ऐ राजनीति !तुझे धिक्कार !!गरीबों की सेवा के सब्जबाग दिखाकर अपनी और अपनों की ऐश !
सरकारें जन सेवा के लिए होती हैं न कि सरकारी संसाधनों का उपयोग अपने को राजा महाराजा सिद्ध करने के लिए करें !नेताओं की नियत ही ठीक नहीं है उन्हें इस बात की भी शर्म नहीं होती कि जिन गरीबों के हिस्से का हरण किया हुआ ये धन होता है वो एक एक रोटी के लिए आज भी हैरान परेशान हैं आप उस गरीब समाज के प्रतिनिधि हैं क्यों नहीं झलकती है तुम्हारे चेहरों पर गरीबों की वह पीड़ा कैसे जन प्रतिनिधि हैं आप ! सरकारें जनता की माँ होती हैं धिक्कार है उस माँ को जो खुद तो ऐश करे बच्चों को भूखा सुला दे !साकार में बैठे लोगों को पिता का दायित्व निर्वाह करना होता है से कहाँ तक कैसे ,क्यों और कब तक सहे!य्ये भावनात्मक कदाचार !
"मुलायम के पोते के तिलक में पानी पर खर्च किए 2 करोड़! -news -24"
किन्तु नेताओं का इस तरह का पैसा है किसका होता है इसे पानी की तरह बहाने में किसी को पीड़ा क्यों नहीं होती !बंधुओ! अक्सर नेता लोग सामान्य या किसान परिवारों से आते हैं ये सबको पता है उनके राजनीति में आने से पहले उनके पूर्वजों का कमाया या अपना कमाया हुआ कितना धन था ये आस पास के लोगों से पता लगाया जा सकता है साथ ही किसानों की आमदनी कितनी होती है ये बात पास पड़ोस के किसानों से पूछी जा सकती है इनके व्यापार क्या हैं उनकी प्रारंभिक पूँजी के स्रोत क्या थे साथ ही उनकी इतनी भारी भरकम आमदनी के प्रमुख साधन क्या हैं और उनके प्रबंधन की क्या है ?
सामाजिक आंदोलनों और जन सेवा से जुड़े रहे जन सेवा व्रती लोग यदि अपना संपूर्ण समय सामजिक कार्यों में देते रहे तो ऐसे लोग इतना भारी भरकम धन इकठ्ठा करने में कैसे सफल हो जाते हैं ?वैसे भी अपनी खून पसीने की कमाई के धन को इतने महंगे पानी में पानी की तरह से कैसे बहाया जा सकता है !
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