प्रधानमंत्री जी अपने मन की बात तो जनता को सुनाते हैं किंतु जनता के मन की बात नहीं सुनते हैं आखिर क्यों सुने जनता उनके मन की बात ?
प्रधानमंत्री जी को जनता के मन की बात सुनने का अवसर ही नहीं मिला वो तो केवल अपने मन की बात करते हैं जनता के मन की बात प्रधानमंत्री जी तक पहुँचाने के लिए ऐसा कोई सशक्त माध्यम नहीं है जिससे जनता को भी पता लग सके कि उसकी बात प्रधान मंत्री जी तक पहुँच पाई है या नहीं । इसके दो ही रास्ते हैं या तो जनता के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए जाएँ या समस्याओं के समाधान किए जाएँ ! किन्तु इनमें से कुछ भी नहीं हो पा रहा है।
काँग्रेस की सरकार से यदि भाजपा सरकार की तुलना करना हो तो कितना भी जरूरी काम हो किंतु जनता का मिल पाना न उनसे संभव था और न इनसे संभव है जनता के प्रश्नों के उत्तर न वो देते थे और न ही ये देते हैं जनता के जरूरी कार्य न वो करते थे और न ही ये करते हैं ।अभी तक दोनों में अंतर केवल इतना है कि मनमोहन सिंह जी अपने मन की बात करते भी नहीं थे और जो मन होता था वो करते जाते थे ,मोदी जी काम करें या न करें किंतु अपने मन की बात बता जरूर देते हैं किंतु जनता के मन की बात सुनते वो भी नहीं हैं यदि सुनने का अभ्यास होता तो जनता चुनावों में हराने के बजाए मिलकर भी अपना रोष प्रकट कर सकती थी किन्तु जनता के मन की बात सुनने का धैर्य कहाँ है !अपने मन की बात तो वो कहते हैं किंतु जनता की नहीं सुनते हैं !इसलिए जनता ने ऐसे सुना दी !
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