसे गुणों को धारण करना ही योग है इन्हीं की बिना देश में मचा है हाहाकार !
भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध लड़ना ही है तो छोड़िए किसी को नहीं !बेनामी संपत्तियां सबसे ज्यादा सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों और नेताओं की ही मिलेंगी देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट यही लोग हैं सारे अपराधी इन्हीं लोगों की गन्दी संपत्तियों को बनाने के इंतजाम में लगे रहते हैं उसमें कुछ उन बेचारों को भी मिल जाता होगा पेट तो उनके भी है । वैसे वो जो भी काम करेंगे उससे पेट भरेंगे चूँकि सरकारी सुस्त मशीनरी उन्हें अपराध करने दे रही है इसलिए वे अपराध करके गुजारा कर रहे हैं सरकारी अधिकारी कर्मचारी और नेता लोग जिस दिन भ्रष्टाचार की कमाई खाना बंद कर देंगे उस दिन अपराधी भी अपराध करना छोड़ कर कोई और धंधा तलाशेंगे उन्हें तो परिश्रम करके कमाना है कुछ और भी कर लेंगे !समस्या सरकार के अपने अधिकारियों कर्मचारियों की है उनकी साइड की आमदनी कैसे होगी अपराधी यदि अपराध करना छोड़ देंगे तो !
सरकार केवल अपने भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी और नेताओं को योग ,सदाचरण ,संस्कार और कर्तव्य परायणता सिखा ले तो बाकी लोग तो मेहनत करके कमाते खाते ही हैं केवल सरकारी कर्मचारियों की नियुक्तियाँ जहाँ जिस काम को करने की लिए की गई हैं वो काम वही लोग बिगाड़ रही हैं जिन्हें उन्हें संभालने की सैलरी दी जाती है !आश्चर्य !!
मेहनत मजदूरी करनी वाली गरीबों ग्रामीणों किसानों का योग तो उनकी पवित्र दिनचर्या में ही हो जाता है किंतु सरकारी कर्मचारियों को ठीक करे सरकार !बस इस छोटे से काम से ही सुधर जाएगा सारा देश । ये है तो छोटा सा काम किन्तु सरकार करे तब तो क्योंकि इस वर्ग में प्रायः सरकार के अपने लोग होते हैं और अपनों के विरुद्ध कार्यवाही कर पाना आसान नहीं होता क्योंकि उसमें कई अपने लोगों की भी टाँगें फँसी निकल आती हैं वहीँ से सरकारों को पीछे लौट आना पड़ता है अन्यथा चुनावों के समय हर पार्टी भ्रष्टाचार के विद्ध शोर मचाती है किंतु !बाद में गड्डियाँ मिलती ही सब उसी पुराने ढर्रे में चलने लगते हैं ।
गंगानदी भगवान के चरणों से निकलती है और भ्रष्टाचार की नदी भ्रष्टनेताओं, भ्रष्टअधिकारियों एवं भ्रष्टबाबाओं तथा भ्रष्टसरकारी
कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !इसीलिए इनकी संपत्तियों एवं
आयस्रोतों की जाँच के बिना भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए की गई सारी कसरतें
बेकार हैं । हे प्रधानमंत्रीजी!सरकार केलिए सबसे बड़ीचुनौती !
अब नेताओं बाबाओं अधिकारी कर्मचारियों की निजी संपत्तियों की करवाई जाए जाँच !काले धन का बहुत बड़ा भंडारण मिलेगा इनके पास ! क्योंकि ऐसे सफेदपोश लोग देश की सरकारी जमीनों का अपने को स्वयंभू मालिक समझते हैं उन्हें कब्ज़ा करके बेच लेते हैं धंधा व्यापार फैला देते हैं सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने के लिए ही ये लोग डाढ़ा झोटा बढ़ाकर बाबा बन जाते हैं आश्रम, मंदिर, योगपीठ, स्कूल, गोशाला या चैरिटेबल ट्रस्ट बनाकर जनसेवा का नाटक करने लगते हैं !
देश की खाली सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने वाले अधिकाँश बाबा या नेता लोग हैं या फिर सरकारी अधिकारी कर्मचारी होते हैं इन्हीं लोगों की मल्कियत चलती है सरकारी जमीनों पर !सरकारी जमीनों को बेच बेचकर पहले तो बस्तियाँ बसा देते हैं और फिर यही सफेद पोश लोग इन बस्तियों का नियमिती करण करने के लिए आंदोलन करते हैं जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार आती है तो उस जमीन का नियमितीकरण करवा लेते हैं फिर नई जगह कब्ज़ा करते हैं ।
कुलमिलाकर बाबाओं नेताओं या सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की कृपा के बिना न कोई गुंडा बन सकता है न माफिया और न ही अपराधी !क्योंकि इन लोगों से सरकारी मशीनरी भी डरती है इनकी पहुँच सीधे प्रधानमंत्री तक होती है !इसीलिए ये सफेदपोश लोग कई बड़े बड़े अपराध अपनी बाबागिरी और नेतागिरी में छिपाए घूम रहे हैं ।
कालेधन के इन सफेदपोश रईसों को पकड़ने की हिम्मत करना बड़ी बड़ी सरकारों के लिए भी होता है हिम्मत का काम !बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों से हर सरकार डरती है क्योंकि इनकी चोरी पकड़ने के लिए जो सरकार खड़ी होती है ये उसी की पोल खोलने लग जाते हैं भ्रष्टाचारी सरकारें अक्सर डरकर अपने कदम वापस खीँच लेती हैं इसीलिए सत्ता किसी की हो सरकार किसी की भी बने किंतु बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का बोल बाला हर सरकार में रहता है !
इसलिए हे प्रधानमंत्री जी !यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो भ्रष्टबाबाओं भ्रष्टनेताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की चल अचल संपत्तियों एवं उनके आयस्रोतों को भी सार्वजानिक करे सरकार !
सभी प्रकार के अपराधों को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका प्रमुख रूप से इन तीन लोगों की ही मानी जाती है हजार पाँच सौ के नोट बंद करने का असर इन तीनों लोगों पर बिलकुल न के बराबर होगा !क्योंकि ऐसे लोग अपना सारा कालाधन जगह जमीनों में लगा चुके होंगे !
अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी अपनी काली कमाई को नोटों के रूप में वर्षों तक रखेगा इसकी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए !यदि कुछ 1000 -500 के नोटों के रूप में उनके पास होगा भी तो इनमें से अधिकाँश लोग रसूखदार होते हैं वो अब तक सब इधर उधर कर चुके होंगे !
हे प्रधानमंत्री जी ! बहुत लोगों में तो यहाँ तक भ्रम फैलाया जा चुका है कि कालेधन से धनी नेताओं, नौकरशाहों, मीडियामालिकों,माफियाओं एवं कारोबारी और धनवान बाबाओं को विश्वास में लेने के लिए मोदी सरकार ने अपने नोट बदलने के निर्णय को महीनों पहले ही गुप्त रूप से इन लोगों को सूचित कर दिया था और उन्हें किसी भी प्रकार से नुक्सान नहीं होने दिया सौ सौ रूपए के नोट मार्किट से आज इसीलिए गायब हैं !ऐसे ही लोग मोदीसरकार के इस निर्णय के उस समय गुण गाते घूम रहे हैं जब छोटे छोटे कारोबारी या आम घर गृहस्थी वाले लोग अपना सब कामकाज छोड़ कर बैंकों डाकघरों के सामने लाइनों में लगे हैं किंतु उन लाइनों में न तो कारोबारी बाबा हैं न नेता हैं न माफिया हैं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन लाइनों में !आखिर क्यों ? क्या वो लोग इतने बड़े ईमानदार हैं और बाक़ी सारा देश बेईमान और भ्रष्टाचारी है या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ रही होगी या उनके खर्चे आम जनता से कम हैं जो उनका काम बिना पैसे के ही चल जा रहा होगा !आखिर वे शांत क्यों और कैसे बैठे हैं और आम जनता परेशान है क्यों ? इसके कारण भी स्पष्ट किए जाने चाहिए !
वर्तमान केंद्र सरकार यदि वास्तव में गंभीर है और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना ही चाहती है तो बहुत आवश्यक है कि पारदर्शिता बनाए रखी जाए और ईमानदारी पूर्वक न केवल आचरण किया जाए अपितु उस ईमानदारी पर शंका करने वालों का विश्वसनीयता इन आत्मीयता पूर्वक समाधान भी किया जाए !सरकार की या जिम्मेदारी है कि होम करते हाथ न जलने दिए जाएँ !
हे प्रधानमंत्री जी ! सरकार ने यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि सफाया हो तो सबका हो !चाहें वो सरकार के कितने भी करीबी नेता अधिकारी या धनवान साधू संन्यासी और बाबा लोग ही क्यों न हों ?अब यदि इन्हें बचाए रखने का थोड़ा भी लालच किया गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा और बदनाम हो जाएगी सरकार !नोटों को बदलने की घोषणा से अभी तो सारे देश में हाहाकार मचा हुआ है सोचने बिचारने का लोगों के पास समय ही नहीं है किंतु जिस दिन लोग सोचने बैठेंगे तब एक एक कमी काउंट करेंगे और उनका रुख देखकर ये विरोधी पार्टियों के नेता भी उस समय उगल रहे होंगे आग !
अतएव हे प्रधानमंत्री जी !लगभग पिछले तीस पैंतीस वर्षों से भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है इस बीच खरीदी बेची गई चल अचल सभी संदिग्ध संपत्तियों की जाँच कराई जाए और उनमें लगाई गई अकूत धनराशि के आयस्रोत इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिए जाएँ ताकि किसी के बिषय में उसे जानने वाले को कोई शंका समाधान करना हो या कुछ और जानकारी देनी हो तो वो बात भी जाँच के दायरे में आ सके !जो आयस्रोत स्पष्ट न हों या गैरकानूनी हों या जिनमें नियमों का पालन न किया गया हो वो सारी संपत्तियाँ एवं उनके द्वारा कमाई गई संपत्तियों से बनाई गई संपत्तियाँ पारदर्शिता पूर्वक जप्त करके उन्हें सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार !
महोदय ! संन्यासी बनने की घोषणा के बाद साधू संतों के द्वारा इकट्ठी की गई सारी संपत्तियाँ कालाधन मानकर उन्हें जप्त करके सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार!ऐसे बाबा लोगों के सेवाकार्य एवं चैरिटी संबंधी सभी लोकप्रिय और जनहितकारी कार्यों को यथावत उन्हीं की देख रेख में चलने भले दिया जाए किंतु उसका स्वामित्व सरकार अपने हाथों में लें!यदि वे वास्तव में संन्यासी और सेवाकार्य करने वाले हैं और इसमें उनका कोई निजी लोभ नहीं है तो उन्हें यह व्यवस्था स्वीकार करने में कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए !विगत कुछ वर्षों में कुछ आश्रमों एवं बाबाओं की सेवा गतिविधियों में कई प्रकार के अपराध होते पाए गए जिन आरोपों में वे लोग अभी भी जेलों में हैं या कानूनी लड़ाईयाँ लड़ रहे हैं उसके बाद ऐसे सभी लोगों पर शंका होना स्वाभाविक है । वैसे भी संन्यास लेने के बाद समाज से चंदा इकठ्ठा करके बनाई गई संपत्तियाँ समाज की हैं न कि उन बाबाओं की ,इसलिए समाज की संपत्तियाँ समाज को सौंपने में बुराई भी क्या है !
चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा बनाई गई अकूत संपत्तियों में भरा पड़ा है भ्रष्टाचार !साहस हो तो उन्हें पकड़े सरकार !
ऐसे नेताओं की संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए चुनाव जीतते ही उनके यहाँ लग जाते हैं संपत्तियों के अंबार !खोजे जाएँ उनकी आय के स्रोत !आखिर ऐसा क्या है कि चुनाव जीत जाने के बाद अधिकाँश नेताओं को कुछ करने की जरूरत ही नहीं रह जाती है और प्रायः वे कुछ करते भी नहीं हैं और न ही उनके पास कुछ करने का समय ही होता है !ऐसे नेताओं ने सेवा कार्यों के लिए पहचानी जाने वाली राजनीति को ही न केवल अपना व्यवसाय मान लिया है अपितु उसी राजनैतिक धमक से संपत्तियों के बड़े बड़े अंबार लगा लिए हैं जिनकी खनक से उनकी सैकड़ों पीढ़ियाँ राजसी ठाटबाट भोगती रहेंगी और आज भी वो बड़ी बड़ी कोठियों में न केवल रहते हैं अपितु कई कई तो खाली भी पड़ी होती हैं जहाज से नीचे पैर नहीं रखते !शादी काम काज में करोड़ों अरबों रुपये पानी की तरह बहा देते हैं वे !आखिर कहाँ कमाने जाते हैं ? क्या धंधा व्यापार करते हैं और कब काम करते हैं बकवास करने हुल्लड़ मचाने से इन्हें फुरसत ही कहाँ होती है जो काम धंधा फैलाएँगे !भ्रष्टाचार की कमाई से ऐसे लोगों के खजाने भरे पड़े हैं हिम्मत हो तो जाँच करे सरकार अन्यथा 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को नौकरी मिलने के बाद खरीदी गई जमीनों मकानों की जाँच करे सरकार !
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने नौकरी लगने के बाद जितनी भी संपत्तियाँ बढ़ाई और बनाई हैं उनकी जाँच क्यों नहीं करती है सरकार !उनमें से जो लोग घूस लेते हैं उससे भ्रष्टाचार पूर्वक बनाई गई संपत्तियाँ और फिर उन संपत्तियों के द्वारा इकठ्ठा की गई जो संपत्तियाँ वे सब काला धन नहीं हैं तो क्या हैं ?सरकार को आखिर क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ये भ्रष्टाचार ? केवल 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?काले धन से खरीदी गई संपत्तियों के अलावा उनकी सैलरी या नैतिक स्रोतों से संचित धन की सीमा में नहीं आती हैं तो वे संपत्तियाँ गैरकानूनी हैं ब्लैकमनी हैं उन्हें सरकार सार्वजनिक करे !
बाबाओं के द्वारा सबकुछ छोड़ने अर्थात संन्यास लेने की घोषणा करने के बाद जोड़ा गया सारा धन ही कालाधन होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति भी ब्लैकमनी है ।घूसखोर अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी के अलावा भ्रष्टाचार पूर्वक अर्जित की गई सारी संपत्तियाँ ही काला धन हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया होता है वो सारा ब्लैकमनी अर्थात काला धन ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करे सरकार !
ऐसी संपत्तियों की जाँच करवाकर जो संपत्तियाँ इनके खून पसीने की कमाई की नहीं हैं उन्हें जब्त करके सार्वजानिक संपत्ति घोषित करे सरकार !
सैद्धांतिक रूप से बाबाओं का सारा धन ही ब्लैकमनी होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति ब्लैकमनी है । इसी प्रकार से सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की नौकरी लगने के बाद इकठ्ठा की गई गैरकानूनी संपत्तियाँ ब्लैकमनी हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना ही होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया है वो सारा ब्लैकमनी ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए !
महोदय !भ्रष्टाचारियों का तब तक बाल भी बाँका नहीं होगा जब तक भ्रष्टनेताओं ,भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों की संचित संपत्तियों की जाँच नहीं की जाती !चुनाव जीतने के बाद जिस नेता के पास जितनी संपत्ति बढ़ी या बनी है इसी प्रकार से नौकरी लगने के बाद जिस अधिकारी कर्मचारी के पास जो संपत्ति बढ़ी और बनी है वो सारी जाँच के दायरे में लाई जाए !राजनीति में जब वे आए थे तब उनके पास चल अचल संपत्ति कितनी थी और आज कितनी है संपत्ति !इसकी जाँच तो होनी चाहिए ।
अब नेताओं बाबाओं अधिकारी कर्मचारियों की निजी संपत्तियों की करवाई जाए जाँच !काले धन का बहुत बड़ा भंडारण मिलेगा इनके पास ! क्योंकि ऐसे सफेदपोश लोग देश की सरकारी जमीनों का अपने को स्वयंभू मालिक समझते हैं उन्हें कब्ज़ा करके बेच लेते हैं धंधा व्यापार फैला देते हैं सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने के लिए ही ये लोग डाढ़ा झोटा बढ़ाकर बाबा बन जाते हैं आश्रम, मंदिर, योगपीठ, स्कूल, गोशाला या चैरिटेबल ट्रस्ट बनाकर जनसेवा का नाटक करने लगते हैं !
देश की खाली सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने वाले अधिकाँश बाबा या नेता लोग हैं या फिर सरकारी अधिकारी कर्मचारी होते हैं इन्हीं लोगों की मल्कियत चलती है सरकारी जमीनों पर !सरकारी जमीनों को बेच बेचकर पहले तो बस्तियाँ बसा देते हैं और फिर यही सफेद पोश लोग इन बस्तियों का नियमिती करण करने के लिए आंदोलन करते हैं जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार आती है तो उस जमीन का नियमितीकरण करवा लेते हैं फिर नई जगह कब्ज़ा करते हैं ।
कुलमिलाकर बाबाओं नेताओं या सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की कृपा के बिना न कोई गुंडा बन सकता है न माफिया और न ही अपराधी !क्योंकि इन लोगों से सरकारी मशीनरी भी डरती है इनकी पहुँच सीधे प्रधानमंत्री तक होती है !इसीलिए ये सफेदपोश लोग कई बड़े बड़े अपराध अपनी बाबागिरी और नेतागिरी में छिपाए घूम रहे हैं ।
कालेधन के इन सफेदपोश रईसों को पकड़ने की हिम्मत करना बड़ी बड़ी सरकारों के लिए भी होता है हिम्मत का काम !बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों से हर सरकार डरती है क्योंकि इनकी चोरी पकड़ने के लिए जो सरकार खड़ी होती है ये उसी की पोल खोलने लग जाते हैं भ्रष्टाचारी सरकारें अक्सर डरकर अपने कदम वापस खीँच लेती हैं इसीलिए सत्ता किसी की हो सरकार किसी की भी बने किंतु बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का बोल बाला हर सरकार में रहता है !
इसलिए हे प्रधानमंत्री जी !यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो भ्रष्टबाबाओं भ्रष्टनेताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की चल अचल संपत्तियों एवं उनके आयस्रोतों को भी सार्वजानिक करे सरकार !
सभी प्रकार के अपराधों को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका प्रमुख रूप से इन तीन लोगों की ही मानी जाती है हजार पाँच सौ के नोट बंद करने का असर इन तीनों लोगों पर बिलकुल न के बराबर होगा !क्योंकि ऐसे लोग अपना सारा कालाधन जगह जमीनों में लगा चुके होंगे !
अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी अपनी काली कमाई को नोटों के रूप में वर्षों तक रखेगा इसकी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए !यदि कुछ 1000 -500 के नोटों के रूप में उनके पास होगा भी तो इनमें से अधिकाँश लोग रसूखदार होते हैं वो अब तक सब इधर उधर कर चुके होंगे !
हे प्रधानमंत्री जी ! बहुत लोगों में तो यहाँ तक भ्रम फैलाया जा चुका है कि कालेधन से धनी नेताओं, नौकरशाहों, मीडियामालिकों,माफियाओं एवं कारोबारी और धनवान बाबाओं को विश्वास में लेने के लिए मोदी सरकार ने अपने नोट बदलने के निर्णय को महीनों पहले ही गुप्त रूप से इन लोगों को सूचित कर दिया था और उन्हें किसी भी प्रकार से नुक्सान नहीं होने दिया सौ सौ रूपए के नोट मार्किट से आज इसीलिए गायब हैं !ऐसे ही लोग मोदीसरकार के इस निर्णय के उस समय गुण गाते घूम रहे हैं जब छोटे छोटे कारोबारी या आम घर गृहस्थी वाले लोग अपना सब कामकाज छोड़ कर बैंकों डाकघरों के सामने लाइनों में लगे हैं किंतु उन लाइनों में न तो कारोबारी बाबा हैं न नेता हैं न माफिया हैं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन लाइनों में !आखिर क्यों ? क्या वो लोग इतने बड़े ईमानदार हैं और बाक़ी सारा देश बेईमान और भ्रष्टाचारी है या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ रही होगी या उनके खर्चे आम जनता से कम हैं जो उनका काम बिना पैसे के ही चल जा रहा होगा !आखिर वे शांत क्यों और कैसे बैठे हैं और आम जनता परेशान है क्यों ? इसके कारण भी स्पष्ट किए जाने चाहिए !
वर्तमान केंद्र सरकार यदि वास्तव में गंभीर है और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना ही चाहती है तो बहुत आवश्यक है कि पारदर्शिता बनाए रखी जाए और ईमानदारी पूर्वक न केवल आचरण किया जाए अपितु उस ईमानदारी पर शंका करने वालों का विश्वसनीयता इन आत्मीयता पूर्वक समाधान भी किया जाए !सरकार की या जिम्मेदारी है कि होम करते हाथ न जलने दिए जाएँ !
हे प्रधानमंत्री जी ! सरकार ने यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि सफाया हो तो सबका हो !चाहें वो सरकार के कितने भी करीबी नेता अधिकारी या धनवान साधू संन्यासी और बाबा लोग ही क्यों न हों ?अब यदि इन्हें बचाए रखने का थोड़ा भी लालच किया गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा और बदनाम हो जाएगी सरकार !नोटों को बदलने की घोषणा से अभी तो सारे देश में हाहाकार मचा हुआ है सोचने बिचारने का लोगों के पास समय ही नहीं है किंतु जिस दिन लोग सोचने बैठेंगे तब एक एक कमी काउंट करेंगे और उनका रुख देखकर ये विरोधी पार्टियों के नेता भी उस समय उगल रहे होंगे आग !
अतएव हे प्रधानमंत्री जी !लगभग पिछले तीस पैंतीस वर्षों से भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है इस बीच खरीदी बेची गई चल अचल सभी संदिग्ध संपत्तियों की जाँच कराई जाए और उनमें लगाई गई अकूत धनराशि के आयस्रोत इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिए जाएँ ताकि किसी के बिषय में उसे जानने वाले को कोई शंका समाधान करना हो या कुछ और जानकारी देनी हो तो वो बात भी जाँच के दायरे में आ सके !जो आयस्रोत स्पष्ट न हों या गैरकानूनी हों या जिनमें नियमों का पालन न किया गया हो वो सारी संपत्तियाँ एवं उनके द्वारा कमाई गई संपत्तियों से बनाई गई संपत्तियाँ पारदर्शिता पूर्वक जप्त करके उन्हें सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार !
महोदय ! संन्यासी बनने की घोषणा के बाद साधू संतों के द्वारा इकट्ठी की गई सारी संपत्तियाँ कालाधन मानकर उन्हें जप्त करके सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार!ऐसे बाबा लोगों के सेवाकार्य एवं चैरिटी संबंधी सभी लोकप्रिय और जनहितकारी कार्यों को यथावत उन्हीं की देख रेख में चलने भले दिया जाए किंतु उसका स्वामित्व सरकार अपने हाथों में लें!यदि वे वास्तव में संन्यासी और सेवाकार्य करने वाले हैं और इसमें उनका कोई निजी लोभ नहीं है तो उन्हें यह व्यवस्था स्वीकार करने में कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए !विगत कुछ वर्षों में कुछ आश्रमों एवं बाबाओं की सेवा गतिविधियों में कई प्रकार के अपराध होते पाए गए जिन आरोपों में वे लोग अभी भी जेलों में हैं या कानूनी लड़ाईयाँ लड़ रहे हैं उसके बाद ऐसे सभी लोगों पर शंका होना स्वाभाविक है । वैसे भी संन्यास लेने के बाद समाज से चंदा इकठ्ठा करके बनाई गई संपत्तियाँ समाज की हैं न कि उन बाबाओं की ,इसलिए समाज की संपत्तियाँ समाज को सौंपने में बुराई भी क्या है !
चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा बनाई गई अकूत संपत्तियों में भरा पड़ा है भ्रष्टाचार !साहस हो तो उन्हें पकड़े सरकार !
ऐसे नेताओं की संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए चुनाव जीतते ही उनके यहाँ लग जाते हैं संपत्तियों के अंबार !खोजे जाएँ उनकी आय के स्रोत !आखिर ऐसा क्या है कि चुनाव जीत जाने के बाद अधिकाँश नेताओं को कुछ करने की जरूरत ही नहीं रह जाती है और प्रायः वे कुछ करते भी नहीं हैं और न ही उनके पास कुछ करने का समय ही होता है !ऐसे नेताओं ने सेवा कार्यों के लिए पहचानी जाने वाली राजनीति को ही न केवल अपना व्यवसाय मान लिया है अपितु उसी राजनैतिक धमक से संपत्तियों के बड़े बड़े अंबार लगा लिए हैं जिनकी खनक से उनकी सैकड़ों पीढ़ियाँ राजसी ठाटबाट भोगती रहेंगी और आज भी वो बड़ी बड़ी कोठियों में न केवल रहते हैं अपितु कई कई तो खाली भी पड़ी होती हैं जहाज से नीचे पैर नहीं रखते !शादी काम काज में करोड़ों अरबों रुपये पानी की तरह बहा देते हैं वे !आखिर कहाँ कमाने जाते हैं ? क्या धंधा व्यापार करते हैं और कब काम करते हैं बकवास करने हुल्लड़ मचाने से इन्हें फुरसत ही कहाँ होती है जो काम धंधा फैलाएँगे !भ्रष्टाचार की कमाई से ऐसे लोगों के खजाने भरे पड़े हैं हिम्मत हो तो जाँच करे सरकार अन्यथा 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को नौकरी मिलने के बाद खरीदी गई जमीनों मकानों की जाँच करे सरकार !
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने नौकरी लगने के बाद जितनी भी संपत्तियाँ बढ़ाई और बनाई हैं उनकी जाँच क्यों नहीं करती है सरकार !उनमें से जो लोग घूस लेते हैं उससे भ्रष्टाचार पूर्वक बनाई गई संपत्तियाँ और फिर उन संपत्तियों के द्वारा इकठ्ठा की गई जो संपत्तियाँ वे सब काला धन नहीं हैं तो क्या हैं ?सरकार को आखिर क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ये भ्रष्टाचार ? केवल 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?काले धन से खरीदी गई संपत्तियों के अलावा उनकी सैलरी या नैतिक स्रोतों से संचित धन की सीमा में नहीं आती हैं तो वे संपत्तियाँ गैरकानूनी हैं ब्लैकमनी हैं उन्हें सरकार सार्वजनिक करे !
बाबाओं के द्वारा सबकुछ छोड़ने अर्थात संन्यास लेने की घोषणा करने के बाद जोड़ा गया सारा धन ही कालाधन होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति भी ब्लैकमनी है ।घूसखोर अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी के अलावा भ्रष्टाचार पूर्वक अर्जित की गई सारी संपत्तियाँ ही काला धन हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया होता है वो सारा ब्लैकमनी अर्थात काला धन ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करे सरकार !
ऐसी संपत्तियों की जाँच करवाकर जो संपत्तियाँ इनके खून पसीने की कमाई की नहीं हैं उन्हें जब्त करके सार्वजानिक संपत्ति घोषित करे सरकार !
सैद्धांतिक रूप से बाबाओं का सारा धन ही ब्लैकमनी होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति ब्लैकमनी है । इसी प्रकार से सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की नौकरी लगने के बाद इकठ्ठा की गई गैरकानूनी संपत्तियाँ ब्लैकमनी हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना ही होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया है वो सारा ब्लैकमनी ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए !
महोदय !भ्रष्टाचारियों का तब तक बाल भी बाँका नहीं होगा जब तक भ्रष्टनेताओं ,भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों की संचित संपत्तियों की जाँच नहीं की जाती !चुनाव जीतने के बाद जिस नेता के पास जितनी संपत्ति बढ़ी या बनी है इसी प्रकार से नौकरी लगने के बाद जिस अधिकारी कर्मचारी के पास जो संपत्ति बढ़ी और बनी है वो सारी जाँच के दायरे में लाई जाए !राजनीति में जब वे आए थे तब उनके पास चल अचल संपत्ति कितनी थी और आज कितनी है संपत्ति !इसकी जाँच तो होनी चाहिए ।
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