Saturday, 29 July 2017

सरकारी विकास योजनाओं की मजाक उड़ानेवालों के बलपर सरकार करना चाहती है देश का विकास !

     सरकार के कानों तक ये सच्चाई कैसे पहुँचे ?कि देश में जितने प्रकार के गलत काम किए जाते हैं उन सबसे अकूत संपत्तियाँ बनाते हैं आपके अपने सरकारी अधिकारी कर्मचारी लोग !जिन्हें अनाप सनाप सैलरी देते हैं आप उसका इंतजाम करने के लिए  टैक्स वसूलने की तरह तरह से जुगत भिड़ाया करते हैं आप !और वो ये करते हैं ये सरकार की कमजोरी गैर जिम्मेदारी और पक्षपात नहीं तो क्या है !
     सभी प्रकार के अवैध कब्जे हों या काम काज सबसे अवैध वसूली करके करोडो अरबोपति बन जाते हैं सरकारी लोग !सरकार दिखावा करने के लिए समाज में खोजते घूमती है भ्रष्टाचारी और अपराधी जो किसी तरह कमा कर  अपने परिवार का पोषण करते हैं !साहस है तो सरकारी कर्मचारियों की संपत्तियाँ जाँचे नौकरी लगी थी तब क्या थे और आज क्या  हो गए ये आया कहाँ से और सैलरी कितनी मिलती है !सारे पापों की जड़ मिलेगी यहाँ !
   हे सरकारों के मालिको !सारा गैर कानूनी काम काज करने के मोटे  पैसे लेते हैं आपके लाडले !ऐसी गतिविधियों को रोकने के लिए जनता से कहते हैं हमारे यहाँ शिकायत करो फिर हम कार्यवाही करेंगे !यदि वो कर देते हैं तोअवैध वालों से शिकायत कर्ता पर हमले करवाते हैं ये और उधर नोटिश देकर स्टे दिला देते हैं अवैध काम करने वालों को !इसके बाद केस की खुद पैरवी नहीं करते जनता कुछ कर नहीं सकती और वो स्टे बढ़वाए जाते हैं सरकार के दुलारे उनसे पैसे खाते रहते हैं जब कोई पूछता है केस का क्या हुआ तो कह देते हैं स्टे चल रहा है स्टे का नाम सुनकर और कोई हाथ नहीं लगाता है उनसे पूछो कि ये स्टे चलेगा कब तक और क्यों बढ़ता जा रहा है आगे तो बताते हैं जज बहुत खाऊ है मोटी  घूस ले रखी है उससे !ऐसा कहकर न्यायाधीशों और न्यायालयों की गरिमा घटती रहती है सरकारी भष्ट मशीनरी !ऐसे लोगों के विरुद्ध सर्कार ने कभी कोई गहन जाँच अभियान चलाया नहीं तो देश से अपराध घटें कैसे !अपराधियों पर नकेल कसने वाले कानून बनने से पहले उनसे बचने के रास्ते अपराधियों को बता चुके होते हैं भ्रष्ट कर्मचारी लोग !वो समाज से अधिक अपराधियों के प्रति समर्पित होते हैं !
      सरकार भी वेतन बढाती रहती है कुल मिलाकर सबकी मिली भगत से बर्बाद हो रहा है देश और समाज !    सिफारिशी लेटर दे दे कर जनता का समय बर्बाद करते रहते हैं ऐसे जनप्रतिनिधि नेता लोग !जो सिफारिस करें और अधिकारी सुनें न तो अपनी प्रतिष्ठा के लिए मर मिटना चाहिए उन्हें किंतु राजनीति में गए हुए प्रायःबहुत लोगों से ऐसी आशा नहीं की जा सकती !जनता तो सह कर अपने दिन काट ही लेगी किंतु नेताओं की बातों योजनाओं आश्वासनों पर से उठता विश्वास लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो सकता है !
      जिन विधायकों सांसदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों के यहाँ काम के लिए जनता सुबह से लाइन लगा देती है वो भी कहते हैं हमारी सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है!ये नहीं सोचते कि कर्मचारी काम ही करते होते तो जनता उनके पास क्यों जाती सिफारिस के लिए !वैसे भी अपनी अपनी औकात हर किसी को पता होनी ही चाहिए !ये तो जनप्रतिनिधियों को भी अब मान ही लेना चाहिए कि उनके दो कौड़ी के लेटरों से अधिकारी कर्मचारी काम करने लगेंगे क्या ?उनसे काम  लेने की अकाल उन्हें खुद सीखनी पड़ेगी किन्तु वे तो हमेंशा इस गलत फहमी में बने रहते हैं कि  हमारे ऊपर विधायकों सांसदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों जैसा लेवल लग गया तो हम वैसे ही हो गए किंतु महापुरुषों ने बहुत पहले कहा था कि व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है कर्म से अभिप्राय  का मतलब ये नहीं कि कुकर्मों से भी कोई महान बनता है अपितु सुकर्मों से महान  बनने की बात कही है महापुरुषों ने !किंतु 
सुकर्म करना जिनके वश का नहीं है वे कुकर्मों के बल पर ही फूला करते हैं वर्तमान राजनीति में ऐसे लोगों की भरमार है ! 
     अधिकारी कर्मचारी लोग नेताओं के कहने से काम इसलिए नहीं करते हैं वो इनकी हकीकत और औकात दोनों जानते हैं कि ये सस्पेंड भी कर देंगे तो कानून की शरण में जाकर बहाल हो जाऊँगा !तब तक सस्पेंड करने वाला नेता चुनाव हारकर दो कौड़ी का नहीं बचेगा !इसलिए थोड़े दिन सर सर करते रहो काम करो न करो कुछ ऐसा मत बोलो जिससे कोर्ट में  काम चोरी घूस खोरी का प्रमाण प्रस्तुत किया जा सके !
     सरकारी मशीनरी की सोच रहती है कि नेता प्रायःकानून न पढ़े होते हैं न कुछ इसलिए इन्हें आसानी से डराया धमकाया जा सकता है एक सिफारिशी चिट्ठी पढ़कर किसी अधिकारी ने मंत्री को जहाँ समझाया कि की पता है यदि मैं ऐसा कर दूँ तो आपको जेल हो सकती हैं आजीवन कारावास तक होने की सम्भावना है आदि आदि ऐसी ऐसी भयंकर सजाएं गिनाते हैं कि नेता तुरंत उनसे समझौते के मोड़ पर आ जाता है बेचारा सारी मंत्री गिरी भूल चुका होता है और उससे कह देता है कि मेरी सिफारिशी चिट्ठी आवें तो फाड़ फाड़ कर कूड़ादान में फेंकते रहना लिखनी तो पड़ेंगी लोग तो आएँगे ही !यही कारण है सरकारी आफिसों में काम होता हो न होता हो किंतु मंत्रियों आदि की फाड़ कर फेंकी गई चिट्ठियों से शाम को डस्टबीन जरूर भर जाता है !अधिकारियो कर्मचारियों से प्रायः कम पढ़े लिखे नेता लोग आसानी से बेवकूप बन जाते हैं !
     शिक्षा में अपने से जूनियर नेताओं को निठल्ला समझने वाली सरकारी मशीनरी का सोचना होता है कि सामने सर सर कह देते हैं तो इनके इतने भाव बढ़ जाते हैं कि ये अपने को हमसे बड़ा समझने लगे !बस इतनी सी गलत फहमी में नेतालोग योजनाएँ बना बनाकर घोषणाएँ करने लगे  फोकट में आश्वासन दे देकर जनता को आशा में मारे डाल रहे हैं!अक्सर घरेलू  खर्चों का हिसाब लगाने की योग्यता न रखने वाले लोग हजारों करोड़ की सरकारी योजनाओं का नाम सुनते ही भाग खड़े होते हैं इसीलिए तो भ्रष्टाचारी नेताओं के यहाँ जब छापे पड़ते हैं तो वही गईं कर बतात हैं कि तुम्हारे पास इतने पैसे निकले हैं तो वो सोच लेते हैं कि चलो छापा पड़ा तो पड़ा हमारे घर वालों को कम कम ये तो पता लगा कि मैं निकम्मा नहीं था मैंने भी कमाई की थी किन्तु अब भाग्य ने ही साथ नहीं दिया उसके लिए कोई क्या करे !
   कुल मिलाकर जनप्रतिनिधि नेताओं को अब इस सच्चाई को स्वीकार करके चुप बैठ जाना चाहिए कि उनके बश का नहीं ही किसी काम काम करवाना और अधिकारियों कर्मचारियों पर अंकुश लगाने की उनकी मानसिक हैसियत नहीं है !
      सरकारी मशीनरी जब जिनकी  औकात दो कौड़ी भी नहीं समझती है उन्हें सिफारिशी लेटर लिख लिख कर जनता का समय बर्बाद नहीं करना चाहिए जनता ने वोट देकर कोई गुनाह नहीं किया है जो चैन से जीने की व्यवस्था तो दे ही नहीं पाते हैं और शांति से मरने भी नहीं दे रहे हैं !
     अधिकारियों कर्मचारियों को पता होता है कि ये तो चार दिन के लिए मंत्री विधायक सांसद आदि हैं फिर कौन पूछेगा इन्हें !हम तो हमेंशा के लिए हैं !ये तो अभी कल तक धक्के खाते यहीं घूमते रहे आज आए  हमें आदेश देने !
    स्वाभाविक भी है जिसने किसी को कभी भीख माँगते देखा हो उसके दिमाग में तो हमेंशा वही छवि बनी रहेगी वो अपना स्वभाव कैसे और कितना  बदल लेगा ! 
    अधिकारी कर्मचारी काम ही करते तो जनता नेताओं के यहाँ चक्कर क्यों लगाती सिफारिस के लिए !

Friday, 28 July 2017

सांसदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों के आदेशों सिफारिशी लेटरों को कौड़ी बराबर नहीं समझते हैं अधिकारी कर्मचारी !

   नेताओं के सिफारिसी लेटर दे दे कर जनता का समय बर्बाद करते रहते हैं ऐसे जनप्रतिनिधि नेता लोग !जो सिफारिस करें और अधिकारी सुनें न तो अपनी प्रतिष्ठा के लिए मर मिटना चाहिए उन्हें किंतु राजनीति में गए हुए प्रायःबहुत लोगों से ऐसी आशा नहीं की जा सकती !जनता तो सह कर अपने दिन काट ही लेगी किंतु नेताओं की बातों योजनाओं आश्वासनों पर से उठता विश्वास लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो सकता है !
      जिन विधायकों सांसदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों के यहाँ काम के लिए जनता सुबह से लाइन लगा देती है वो भी कहते हैं हमारी सरकार बहुत अच्छा काम कर रही है!ये नहीं सोचते कि कर्मचारी काम ही करते होते तो जनता उनके पास क्यों जाती सिफारिस के लिए !वैसे भी अपनी अपनी औकात हर किसी को पता होनी ही चाहिए !ये तो जनप्रतिनिधियों को भी अब मान ही लेना चाहिए कि उनके दो कौड़ी के लेटरों से अधिकारी कर्मचारी काम करने लगेंगे क्या ?उनसे काम  लेने की अकाल उन्हें खुद सीखनी पड़ेगी किन्तु वे तो हमेंशा इस गलत फहमी में बने रहते हैं कि  हमारे ऊपर विधायकों सांसदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों जैसा लेवल लग गया तो हम वैसे ही हो गए किंतु महापुरुषों ने बहुत पहले कहा था कि व्यक्ति अपने कर्मों से महान बनता है कर्म से अभिप्राय  का मतलब ये नहीं कि कुकर्मों से भी कोई महान बनता है अपितु सुकर्मों से महान  बनने की बात कही है महापुरुषों ने !किंतु 
सुकर्म करना जिनके वश का नहीं है वे कुकर्मों के बल पर ही फूला करते हैं वर्तमान राजनीति में ऐसे लोगों की भरमार है ! 
     अधिकारी कर्मचारी लोग नेताओं के कहने से काम इसलिए नहीं करते हैं वो इनकी हकीकत और औकात दोनों जानते हैं कि ये सस्पेंड भी कर देंगे तो कानून की शरण में जाकर बहाल हो जाऊँगा !तब तक सस्पेंड करने वाला नेता चुनाव हारकर दो कौड़ी का नहीं बचेगा !इसलिए थोड़े दिन सर सर करते रहो काम करो न करो कुछ ऐसा मत बोलो जिससे कोर्ट में  काम चोरी घूस खोरी का प्रमाण प्रस्तुत किया जा सके !
     सरकारी मशीनरी की सोच रहती है कि नेता प्रायःकानून न पढ़े होते हैं न कुछ इसलिए इन्हें आसानी से डराया धमकाया जा सकता है एक सिफारिशी चिट्ठी पढ़कर किसी अधिकारी ने मंत्री को जहाँ समझाया कि की पता है यदि मैं ऐसा कर दूँ तो आपको जेल हो सकती हैं आजीवन कारावास तक होने की सम्भावना है आदि आदि ऐसी ऐसी भयंकर सजाएं गिनाते हैं कि नेता तुरंत उनसे समझौते के मोड़ पर आ जाता है बेचारा सारी मंत्री गिरी भूल चुका होता है और उससे कह देता है कि मेरी सिफारिशी चिट्ठी आवें तो फाड़ फाड़ कर कूड़ादान में फेंकते रहना लिखनी तो पड़ेंगी लोग तो आएँगे ही !यही कारण है सरकारी आफिसों में काम होता हो न होता हो किंतु मंत्रियों आदि की फाड़ कर फेंकी गई चिट्ठियों से शाम को डस्टबीन जरूर भर जाता है !अधिकारियो कर्मचारियों से प्रायः कम पढ़े लिखे नेता लोग आसानी से बेवकूप बन जाते हैं !
     शिक्षा में अपने से जूनियर नेताओं को निठल्ला समझने वाली सरकारी मशीनरी का सोचना होता है कि सामने सर सर कह देते हैं तो इनके इतने भाव बढ़ जाते हैं कि ये अपने को हमसे बड़ा समझने लगे !बस इतनी सी गलत फहमी में नेतालोग योजनाएँ बना बनाकर घोषणाएँ करने लगे  फोकट में आश्वासन दे देकर जनता को आशा में मारे डाल रहे हैं!अक्सर घरेलू  खर्चों का हिसाब लगाने की योग्यता न रखने वाले लोग हजारों करोड़ की सरकारी योजनाओं का नाम सुनते ही भाग खड़े होते हैं इसीलिए तो भ्रष्टाचारी नेताओं के यहाँ जब छापे पड़ते हैं तो वही गईं कर बतात हैं कि तुम्हारे पास इतने पैसे निकले हैं तो वो सोच लेते हैं कि चलो छापा पड़ा तो पड़ा हमारे घर वालों को कम कम ये तो पता लगा कि मैं निकम्मा नहीं था मैंने भी कमाई की थी किन्तु अब भाग्य ने ही साथ नहीं दिया उसके लिए कोई क्या करे !
   कुल मिलाकर जनप्रतिनिधि नेताओं को अब इस सच्चाई को स्वीकार करके चुप बैठ जाना चाहिए कि उनके बश का नहीं ही किसी काम काम करवाना और अधिकारियों कर्मचारियों पर अंकुश लगाने की उनकी मानसिक हैसियत नहीं है !
      सरकारी मशीनरी जब जिनकी  औकात दो कौड़ी भी नहीं समझती है उन्हें सिफारिशी लेटर लिख लिख कर जनता का समय बर्बाद नहीं करना चाहिए जनता ने वोट देकर कोई गुनाह नहीं किया है जो चैन से जीने की व्यवस्था तो दे ही नहीं पाते हैं और शांति से मरने भी नहीं दे रहे हैं !
     अधिकारियों कर्मचारियों को पता होता है कि ये तो चार दिन के लिए मंत्री विधायक सांसद आदि हैं फिर कौन पूछेगा इन्हें !हम तो हमेंशा के लिए हैं !ये तो अभी कल तक धक्के खाते यहीं घूमते रहे आज आए  हमें आदेश देने !
    स्वाभाविक भी है जिसने किसी को कभी भीख माँगते देखा हो उसके दिमाग में तो हमेंशा वही छवि बनी रहेगी वो अपना स्वभाव कैसे और कितना  बदल लेगा ! 
    अधिकारी कर्मचारी काम ही करते तो जनता नेताओं के यहाँ चक्कर क्यों लगाती सिफारिस के लिए !

Wednesday, 26 July 2017

राष्ट्रपति रामनाथ कोविद जी की विशेषताएँ बताने में दिवालिया दिखा मीडिया !

     अपने देश के सर्वोच्च पद पर बैठने वाले महापुरुष के विषय में कुछ  तो बताया जाता ! उनके उन विशिष्ट गुणों योग्यताओं सामाजिक कार्यों जनहितकारी आंदोलनों विशिष्ट प्रतिभाओं लोकोपकारों एवं प्रसिद्धि कारणों के विषय में अधिक से अधिक जानना चाहता है देश !मीडिया घर वालों के मुख में माइक लगाकर बार बार पूछ रहा था कैसा लग रहा है कैसा लग रहा है !अरे अपने घर का कोई व्यक्ति ऊँचे उठे तो सबको अच्छा ही लगता है फिर जिसने जिस पद प्रतिष्ठा का सपना ही न देखा हो वो तो और अधिक आनंदित होगा ही !
     अपनी जिन विशेषताओं के कारण लोग ऐसे सर्वोच्च पदों तक पहुँचने में सफल हो पाते हैं !अपने महापुरुषों से अनुपमेय पावन प्रेरणाएँ पाकर न जाने कितने लोग अपना जीवन बदल लेते हैं !इसलिए ऐसे गुणग्राही लोगों का भी ध्यान रखे मीडिया !
 लोकतंत्र के पावन पर्वों पर पूरा  देश टकटकी लगाए बैठा होता है अपने महापुरुषों के विषय में बहुत कुछ जानने समझने के लिए !युवा वर्ग उनके आदर्शों से प्रेरणा लेने के लिए उत्साही  रहता है !ऐसे गुणों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करता है और वैसा  बनने के विषय में सोचता है |
   विशेष कर सर्वोच्च पदों पर पहुँचने वाले ऐसे महापुरुषों के विषय में लोग वो विशेषताएँ खोजना चाहते हैं जो अन्य लोगों में खोजने पर भी आसानी से नहीं मिलती हैं यही विशेषताएँ उन्हें देश के सर्वोच्च पद लायक सिद्ध करती हैं और ऐसी ही उनकी योग्यता त्याग तपस्या एवं समाज के लिए किए गए संघर्षों आदि से प्रेरणा लेकर लोग उनके आदर्शों के प्रति श्रद्धा पूर्वक नतमस्तक होते हैं !क्योंकि श्रद्धा किसी के प्रति बनाई नहीं जा सकती है अपितु स्वाभाविक होती है | ये तो मन की स्वाभाविक अवस्था है जो महापुरुषों के विशिष्ट आचारों व्यवहारों परोपकारों आदि से प्रभावित होने के कारण समाज के मन में स्वतः बनती है !दूसरों में दुर्लभ ऐसे गुण समाज अपने महापुरुषों में खोजता है जिन्हें अपने जीवन में उतार कर वो भी उतनी योग्यता हासिल कर सके !
    इसलिए बहुत आवश्यक है कि महामाहिम की उन विशिष्ट योग्यताओं सामाजिक कार्यों दीन दुखियों गरीबों के लिए किए गए संघर्षों  सामाजिक अभियानों आंदोलनों  आदि के द्वारा समाज में लाए गए परिवर्तनों के विषय में ऐसा कुछ तो बताया जाता जो समाज को सर्व साधारण में देखने सुनने को नहीं मिलता है !वैसे भी अपने विशिष्ठ महापुरुषों के  विषय में जानने का समाज को अधिकार होता है !तभी तो लोग अपने घरों में महापुरुषों के चित्र लगाते हैं उनके चरित्र पढ़ते समझते और उनसे प्रेरणा लेते हैं | इसी भावना से मैं भी मीडिया के व्यवहारों को देखता सुनता रहा !मीडिया इस संपूर्ण प्रकरण में पक्षपाती बना रहा !ऐसे सर्वोच्च पदों पर पहुँचने वाले महापुरुष आम राजनेता  नहीं होते जिनकी प्रतिष्ठा को बिगड़ने के बाद दोबारा नहीं बनाया जा सकता है ये तो एक बार में ही बनानी होती है वही छवि हमेंशा सहेज कर रखनी होती है |श्रीमान आडवाणी जी हाथ जोड़े खड़े हैं और PM साहब.....!बस इतनी सी विशेषता है इस चित्र में - 

see more... http://navbharattimes.indiatimes.com/photomazza/national-international-photogallery/images-of-president-ramnath-kovinds-oath-taking-ceremony/narendra-modi/photomazaashow/59757746.cms

     देश के सर्वोच्च पद के लिए विशिष्ठ गुणों का होना आवश्यक होता है |किसी का जन्म गरीब घर में होना किसी फूस की झोपड़ी या सामान्य घर में होना,मातापिता या उनमें से किसी एक की मृत्यु बचपन में ही हो जाना ,दस पाँच किलोमीटर पैदल चलकर या नदी तैर कर स्कूल जाना,विद्याध्ययन करना डिग्रियाँ हासिल करना  जैसी उपलब्धियाँ यदि खोजी जाएँ तो समाज में बहुत लोग ऐसे मिल जाएँगे जिनका जीवन इससे बीसों गुणा अधिक संघर्षपूर्ण  निकलेगा | खोजे जाएँ तो उनकी भी संख्या  लाखों में हो सकती है  जिन्होंने अपने को अत्यंत गरीबी में सभी साधनों से हीन  होने के बाद भी बहुत विशिष्ट स्थित हासिल किया है |ऐसे महापुरुष अभी भी राष्ट्र निर्मात्री प्रतिभाओं  का निर्माण करने में बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं|जिन्हें पद प्रतिष्ठा का कोई लालच ही नहीं है उनका तो काम बोलता है और पद न पाकर भी समाज उन्हें अपना आदर्श मानता है |
     जिनका काम नहीं बोलता या उन विशिष्ट पदों के  योग्य नहीं होते वो बड़े पद पाकर भी बदनाम हो जाते हैं लोग उन्हें चाटुकार चतुर एवं दंद फंद आदि से बड़े पद हासिल करने वाला मानने लगते हैं |किसी की सोच पर लगाम कैसे लगाई जा सकती है|जिससे उच्च एवं सम्मानित पदों पर पहुँच कर भी उन्हें समाज की वो आस्था सुलभ नहीं हो पाती है | उनके ऊपर समाज की अँगुलियाँ उठने लगती हैं | 
      किसी बड़े पद पर पहुँचकर अपने को विवादित न होने देने के भी कई कारण होते हैं पहले तो वैसी परिस्थिति ही पैदा न हुई हो ,दूसरा कारण योग्यता का अभाव या नौसिखियापन हो सकता है तीसरा बड़ा कारण कुछ न करना हो सकता है !
    कई राजनैतिक पार्टियों में ऐसे नेता मिल जाएँगे जो अपने मातृ संगठनों या पार्टी मालिकों को खुश रखने के लिए केवल उनके चरणों को चूमते रहते हैं बाकी कुछ करते ही नहीं हैं जब कुछ करेंगे ही नहीं तो छवि स्वच्छ पवित्र तो बनी ही रहेगी इससे वे बड़े बड़े पदों पर आजीवन आसीन रहते हैं | 
    ऐसे लोगों के जीवन को व्यक्तिगत तौर पर देखा जाए तो कोई विशिष्ट व्यवहार नहीं दिखता जिसकी तुलना औरों से करके उन्हें विशेष उन्नत आदर्शों का धनी सिद्ध किया जा सके !बड़े पदों पर पहुँचने वाले ऐसे लोगों के क्षेत्र जिले आदि में उनके बारे में लोगों से पूछ दिया जाए तो वे उनके उन्नत सामाजिक कार्यों  संघर्षों लोकोपकारी अभियानों  के विषय में चाहकर भी कुछ बता ही न  पाते  हों !
   ऐसी परिस्थिति में मीडिया मजबूर हो जाता हो ये दिखाने के लिए कि उन्हें खाने में क्या पसंद है पहनने में क्या पसंद है किस रिस्तेदार के साथ उनका वर्ताव कैसा रहता है फोन आता है या नहीं उनके साथ कौन खेला है कौन पढ़ा है कौन पड़ोस में रहता है कौन दूर आदि |              बचपन में उनके साथ किसने क्या क्या किया है वो उन उन स्मृतियों को बताने लगते हैं जो बात व्यवहार दुर्लभ नहीं होते प्रायः हर किसी के जीवन में देखे जाते हैं किंतु ऐसी बातें तो विवाह करने के लिए जब दूल्हा देखने लोग आते हैं उन्हीं के मुख से शोभा देती हैं जो पड़े पदों पर पहुँचने वाले लोगों के विषय में दिखाने लगता है चाटुकार मीडिया !
    मीडिया का ऐसा पूर्वाग्रह महापुरुषों के विषय में ठीक नहीं है जिससे चाटुकारिता झलकती हो !उसे विशिष्ट बातें खोज कर लानी चाहिए जिससे विशेष झलकती हो !वही स्थिति गुग्गल की है केवल व्यक्तिगत जीवन की बातें क्या उसे ये पता नहीं है कि सर्वोच्च पदों पर पहुँचने वाले लोगों का व्यक्तिकम सामाजिक  जीवन अधिक महत्त्व रखता है इसलिए महापुरुषों के व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ सामाजिक जीवन की विशेषताओं को अवश्य परोसा जाना चाहिए !
    मीडिया में चल रहे एकाध चित्र और टिप्पणियाँ मैंने ऐसी देखीं जिससे मुझे ये लेख लिखने के लिए बाध्य होना पड़ा !जिन्हें देखकर मैं रात भर सोचता रहा कि जिस पार्टी का मातृसंगठन वैचारिक दृष्टि से इतना संपन्न हो जिस पार्टी का वजूद ही प्रतिभाओं के प्रोत्साहन के लिए जाना जाता हो खुद चाटुकारितावादी देश की सबसे पुरानी  पार्टी को पीछे करके अपने को खड़ा किया हो जिसमें एक एक पदाधिकारी का चयन इतनी बारीकी से किया जाता हो कि हमारे जैसे दो चार विषयों से MA ,Ph.D टाइप की दो चार डिग्रियाँ ले लेने वाले  या सौ पचास किताबें लिख चुकने वालों को मंडल अध्यक्ष पद तक के लायक भी न समझा जाता है see more....http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/drshesh-narayan-vajpayee-drsnvajpayee.html
  इतनी कसौटियों पर कस कर जिस पार्टी में पदाधिकारियों का चयन किया जाता हो !उस पार्टी ने अगर देश के सर्वोच्च पद के लिए किसी प्रत्याशी का चयन किया होगा तो वो विशिष्ट होगा ही इसमें कोई किन्तु परंतु की बात ही नहीं है !मीडिया को भी इस बात को ऐसा ही समझना चाहिए और साथ ही  पत्रकारिता के धंधे में चाटुकारिता छोड़कर गुण ग्राही बनना चाहिए !
    बहुत बड़े लोगों के बीच प्रसंगात मैंने चतुराई पूर्वक जो थोड़ी से चर्चा अपनी भी कर दी है उससे किसी को ठेस लगी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ !इस देश में ब्राह्मण होने के नाते राजनैतिक दलों और राजनेताओं की नज़रों से हम सवर्ण लोग इतने अधिक गिरे चुके हैं कि हमारी अत्यंत परिश्रम पूर्वक हासिल की गई योग्यताओं संघर्षों अनुपमेय प्रतिभाओं को भी नजअंदाज कर दिया जाता है कई बार तो ऐसा लगने लगता है कि नेता लोग सवर्णों को भारत का नागरिक मानते भी हैं या नहीं !जहाँ सर्वोच्च पदों के  प्रत्याशियों के चयन के समय उनकी योग्यता प्रतिभा लोकोपकारी कार्यों आंदोलनों संघर्षों को बताने की जगह उनकी जाति  बतानी जरूरी समझी जाने लगे तो ऐसा समाज कभी जाति  मुक्त हो पाएगा इसकी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए !
      मेरा विचार है कि सर्वोच्च पदों पर पहुँचने वाले लोग देश के संपूर्ण निवासियों की आस्था के केंद्र होते हैं उनकी पहचान जाति क्षेत्र संप्रदाय से बहुत ऊपर स्तर की बनाई जानी चाहिए ताकि सारा देश उन्हें अपना आदर्श पुरुष मान सके !

Monday, 24 July 2017

कलेक्टरों को उल्टा टांग देंगे उन्हें कलेक्टरी करने लायक नही छोड़ेंगे-CM म.प्र.

"शिवराज बने ‘नायक’:कलेक्टरों को उल्टा टाँगने का ऐलान"seemore.....http://navbharattimes.indiatimes.com/state/madhya-pradesh/bhopal/indore/shivraj-warns-collectores-with-dire-consequences/articleshow/59727384.cms 
      मुख्यमंत्री जी !माना कि उतने वोट काम करके नहीं मिलते हैं जितने दूसरों को बदनाम करने से मिलते हैं किंतु इतने लंबे समय से सत्ता में आप हैं तो विपक्षियों की निंदा आप करेंगे किस मुख से और जनता सुनेगी ही क्यों ?इसलिए विपक्षी नेताओं की जगह अपने ही अधिकारियों पर निशाना साध लिया !ये बिल्कुल नया प्रयोग है ईश्वर आपकी मनोकामना पूर्ण करे !
      मुख्यमंत्री जी !ये सरकारी काम काज का ढंग ही है जिसके लिए अकेले वे कैसे दोषी हो गए !
    वैसे भी  CM मुख्यमंत्री बनने के बाद 12 वर्ष तक इस सच्चाई को समझ पाने में जो असफल बना रहा हो कि  अधिकारी कर्मचारी काम नहीं कर रहे हैं और अपनी कमजोरी अब याद आ रही हो ऐसे  मुख्यमंत्री को ही गैर जिम्मेदार क्यों न माना जाए और उसका ये बयान दिखावटी क्यों न माना जाए !
      अरे शिवराज सिंह जी ! अब तो देश का बच्चा मानता है कि जिस काम के लिए जो अधिकारी रखे गए हैं वो काम इसलिए नहीं होता है कि काम के स्थानों पर आराम के इंतजाम सरकार ने इतने अधिक करवा रखे हैं कि आफिस पहुँचते ही नींद आने लग जाती है|संतरी कह देता है कि साहब मीटिंग में हैं !जनता उनसे कुछ पूछने की हैसियत नहीं रखती और सरकार के पास इतना पता करने का न समय है न जरूरत !इसलिए सरकारी कार्यालय आजादी से आजतक सोते चले आ रहे हैं !कर्मचारियों की सैलरी पेंसन  सरकार खाते में पहुँचाती जा रही है |सरकार का निगरानी तंत्र इतना नाकाम है कि जो बिल्कुल काम न करे उसकी भी शिकायत सरकार तक कैसे पहुँच पाएगी और कौन पहुँचा पाएगा !   
     जिस कम्प्लेन  की जाँच करने कर्मचारी जाते हैं वहाँ जो जो घूस देता है वो निर्दोष होता है और जो नहीं देता है सारा दोष उसी के मत्थे मढ़कर उसी के विरुद्ध भेज देते हैं रिपोर्ट !
      रही बात सरकारों में उच्च पदों पर बैठे नेता लोग उन्हें केवल दो जिम्मेदारी सँभालनी होती हैं पहली मीडिया में कुछ अच्छा बोलने के लिए जिससे जनता का ध्यान भटकाया जा सके तो दूसरा गरीबों की भलाई करने के लिए हो हल्ला मचाया जा सके क्योंकि वोट काम करके नहीं अपितु दूसरों को बदनाम करके आसानी से लिया जा सकता है | जनता की आँखों में धूल झोंककर ही लेना होता है वोट !उसके प्रयास में संपूर्ण समय लगे रहते हैं नेता लोग !
   आजादी के बाद आजतक सरकार के नाम पर ऐसे ही खेल खेले जा रहे हैं !काम के लिए जनता पार्षद के पास जाती है विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री तक सबके पास जाती है जो मिलता है उससे मिल लेती है जो नहीं मिलता है वहाँ से लौट आती है !जनता के काम करने के लिए अधिकारी कर्मचारी स्वतंत्र होते हैं वो काम करें न करें !जनता का दबाव वो क्यों मानेंगे आखिर अधिकारी हैं जनता की क्या औकात जो उन पर दबाव डाले और सरकार दबाव डालेगी क्यों ?उसका अपना तो कोई काम रुकता नहीं है | वैसे भी सरकार की नैया डुबाने तारने वाले वही होते हैं | 
    आजादी के बाद आजतक इसी गैरजिम्मेदारी के साथ घसीटा जा रहा है लोकतंत्र किसी विभाग में कोई जिम्मेदारी समझता ही नहीं है | सरकार तो सरकार है सरकार जनता के कामों से सरोकार रखे तो सरकार किस बात की !इतनी संवेदनशील बात जिस पार्टी के मुख्यमंत्री को 12 वर्षों बाद समझ में आई कि अधिकारी काम नहीं करते हैं उस पार्टी के प्रधानमंत्री को देखो ये बात कब समझ में आती है जो तरह तरह की घोषणाएँ तो किया करते हैं योजनाएँ बना बना कर परोसा करते हैं किंतु उनकी बात उनके अधिकारी कर्मचारी मानते कितनी हैं इस सच को तो केवल जनता समझती है जिसे हमेंशा फेस करना पड़ता है ! वो यदि अपनी पीड़ा बताना भी चाहे तो बोलने बताने के लिए माध्यम बहुत हैं  किंतु शिकायत कहीं भी भेजो तो न कार्यवाही होती है और न ही जवाब आता है | न जाने सरकार कहाँ रहती है और कितनी जागरूकता से काम कर रही है जो जिनके लिए काम कर रही है उन्हें ही बताना पड़ रहा है कि हम काम कर रहे हैं |
     सुना है कि सोशल साइटों में तो केवल सरकार एवं सरकार में बैठे लोगों की निंदा करने संबंधी बातों पर ही ध्यान दिया जाता है उन्हीं का संग्रह किया जाता है और उन्हीं पर कार्यवाही की जाती है तब से मैंने भी लेटर लिखने बंद कर दिए पहले तो मैं भी लिखा करता था किंतु सच्चाई समझने के बाद मन ही नहीं हुआ लिखने का | रही बात जनता की तो जनता बेचारी तो बनी ही भटकने के लिए है भटका करती है सरकार के इस द्वार से उस द्वार तक शायद कहीं उसकी भी आवाज सुन ली जाए किंतु जनता को जीवित मानने वाले हैं कितने नेता अधिकारी कर्मचारी लोग !!   


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Saturday, 22 July 2017

संबंधों की संस्कृति को जिंदा रखना जरूरी ! संबंधों की त्रासदी से जूझते समाज का बेचारगी भरा जीवन जवानी और बुढ़ापा कैसे बिता रहे हैं लोग !

प्रेमी और प्रेमिका के संबंध  तो प्रेम संबंध और बाक़ी सब संबंध बिना प्रेम के चल जाएँगे क्या ?
     जहाँ मूत्रता संभव वहाँ तो मित्रता और बाक़ी सब ?चले तो चले नहीं अपनी बला से !आखिर बाकी संबंधों की जरूरत समाप्त क्यों होती जा रही है ?जहाँ मूत्रता  नहीं वहाँ की मित्रता कभी भी तोड़ने को तैयार बैठे रहते हैं हम लोग केवल थोड़ा बहाना भर मिले !
   मूत्रता के लिए तो पार्कों पार्किंगों कूड़ा दानों झाड़ियों के पास कहीं भी प्रेमी और प्रेमिकाओं पर स्नेह उड़ेलने को तैयार फिरते हम लोग !वहाँ भी जहाँ दूसरा सेक्सपॉट पहले से अच्छा मिला तो पहले वाले को छोड़ने के लिए कितनी नीचता तक उतर जाते हैं प्रेम से लबालब दिखने वाले कामी लोग !हत्या आत्महत्या जैसे क्या क्या गुल नहीं खिलाए जा रहे हैं | ये प्रेम संबंध कैसे कहे जाएँ इससे अधिक निर्वाह तो पशुओं में भी होते देखा जाता है |
     इसी उपेक्षा के शिकार होते जा रहे हैं परिवार माता पिता भाई बहन नाते रिस्तेदार आदि क्यों ?क्या उनका आप पर कोई अधिकार नहीं होना चाहिए पुरुषों के ससुराल की और समिटते जा रहे हैं संबंध किंतु ससुराल वालों की भी तो अपनी ससुराल होती है वे अपनी  ससुराल वालों की ओर भाग रहे हैं इस अंतहीन भाग दौड़ में छूटते जा रहे हैं सबके अपने !फ़ोकट के गिफ्ट समेटे घूम रहे होते हैं आत्म सम्मान विहीन अपनों को छोड़ आते बेचारे 'फूफा' लोग !
    ससुराल तो आर्थिक कम्पटीशन का अखाड़ा है जहाँ जितना खर्च करोगे उतना महत्त्व इसके अलावा अपनापन दिखाने के लिए किसी और प्रकार का समर्पण काम नहीं आता !उस मूल्यांकन की मंडी तुरंत लेबल लग जाता है कि आप हैं क्या ?इसीलिए तो कहा जाता है कि आदमी की औकात उसकी ससुराल से जाती है इसीलिए तो अपनी औकात बनाए और बचाए रखने की बलिवेदी पर चढ़ाए जा रहे हैं सारे स्वजन संबंध !खाली हाथ माँ के पास तो जा सकते हैं किन्तु ससुराल नहीं !फिर भी माता पिता की उपेक्षा !वृद्धाश्रमों की जरूरत  क्यों ?बासना के लिए इतना बड़ा बलिदान !!ये भूल बुढ़ापे में फाँस की तरह कसकेगी जब बासना भी साथ छोड़ देगी और संबंध हम स्वयं छोड़ चुके हैं उस समय कितना कठिन होता है यह सोच कर सहना कि अब केवल मरने की प्रतीक्षा में जीना पड़ता है किसी को जरूरत नहीं होती है हमारी !पहले जब हम संबंधों के लिए जीते थे तो संबंध भी हमारे लिए जीते थे !बुढ़ापे में पौत्र पुत्रियाँ कितना इतना आनंद दिया करते थे कि पता ही नहीं लगने पाता था कि कब बुढ़ापा बीत गया !बहुएं भी सास  ससुर की अनुपस्थिति के विषय में सोचकर सिहर उठा करती थीं उनके न रहने पर महीनों हिलकियाँ रोके नहीं रुकती थीं !वो सास बहुओं का स्नेह बनावटी नहीं था अब तो सास बहू और साजिश को पसंद कर रहे हैं लोग अन्यथा चल क्यों रहे हैं ऐसे सीरियल !हमारी मानसिकता इतनी बिगड़ चुकी है और हम इस गलतफहमी में जी रहे हैं कि हम विकास कर रहे हैं !गाड़ियाँ दरवाजे जाने का मन होता है किंतु जाएँ सरे सम्बन्ध समाप्त हो चुके हैं केक काटने के लिए जिस दिन जो बुला लेता है वो दिन व्यस्त बीत जाता है केकों और पार्टियों के सहारे कब तक ढो ली जाएगी जिंदगी ऐसे  कितने दिन काट लेंगे हम लोग !मोबाईल जेब में पड़े हैं किंतु बात किससे करें! समाज इस त्रासदी से जूझ रहा है जिसकी ओर आज ध्यान नहीं दिया जा रहा है किंतु इस मानसिक आराजकता को ऐसे कब तक खींच लिया जाएगा !
     जिन्होंने जन्म दिया है पालन पोषण किया है मल मूत्र साफ किया है लोरियाँ सुनाई हैं सुखद बचपन बिताया है आपके साथ ! उन्हें व्यस्तता समझाना और उनके पीछे पीछे दुम हिलाते फिरना जो  नहीं डालते !
     इसलिए जहाँ सेक्स वहाँ संबंध बाकी सब बेकार वाली पाश्चात्य विचार धारा से बाहर निकलना होगा और अपने प्रति अपनापन उड़ेलने को तैयार अपनों की भी भावनाओं का समादर करना होगा !
 

Friday, 21 July 2017

दलितों और पिछड़ों को जातियों के नाम पर सब कुछ तो मिल गया !अब तो आरक्षण लौटा दो !

आरक्षण अभिशाप है वो किसी भी प्रकार का क्यों न हो !सफल लोकतंत्र की पहचान सभी के लिए संभावनाएँ समान !किसी जाति ने किसी जाति का कभी शोषण नहीं किया यदि ऐसा होता भी तो कोई सहता भी क्यों ?दलितों पिछड़ों की तो संख्या भी सवर्णों से बहुत अधिक थी !इसलिए आत्म सम्मान बनाए और बचाए  रखने के लिए अपनी योग्यता कर्मठता और परिश्रम से अधिक सुख सुविधाएँ पद प्रतिष्ठा आदि पाने का लोभ रखा जाए न कि जातियों से !
    दलितों पिछड़ों को अब तो जातियों की कमाई खानी बंद कर देनी चाहिए अथवा सरकार को समाप्त कर देना चाहिए सभी प्रकार के जातिगत आरक्षण समेत जातियों के आधार पर मिलने वाली अन्य सभी सुख सुविधाएँ !
     लोकतंत्र के लिए कितने लज्जा की बात है जब देश के बड़े बड़े पदों पर विराजमान किए जाने वाले प्रत्याशियों का चयन जातियों के आधार पर किया जाने लगा हो फिर भी आरक्षण और जातिवाद के लिए सवर्णों को दोषी ठहराया जाना कहाँ तक न्यायोचित है ! महान जाति वैज्ञानिक उन महर्षि मनु की निंदा की जाती है जिनकी लेखनी के आधार पर ही बनी जातियों की आरक्षणी कमाई खाने पर तुले हुए हैं बड़े बड़े लोग !
    महर्षि मनु और उनकी बनाई हुई जातियों से यदि इतनी ही बड़ी घृणा है तो जातियों के आधार पर पद प्रतिष्ठा पाने वाले ,शिक्षा नौकरी आदि समस्त प्रकार की सुख सुविधाएँ पाने वाले लोगों को चाहिए को वो अपने लालच परलगाम लगावें और लौटा दें सारे पद प्रतिष्ठा समेत वो सारी सुख सुविधाएँ जो उन्हें जातियों के आधार पार प्राप्त होती हों !
     दुर्भाग्य की बात है कि जातिवाद का विरोध करने वाली देश की दो सबसे बड़ी पार्टियाँ जातिवाद की मानसिकता से इतनी बुरी तरह ग्रस्त हैं कि देश केउच्च पदों के लिए भी प्रत्याशियों का चयन करते समय जातियों को ही आधार बना लेती हैं ?
    देश में यदि लोकतंत्र  है तो प्रत्येक व्यक्ति को समान क्यों न माना जाए !योग्यता और अनुभव को आधार क्यों न बनाया जाए !जातियाँ क्यों ?
      देश के उच्च पदों पर बैठे लोगों के प्रति सारे देश के मन में आदर्श एवं सम्मान की भावना होनी चाहिए किंतु जब शुरुआत ही जातिवादी भावना से की जाएगी तो सम्मान भी जातियों के हिसाब से ही मिलेगा !जबकि देश के सम्मान स्वाभिमान के प्रतीक बड़े पद पर बैठा व्यक्ति जाति संप्रदाय से ऊपर उठकर देशवासियों के लिए सहज आस्था पुरुष के रूप में स्वीकार कर लिया गया हो !
      जब शुरुआत ही  दलित शब्द से की गई हो न केवल इतना अपितु सारे देश में ये सन्देश पहुँचाने का प्रयास भी किया गया कि दलित होने के नाते .... !अन्यथा नाम घोषित करते समय जाति की चर्चा करनी क्यों जरूरी थी !कलाम साहब के समय तो ऐसा नहीं किया गया था उनके तो गुणों कार्यों को ही आगे रखकर उनका चयन किया गया था !श्री मुखर्जी के साथ भी ऐसा ही हुआ था !होना भी यही चाहिए !क्योंकि राष्ट्रपति जैसे बड़े पद पर पहुँचने वाले  किसी भी व्यक्ति ने अपनी बीते हुए सार्वजनिक जीवन में कुछ तो ऐसा किया ही होगा जिसके आधार पर उसे इस योग्य समझा गया उन गुणों आदर्शों योग्यता आदि को आधार क्यों न बनाया जाए जिससे ऐसे सर्वसम्माननीय पदों पर बैठे लोगों के प्रति सभी जातियों सम्प्रदायों के  मन में उनके प्रति सहज आस्था बन सके !
    देश की  दोनों राष्ट्रीय पार्टियों की ओर से जातिवाद को ही आगे  किया जाने लगा कहा गया कि  दलित प्रत्याशियों का चयन किया गया है इस प्रकार के प्रचार से परेशान होकर सफाई में प्रत्याशियों को स्वयं बाहर आकर  जाति भावना का खंडन करना पड़ा !किंतु अपनी अपनी पार्टियों से ये पूछने का साहस किसी प्रत्याशी ने शायद ही किया हो कि दलित होने के अलावा मेरे अंदर ऐसे और कौन कौन से सद्गुण थे जो दूसरों में नहीं थे इसलिए गुण गौरव के आधार पर यदि मुझे प्रत्याशी बनाया गया है तब तो ठीक है यदि जाति के कारण मुझे इस योग्य समझा गया तो मुझे स्वीकार्य नहीं है क्योंकि हम जातिवादी नहीं हैं ऐसा कहते हुए जातिवाद के विरोध में बड़ा बलिदान किया जाना चाहिए था ! यदि योग्यता के आधार पर चयन सिद्ध हो जाता तब तो आदर्श चयन होने के कारण न केवल उस तरह का सम्मान होता अपितु दलित राग समाप्त किया जाना बहुत आवश्यक था जो नहीं हो सका !
      देश की एक नेत्री का ये कहना कि राष्ट्रपति चुनाव में विजय किसी की हो किंतु राष्ट्रपति दलित ही बनेगा !ऐसी बातों से कहीं ये लगता है क्या कि जातिवाद समाप्त करने के विषय में नेता सोच भी रहे हों !ऐसा तो नहीं चलेगा कि जहाँ कुछ मिलने लगे वहाँ दलित बनकर ले लिया जाए और वैसे जातिवाद की निंदा की जाए या जातिवाद सवर्णों और महर्षि मनु के मत्थे मढ़ दिया जाए !
    देश के राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमन्त्री जैसे बड़े पद हैं वहाँ जिस भी जाति वर्ग के लोग पहुँच जाते हैं उन्हें स्वयं चाहिए कि वे अपने जाति वर्ग के लोगों की आरक्षण समेत सभी जातिजनित सुख सुविधाएँ प्रभाव से बंद करने की घोषणा करें !
     दलितों और पिछड़ों के शोषण की झूठी कथा कहानियाँ गढ़ गढ़ कर देश के सर्वोच्च सारे पद सवर्णों से छीन लिए गए इसके बाद भी और कितनी  सवर्णों से धैर्य की अपेक्षा की जा सकती है ! भारत वर्ष को बिखरने से बचाए रखने के लिए इस देश के लोकतंत्र को जीवित बनाए रखने के लिए देश के सवर्णों से और कितनी कुर्वानी जाएगी !कितनी कठोर परीक्षाओं से गुजरना होगा !धैर्य की भी कोई तो सीमा होती ही होगी ! देश का शीर्ष नेतृत्व यदि इसी प्रकार का पक्षपाती बना रहा तो लोकतंत्र की पवित्र परिपाटी को लंबे समय तक  बचाकर रख पाना कठिन होगा !
  दलित होने के कारण लोग उन उन सुख सुविधाओं पद प्रतिष्ठाओं को हासिल कर लेते हैं जिनकी दशांश योग्यता भी नहीं होती है उनके पास !योग्य लोग जातियों के नाम पर मिलने वाले लाभ का लोभ छोड़कर नमक रोटी खाना पसंद करते हैं !ये स्वाभिमान का विषय है गरीबत का नहीं  है सम्मान माँगने से नहीं मिलता है कृपाकरके यदि कोई देने भी लगे तो ऐसा सम्मान अपमान से अधिक दुखद होता है !
      बनारस में पढ़ता था अस्सी चौक पर जब जब सब्जी खरीदता था तो वो धनियाँ की पत्ती बिना पैसा लिए थोड़ी सी डाल दिया करता था !वहाँ की भाषा में संभवतः इसे घायल देना बोलते हैं बड़े बड़े लोग बड़े ठाट से सब्जी वालों से घाल माँग लेते हैं इसी प्रकार मैं भी लेकर चला आया करता था !जब धनियाँ महॅंगी होने लगती थी तब वो फ्री वाली घायल बंद कर दिया करते थे !एक बार महँगाई का ही समय था एक दिन मैंने सब्जी खरीदी सब्जी खरीदी मैं चलने लगा तब उसने थोड़ा धनियाँ पत्ती भी डाल दिया मैं ख़ुशी ख़ुशी लेकर चलने लगा तब तक उसने कह दिया कि आप ब्राह्मण हो इसलिए दे दिया वैसे बहुत महँगी हो गई है इसलिए देते नहीं हैं मैं चौंक गया !बचपन से उस समय तक का जीवन अचानक मन में कौंध गया कि मैं 5-6 वर्ष का था तब पिता जीका निधन हो गया था बड़ी गरीबत में माता जीने हम दोनों भाइयों का पालन पोषण किया !किंतु हमें कभी किसी ने कुछ ब्राह्मण होने के नाते देने की कोशिश की तो कभी नहीं लिया !वो ब्राह्मणत्व आज चार पत्ती धनियाँ की लेकर नीलाम हो रहा था मैं काँप गया और धनियाँ वापस कर दीं !मुझे याद आ गया मेरे पिता जी ने एक बार उनके घर अपनी बानी हुई सब्जी भेजवा दी थी जिनके खेत से धनियाँ की पत्ती चुपके से लाकर हमारी दीदी ने सब्जी में डाल दी थीं !उस नाई परिवार के सदस्य उस बात को बड़े प्रेम से हमें बार बार बताया करते थे और प्रसन्न हो लिया करते थे !
     मैंने गरीबत में भी गौरव बनाए रखा औरअपना ब्राह्मणत्व कभी नीलाम नहीं होने दिया !अच्छे पद प्रतिष्ठा प्राप्त करने की या अच्छा खाने पहनने की इच्छा किसकी नहीं होती है अर्थात सबकी होती है किंतु जो अपनी इच्छा पर संयम करके अपना सम्मान स्वाभिमान बचा लेता है उसके आत्म गौरव की बराबरी नहीं की जा सकती !
     1989-90 की बात है बनारस में दलितों की एक रैली थी मंच पर भाषण हो रहे थे एक नेता सवर्णों  विशेष कर ब्राह्मणों को बार बार ललकार रहे थे कि सवर्णों ने हमारा शोषण किया है हम बदला लेकर रहेंगे ! उस समय गरीबी के कारण मेरा किसी किसी दिन ही भोजन हो पता था स्वयंपाकी जीवन था !उन नेता जी का भाषण बहुत चुभा हॉस्टल गया रात भर सो नहीं पाया बारबार कसकती रही वो बात  !एक तरफ तो बचपन से तब तक का अपना गरीबीयुक्त संघर्ष पूर्ण जीवन दूसरी ओर शोषण के आरोप ! नहीं सह पाया इसी बीच आरक्षण आंदोलन में बिहार के कुछ सवर्ण लड़के पटना में पुलिस की गोलियों से मारे गए उसमें से एक शैलेन्द्र सिंह जी का बनारस हरिश्चंद घाट  पर अंतिम संस्कार किया गया !वो बड़े दुखद क्षण थे उसी समय मैंने दुखी होकर यह निश्चय किया था कि जब तक ये सिद्ध नहीं कर दूँगा कि ब्राह्मणों और सवर्णों ने दलितों का कभी शोषण नहीं किया तब तक सरकारी नौकरी के फार्म पर कभी साइन नहीं करेंगे इतनी शिक्षा लेने के बाद भी कभी कहीं किसी से नौकरी न माँगने के संकल्प पर अडिग हूँ !
     दलित पिछड़े लोग जातियों के नाम पर बहुत कुछ माँगने को तो तैयार हैं किंतु सरकार खुले मंच पर खुली बहस कराने को तैयार नहीं है जिससे पता तो लगे कब शोषण हुआ किसने शोषण किया उनके पास ऐसा था क्या जिसे सवर्णों ने छीन लिया बतावें तो सही ! दलित हमेंशा  छोटे छोटे लालच में फँस कर अपना समय बर्बाद करते रहे अन्यथा प्रतिभाएँ उनके पास भी कम नहीं थीं उन्होंने जबरदस्ती सिद्ध किया कि वे कुछ करने लायक नहीं हैं !
      मैंने किसी से न कुछ माँगा और न ही कुछ लिया बनारस में भी15 वर्ष रहा हमारे बहुत मित्र आज भी साथ जुड़े हैं कुछ लोग फेस बुक पर भी होंगे सब जानते हैं कि ब्राह्मण होने के नाते हमें कभी कुछ देना संभव नहीं था योग्यता के नाम पर कोई कुछ दे वो लेना न लेना अलग बात थी !संकोच होता था कि जो योग्यता हमारे अंदर नहीं है उस पद प्रतिष्ठा को पाने की इच्छा रखना या उस सुख सुविधा को भोगने की पापपूर्ण भावना भगवान् किसी को न दे !जातिगत आरक्षण के लोभियों के लिए सब  कुछ उचित है | किसी और की कमाई किसी दूसरे का अधिकार कैसे हो सकती है जातिगत आरक्षण यही तो है !
     दलितों का प्रतिनिधित्व  आज देश के सर्वोच्च सम्मानित पदों पर है  और देश का  दूसरा बड़ा पद भी दलितों या पिछड़ों को ही मिलना है और अन्य पद भी दलितों या पिछड़ों को ही मिलने हैं जब यह अघोषित रूप से तय किया जा चुका है तो सरकार ये भी बता ही दे कि वो सवर्णों को इस देश का नागरिक मानती भी है या नहीं !क्योंकि सवर्णों के नाम पर न कोई योजना है न आरक्षण न सुख सुविधाएँ !दलित लोग अब सवर्णों से ऊँचे पदों पर पहुँच चुके हैं इसके बाद भी जातिगत आरक्षण और सभी प्रकार की जातिगत सुख सुविधाएँ माँगना या भोगना शर्म की बात है !

Thursday, 20 July 2017

भ्रष्टाचार सरकार करवाती है या अधिकारी कर्मचारी स्वयं करते हैं ?

  भारत की न्यायपालिका भी भ्रष्टाचारियों से मिली हुई है क्या ?भ्रष्टाचार आखिर रुकते क्यों नहीं हैं !
       घूस लेने वाले अधिकारीकर्मचारियों  को ऐसे पदों पर सरकार ने बैठाया है यही घूसखोरी  करने के लिए ही तो सरकार उन्हें सैलरी देती है यदि ऐसा न होता तो सरकार उन्हें उनके पदों से तुरंत हटा देती किंतु सरकार ने ऐसा किया नहीं इसका मतलब घूस खोरी में सरकार मिली हुई है घूस खोरों पर कार्यवाही करने की दिखावटी धमकी दिया करती है सरकार !
   पूर्वी दिल्ली नगर निगम की एक घटना है K-71,छाछी बिल्डिंग कृष्णानगर दिल्ली -51 नामक   एक सामूहिक बिल्डिंग की छत पर अवैध मोबाईल टावर लगा है !जिसकी परमीशन  न तो बिल्डिंग में बने सोलह फ्लैट मालिकों से ली गई है और न ही EDMC से ली गई है 12 वर्ष हो गए मोबाईल टावर चलता जा रहा है उसका किराया बाहरी लोग लेते जा रहे हैं !EDMC से लेकर दिल्ली सरकार केंद्र सरकार को काई कम्प्लेन किए जा चुके किंतु कोई कार्यवाही नहीं  की गई !12 वर्ष हो गए !अभी भी चलता जा रहा है तब तक चलेगा जब तक अधिकारियों कर्मचारियों को घूस मिलती रहेगी !अवैध होकर जो इतने लंबे समय तक चल सकता है तो वैध कोई क्यों लेगा ! 
       EDMC अधिकारियों की मानी जाए  तो न्याय पालिका घूस खोर है इसलिए चलते हैं ऐसे अवैध काम !क्योंकि प्रायः हर अवैध काम को जब हटाने के लिए कहा जाता है तब निगम के घूस खोर लोग अवैध काम करने वालों को एक नोटिश देकर उन्हें स्टे दिलवा देते हैं इसके बाद खुद कोई पैरवी करते नहीं हैं वर्षों तक मामला खिंचता चला जाता है !जब उनसे पूछा जाता है कि ये अवैध टॉवर इतने वर्षों बाद भी हटाया क्यों नहीं गया !तब वो कहते हैं मैंने तो नोटिश दे दिया किंतु उसने कोर्ट से स्टे ले लिया है !फिर पूछा स्टे कब तक चलेगा तो कहते हैं जब तक जज साहब को घूस मिलती रहेगी तब तक जज साहब स्टे बढ़ाते चले जाएँगे !पूछा गया यदि हटवाना पड़े तो क्या करना होगा !हटेगा नहीं क्योंकि कई मोबाईल टावर वालों ने मिलकर कुछ करोड़ रूपए दिए हैं इसलिए !उतने तुम दे सकते हो तो भले हट जाए !
       मुझे नहीं पता कि EDMC के अधिकारियों के द्वारा मुझे बताई गई बात में कितनी सच्चाई है क्योंकि  कोई प्रमाण नहीं हैं और न ही उनकी बातों की ही कोई रिकार्डिंग ही है किंतु इतना अवश्य है कि ऐसे अवैध कामों के विरुद्ध कोर्ट शक्त क्यों नहीं होता !ऐसे लोगों के विरुद्ध की गई शिकायतें सरकारें सुनती क्यों नहीं है अधिकारी कर्मचारी अवैध कामों के विरुद्ध कोई कठोर कार्यवाही क्यों नहीं करते ?क्या उन्हें दिखते नहीं हैं अवैध मोबाईल टावर अवैध बिल्डिंग निर्माण या अवैध सभी प्रकार के काम काज !और यदि नहीं दिखते हैं तो वो करते क्या हैं सैलरी किसी बात की लेते हैं यदि वो काम उन्हें करने ही नहीं हैं तो बिना काम किए केवल घूस खोरी करने के लिए ही सरकार ने उन्हें पद सौंप रखे हैं क्या ?आखिर उन्हें सैलरी क्यों  देती है सरकार यदि सरकार उनके द्वारा किए जाने वाले भ्रष्टाचार में सम्मिलित नहीं है तो ?यदि नहीं तो ऐसे घूस खोर लोगों को तुरंत सस्पेंड करके  ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों को आज तक दी गई सैलरी वापस ली जाए जिनके क्षेत्रों में किसी भी प्रकार के अवैध काम काज चल रहे हैं या अवैध निर्माण हुए हैं या अवैध बिल्डिंगें बनाई गई हैं | 
      अवैध काम काज चलाए जा रहे हों या अवैध निर्माण हुए हों या अवैध मोबाईल टावर लगाए गए हों !ऐसे सभी कार्यों को रोकने के लिए जिन जिन अधिकारियों कर्मचारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई हो यदि वो इतने अयोग्य थे कि रोकना उनके बैश का नहीं था तो उनसे घूस लेकर सरकार ने उन्हें नौकरी पर रखा क्यों ?और यदि वे योग्य हैं तो अपना काम नहीं करते ऊपर से घूस खोरी करते हैं फिर भी सरकार उन्हें सैलरी देती है !इसलिए ऐसे अपराधों को सरकार की मिली भगत के बिना कैसे किया जा सकता है | 
     
                    

Tuesday, 18 July 2017

'दलित' होने के कारण राष्ट्रपति !तो फिर जो दलित नहीं हैं उनका राष्ट्रपति कौन ?

      " दलित राष्ट्रपति बनने से हूं खुश: मायावती" x                                                                 


 किंतु मायावती जी ! यदि आपकी ख़ुशी का कारण राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का दलित होना है तो आप अकेले खुश हो लीजिए आपका साथ देने वाले जातिवादी मुट्ठीभर आपके चमचे खुश हो लें !ये आपकी गिरी हुई तुच्छ सोच का परिचय मात्र है ये आपका जातिवाद है जिसके लिए सवर्णों को दोषी ठहराती रही हैं आप ! आप जैसे झूठे लोगों ने ग़रीबों को हमेंशा से अपमानित करवाया है गरीब हमेंशा से स्वाभिमानी रहा है जिसे भिखारी सिद्ध करने के लिए आपने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है !ग़रीबों के हाथों में आरक्षण का कटोरा पकड़ाकर अरबों की संपत्ति इकठ्ठा करने वाले आप जैसे दलित नेताओं ने हड़पे हैं दलितों के हक़ और कंगाल कर दिया है दलितों को !जब आप राजनीति में आई थीं कितना धन था आपके पास और आज अथाह सम्पत्तियों की मालकिन हैं आप !कहाँ कमाने गईं कब कमाया  किस काम से कमाया और वो काम किया कब !हमें नहीं सही आप दलितों को ही हिसाब दीजिए कि कहाँ से आया ये धन !अन्यथा स्वीकार कीजिए कि दलितों के लिए बनाई गई योजनाओं के धन से आपने अपना घर भरा है !
       रामनाथ कोविद जी हों या मीराकुमार जी जैसे सक्षम और प्रतिभा के धनी लोगों पर दलित शब्द कभी नहीं चिपकाया जाना चाहिए !क्योंकि ये जाति की कमाई खाने वाले लोग नहीं हैं जाति  के नाम पर इन्होंने न कुछ माँगा है और न ही उन्हें मिला है !ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँचने का अवसर जो इन्हें  मिला है ये उनकी अपनी प्रतिभा है जिससे दोनों लोग उच्च पदों तक पहुँचे !लोकसभा में अध्यक्षपद से विदाई का भाषण मीरा जी का  भूल पाना मेरे लिए संभव नहीं होगा क्या गौरव पूर्ण भाषण था क्या शब्द विन्यास था !अद्भुत !!ऐसे लोगों ने अपने आदर्शों वक्तव्यों एवं प्रतिभाओं से जिस जातीय संकीर्णता को हमेंशा दुदकारा है इन्हें उसी में कैद करने की कोशिश करके उनका अपमान कर रही हैं मायावती जी !ऐसे संकीर्ण नेताओं को रोका जाना चाहिए | 
      वैसे भी  मेरे  विचार से तो 'दलित' शब्द पुनः परिभाषित किया जाए  क्योंकि इस शब्द का अर्थ गरीबों की परिस्थितियों को प्रकट करने में न केवल अक्षम है अपितु अपमान जनक भी है हर किसी के साथ चिपका देना बिल्कुल ठीक नहीं है !सभी जातियों में कुछ लोग जीवंत भी होते हैं वो कैसे सहा लेंगे अपने लिए ऐसे निर्जीव शब्दों का प्रयोग !आज ग़रीबों में भी बहुत प्रतिभा संपन्न ऐसे लोग हैं जो दलित कहलाना पसंद नहीं करते !सम्पूर्ण देश का राष्ट्रपति बनने की जगह केवल किसी वर्ग विशेष का राष्ट्रपति बनना कोई क्यों स्वीकार कर लेगा ! 
        वैसे भी  गरीब होने का मतलब ये तो नहीं होता कि उनका कोई स्वाभिमान नहीं होता और उनमें कोई प्रतिभा नहीं है ग़रीबों में भी बहुत बच्चे आरक्षण जैसी भिक्षावृत्ति को पसंद नहीं करते वो स्वाभिमानी प्रवृत्ति के लोग इस सच्चाई को स्वीकार करते हैं कि जाति और आरक्षण के द्वारा जो कुछ भी पाया जा सकता है उससे सम्मान स्वाभिमान की रक्षा नहीं हो सकती उससे तो केवल पेट भरा जा सकता है और पेट तो पशु भी भर लेते हैं आजादी से आजतक इसी श्रेणी में रखा गया है उन्हें वोट लेने के लिए उनका पेट भरने का आश्वासन दिया जाता रहा है अंडे देने वाली मुर्गी की तरह ही इसे वोट देने वाला वर्ग मानते हैं जातिवादी नेता लोग ! जैसे  दाना चारा देना जरुरी होता है वैसे ही गरीबों को !इतनी तुच्छ सोच है इनकी !
        हमारा बहुमूल्य मानव जीवन हमें पशुओं मुर्गियों की तरह नहीं अपितु मनुष्यों को तरह जीना चाहिए ये हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है हम किसी भी जाति के क्यों न हों !वैसे भी प्रतिभा में  सवर्ण जातियों से अपने को कम क्यों समझना !ऐसा क्यों मानना कि बिना आरक्षण के सवर्ण लोग तो तरक्की कर सकते हैं किन्तु हम नहीं  !क्यों क्या सवर्णों के दिमाग में बुद्धि की कोई अलग थैली लगी होती है क्या ?उन्होंने ने भी त्याग तपस्या संघर्ष और परिश्रम पूर्वक सबकुछ अर्जित किया है जो इसमें पीछे रहा वो पिछड़ता ही चला गया जो सवर्ण भी गरीब हैं उसके भी यही कारण हैं इसलिए सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए कि किसी जाति ने किसी जाति का शोषण नहीं किया अपितु जो सतर्क और संघर्ष शील परिश्रमी रहा वो आगे बढ़ गया !आलसी लोग औरों को कोसते रहे और कर्मठ लोग तरक्की करते रहे इसमें जाति की क्या भूमिका ?वैसे भी यदि किसी के यहाँ बच्चा न हो रहा हो तो  दोष पडोसी के मत्थे मढ़ दिया जाएगा क्या ?यदि नहीं तो ग़रीबों के गरीब बने रहने के लिए केवल गरीब ही जिम्मेदार हैं कोई और नहीं !इसके लिए किसी भी खुले मंच पर मैं खुली चर्चा करने को तैयार हूँ और ये  सच्चाई स्वीकार किए बिना नहीं हो सकता है गरीबों का कल्याण |
      आखिर सवर्ण भी तो गरीब होते हैं उनके बच्चों को आरक्षण जैसी कोई सुविधा नहीं मिलती फिर भी उनमें जो प्रतिभा संपन्न लोग होते हैं वो जैसे संघर्ष पूर्ण ढंग से परिश्रम पूर्वक अपना विकास कर लेते हैं वैसे ही सभी को करना चाहिए !ऐसा करने से अपने मन में हीन भावना नहीं रहेगी !ऐसी पवित्र सोच के धनी लोगों को दलित कहना उनका अपमान है क्योंकि दलित शब्द का अर्थ किसी भी सजीव के लिए प्रयोग करने लायक ही नहीं है पता नहीं क्या सोचकर मनुष्यों के किसी वर्ग के लिए प्रयोग किया जाता ही ऐसा शब्द !
इस विषय में देखें हमारा ये लेख -    

 दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ? फिर पहचानो दलितों को !see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2013/01/blog-post_9467.html  

Friday, 7 July 2017

'योगी' और 'मोदी' की सरकार की भ्रष्टाचार के विरुद्ध हुंकार !50 वर्ष में छुट्टी और लालू जी पर छापे ! इसे कहते हैं सरकार !!

 अब किया जाएगा भ्रष्टाचार पर प्रहार !जो काम करे वो रहे बाक़ी छुट्टी !किसी बर्तन में गन्दा पानी हो ऊपर से साफ पानी भर भी दो तो वो भी गन्दा हो जाएगा !इसलिएग्लास खाली करके स्वच्छ जल भरना चाहिए !
    हे  'मोदी' जी !भ्रष्टाचार के विरुद्ध लालू जी पर कार्यवाही तो ठीक किंतु भ्रष्टाचारी नेताओं की इतनी बड़ी संख्या में केवल लालू जी मिले बाकी सब !उन्हें भी खोजिए जिन्होंने लोकतंत्र को खोखला किया है !
 हे 'योगी' जी !50 वर्ष में रिटायरमेंट वाला प्लान बहुत अच्छा है बल्कि 40 ही कर दीजिए जब तक काम करने का उत्साह तभी तक नौकरी और सैलरी !बाक़ी नए युवाओं को मौका देकर बेरोजगारी दूर की जाए !वो काम भी करेंगे !
    वैसे भी वर्षों से जंग लगे लोहे के पास बिना जंग लगा लोहा रख भी दिया जाए तो उसमें भी जंग लग ही जाता है इसलिए वर्तमान कर्मचारी की अब छुट्टी ही करने में भलाई है बाकी योग्यता के आधार पर फ्रैश भर्तियाँ बिना घूस के करवाइए !
    अधिकारियों की जहाँ तक बात है बहुत पढ़े लिखे ट्रेंड लोगों ने ही कितना राम राज्य ला दिया है UP में सारा प्रदेश रो रहा है भ्रष्टाचार की मार से !इसलिए अब तो कम पढ़े लिखे और अंग्रेजी न बोल पाने वाले अधिकारी भी चलेंगे !बशर्ते !आफिसों में एकांत कमरे की पृथा बंद की जाए !जनता का काम करना है तो जनता के बीच बैठें कहीं एकांत में मुख छिपाकर क्यों बैठना !
      कर्मचारी हैं तो कर्मचारी की तरह रहें अधिकारी किस बात के !जिस देश के प्रधान मंत्री अपने को सवाल मानते हों उस देश में अपने को कोई अधिकारी कहे तो कितना बुरा लगता है !ये अधिकारीपन दिमागों से निकाला जाना चाहिए और कर्मचारीपैन सबके मन में भरा जाना चाहिए !
     भ्रष्टाचार के कारण सोर्स और घूस के बल पर नौकरी पाने वाले सरकारी कर्मचारियों को नौकरी पाते ही सैलरी मिलने लगती है !जिसे अवैध या गैर कानूनी काम कराने होते हैं वे घूस देकर अपने गलत और गैर कानूनी काम करवा भी लेते हैं अवैध बूचड़ खाने जैसी अनेकों कहानियाँ उनके भ्रष्टाचार  गवाही दे रही हैं !ईमानदार और घूस न दे पाने योग्य लोग वर्षों से सरकारी आफिसों के  चक्कर काट काट कर हार थक के निराश होकर चुप बैठ गए हैं सरकारी आफिसों के हालात ऐसे हैं कि कोई काम करना नहीं चाहता किसी में काम करने की योग्यता नहीं हैं किसी का बिना घूस लिए काम करने में मन नहीं लगता है तो किसी का शरीर इस लायक नहीं है कि वो काम करे !किसी को आफिस के समय में बीमारी का बहाना बनाकर सो जाने की वर्षों पुरानी आदत है समय से नींद आ जाती है !
     सरकारी अधिकारी कर्मचारी काम करें भी तो कैसे काम के स्थानों पर इतने आराम के इंतजाम होंगे तो काम करने का मन होगा क्या ?अभी तक तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध केवल भाषण ही दिया जाता रहा है अब लगता है कि कुछ काम भी करेगी भाजपा सरकार !
   

Thursday, 6 July 2017

अवैध जमीनों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करे सरकार लेकिन पक्षपात छोड़कर !


सरकार की जमीनों पर अवैध कब्जे हों या अन्य सभी प्रकार के अवैध कामकाज !इसके लिए केवल सरकारी अधिकारी कर्मचारी दोषी हैं हिम्मत हो तो उन पर कार्यवाही करे सरकार अन्यथा !उनका प्रोत्साहन औरजनता का शोषणये ठीक नहींहै !
     घूसखोर अधिकारी कर्मचारी सरकार से सैलरी लेते हैं और जनता से घूस !सभी प्रकार के अवैध कब्जों और कामों के लिए वास्तविक दोषी हैं वे !सरकार में हिम्मत है तो उन पर कार्यवाही करके दिखावे !सरकार के हर विभाग की भद्द पिटी पड़ी है लाखों रूपए सैलरी देकर भी कोई काम नहीं ले पाती है सरकार !
   सभी प्रकार के अपराधों के लिए जनता कम अधिकारी अधिक दोषी हैं किंतु सरकार हमेंशा अपने अधिकारियों कर्मचारियों को बचा लेती है जनता को लटका देती है शूली पर !
   हमारे शासक विदेशों में जाते हैं वहाँ से सबकुछ सीख आते हैं उन्हें वहां ये सिखाने वाला कोई नहीं मिलता कि कामचोर घूसखोर भ्रष्टाचारी अधिकारी कर्मचारियों को सेवा मुक्त करके उन्हें आज तक दी गई सैलरी वापस लीजिए !यही सबसे बड़ा योग है और यही है सबसे जरूरी और सबसे बड़ा स्वच्छता अभियान भी है  !
   भारी भरकम सैलरी देने और बढ़ाने की अपनी आदत पर सरकार को लगाम लगानी चाहिए !सरकार में सम्मिलित लोग जब भ्रष्टाचार करते करवाते हैं तो उसमें अधिकारी कर्मचारियों की मंडलियाँ भी सम्मिलित होती हैं मिलजुल का खाना सरकारों का स्वभाव होता है इसलिए सरकार के वे अपने लोग ही सरकारी भ्रष्टाचार की कहीं पोल न खोल दें इसलिए उनकी सैलरी बढ़ाना और माँगें मानना सरकारों की व्यक्तिगत मजबूरी होती है इसी तुष्टीकरण के कारण किसान आत्महत्या करते जा  रहे हैं उनकी सैलरी बढ़ाई जा रही है और किसानों के पक्ष में भाषण दिए जा रहे हैं | जहाँ हजारों का कर्ज न चुका पाने के कारण किसान आत्म हत्या कर ले रहे हों उसी देश और समाज में सरकार अपने कर्मचारियों को बाँटती जा रही है लाखों में सैलरी ! कहने को सब सामान हैं ऊँच नीच का भाव ऐसे मिटाएगी सरकार !आश्चर्य !!
      इसलिए अवैध कब्जे विशुद्ध भ्रष्टाचार का मामला है सरकार खोजे कि वास्तविक दोषी हैं कौन ?सरकार में यदि साहस है और वास्तव में ईमानदारी पूर्वक अवैध कब्जों को खाली कराने की मुहिम छेड़नी ही है तो शुरुआत अपने भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों से करे !सरकारी जमीनों की रक्षा करना उनकी जिम्मेदारी थी न कि जनता की !इसके लिए सरकार उन्हें सैलरी देती है न कि जनता को !फिर उन्हें बाल बाल बचाकर केवल जनता को दंड !सरकार पहले अपने कर्मचारियों से हिसाब ले कि उन्होंने काम आखिर किया क्या है !अवैध कब्जे करवाने या किसी भी अवैध काम के लिए सीधे उन्हीं पर क्यों न की जाए कठोर कार्यवाही !   इसलिए आजतक जो जो कर्मचारी ऐसी अवैध गतिविधियों को होने देते या देखते रहे उन सब पर होनी चाहिए कठोरतम कार्यवाही उनकी सम्पत्तियों से वसूले जाएँ उन्हें दिए गए सैलरी के पैसे यदि वो जीवित न हों तो भी !यदि वास्तव में  कार्यवाही करनी है तो ऐसे कीजिए !
   अक्सर ऐसे मामलों में केवल जनता पिसती है जबकि वास्तविक दोषी होते हैं सरकार के अपने लोग !आखिर ये क्यों न देखा जाए कि ऐसा होने देने के लिए वास्तविक दोषी है कौन ! सजा मिले तो सबको मिले पक्षपात न हो !इसके लिए सबसे बड़े दोषी वो अधिकारी कर्मचारी हैं अवैध काम और कब्जे रोकने की जिनकी जिम्मेदारी थी !
    ये हो रहा है अवैध कब्जों के नाम पर स्वयं देखिए -http://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttar-pradesh/ghaziabad/notice-taken-to-take-details-on-name-of-making-bpl-card/articleshow/59461760.cms

Wednesday, 5 July 2017

'अपर्णागोशाला' नेताओं के संपत्ति स्रोतों को समझने के लिए काफी है !जनता की आँखों में ऐसे झोंकी जाती है धूल !बारे लोकतंत्र !!

    सरकार अपनों को अनुदान देने के लिए योजनाएँ बनाती है या जनता की भलाई के लिए योजनाएँ बनाकर अनुदान देती है !'अपर्णागोशाला' नेताओं के संपत्ति स्रोतों को समझने के लिए काफी है !
    अक्सर जिन्हें अनुदान दिया जाना होता है अनुदान की घोषणा होने से पहले ही वो प्रक्रिया पूरी कर चुके होते हैं जनता को पता लगते लगते तो अखवारों में भी निकाल दिया जाता है कि इतने लाख लोगों ने उठाया अनुदान का लाभ !अखवार पढ़कर जनता मन मसोस कर रह जाती है !गोशाला ,हो या संस्कृत का प्रचार प्रसार या कुछ और !
    हर पार्टी के नेता अपने अपने कार्यकर्ताओं नाते रिश्तेदारों घर खानदान वालों को ऐसे ही रईस बनाते हैं नेताओं और उनके नाते रिश्तेदारों की सम्पत्तियों की ईमानदारी से जाँच हो जाए तो पता लगेगा कि देश के विकास के लिए जनता से वसूला गया टैक्स का पैसा वास्तव में जाता कहाँ है और विकास कार्य दिखाई क्यों नहीं पड़ते !योजनाओं शिलान्यासों उद्घाटनों से अखवार पटे रहते हैं किंतु ये विकास कार्य होता किस लोक में है ये किसी को नहीं पता !राजनीति के धोखे बाज !विकास कार्यों को प्रतिशत में बताते हैं कि इतने प्रतिशत काम हो गया है ताकि जो कहे हमारे यहाँ तो नहीं हुआ तो बोल देंगे आप बचे हुए प्रतिशत में पड़ते हैं क्या अंधेर गर्दी चल रही है देश में जनता जिस दिन ऐसी लूट के विरुद्ध कड़ी हो जाएगी उस दिन लोकतंत्र बच पाएगा क्या !इसके लिए केवल सरकारें और सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की भ्रष्ट कामचोर गैर जिम्मेदार एवं धोखाधड़ी पूर्ण गलत नीतियां ही होंगी !
     अपर्णा यादव को ही देखिए समझ में ही नहीं आता है कि - 'गोशाला के लिए अनुदान या अनुदान के लिए गोशाला '?
     मैंने सुना है कि नेता श्री मुलायम सिंह जी का बचपन अत्यंत सामान्य था और वे शिक्षक थे !इसके बाद नेता जी कब करोड़ोंपति बन गए होंगे और किस प्रयास से बने होंगे ये शायद उन्हें भी नहीं पता होगा !उन्होंने कभी कोई व्यापार किया हो ऐसा दिखाई सुनाई नहीं पड़ा पैतृक संपत्ति कोई बहुत भारी भरकम रही हो
ऐसा भी पता नहीं लगा ये जरूर सुना गया कि पहले पैसे नहीं होते थे तो सभा स्थल पर चद्दर बिछाकर चंदा किया जाता था उससे जीप में पेट्रोल भराया जाया करता था !उसके बाद सम्पत्तियों के स्रोत की और तो को जानकारी जनता को मिली नहीं किंतु संपत्तियाँ अकूत हो गई हैं कैसे ?अनुदान लेने के लिए बनाई गई अपर्णा गोशाला नेताओं के संपत्ति स्रोतों के विषय में बहुत कुछ कहती है !
     मैंने एकबार पढ़ा कि परिवार की किसी सगाई में दो करोड़ पानी का बिल तो शादी का खर्च कितना रहा होगा खैर कैसे हुआ ये चमत्कार शायद योगी जी का ध्यान इधर भी जाए क्योंकि नेता जी आजकल कानाफूसी करते बहुत दिख रहे हैं लालू जी की तरह कुछ न हो इसलिए बड़ा फूँक फूँक कर कदम रख रहे हैं पार्टी चली गई फिर भी राष्ट्रपति चुनावों में NDA का समर्थन !और UPA चमकेगी तो सँभालेंगे अध्यक्ष जी मोर्चा !इसे कहते हैं राजनीति !वाह !!
     

Monday, 3 July 2017

महिलाएँ क्या पहनें कैसे रहें ये जिम्मेदारी उन्हीं पर क्यों न छोड़ी जाए !

लड़कियाँ क्या पहनें क्या न पहनें ये उन्हें कोई नहीं सिखा सकता !-अध्यक्ष महिला आयोग 
    किंतु ऐसे तो 'पुरुषआयोग' वाले कह सकते हैं लड़के क्या करें क्या न करें उन्हें ये कोई नहीं सिखा सकता !पुलिस के लोग कह  दें कि  हम कैसे कर्तव्य का पालन  करें हमें कोई न समझावे ! ऐसे सुरक्षा हो जाएगी क्या ?
  मेरा  विनम्र निवेदन -
     महिला हों या पुरुष फैशन की धारा में कितना भी बहन किंतु उन्हें ऐसा फैशन क्यों पसंद है इसके तर्क उनके अपने पास अवश्य होने चाहिए !कोई ब्यूटीपार्लर या फ़िल्म निर्माता आदि के सहारे शरीरों को छोड़ना ठीक नहीं है क्योंकि उन्हें तो शरीराकृतियाँ उत्तेजक बनाकर बेचैनी होती हैं जबकि आम समाज के आदर्श भाई बहनों का ये उद्देश्य नहीं होता !किंतु वो वेशभूषा हमें उसी तरह का सिद्ध कर रही है इसलिए वैसे शारीरिक विज्ञापनों पर प्रभावित उन्हीं शरीरों के भूखे भेड़िए आदर्श समाज पर हाथ डालने लगे हैं इसलिए हमें अपनी पहचान शरीर विक्रेताओं से तो अलग रखनी ही चाहिए !अन्यथा उनके कस्टमर हम पर टूटेंगे उससे हमारा बचाव कोई सरकार नहीं कर सकती क्योंकि सरकार सबको सिक्योरिटी नहीं दे सकती और दे भी तो उन्हीं का क्या भरोसा !वो न बूढ़े होते हैं न बीमार न नपुंसक !
   "ज्ञात स्वादुः विवृत जघना का बिहातुं समर्थः !" 
  इसीलिए तो पुरखे कह गए हैं जिसे चाहने वाले जितने अधिक लोग हों उसे उतना अधिक छिपा कर रखना होता है सब्जी की मंडी में हीरे बेचने वाले टोकरी लिए नहीं फिरते !कोई यदि ऐसा करने लगे तो कितनी देर टिक पाएगा मंडी में !क्या उसे सुरक्षा दे पाएगी पुलिस ! जबकि हीरे का उतना महत्व नहीं हिरा छू लेने से उसकी कीमत नहीं घटती जबकि महिलाओं के शरीरों की कोई कीमत  ही नहीं हो सकती !महिला शरीरों के सामने तुच्छ हीरे की क्या औकात !किंतु हीरे की टोकरी खुली मंडी में लेकर जाए तो लूट लिया जाए !महिलाओं की सुरक्षा का बचन दे रही है सरकार !सरकार को चुनौती है सब्जी मंडियों में पहले हीरे बेचकर दिखाए !जब खुले बाजार में हीरे के ढेर  नहीं लगाए जा सकते फिर आधे चौथाई कपड़ों वाले महिलाशरीरों की सुरक्षा करना तो बहुत बड़ी बात है करेगी कैसे बता ही दे !कानून में सबसे  बड़ी सजा है फाँसी जिसके बल पर हर किसी को धमका लिया जाता है किंतु महिला शरीरों पर आशक्त पुरुषों के मन में मौत का कोई महत्त्व ही नहीं होता कितने आशक्त लोग आत्महत्या करदे देखे जाते हैं ! अपना बहुमूल्य जीवन जिन शरीरों पर सेकेंडों में न्योछावर कर देते हैं लोग उन पर कैसे लगाम लगा सकता है कानून !फिर भी कौन क्या पहने कैसे रहे किसी के लिए मेरी कोई सलाह नहीं है मैंने तो केवल समाज के जीवित सदस्यों के लिए एक विचार मात्र रखा है मुझे उनसे अभी भी उमींद है कि फैशन की उफनाती नदी में बहते जा रहे  शवों  के साथ सम्मिलित हमारे वो सजीव भाई बहन अपने जीवित होने का एहसास  इस समाज को करते रहेंगे !जिस दिन वो हिम्मत हार जाएँगे उसदिन मैं भी निर्जीव हो  जाऊँगा ! वो मेरे प्राण हैं !
      फेसबुक   को मैं फेस बुक करने का साधन नहीं ये तो विचार प्रवाह का साधन मात्र है | 
   

Sunday, 2 July 2017

लक्ष्मी नगर में गिरी बिल्डिंग ! पहले EDMC के अधिकारियों ने नहीं सुनी थी शिकायत !घूस का पैसा ऊपर तक जाता है ये बात सही है क्या ?

      ऐसे भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध शिकायत सरकारें  भी नहीं सुनती हैं ! तभी तो लोग कहते हैं घूस का पैसा ऊपर तक जाता है !अवैध काम बंद करवाने के लिए शिकायत करने वालों से ही घूस माँगने लगते हैं निगम के अधिकारी कर्मचारी !तभी तो कहते हैं कानून बिकता है पैसे हों तो खरीद लो अन्यथा कानून से मदद की आशा मत रखो !see more .... http://zeenews.india.com/hindi/india/delhi-haryana/three-storey-building-collapses-in-laxmi-nagar-area-of-delhi-4-injured/331684
      अवैध कामों की  क्या कर्मचारियों को इस गैरजिम्मेदारी के लिए दी जाती है सैलरी ! शिकायत सुनने वाला कोई नहीं घूस लेकर अवैध काम करने वालों की करते रहते हैं मदद !जनहानि की आशंका से जब कोई शिकायत करने जाता है तो उस पर पहले हमला करवा देते हैं अवैध काम करने वालों से !और उसे नोटिश देकर  कोर्ट से स्टे दिलवा देते हैं इसके बाद अवैध काम करने वालों से घूस खाते रहते हैं केस की पैरवी ही नहीं करते गुजार देते हैं दसों बीसों साल ! जब कोई पूछता है कि केस का क्या हुआ तो कह देते हैं जज बहुत बदमाश  घूसखोर भ्रष्टाचारी है अवैध काम करने वाले उसे लाखों रूपए घूस खिला रहे हैं इसलिए वो स्टे आगे बढ़ाता जा रहा है तुम लाखों रुपए खर्च नहीं कर सकते करो तो मैं भी जज से बात करूँ पीड़ित पक्ष को उससे कोई आर्थिक लोभ नहीं होता तो वो क्यों  लाखों रूपए घूस दे !इसलिए ऐसे अवैध निर्माण कितने भी वर्षों तक चलाए जाते हैं अंत में बिल्डिंग गिर जाती है लोग मर जाते हैं सरकार मुआबजे का एलान कर देती है !ऐसे चलती है सरकार लागू किए जा रहे हैं कानून !फोकट में दी जा रही है सैलरी !जिन्हें काम ही नहीं करना है उन्हें सैलरी किस बात की ?किंतु सरकार ये बात कहने में डरती है न जाने क्यों ? तब याद आती है ये बात कि घूस का पैसा ऊपर तक जाता है !
     K-71 दुग्गल बिल्डिंग ,छाछीबिल्डिंग चौक ,कृष्णानगर दिल्ली की छत पर एक मोबाईल टावर लगाया गया था 12 वर्ष पहले बिल्डिंग में रहने वाले 16 फ्लैट मालिकों से पूछा नहीं गया EDMC से अनुमति नहीं ली गई किंतु निगम की घूस खोरी के बल पर वो चला जा रहा है उसका किराया एक पैसा भी बिल्डिंग की रिपेयरिंग  में नहीं लगा बिल्डिंग में रहने वाले किसी को किराया मिलता नहीं है EDMC और दबंगों की आपसी साँठ गाँठ से चलाए जाते हैं अवैध काम काज !
      रिहायसी बिल्डिंगों ,वस्तियों में लुक छिप कर चलाए जाने वाले ब्यूटीपार्लर में यदि ब्यूटी पारलरी ही करनी होती तो खुले में खोलते !बहन बेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने वाले ऐसे अघोषित वेश्यावृत्ति के अड्डे देते हैं सभी प्रकार के अपराधों को जन्म !इनके आस पास रहने वाले भले परिवारों के बच्चे बिगड़ रहे हैं मजबूर माता पिता आदि अभिभावक लोग यदि ऐसे वेश्यालयों की शिकायत करें तो मार दिए जाएँ क्योंकि यहाँ की सेवाओं से लाभान्वित हो रहे कितने लोग भले होंगे ये ईश्वर ही जानता है !
       घूस खोर सरकारी कर्मचारी शिकायत करने वालों की खुद मुखबिरी करते हैं वो पुलिस हो या निगम के लोग वो घूस ही इसी बात की लेते हैं !ऐसे लोगों के अत्याचारों से निपटने के लिए सरकार कुछ करती नहीं आम आदमी क्या करे !पाखंड इतना कि अपराध रोकने के लिए सिमितियाँ बनाए जा रही है जबकि अपराधियों का प्रोडक्शन सरकारी विभागों की मदद से ही होता है सरकार घूस का लोभ छोड़े और ऐसे लोगों पर करे शक्त कार्यवाही !

Saturday, 1 July 2017

लालू जी की ये संपत्तियाँ !नेता ऐसे ही रईस होते हैं किंतु जो सरकार से पंगा लेते हैं वे पकड़ जाते हैं बाक़ी सब ईमानदार !

         लालू जी ने ये संपत्तियाँ बड़ी मेहनत से कमाई होंगी मैं तो मान भी सकता हूँ किंतु क्या वे स्वयं वो जुगाड़ बता सकते हैं कि उन्होंने कैसे कमाई ?सुना है बचपन बहुत गरीबत में बीता इसलिए उन्होंने कोई व्यापार किया होगा ऐसा संभव नहीं फिर समय कहाँ था !नौकरी वो करेंगे नहीं प्रापर्टी इतनी थी नहीं फिर भी भी इतनी संपत्ति !ये जुगाड़ आम जनता को भी बता दें किसान बेचारे क्यों करते आत्महत्या ?

लालू जी की संपत्तियों का ब्योरा 

1.फार्म नंबर 26, पालम फार्म्स, बिजवासन, दिल्ली

बेनामीदार: मिशैल पैकर्स ऐंड प्रिंटर्स प्राइवेट लिमिटेड
लाभार्थी: मीसा भारती और शैलेश कुमार

बही-मूल्य: 1.4 करोड़ रुपये
बाजार मूल्य: 40 करोड़ रुपये

पढ़ें: बीपीसीएल ने लालू के बेटे तेज प्रताप यादव का लाइसेंस रद्द किया
2. 1088, न्यू फ्रेंड्स कॉलोनीबेनामीदार: एबी एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड
लाभार्थी: तेजस्वी यादव, चंदा और रागिनी यादव
बही-मूल्य: 5 करोड़ रुपये
बाजार मूल्य: 40 करोड़ रुपये

पढ़ें: मोदी का लालू की बेटी पर बेनामी संपत्ति का आरोप
3.जालापुर, थाना- दानापुर, पटना में 9 प्लॉट बेनामीदार: डिलाइट मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड
लाभार्थी: राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव
बही-मूल्य: 1.9 करोड़ रुपये
बाजार मूल्य: 65 करोड़ रुपये

4. जालापुर, थाना- दानापुर, पटना में 3 प्लॉटबेनामीदार: एके इन्फोसिस्टम
लाभार्थी: राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव
बही मूल्य: 1.6 करोड़ रुपये
बाजार मूल्य: 20 करोड़ रुपये
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