Friday, 24 March 2017

Chitr

महिला सुरक्षा के नाम पर 'सीता ' और 'सूर्पणखा' को एक तराजू पर नहीं तौला जा सकता !

    धर्म के नाम पर धोखाधड़ी का साथ देने वाले स्त्री पुरुषों पर भी कड़ी कार्यवाही की जाए !ऐसे बाबाओं के बलात्कारों में उन्हें सम्मिलित  माना जाए !
    बाबाओं को बर्बाद करने में महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका होती है !बाबा बनकर पहुँचे रावण का सीता ने बहिष्कार किया था तब वे आदर की पात्र बनीं किंतु आज ऐसे कालनेमि या रावणजैसे बाबाओं से मिले बिना जिन्हें चैन नहीं पड़ती उन स्त्री पुरुषों को निर्दोष कैसे मान लिया जाए और ये कैसे मान लिया जाए कि ये उनकी पाप पूर्ण रँगरैलियों के अंग  नहीं रहे होंगे और यदि नहीं रहे होते तो इन्हें वहाँ और अच्छा लगता क्या था ?धर्म कर्म साधना संयम तपस्या आदि के संस्कार तो ऐसी जगहों पर दिखाई सुनाई नहीं पड़ते हैं फिर इन्हें वहाँ आनंद कैसे आ रहा था | 
    जिनकी बीबियों बच्चियों को बाबा लोग शिकार बनाते हैं तब उन्हें बुरा क्यों लगता है जब वही बाबा दूसरे की बीबी बच्चियों से वही दुष्कर्म कर रहे होते हैं उसे सत्संग कैसे मान लेती है उनकी आत्मा ! 'तमाशाराम' ने भी तो चेले की बेटी को ही अपनी हवस का शिकार बनाया था और बाबा 'कामकरीम' ने भी अपने चेले की बीबी को ही गोद लेकर दुष्कर्म किए !
    सीता जी तो लंका में जाकर भी सुरक्षित लौटीं जबकि सूर्पणखा राम जी के पास भी सुरक्षित नहीं रह सकी !सीताओं की सुरक्षा करना तो सरकार का जरूरी कर्तव्य है किंतु सूर्पणखाओं की सुरक्षा कैसे कर सकती है सरकार !वैसे भी सुरक्षा केवल महिलाओं की ही क्यों ?सुरक्षा व्यवस्था में पक्षपात क्यों !सुरक्षा सबको क्यों न मिले ?  
       'सीताजी' बिना सुरक्षा के भी सुरक्षित रह सकीं कैसे ?और 'सूर्पणखा 'सुरक्षा के सारे संसाधनों से संपन्न  होने पर भी अपनी नाक कटा बैठी !इसमें गलती लक्ष्मण जी की थी या सूर्पणखा की ?क्या सीता जी की तरह ही शालीनता पूर्वक सूर्पणखा भी रहती तो भी उसकी नाक कट जाती क्या ?इस प्रकरण में गलती लक्ष्मण जी की कितनी थी और सूर्पणखा जी की कितनी थी ?उस युग में लंका देश की रावणसरकार की तरह ही जो भी सरकार सीता और सूर्पणखा के अंतर को समझे बिना ऐसे प्रकरणों में केवल लड़कों या पुरुषों को ही जिम्मेदार मानकर पुरुषों के विरुद्ध ही कार्यवाही करने लगती है उस सरकार की भी वही दशा होती है जो लंका सरकार की हुई थी ! 
       मज़बूरी या मनोरंजन -
सीता जी को मजबूरी में जाना पड़ा था जंगल जबकि  सूर्पणखा मनोरंजन के लिए जंगल गई थी !
       सीता जी बलपूर्वक ले जय गईं सूर्पणखा खुद आई !
         सीता जी अपरहण से लंका ले जाई गईं किंतु सूर्पणखा स्वयं गई थी लक्ष्मण जी के पास !
         बलात्कारी भी पहले रूचि परखते हैं !
       सीता जी जिस बासनात्मक समर्पण को ठुकरा देती हैं सूर्पणखा उसी के लिए लार बहा रही थी !
       जैसी करनी वैसी भरनी  -
 सीता जी ने रावण के विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया था किंतु  सूर्पणखा स्वयं लिए घूम रही थीं विवाह प्रस्ताव !
      सुरक्षा अपनी अपने हाथ -
सीता जी लंका में भी बैठकर डाँट रही थीं त्रैलोक्यविजयी रावण को और सूर्पणखा गिड़गिड़ा रही थी लक्ष्मण से !
 लंका शराबियों कबाबियों नशेड़ियों गंजेड़ियों का देश -
 सीता जी लंका से भी सुरक्षित लौटीं किंतु सूर्पणखा राम जी के भी पास जाकर नाक कटा कर ही लौटी !
  बलात्कारियों में राक्षसों से बड़े बलात्कारी आज नहीं हैं -
       सीता जी का राक्षस भी कुछ नहीं बिगाड़ सके सूर्पणखा रामादल में भी सुरक्षित नहीं थी !
          सूर्पणखा जैसी सुरक्षा किसे मिलेगी ?
      सीता जी की सुरक्षा में केवल राम लक्ष्मण और सूर्पणखा की सुरक्षा में सारी लंका की पुलिस और सारे खानदान के साथ महान पराक्रमी स्वयं रावण भी !किंतु न सम्मान बचाया जा सका न नाक !  
शरीर की सजावट से झलकता है मन की सेक्सभावना !बलात्कारी भी परख लेते हैं -
     सीता जी !राजभवनों में भी सहज श्रृंगार प्रिय थीं सूर्पणखा जंगलों  में भी ब्यूटीपार्लर की शौक़ीन थी !
        जिस सूर्पणखा का भाई इतना बड़ा पराक्रमी रहा हो उसके पास इतनी विशाल सेना रही हो और अपनी बहन के प्रति इतना समर्पित रहा हो कि उसने बहन की सुरक्षा सम्मान स्वाभिमान के लिए सारे खान दान का बलिदान कर दिया हो फिर भी पीछे न हटा हो ऐसे भाई की इतनी भाग्यशाली बहन सूर्पणखा जैसी महिला भी मनोरंजन के लिए जंगल जाकर अपनी नाक कटवा बैठी वो भी किसी बलात्कारी और ब्याभिचारी से नहीं अपितु सभी सद्संस्कारों के शिरोमणि श्री लक्ष्मण जी से !सूर्पणखा जैसी कुसंस्कारी बहन का भाई उसके सम्मान के लिए परिवार सहित जूझ गया किंतु न उसकी कटी नाक न जोड़वा सका और न ही सम्मान स्वाभिमान वापस करवा सका !
         वैसे देखा जाए तो अकेले जंगल जाने की क्या आवश्यकता थी सूर्पणखा को उसके घूमने फिरने के लिए सभी साधनों से सुरक्षित लंका में जगह कम थी क्या ? किंतु जब कोई सूर्पणखा अपने माता पिता आदि अभिभावकों के अपनी सुरक्षा संबंधी बहुमूल्य समर्पण और सुझावों को समझ पाने में और उसकी कदर करने में चूक जाती है तो नाक उसकी तो कटती ही है साथ ही रावण जैसे महान पराक्रमी अपने भाई के परिवार का भी सत्यानाश करवा डालती है !
     माना कि सूर्पणखा युवा थी बालिग थी इसलिए वो अपने जीवन का फैसला स्वयं ले सकती थी ऐसा करने का अधिकार भी उसे लंका के  संविधान के तहत प्राप्त था कि वो क्या पहने कहाँ जाए कैसे रहे किससे मिले क्या करे क्या न करे इसके विषय में उसे कोई सलाह दे अंकुश लगाए ये उसे पसंद नहीं था उसे अपने स्वतंत्र अधिकारों के साथ स्वच्छंदता पूर्वक ही जीना यदि पसंद था तो उसका लिया फैसला ही  यदि उस पर भारी पड़ गया तो उसे अपने फैसले के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए स्वयं सहना  था अपनी गलती के लिए भाई के परिवार को बर्बाद करना कहाँ तक न्यायायोचित था !दूसरी बात रावण जैसा भाई स्वयं महान पराक्रमी था उसके लड़के नाती पोते लाखों में थे सब एक से एक बड़े वीर बलवान थे !इसके अलावा लंका में रावण सरकार की अपनी इतनी भारी भरकम परं पराक्रमी राक्षसी सेना थी ये सब सूर्पणखा की सुरक्षा के लिए समर्पित थी किंतु नाक कटाने जाते समय इन सब सिक्योरिटी फोर्सेस को साथ ले जाती क्या ?इतनी मूर्ख वो भी नहीं थी !
     सूर्पणखावादी लोग वैसे भी एकांत ही खोजते हैं पार्कों पार्किंगों झाड़ियों जंगलों खेतों खलिहानों आदि एकांत स्थानों का चयन दोनों आपसी सहमति से करते हैं ऐसे समयों में इनकी आपसी समझ साझा हो जाती है मरने जीने की कसमें दोनों साथ साथ खाते हैं यहाँ तक कि माता पिता आदि अपने प्रति समर्पित शुभ चिंतक अपने अभिभावकों की भी परवाह नहीं करते हैं उन्हें भी बिना बताए घर से चले जाने वाले निरंकुश बच्चों की सुरक्षा सरकार कैसे कर ले !   
   

Thursday, 23 March 2017

प्रधानमंत्री जी ! सांसद विधायक योग्य हों और स्कूली बच्चे पढ़ने में होशियार हों तो गैरहाजिर रहेंगे ही क्यों ?

       अयोग्य लोगों को चुनावी टिकट देने वाले और बुद्धू बच्चों को स्कूलों में एडमीशन देने वाले दोनों ही दोषी होते हैं इसमें सांसदों विधायकों और स्कूली बच्चों का क्या दोष !वर्तमान राजनीति में प्रतिभाओं की उपेक्षा चिंता का विषय !चुनाव तो अयोग्य लोग भी जीत लेते हैं किंतु देश और समाज को दिशा देना योग्यता और संस्कारों के बिना संभव है ही नहीं !
         प्रधानमंत्री जी !सांसद  विधायक भी स्कूली बच्चों की तरह ही होते हैं पढ़ने लिखने में कमजोर स्कूली बच्चों को एवं अयोग्य जनप्रतिनिधियों को स्कूल और सदनों में जाने में रूचि तो नहीं ही होती है किंतु जैसे डोनेशन देकर एडमीशन मिल जाता है ऐसे ही मिल जाते हैं चुनावी टिकट !रिस्तेदारों के बच्चों के एडमिशनों की तरह ही  नेताओं के बच्चों को भी घुसा दिया जाता है राजनीति में !किंतु योग्यता अनुभव संस्कार चरित्र कर्मठता  परोपकारभावना सेवाभाव सहनशीलता भाषाशैली बहुज्ञता कई विषयों का वैदुष्य भाषाशैली की आवश्यकता क्या राजनीति में होती ही नहीं है !गरिमापूर्ण जीवन जीने वालों को बार बार टोकना  ही नहीं पढ़ता है!किंतु जिनकी क्वालिटी ही कमजोर हो उन्हें अच्छा बनने का उपदेश करते रहने से उनकी योग्यता तो बढ़ नहीं सकती हाँ इससे अपनी कर्मठता का प्रचार जरूर हो जाता है !
      प्रधानमंत्री जी !मैं स्वयं उसी विचारधारा के विभिन्न आयामों से सं 1986 से जुड़ा चला आ रहा हूँ जो इस समय भारत की सत्ता के शीर्ष सोपान पर विद्यमान है । मैंने भी चार विषय से MA और काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से Ph.D.की है लगभग 100 किताबें लिखी हैं 27 किताबें विभिन्न स्कूलों में पढ़ाई भी जाती हैं कई काव्य भी हैं प्रवचन भाषण कविता पाठ आदि का बचपन से अभ्यास है मेरी एक किताब के प्रकाशन के लिए स्वयं आपने श्रीमान प्रभात जी को फोन भी किया था !उसी से उऋण होने के प्रयास में सोशल साइटों पर समर्पित हूँ !
    सोर्स और घूस दे पाने की क्षमता के अभाव में बेरोजगारी का जीवन जीने के लिए मजबूर मैं राष्ट्रहित समाजहित एवं वैदिकवैज्ञानिक शास्त्रीय अनुसंधानों में अधिकाँश समय देकर परिश्रम पूर्वक मैंने कई बड़े  शोधकार्य किए हैं जिनके उपयोग से कई मामलों में आधुनिक विज्ञान के कार्यों में बड़ी मदद मिल सकती है !ऐसा सोचकर मैंने अपने ऐसे शोध कार्यों को सरकार के सामने प्रस्तुत करके इन्हीं शोध कार्यों के लिए सरकार से सहयोग पाने हेतु मेरे द्वारा किए गए समस्त प्रयास निष्फल सिद्ध हुए हैं और सरकार की ऊंचाइयों तक हमारे जैसे लोगों का पहुँच पाना  संभव कहाँ हो पाता है !जिन सांसदों के माध्यम से सरकार के शीर्ष नेतृत्व तक पहुँचने की व्यवस्था सरकारों में होती है उन्हें यदि समझाया ही जा सकता होता तो अबतक आप तक मैं पहुँच भी गया होता !अपने विषय को समझ सकने की शक्ति उनमें विकसित कर पाना मेरे लिए आसान नहीं है बाकी दूसरे और कोई सोर्स मेरे पास नहीं है अन्यथा रीडर प्रोफेसर तो मैं भी बन सकता था !
    महोदय ! जनप्रतिनिधियों की योग्यता के अभाव में समाज के कई बड़े नुक्सान होते रहते हैं जिधर ध्यान प्रायः कम लोगों का ही जाता है । पहला उनकी अपनी अयोग्यता से होने वाला नुक्सान और दूसरा योग्य लोगों को आगे न बढ़ने देने का उनका अघोषित संकल्प और प्रयास !तीसरा योग्य लोगों की शैक्षणिक योग्यता अनुभव आदि जनहितकारी गुणों को समझपाने की क्षमता का अभाव एवं उनसे कुछ सीखने में लज्जा का अनुभव आदि ! श्रीमान जी !राजनीति की वर्तमान अयोग्य अवस्था बेरोजगार शिक्षितों का मनोबल अत्यंत तोड़ती जा रही है सरकारी भ्रष्ट तंत्र का आर्थिक पूजन करके नौकरी पाने में असफल योग्य लोगों की योग्यता का उपयोग सरकार को कहीं तो करना चाहिए क्योंकि वे देश की प्रतिभा हैं और प्रतिभाओं की उपेक्षा का दंड भोग रहा है देश और समाज ! देश में बढ़ती आपराधिक प्रवृत्तियाँ एवं बढ़ता भ्रष्टाचार आदि सरकार की इसी उपेक्षा के परिणाम हैं !
       अयोग्य जनप्रतिनिधि जैसे राजनीति को डिस्टर्ब करते हैं एवं अयोग्य विद्यार्थी जैसे शिक्षा व्यवस्था में बोझ बन जाते हैं वैसे ही घूस और सोर्स के बलपर सरकारी योग्य स्थानों पर अयोग्य लोगों के फिट कर दिए जाने का सरकारी सेवाओं पर बहुत बुरा असर पड़ा है !योग्य लोग बेरोजगार होने से बेकार हो गए और अयोग्य लोग तो बेकार थे ही उन्हें सरकारी सेवाओं में भर लिया गया !अब योग्य लोग योग्य सेवाएँ दे नहीं सके और अयोग्य लोग अपनी सेवाएँ दें कैसे !सरकार उन पर बहुत अधिक शक्ति बरतेगी तो क्या करेंगे घर से टिपिन लेकर विभागों में सुबह से ही आ कर बैठ जाएँगे लंच करेंगे चाय पिएँगे हाय हलो करेंगे यूनियन बनाएँगे सरकार के विरुद्ध हड़ताल करने की योजना बनाएँगे मीटिंग करेंगे चाय पानी करेंगे फिर कुछ लोगों से हाथ मिलाएँगे गले मिलेंगे सरकार  का कोई नुमाइंदा पहुँचेगा तो अपनी अपनी कुर्सी पर बैठ जाएँगे माउस हिलाने डुलाने लगेंगे किंतु हकीकत तो सामने तब आती है जब जनता के साथ वे जैसे पेस आते हैं वे दृश्य देखने लायक होते हैं !कर्मचारियों की अयोग्यता और आलस्य के ही कारण आज सरकारी सेवाएँ अधिक खर्चीली होने के बाद भी दिनोंदिन अनुपयोगी सिद्ध होती जा रही हैं!सरकारी स्कूल अस्पताल आदि अपनी अपनी विश्वसनीयता खोते चले जा रहे हैं !
         जैसे गन्दगी अधिक बढ़ जाए तो उस सडांध में कीड़े मकोड़े पैदा हो जाया करते हैं इसी रीति से सरकारी व्यवस्थाओं के भ्रष्टाचार से उनसे संबंधित सेवाएँ देने वाले प्राइवेट विभाग पैदा हो जाते हैं ! नर्सिंगहोम प्राइवेटस्कूल कोरियर प्राइवेट फ़ोन कंपनियाँ आदि ऐसे ही अपने सरकारी पूवजों का परिचय दे रही हैं !संभव होता तो लोग अबतक अपनी अपनी पुलिस भी प्राइवेट ही बना लेते कुछ सक्षम लोगों ने ऐसा कर भी रखा है बात  अलग हैं कि प्राइवेट होने के कारण लोग उन्हें गुंडे कहते हैं अंततः होते तो वे भी उन लोगों के अपने  एक प्रकार के प्राइवेट सुरक्षा कर्मी ही हैं !सरकारी कामकाज का दायित्व सँभालने वाले कर्मचारी यदि योग्य और ईमानदार होते तो अपने अपने विभागों की  जिम्मेदारी वे स्वयं सँभालते कहने सुनने का मौका ही नहीं देते किंतु यदि वे ऐसे नहीं हैं अपने अपने विभागों की भद्द पिटते देखकर भी सह पा रहे हैं ये उनके सामान्य साहस की बात भी नहीं है ।आप ही सोचिए कि प्राइवेट सेवाओं में ऐसे लोग कितने दिन टिक पाते !हिम्मत सरकार की ही कही जाएगी जो ऐसे होनहारों को ढोए जा रही है उसके दो कारण हैं पहला सरकारों में सम्मिलित नेताओं की अपनी जेब का कुछ लगता नहीं है और इनकी लापरवाही से अपना कुछ बिगड़ता नहीं है।  टैक्स रूप में प्राप्त जनता की कमाई से इनकी सैलरी जाती है और इनसे जूझना जनता को ही पड़ता है। 
       सरकारों में सम्मिलित जिम्मेदार नेताओं को तो मीडिया के लिए कुछ बोलना ही होता है आखिर चैनलों को रोज शाम को पैनल बैठाकर चर्चा कराने का मशाला तो सरकार या विपक्ष को ही देना होता है बाकी मीडिया के निर्मल बाबा अर्थात पत्रकार लोग तिल का ताड़ तो बना लेते हैं किंतु तिल के लिए उन्हें सरकार और विपक्षी नेताओं की ओर ही देखना ही होता है !इसीलिए मीडिया के सामने पहुँच कर नेताओं को कुछ ईमानदारी की बातें बोलनी ही होती हैं भ्रष्टाचार समाप्त करने का संकल्प दोहराना ही होता है बस !कुछ योजनाएँ भी गिनानी पड़ती  हैं और बस बाकी सारा  बीर रस !
        सरकारों के शीर्ष नेता भी करें तो  क्या !सांसद विधायक उनकी सुनते नहीं मानते नहीं कुछ कर पाने की योग्यता के अभाव में केवल शीर्ष नेताओं के नाम का जप किया करते हैं उनको पता होता है कि टिकट ये देंगे चुनावी भाषण ये देंगे और हमें जितवा लाएँगे तभी तो वो वो बने रह पाएँगे जो आज हैं अन्यथा यदि हम हम नहीं रहेंगे तो वे वे कहाँ से बन पाएँगे !इसलिए ये वो रहना चाहेंगे तो खुद ही इंतजाम करेंगे मैं क्यों सिर खपाऊँ !कुलमिलाकर कभी कभी मैं स्वयं सोचता हूँ कि लोकतंत्र की वर्तमान व्यवस्था में योग्यता अनुभवों चरित्र और शालीनता का कोई स्थान होना ही नहीं चाहिए  क्या यदि हाँ तो समाज से वैसी अपेक्षा क्यों ?
 सरकारी व्यवस्थाओं को शुद्ध और स्वस्थ कर पाना इतना आसान भी नहीं है ये कि जन प्रतिनिधियों को इतनी आसानी से कर्तव्यबोध कराया जा सके ! 

Tuesday, 21 March 2017

भ्रष्टाचार में मददगार सरकारी मशीनरी पर लगाम लगाने हेतु !

माननीय प्रधानमंत्री जी !
                           सादर  प्रणाम !
     विषय : भ्रष्टाचार में मददगार सरकारी मशीनरी पर लगाम लगाने हेतु !
          महोदय !चिंता की बात ये है कि  सरकारी कामकाज करने और कानूनों का पालन जनता से करवाने के लिए जो अधिकारी कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं और उन्हें जनता की खून पसीने की कमाई से सरकार सैलरी देती है वो सरकार उनसे काम भी करवावे ये क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए !उचित तो है कि सरकार उनसे कानून के अनुसार काम ले किंतु यदि सरकारी लापरवाही के कारण ऐसा नहीं किया जा सकता है तो कम से कम इतनी जिम्मेदारी तो सरकार को भी सुनिश्चित करनी ही चाहिए कि सरकार के अधिकारी कर्मचारी गैरकानूनी या कानून के विरुद्ध किए जाने वाले कार्यों में अपराधियों या गुंडों या दबंग लोगों का साथ न दें !फिर भी यदि वे ऐसा करते हैं तो ऐसे अपराधों को खोजने और सम्बंधित सरकारी कर्मचारियों और गुंडों माफियाओं को दण्डित करने की कठोर प्रक्रिया सरकार विकसित करे !अन्यथा जनता कम्प्लेन करती है और सरकारी मशीनरी के कुछ भ्रष्ट लोग गैर कानूनी कार्यों के विरुद्ध कार्यवाही तो करते ही नहीं हैं अपितु कम्प्लेन करने वाले की सूचना गुंडों को देकर उसी को पिटवा देते हैं इसप्रकार से अपराधों का संबर्धन कर रही है सरकारी मशीनरी !दोबारा से कम्प्लेन करने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पाता है और गैर कानूनी कार्य हों या अपराध दिनोंदिन बढ़ते चले जाते हैं ।
    सरकार करना चाहे तो अपराधों की संख्या बहुत जल्दी घटा सकती है सबसे पहले भ्रष्टाचारियों और अपराधियों की आमदनी के स्रोत खोजने एवं कुचलने के लिए खुपिया तंत्र विकसित किए जाएँ भ्रष्टाचारी अधिकारी कर्मचारियों को न केवल सस्पेंड किया जाए अपितु उनसे आज तक की सारी सैलरी वसूली जाए इसी प्रकार से दबंगों गुंडों माफियाओं की सारी संपत्ति जप्त की जाए तब लोग अपराध एवं भ्रष्टाचार करने से डरेंगे !
     जगह जमीनों के कब्जे या अवैध निर्माण हों उन्हें देखने पकड़ने के लिए गूगलमैप का उपयोग किया जाना चाहिए जिस सन में जिन जमीनों पर अवैध कब्ज़ा या अवैध निर्माण किया गया है उस समय में उस क्षेत्र में ऐसे अवैध निर्माण रोकने की जिम्मेदारी जिस भी अधिकारी कर्मचारी की रही हो किंतु वो ऐसा करने में नाकाम रहा हो तो घटित हुए ऐसे अपराधों में उसे रोकने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को बराबर का जिम्मेदार मानकर कार्यवाही उनपर भी अपराधियों की तरह ही की जानी चाहिए अन्यथा अधिकारियों कर्मचारियों को ऐसे अपराधों में सम्मिलित मान कर उन पर भी कठोर कार्यवाही किए बिना सरकारों और नेताओं के अपराध और भ्रष्टाचार को रोकने के संकल्प दोहराते रहने को कोर प्रदर्शन मानते हुए ऐसे अपराधों में सरकारों की संलिप्तता  बराबर की मानी जानी चाहिए !भ्रष्ट नेताओं की गैर कानूनी कमाई के प्रमुख स्रोत हैं भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों पर कठोर कार्यवाही न किया जाना !     
     सरकारी लोग ही यदि सरकार के द्वारा निर्मित कानूनों के विरुद्ध घूस लेकर दबंगों और अपराधियों को प्रोत्साहित करेंगे तो कानूनों का पालन कौन करेगा और क्यों करेगा और उसे क्यों करना चाहिए !कालेधन के विरुद्ध सरकार के द्वारा चलाए गए नोटबंदी अभियान में बैंक वालों के द्वारा कालेधन वालों का साथ दिए  गंभीर अपराध मानकर कठोर दंड से दण्डित किया जाना चाहिए !
      यदि दिल्ली जैसी राष्ट्रीय राजधानी की किसी बिल्डिंग की छत पर बिल्डिंग में रहने वाले 16 फ्लैट मालिकों की सहमति लिए बिना,MCD की अनुमति लिए बिना,बिल्डिंग की मजबूती का परीक्षण किए बिना,इस रिहायशी बिल्डिंग में रहने वाले परिवार जनों के स्वास्थ्य पर रेडिएशन के असर का परीक्षण किए बिना ,57 फिट ऊँची बिल्डिंग में बिल्डिंग संबंधी नियमों का ध्यान दिए बिना इस बिल्डिंग की छत पर एक  मोबाईल टॉवर बाहरी लोगों के द्वारा यह कह कर लगा दिया जाता है कि इससे मिलने वाला किराया बिल्डिंग के मेंटीनेंस पर खर्च किया जाएगा किंतु पिछले बारह वर्षों में आज तक एक पैसा भी बिल्डिंग मेंटिनेंस में न लगाया गया हो और न ही बिल्डिंग में रहने वाले लोगों को ही घोषित रूप से दिया गया हो बिल्डिंग दिनोंदिन जर्जर होती जा रही हो मेंटिनेंस न होने के कारण बेसमेंट में अक्सर पानी भरा रहने लगा हो !बिल्डिंग में रहने वाले लोग इस बात पर अड़े हों कि जब तक ये अवैध मोबाईल टावर नहीं हटेगा तबतक हम अपने पैसों से बिल्डिंग की मेंटिनेंस नहीं करवाएँगे !और मोबाइल टावर इसलिए न हट पा रहा हो क्योंकि इस अवैध मोबाईल टावर बनाए रखने में सरकारी अधिकारी कर्मचारी ही अवैधटावर का किराया खाने वाले गैरकानूनी लोगों की मदद कर रहे हों और सरकार मूकदर्शक बनी हो कल कोई दुर्घटना घटती या बिल्डिंग गिर जाती है तो उस हादसे के लिए घूस खोर सरकारी मशीनरी के अलावा दूसरा कौन जिम्मेदार होगा !
       इस रिहायसी बिल्डिंग की छत पर लगे मोबाईल टॉवर की रिपेयरिंग के नाम पर बिल्डिंग के बीचोंबीच से गई सीढ़ियों से अक्सर छत पर आते जाते रहने वाले अपरिचित एवं अविश्वसनीय मैकेनिकों या उनके बहाने  अन्य आपराधिक तत्वों के द्वारा यदि कोई विस्फोटक आदि  बिल्डिंग में रख दिया जाता है और कोई बड़ा विस्फोट आदि हो जाता है तो इस घूस खोर सरकारी मशीनरी के अलावा दूसरा कौन जिम्मेदार माना जाएगा !
      इस बिल्डिंग में सोलह फ्लैट हैं जिनमें पानी की सप्लाई के लिए बिल्डिंग की छत पर पानी की सामूहिक 12 टंकियाँ किंतु इसी उपद्रवी गिरोह के दबंगों ने टंकियाँ फाड़ दीं और उनके पाइप काट दिए गए हैं 9 परिवारों का पानी पिछले तीन वर्षों से बिलकुल बंद कर दिया है !
      बिल्डिंग दिनोंदिन जर्जर होती जा रही है  बिल्डिंग के बेसमेंट में पिछले दो तीन वर्षों से अक्सर पानी भरा रहता है । टॉवर रेडिएशन से लोग बीमार हो रहे हैं किंतु सरकारी मशीनरी घूस के लोभ के कारण अवैध टॉवर हटाने में लाचार है ऐसे लोगों के विरुद्ध सरकार के लगभग सभी जिम्मेदार विभागों में कम्प्लेन किए गए किंतु उन लोगों के विरुद्ध तो कारवाही हुई नहीं अपितु कम्प्लेन करने वालों पर कई बार हमले हो चुके !जो एक बार पिट जाता है वो या तो अपना फ्लैट बेचकर चला जाता है या फिर किराए पर उठा देता है या फिर खाली करके ताला बंद करके चला जाता है । 
       महोदय ! MCD के अधिकारियों की मिली भगत से ये पूरा गिरोह फल फूल रहा है अवैध होने के बाब्जूद पिछले 12 वर्षों से ये टॉवर लगा होना आश्चर्य की बात नहीं है क्या ! इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी कर्मचारी जब कुछ कर ही नहीं पा रहे हैं ऊपर से गैर कानूनी कार्यों के समर्थन में दबंग लोगों की मदद करते जा रहे हैं ऐसे लोगों को सैलरी आखिर दी किस काम के लिए जा रही है !इस अवैध मोबाईल टावर को कानूनी संरक्षण दिलवाने के लिए इसी गिरोह के कुछ लोगों ने मोबाइलटावर हटाने के विरुद्ध  स्टे ले लिया जिनसे पैसे लेकर MCD वाले ठीक से पैरवी नहीं करते इसी प्रकार से इसे पिछले 12 वर्षों से खींचे जा रहे हैं वो किराया खाते जा रहे हैं उन्हें घूस देते जा रहे हैं । ऐसे तो ये अवैध होने के बाद भी कभी तक चलाया जा सकता है ये सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना नहीं तो और क्या है !
     आश्चर्य ये है कि जिस कर्तव्य के लिए जो सरकारी कर्मचारी सरकार से एक ओर तो सैलरी लेता है वहीँ दूसरी ओर अपने संवैधानिक कर्तव्य के विरुद्ध जाकर अवैध और गैर कानूनी कामों को प्रोत्साहित करता है किंतु उनके विरुद्ध कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है !स्टे के कारण कोई अन्य विभाग सुनता नहीं है और से तब तक रहेगा जब तक MCD वालों को घूस मिलती रहेगी !हमलों के डर से बिल्डिंग में रहने वाले लोग केस कर नहीं सकते !किंतु MCD यदि इस टावर को अवैध घोषित कर ही चुकी है इसके बाद भी 12  वर्षों से चलाए जा रही है तो ये अवैध किस बात का !और इसमें हो रहे भ्रष्टाचार की जाँच क्यों नहीं होनी चाहिए !
       इस बिल्डिंग संबंधी भ्रष्टाचार से स्थानीय पार्षद से लेकर सांसद जी का कामकाजी कार्यालय न केवल सुपरिचित है अपितु 6 महीनों से वे भी बड़ी मेहनत कर रहे हैं किंतु बेचारे दबगों के विरुद्ध कुछ कर पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं SDM साहब भी बेचारे आकर देख सुन कर लौट गए पुलिस विभाग तो से सुनते ही मौन है !और EDMC के इस स्टे वाले दाँव से सब चकित हैं!
        महोदय !अब तो आपसे ही आशा है कि इस भ्रष्टाचार के विरुद्ध न केवल कठोर कार्यवाही की जाए अपितु आजतक का प्राप्त किराया भी या तो बिल्डिंग मेंटिनेंस में लगाने के लिए दिया जाए या फिर राजस्व विभाग में जमा कराया जाए किंतु इन दबंगों को सबक सिखाने के लिए इनसे जरूर वसूला जाना चाहिए !

   निवेदक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
के-71,छाछी बिल्डिंग कृष्णा नगर दिल्ली -51
9811226973

Monday, 20 March 2017

मुलायम सिंह जी ने कान में क्या और क्यों कहा ? शपथग्रहण के सार्वजनिक और संवैधानिक मंच पर कानाफूसी क्यों ?जाँच तो इसकी भी होनी चाहिए !

   जिनके विरुद्ध अभी तक बड़े बड़े भाषण दिए गए उन्हीं से कानाफूसी !आखिर क्या संदेश देने के लिए उपयोग किया गया है ये मंच !
  शपथग्रहण के सार्वजनिक मंच पर नेता जी की कानाफूसी कहीं जनता को ये दिखाने की कोशिश तो नहीं कि हम सब एक हैं और एक जैसे हैं !चुनावों के समय हम एक दूसरे की बुराई केवल जनता को बेवकूप बनाने के लिए करते हैं इसलिए इसे सरकार की छवि बिगाड़ने का प्रयास क्यों न माना जाए !एकांतिक बातें तो बाद में भी एक दूसरे के साथ मिल बैठ कर भी की जा सकती थीं ।निजी बातें करने के लिए सार्वजिनक मंच का उपयोग क्यों ?
     "एक महिला के साथ चार लोग बलात्कार कैसे कर सकते हैं, ये व्यावहारिक नहीं है"ऐसा बोलने वालों से बचा जाना चाहिए "
 "कार सेवकों पर गोली चलवाने और गोली चलवाने को उचित ठहराने वालों से सार्वजनिक तौर पर बचा जाना चाहिए "
  नक़ल अध्यादेश को वापस लेने और नक़ल का समर्थन करने वालों से सार्वजनिक तौर पर बचा जाना चाहिए "
 अन्यथा इससे भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम की छवि बिगड़ती है !और ये उसी की हवा निकालने की कोशिश भरहै । 
      इसी काना फूसियों से जनता के मन में कुछ प्रश्न उठते हैं -कहीं इन्होंने ऐसा कुछ तो नहीं कहा है भ्रष्टाचार विरोधी जाँच में हम पर हमारी पार्टी पर और हमारे भूतपूर्व मंत्रियों पर कृपा बनाए रखना !नक़ल चलने देना !रेप ... !
         मंत्रियों को देना होगा संपत्ति का ब्योरा- UP सरकार  !किंतु केवल वर्तमान मंत्रियों को ही क्यों ?भूतपूर्व मंत्रियों की संपत्तियों की जाँच भी क्यों न की जाए !
    केवल वर्तमान मंत्रियों को ही क्यों देना होगा !वो तो अभी अभी बनें हैं शुद्धिकरण हो तो सबका हो !चाहें वर्तमान हों या भूत पूर्व ! आखिर जो मंत्री या मुख्यमंत्री अपने को दलित या पिछड़े कहते रहे हैं और आज करोड़ो अरबों की संपत्तियाँ उनके अपने और उनके परिवार के सदस्यों और नाते रिस्तेदारों के नाम पर हैं सारा कुनबा राजसी ठाट बाट भोगता रहा है ये पैसा आखिर कहाँ से आया उनके पास ?किस सन  में आया कितना आया और किस स्रोत से आया !अपराधियों भ्रष्टाचारियों से अपराध और भ्रष्टाचार करने की अनुमति दिलवाने के  बदले मिला हुआ कमीशन ही तो नहीं है !यदि ऐसा है तो ऐसे धन की जाँच तो हो ही साथ में उनके अपराधियों और भ्रष्टाचारियों से साँठ गाँठ की भी जाँच होनी चाहिए तथा अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध की जाए शक्त कार्यवाही !
       घूस लेने वाला सरकार का  हर विभाग और हर अधिकारी कर्मचारी ये कहते सुना जाता है कि ये पैसा ऊपर तक जाता है किंतु ऊपर कहाँ तक जाता है यह पता लगाना जनता के बश में नहीं था इसीलिए जनता ने ऐसे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को उस ऊपर वाली ऊँचाई की कुर्सी तक पहुँचाया  ताकि ऊपर बैठे उन पापियों का पता लगवाया जा सके और उनकी पहचान करके उन कपटी सेकुलरवादियों के बाल पकड़ कर उन्हें घसीटते हुए जनता के चरणों में डाला जा सके ताकि जनता को भी तो पता लगे कि देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद भी जनता तक आखिर पहुँची क्यों नहीं पहुँच सकीय है आजादी ये बीच में अटकी आखिर कहाँ रही है किन पापियों ने बंदी बना रखा है अपने महलों में आजादी को और उसे भोग रहे हैं खुद वे और उनके नाते रिस्तेदार !आखिर इन भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही क्यों न हो !
        बेनामी संपत्तियों पर प्रारम्भ की जाए अतिशीघ्र  कार्यवाही !सरकारी जमीनें कब्ज़ा करके नेताओं के द्वारा बेचीं जा चुकी हैं जिनके नियमितीकरण की प्रक्रिया भ्रष्ट नेताओं के द्वारा चलाई जा रही है उसे रद्द किया जाए अन्यथा इसे अवैध कब्जों का प्रोत्साहन माना जाना चाहिए !नई बस्तियों में सरकारी रोड पार्कों आदि के लिए छोड़ी गई सभी जमीनें प्लॉट बेचने के बाद बेच दी जाती हैं  इन भ्राष्टचारियों के प्राइवेट नक्से भी चेक किए जाएं !
  दलित देवी को अब आ रही है ब्राह्मणों की याद ! मुशीबत में ही याद आते हैं ब्राह्मण !!
    ब्राह्मण को पिठलग्गू बनाकर खुद मुख्यमंत्री बन जाने वाली दलित देवी को अब आई ब्राह्मणों की याद !अरे ब्राह्मणों ने तो हमेंशा से क्षत्रियों के शासन का समर्थन किया है !अपने विरुद्ध किसी भ्रष्टाचार से घबड़ाने के कारण हो कि ऐसे बयान दिए जाने लगे हों किंतु जाँच इनकी भी संपत्तियों की ईमानदारी से की जानी चाहिए !

Saturday, 18 March 2017

जोगी जी ने खाई मुख्यमंत्री बनने की कसम ! किंतु इस कसम के द्वारा वो कसम पूरी की जाएगी क्या ?

            मेरी ओर से उन्हें बहुत बहुत बधाई !!
   "कसम राम की खाते हैं हम मंदिर वहीँ बनाएँगे !"
     क्या अभी भी उस संकल्प को पूरा किया जाएगा !
"अयोध्या मथुरा विश्वनाथ !तीनों लेंगे एक साथ !!"
 ये तो करना जरूरी है ही इसके साथ साथ प्रदेश का विकास और जनता की सेवा ये दो अत्यंत महान दायित्व सौंपे हैं प्रदेश वासियों ने उन पर भी खरा उतरना होगा ! 
           सेवाधर्मों परमगहनो योगिनामप्यगम्यः | 
सेवाधर्म सबसे कठिन है जिसे योगी भी नहीं समझ पाते  हैं !तो दूसरे लोग क्या समझेंगे किंतु अब ये बड़ा दायित्व जोगी जी पर है ईश्वर इसे निर्वाह करने की उन्हें सामर्थ्य दे ताकि वे जनता का स्नेह सँभाल कर रखसकें !
     अक्सर देखा जाता है कि जनता के साथ भिखारियों जैसा वर्ताव करने लगती हैं सरकारें और उनके अधिकारी कर्मचारी लोग ! क्या जोगी जी के शासन में जनता के साथ ऐसा वर्ताव नहीं किया जाएगा !
     हमें नहीं भूलना चाहिए कि  जनता जिन्हें युधिष्ठिर समझकर धूम धाम से गद्दी पर बिठाती है वही लोग जब जनता के काम भूल कर अपना रुतबा दिखाने में लग जाते हैं तो उन्हें ही दुर्योधन समझकर गद्दी से उतार फेंकती है वही जनता !यूपी चुनावों में दो दो राजकुमार अपनी ऐसी ही हरकतों के कारण दर दर भटकते घूम रहे हैं जबकि इन्हें भी जनता ने बड़ा दुलार पियार करके कभी गद्दी पर बैठाया था अब उतार दिया !पुरानी कहावत है कि जनता को काम पसंद है शरीर का मांस और बातें नहीं !
    नेताओं की ऐसी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार होता है उनके काम काज का अपना ढंग !जब ऐसे पदों पर पहुँचे लोग शिकायतकर्ताओं या समस्याओं के नैतिक समाधान के लिए आने वाले लोगों के साथ भिखारियों जैसा व्यवहार करने लगते हैं और सहती है वो जनता जिसके बलपर चल रहा है लोकतंत्र !तब जनता समय आने पर सिखाती है उन्हें भी सबक !
    अक्सर नेताओं के द्वारा दावे बहुत किए जाते हैं सपने बहुत दिखाए जाते हैं किंतु कोई नेता ऐसा नहीं है जो हिम्मत बाँध कर जनता की आँखों से आँखें मिलाकर यह कह सके कि  जब तुम्हारा काम कहीं न हो तो मेरे पास चले आना और मैं करूँगा तुम्हारा नैतिक और कानून सम्मत सहयोग !
    जो मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री जैसे पदों पर बैठे लोग भ्रष्टाचार के विरोध की विकास की ईमानदारी की ऐसी बड़ी बड़ी बातें तो कर जाते हैं जैसे वास्तव में रामराज्य ले आए हों !ऐसे लोग जनता से संपर्क स्थापित करने के लिए फोन नंबर मोबाईल नंबर जीमेल ट्विटर से लेकर अपने वे सारे पते दे देंगे जिससे उन तक पहुँचा जा सकता है और दावा करेंगे लोगों की समस्याओं के समाधान करने का किंतु जब आप अपनी समस्याएँ लिखकर भेजेंगे तो उस पर कोई कार्यवाही होनी तो दूर उसका जवाब तक नहीं आता है !उन्हें कोई पढ़ता भी होगा हमें तो इस पर भी संदेह है !
  ऐसे लोगों के भ्रष्टाचार विरोधी सौ प्रतिशत झूठे भाषणों पर भरोसा करके समस्याओं के समाधान के लिए जनता सरकारी विभागों में चली जाती है वहाँ या तो उनसे घूस माँगी जाती है और या फिर उनके काम में  रूचि ही नहीं ली जाती है उन्हें इधर उधर भटकाते रहा जाता है ।अंततः तंग होकर लोग मंत्रियों मुख्यमंत्रियों प्रधानमंत्रियों से इस आशा में मिल लेना चाहते हैं कि ये तो वास्तव में धर्मराज होंगे ही क्योंकि ये तो दिन भर भ्रष्टाचार विरोधी भाषण ही देते रहते हैं और देश में कानून व्यवस्था ठीक होने की बातें बार बार दोहराते रहतॆ हैं । 
    कुल मिलाकर सरकारों के सरदार तो भ्रष्टाचार के विरोध की बड़ी बड़ी बातें टीवी चैनलों पर बैठकर बोल जाते हैं किन्तु उन्हें ये भी नहीं पता होता है कि उनकी बातों की कीमत जनता को कैसे कैसे चुकानी पड़ती है !ऐसे सरकारी ईमानदार लोगों के पास पहली बात तो जनता पहुँच ही नहीं पाती है और यदि किसी प्रकार से पहुँच पाई तो राम लीलाओं में स्टेज पर जाने के लिए सजे सँवरे तैयार बिलकुल रावण की तरह वहाँ प्रकट किए जाते हैं सरकारी नेता लोग !उनके आते ही फर्यादियों  की भारी भीड़ आपस में धक्का मुक्की करके गुंथ जाती है एक दूसरे से तब तक वे गाड़ी पर बैठते और निकल जाते हैं मुझे आशा है कि जोगी जी के शासन में ऐसा नहीं होगा ।
    हैरान परेशान जनता सांसदों विधायकों आदि के यहाँ चक्कर लगाने लग जाती है वहाँ जनता से सांसदों विधायकों का मिलना कहाँ हो पाता है उन लोगों ने अपनी अपनी आफिसों में अपने अपने प्यादे बैठाए होते हैं जिनके पास हर प्रकार के  सिफारिसीलेटरों की अलग अलग गड्डियाँ बनी रखी होती हैं वे बेचारे दिन भर बाँटा करते हैं उन्हें !लेटर जब ख़त्म होने लगते हैं तो वो और बनाकर रख लेते हैं फिर बाँटने लगते हैं किंतु वो जो जहाँ लेकर जाता है वहाँ कोई अधिकारी कर्मचारी उन सिफारिसीलेटरों पर अमल करना तो दूर उन्हें पढ़ना तक जरूरी नहीं समझता है जनता बार बार भटकती रहती है।  मजे की बात तो ये है कि कई बार वे सांसदों विधायकों के प्यादे उन अधिकारियों कर्मचारियों को सिफारिसी फोन भी करते देखे जाते हैं किंतु वे अधिकारी कर्मचारी उन फोनों की ऐसी अनसुनी कर देते हैं जैसे उनकी कोई गुप्त सेटिंग हो उसके तहत वो ऐसा कर रहे हों क्योंकि अपनी बात न मानना सिफारिसी प्यादों को बुरा भी नहीं लगता है !संभवतः जोगी जी के शासन में ऐसा पाखण्ड पूर्ण दिखावा न हो !
   अपनी ऐसी पाखंडी मशीनरी के बल पर प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि जनता को झूठी रेवड़ियाँ बाँटते रहते हैं और बड़ी चतुराई पूर्वक आगे के आगे आश्वासन देते चले जाते हैं । जनता उनके आश्वासनों पर भरोसा करती चली जाती है !ऐसी चालों से कुछ मध्यावधि चुनाव तो आश्वासनों के सहारे जीते जा सकते हैं किंतु मूल चुनाव का हिसाब किताब करते समय जनता उनकी सारी दलीलों को ख़ारिज कर देती है और उनके विरुद्ध फैसला सुना देती है ।
     ऐसे सिफारिसी पत्र धोखा धड़ी और छलावा नहीं तो क्या हैं क्योंकि पत्र देने वाले जनप्रतिनिधियों को भी ये पता होता है कि उसके पत्र की वहाँ कोई अहमियत नहीं होगी जिनके लिए वे पत्र भेजे जा रहे हैं !उन्हें भी पता होता है कि शिकायती पत्रों को सरकारों और सरकारी विभागों में पढ़ता ही  कौन है ?

 "यूपी में बदलाव की दस्तक, अफसरों को समय से ऑफिस आने का फरमान जारी"आखिर ये सब क्या है?     कल्याणसिंह जी  ने भी एक बार मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद बड़े बीर रस में बोला था कि भ्रष्ट गैर जिम्मेदार और अकर्मण्य अधिकारियों कर्मचारियों पर कहर बनकर टूटूँगा किंतु कर क्या पाए वे बिचारे !आज तो बुढ़ापा बिताने वाले पवित्र पद को सुशोभित कर रहे हैं वे किंतु देश प्रदेश में सरकारी काम काज में किसी प्रकार का सुधार हुआ है  क्या ?इसलिए बड़ी बातों से बचते हुए बड़े काम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए !
    केजरीवाल बड़े जोर शोर से ईमानदारी का राग अलापते आए थे देश को उनसे भी बहुत बड़ी आशाएँ थीं  केजरीवाल जी को सरकार में रहते 2-3 वर्ष हो गए !
   राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जहाँ केन्द्र और प्रदेश दोनों सरकारों की भूमिका है वहाँ के काम काज की ऐसी स्थिति है कि भ्रष्टाचार के बल पर कुछ दबंग लोग  सरकारी मशीनरी को अपने साथ मिलाकर कुछ भले लोगों की दैनिक जिंदगी तवाह करते रहते हैं इनके सताए हुए हैरान परेशान लोग बड़ी आशा से नैतिक सहयोग पाने के लिए सांसदों विधायकों के पास सैकड़ों चक्कर लगाते रहते हैं किंतु अंत में निराश होकर थक हार कर या तो घर बैठ जाते हैं और या फिर सरकारी कामकाज की पद्धति के अनुशार घूस देकर करवा लिया करते हैं अपने अपने काम !
   जिसकी शिकायत की सुनवाई करने वाला कोई अधिकारी कर्मचारी नहीं है क्योंकि उनका मन वहाँ लगता है जहाँ से धन मिलता है और घूस देने पर भरोसा वही रखते हैं जिनके पास गलत कामों से पैसे आते हैं इसीलिए वे घूस देने लायक होते हैं ऐसी परिस्थिति में गलत कामों को बंद करने में वे अधिकारी कर्मचारी क्यों रूचि लेंगे जिनकी कमाई ही उन्हीं गलत लोगों के गलत कामों से होती हो ऐसी परिस्थिति में किसी मुख्यमंत्री  आदि के द्वारा गलत कामों को बंद करने की बात करना सबसे बड़ा झूठ है यदि उस पर कोई कार्यवाही की ही नहीं जा सकती है तो ।
     मुख्यमंत्री  आदि बड़े पदों पर पहुँचने के बाद उनके चारों ओर सिक्योरिटी होती है इससे वो देश वासियों की सुरक्षा का अंदाजा लगा लिया करते हैं खुद को बिना कमाए खाने को मिल रहा होता है इससे वो देश वासियों की खुशहाली का  अंदाजा लगा लिया करते हैं और सरकारी मशीनरी इन्हें ऐसे रोडों  से लेकर चलती है जो साफ सुथरे और खाँचा मुक्त हों इससे वे रोडों का अंदाजा लगा लिया करते हैं कि अब देखो रोड कितने अच्छे हैं ।
    ऐसे ही सरकार के जिस भी विभाग में मंत्री मुख्यमंत्री  और प्रधानमंत्री आदि ले जाए जाते हैं वहाँ वे  लोग अपने आगमनोत्सव की खातिरदारी से  देश और समाज की खुशहाली का अंदाजा  लगा लिया करते हैं !उनके आस पास वही लोग हूबहू ईमानदारों जैसे दिख रहे होते हैं जिनके भ्रष्टाचार की दिए घाव असली ईमानदार लोग वर्षों से सहला रहे होते हैं ।
      कोई  कर्मठ और ईमानदार प्रधानमंत्री और मुख्य मंत्री यदि ईमानदारी पूर्ण ढंग से काम करना भी चाहे तो कैसे करे यदि उसकी राष्ट्रीय राजधानी के सांसद और विधायक ही ऐसे अकर्मण्य और जनता के साथ धोखाधड़ी करने वाले हों तो !राष्ट्रीय राजधानी के हालात ही यदि ऐसे शर्मनाक हो जाएँ तो और पूरे देश की स्थिति क्या होगी इसका अनुमान भी आसानी से लगा लिया जाना चाहिए ! क्योंकि हर प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि को तो प्राप्त परिस्थितियों में ही सरकार का संचालन करना होता है यदि अधिकारी कर्मचारी भ्रष्ट भी हों तो कोई  क्या बिगाड़ लेगा उनका दो चार हों तो सस्पेंड कर दिए जाएँ और ज्यादा हों तो क्या किया जाए!आखिर उनसे और उनके भ्रष्टाचार से समझौता करना ही पड़ता है यही होता चला आ रहा है । 
   मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जैसे पदों पर तो लोग बदलते रहते हैं इसलिए इन पदों पर रहकर काम करने का उनका तो अनुभव सीमित होता है जबकि उन विभागों के अधिकारियों कर्मचारियों को ऐसे लोगों को जोतते जिंदगी बीत गई होती है उन्हें पता होता है कि नए बैल को जोतने में शुरू शुरू में कठिनाई होती है बाद में धीरे धीरे वो भी कढ़ जाता है और उसी ढांचे में ढल जाता है यही स्थिति भारतीय सरकारों के नेताओं की है इस सरकारी मशीनरी ने अच्छे से अच्छे प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि को अपने अपने अनुसार काढ़ लिया है सिंहों के समान गर्जना करके ऐसे बड़े बड़े पदों की शपथ लेने वाले बड़े बड़े लोग म्याऊँ म्याऊँ करते हुए पद छोड़ते देखे जाते हैं जैसे नवविवाहिता बहू कौमार्य भंग होने की लज्जा से प्रथमवार हर किसी का सामना करने में संकोच करती है !इसी तरह नेता लोग भी किसी पद पर पहुँचने पर  शुरू शुरू में तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़ा फड़कते हैं किंतु ईमानदारी का कौमार्यभंग होते ही म्याऊँ म्याऊँ  करते हुए चले जाते हैं ! भगवान् करे योगी जी ऐसे न हों और अच्छे निकलें और जनता उन्हें अपना युधिष्ठिर का  युधिष्ठिर ही बनाए रखे !  
 

Wednesday, 15 March 2017

हमारा प्रार्थना यह पत्र पढ़ें एवं उसके नीचे दिया गया लिंक अवश्य पढ़ें -

    आमआदमीपार्टी का नाम आमआदमीपार्टी ही क्यों रखा गया ? 'आप' पार्टी के नेताओंकी ऐसी क्या मज़बूरी थी कि उन्होंने गाड़ी बँगला सिक्योरिटी आदि न लेने की घोषणा की और बाद में सब कुछ लिया !यदि लेना था तो नाटक क्यों और नहीं लेना था तो लिया क्यों ?आदि बातों के उत्तर पाने के लिए आप पढ़ें हमारा यह लेख और समझें सच्चाई।
     विषय :आम आदमी पार्टी के नेताओं के द्वारा हमारे इस लेख की कापी की गई है इस  विषय में आपकी मदद हेतु !
        महोदय,
मैंने नेताओं के बिलासिता पूर्ण सुख सुविधा युक्त जीवन और आमआदमी के अभावग्रस्त  जीवन के बीच एक संवाद युक्त लेख अपने गूगलब्लॉग पर 31 October 2012 को लिखकर प्रकाशित किया था जिसमें तब से लेकर आज तक मेरी ओर से कोई संशोधन नहीं किया गया है । 
    हमारे यह लेख प्रकाशित करने के 27 वें दिन अर्थात 26 नवम्बर 2012 को जिस आमआदमीपार्टी के निर्माण की घोषणा की गई उसकी सादगी एवं ईमानदारी पूर्ण विचार धारा के प्रचार प्रसार के लिए उपयोग की गई बिचार सामग्री का अधिकाँश भाग ब्लॉग पर प्रकाशित हमारे उस लेख से मिलने के कारण उद्धृत प्रतीत होता है !यहाँ तक कि आमआदमी पार्टी के नाम में प्रयुक्त 'आमआदमी' शब्द भी हमारे उस संवाद पूर्ण लेख का ही एक पक्ष जान पड़ता है जिसमें मात्र 'पार्टी' शब्द जोड़ दिया गया है ।
       महोदय !ब्लॉग में प्रकाशित किसी लेख विशेष की सभी सामग्री का एक साथ इतनी अधिक मात्रा में मिलने को केवल संयोग नहीं माना जा सकता है मेरी जानकारी के अनुशार ये मेरे उस लेख की नक़ल किए जाने का प्रकरण है । 
    मैंने उसी समय दो बार आम आदमी पार्टी नेतृत्व को पत्र भेजकर भी आपत्ति की थी कि हमारी सहमति के बिना हमारी लेखन सामग्री का उपयोग किया जाना न्यायोचित नहीं है अस्तु आप इसका उपयोग इस रूप में न करें !किंतु उस विषय में उनके द्वारा कोई परिवर्तन नहीं किया गया और पार्टी के नाम एवं पार्टी की विचार धारा को उसी रूप में प्रचारित किया जाता रहा !
     सबसे बड़ी पीड़ा तब हुई जब आम आदमी पार्टी के आदर्शों के प्रचार प्रसार में उस लेख के सादगी पूर्ण विचारों का उपयोग करके चुनाव तो जीत लिया गया किंतु इसके बाद उन बिचारों पर अमल नहीं किया गया और अन्य नेताओं की तरह ही सुख सुविधापूर्ण बिलासी जीवन आम आदमी पार्टी के नेता लोग भी जीने लगे !इससे भी ये सिद्ध होता है कि इन नेताओं का सादगी से कोई लगाव नहीं था और न ही सादगी इनके संस्कारों में ही थी अपितु इनके सादगी पूर्ण उद्घोष हमारे उस लेख की नक़ल मात्र थे !
      महोदय !अतएव आपसे निवेदन है कि इस सच को उद्घाटित करने एवं कानूनी न्याय दिलाने में आप  हमारी मदद करें !  
                                                   निवेदक -
                                         डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
                                              मो. 9811226973
                                  K -71,छाछी बिल्डिंग कृष्णानगर दिल्ली-51
 महोदय !ये है वो लेख कृपा करके आप देख सकते हैं       
Wednesday, 31 October 2012
ऐ मेरे देश के शासको! अब तो विश्वास भी टूट रहा है!
  आम आदमी और नेताओं  में  इतनी दूरी आश्चर्य !see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/blog-post_4683.html

भाजपा की यूपी विजय से पगलाए विपक्षी नेताओं का बेचारी EVM मशीनों पर चौतरफा हमला !बैलट पेपर पर करवाना चाहते हैं वोट !

    राजनीति में अपने कर्मों पर ध्यान देने की अपेक्षा दूसरों के कुकर्मों से तुलना करके अपने को अच्छा सिद्ध कर  लेना चाहते हैं लोग !जनता की अदालत से खदेड़ कर भगाए गए दण्डित पराजित विपक्षी नेता लोग EVM मशीनों को कटघरे में खड़ा करके उनकी आड़ में छिपा लेना चाहते हैं अपना अपना मुख! बारी चतुराई !!
     भाजपा चुनाव हार जाती तब तो मशीनें ठीक और भाजपा के जीतते ही मशीनों की विश्वसनीयता समाप्त हो गई ! बारी समझदारी !! जनता को इतना बुद्धू समझते हैं नेता नेतियाँ !
     आखिर मायावती जी हारीं क्यों ? 
    पत्थरों के हाथी बनवाने और अपनी मूर्तियाँ बनवाने की अलावा उन्हें और करना क्या आता है भाषण तक तो दे नहीं पाती हैं किसी का लिखा हुआ पर्चा वो भी अटक अटक कर पढ़ पाती हैं !आखिर जनता उन्हें क्यों दे देती वोट और उनका जीतना जरूरी क्यों था !
    अखिलेश हारे क्यों ?
       सैफई के अलावा उन्होंने विकास किया किसका है ?अपने खानदान वालों और अपने नाते रिस्तेदारों और यादवों के अलावा आगे बढ़ाया किसको है ?सैफई में नाच लखनऊ में लड़ाई इसके अलावा और करते क्या रहे सपाई ?जनता क्यों दे देती आपको वोट !इतनी मूर्ख है क्या ?
  काँग्रेस की पराजय क्यों ?
   जो इतने वर्षों तक शासन करके देश की लिए कुछ नहीं कर सकी फूट डालो राजनीति करो की पद्धति अपनाती रही  उससे आगे क्या सहारा किया जाए ?वैसे भी जो मनमोहन सरकार के पास किए हुए बिलों को फाड़ कर फ़ेंक देते रहे और खुद कुछ करने  लायक नहीं थे होते तो करते न !उन्हें रोका आखिर किसने था क्यों नहीं बन गए थी PM!अब जनता उन पर क्या भरोसा करे !
अरविन्द केजरीवाल जी हारे क्यों ?
   दिल्ली में उनकी इतने दिनों से सरकार चल रही है अपनी खाँसी ठीक क़रवाने एवं गोपाली जी के छर्रे निकलवाने के अलावा दिल्ली सरकार ने और किया ही क्या है जनता आखिर उन्हें क्यों दे देती वोट ?अब केजरीवाल जी को आगामी निगम चुनावों का भय सताता जा रहा है कि जनता ने यदि इसी प्रकार से उनकी कर्मकुंडली के अनुसार ही आपरेशन करना शुरू कर दिया तब तो ढक्कन हो जाएँगे सारे मंसूबे !मुख्यमंत्री बनने के बाद बनी सेहत कहीं फिर न सूख जाए इसीलिए कर रहे हैं EVM मशीनों पर ताबड़तोड़  हमले !
         अरविंद केजरीवाल जी ही बतावें -
     दिल्ली से घूस खोरी बंद हुई क्या ?दिल्ली की सड़कें ठीक हो गईं क्या ?अतिक्रमणों की कारण दिल्ली के आधे आधे रोड गालियाँ पार्क आदि दबंगों ने कब्ज़ा कर रखे हैं वे मुक्त हुए क्या ?भ्रष्टाचार के आरोप में शीला दीक्षित जी को जेल भेजने की बात कर रहे थे वो हुआ क्या ?सरकारी स्कूलों में शिक्षा सुधार की बात कर रहे थे वो हुआ क्या ?सादगी पूर्ण ईमानदारी का जीवन जीने की बातें किया करते थे वो हुआ क्या ?
     शिक्षासुधार के नाम पर अक्सर अपनी पीठ थपथपाने वाली केजरीवाल सरकार ने शिक्षा के साथ क्या किया है वो भी देखिए -
     आप स्वयं सोचिए कि अधिकाँश लोग मानते हैं कि भ्रष्टाचार के कारण योग्यता को नजरंदाज करके घूस और सोर्स के बल पर अक्सर अघोषित रूप से नीलाम की जाती रही हैं शिक्षकों की नौकरियाँ ! जिसके फल स्वरूप सरकारी स्कूलों के प्रति लोगों का भरोसा इस स्तर तक टूट गया है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के नाम पर सैलरी उठाने  वाले शिक्षक तक अपने स्कूलों की पढ़ाई पर भरोसा नहीं करने लगे हैं और अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने लगे !क्योंकि भ्रष्टाचार से नियुक्तियाँ पाने वाले सरकारी शिक्षकों में शिक्षकों जैसी योग्यता तो छोड़िए उनके जैसे संस्कार ही नहीं हैं उन पर शिक्षा की बिलकुल जिम्मेदारी नहीं है !उनकी योग्यता के परीक्षण की लिए कोई परीक्षा किए बिना तथा अयोग्य लोगों की छटनी किए बिना उनसे कैसे पढ़वा लेगी कोई सरकार किंतु दिल्ली सरकार फोकट में दावे ठोंकती जा रही है । अँग्रेजी और संस्कृत जैसी भाषाओँ के कितने शिक्षक ऐसे हैं जो जो अपनी भाषा बोल भी लेते हैं और यदि नहीं बोल पाते हैं तो उन्हें उस भाषा को पढ़ाने योग्य कैसे मान लिया जाए !हिंदी के कितने शिक्षक ऐसे हैं जो हिंदी भाषा को बोलने और समझने लायक भी हैं! सरकार के लगभग हर सब्जेक्ट के शिक्षकों के हालात ऐसे ही हैं !इसीलिए तो कितने शिक्षक ऐसे  हैं जो अपने भी बच्चों को सरकारी विद्यालयों में पढ़ाते हों !यदि नहीं हैं तो क्यों ?यदि पढ़ाई न होने के कारण ऐसा है तो क्या गरीबों के बच्चों का भविष्य बर्बाद करने के लिए उन लोगों को दी जा रही है सैलरी ?केजरीवाल जी दूसरों से प्रश्न करने की अपेक्षा सच्चाई का सामना करें आप और दें जवाब !जिस दुर्व्यवस्था से तंग होकर दिल्ली वालों न आपको मुख्यमंत्री बनाया था व्यवस्था तो अभी भी वही है केवल आप झूठ बूल ले रहें हैं कि सब कुछ ठीक हो गया है और वे नहीं बोलते थे क्योंकि उनमें कुछ शर्म थी !
            अरविन्दकेजरीवाल जी ! भ्रष्टाचारकाल में नियुक्त हुए शिक्षकों की योग्यता परीक्षण के लिए आपने कौन से कदम उठाए !सरकारी शिक्षक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाते हैं इसका पता लगाने के लिए कौन सी जाँच करवाई और क्या कार्यवाही की ?स्कूलों में केवल कागजी कमरे बनाकर कमीशन खोरों को लाभ पहुँचाने के अलावा शिक्षा के लिए कर क्या रहे हैं आप !शिक्षक योग्य हों तो कहीं भी कैसे भी बैठ कर पढ़ा लेते हैं रही बात संसाधनों की वो तो जनता अपने पैसों से खुद भी बनवा  लेगी प्राइवेट स्कूलों में फीस भी तो देती है!
      दिल्ली सरकार का हर विभाग आज भी अन्य प्रदेशों की तरह ही घूस खोर और काम चोर और मक्कारी का शिकार है पंजाब इस सच्चाई को जानता है इसलिए वो कैसे दे देता आपको वोट ! भ्रष्टाचार हो भी क्यों न आखिर भ्रष्टाचार रोकने के लिए केजरीवाल जी आपने किया ही क्या है लोगों के द्वारा की जाने वाली शिकायतों पर कार्यवाही की जानी तो दूर उन शिकायत पत्रों के उत्तर तक नहीं दिए जाते हैं मिलने तक का समय नहीं दिया जाता है !जिस सरकार का मुख्यमंत्री इतना गैर जिम्मेदार और दूसरों पर कोरे झूठे आरोप लगाने वाला हो उस सरकार के विभागों से ईमानदारी की अपेक्षा कैसे की जाए !
आपसे निवेदन है कि -
 हमारा प्रार्थना यह पत्र पढ़ें एवं उसके नीचे दिया गया लिंक अवश्य पढ़ें - see more.....http://sahjchintan.blogspot.in/2017/03/blog-post_15.html

Tuesday, 14 March 2017

अखिलेश जी !गधों से ये 3 गुण यदि आप भी सीख लेते तो क्यों हारते चुनाव !



मोदी जी में भी हैं गधों के ये 3 सद्गुण तभी तो सफलता उनके चरण चूमती जा रही है !
सुश्रान्तोऽपि वहेद्भारं शीतोष्णं न च पश्यति ।
सन्तुष्टश्चरते नित्यं त्रीणि शिक्षेच्च गर्दभात॥२१॥
  1. "सुश्रान्तोऽपि वहेद्भारं" - गधे कितनी भी थके हों फिर भी बोझ ढोया करते हैं !मोदी जी भी कितना भी थके हों फिर भी काम किया करते हैं !
  2. "शीतोष्णं न च पश्यति "- काम करते समय गधे शर्दी गर्मी आदि शरीर की सुख सुविधाएँ नहीं देखते हैं उनका ध्यान केवल अपने काम पर होता है !इसी प्रकार से मोदी जी भी राष्ट्र निर्माण जैसे अपने लक्ष्य पूर्ति  में दिन रात  लगे हुए हैं !
  3. "सन्तुष्टश्चरते नित्यं"-  गधे स्वाद के पीछे नहीं भागते और न ही अपने पेट को ही भरने में लगे रहते हैं वो जहाँ छोड़ दिए जाएँ वहीँ चरने लग जाते हैं और जितना चर पाते हैं उतने में ही संतोष कर लेते हैं !
       मोदी जी भी स्वाद के पीछे नहीं भागते हैं मैंने सुना है कि खिचड़ी जैसी चीजों से भी वो अक्सर अपना काम चला लिया करते हैं नौ रात्रों में नौ नौ दिन भूख ही रह जाते हैं !और पार्टी के द्वारा जहाँ लगा दिए जाते हैं वहीँ लग जाते हैं । 
     मेरे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि गुण तो जिस किसी के भी पास मिलें उसी से सीख लेने चाहिए !
अब तोनेताओं के छिछले बयानों पर गधे भी हँस रहे हैं !



Saturday, 11 March 2017

लोकतंत्र की विजय की ओर बढ़ता भारत !जनता ने तो अपना फैसला सुना दिया अब भाजपा को देनी होगी अग्नि परीक्षा !

  उत्तरप्रदेश में लोकतंत्र की स्थापना के महान महोत्सव पर उत्तरप्रदेश वासियों को बहुत बहुत बधाई !देश और उत्तरप्रदेश जैसे भाजपासेवी प्रदेशों में माना जा सकता है लोकतंत्र !क्योंकि भारत में भाजपा ऐसी पार्टी है जिसका कोई मालिक नहीं है इसके शीर्ष नेतृत्व पर पहुँचने की कल्पना कोई भी कार्यकर्ता कर सकता है !अन्य पार्टियों में इस नहीं है !
   न जातिवाद न संप्रदायवाद न परिवारवाद अपितु केवल विकासवाद पर मोहर लगाई है जनता ने !अब सबका विकास करना ही होगा !श्री राममंदिर बनाना ही होगा बेनामी संपत्तियों पर कार्यवाही करनी ही होगी इन्ही परिणामों पर होगा 2019 का चुनाव !
     लोकतांत्रिक चुनाव जिसमें सपा बसपा का जातिवाद नहीं है काँग्रेस पार्टी का परिवारवाद नहीं है जनता ने भाजपा के विकासवाद पर ठोंकी है लोकतान्त्रिक मोहर !ये नोटबंदी पर भाजपा को मिला जनता का आशीर्वाद है बेनामी संपत्तियों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही के लिए जनता का प्रत्यक्ष आदेश है !ये श्री राममंदिर निर्माण के लिए प्रदेश की जनता के द्वारा दिया गया संपूर्ण जनसमर्थन है ।जातिवाद के आधार पर चुनाव जीतने वाली मायावती जी को अब राजनैतिक धंधा बदलना होगा !अब जातिवाद नहीं बिकेगा !महान जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु को गाली देकर अब नहीं जीते जा सकेंगे चुनाव !आरक्षण के गीत गा गाकर अब नहीं जीते जा सकेंगे चुनाव !उधर सैफई का विकास करके पूरे प्रदेश पर राज्य करने के सपाई पिता पुत्रों के  मंसूबे ध्वस्त अब सांप्रदायिक झगड़ा करवाकर एवं संप्रदाय के नाम पर अल्पसंख्यकों के मन में भय बैठाकर वो अब नहीं जीते जा सकेंगे चुनाव !
     भाजपाई उद्घोष का भारी जन समर्थन है ! समर्थन के आंदोलन समर्थन एक ऐसी पार्टी जिसका कोई मालिक न हो जिस पार्टी का प्रमुख बनने का सपना पार्टी का हर कार्यकर्ता देख सकता हो !

बेनामी सम्पत्तियाँ बेचारी !सरकार और सरकारी कर्मचारियों की कृपा के बिना कोई बना सकता है क्या ?see more.... http://samayvigyan.blogspot.in/2017/03/blog-post_8.html

Friday, 10 March 2017

प्रधानमंत्रीजी ! नेताओं की संपत्तियाँ बढ़ते जाने का सच क्या है क्या इसका भी पता लगाकर समझाया जाएगा जनता को ? जाएगा ?

"पांच महीने में 23 गुना बढ़ गई चंद्रबाबू नायडू के बेटे की संपत्ति"किंतु कैसे ? see more....   http://navbharattimes.indiatimes.com/state/other-states/hyderabad/chandrababu-naidus-son-nara-lokesh-declares-assets-worth-rs-330-crore/articleshow/57548704.cms 
        अधिकाँश नेतालोग गरीब या सामान्य परिवारों से आते हैं राजनीति में आने के बाद व्यापार करने के लिए उनके पास न पैसा होता है न समय और न ही वो कभी कुछ करते ही देखे जाते हैं इसके बाद भी वे स्वदेश से लेकर विदेशों तक जहाजों में चढ़े घूमते हैं !अच्छे मकानों में रहते हैं गाड़ी घोड़े नौकर चाकर आदि सारी महँगी महँगी सुख सुविधाएँ भोगते हैं इसके बाद भी उनकी संपत्तियाँ अनाप शनाप बढ़ती चली जाती हैं कैसे ! यदि वे ईमानदार हैं तो किस सन में उनके किस प्रयास से कितनी संपत्तियाँ अर्जित की गईं और उसके लिए धन किन स्रोतों से जुटाया गया !भूतपूर्व एवं वर्तमान नेताओं की सारी संपत्तियों का सारा ब्यौरा आन लाइन किया जाए ताकि जनता भी नेताओं की ईमानदारी की जाँच परख अपने आधार पर अपने अनुसार कर सके और उन पर कमेंट कर सके शंका होने पर उन उन नेताओं की संपत्तियों एवं उनके स्रोतों की जाँच करवाए सरकार ताकि जनता को भी विश्वास हो जाए कि देश कितने ईमानदारों के हाथों में है और टैक्स  जनता से वसूला गया पैसा कितना देश के विकास में लगता है और कितना  नेताओं के भोजनालयों में जल जाता है या शौचालयों में बह जाता है ।


Friday, 3 March 2017

प्रधान मंत्री जी ! सरकार के 'योग ' का मतलब केवल कसरत करना ही है या सदाचरण और संस्कार सँवारना भी है !

    भ्रष्टाचार को समाप्त करने की लिए प्राण प्रण से लगे अत्यंत ईमानदार लगनशील एवं भयंकर परिश्रम करने वाले राष्ट्र के लिए समर्पित प्रधानमंत्री जी से निवेदन साथ ही सरकार के सभी ईमानदार कर्मठ कर्मचारियों से क्षमायाचना के साथ निवेदन !
    महोदय !सभी प्रकार के प्रदूषणों की जड़ है भ्रष्टाचार !उसे मिटाए बिना कैसे संभव है विकास !गंदगी सारी सरकारों  प्रदेश सरकारों और सरकारी कार्यशैली की है उसे जनता योग के नाम पर हाल झूल कर कैसे ठीक कर दे ! साफ सफाई से रहना सबको अच्छा लगता है स्वस्थ सब रहना चाहते हैं योग बहुत लाभकारी है इसमें भी कोई संशय नहीं है किंतु कसरती योग के साथ साथ ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा परिश्रमशीलता जनसेवा भाव की भी तो आवश्यकता है उसके बिना बिगड़ रहे हैं सारे काम काज !सरकार की अच्छी से अच्छी योजनाएं जनता तक पहुंच ही नहीं पाती हैं अच्छे कानूनों का ईमानदारी से पालन न किए जाने की कारण कई बार अच्छे और ईमानदार लोगों का उत्पीड़न होते देखा जाता है ।
   प्रधानमंत्री जी !आपने स्वच्छता  अभियान चलाया,शौचालय निर्माण का अभियान चलाया किंतु सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार पकड़ना उतना जरूरी क्यों नहीं समझा ने के लिए आपने कोई प्रभावी अभियान चलाने की मुहिम क्यों नहीं छेड़ी !भ्रष्टाचार पकड़ने के लिए कोई प्रभावी मुहिम क्यों नहीं छेड़ी गई !वो भी तब जब भ्रष्टाचारी अर्थात घूस लेने वाले लोग वो सरकारी कर्मचारी हैं जिन्हें  भारी भरकम सैलरी देती है सरकार !इसके बाद भी वो काम करने के लिए जनता से पैसे माँगते हैं अन्यथा खाली बैठे रहते हैं किंतु काम करनी से कतराते हैं भ्रष्टाचारियों ने देश की ऐसी दुर्दशा कर दी है कि चरित्रवान ईमानदार सीधे साधे लोगों का जीना दिनों दिन कठिन होता जा रहा है !भ्रष्टाचार का लेवल इतना ज्यादा बढ़ गया है देश में कि ईमानदारी से साँस लेने में भी दम घुटता है ये है सैंपल पीस आप स्वयं देखिए - 
   "दो तिहाई भारतीयों को देनी पड़ती है रिश्वत:" सर्वेsee more.... http://navbharattimes.indiatimes.com/business/business-news/two-thirds-indians-have-to-pay-bribe-highest-in-asia-pacific-transparency-international/articleshow/57517787.cms

     सरकारी विभागों के भ्रष्टाचार के कारण मचा रहता है सारे देश में हाहाकार!पहले इसे मिटावे सरकार फिर करे योग  प्रचार !किसी फोड़े का पस निकाले बिना कितना  भी अच्छा कोई मलहम क्यों न लगा लिया जाए किंतु फोड़ा समाप्त नहीं होता ऐसे ही सरकारी विभागों की पहले सफाई बाद में स्वच्छता अभियान फिर 'योग' !
    सरकार का काम है भ्रष्टाचार मुक्त उत्तम सेवाएँ उपलब्ध कराना पहले उसमें पूरा ध्यान केंद्रित करे सरकार !और जनता को एहसास करवावे अपने उत्तम प्रयासों का ताकि सरकार को न बताना पड़े उत्तम सरकार अपितु जनता स्वयं गुणगान करने लगे !अन्यथा भ्रष्टाचार मिटाए बिना कैसा योग और कैसा 'स्वच्छता अभियान'?माना कि शौचालय बनाना बहुत आवश्यक है किंतु भ्रष्टाचार मिटाना उससे ज्यादा जरूरी है। सरकार की अच्छी से अच्छी योजनाएँ और अच्छे से अच्छे कानून भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं !नोट बंदी से जनता उतना तंग नहीं हुई जितना बैंकों के भ्रष्टाचार से !कालेधन वालों के विरुद्ध सरकार के द्वारा लिए गए  निर्णय कालेधन वालों के समर्थन में बदल दिया बैंक वालों ने ! 
   प्रधानमंत्री जी ! 'योग' तो जनता कर सकती है  किंतु सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी करने ही नहीं देते हैं !वे घूस माँगते हैं घूस न मिले तो काम नहीं करते और जो घूस दे उसी का काम करते हैं भले वो सरकार और समाज विरोधी ही क्यों न हो !घूस तो जरूरी है किन्तु इन्हें सैलरी देना सरकार की मजबूरी है नहीं देगी तो कोर्ट चले जाएँगे ! घूस लेने देने का पाप भी चलता रहे और 'योग' भी होता रहे ऐसा कैसे हो सकता है योग करने के लिए ईमानदार होना बहुत जरूरी है हँसना भी और गाल फुलाना भी दोनों एक साथ नहीं किए जा सकते हैं !
   आप प्रधानमंत्री हैं तो क्या हुआ आपने काला धन रोकने के लिए नोटबंदी की किंतु बहुत से बैंक वालों ने घूस लेकर काले धन वालों के नोटों के बोरे बदल दिए आप चेक कराइए बैंकों के वीडियो विरला  ही बैंक होगा जो बचा होगा इस पाप  से !कुल मिलाकर नोटबंदी से और कुछ   हुआ हो न हुआ हो किंतु बहुत से बैंक वाले रईस जरूर हो गए होंगे !उनका दारिद्र्य दूर हो गया !अब देखना है कि उनसे कैसे निपटती है ईमानदार सरकार !
    मुकदमों की संख्या बढ़ने के लिए जिम्मेदार कौन ?      न्यायालयों का बोझ बढ़ता है इसका मुख्य कारण सरकारी विभागों की घूसखोरी ही है !जो काम गलत हैं ये जानते हुए भी सम्बंधित अधिकारी कर्मचारी लोग ईमानदारी पूर्वक अपनी सेवाएँ दें तो आधे से अधिक मामले घर के घर में ही निपट जाएँ न्यायालयों तक उन्हें जाना ही न पड़े ऐसे बचाया जा सकता है न्यायालयों का बहुमूल्य समय !किंतु अपराधी और माफिया या दबंग लोग घूस के बल पर इन्हीं अधिकारी कर्मचारियों को पटाकर मुकदमों का बेस बनवा लेते हैं और शुरू कर देते हैं भले लोगों पर मुकदमा !शांति से जीने  की रूचि रखने वालों को फँसा देते हैं मुकदमों के झमेलों में !वो बेचारे घबड़ा जाते  हैं दबंगों की गुंडई से थक हार कर चुप हो जाते हैं और दबंगों की जीत हो जाती है इसे न्याय कैसे कहा जा सकता है।
  ऐसे प्रकरणों से न्यायालयों का बहुमूल्य समय  बचाया जा सकता था !किंतु अधिकारियों कर्मचारियों से ये पूछे कौन कि वे अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाते हैं !
  सरकार और सरकारी मशीनरी की मिली भगत से बढ़ते हैं बलात्कार !प्रदेश सरकार ही बलात्कारों का प्रोत्साहन यदि इस प्रकार से करेगी तब बलात्कार बढ़ेंगे नहीं तो घटेंगे क्या ?
    नक़ल करने का समर्थन करने वाला मुख्यमंत्री कहता है काम बोलता है जिसके अपने मंत्री को पकड़ने के लिए पुलिस खोजती घूम रही हो और वो भागता फिर रहा हो वो मुख्यमंत्री कानून व्यवस्था के नाम पर अपनी पीठ थपथपाए जा रहा हो ये दुर्भाग्य नहीं तो क्या है !पुलिस मंत्री को पकड़ न पा रही हो !फिर भी वो  मुख्यमंत्री कहता घूम रहा हो कि काम बोलता है !अरे ! यदि तुम्हारे  काम में इतनी ही दम है तो घर बैठो !गठबंधन और प्रचार करने की लिए क्यों मारे   मारे   घूम रहे हो !जिसका मंत्री ऐसा हो उस पार्टी के अन्य कार्यकर्ता  कैसे होते  होंगे !और जो पुलिस मंत्री जैसे सुरक्षा प्राप्त पापुलर व्यक्ति को नहीं पकड़ पा रही है वो आम अपराधियों को पकड़ेगी खाक !कुल मिलाकर सरकार और सरकारी मशीनरी की मिली भगत से बढ़ते हैं बलात्कार और अपराध !
     प्रधानमंत्री जी !बेनामी संपत्तियाँ बनाने वाले दोषी हैं तो बनवाने वाले दोषी क्यों नहीं हैं जिन अधिकारियों कर्मचारियों ने घूस ले लेकर ये सारे  कब्जे करवाए  हैं उन बेईमानों को छोड़ देंगे क्या ?
    बेनामी संपत्तियाँ बनाने वालों से घूस ले लेकर कब्जे करवाए गए हैं । सरकारी अधिकारी कर्मचारी एवं तत्कालीन सरकारों में सम्मिलित लोग भी अपना हिस्सा खाते रहे तभी तो चुनाव लड़ने से पहले किराए तक के लिए मोहताज नेता लोग चुनाव जीतते ही अरबो खरबोपति हो जाते रहे हैं ये उन्हीं बेनामी संपत्तियों और आपराधिक कार्यों से अपराधियों के द्वारा दिए गए कमीशन का ही तो धन होता है ।
    इसलिए जिस सन में जिन संपत्तियों पर कब्ज़ा किया गया है उस सन में उसे रोकने की जिम्मेदारी जिनकी थी उन्हें सरकार इसी काम की सैलरी देती रही और वो देश की सैलरी खाकर गद्दारी करते रहे दॆश वालों के साथ !पहले उन्हें पकड़ा  जाए और उनसे कबुलवाया जाए कि उन्होंने किससे कितने रूपए लेकर कौन कौन सी जमीनें कब्ज़ा करवाई थीं वो सारा पैसा सूत ब्याज सहित उनसेवसूला  जाए तब कीजाए उन परकार्यवाही !
     कुछ पाखंडी लोग तो व्यापार भी करते हैं और अपने को योगी भी कहते  हैं जबकि योग करने के लिए व्यापार तो छोड़ना ही पड़ता है योगश्चित्र वृत्ति निरोधः किंतु कुछ लोग तो योगी होने के बाद व्यापारी हो जाते बिलकुल उसी तरह जैसा कोई वोमिटिंग करके खुद ही चाटने लगे !बिना वैराग्य का कैसा योग ?
    भ्रष्टाचार का अंग बने रहकर कैसे और कौन सा योग किया जा सकता है !
    सरकार अपने उस विभाग का नाम बता जहाँ बिना घूस लिए समय से ईमानदारी पूर्वक अपनेपन से जनता के काम किए जाते हों !अधिकारी कर्मचारी लोग कानूनों का पालन ईमानदारी से खुद करते हों और जनता से करवाने का प्रयास करते हों !तब तो हो सकता है योग अन्यथा काहे का योग ! 
    सरकार कहती कुछ और है सरकारी मशीनरी करती कुछ और है !जनता सरकार की बातों पर भरोसा करे या सरकारी मशीनरी के आचरणों पर ?  
जनता को योग सिखाकर नेता सरकारी कर्मचारी और बाबा लगा लें उद्योग !ये योग है यो ढोंग !!
    सरकार जनता को तो योग सिखाती है जबकि सरकारी मशीनरी का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार का आनंद ले रहा है भ्रष्टाचार और योग साथ साथ नहीं चल सकता है । 
     संसद का बहुमूल्य समय चर्चा से ज्यादा हुल्लड़ में जाता है इसके लिए दोषी हैं राजनैतिक ठेकेदार !उन्हें सिखाया जाए योग !
      अपने नाते रिश्तदारों घर खानदान वालों को चुनावी टिकटें दी जाएंगी और जनता को सिखाया जाएगा योग !अरे ! जब सबको पता है कि संसद आदि चर्चा सदनों में चर्चा के लिए ज्ञान अनुभव एवं भाषा की आवश्यकता  होती है किंतु जो अज्ञानी हों अनुभव विहीन हों और जिन्हें बोलने की अकल ही न हो उन्हें चुनावी टिकट देने का मतलब क्या संसद में चर्चा करना मान लिया जाए !और हम जैसों को केवल इसलिए न जुड़ने दिया जाए कि हम विद्वान् हैं सदाचारी हैं संस्कारों के संकल्प से बँधे हुए हैं और हमें योग करना सिखाया जा रहा है जिन्हें वास्तव में योग करने की जरूरत है वे या तो सरकार के अधिकारी कर्मचारी हैं या फिर राजनीति में किसी अच्छे मुकाम पर हैं किंतु गरीब ग्रामीण मजदूर या हम जैसे लोग जिनकी अपनी दिनचर्या ही पसीना बहा बहा कर पवित्र हो गई है ऐसे लोगों ने केवल भ्रष्टाचार का अंग बनने से मना कर दिया दो दो चार चार साल की सैलरी माँग रहे थे नौकरी लगवाने वाले जिम्मेदार लोग ! इसलिए हमें नौकरी नहीं मिली !चुनाव लड़ने के लिए टिकट खरीदने के पैसे नहीं हैं इसलिए सभी राजनैतिक पार्टियाँ हमें दूर रखना चाहती हैं राजनीति से !ऐसे लोग हमें योग सिखा रहे हैं जिनका शीर्ष नेतृत्व हमारे द्वारा सभी माध्यमों से भेजे गए सैकड़ों पत्रों का जवाब ही नहीं देता है वो  हमें योग सिखाते हैं स्वच्छता सिखाते हैं शौचालय बनाना सिखाते हैं अरे जनता को लोकतंत्र में उसकी हिस्सेदारी दिलाई जाए तो  अच्छा घर बनवाना, अच्छा पहनना साफ सफाई से रहना किसको अच्छा नहीं लगता आखिर हमें भी तो अपने जैसा नहीं तो नहीं सही किंतु कम से कम एक तरह इंसान तो समझते ही रहिए see http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html
     'योग है या अंधेर'!हर कोई कछुए की तरह फूल पिचक रहा है हाथ पैर ऐंठ ग्वेंठ मोड़ मरोड़ रहा है कई बाबाओं का तो योग ऎसा बुरी तरह बहने लगा है या भगवान् जाने कि उन्हें योग का रिएक्सन हो गया है वे पहलवानी करते घूम रहे हैं !समझ में नहीं आता कि ये योग पतंजलि वाला है भी या नहीं कहीं डेंगू मलेरिया की तरह ही योग नाम की कोई बीमारी ही तो नहीं फैल रही है जो सबको हुई सी दिख रही है !
         योग तो अंतर्यात्रा का माध्यम है संस्कारों  और सदाचरणों के अभ्यास करने  का माध्यम है योग !सांसारिक प्रपंचों स विरक्त होने का माध्यम है योग !आज व्यापारी लोग कसरतें सिखाते डाढ़ा झोटा रखाकर पहले पैसे माँगते हैं और बाद में उन्हीं पैसों से व्यापार करने लगते हैं !ये कैसा योग !येयोग है याढोंग ?वैराग्य दिखा दिखा कर जनता से माँगना और व्यापार में खर्च कर देना !ये कैसा योग !
 स्वच्छता अभियान या शौचालय निर्माण क्या भ्रष्टाचार भगाने से भी ज्यादा जरूरी हैं क्या ?
  महोदय ! जिस देश में व्यवस्था सुधारने के लिए सरकार जो कानून बनाती हो उन्हीं कानूनों को तोड़ने की अघोषित रेटलिस्ट उससे पहले ही दलालों को मुहैया करा दी जाती हो और दलाल लोग भ्रष्टाचार की मंडी में बेचने लगते हों वही कानून और पैसे लेकर बताने लगते हों उस कानून को तोड़ने के उपाय !सरकार के द्वारा बनाए गए उन्हीं कानूनों का अपराधीलोग मजाक उड़ाने लगते हों !अपराधियों के द्वारा कानून तोड़ने की अघोषित अग्रिम बुकिंग करा ली जाती हो और ठाट बाट से डंके की चोट पर दिन दोपहर में बड़े से बड़े शहरों में मुख्य राहों चौराहों पर बेधड़क होकर करते देखे जाते हों अपराध ! ऐसे देश में योग का क्या औचित्य ?                कोई बीट अफसर घूस माँगने के लिए किसी को तंग कर रहा हो उससे परेशान होकर  उस प्रताड़ित पुरुष ने ऊपर के अधिकारियों से शिकायत की हो उन्होंने जाँच आश्वासन दिया हो और जाँच करने की जिम्मेदारी उसी बीट अफसर को सौंप दी गई हो जिसकी शिकायत की गई हो इसका परिणाम ये निकलता है कि वो बीट  अफसर पहले से ज्यादा तंग करने लगता है और पहले जो बीट  अफसर एक हजार रूपए माँग रहा था अब शिकायत करने के कारण वो 5000 रूपए माँगने लगता हो !और जनता को मजबूरी में देने पड़ते हों ऐसा ही भ्रष्टाचार जिस सरकार के हर विभाग में व्याप्त हो वो  सरकार जनता को योग सिखावे, स्वच्छता अभियान समझावे !शौचालय बनाने की सलाह दे तो सुनकर कैसा अजीब सा लगता है । 
       जिस देश में अनैतिक रूप से दबंग या अपराधी लोग भले लोगों को प्रताड़ित करते हों उनका बिजली पानी नाली रास्ता रोड आदि बंद कर देते हों उनके घर के आस पास की सरकारी जमीन पर कब्ज़ा कर लेते हों छत पर रखी उनकी पानी की टंकियाँ फाड़ देते हों पाइप काट देते हों औरों की छतों पर मोबाईल टावर लगावाकर खुद किराया खाने लगते हों ऐसे लोगों की शिकायत सरकारी विभागों में करने पर सरकारी मशीनरी उन अपराधियों को शिकायत कर्ता और शिकायत की जानकारी देकर उनका उत्पीड़न करवाती हो, पीड़ित व्यक्ति उसकी शिकायत यदि मंत्री मुख्यमंत्री राज्यपाल गृह मंत्री  प्रधानमंत्री तक से करता हो तो उसकी जाँच करने को उन्हीं लोगों को सौंप दिया जाता हो जो  अपराधियों के साथ मिलकर शिकायत करता का उत्पीड़न करने के लिए जिम्मेदार हों वो जाँच रिपोर्ट पैसे के हिसाब से बनाने के आदी हो हों !ऐसे में वर्षों बाद भी अपराधियों पर कार्यवाही होनी तो दूर उस एप्लिकेशन पर कुछ किया भी गया या नहीं इसकी तक सूचना देना शिकायत कर्ता को जरूरी न समझा जाता हो महीनों वर्षों बीत जाते हों इसके बाद अपराधियों के द्वारा उत्पीड़न और अधिक बढ़ा दिया जाता हो ऐसी  सरकार के 'योग'और स्वच्छता अभियान का क्या मतलब !        जहाँ सरकारी मशीनरी के साथ मिलकर सरकारी जमीनों पर कब्जा करके पाँच पाँच इंच चौड़ी दीवालों पर चार चार पाँच पाँच मंजिल के मकान बनाकर कमरे किराए पर उठा दिए जाते हों !मकान गिरने पर निरपराध लोग मारे जाते हों और सरकारी मशीनरी एवं भूमाफिया लोग बाल बाल बच जाते हों उस देश में योग का क्या औचित्य !
 जिन कामों को गलत समझकर उन्हें रोकने के लिए सरकार धूमधाम से कानून बनाती हो उन्हीं के विरुद्ध सरकारी मशीनरी लाइसेंस दे देती हो सरकार को या तो ऐसे कानून नहीं बनाना चाहिए या फिर उनका पालन कठोरता से किया जाना चाहिए !अन्यथा इस कानूनों की कठोरता का भय दिखा दिखा कर सरकारी मशीनरी पैसे वसूला करती है ईमानदारजनता तंगहोती रहती है ।

  सुना है कि दिल्ली में बोरिंग करना गैर क़ानूनी है किंतु लगभग हर घर में बोरिंग है और अभी भी की जा रही है किन्तु सरकारी मशीनरी पैसे लेकर करने देती है ।लगता है कि  ऎसे कानून केवल पैसे वसूलने के लिए ही बनाए जाते हैं ।      
    दिल्ली जैसी राष्ट्रीय राजधानी में अपने बनाए हुए नियमों के विरुद्ध निगम या अन्य सरकारी मशीनरी पैसे लेकर वैसा ही हो जाने देती है पूर्व में बनाए गए नियमों के हिसाब से जिन कामों या व्यवस्थाओं को करने से रोका  गया होता है उन्हीं के नियमों के विरुद्ध धन लेकर उन्हीं कामों को करने की अनुमति दे दी जाती है ऐसी परिस्थिति में सरकारी योग से समाज को क्या लाभ !
    जिस देश में अपराधियों की आपराधिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों पर अंकुश लगाने के लिए देश की जनता के पास कोई विकल्प ही न हो और सरकारें भ्रष्टाचार रोकने का झूठा दंभ भरती हों उन्हें होश ही न हो कि उनके बनाए हुए कानूनों को उनकी मशीनरी दबंगों और अपराधियों से रौंदवाती चली जा रही है उनका दुरुपयोग सीधे साधे भोले भले लोगों को उत्पीड़ित करने के लिए किया जाता है ऐसे देश  में योग का क्या अर्थ !

     जिस देश में अपराधी लोग कानूनों का उपहास उड़ाते हों !अधिकारियों की मिली भगत से अपराध करनी के लिए स्वतन्त्र हों दूसरी ओर जनता से मजबूरी में होने वाली छोटी छोटी गलतियों के कारण  उन्हें डरा धमका कर उनसे वसूली करके उन्हें छोड़ा जाता हो ऐसे देश में कानून बनाने का मतलब क्या सरकारी मशीनरी को वसूली करने के लिए एक नया हथियार पकड़ा देना नहीं माना जाना चाहिए !क्या ये न्यायसंगत है और ऐसे कानूनों से देशवासियों को कोई लाभ है क्या ?                महोदय ! जनता को काम तो कराना ही होता है अगर सरकारी विभागों में घूस लिए दिए बिना समय से जनता का काम होने लगे अपने अपने कर्तव्य का पालन ईमानदारी पूर्वक अधिकारी कर्मचारी करने लगें तो लोगों की पवित्र दिनचर्या भी किसी योग से कम नहीं मानी जाएगी  इसके बिना घूस का लेन  देन भी बना रहे और योग भी होता रहे ऎसा नहीं हो सकता है हँसना और गाल फुलाना दोनों एक साथ नहीं किए जा सकते !           'योग' पहले सरकार अपने अधिकारियों कर्मचारियों और नेताओं को सिखाए ! उन्हें समझाए योग का मतलब उसके बाद जनता को बताए कि केवल हाथ पैर मोड़ना मरोड़ना या कछुए की तरह फूलना पिचकना ही योग नहीं होता है अपितु सदाचार संस्कार ईमानदारी कर्तव्यपरायणता परोपकार जैसे गुणों को धारण करना ही योग है इन्हीं की बिना देश में मचा है हाहाकार !
    भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध  लड़ना ही है तो छोड़िए किसी को नहीं !बेनामी संपत्तियां  सबसे ज्यादा सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों और नेताओं की ही मिलेंगी देश में सबसे ज्यादा भ्रष्ट  यही लोग हैं सारे अपराधी इन्हीं लोगों की गन्दी संपत्तियों को बनाने के इंतजाम में लगे रहते हैं उसमें कुछ उन बेचारों को भी मिल जाता होगा पेट तो उनके भी है । वैसे वो जो भी काम करेंगे उससे पेट भरेंगे चूँकि सरकारी सुस्त मशीनरी उन्हें अपराध करने दे रही है इसलिए वे अपराध करके गुजारा कर रहे हैं सरकारी अधिकारी कर्मचारी और नेता लोग जिस दिन भ्रष्टाचार की कमाई खाना बंद कर देंगे उस दिन अपराधी भी अपराध करना छोड़ कर कोई और धंधा तलाशेंगे उन्हें तो परिश्रम करके कमाना है कुछ और भी कर लेंगे !समस्या सरकार के अपने अधिकारियों कर्मचारियों की है उनकी साइड की आमदनी कैसे होगी अपराधी यदि अपराध करना छोड़ देंगे तो ! 
    सरकार केवल अपने  भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी और नेताओं को योग ,सदाचरण ,संस्कार और कर्तव्य परायणता सिखा ले तो बाकी लोग तो मेहनत करके कमाते खाते ही हैं केवल सरकारी कर्मचारियों की नियुक्तियाँ जहाँ जिस काम को करने की लिए की गई  हैं वो काम वही लोग बिगाड़ रही हैं जिन्हें उन्हें संभालने की सैलरी दी जाती है !आश्चर्य !!
     मेहनत मजदूरी करनी वाली गरीबों ग्रामीणों किसानों का योग तो उनकी पवित्र दिनचर्या में ही हो जाता है किंतु सरकारी कर्मचारियों को ठीक करे सरकार !बस इस छोटे से काम से ही सुधर जाएगा सारा देश । ये है तो छोटा सा काम किन्तु सरकार करे तब तो क्योंकि इस वर्ग में प्रायः सरकार के अपने लोग होते हैं और अपनों के विरुद्ध कार्यवाही कर पाना आसान नहीं होता क्योंकि उसमें कई अपने लोगों की भी टाँगें फँसी निकल आती हैं वहीँ से सरकारों को पीछे  लौट आना पड़ता है अन्यथा  चुनावों के समय हर पार्टी भ्रष्टाचार के विद्ध शोर मचाती है किंतु !बाद में गड्डियाँ मिलती ही सब उसी पुराने ढर्रे में चलने लगते हैं ।  
     गंगानदी  भगवान के चरणों से निकलती है और भ्रष्टाचार की नदी भ्रष्टनेताओं, भ्रष्टअधिकारियों एवं भ्रष्टबाबाओं तथा भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !इसीलिए इनकी संपत्तियों एवं आयस्रोतों की जाँच के बिना भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए की गई सारी कसरतें बेकार हैं ।                              हे प्रधानमंत्रीजी!सरकार केलिए सबसे बड़ीचुनौती !                                   
अब नेताओं बाबाओं अधिकारी कर्मचारियों की निजी संपत्तियों की करवाई  जाए जाँच !काले धन का बहुत बड़ा भंडारण मिलेगा इनके पास ! क्योंकि ऐसे सफेदपोश लोग देश की सरकारी जमीनों का अपने को स्वयंभू मालिक समझते हैं उन्हें कब्ज़ा करके बेच लेते हैं धंधा व्यापार फैला देते हैं सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने के लिए ही ये लोग डाढ़ा झोटा बढ़ाकर बाबा बन जाते  हैं  आश्रम, मंदिर, योगपीठ, स्कूल, गोशाला या चैरिटेबल ट्रस्ट बनाकर  जनसेवा का नाटक करने लगते हैं !
     देश की खाली सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने वाले अधिकाँश बाबा या नेता लोग हैं या फिर सरकारी अधिकारी कर्मचारी होते हैं इन्हीं लोगों की मल्कियत चलती है सरकारी जमीनों पर !सरकारी जमीनों को बेच बेचकर पहले तो बस्तियाँ बसा देते हैं और फिर यही सफेद पोश लोग इन बस्तियों का नियमिती करण करने के लिए आंदोलन करते हैं जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार आती है तो उस जमीन का नियमितीकरण करवा लेते हैं फिर नई जगह कब्ज़ा करते हैं । 
    कुलमिलाकर बाबाओं  नेताओं  या सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की कृपा के बिना न कोई गुंडा बन सकता है न माफिया और न ही अपराधी !क्योंकि इन लोगों से सरकारी मशीनरी भी डरती है इनकी पहुँच सीधे प्रधानमंत्री तक होती है !इसीलिए ये सफेदपोश लोग कई बड़े बड़े अपराध अपनी बाबागिरी और नेतागिरी में छिपाए घूम रहे हैं । 
     कालेधन के इन सफेदपोश रईसों को पकड़ने  की हिम्मत करना  बड़ी बड़ी सरकारों के लिए भी होता है हिम्मत का काम !बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों से हर सरकार डरती है क्योंकि इनकी चोरी पकड़ने के लिए जो सरकार खड़ी होती है ये उसी की पोल खोलने लग जाते हैं भ्रष्टाचारी सरकारें अक्सर डरकर अपने कदम वापस खीँच लेती हैं इसीलिए सत्ता किसी की हो सरकार किसी की भी बने किंतु बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का बोल बाला हर सरकार में रहता है !
       इसलिए हे प्रधानमंत्री जी !यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो भ्रष्टबाबाओं  भ्रष्टनेताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की चल अचल संपत्तियों एवं उनके आयस्रोतों को भी  सार्वजानिक करे सरकार !
       सभी प्रकार के अपराधों को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका प्रमुख रूप से इन तीन लोगों की ही मानी  जाती है हजार पाँच सौ के नोट बंद करने का असर इन तीनों लोगों पर बिलकुल न के बराबर होगा !क्योंकि ऐसे लोग अपना सारा कालाधन जगह जमीनों में लगा चुके होंगे !
         अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी अपनी  काली कमाई को नोटों के रूप में वर्षों तक रखेगा इसकी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए !यदि कुछ 1000 -500 के नोटों के रूप में उनके पास होगा भी तो इनमें से अधिकाँश लोग रसूखदार होते हैं वो अब तक सब इधर उधर कर चुके होंगे !
     हे प्रधानमंत्री जी ! बहुत लोगों में तो यहाँ तक  भ्रम फैलाया जा चुका है कि कालेधन से धनी नेताओं, नौकरशाहों, मीडियामालिकों,माफियाओं एवं कारोबारी और धनवान बाबाओं को विश्वास में लेने के लिए मोदी सरकार ने अपने नोट बदलने के निर्णय को महीनों पहले ही गुप्त रूप से इन लोगों को सूचित कर दिया था और उन्हें किसी भी प्रकार से नुक्सान नहीं होने दिया सौ सौ रूपए के नोट मार्किट से आज इसीलिए गायब हैं !ऐसे ही लोग मोदीसरकार  के इस निर्णय के उस समय गुण गाते घूम रहे हैं जब छोटे छोटे कारोबारी या आम घर गृहस्थी वाले लोग अपना सब कामकाज छोड़ कर बैंकों डाकघरों के सामने लाइनों में लगे हैं किंतु उन लाइनों में न तो कारोबारी बाबा हैं न नेता हैं न माफिया हैं  एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन लाइनों में !आखिर क्यों ? क्या वो लोग इतने बड़े ईमानदार हैं और बाक़ी सारा देश बेईमान और भ्रष्टाचारी है या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ रही होगी या उनके खर्चे आम जनता से कम हैं जो उनका काम बिना पैसे के ही चल जा रहा होगा !आखिर वे शांत क्यों और कैसे बैठे हैं और आम जनता परेशान है क्यों ? इसके कारण भी स्पष्ट किए जाने चाहिए !
        वर्तमान केंद्र सरकार यदि वास्तव में गंभीर है और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना ही चाहती है तो बहुत आवश्यक है कि पारदर्शिता बनाए रखी जाए और ईमानदारी पूर्वक न केवल आचरण किया जाए अपितु उस ईमानदारी पर शंका करने वालों का विश्वसनीयता इन आत्मीयता पूर्वक समाधान भी किया जाए !सरकार की या जिम्मेदारी है कि होम करते हाथ न जलने दिए जाएँ !
      हे प्रधानमंत्री जी ! सरकार ने यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि सफाया हो तो सबका हो !चाहें वो सरकार के कितने भी करीबी नेता अधिकारी या  धनवान साधू संन्यासी और बाबा लोग ही क्यों न हों ?अब यदि इन्हें बचाए रखने का थोड़ा भी लालच किया गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा और बदनाम हो जाएगी सरकार !नोटों को बदलने की घोषणा से अभी तो सारे देश में हाहाकार मचा हुआ है सोचने बिचारने का लोगों के पास समय ही नहीं है किंतु जिस दिन लोग सोचने बैठेंगे तब एक एक कमी काउंट करेंगे और उनका रुख देखकर ये विरोधी पार्टियों के नेता भी उस समय उगल रहे होंगे आग !
      अतएव हे प्रधानमंत्री जी !लगभग पिछले तीस पैंतीस वर्षों से भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है इस बीच खरीदी बेची गई चल अचल सभी संदिग्ध संपत्तियों की जाँच कराई जाए और उनमें लगाई गई अकूत धनराशि के आयस्रोत इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिए जाएँ ताकि किसी के बिषय में उसे जानने वाले को कोई शंका समाधान करना हो या कुछ और जानकारी देनी हो तो वो बात भी जाँच के दायरे में आ सके !जो आयस्रोत स्पष्ट न हों या गैरकानूनी हों या जिनमें नियमों का पालन न किया गया हो वो सारी  संपत्तियाँ एवं उनके द्वारा कमाई गई संपत्तियों से बनाई गई संपत्तियाँ पारदर्शिता पूर्वक जप्त करके उन्हें सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार !
     महोदय ! संन्यासी बनने की घोषणा के बाद साधू संतों के द्वारा इकट्ठी की गई सारी संपत्तियाँ कालाधन मानकर उन्हें जप्त करके सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार!ऐसे बाबा लोगों के सेवाकार्य एवं चैरिटी संबंधी सभी लोकप्रिय और जनहितकारी  कार्यों को यथावत उन्हीं की देख रेख में चलने भले दिया जाए किंतु उसका स्वामित्व सरकार अपने हाथों में लें!यदि वे वास्तव  में संन्यासी और सेवाकार्य करने वाले हैं और इसमें उनका कोई निजी लोभ नहीं है तो उन्हें यह व्यवस्था स्वीकार करने में कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए !विगत कुछ वर्षों में कुछ आश्रमों एवं बाबाओं की सेवा गतिविधियों में कई प्रकार के अपराध होते पाए गए जिन आरोपों में वे लोग अभी भी जेलों में हैं या कानूनी लड़ाईयाँ लड़ रहे हैं उसके बाद ऐसे सभी लोगों पर शंका होना स्वाभाविक है । वैसे भी संन्यास लेने के बाद समाज से चंदा इकठ्ठा करके बनाई गई संपत्तियाँ समाज की हैं न कि उन बाबाओं की ,इसलिए समाज की संपत्तियाँ समाज को सौंपने में बुराई भी क्या है !
      चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा बनाई गई अकूत संपत्तियों में भरा पड़ा है भ्रष्टाचार !साहस हो तो उन्हें पकड़े सरकार !  
     ऐसे नेताओं की संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए चुनाव जीतते ही उनके यहाँ लग जाते हैं संपत्तियों के अंबार !खोजे जाएँ उनकी आय के स्रोत !आखिर ऐसा क्या है कि चुनाव जीत जाने के बाद अधिकाँश नेताओं को कुछ करने की जरूरत ही नहीं रह जाती है और प्रायः वे कुछ करते भी नहीं हैं और न ही उनके पास कुछ करने का समय ही होता है !ऐसे नेताओं ने सेवा कार्यों के लिए पहचानी जाने वाली राजनीति को ही न केवल अपना व्यवसाय मान लिया है अपितु उसी राजनैतिक धमक से  संपत्तियों के बड़े बड़े अंबार लगा लिए हैं जिनकी खनक से उनकी सैकड़ों पीढ़ियाँ राजसी ठाटबाट भोगती रहेंगी और आज भी वो बड़ी बड़ी कोठियों में न केवल रहते हैं अपितु कई कई तो खाली भी पड़ी होती हैं जहाज से नीचे पैर नहीं रखते !शादी काम  काज में करोड़ों अरबों रुपये पानी की तरह बहा देते हैं वे !आखिर कहाँ कमाने जाते हैं ? क्या धंधा व्यापार करते हैं और कब काम करते हैं बकवास करने हुल्लड़ मचाने से इन्हें फुरसत ही कहाँ होती है जो काम धंधा फैलाएँगे !भ्रष्टाचार की कमाई से ऐसे लोगों के खजाने भरे पड़े हैं हिम्मत हो तो जाँच करे सरकार अन्यथा 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को नौकरी मिलने के बाद खरीदी गई जमीनों मकानों की जाँच करे सरकार !
        सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने नौकरी लगने के बाद जितनी भी संपत्तियाँ बढ़ाई और बनाई हैं उनकी जाँच क्यों नहीं करती है सरकार !उनमें से जो लोग  घूस लेते हैं उससे भ्रष्टाचार पूर्वक बनाई गई संपत्तियाँ और फिर उन संपत्तियों के द्वारा इकठ्ठा की गई जो संपत्तियाँ वे सब काला धन नहीं हैं तो क्या हैं ?सरकार को आखिर क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ये भ्रष्टाचार ? केवल 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?काले धन से खरीदी गई संपत्तियों के अलावा उनकी सैलरी या नैतिक स्रोतों से संचित धन की सीमा में नहीं आती हैं तो वे संपत्तियाँ गैरकानूनी हैं ब्लैकमनी हैं उन्हें सरकार सार्वजनिक करे !
      बाबाओं के द्वारा सबकुछ छोड़ने अर्थात संन्यास लेने की घोषणा करने के बाद जोड़ा गया सारा धन ही कालाधन  होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति भी ब्लैकमनी है ।घूसखोर अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी के अलावा भ्रष्टाचार पूर्वक अर्जित की गई सारी  संपत्तियाँ ही काला धन हैं  क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
     देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया होता है वो सारा ब्लैकमनी अर्थात काला धन ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करे सरकार !
   ऐसी संपत्तियों की जाँच करवाकर जो संपत्तियाँ  इनके खून पसीने की कमाई की नहीं हैं उन्हें जब्त करके सार्वजानिक संपत्ति घोषित करे सरकार !
         सैद्धांतिक रूप से बाबाओं का सारा धन ही ब्लैकमनी होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति ब्लैकमनी है । इसी प्रकार से सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की नौकरी लगने के बाद इकठ्ठा की गई गैरकानूनी संपत्तियाँ ब्लैकमनी हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
     देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना ही होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया है वो सारा ब्लैकमनी ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए !
        महोदय !भ्रष्टाचारियों का तब तक बाल भी बाँका नहीं होगा जब तक भ्रष्टनेताओं ,भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों की संचित संपत्तियों की जाँच नहीं की जाती !चुनाव जीतने के बाद जिस नेता के पास जितनी संपत्ति बढ़ी या बनी है इसी प्रकार से नौकरी लगने के बाद जिस अधिकारी कर्मचारी के पास जो संपत्ति बढ़ी और बनी है वो सारी जाँच के दायरे में लाई जाए !राजनीति में जब वे आए थे तब उनके पास चल अचल संपत्ति कितनी थी और आज कितनी है संपत्ति !इसकी जाँच तो होनी चाहिए ।