Wednesday, 11 February 2015

केजरीवाल तीन सीटें हार क्यों गए आखिर क्या चाहती थी वहाँ की जनता !जिसकी हामी नहीं भर पाए केजरीवाल ?ये रिसर्च का विषय !!

  केजरीवाल जी तीन सीटें हारे क्यों ? इतने अच्छे घोषणापत्र के बाद भी इतनी बड़ी पराजय ! आश्चर्य !!

भाजपा और काँग्रेस यदि मन से चुनाव लड़ते और जनता को समझा पाते सच्चाई तो उनकी इतनी बुरी हार संभवतः कभी नहीं होती !मित्रो ! इतनी बड़ी जीत की आशा तो केजरीवाल जी ने भी नहीं की होगी जबकि आशा हमेंशा वास्तविकता से अधिक की जाती है फिर आम आदमी पार्टी को मिली आशा से अधिक सफलता का रहस्य आखिर क्या है ! इसके लिए यदि ये माना जाए कि काँग्रेस और भाजपा ने अभी तक कुछ नहीं किया है इसलिए जनता इनसे निराश थी तो सोचना ये भी पड़ेगा कि केजरीवाल जी ने ऐसा किया क्या था जिससे जनता उनके प्रति इतना समर्पित हो गयी !ये वही जनता है जिसने नौ महीने पहले लोक सभा चुनावों के समय दिल्ली में इनका खाता भी नहीं खुलने दिया था फिर नौ महीने में ऐसा क्या चमत्कार हो गया कि केजरीवाल जी भाजपा और काँग्रेस को इतनी तगड़ी शिकस्त देने में सफल हुए !

     बंधुओ ! चुनावों में हर पार्टी और प्रत्याशी अपना अपना घोषणा पत्र अपने अपने हिसाब से बनाता है और वही जनता के सामने प्रस्तुत करता है उससे जनता का जितना बड़ा भाग लाभान्वित होना होता है वो उसे वोट देता है इसलिए उसी हिसाब से उसे सीटें मिलती हैं किन्तु बात बात में जनमत संग्रह करने के आदती  केजरीवाल जी ने हर सीट पर अलग अलग लोगों की अघोषित राय ले ली थी जहाँ की जो जैसी जितनी जरूरी समस्याएँ बताई गईं  बिना किन्तु परन्तु लगाए उन सबका समाधान करने की हामी भर दी और उसी को अपना घोषणा पत्र मान लिया वही दिल्ली वालों की जरूरतों के हिसाब का दिल्ली वालों का बताया हुआ घोषणा पत्र दिल्ली वालों को ही पढ़ पढ़ कर सुनाते रहे और सारी  समस्याओं के समाधान का आश्वासन देते रहे ! ऐसी परिस्थिति में पूरी दिल्ली का खुश होना स्वाभाविक ही था !इतने पर भी तीन सीटें उनके हाथ से निकल जाना ये छोटी पराजय नहीं है ! आखिर उन तीन सीटों पर लोग ऐसा अलग से क्या चाहते थे जो देने के लिए हाँ नहीं की जा सकी !

    बंधुओ ! ऐसी परिस्थिति में हमें तो ये बात समझ में नहीं आ रही है कि केजरीवाल जी तीन सीटें हारे क्यों ? आखिर ऐसा क्या चाहती थी वहाँ की जनता जिसका समाधान केजरीवाल जी के घोषणा पत्र में नहीं था और यदि नहीं था तो उसमें केजरीवाल जी की मजबूरी आखिर क्या थी जब इतना सब कुछ हो ही रहा था तो दो चार लाइनें उनकी भी समस्याओं और समाधानों की बोल दी जातीं तो क्या बिगड़ जाता किसी और का ! इसलिए इतने अच्छे घोषणा पत्र के बाद भी तीन सीटें हार जाना निजी तौर पर मैं तो इसे केजरीवाल जी की सबसे बड़ी हार मानता हूँ साथ ही यह भी सोचता हूँ कि आखिर इतना चिंतन मनन करने के बाद भी केजरीवाल जी का घोषणा पत्र उन तीन सीटों पर फेल हो गया क्यों! जबकि सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान का आश्वासन उन्होंने दे ही रखा था   फिर चूक ऐसी कहाँ क्या हुई जो तीन सीटें हार गए एक आध होती तो सोचा भी जाता !हमें  तो ये भी लगता है कि उन तीन सीटों की जनता पर रिसर्च किया जाना चाहिए कि उनकी ऐसी समस्याएँ आखिर थीं क्या जिनका समाधान करने का केजरीवाल जी आश्वासन नहीं दे सके वो भी आखिर क्यों ?

 

No comments: