Thursday, 26 February 2015

अपने घर के शादी समारोहों में समाज के पैसे से सरकारें करती हैं शक्ति प्रदर्शन !आखिर क्यों ?

 ऐ राजनीति !तुझे धिक्कार !!गरीबों की सेवा के सब्जबाग दिखाकर अपनी और अपनों की ऐश !
   सरकारें जन सेवा के लिए होती हैं न कि सरकारी संसाधनों का उपयोग अपने को राजा महाराजा सिद्ध करने के लिए करें !नेताओं की नियत ही ठीक नहीं है उन्हें इस बात की भी शर्म नहीं होती कि जिन गरीबों के हिस्से का हरण किया हुआ ये धन होता है वो एक एक रोटी के लिए आज भी हैरान परेशान हैं आप उस गरीब समाज के प्रतिनिधि हैं क्यों नहीं झलकती है तुम्हारे चेहरों पर गरीबों की वह पीड़ा कैसे जन प्रतिनिधि हैं आप ! सरकारें जनता की माँ होती हैं धिक्कार है उस माँ को जो खुद तो ऐश करे बच्चों को भूखा  सुला  दे !साकार में बैठे लोगों को पिता का दायित्व निर्वाह करना होता है से कहाँ तक कैसे ,क्यों और कब तक सहे!य्ये भावनात्मक कदाचार !
 "मुलायम के पोते के तिलक में पानी पर खर्च किए 2 करोड़! -news -24"
     किन्तु नेताओं का इस तरह का पैसा है किसका होता है इसे पानी की तरह बहाने में किसी को पीड़ा क्यों नहीं होती !बंधुओ! अक्सर नेता लोग सामान्य या किसान  परिवारों  से आते हैं ये सबको पता है उनके राजनीति में आने से पहले उनके पूर्वजों का कमाया या अपना कमाया हुआ कितना धन था ये आस पास के लोगों से पता लगाया जा सकता है साथ ही किसानों की आमदनी कितनी होती है ये बात पास पड़ोस के किसानों  से पूछी जा सकती है इनके व्यापार क्या हैं उनकी प्रारंभिक पूँजी के स्रोत क्या थे साथ ही उनकी इतनी भारी भरकम आमदनी के प्रमुख साधन क्या हैं और उनके प्रबंधन की  क्या है ?
   सामाजिक आंदोलनों और जन सेवा से जुड़े रहे जन सेवा व्रती लोग यदि अपना संपूर्ण समय सामजिक कार्यों में देते रहे तो ऐसे लोग इतना भारी भरकम धन इकठ्ठा करने में कैसे सफल हो जाते हैं ?वैसे भी अपनी खून पसीने की कमाई के धन को इतने महंगे पानी में पानी की तरह से कैसे बहाया जा सकता है !

Saturday, 14 February 2015

वेलेंटाइन डे या अविवाहितों की अँग्रेजी करवा चौथ ! सेक्सार्थी संस्कृति का महानपर्व !

  मित्रता या मूत्रता  का पर्व है वेलेंटाइन डे ?फोर्थजेंडरी (प्रेमीजोड़े)बड़ी धूम धाम से मनाते हैं इसे !

  फोर्थजेंडरी (प्रेमीजोड़े)   वेलेंटाइन डे को  मित्रतापर्व कहें भले ही किंतु इसकी प्रसिद्ध पहचान मूत्रतापर्व के रूप में ही बनी  हुई  है !इससे आगे इसे बढ़ने ही नहीं दिया गया इसी लिए बहन बेटियों की गौरव रक्षा के लिए लोगों को इसका विरोध भी करना पड़ता है अन्यथा प्रेम पर्व का विरोध कोई क्यों करेगा !

ये कई जगह से प्रमाणित भी हो जाता है आज के दिन शारीरिक संसर्गों की सुविधा प्रोवाइड करने वाले होटल रेस्टोरेंट या और भी छोटे बड़े लोग बड़ा बिजी रहते हैं ऐसी सुविधाओं के लिए इनके रेट काफी बढ़े होते हैं जो ये सब बहन करने की स्थिति में नहीं होते हैं वो झाड़ी जंगलों की ओट में समा जाते हैं कुछ तो पार्कों जैसी सार्वजनिक जगहों पर भी बड़ी बेशर्मी पूर्वक बहुत कुछ निपटा रहे होते हैं। प्रेमी जोड़े नाम के फोर्थजेंडर वाले लड़के लड़कियों में इस दिन अद्भुत उत्साह होता है इन सबों में एक दूसरे से आगे निकलजाने की होड़ होती है ।     इसे देखने वालों का नजरिया भी अलग होता है ऐसे ही कुछ भूतपूर्व फोर्थजेंडरी  लोग  जो विभिन्न क्षेत्रों में जाकर पैसा वैसा कमाकर  बड़े आदमी बन गए हैं वो टी.वी.पर आकर इन फोर्थजेंडरियों  का समर्थन करते देखे जाते हैं कई कई लड़के लड़कियों की होनहार जिंदगियाँ अपनी अपनी बासना की भेंट चढ़ा चुके भूतपूर्व फोर्थजेंडरी लोग  इस नोचा घसोटी को पवित्र प्रेम सिद्ध करने के लिए हमेंशा  आमादा रहते हैं किन्तु इस बात का जवाब इनके पास भी नहीं होता है कि यह   प्रेम यदि वास्तव में पवित्र है तो साल में एक ही दिन क्यों दूसरी बात लड़के और लड़कियों के  ही आपसी संबंधों में क्यों  माता पिता भाई बहनों आदि के साथ क्यों नहीं !और यदि उनके  साथ भी हो तो चौदह फरवरी ही क्यों ये तो प्रतिदिन करना चाहिए !ऐसी शिक्षा अनंतकाल से दी जा रही है फिर आदर्श वेलेंटाइन डे ही क्यों ?

          

        बंधुओ !आप सबको याद होगा कि पहले अपने यहाँ ' वेलेंटाइन डे ' नहीं मनाया जाता था साथ ही यह भी सुना होगा कि तब अपने यहाँ इतने बलात्कार भी नहीं होते थे और जैसे जैसे 'वेलेंटाइन डे 'को मानने वाले लोग बढ़ते जा रहे हैं वैसे वैसे बलात्कार बढ़ते जा रहे हैं । इस अवसर पर एक बात और ध्यान रखनी होगी और कोई वेलेंटाइन डे  को मनाता हो या न मनाता हो किन्तु बलात्कार में संलिप्त लगभग हर सदस्य 'वेलेंटाइन डे'का उपासक जरूर होगा अर्थात वह इस दिन को किसी न किसी रूप में मनाता जरूर होगा ! प्रेमी नाम के जोड़े इस इस तथाकथित पर्व को बड़े धूम धाम से मनाते  हैं आज के दिन पागल हो उठते हैं ये लोग !अपनी अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुशार प्रेमी लोग आपस में कुछ न कुछ लेते देते जरूर हैं खैर लेना देना तो बहाना होता है बाकी शारीरिक अंगों के आनंद का आदान प्रदान अवश्य होता है । मुझे नहीं पता है कि इस धंधे को कितना गन्दा कहूँ किंतु कई प्रेमी प्रेमिकाओं को एक दूसरे के शरीरों की दुर्दशा या हत्या करते देखो उस दिन वेलेंटाइन डे जैसी कुसंस्कृतियों से घृणा जरूर होती है ! समाज के ऐसे ही प्रकटी  करण को वेलेंटाइन डे का विरोधी कहकर उसकी निंदा की जाती है ।

Friday, 13 February 2015

अन्ना हजारे जी के चेले जिन नेताओं के निम्न आचरणों की निंदा किया करते थे वही करते खुद घूम रहे हैं आज ! बारे स्वराज !

  राजनीति के बीहड़ों में सत्ता के दस्यु सरगना लोग स्थापित सरकारों के विरुद्ध दुष्प्रचार कर कर के लूट लेते हैं सरकारें ! और फिर वही काम खुद करने लगते हैं तथा  उन्हीं नेताओं के गले मिलते आज फूले नहीं समाते हैं !हे अन्ना जी !राजनीति में इतना गिर जाते हैं लोग !

     अन्ना हजारे जी के चेले आज उन्हीं नेताओं  के गले मिलते फूले नहीं समा रहे हैं जिनकी  कभी निंदा किया करते थे जिन्हें भ्रष्ट, बेईमान, लुटेरे , घोटालेबाज आदि बताया करते थे आज उन्हीं के गले मिलते हाथ मिलाते पैर छूते घूम रहे हैं उसी तरह के आरोप प्रत्यारोप गाली गलौच कलह कुटिलता पदलोलुपता आदि सब कुछ बिलकुल वैसा ही !कैसी कैसी बातें करके कितना गिर जाते हैं लोग ! 

  यदि आम आदमी पार्टी का सर्वस्व आमआदमी है तो  आदमियों पर ही गर्व क्यों नहीं करना चाहिए  ! वहाँ जाकर गले मिलना हाथ मिलाना निमंत्रण देना क्यों जरूरी है ! क्यों दौड़े घूम रहें हैं उन नेताओं के पास जिन नेताओं को भ्रष्ट,  बेईमान ,लुटेरे आदि क्या कुछ नहीं कहा करते रहे हैं !

   चूँकि ऐसा पहले भी बहुतों ने किया है दूसरों की निंदा केवल चुनाव जीतने के लिए  की जाती रही है और चुनाव जीतते ही आपस में सभी नए और पुराने नेता घुलमिल जाते रहे हैं इन्हें गले लगते या मुस्करा मुस्कराकर बातें करते पहले भी जनता देखती रही है इस प्रकार की कृत्रिम राजनीति !इसीलिए  जनता ने पूर्ण बहुमत देना प्रारम्भ कर दिया है ताकि उसे मजबूत  सरकार मिले मजबूर नहीं !

   जनता आज चाहती है कि जिन नेताओं को बुरा कहा गया है उनसे वास्तव में दूरी बनाकर चला जाए !और या फिर आरोप लगाते समय कुछ संयम बरता जाता !  कुल मिलाकर वास्तव में नेता यदि इतने ही भ्रष्ट हैं तो उनका बहिष्कार क्यों नहीं करते हैं !जनता ने 'आप'के राजनेताओंं को कहे गए इन्हीं अपशब्दों पर प्रभावित होकर बहुमत दिया है क्योंकि वर्तमान राजनीति और राजनेताओं के भ्रष्टाचारी आचरणों से जनता बहुत तंग है ये सच है किन्तु केवल वोट लेने के लिए उन्हें बेईमान,चोर भ्रष्ट आदि कहना और बाद में उन्हीं से गले मिलना हाथ मिलाना शपथ ग्रहण समारोह में आने के लिए आमंत्रित करने उन्हीं के दरवाजों पर भटकना ये जनता को क्यों पसंद आएगा ?माना कि कुछ संवैधानिक मजबूरियाँ हैं तो उतना ही तालमेल रखना ठीक है किन्तु अधिक नहीं !

    जिन नेताओं और पार्टियों को विश्व में चोर,बेईमान और भ्रष्ट आदि कहकर मीडिया के सामने बदनाम किया जाता रहा है !यदि वो नेता इन आपियों का साथ किसी भी स्तर पर देते हैं तो इसका सीधा सा अर्थ है कि उन पर आप नेताओं के द्वारा लगाए जाते रहे  आरोप सच हैं ऐसा उन्होंने स्वीकार कर लिया है !सीधी सी बात है कि -

     'मौनं स्वीकार लक्षणं '

प्रधान मंत्री जी का सम्मान बनाए रखने में ही भलाई है !

              


      प्रधान मंत्री होने के नाते मोदी जी का सम्मान आज देश के सम्मान के साथ जुड़ा हुआ है विगत चुनावों में नेतृत्व से कुछ गलतियाँ हुई सी लगती हैं जिसकी आलोचना मैंने भी की है और आगे भी करता रहूँगा किंतु शालीन शब्दों में और सुधार  की अपेक्षा से ! मोदी जी के लिए अपने कमेंट करने में जो लोग  आज भी  हत्यारा जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं उन्हें इस देश के लोक तंत्र और कानून पर विश्वास नहीं है उन्हें सोचना चाहिए कि देश की जनता ने उन पर भरोसा किया है और कानून ने उन्हें दोषी नहीं ठहराया है तीसरा अपने पास  जबान  गंदी करने के अलावा और  विकल्प क्या है साथ ही मोदी  जी अपने को निर्दोष सिद्ध करना चाहें तो कैसे करें ?

गालियाँ देने के शौकीन लोग अपनी माँ बहनों को गाली दिलाने के लिए ऐसी हरकतें करते हैं !

  गाली देने या लिखने वालों का बहिष्कार करो  !

 जिनके मन में अपनी माँ बहनों के प्रति सम्मान नहीं होता वही देते हैं औरों को गाली !ऐसे पापियों का फेस बुक से बहिष्कार करो ऐसे लोगों का नाम अन्य लोगों को भी प्रेषित करो ताकि वो भी ऐसे पापियों का बहिष्कार करें !कोशिश करो कि ऐसे गंदे लोग अपनी गन्दगी कहीं न फैलाने पाएँ !

     वस्तुतः जिन लोगों के मन में अपनी माँ बहन बेटी का सम्मान नहीं होता है वही किसी दूसरों  को गाली देते हैं  क्योंकि ये उन्हें भी पता होता है कि जो गाली हम सामने वाले को दे  रहे हैं वही वो हमें भी आसानी से दे सकता है इसमें कोई ऐसी कलाकारी नहीं है जो वो नहीं कर पाएगा  यह जानते हुए भी वो गाली  देते हैं इसका सीधा मतलब होता है कि उन पापियों के मन में अपनी माँ बहनों के प्रति कोई सम्मान नहीं है इसीलिए वो इसी बहाने औरों को गाली देने के लिए प्रेरित किया करते हैं गाली देने के लिए उकसाने वाले ऐसे पापियों का बहिष्कार क्यों न किया जाए !

    बंधुओ ! फेसबुक एक स्वतन्त्र विचार मंच है जिसमें हम सभी लोग विभन्न विन्दुओं पर अपना अपना दृष्टिकोण रखते हैं जरूरी नहीं कि हर कोई हर किसी के  दृष्टिकोण से सहमत हो किन्तु इसका ये  मतलब नहीं कि कोई किसी को गाली गलौच करने लगे आज कुछ लोग ऐसे घुस आए हैं उनकी कई जगह अश्लील टिप्पणियाँ देखने को मिली हैं जिन्हें प्रयासपूर्वक एक दूसरे का सहयोग करके हटाई जानी चाहिए एवं ऐसे लोगों का बहिष्कार किया जाना चाहिए !

      


अनशन करते रहे अन्ना जी और मुख्यमंत्री बने केजरीवाल !

    केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए चलाया गया था आंदोलन या आंदोलन को सफल बनाने के लिए केजरीवाल को बनाया जा रहा है मुख्यमंत्री !

     अपनी राजनीति चमकाने के लिए अन्ना हजारे के जिन चेलों ने रामलीला मैदान में पवित्र आंदोलन के नाम पर भारी मजमा जुटाया था उनके द्वारा सारे देश वासियों को समझाया गया था कि राजनीति गंदी है  नेता भ्रष्ट हैं बेईमान हैं ,लुटेरे हैं , भ्रष्टाचारी हैं  ,घोटालेबाज हैं आदि आदि  सभी प्रकार से  निंदा कर रहे थे  और भी बहुत कुछ बता रहे थे सारे देश को आंदोलित किया गया था भीड़ जुटाई गई थी।

      'भाजपा ने किरण को बनाया बलि का बकरा': अन्ना हजारे "-अमरउजाला 

    अनशन के नाम पर भूखे रहे अन्ना हजारे अब मुख्यमंत्री बने केजरीवाल ! 'बलि का बकरा' बता रहे हैं किरणवेदी जी को ये सच नहीं है ! जहाँ तक बलि का बकरा  की बात है तो उसके लिए किरन जी का नाम लेना उचित नहीं है दूसरी तरफ अनशन के नाम पर भूखे रहकर जनजागरण करते रहे अन्ना हजारे अब मुख्यमंत्री बने केजरीवाल !यदि ये आपसी सहमति से हुआ तो सच स्वीकार करना चाहिए अन्यथा किसी और पर भी इस प्रकार की टिप्पणी करना ठीक नहीं है ! 

    अन्ना जी !अपनी बात किसी और पर लागू  कैसे कर सकते हैं !किरण जी प्रबुद्ध महिला हैं कर्मठ हैं इतनी  बड़ी अधिकारी रही हैं कई विषयों में उनकी योग्यता प्रमाणित है उन्हें  कोई बलि का बकरा कैसे बना सकता है !दूसरी बात भाजपा की लोकप्रियता इतनी गिरी भी नहीं थी वहाँ तो दूसरी पार्टियों के लोग अंत तक सम्मिलित होते रहे  भाजपा में पूर्व केंद्रीय मंत्री तक सम्मिलित हुई हैं मीडिया तक को ऐसे परिणामों का अनुमान नहीं था और भाजपा ने यदि थोड़ी लापरवाहियां न की होतीं और आम आदमी पार्टी ने सच का साथ लिया होता तो ऐसी स्थिति पैदा ही नहीं होती !खैर ,किरण जी को मुख्य मंत्री पद पर सीधे अपना प्रत्याशी बना लेना ये भाजपा छोटा त्याग नहीं था इसे आप मजबूरी भी कह सकते हैं किंतु कार्यकर्ता को किरण जी से तकलीफ नहीं थी अपितु उनके प्रति दिल्ली भाजपा को समर्पित करते समय उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया  जिसका लाभ 'आप' को मिला !इसलिए किरण जी को बलि का बकरा बनाया गया ऐसा  कहना उचित नहीं है ये कोई नेता  तो कह भी सकता है अन्ना  जी को सच बोलना चाहिए !लग रहा है  कि उनकी पार्टी के सत्ता में आ जाने से वो कुछ अधिक ही खुश हैं वैसे भी चुनावों के ऐन समय पर उनके द्वारा केंद्र सरकार के विरुद्ध दिए गए वक्तव्यों अप्रत्यक्ष रूप से लाभ आम आदमी पार्टी को मिला है । 

    


    

  

"मुलायम सिंह जी का मंदिर तो बने किंतु " आजम खान की मस्जिद भी बने !

"उत्तर प्रदेश में "मुलायम मंदिर" बनाएँगे सपा नेता आजम खान!"-पत्रिका 

  बंधुओ ! बल्कि होना तो कुछ इस प्रकार से चाहिए कि मुलायममंदिर में आरती पूजा का काम आजम करें और आजम मस्जिद में इबादत का काम सँभालें मुलायम सिंह जी !ताकि एक दूसरे की पूजा इबादत में लापरवाही न हो और यदि किसी कारण से हो जाए तो बदला  लिया जा सके क्योंकि दोनों राज नेता हैं और नेता लोग बदला  लिए बिना रह कहाँ पाते हैं ।

       इस प्रकार से मंदिर मस्जिद बन जाने से इन्हें मिलने वाला फंड चढ़ावा माना जाएगा और इनकम टैक्स बचेगा !

      इससे सबसे बड़ा लाभ सांप्रदायिक सौहार्द्र का होगा लोग बड़ी श्रद्धा से नाम लेंगे और दोनों समुदायों के वोट मिलेंगे !

      इनके नाम का संकीर्तन करने वाले मुलायम - मुलायम तो कहेंगे ही साथ साथ  आ'जम' -आ'जम' अर्थात 'यमराज आ ' 'यमराज आ ' भी बोलेंगे जिससे लोगों के मन से यमराज का भय भी निकल जाएगा !

   बहुत सुन्दर !!बने भाई मंदिर क्यों न बने लेकिन मस्जिद भी बने । अन्यथा मुशलमानों की उपेक्षा करने का मामला बनता है वैसे भी धर्म निरपेक्ष भारत में अल्पसंख्यकों के सम्मान के साथ किसी  को खिलवाड़ नहीं करना चाहिए !

     "उत्तर प्रदेश में "मुलायम मंदिर" बने तो किंतु मंदिर तो कोई हिंदू ही बना सकता है इसलिए आजम खान साहब के पास इस विषय तीन ही विकल्प बचते हैं-

  • पहला आजम खान साहब मंदिर बनाने के लिए पहले हिन्दू बनें !

  • दूसरा  आजम खान साहब मंदिर की जगह "मुलायम मस्जिद " बनाकर करें उनकी इबादत !

  • तीसरा किसी मस्जिद में रख लें नेता जी की मूर्ति !आजम खान साहब!!!

मोदीमंदिर तो बना किंतु उसका देवता रूठ गया !और बनकर मंदिर टूट गया !!

    मोदीजी  का मंदिर !घोर आश्चर्य !! ये चाटुकारिता नहीं तो और है क्या !!!

     मोदी जी आपको  बहुत बहुत धन्यवाद !!आपने अपना मंदिर बनाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है  यह सुनकर  बहुत अच्छा लगा आपसे अपेक्षा भी ऐसी ही थी यही अपनी पवित्र शास्त्रीय परंपरा है ।  वैसे भी आपने पैर छुवाने  के लिए पहले ही मना कर दिया था फिर आखिर ये कौन लोग हैं जो आपकी इच्छाओं का सम्मान नहीं करना चाह रहे हैं यह जानते हुए भी कि आप दुर्गा जी के उपासक हैं इसलिए दुर्गा जी का मन्दिर बनाकर भी तो आपको प्रसन्न  किया  जा  सकता था !

     आपने सही समय पर सही प्रतिक्रिया दी अन्यथा देर हो जाती और वातावरण में तैरने लगता एक और अनुत्तरित प्रश्न !

Thursday, 12 February 2015

मोदीमंदिर तो बना किंतु उसका देवता रूठ गया !और बनकर मंदिर टूट गया !!

मोदीजी  का मंदिर !घोर आश्चर्य !! ये चाटुकारिता नहीं तो और है क्या !!!

     मोदी जी आपको  बहुत बहुत धन्यवाद !!आपने अपना मंदिर बनाए जाने पर नाराजगी व्यक्त की है  यह सुनकर  बहुत अच्छा लगा आपसे अपेक्षा भी ऐसी ही थी यही अपनी पवित्र शास्त्रीय परंपरा है ।  वैसे भी आपने पैर छुवाने  के लिए पहले ही मना कर दिया था फिर आखिर ये कौन लोग हैं जो आपकी इच्छाओं का सम्मान नहीं करना चाह रहे हैं यह जानते हुए भी कि आप दुर्गा जी के उपासक हैं इसलिए दुर्गा जी का मन्दिर बनाकर भी तो आपको प्रसन्न  किया  जा  सकता था !

     आपने सही समय पर सही प्रतिक्रिया दी अन्यथा देर हो जाती और वातावरण में तैरने लगता एक और अनुत्तरित प्रश्न !

Wednesday, 11 February 2015

उन तीन सीटों की जनता की ऐसी

   बाकी उसे पता है कि तो उसकी थीबाकी    वो
इसलिए वो चुनाव लड़ी ही नहीं !वैसे भी काँग्रेस और भाजपा ने सोचा 
यदि इस चुनाव में इतनी बड़ी बिजय का श्रेय आप अपनी पत्नी को देने हैं  तो क्या आपको याद नहीं रहा कि मोदी जी ने अपनी कामयाबी का श्रेय भाग्य को दिया था तो जनता को बहुत बुरा लगा था क्योंकि जिताया तो जनता ने था  

या यूँ कह लिया जाए कि देश के सबसे बड़े लोक सभा चुनावों में इतनी बड़ी विजय हासिल  करके दुनियाँ में अपना नाम रोशन करने के बाद भाजपा दिल्ली जैसे छोटे से  राज्य के चुनावों में उसकी कोई रूचि ही नहीं थी सचपूछो तो भाजपा दिल्ली का चुनाव ऐसे लड़ रही थी जैसे ये चुनाव उसके स्तर का है ही नहीं ! इसीलिए यहाँ से चुनाव लड़ने में उसे शर्म सी लग रही थी तभी तो उसने पार्टी के बड़े बड़े नेताओं की ड्यूटी लगा रखी थी कि सबलोग एक एक बार दिल्ली में पाँव फेर आना बस इतने से दिल्ली वाले खुश हो जाएँगे और हो जाएँगे चुनाव !इसीलिए उसने किरण जी को खड़ा कर दिया कि ये छोटे से चुनाव आप ही देख लो !

दिल्ली वालो सुनो क्या कह रहे हैं केजरीवाल जी !

केजरीवाल जी के  ये कहने का मतलब आखिर क्या है ? " केजरीवाल ने कहा, कामयाबी के पीछे मेरी पत्नी- IBN-7"        

  अरे केजरीवाल जी ! मोदी जी अपनी कामयाबी का श्रेय यदि अपने भाग्य को दे देते हैं तो सबको बुरा लगता है और केजरीवाल जी!आप अपनी  पत्नी को दे रहे हैं सो !आपके हिसाब से क्या दिल्ली की जनता का इसमें कोई योगदान नहीं है !अभी तो चुनाव परिणाम घोषित हुए तीन दिन भी नहीं हुए हैं !

केजरीवाल जी ! चुनावों में विजय तो जनता दिलाती है पत्नी नहीं, फिर भी आपको जैसा ठीक लगे किन्तु इस कामयाबी के पीछे तो जनता का ही हाथ है इसे आप मानें या न मानें ! आपकी इस कामयाबी के पीछे दूसरा बड़ा हाथ भाजपा और काँग्रेस दोनों का है भाजपा का इसलिए कि उसने अबकी बार चुनाव लड़ा ही नहीं ,कैसे चुनाव लड़ना है केवल इसकी तैयारी में ही लगी  रही तब तक अचानक वोट पड़ने लगे ! तभी तो जल्दी जल्दी में वो अपनी पार्टी में से कोई योग्य सी एम प्रत्याशी नहीं खोज पायी और एक सामाजिक कार्यकर्ता को बना लिया अपना सी एम प्रत्याशी !!

     इसी प्रकार से केजरीवाल जी !आपकी कामयाबी के पीछे तीसरा हाथ उस काँग्रेस का था जो पन्द्रहवर्ष तक सत्ता में रहकर थक चुकी थी इसलिए थकी माँदी बुड्ढी काँग्रेस न देश में थी न रेस में वो तो रेस्ट करना चाह रही थी लेकिन आप लोग भ्रष्टाचार के नाम से सीधे उसी पर हमले करने लगे अतः उसे मजबूरीवश चुनावों में सम्मिलित होना पड़ा !इसलिए आपकी कामयाबी  का श्रेय  भाजपा काँग्रेस और जनता तीनों को जाता है बाद में आप किसी को भी दें श्रेय वो आपकी मर्जी !

केजरीवाल तीन सीटें हार क्यों गए आखिर क्या चाहती थी वहाँ की जनता !जिसकी हामी नहीं भर पाए केजरीवाल ?ये रिसर्च का विषय !!

  केजरीवाल जी तीन सीटें हारे क्यों ? इतने अच्छे घोषणापत्र के बाद भी इतनी बड़ी पराजय ! आश्चर्य !!

भाजपा और काँग्रेस यदि मन से चुनाव लड़ते और जनता को समझा पाते सच्चाई तो उनकी इतनी बुरी हार संभवतः कभी नहीं होती !मित्रो ! इतनी बड़ी जीत की आशा तो केजरीवाल जी ने भी नहीं की होगी जबकि आशा हमेंशा वास्तविकता से अधिक की जाती है फिर आम आदमी पार्टी को मिली आशा से अधिक सफलता का रहस्य आखिर क्या है ! इसके लिए यदि ये माना जाए कि काँग्रेस और भाजपा ने अभी तक कुछ नहीं किया है इसलिए जनता इनसे निराश थी तो सोचना ये भी पड़ेगा कि केजरीवाल जी ने ऐसा किया क्या था जिससे जनता उनके प्रति इतना समर्पित हो गयी !ये वही जनता है जिसने नौ महीने पहले लोक सभा चुनावों के समय दिल्ली में इनका खाता भी नहीं खुलने दिया था फिर नौ महीने में ऐसा क्या चमत्कार हो गया कि केजरीवाल जी भाजपा और काँग्रेस को इतनी तगड़ी शिकस्त देने में सफल हुए !

     बंधुओ ! चुनावों में हर पार्टी और प्रत्याशी अपना अपना घोषणा पत्र अपने अपने हिसाब से बनाता है और वही जनता के सामने प्रस्तुत करता है उससे जनता का जितना बड़ा भाग लाभान्वित होना होता है वो उसे वोट देता है इसलिए उसी हिसाब से उसे सीटें मिलती हैं किन्तु बात बात में जनमत संग्रह करने के आदती  केजरीवाल जी ने हर सीट पर अलग अलग लोगों की अघोषित राय ले ली थी जहाँ की जो जैसी जितनी जरूरी समस्याएँ बताई गईं  बिना किन्तु परन्तु लगाए उन सबका समाधान करने की हामी भर दी और उसी को अपना घोषणा पत्र मान लिया वही दिल्ली वालों की जरूरतों के हिसाब का दिल्ली वालों का बताया हुआ घोषणा पत्र दिल्ली वालों को ही पढ़ पढ़ कर सुनाते रहे और सारी  समस्याओं के समाधान का आश्वासन देते रहे ! ऐसी परिस्थिति में पूरी दिल्ली का खुश होना स्वाभाविक ही था !इतने पर भी तीन सीटें उनके हाथ से निकल जाना ये छोटी पराजय नहीं है ! आखिर उन तीन सीटों पर लोग ऐसा अलग से क्या चाहते थे जो देने के लिए हाँ नहीं की जा सकी !

    बंधुओ ! ऐसी परिस्थिति में हमें तो ये बात समझ में नहीं आ रही है कि केजरीवाल जी तीन सीटें हारे क्यों ? आखिर ऐसा क्या चाहती थी वहाँ की जनता जिसका समाधान केजरीवाल जी के घोषणा पत्र में नहीं था और यदि नहीं था तो उसमें केजरीवाल जी की मजबूरी आखिर क्या थी जब इतना सब कुछ हो ही रहा था तो दो चार लाइनें उनकी भी समस्याओं और समाधानों की बोल दी जातीं तो क्या बिगड़ जाता किसी और का ! इसलिए इतने अच्छे घोषणा पत्र के बाद भी तीन सीटें हार जाना निजी तौर पर मैं तो इसे केजरीवाल जी की सबसे बड़ी हार मानता हूँ साथ ही यह भी सोचता हूँ कि आखिर इतना चिंतन मनन करने के बाद भी केजरीवाल जी का घोषणा पत्र उन तीन सीटों पर फेल हो गया क्यों! जबकि सभी प्रकार की समस्याओं के समाधान का आश्वासन उन्होंने दे ही रखा था   फिर चूक ऐसी कहाँ क्या हुई जो तीन सीटें हार गए एक आध होती तो सोचा भी जाता !हमें  तो ये भी लगता है कि उन तीन सीटों की जनता पर रिसर्च किया जाना चाहिए कि उनकी ऐसी समस्याएँ आखिर थीं क्या जिनका समाधान करने का केजरीवाल जी आश्वासन नहीं दे सके वो भी आखिर क्यों ?

 

arvind

आतिशी मारलेना, 33 साल
आतिशी के पिता मार्क्सवादी विचार में यकीन रखते थे. इसलिए घर में नए सरनेम की परंपरा शुरू हुई. मार्क्स का 'मार' और लेनिन का 'लेना'. लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी का मेनिफेस्टो तैयार करने में अहम भूमिका निभाई. सेंट-स्टीफेंस और ऑक्सफोर्ड का बैकग्राउंड और भारत के गांवों में काम करने का अनुभव उनकी ताकत है. पार्टी की प्रवक्ता हैं और मजबूती से पार्टी का पक्ष रखती हैं.


दीपक वाजपेयी, 42 साल
AAP के आधिकारिक मीडिया संयोजक. पत्रकारिता का अच्छा-खासा अनुभव. पार्टी और केजरीवाल पर लगे तल्ख आरोपों से निपटने के लिए मीडिया-रणनीति बनाई. अंतत: दिल्ली की जनता ने 'भगौड़ा' और 'नक्सलवादी' जैसे लांछनों के खिलाफ वोट दिया और AAP को बंपर जीत मिली.


नागेंद्र शर्मा, 42 साल
पूर्व पत्रकार और पार्टी की मीडिया रणनीति बनाने में दीपक के अहम सहयोगी. 2013 में जब केजरीवाल मुख्यमंत्री बने थे तो नागेंद्र शर्मा को उनका मीडिया सलाहकार नियुक्त किया गया था. ट्विटर पर वह खुद को एक पूर्व पत्रकार और तकनीकी रूप से वकील बताते हैं.


ऋचा पांडे मिश्रा
सोशल आंत्रेप्रेन्योर. पिछले साल पार्टी से जुड़ीं. दिल्ली कैंपेन कमेटी की एकमात्र महिला सदस्य. बूथ मैनेजमेंट और AAP की महिला विंग का कामकाज में अहम भूमिका रही. दिल्ली चुनावों से पहले महिलाओं को पार्टी से जोड़ने का काम भी किया. ट्विटर पर अपने परिचय में लिखती हैं, 'जब अपनी निंदा सुन कर भी हृदय प्रसन्न होगा उस स्थिति के लिए प्रयासरत.'
 
पंकज गुप्ता, 48 साल
AAP की फंडिंग के इंचार्ज. पार्टी की फंडिंग ईमानदार और पारदर्शी तरीके से हो, यह सुनिश्चित करते हैं. 2013 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 20 करोड़ का फंड जुटाया. इस चुनाव में भी पार्टी करीब 18 करोड़ रुपये जुटाने में कामयाब रही. पंकज को सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में 25 साल का अनुभव है. नौकरी छोड़कर सामाजिक कार्य करने लगे. गरीब परिवार के बच्चों को पढ़ाने से शुरू किया, फिर जनलोकपाल आंदोलन से होते हुए AAP में आए. पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य हैं.
 
आशीष तलवार, 45 साल
पार्टी के अहम रणनीतिकारों में से एक. राजनीति के अच्छे जानकार माने जाते हैं. कांग्रेस के स्टूडेंट विंग से जुड़े रहे हैं. दिल्ली की कालोनियों की समस्याओं पर अच्छी पकड़. 2013 विधानसभा चुनाव से पहले AAP में आए. वाराणसी के लोकसभा चुनावों में सांगठनिक कार्यकुशलता का परिचय दिया
 दुर्गेश पाठक, 25 साल
दिल्ली में सिविल सर्विसेस की परीक्षाओं की तैयारी कर रहा इलाहाबाद का एक लड़का 2011 में अन्ना आंदोलन से जुड़ा. अक्टूबर में पार्टी ने जो दिल्ली इलेक्शन कैंपेन ग्रुप बनाया, उसमें तमाम बड़े नामों के साथ यह लड़का भी शामिल था. नाम था दुर्गेश, पार्टी ने दुर्गेश को डोर-टु-डोर प्रचार करने वाले कार्यकर्ताओं का मुखिया बनाया. अब उनके IAS में जाने की योजना नहीं है, हालांकि AAP को लेकर उनके मन में अभी कई योजनाएं हैं.

.दिलीप पांडे, 38 साल
पार्टी का संगठन मजबूत बनाने में बड़ा रोल निभाया. हॉन्ग कॉन्ग में आईटी की नौकरी करते थे, छोड़कर पार्टी से जुड़े. कार्यकर्ताओं के साथ डोर-टु-डोर जाकर प्रचार किया और वोटरों को पार्टी पर दोबारा भरोसा जताने के लिए राजी किया. गुरिल्ला स्टाइल कैंपेनिंग के मास्टर. पार्टी कार्यकर्ताओं में बेहद लोकप्रिय. प्रदर्शनों के दौरान कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर पुलिस को खूब छकाया. पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ताओं में से एक और दिल्ली प्रदेश के सचिव. एक रोमांटिक नॉवेल 'दहलीज़ पर दिल' भी लिख चुके हैं.

राघव चड्ढा, 30 साल
आम आदमी पार्टी के युवा और तेज-तर्रार प्रवक्ताओं में से एक. पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट, फंड जुटाने में एक्सपर्ट माने जाते हैं. फंड जुटाने के लिए कला प्रदर्शनी और डिनर जैसे नए तरीके पार्टी को सुझाए और फिर लाइमलाइट में आए. हाल में AAP के फेसबुक पेज पर किसी ने इन्हें 'अगला केजरीवाल' बता डाला. AAP समर्थकों में 'हमारा अपना हैरी पॉटर' के नाम से लोकप्रिय
.अंकित लाल, 30 साल
AAP की सोशल मीडिया टीम के चीफ. चुनाव से पहले ट्विटर पर AAP ने BJP को लगातार पटखनी दी तो इसका श्रेय अंकित और उनकी छोटी सी टीम को जाता है. चुनाव से पहले 'मफलरमैन' 19 दिनों तक ट्रेंड में बनाए रखना हो या 'दिल्ली डायलॉग' को सोशल मीडिया पर क्रिएटिव तरीकों से प्रमोट करना, अंकित ने हर बार पार्टी को रिजल्ट दिए हैं. पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, 2012 में नौकरी छोड़ अन्ना आंदोलन से जुड़े थे. 

Tuesday, 10 February 2015

प्रधानमंत्री जी के पास जनता के मन की बात सुनने का समय कहाँ है ?

      प्रधानमंत्री जी अपने मन की बात तो जनता को सुनाते हैं किंतु जनता के मन की बात नहीं सुनते हैं आखिर क्यों सुने जनता उनके मन की बात ?

प्रधानमंत्री जी को जनता के मन की बात सुनने का अवसर ही नहीं मिला वो तो केवल अपने मन की बात करते हैं जनता के मन की बात प्रधानमंत्री जी तक पहुँचाने के लिए ऐसा कोई सशक्त माध्यम नहीं है जिससे जनता को भी पता लग सके कि उसकी बात प्रधान मंत्री जी तक पहुँच पाई है या नहीं । इसके दो ही रास्ते हैं या तो जनता के द्वारा पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए जाएँ या समस्याओं  के समाधान किए जाएँ ! किन्तु इनमें से कुछ भी नहीं हो पा रहा है। 

   काँग्रेस की सरकार से यदि  भाजपा सरकार की तुलना करना हो तो कितना भी  जरूरी काम हो किंतु  जनता का मिल पाना न उनसे संभव था और न इनसे संभव है जनता के प्रश्नों के उत्तर न वो देते थे और न ही  ये देते हैं जनता के  जरूरी  कार्य न वो करते थे और न ही ये करते हैं ।अभी तक दोनों में अंतर केवल इतना है कि मनमोहन सिंह जी अपने मन की बात करते भी   नहीं थे और जो मन होता था वो करते जाते थे ,मोदी जी  काम करें या न करें किंतु अपने मन की बात बता जरूर देते हैं किंतु  जनता के मन की बात सुनते वो भी नहीं हैं यदि  सुनने का अभ्यास होता तो जनता चुनावों में हराने के  बजाए मिलकर भी अपना रोष प्रकट कर सकती  थी किन्तु जनता के मन की बात सुनने का धैर्य  कहाँ है  !अपने मन की बात तो वो कहते हैं किंतु जनता की नहीं सुनते हैं !इसलिए जनता ने ऐसे सुना दी !

भाजपा के हारने का कारण कहीं श्री राम मंदिर का न बन पाना तो नहीं था !

कहाँ गया वो जय श्री राम का उद्घोष,कहाँ भूल गई संसद पर भगवा फहराने वाली बात आदि आदि !

भाजपा के वर्तमान शीर्ष पुरुष को शिरडी  जाके  साईं राम  का दर्शन करने का अवसर तो मिला किन्तु अयोध्या जाकर श्री राम लला के दर्शन  का अवसर ही नहीं मिला जिनकी सरकार बनाने के लिए वो ढाँचा तोड़ा गया जो मस्जिद सा बना था किन्तु जिसमें  शर्दी गर्मी वर्षा आदि से  श्री राम लला का बचाव होता था और आज प्रभु  श्री राम  चबूतरे पर विराजमान सबकुछ सह रहे हैं ! उनके नाम और कृपा से बनी दिल्ली की केंद्र सरकार के मुखिया आज तक प्रभु श्री राम से मिलने भी नहीं पहुँच पाए जबकि विदेशों तक घूम आए !

भाजपा की इतनी शर्मनाक हार क्यों ?

        वस्तुतः भाजपा की हार दिल्ली में आज भी  नहीं हुई है क्योंकि भाजपा का आम कार्यकर्त्ता इस चुनाव में तन से तो सम्मिलित था किन्तु  मन  से नहीं था !अचानक किरण जी के लाए जाने से निरुत्साहित था उसे लगने लगा था कि ऐसी  पार्टी के  लिए बलिदान देने का  मतलब ही क्या है जिस बलिदान का कोई अर्थ ही न हो !इसलिए बंधुओ !यदि हार हुई है तो केवल कुछ लोगों के अहंकार की ! किरण जी के लाए जाने के बाद दिल्ली भाजपा तो समझ ही नहीं पा रही थी कि  ये हो क्या रहा है और ऐसा किया क्यों जा रहा है !ये सोचा ही नहीं गया कि यदि 15 वर्ष तक विपक्ष में रहकर जो पार्टी अपना चेहरा भी नहीं तैयार कर पायी या अपनों पर भरोसा ही नहीं कर पा रही है दिल्ली  की जनता उस पर भरोसा कैसे कर लेगी ! वैसे भी जिन  कर्ताओं पर भरोसा पार्टी ने ही नहीं किया जनता उनकी बातों पर  कैसे कर लेती ! किरन जी बहुत अच्छी हैं किंतु उन्हें पार्टी का चेहरा अचानक बनाए  जाने को पार्टी कार्यकर्ता अंत तक पचा ही नहीं पा रहा था ।

केजरी वाल जी !सच्चाई की राह पर चल पाना बहुत कठिन होता है !

      सच्चाई की राह पर चलने की  बात भाजपा ने भी की थी किंतु चल कौन पाता  है सच्चाई की राह !आप भी सँभल कर चलना !सच्चाई की राह बहुत रपटीली होती है !

   दिल्ली के लोगों ने कमाल कर दिया, हम सच्चाई के राह पर चले और जीते: अरविंद केजरीवाल

    किन्तु  केजरीवाल जी ! कुछ दिन पहले भाजपा को भी ऐसा ही लग रहा था कि वो भी सच्चाई की राह पर चलने के कारण दिल्ली की सात में से सातो सीटें जीते हैं वैसे भी ये बहुत बड़ी जीत थी किन्तु भाजपा वालों को ये समझने में भारी भूल हुई है कि  उन्होंने जीती हैं सच्चाई ये थी कि उन्होंने दिल्ली  को कुछ विश्वास दिलाया था इस  जनता ने जिताई थीं किन्तु उस पर वे खरे नहीं उतर पाए तो जनता ने बिना बिलम्ब किए ही इन चुनावों में अपना जबर्दश्त रोष प्रकट  किया है इसलिए केजरीवाल जी !  आपने भी वायदे बहुत किए हैं जिन्हें पूरा कर पाना कठिन होगा ! इसलिए  प्रकार से जनता का विश्वास बनाए एवं बचाए रखना होगा !