Wednesday, 27 December 2017

तलाक क्यों ? नारियों को पूजने की परंपरा वाले देश में तलाक !ये तो नारियों के सम्मान और सुरक्षा के साथ खुला खिलवाड़ है

   धर्म के आधार पर महिलाओं का अपमान और उत्पीड़न करने की अनुमति किसी को नहीं दी जा सकती !  
सेवा और संस्कार, हमारा देश एक परिवार !
 सभी को करना है सत्कर्म,यही है सबसे पावन धर्म !!
     महिलाओं का सम्मान इस सरकार में इस प्रकार का पहली बार देखा जा रहा है जब महिलाओं के सम्मान के लिए मालिओं पर अत्याचार करने वालों के विरुद्ध इतना बड़ा अभियान छेड़ा जा रहा हो !"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता " अर्थात नारियों की पूजा जिस देश में होती है वहीँ देवता रमण  करते हैं ऐसी  पवित्र संस्कृति वाले देश में "तीनतलाक" जैसी  अनैतिक परम्पराओं का क्या औचित्य !इसे महिलाओं का उत्पीड़न नहीं तो क्या कहा जाए ऐसे विषयों पर अब विचार किया जा रहा है जिसका सम्प्रदाय आदि से कोई लेना देना नहीं है ये तो भरतीय संस्कृति के अनुरूप भी है !
      यदि इसे ऐसा न माना जाए तो बलात्कारी लोग यदि अपने धर्म का हवाला देकर बलात्कार की अनुमति चाहें तो उन्हें कैसे दी जा सकती है !इसलिए अपने अपने धर्म संस्कृति का पालन सभी लोग करें इसमें किसी को क्या आपत्ति किंतु राष्ट्रधर्म और राष्ट्रिय संस्कृति का सम्मान सभी को समान रूप से करनी चाहिए !इस सरकार में पहली बार ये सब कुछ देखने सुनने को मिल रहा है जो देश के लिए गौरव की बात है !ये देश में चल रही संघ के संस्कारों के प्रति समर्पित सरकारों में ही देखने को मिलता है जो समाज और राष्ट्र केहित में है 
      गायों की रक्षा  जैसे विषयों की आलोचना क्यों होनी चाहिए ?इस देश में "सर्वे भवंतु सुखिनः" की संस्कृति है सभी के साथ गायों की सुरक्षा भी हो तो क्या आपत्ति !रही बात धर्म के आधार पर गायों को मानने न मानने की तो हम किसी को मानें या न मानें किंतु किसी का अपमान करना या उसे मारना अपनी संस्कृति का अंश तो नहीं है किन्तु यदि कुछ लोग धर्म के आधार पर गायों को मारने में परहेज नहीं करते हैं तो ये उनके अपने धर्म की समस्या है किन्तु उनकी इस निजी समस्या के लिए गायों को क्यों मार दिया जाए !     
 संघ की  विचारधारा से जुड़े लोग देश के उत्थान के विषय में  सोचते हैं  देशवासियों के आपसी संबंधों को मधुर बनाने के लिए प्रयास करते  हैं टूटते परिवारों एवं विखरते समाज को जोड़कर रखने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं !गरीबों से अमीरों तक तक  ग्रामीणों से लेकर शहरियों तक स्त्रियों से लेकर पुरुषों तक  सभी जातियों सम्प्रदायों की पीड़ा परेशानी को मिटाने के लिए प्रयत्नशील है संघ !देश का सम्मान स्वाभिमान  बनाने बचाने एवं बढ़ाने के लिए लगातार लगा है संघ ! देश के धार्मिक प्रतीकों परम्पराओं मर्यादाओं के प्रति समर्पित है संघ !
    इसीलिए संघ की परम्पराओं  नीतियों आदर्शों को मानने वाली सरकारों के कार्यकाल के समय नेताओं की बोली भाषा अचार व्यवहार एवं सरकारी योजनाओं में भारतीय संस्कृति  झलकते देखी जा सकती है !इसे कोई भगवाकरण कहे या साम्प्रदायिकता कहे किन्तु भारतीय संस्कृति का सम्मान करने को साम्प्रदायिकता या तुष्टिकरण की राजनीति  कैसे कहा जा सकता है !क्या ये सच्चाई नहीं है कि आजादी के इतने दिनों बाद तक भारत को भारतीय दृष्टि से देखने समझने में शर्म समझी गई !वर्तमान समय में देश के प्रधान मंत्री जी अक्सर भातीय त्योहारों के हास उल्लास आनंद आदि की चर्चा करते देखे जाते हैं आखिर पहले क्यों ऐसा नहीं होता था !भारतीय संस्कृति से सम्बद्ध त्योहारों की केवल बधाई दे दी जाती थी बस !गायों की सेवा सुरक्षा आदि पर जो ध्यान आज दिया जाता है गंगा निर्मलीकरण हो या अन्य धार्मिक प्रतीकों का प्रोत्साहन वर्तमानसरकार की तरह पिछली सरकारों में देखने को क्यों नहीं मिला !योग आयुर्वेद जैसे विषयों को इस रूप में ऐसा प्रोत्साहन तो पहले कभी नहीं देखा गया क्यों ?
      

IAS अधिकारियों को ईमानदार सिद्ध करने की कोशिश करती पकड़ी गई सरकार !

संपत्तियों का ब्योरा नहीं, तो IAS अफसर को प्रोन्नति नहीं   see more.... https://navbharattimes.indiatimes.com/metro/mumbai/other-news/ias-officer-not-promoting-property-details/articleshow/62257128.cms

किंतु सरकार को अधिकारियों की ईमानदारी पर यदि शक नहीं है तो सरकार उनसे सम्पत्तियों का ब्यौरा माँगती ही क्यों है और यदि शक है तो  IAS अधिकारियों की सम्पत्तियों की सघन जाँच करे !लीपापोती क्यों कर रही है सरकार !इनके भ्रष्टाचार में सम्मिलित होने से सिद्ध होता है कि सरकार ही भ्रष्टाचार में  सम्मिलित है क्योंकि घूस का पैसा यदि ऊपर तक न जाए तो सरकार में सम्मिलित नेता लोग अधिकारी बेचारों को घूस लेने ही क्यों देंगे !चूँकि सरकार का हर विभाग अपने अपने दायित्व का निर्वाह ईमानदारी पूर्वक नहीं कर रहा है अतिक्रमण से लेकर सभी प्रकार के अपराधों के लिए IAS अधिकारियों के अलावा दूसरा और जिम्मेदार हो ही कौन सकता है वो अपराध रोकना ही चाहें तो अपराधियों  में न इतनी दम है और न इतनी योग्यता शिक्षा आदि ही कि वो ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों को चकमा दे जाएँ !जो अधिकारी शक्त हैं वहाँ आज भी सतयुग है उन्होंने अपनी योग्यता कार्यक्षमता के बलपर अभी भी ईमानदारी और कानून का राज स्थापित कर रखा है!किंतु जिनकी नियत में ही खोट हो उन्हें ईमानदारी से कुछ मिलता नहीं हैं और घूस खोरी से संपत्तियाँ इकट्ठी करते चले जाते हैं !
     सरकार चाहे तो ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को पकड़ कार उनकी संपत्तियाँ जप्त करके उन्हें न केवल नकारी से बहार निकले अपितु उनके भ्रष्टाचार लापरवाही आदि से जो काम बिगड़े या लेट हुए हैं या उनकी अपराधियों के साथ साँठ गाँठ होने से जिनके जो काम बिगड़े हैं उन्हें उसका मुआबजा दिया जाना चाहिए साथ ही अधिकरियों से यह पेनाल्टी वसूली जानी चाहिए !
      सरकार यदि ईमानदारी बरतना चाहे तो भ्रष्टाचार करने वालों को पकड़ने के लिए जब जिस अधिकारी की नौकरी लगी थी तब से उनकी सम्पत्तियों की जाँच शुरू करे सरकार !नौकरी लगते समय उनके पास संपत्तियाँ कितनी थीं और आज कितनी हैं उनका मेल उनकी सैलरी आदि उचित आय स्रोतों से मेल खाती है या नहीं जिनकी खाती है उनके विरुद्ध अविलम्ब सीधी कार्यवाही करे सरकार तब तो सरकार  ईमानदार अन्यथा खाक ईमानदार !सरकार को यदि ईमानदारी नहीं पसंद है तो ईमानदारी का नाटक बंद करे सरकार !    
      

Saturday, 23 December 2017

समय विज्ञान

समय विज्ञान !
     संसार में समय ही सबसे अधिक शक्तिशाली  होता है इसीलिए प्रकृति से लेकर सामान्य जन जीवन तक एवं आकाश से लेकर पाताल तक सब जगह समय का ही बोलबाला है !सृष्टि में जब जो कुछ भी होता या हो सकता है या जो कुछ  भी पहले कभी हो सका होगा वो सब कुछ समय के सहयोग से ही संभव हो पाया होगा !इस दुनियाँ में सब कुछ घटित होते देखा जाता है !
     सृष्टि निर्माण के साथ ही जिस समय सारिणी  का निर्माण हुआ होगा उसी का पालन होता चला आ रहा है !सामान्य रूप से देखने सुनने में जो नया भी लगता है या जो आकस्मिक होते दिखता है वो भी न तो नया है और न ही आकस्मिक ! सब कुछ उसी समय सारिणी के अनुशार ही  तो  होता चला जा रहा है !
       समय की अत्यंत वेगवती बलवती धारा है जैसे बाढ़ग्रस्त प्रबल प्रवाह युक्त नदी अपनी धारा के साथ आसपास का सबकुछ चपेट में लेकर बहा ले जाती है उसी प्रकार से समय की विशाल धारा सारे संसार को अपने प्रवाह के साथ साथ दौड़ाए चली जा रही है इस विराट सृष्टि में समय के प्रवाह के साथ साथ सबकुछ बदलता चला जा रहा है नदियाँ मार्ग बदलती जा रही हैं पहाड़ों में परिवर्तन होते जा रहे हैं मौसम में बदलाव होते दिख रहे हैं !किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि इतनी जल्दी जल्दी आखिर सब कैसे हुआ जा रहा है ! बच्चा था वो युवा हो गया युवा वृद्ध हो गया पता ही नहीं चला कब और कैसे !जो नया सामान लाया गया था वो पुराना होकर टूट गया कूड़े  दान में चला गया !जो सुखी था वो दुखी हुआ जा रहा है जो दुखी था उसके घर खुशियाँ  छायी हुई हैं !जो घर बनाया गया था खूब चमकाया गया था वही पुराना  होकर गिरने लग गया !जिस लड़की या लड़के से मिलने के लिए कभी दिनरात उत्सुकता बनी रहती थी !जिससे विवाह करने के लिए घर वालों का समाज का कितना वैर विरोध सहना पड़ा फिर भी उससे विवाह किया किंतु उसी से आज हम पीछा छुड़ाने को उतावले घूम रहे हैं वही घरवाले और वही समाज हमें समझा रहा है बेटा तलाक मत लो !जो पद पाने के लिए जो प्रतिष्ठा पाने के लिए जो पत्नी या पति पाने के लिए जो पुत्र या पुत्री पाने के लिए जिसे मित्र बनाने के लिए जिस उद्योग को लगाने के लिए हमने न जाने कितने प्रयास किए कितने लोगों से जी हुजूरी की कितनी मुशीबत उठाई किंतु उन सभी चीजों से अचानक मोह भंग होने लगा और उन्हीं परिस्थितियों में तनाव बढ़ने लगा जिसके लिए हमने अज्ञानवश किसी व्यक्ति वस्तु स्थान संबंध आदि को दोषी मानना शुरू कर दिया जबकि  विवशता वहाँ भी है जबकि हम तो केवल अपने अंदर झाँक रहे हैं इसलिए अपने साथ होने वाला परिवर्तन ही पता है किंतु परिवर्तन तो उधर भी होते जा रहे हैं बदलाव की बेचैनी वहाँ भी है! कुल मिलाकर सब कुछ बदला जा रहा है जिसे रोक कर रखने का किसी में कोई वश नहीं है !बीमार होने वाले को हम स्वस्थ नहीं रख सकते मरने वाले को हम जीवित नहीं बचा सकते नष्ट होने वाले को हम सुरक्षित नहीं रख सकते !जो होने जा रहा होता है यदि हम भी वैसा ही करने के लिए कोई प्रयास कर रहे होते हैं तो उस हुए को अपने प्रयास का फल मान लेते हैं और यदि हमारे प्रयास के विरुद्ध कुछ हुआ तो मौन होकर कुदरत पर सारा दोष मढ़ देते हैं !कई बार किसी काम के लिए हम बहुत प्रयास कर रहे होते हैं किंतु उसमें लगातार असफलता मिलती चली जाती है और कई बार बिना प्रयास के भी वो सफलता हमें अनायास ही मिल जाती है!ऐसे सभी बदलाव न जाने क्यों और कैसे होते चले जा रहे हैं किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है मनुष्य के बश में क्या है क्या नहीं उसे समझ में ही नहीं आ रहा है !मनुष्य के प्रयासों की सीमाएँ क्या हैं पता ही नहीं लग पा रहा है एक व्यक्ति छोटी सी दुर्घटना का शिकार होकर मर जाता है तो दूसरा बहुत बड़ी दुघाटना का शिकार होकर ही बिल्कुल स्वस्थ बच जाता है !
     चिकित्सा शास्त्र पर अत्यंत भरोसा रखने वाला मैं आयुर्वेद के लगभग सारे ग्रंथ गुरुमुख  से समर्पित भावना से पढ़े हैं जिनके आधार पर जीवन को सुरक्षित रखने के विषय में लगने लगा कि चिकित्सा के बिना जीवन कितना कठिन है !आधुनिक चिकित्सा से विद्वानों के प्रयासों को देखकर मन अभिभूत हो गया इतनी सफलता !आँखों से लेकर लिवर हृदय किडनी घुटने  आदि सब कुछ बदल देने जैसी बड़ी बड़ी सफलताएँ देखकर उन्हें नमन करने को मन करता है! महिला चिकित्सकों के हिसाब से प्रसव संबंधी असंख्य समस्याएँ सर्जरी आदि इतना कठिन हिसाब किताब !ऐसी सुविधाओं के अभाव में जीवन असंभव सा लगने लगता है !टीकाकरण जैसी बड़ी सफलताएँ जिन्हें कई बड़ी बीमारियों के उन्मूलन का श्रेय दिया जाता है !प्रश्न उठता है कि ऐसी सभी बड़ी स्वास्थ्य सुविधाएँ महानगरों या नगरों में सुलभ हैं किंतु किसानों  गरीबों ग्रामीणों को धन के अभाव में ये सब कैसे सुलभ हो सकती हैं !जिज्ञासा वश सुदूर जंगलों में जाकर अलग अलग जगहों पर कुछ कुछ समय  व्यतीत किया लोगों से मिला जुला उनके रहन सहन और समस्याओं को समझने का प्रयास किया !उनसे बातचीत करके उनके बीच रहकर लगा कि आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के बिना भी वे अपने स्वास्थ्य सुख से संतुष्ट हैं उनके यहाँ कभी कोई टीकाकरण नहीं हुआ !प्रसव करने के लिए कभी किसी चिकित्सक के यहाँ नहीं गए प्रसव संबंधी समस्याएँ भी महानगरों की अपेक्षा बहुत कम देखने सुनने को मिलीं !डेंगू जैसे रोगों से बचने  के  लिए वहाँ मच्छरों से बचना संभव ही न था !जहाँ दिन रात सोना जागना आदि सारा रहन सहन मच्छरों के बीच ही करना पड़ता हो यहाँ तक कि साँप बिच्छु आदि बिषैले जीव जंतुओं के बीच ही रहना पड़ता है सिंह भालू आदि हिंसक जीव जंतुओं के बीच फूस पत्तियों की बनी झोपड़ियों छप्परों कच्चे मकानों ने के लिए वहाँ मच्छरों
आदि में रहकर जीवन कितना सुरक्षित था ! किंतु उनसे बातचीत करके तमाम प्रकार से टोह लेने की कोशिश की तो उनके मन में  अपने स्वास्थ्य को केवल संतुष्टि थी अपितु अपने स्वास्थ्य पर उन्हें इतना आत्म विश्वास था  कि वे ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर चढ़ जाते दस पंद्रह फिट ऊपर से कूद जाते भारी वजन सिर पर रखकर  काफी  दूर तक चले जाते थकावट महसूस न करते !एक दूसरे से कुस्ती लड़ने का उत्साह और सारे सारे जीवन बिना दवाएँ खाए हुए निर्वाह करके स्वस्थ  रह लेने वालों का अनुपात कम नहीं था ! उनका उत्साह देखकर लगता था कि इनके शरीर स्वस्थ हैं !कुछ भी कैसा भी खा पीकर पचा लेने की अद्भुत क्षमता थी उन लोगों में !ये सब देख कर लगा कि यदि शरीर इतने सुदृढ़ हों तो चिकित्सा की आवश्यकता ही न पड़े तो कितना अच्छा हो !
       कुल मिलाकर महानगरों की उत्तम स्वास्थ्य सुविधाएँ देखकर मन मोहित हो जाता है किंतु सुदूर जंगलों में स्वस्थ शरीर एवं उत्साहित मन देख कर आत्म विभोर हुए बिना रह नहीं पाया !वास्तव में शरीर स्वस्थ हो और औषधि आदि चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता ही न पड़े तो इससे अच्छा और दूसरा क्या हो सकता है !
      इन सबसे अलग जब अपने मनमें दोनों जगहों के रहन सहन का  तुलनात्मिका दृष्टि से अध्ययन करने लगा तो देखा जंगलों में भी बहुत बूढ़े बूढ़े लोगों के भी दाँत सुरक्षित थे बुढ़ापे  में भी आँखें इतनी ठीक थीं कि बिना चश्में के भी  वे सुई में धागा डाल लेते थे!ऐसे में वे महानगरों के सुगर, वीपी, फैमिली डाक्टर, फिल्टर्ड पानी शुद्ध खाना जैसी बातें सुन कर वे अपने बीच उनका उपहास उड़ा रहे थे !इधर शहर के लोग वहाँ  आभाव युक्त रहन सहन से सुविधाओं की दृष्टि से अपने को बेहतर समझते हैं !किंतु इतनी सारी सुख सुविधाएँ चिकित्सा सुविधाएँ एवं उत्तम खान पान आदि पाकर भी शरीर इतने स्वस्थ सुदृढ़ और उत्साहित क्यों नहीं हो  पाते हैं कि ग्रामीणों की तरह शरीर के प्रति निश्चिंतता की भावना भरी जा सके !
     वस्तुतः सुदूर जंगलों एवं महानगरों के जीवन में सुविधाओं की दृष्टि से बहुत बड़ा अन्तर होने के बाद भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं घटनाओं दुर्घटनाओं में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं था !दोनों जगह स्वस्थ और रोगी दोनों प्रकार के लोग थे मृत्यु जैसी दुर्घटनाएँ दोनों जगह समान रूप से घटती  देखी जाती हैं !मनोरोग तनाव तलाक अर्थात वैवाहि जीवन में तनाव जैसी दुर्घटनाएँ भी दोनों जगहों पर लगभग समान थीं ! गरीबों ग्रामीणों जंगलों के रहन सहन में संसाधनों का अभाव होने के बाद भी प्रसन्नता पूरी थी जबकि महानगरों की जीवन शैली  में सभी साधनों से  संपन्न लोग भी तनावग्रस्त देखे जाते हैं !जंगली जीवन में अभाव जनित कुछ  परेशानियाँ  एवं स्वास्थ्य समस्याएँ दिखाई पड़ीं तो साधन संपन्न महानगरीय जीवन में  स्वभाव जनित स्वास्थ्य और समस्याएँ देखने को मिलीं !कुल मिलाकर संसाधनों  को भूलकर स्वास्थ्य  मृत्युदर की दृष्टि से यदि देखा जाए तो दोनों जगहों को  देखकर ऐसा लगा कि अधिकाँश मामलों में बहुत  बड़ा अंतर नहीं है !
     ऐसी परिस्थितियों में अपने शोध को संसाधनों से ऊपर उठाकर समय के धरातल पर  स्थापित करके अनुसंधान  प्रारंभ किया तो पाया कि रोग चिकित्सा और मृत्यु  के विषय में सबसे अधिक महत्त्व समय  का है क्योंकि  प्रारब्ध जन्य रोगों का समय निश्चित होता है कि ऐसे रोग कितनी उम्र में कितने समय के लिए होंगे !उन रोगों में उतने समय तक चिकित्सा से कितना लाभ होगा ये समय के आधीन है क्योंकि अच्छी से अच्छी चिकित्सा भी समय विपरीत  होने पर  परिणाम भी विपरीत ही देती है !मानसिक तनाव भी किसको किस उम्र में कितने समय  के लिए होगा  ये भी समय के आधीन होता है !किसी की मृत्यु कब होगी ये भी समय के आधीन है इसीलिए जिसकी मृत्यु का समय समीप आ जाता है उस पर अच्छी से अच्छी चिकित्सा सुविधाओं के प्रयोग भी निष्फल होते देखे  जाते  हैं !इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से  प्रमुख है ही किन्तु चिकित्सा के परिणाम  भी समय के अनुशार ही  मिलते देखे  जाते हैं !
      जीवन की दृष्टि से समय और साधन दोनों का  चाहिए समय अनुकूल होता है तो साधन बनते चले जाते हैं समय प्रतिकूल होता है तो बड़े से बड़े प्रयास निष्फल होते  चले जाते हैं  इसके बाद जीवन में सफलता तभी  जब समय साथ देता है अन्यथा एक से एक  ग्यानी गुणी अनुभवी परिश्रमी  चरित्रवान लोग भी निरंतर प्रयास करके भी असफल  जाते हैं तो  कई बार साधन विहीन ज्ञान गुण हीन लोग भी सफल  जाते हैं ! कुल मिलाकर  सफलता की दृष्टि से  यदि देखा जाए तो संसाधनों की  अपेक्षा समय का महत्त्व  अधिक है क्योंकि समय अनुकूल होता है तो  संसाधन  स्वयं ही मिलते चले जाते हैं !
              समय की समस्या 
       समय सभी प्रकरणों में प्रमुख भूमिका निभाता है फिर भी समय चूँकि दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए लोग समय की भूमिका को समझ  नहीं पाते  हैं किंतु जैसे किसी घर में या कारखाने में बिजली के सारे उपकरण चलते  दिखाई पड़ रहे हों और बिजली दिखाई नहीं पड़ती है तो भी उन उपकरणों को चलते देखकर उनमें बिजली की उपस्थिति का अंदाजा लगा लिया जाता है उसी तरह से  जीवन के सभी पक्षों में समय की उपस्थिति का अनुभव किया जाना चाहिए !
    पूर्वानुमान विज्ञान -
    किसी कारखाने में बिजली के द्वारा चलने वाली मशीनों का चलना न चलना बिजली के आधीन होता है बिजली आएगी तो चलेंगी नहीं आएगी तो नहीं चलेंगी ऐसी परिस्थिति में मशीनें कब चलेंगी कब नहीं चलेंगी कितनी देर तक चलेंगी यदि ये जानना हो तो इसके लिए केवल मशीनों पर रिसर्च करके इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है अपितु इसके लिए तो बिजली के आने जाने के विषय में सटीक जानकारी जुटानी होगी उसी के आधार पर इस बात का निश्चय किया जा सकता है कि ये मशीनें कब चलेंगी कब नहीं चलेंगी !
    इसके अलावा मशीनों के चलने न चलने के विषय में मशीनों को देखकर या मशीनों से निकलने वाले धुएँ ,कचरे को देखकर या फिर मशीनों से निकलने वाली आवाज को सुन कर उस पर अनुसंधान करके उसके आधार पर मशीनों के चलने न चलने का पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं होगा यदि ऐसा किया जाए तो ये दिखावा मात्र है इसके अलावा कुछ भी नहीं है ! पूर्वानुमान लगाने के लिए बिजली का अध्ययन करना होगा और उसी के आधार पर किया गया पूर्वानुमान ही सही मानना होगा
       मशीनों के चलने के लिए जिस ऊर्जा की आवश्यकता होती है वो बिजली से मिलती है किंतु मशीनों के चलने में मुख्यभूमिका का निर्वाह करने वाली बिजली दिखाई नहीं पड़ती है फिर भी ये बात सबको पता है इसलिए इसका मतलब ये तो नहीं है कि मशीनों के चलने को कुदरत का करिश्मा  मान लिया जाए !ठीक इसी प्रकार से इस सृष्टि में होने वाले सभी प्रकार के बड़े बदलावों में मुख्यभूमिका समय की होती है चूँकि समय दिखाई नहीं पड़ा रहा होता है इसलिए समय की भूमिका को नकारते हुए वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए बादल एवं समुद्रताप की जाँच के आधार पर लगाया गया पूर्वानुमान खानापूर्ति मात्र है इसे तर्कसंगत कैसे माना जा सकता है !!
     इसी प्रकार से भूकंपादि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ समय से प्रेरित होकर ही घटित होती हैं फिर भी भूकम्पों के आने के कारण केवल पृथ्वी के अंदर खोजे जाना कितना तर्क संगत है उसके लिए तरह तरह की बातें गढ़ना या धरती के अंदर प्लेटों की परिकल्पना करना कितना युक्तियुक्त माना जा सकता है !
    कुल मिलाकर समय जब जैसा आता है प्रकृति का स्वरूप भी तब तैसा ही स्वाभाविक रूप से स्वयमेव बनने लगता है वर्षा लायक समय आता है तो वर्षा होती है ऋतुएँ भी तो समय का ही प्रतिनिधित्व करती हैं !इसलिए वर्षाऋतु का समय आने पर बादल स्वयमेव आने लगते हैं काली काली घटाएँ उठने लगती वर्षा होने लगती है जैसे वर्षा ऋतु में बादलों को कहीं से पकड़ पकड़ कर आकाश में नहीं छोड़ना पड़ता है कुलमिलाकर मेघपालन की परंपरा तो कहीं भी नहीं है !समय का संकेत मिलते ही बादल आकाश में उपस्थित हो जाते हैं ! शरद ऋतु में मेघ रहित आकाश होता है हेमंत और शिशिर में सर्दी कोहरा पाला आदि होता है ग्रीष्म में धूल धूसरित आँधी चलने लगती है गर्मी बढ़ जाती है !ऋतुएँ समय का स्वरूप ही तो हैं आकाश एक जैसा रहने पर भी ऋतुएँ बदलने से वातावरण बदलता रहता है !
      इसी प्रकार से सभी प्राणियों का शरीर हमेंशा एक जैसा रहता है समय बीतने के कारण शरीर में बाल वृद्ध आदि अवस्थाजन्य बदलाव समय बदलने के कारण ही तो होते जाते हैं इसी  समय के बदलने या बिगड़ने से स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है और समय जब अच्छा होता है तो स्वास्थ्य सुधर  जाता है समय के बदलने से स्वास्थ्य की परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं !स्वास्थ्य समय के आधीन होने के कारण ही तो कोई कुशल चिकित्सक सैकड़ों रोगियों को अच्छी से अच्छी चिकित्सा देने के प्रयास करता है फिर भी सभी रोगी तो स्वस्थ नहीं हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ ही रहते हैं कुछ मृत भी हो जाते हैं !कुलमिलाकर जिसका जैसा समय उस पर चिकित्सा का असर भी वैसा ही होता है !समय यदि अच्छा होता है तो कमजोर चिकित्सा से भी अच्छा लाभ मिल जाता है इसीकारण तो सुविधाओं के अभाव में भी गरीबों ग्रामीणों वनवासियों में भी स्वास्थ्य सामान्य रहने का अनुपात अच्छा रहता है !दूसरी ओर यदि समय अच्छा नहीं होता है तो सभी सुविधाओं से संपन्न बड़े बड़े अस्पतालों में मिलने वाली अच्छी से अच्छी चिकित्सा भी धोखा दे जाती है !इसलिए चिकित्सा के क्षेत्र में भी समय की ही प्रमुखता सिद्ध होती है !
     इसी प्रकार से समय के अनुशार सोच बदलती रहती है जब समय अच्छा होता है तो जिन परिस्थितियों में जिन लोगों से मिलकर पहले प्रसन्नता हुआ करती उन्हीं से मिलकर बाद में तनाव होने लगता है न हम बदले न वो बदले न एक दूसरे के शरीर बदले फिर तनाव किस बात का !केवल समय के बदल जाने से संबंध बदल गए !कुल मिलाकर सत्ता संपत्ति संबंध स्वास्थ्य अदि सब कुछ समय के आधीन ही तो है समय अच्छा हो तो सब कुछ अच्छा बन जाए और समय बुरा हो तो सब कुछ बिगड़ जाता है !जिस परिस्थितियों में जिन लोगों के साथ पहले कभी प्रसन्न रह लिया करते थे उन्हीं परिस्थितियों में उन्हीं लोगों के साथ रहकर भी तनाव होने लगता है ! जिनकी एक झलक पाने को कभी तरसते रहते थे समय बदला तो उन्हीं से तलाक लेना पड़ा !बाक़ी सबकुछ तो वही था केवल समय बदल गया तो सम्बन्ध बिगड़ गए !
     समय जब जब बिगड़ता है तब तब प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाएँ बढ़ने लग जाती हैं !प्रकृति शरीर और समाज का वातावरण बिगड़ने लग जाता है समय के बिगड़ने से वायु भी प्रदूषित होकर बहने लगती है !वायु प्रदूषित होते ही लोगों में अचानक पागलपन सवार होने लगता है उन्माद आतंकवाद आदि उपद्रवों में जन भागीदारी देखने को मिलने लगती है आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगता है ! तेज हवाएँ अर्थात आँधी तूफान आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल सी दिखने लगती हैं!अनाज, जल और औषधियों का नाश होने लगता है !वृक्ष फल फूल आदि रुग्ण होने लगते हैं पशुओं पक्षियों आदि जीव जंतुओं की चेष्टाएँ बदलने लगती हैं सूर्य चंद्र समेत समस्त ग्रहों के आकार प्रकार में विकार दिखने लगते हैं !पहाड़ अपने रंग बदलने लगते हैं कुएँ तालाब नदियाँ बड़ी तेजी से सूखने लगते हैं शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगती है लोगों में दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं लोगों को अचानक ऐसा गुस्सा  आने लगता है कि वे मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग ! यहाँ के लोग उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस  करेंगे ।अचानक ज्वर रोग तथा सामूहिक पागलपन की परेशानियाँ बढ़ने लगती हैं शिक्षित और समझदार लोग भी पागलों जैसी दलीलें देने लगते हैं ! ऐसे लक्षण जब लगातार कुछ समय तक बने रहते हैं तब भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं !भूकंप से प्रभावित क्षेत्र को तब तक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ साथ आतंकवादी समस्याओं से भी विशेष सावधान रहना होता है !सामाजिक दंगे भड़क सकते हैं ! कुल मिलाकर ऋतुओं के बदलते ही प्रकृति भी ऋतुजनित समय के स्वभाव के अनुरूप आचरण करने लगती है !
      वर्षाऋतु का समय आने  पर पानी बरसने  लगता है प्रातः काल के समय के संकेत समझकर जैसे मुर्गा बोलने लगता है कमल खिल जाता है उसी समय के संकेत को समझकर सूर्य उग  आता है ऐसी सभी घटनाएँ स्वतंत्र स्वतंत्र रूप से समय के कारण घट रही होती हैं गलती हम करते हैं कि कमलों के खिलने को समय के साथ स्वतंत्र रूप से न जोड़ कर हम सूर्य के साथ जोड़ देते हैं और कहने लगते हैं कि सूर्य उगने पर कमल खिलता है जबकि प्रातः काल होने पर कमल खिलते हैं और सुबह का समय देखकर ही मुर्गा बोलता है महत्त्व समय का होता है सभी घटनाएँ समय के साथ घट रही होती हैं भगवान् श्री कृष्ण के जन्म के समय तोआधी रात्रि के समय कमल खिल गए थे जबकि उस समय तो सूर्य का उदय न होकर अपितु चंद्र का उदय हुआ था !इससे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि कमल का खिलना समय से सम्बंधित है इसका सूर्य चन्द्रमा के उदयास्त से कोई विशेष संबंध नहीं है !
    संसार में घटित होने वाली ऐसी बहुत सारी घटनाओं को हम समय के साथ न जोडका उन्हें आपस में एक दूसरे से चिपकाकर देखने लगते हैं जिसके कारण उनमें दिखने वाले समयजन्य प्रभावों का अनुभव हमें अलग अलग  नहीं हो पाता है !
        भागवत महापुराण में श्री कृष्ण जन्म प्रकरण में कहा गया कि
                                  "अथ सर्व गुणोपेतः कालः परं शोभनः !"
         अर्थात सभी गुणों से युक्त जब सुन्दर समय आया तब समय के प्रभाव से सभी ग्रह नक्षत्र तारे आदि सौम्य हो रहे थे !उसी सुन्दर समय के प्रभाव से दिशाएँ स्वच्छ एवं प्रसन्न थीं !वर्षा ऋतु होने पर भी नदियों का जल निर्मल हो गया और रात्रि होने पर भी कमल खिल गए फूलों से वृक्ष लद गए पशु पक्षी आदि सभी प्रन्नता का अनुभव करने लगे सुंदर वायु चलने लगी !सुन्दर समय के प्रभाव के कारण जिस प्रकार से समस्त चराचर जगत में चारों ओर सुखद प्रसन्नता पूर्ण वातावरण बनने लगा उसी प्रकार से समय की इसी शुभता के फल स्वरूप जैसे चराचर जगत में सभी प्रकार के शुभ लक्षण प्रकट होने लगे उसी प्रकार से समय की इसी शुभता के प्रभाव से भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार भी हो गया !इसके मूल में तो समय की शुभता ही थी !भगवान् श्री राम के अवतार के समय तो अत्यंत शुभ समय का संचार देखकर देवताओं को लगा कि इतना सुन्दर और शुभ समय चल रहा है इसमें तो भगवान का अवतार हो सकता है ऐसा समझकर देवता लोग भगवान् की स्तुति करने लगे और स्तुति करके जब अपने अपने धाम को चले गए तब भगवान प्रकट हुए !यथा -
                                           दो.सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम !
                                               जग निवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम !!
      कुलमिलाकर समय की शुभता के दर्शन जो समस्त चराचर प्रकृति में दिख रहे थे वही श्री रामावतार या श्री कृष्णअवतार के स्वरूप में भी प्रकट हुए !सब में पृथक पृथक रूप से समय के दर्शन हो रहे थे किंतु समय के प्रभाव को पीछे करके बताया यह जाने लगा कि भगवान् के प्रादुर्भाव के प्रभाव से प्रकृति में सारे सुन्दर शुभ लक्षण प्रकट हो रहे थे !जिस सुन्दर समय के प्रभाव स्वरूप भगवान् का अवतार हो सकता है तो उस सुन्दर समय के प्रभाव से प्रकृति में यदि सुन्दर लक्षण प्रकट होने लगें तो इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए !दूसरी बात सुन्दर समय के प्रभाव से प्रकृति में यदि इतने सारे शुभ लक्षण देखने को मिल सकते हैं तो अशुभ समय के प्रभाव से अतिवर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप जैसी आपदाएँ दिखने लग जाएँ तो इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए ये भी समय का प्रभाव ही तो है !     
         वर्षा आदि ऋतुओं का समय आते ही समस्त प्रकृति समय के संकेतों का पालन करने लगती है वर्षाऋतु से संबंधित समय का संकेत मिलते ही यही प्रकृति ग्रीष्म ऋतु की तपी हुई धरती को वर्षा से सराबोर कर देती है सूखी पड़ी हुई नदियों तालाबों में जल ही जल दिखाई पड़ने लगता है !ऐसा ही सभी ऋतुओं के काल खंड में समय का प्रभाव देखने को मिलता है !कुलमिलाकर जो प्रकृति समय के आदेश की अवहेलना किए बिना उसका पालन निरंतर करती रहती है उस प्रकृति में भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफान जैसी प्राकृतिक घटनाएँ समय के आदेश की अवहेलना करके कैसे घटित हो जाएँगी ! कुल मिलाकर समय की उपेक्षा करते हुए समय को समझे बिना प्रकृति को समझने के लिए हम तरह तरह के तमाम असफल प्रयास किया करते हैं और प्राकृतिक विषयों पर पूर्वानुमान लगाया करते हैं या भविष्य वाणियाँ किया करते हैं जो तीर तुक्का ही साबित होती हैं !
       समय की खोज !
    समय को नापने के लिए ही तो युगों वर्षों ऋतुओं महीनों पक्षों सप्ताहों दिनों रातों की न केवल परिकल्पना की गई है अपितु इस ब्रह्मांड में सब कुछ  समय चक्र से सुदृढ़ता पूर्वक बँधा हुआ  है !प्रत्येक वर्ष एक निश्चित समय और सुनिश्चित प्राकृतिक वातावरण में प्रारंभ होते देखा जाता है !प्रत्येक वर्ष प्रारंभ होते समय किसी के द्वारा बिना कोई प्रयास किए हुए भी सारी प्राकृतिक परिस्थितियाँ एक जैसी स्वयं ही बनने लग जाती हैं !इसी प्रकार से वर्ष में 12 महीने बनते देखे जाते हैं वर्ष में 12 बार चंद्रमा और सूर्य का मिलन होता है जिसे अमावस्या कहा जाता है इसी प्रकार से अपनी अपनी गति के अनुशार अर्थात 13 अंश 20 कला प्रतिदिन के हिसाब से सूर्य और चंद्र दोनों ही वर्ष में 12 बार एक दूसरे से बिल्कुल दूर होते चले जाते हैं जिसे पूर्णिमा कहा जाता है ! जिस दिन ये दूरी सबसे अधिक होती है उसदिन पृथ्वीवासियों को चंद्रमा का पूर्णविम्ब दिखाई पड़ता है इसलिए उसे पूर्णिमा कहा जाता है!अमावस्या को सूर्य ग्रहण पड़ेगा और पूर्णिमा को चन्द्रगहण ये निश्चित है !किस अमावस्या पूर्णिमा को ग्रहण पड़ेगा किसमें नहीं पड़ेगा ये भी सुनिश्चित है कितने बजकर कितने मिनट से शुरू होगा कब समाप्त होगा कितने घंटा मिनट चलेगा !पृथ्वी के किस भाग में कौन ग्रहण दिखाई पड़ेगा किसमें नहीं दिखाई पड़ेगा ये सब कुछ सुनिश्चित है !
ऋतुएँ कितनी होंगी किस ऋतु के बाद कौन ऋतु आएगी वो कितने समय तक रहेगी उस समय प्राकृतिक वातावरण कैसा रहेगा आदि सब कुछ सुनिश्चित है उसी क्रम में अनादि काल से सब कुछ चलता चला आ रहा है !
      इसी प्रकार से किस प्रतिपदा को चंद्र कितने बजे उदित होगा उस समय उसका कौन श्रृंग उन्नत दिखाई देगा यह भी निश्चित है !प्रतिदिन सूर्य चंद्र कितने बजे उदित होंगे और कितने बजे अस्त होंगे ये सब पूर्व निर्धारित है ऐसे ही सभी ग्रहों के उदय अस्त अदि का समय सुनिश्चित है !
   ये सब सुनिश्चित तो पहले से ही रहे होंगे किंतु इनके क्रम को समझने के लिए पूर्वजों को उस युग में भारी रिसर्च करना पड़ा होगा अन्यथा समय के ये सारे भेद कैसे समझे जा सकते थे और कैसे इस बात का पता लगाया जा सकता था कि ग्रहण अमावस्या या पूर्णिमा को ही पड़ेगा एवं किस अमावस्या या पूर्णिमा को ग्रहण पड़ेगा और किसमें नहीं पड़ेगा !इसका पता लगा पाने में भी वे सफल हुए !
    प्रकृति में जो कुछ भी हो रहा है वो देखने में भले ही अचानक होता हुआ दिखे किन्तु सच्चाई ये है कि अचानक कुछ भी नहीं हो रहा है सब कुछ पूर्व निर्धारित एवं समय सूत्र में पिरोया हुआ सा है !यहाँ जो कुछ भी हो रहा है हो चुका है या होगा वो सब कुछ समय के सिद्धांत के अनुशार ही घटित होता चला जा रहा है और सब कुछ सुनिश्चित है किंतु अंतर इतना है कि पूर्वजों ने समय के सिद्धांत को समझा और उसके आधार पर प्रकृति के बड़े बड़े रहस्य सुलझा लिए वर्षों महीनों पक्षों तिथियों ग्रहणों एवं ग्रहों के उदय अस्त आदि के रहस्य सुलझा लेना कोई आसान काम तो नहीं था किंतु अपने पूर्वज तपस्या साधना पूर्वक प्रकृति संबंधी अनुसंधानों में समर्पित भावना से निरंतर लगे रहे तो उसका फल यह हुआ कि प्रकृति से संबंधित बहुत कुछ आगे से आगे पता लगा लिया जाता है !ऋतुओं का क्रम हमें आगे से आगे पता होता है कि किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी उस समय का प्राकृतिक वातावरण अर्थात मौसम कैसा होगा !किस अमावस्या या पूर्णिमा पर कौन सा ग्रहण पड़ेगा वो कितने समय का होगा कब प्रारंभ होगा और कब समाप्त होगा उसकी कुल अवधि कितनी होगी आदि बातों का सटीक पूर्वानुमान समय की जिस विधा के आधार पर लगाया जा सका उसके आधार पर वर्षा बाढ़ आँधी तूफान भूकंपों आदि का पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है !
   पूर्वजों के उस परिश्रम का सदुपयोग करने के लिए समय विज्ञान के विषय में विशेष अभियान छेड़ा जाना चाहिए! कितना कठिन रहा होगा उस युग में समय विज्ञान पर अनुसंधान करना !अब जब आधुनिक विज्ञान इतना विकसित हो चुका है तब भी सूर्य के आस पास तक पहुँच पाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव सा लगता है तो प्राचीन युग में जब आधुनिक विज्ञान का सहयोग बिल्कुल न के बराबर था एवं आधुनिक समय की तरह अत्याधुनिक यंत्रों की इतनी सुविधा उस समय में नहीं थी ऐसी परिस्थिति में उस समय सौर मंडल से लेकर समस्त सौर पद्धतियों समेत सूर्य की गति का अध्ययन करना कितना कठिन रहा होगा ! इससे मिलती जुलती कठिनाइयाँ चंद्र से संबंधित अध्ययनों के लिए भी थीं !इसी प्रकार से पृथ्वी पर मानव रहता अवश्य था किंतु पृथ्वी से संबंधित अध्ययनों के लिए परिस्थितियाँ सूर्य चंद्र आदि से बहुत कुछ अलग नहीं थीं कठिनाइयाँ यहाँ भी लगभग उतनी ही या उससे कुछ कम थीं !
    अनुसंधानों की दृष्टि से सागरों सरिताओं पहाड़ों आदि से सुशोभित पृथ्वी के आकार प्रकार विस्तार आदि को समझ पाना कोई आसान काम तो नहीं था !ऐसी परिस्थिति में लौकिक प्रयासों से सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि के विषय में जानकारी और अनुभव कर पाना कितना कठिन रहा होगा कल्पना की जा सकती है !उस समय तो दूर संचार आदि के माध्यमों से सूचनाओं के आदान प्रदान का भी कोई साधन नहीं था !ऐसी परिस्थितियों में पृथ्वी सूर्य चंद्र आदि के अतिविशाल पिंडों के विषय में पहले तो जानकारी जुटाना फिर उनके विषय में अध्ययन करना अनुभव इकट्ठे कर पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु सीमित साधनों के उस युग में असंभव भी था !ऐसी परिस्थिति में लौकिक विधि से अनुसंधान कर पाना तो उनके वश का नहीं था फिर भी अपने पूर्वजों ने हिम्मत नहीं हारी और समय को माध्यम बनाया समय के सिद्धांतसूत्र खोजे और उन सूत्रों को गणित विधि से निबद्ध करके उन सूत्रों के आधार पर ही अनुसंधान पूर्वक सूर्य और चंद्र पर जाए बिना समस्त पृथ्वी का भ्रमण किए बिना भी एक जगह अपने आसन पर बैठे बैठे सूर्य चंद्र और पृथ्वी के आकार प्रकार विस्तार आदि को गणित के द्वारा नाप लिया उनकी गति का सटीक अनुमान लगा लिया और उन्हीं के आधार पर सुदूर आकाश में घटित होने वाले सूर्य चंद्र आदि ग्रहणों का हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त की है  समय के उन्हीं सिद्धांतों का अध्ययन अनुसन्धान करके यदि वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप जैसी प्रकृति से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए !
        ये सब कहने के पीछे मेरी एक ही भावना है कि जिस प्रकार से प्रकृति में जो कुछ भी घटित हो रहा है वो सब कुछ सुनिश्चित है इसके भी सुदृढ़ सिद्धांत हैं प्रकृति में होने वाले सभी प्रकार के बदलाव उन्हीं सुदृढ़ सिद्धांतों से बँधे हुए हैं उन्हीं के अनुशार होते चले जा रहे हैं उसी प्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों एवं भूकम्पों जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के घटने के लिए भी तो समय के कोई न कोई सुदृढ़ सिद्धांत अवश्य होंगे जिनके अनुशार सभी कुछ घटित होता चला जा रहा है उनकी खोज की जानी चाहिए !   
      समय से संबंधित इस गणितीय विधा के अलावा प्रकृति के किसी भी विषय में पूर्वानुमान लगाने की बातें करना कोरी कल्पना मात्र है क्योंकि पहली बात तो संपूर्ण प्रकृति के स्वभाव को समझ पाना उनके परिवर्तनों के विषय में अनुभवों का संग्रह करना आसान काम तो नहीं है इससे भी अधिक कठिन है प्रकृति के विषय में सब कुछ जानते हुए भी प्रकृति के प्रत्येक आयाम में प्रतिपल घटित हो रहे बदलावों पर एवं पृथ्वी समेत अति विशाल ग्रह पिंडों पर हमेंशा सूक्ष्म दृष्टि बनाए रखना और उन परिवर्तनों का संग्रह करते हुए उनके फलस्वरूप घटित होने वाली घटनाओं का अनुभव हँसी खेल का विषय तो नहीं होता है !
      मनुष्य शरीर तो अति विशाल ग्रहपिंडों की तरह नहीं होता है कि जिसके प्रत्येक पक्ष को देखा समझा न जा जा सके किंतु इसके बाद भी किसी स्वास्थ्य वैज्ञानिक के साथ लगातार रहने वाला कोई भावी रोगी यदि चाहे कि स्वास्थ्य वैज्ञानिक उसे भविष्य में होने वाले रोगों के विषय में पहले से सचेत करता चले तो क्या संभव है कि वो स्वास्थ्य वैज्ञानिक अपने स्वास्थ्य विज्ञान के बल पर उसे भविष्य में होने वाले रोगों के विषय में पूर्वानुमान लगाकर सचेत कर  सकता है कि  उसे भविष्य में कब कौन सा रोग होने वाला है!शरीर वैज्ञानिक शरीर में होने वाले रोगों के विषय में यदि पूर्वानुमान नहीं लगा सकते तो मौसम वैज्ञानिक मौसम के विषय में एवं भूकंप वैज्ञानिक भूकंप के विषय में कभी कोई पूर्वानुमान लगाने में सफल हो पाएँगे इसकी कल्पना कैसे की जा सकती है !क्योंकि पूर्वानुमान विषय ही समय विज्ञान का है इसलिए उसमें अन्य प्रकार से लगाए गए तीर तुक्कों की कोई विश्वसनीयता नहीं होती  है!
      मनुष्य शरीरों से संबंधित पूर्वानुमानों को लगाने में असफल लोगोंके प्रकृति का विस्तार तो अत्यंत विशाल है इसलिए उसके प्रत्येक आयाम में हो रहे बदलाओं पर हमेंशा सूक्ष्म दृष्टि बनाए रखना तो असंभव है ही उसमें भी इस प्रकार की अपेक्षा आधुनिक विज्ञान के ऐसे दम्भियों से कटी नहीं की जा सकती जो स्वाभाविक वैज्ञानिक न हों अपितु केवल विज्ञान की कक्षाओं में बैठकर कुछ पढ़े और पास हो गए हैं इसलिए वैज्ञानिक हैं क्योंकि वास्तविक वैज्ञानिक,कवि और प्रेमी तो अपने लक्ष्य के प्रति इतना अधिक समर्पित होते हैं कि उन्हें अपने शरीर की भी सुध नहीं रह जाती शौक शान श्रृंगार सैलरी आदि के लिए कोई वैज्ञानिक जीना भी चाहे तो उसकी आत्मा गँवारा नहीं करती क्योंकि वो देश और समाज पर इतना बड़ा उपकार कर रहा होता है कि उसके अनुसंधान की कीमत कोई भी सरकार या समाज धन से नहीं चुका सकती क्योंकि इसके लिए उसे अपनी सभी इच्छाएँ छोड़नी पड़ती हैं इतना पढ़लिख कर भी उसे हर सुख सुविधा स्वाद सामग्रियों से मुख मोड़ना पड़ता है !आजीवन विद्यार्थी व्रत का कठोरता पूर्वक पालन करना होता है !   
             पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जैसे घर द्वार भूलना पड़ता है सब सुख भोग की भावनाओं का विसर्जन करना पड़ता है!अपनी सारी इच्छाओं को मारना पड़ता है कहाँ तक कहें कुछ बनने के लिए एक विद्यार्थी को भावनात्मक रूप से एक बार मरना पड़ता है! यदि कुछ बन कर निकल पाया तो यह उसका नूतन अर्थात नया जन्म  होता है, यदि नहीं बन पाया तो वह इतना टूट चुका होता है कि उसे अपना मन मारकर आजीवन जीवन ढोना पड़ता  है !ऐसे बलिदानी विद्यार्थियों को खाने का स्वाद,  स्वजनों से संवाद एवं हास्य विनोद की भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए पूर्ण संयमित जीवन जीना पड़ता है! जब नींद बलपूर्वक अपनी चपेट में ले ले तो रात्रि और जब विद्यार्थी बलपूर्वक अपनी नींद को धक्का देकर भगा दे वहीँ सबेरा हो जाता है! सच्चे विद्यार्थी के जीवन में इस सूर्य के उदय अस्त का कोई महत्त्व नहीं होता उनका अपना सूरज अपना मन होता है रात-रात भर जगने का हर क्षण दिन के समान होता है इस व्रती जीवन की तुलना केवल एक सच्चे साधक से की जा सकती है!सच्चे वैज्ञानिकों का जीवन और अपने शोध के प्रति समर्पण इसी प्रकार का होता है वो गृहस्थी में रहते हुए भी मानसिक रूप से विरक्त होते हैं !
      जब मैं बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में पढ़ता था तो गंगा जी के किनारे अस्सी घाट पर मिले एक साधक ने विज्ञानसाधना के विषय में समझाते हुए हमसे  कहा था कि जैसे किसी व्यक्ति के हाथ पैर बाँधकर पानी में डाल दिया जाए उस  पानी में डूबे हुए व्यक्ति के मनमें जितनी छटपटाहट बाहर निकलने के लिए होती है ठीक इसीप्रकार की छटपटाहट विज्ञान के विषय में अनुसंधान के वाले साधकों के मन में होनी चाहिए!

        

Friday, 22 December 2017

संसद आदि सदनों में हुल्ल्ड मचाकर कार्यवाही रोकी क्यों जाती है ?

 शिक्षा योग्यता आदि के बलपर लोग अपनी बात समझा भी सकते हैं और दूसरों की समझ भी सकते हैं अन्यथा हुल्लड़ मचा मचाकर समय पास किया करते हैं !
क्या सांसदों में इतनी भी योग्यता शिक्षा आदि नहीं होती है कि वे अपनी बात दूसरे सम्मानित सदस्यों को समझा सकें और उनकी भावना को समझ सकें !अशिक्षा एवं अयोग्यता के कारण संसद आदि सदनों में मचाया जाने वाला हुल्ल्ड शोर शराबा असभ्य आचरण ऊट पटाँग बयानबाजी आदि तभी तो देखने सुनने को मिलती है !राजनीति में प्रत्याशी बनाते समय यदि शिक्षा  और योग्यता का ध्यान दिया जाता तो ऐसे लोग संसद का बहुमूल्य समय बर्बाद न कर रहे होते और कार्यवाही सुचारु रूप से चल रही होती !
     राजनैतिक पार्टियों के मालिक लोग शिक्षा योग्यता आदि की उपेक्षा करके अपने घर खान दान वाले नाते रिश्तेदारों आदि को टिकट देते समय या पैसे लेकर टिकट बेचते समय उनकी शिक्षा योग्यता आदि का ध्यान ही नहीं दे पाते हैं बेचारे !जिसकी कीमत जनता को चुकानी पड़ती है आखिर जनता के खून पसीने की कमाई से ही तो चलती है संसद ! 
     इतना सब होने के बाद भी प्रसन्नता इस बाद की है कि यदि राजनैतिक क्षेत्र निश्चित न होता और उद्दंड नेता लोग इसी समाज में बिना राजनीति के ऐसे ही छुटा घूम रहे होते तो अब तक समाज का न जाने कितना नुकसान कर चुके होते ऐसे  आर्थिक नुक्सान तो हो रहा है किंतु येलोग एक जगह में सीमित तो हैं !

सेक्सालु बाबाओं और सेक्सालु कथाबाचकों के पास जाने वाले भी तो वैसे ही होते हैं !

     धर्म के नाम पर सेक्स का लुफ्त  उठाने के शौकीन समाज को ईश्वर सद्बुद्धि दे !
    ऐसे समाज को ये बात क्यों नहीं समझ में आनी चाहिए कि जिसने भगवान का भजन करने के लिए अपने माता पिता भाई बहनों पत्नी बच्चों आदि को छोड़ा है वो चेली चेले बनाता क्यों  घूमेगा !धंधा व्यापार क्यों फैलाएगा !जो घर द्वार अपनी इच्छा से छोड़ के आया वो आश्रमों के झमेले में पड़ेगा ही क्यों !
    जो बाबा धन दौलत के  पीछे भागेगा भोगपीठ बनाएगा धंधा व्यापार फैलाएगा हाईटेक आश्रम बनाएगा सुख सुविधा के साधन जुटाएगा सुंदर सुंदर चेला चेली बनाएगा तो उन्हें भोगेगा क्यों नहीं !जिसे भोगना न होता वो भोगियों या सद्गृहस्थों  जैसे साधन इकट्ठे ही क्यों करता !मांस न खाने वाले लोग मांस मछली अंडे आदि इकट्ठे ही क्यों करेंगे और पकाएँगे ही क्यों ?जो पका रहे हैं वे खाएँगे क्यों नहीं ?हाँ ,अभी नहीं तो बाद में खाएँगे सबके सामने नहीं तो अकेले में खाएँगे अन्यथा जो चीज खानी ही न होती वो पकाते ही क्यों ? 
    इसीलिए तो चरित्रवान संतों के पास न इतनी बड़ी भीड़ें कहाँ  होती हैं और न इतना धन होता है और न इतने इतने बड़े आश्रम होते हैं न उनके कोई धंधा व्यापार होते हैं और न  किसी सेठ साहूकार नेता खूँटा के पीछे पीछे दुम हिलाते घूमते ही हैं !!
    सेक्सालु कथावाचक सेक्स के लोभ में ही तो कीर्तन करते समय कहते सबसे कहते हैं हाथ उठाकर बोलो क्योंकि वे जिस लालच में कथा वाचक बने उन्हें वो सबकुछ देखने को मिल जाता है जागरण आदि में भी यही होता है !जहाँ हाथ नहीं उठवाए जाते हैं वहाँ अंग प्रदर्शन करने के शौक़ीन लोग जाते ही नहीं है इसी लिए चरित्रवान साधु संतों के पास भीड़ नहीं होती क्योंकि वे सेक्स सुविधाएँ प्रोवाइड नहीं कराते !
      ऐसे ब्याभिचारी बाबाओं कथा वाचकों का धर्म कर्म से कोई लेना देना  नहीं होता है जो जैसा है उसे वैसे ही बाबा मिल जाते हैं वैसे ही कथा  वाले अपनी अपनी पसंद !

Thursday, 14 December 2017

समय सूर्य

               
                                                                  :समयविज्ञान :

     समय हो या भाग्य इसका सामना हर किसी को करना ही पड़ता है !कुछ लोग केवल भाग्य को ही मानते हैं तो कुछ लोग भाग्य को न मानकर अपितु केवल कर्म को मानते हैं कुछ लोग दोनों को मानते हैं किंतु जीवन में किसकी कितनी भूमिका है ये उन्हें भी प्रायः नहीं पता होता है सच्चाई ईश्वर ही जाने !
     वस्तुतः हर किसी का भाग्य अर्थात समय एक बहती नदी की धारा  के समान होता है उसमें नौका चलाने वाला नाविक ही कर्म होता है !किसी नदी की धारा में बहने वाली तरह तरह की नौकाएँ नाविक अपनी अपनी रूचि के अनुशार अपनी अपनी दिशा में ले जाने का प्रयास करते हैं !जो अपनी नाव को किसी ओर ले जाने का प्रयास नहीं करते हैं  उनकी नाव नदी की धारा के साथ साथ केवल उसी दिशा में चलती है !ऐसी नौका उस नदी में बहते बहते कहाँ किस पड़ाव पर पहुँच पाएगी यह पता लगाने के लिए नदी की धारा की गति नापनी होगी और उस गति की गणना करके ये बताया जा सकता है कि नाव कितने समय में कहाँ पहुँच पाएगी !
    इसके अतिरिक्त धारा की परवाह न करने हुए जो नौकाएँ नदी की धारा के विरुद्ध आड़े तिरछे आदि किसी भी दिशा में ले जाई जाती हैं केवल नाविक की इच्छा के अनुशार चलाई जाने वाली ऐसी नौकाओं की गति अनिश्चित होने के कारण वो कहाँ कब पहुँच  पाएँगी इसका अनुमान लगा पाना कठिन होता है ! 
  इसी प्रकार से भाग्य अर्थात समय की धारा में बहती चली जा रही मनुष्य जीवन रूपी नौका जीवन से संबंधित किस दिशा में कितना आगे तक बढ़ सकती है और कब कहाँ पहुँच पाएगी इसका पूर्वानुमान तो लगाया जा सकता है किंतु समय की धारा के विरुद्ध या आड़े तिरछे आदि किसी भी दिशा में चलने वाले कर्मवादी लोगों का  जीवन भाग्य और कर्म के सहयोग से लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाता है !
      नदी पार करने की इच्छा रखे वाले लोग संभव है कि नदी की धारा के साथ न चलना चाहते हों अपितु केवल नदी ही पार करना चाहते हों तो भी नौका चलने के लिए तो उन्हें जल चाहिए ही जल के बिना नौका नहीं चलाई जा सकती है !इसी प्रकार कोरे कर्मवाद की जगह भाग्य मिश्रित कर्मवाद ही फलित हो सकता है !
    भाग्य ही समय है और  समय के साथ चलने वाले लोग उसी प्रकार से समय के आधीन होते हैं जैसे नदी में पानी की धारा के साथ साथ बहने वाली नौकाएँ !कौन नौका कब किसके समीप पहुँचेगी या कौन किससे कब  टकरा जाएगी  इसमें नौका की कोई भूमिका नहीं होती है ये तो जलधारा जिसे जिस को चाहे पास पास कर दे और जिसे चाहे दूर दूर कर दे जिसे चाहे आपस में भिड़ा दे ये सब कुछ जलधारा ही किया करती है किन्तु इस रहस्य को न समझने वाले लोग ऐसी परिस्थितियों में भी जैसे गुण और दोष नौकाओं में ही देखा करते हैं जबकि नौकाओं की उसमें कोई भूमिका ही नहीं होती है !
      इसीप्रकार से संसार में भाग्यवादी या समय के अनुशार जीवन जीने  की इच्छा रखने वाले लोगों के जीवन में जो  कुछ  भी अच्छा या बुरा घटित हो रहा होता है किसी से मिलना या बिछुड़ना मित्रता शत्रुता आदि समय प्रेरित  होती  है !
     कई बार नदी का प्रवाह तेज हो या तेज आँधी तूफान आदि आ जावे तो नाविक के प्रयास भी निष्फल होने लगते हैं तो उसी वेग के साथ ही नौकाएँ भी बहने लग जाती हैं उसी प्रकार से समय का प्रवाह यदि अधिक तीव्र हो तो कर्मवाद विफल हो जाता है और भाग्य ही अपना फल देने लगता है !
       समय क्या है ?
        समय सूर्य और चंद्र के आधीन है या सूर्य चंद्र समय के आधीन हैं !





























  !

Monday, 4 December 2017

सरकारों ने ही किया है समाज का सत्यानाश !अपराधी इतने गलत नहीं थे जितने गलत सरकारों में बैठे ईमानदार से दिखने वाले लोग हैं !

     नेताओं ने झूठ बोल बोलकर झूठे आश्वासन दे देकर लोकतंत्र का निरंतर उपहास किया है सरकारों में सम्मिलित नेताओं के झूठ अकर्मण्यता अयोग्यता अनुभव हीनता निर्लज्जता आदि दोषों से दूषित हो चुकी है राजनीति !  
 भ्रष्टाचार समाप्त करने का नारा देने वालो !
  सरकारों में सम्मिलित नेताओं और सरकारी कर्मचारियों को छोड़कर जनता तो घूस लेती नहीं हैं ऐसे भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही किए बिना झूठे नारे लगाने का पाखंड क्यों ?
नेतागिरी  का मतलब क्या केवल चोरबाजारी है क्या !
  आखिर विपक्ष में रहने पर जो नेता सत्ता पक्ष के जिन नेताओं पर भ्रष्टाचार के बड़े बड़े आरोप लगाया करते हैं वही सत्ता में आ जाने पर उन भ्रष्ट नेताओं पर कार्यवाही नहीं करते क्यों ?इसका मतलब वे खुद चोर झूठे लप्फाज मतलब परास्त बदमाश एवं अपराधों से समझौता करने वाले हैं या फिर वे स्वयं अपराध करने लगे हैं !
ईमानदार आज भी हैं बहुत लोग !
   न सभी लोग नेता हैं और न भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी बहुत लोग आज भी अपने खून पसीने की कमाई से ही बच्चे पालते हैं उन्हीं के संस्कारों के बलपर टिका हुआ है देश और समाज !
 नेता कम पढ़े लिखे हों तो अंधों बहरों गूंगों अपाहिजों की तरह करते कुछ नहीं केवल बुँबुआते  रहते हैं !
   ऐसे दिव्यांग नेता न सदनों में बोल पाते हैं न समझ पाते हैं ऐसे अयोग्य लोगों को बात बात में अधिकारी धमकाते  रहते  हैं "ऐसा किया तो जेल चले जाओगे !"इसलिए सब देखते हुए भी अंधों की तरह केवल झूठे भाषण दे देकर पाँच वर्ष तक जनता की कमाई को बेशर्मी से भोगा करते हैं ! नेताओं की अशिक्षा या अल्पशिक्षा लोकतंत्र की दुश्मन है !
    अधिकारी ईमानदार होते तो अपराध नहीं होते !
    सेना में संयम है हड़ताल करने की छूट नहीं है कठोर परिश्रम करने के लिए उन्हें प्रेरित किय जाता है देश सेवा की भावना से ओतप्रोत वो लोग जानते हैं कि बार्डर पर अपनी थोड़ी भी लापरवाही  अपने जीवन की दुश्मन बन सकती हैं इसलिए वे चुस्त रहते हैं बाकी अधिकारियों कर्मचारियों पर भी यदि ऐसा दबाव होता कि जिसकी लापरवाही भ्रष्टाचार आदि कुछ भी वो उन्हें ही भोगना पड़ेगा तो अपराध तो होते ही नहीं सब काम भी सही समय पर होते रहते !
चुनावों में वोट देना सबसे कठिन काम !भ्रष्ट राजनीति में योग्य नेताओं को खोजा  कैसे जाए !
    आप योग्य हैं ईमानदार हैं शिक्षित हैं समझदार हैं सच बोलने वाले हैं कर्मठ हैं तो आपको चुनावी टिकट मिल जाएगा क्या ?ऐसे लोगों को राजनीति  में कोई पार्टी घास ही नहीं डालती !तो वोट देने के लिए योग्य अनुभवी ईमानदार और कर्मठ नेताओं को खोजा कहाँ  जाए और चुना  कैसे जाए ?
  अधिकारियों से काम लेने के लिए नेताओं में योग्यता अनुभव कर्मठता और सेवाभावना होनी चाहिए !
  ऐसा करवाने के लिए सरकारों में बैठे नेताओं में योग्यता हो ईमानदारी हो कर्मठता हो लज्जा हो और देश एवं समाज के प्रति सेवाभावना हो !किंतु राजनेताओं में इतने गुण मिलना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है  पढ़ने लिखने में मन लगता होता तो घरवाले नेता बनने ही नहीं देते !घर का काम काज करने में मन लगता तो भी नहीं बनने देते !ईमानदार होते तो घर वाले कैसे छोड़ देते !शर्म होती तो घर वाले भी आदर देते !जिनमें उनके घरवालों को कुछ दिखा ही नहीं उनमें योग्यता जिम्मेदारी और कर्मठता के गुण खोज कर देने  होते हैं वोट 

Tuesday, 21 November 2017

आकृतियों शब्दों समय

समय और शब्दों का संबंधों के बनने बिगड़ने में बहुत बड़ा महत्त्व !
    'शब्दविज्ञान' भारत की प्राचीन परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा है इस आधार पर किसी प्रकरण पर विचार विमर्श करते समय संबंधित लोगों के मुख से निकले पहले शब्द का पहला अक्षर बहुत महत्वपूर्ण होता है उस अक्षर के आधार पर उस प्रकरण में उस व्यक्ति के द्वारा भविष्य में किए जाने वाले योगदान का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
     इसी विधा के आधार पर किसी व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर का अनुसंधान करके उसी के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यह व्यक्ति किस देश शहर गाँव आदि में कितना संतुष्ट रह सकता है एवं किस संगठन राजनैतिकपार्टियाँ  संस्थाएँ  परिवार आदि के विकास में कितना योगदान दे सकता है !साथ ही किस व्यक्ति के साथ इसका कैसा व्यवहार रहेगा एवं कौन व्यक्ति इसके साथ कैसा व्यवहार करेगा ?
 इसी नाम के आपसी सामंजस्य न बैठ पाने के कारण बहुत लोगों ने अपनों के अपनेपन को खो दिया है इससे वैवाहिक जीवन नष्ट हो रहे हैं परिवार बिखरते जा रहे हैं समाज टूटता जा रहा है !जब नाम विज्ञान के विचार की परंपरा थी तब कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे सभी दूसरे के साथ शांति पूर्ण ढंग से रह लिया करते थे !
     कई राजनैतिकपार्टियाँ संगठन  संस्थाएँ आदि इसी नामविज्ञान का दंश आज भी झेल रहे हैं जिनमें या तो विभाजन हो चुके हैं या विभाजन के लिए तैयार बैठे हैं !ऐसे तथ्य तर्कों प्रमाणों अनुभवों उदाहरणों के साथ यदि कभी किसी उचित मंच पर रखना प्रारम्भ किया जाए तो आम समाज के शिक्षित अशिक्षित आदि सभी वर्ग के लोग बहुत बड़ी संख्या में शब्दविज्ञान के विशाल प्रभाव को स्वीकार करने पर विवश होंगे !
       प्राचीनकाल में संभवतः इसीलिए नामकरण संस्कार की परंपरा थी जिसके आधार पर 'जन्मनाम' तो निश्चित हो जाता था किंतु व्यवहार के लिए पुकारने का नाम अलग से ऐसा रख लिया जाता था जिससे घर के सम्पूर्ण सदस्यों के साथ मधुर वर्ताव बना रहे !इसीलिए विवाह के बाद कन्या का नाम बदलने की परंपरा कुछ समाजों समुदायों में आज भी है !
     जिस ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का नाम उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर रखा गया वो जीवंत हो उठे बाकी  जिनका जैसा सामंजस्य उनको वैसी सफलता !रामचरित मानस में इस विधा का अधिक से अधिक पालन किया गया है वहाँ  पात्रों के नाम बदल पाना संभव न था इसलिए गोस्वामी जी ने घटनाओं और पात्रों के संवादों में आवश्यकतानुसार पात्रों के पर्यायवाची शब्दों का चयन किया है !
      ऐसी परिस्थिति में नामविज्ञान या शब्दविज्ञान के महत्त्व को समझते हुए सरकारी स्तर पर ऐसे अनुसंधान कार्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !

                       समय और आकृतियों का स्वभाव पर प्रभाव !

     समय बदलने से स्वभाव बदल जाता है और स्वभाव के अनुशार आकृतियाँ बदलती रहती हैं !जैसे कुछ स्वभाव स्थिर होते हैं वैसे ही कुछ आकृतियाँ भी स्थिर होती हैं !कुछ स्वभाव परिवर्तित होता रहता है उतनी ही आकृतियाँ भी बदलती रहती हैं !
    'आकृतिविज्ञान' भारतीय संस्कृति का हमेंशा से अभिन्न हिस्सा रहा है प्रकृति से लेकर पुरुष तक सबकी आकृति परिवर्तनों पर अनुसंधान किया जाता रहा है !सूर्य चंद्रमा की आकृति !इंद्र धनुष की आकृति ,बादलों की आकृति, आकाश में चमकने वाली बिजली की आकृति ऐसी ही समय समय पर आकाश में प्रकट होने वाली विभिन्न आकृतियाँ !इसी प्रकार से पृथ्वी और प्रकृति के विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ने वाली अनेकों प्रकार की आकृतियाँ !भवनों की आकृतियाँ ,पशुओं पक्षियों की आकृतियाँ या स्त्री पुरुषों की आकृतियाँ कुछ स्थाई होती हैं कुछ अस्थाई होती हैं जो अस्थाई या स्वनिर्मित होती हैं उनका प्रभाव भी अस्थाई ही होता है किंतु जो स्थाई अर्थात प्रकृति निर्मित होते हैं उनके स्थाई स्वभाव होते हैं !स्वभाव और आकार अर्थात आकृति का हमेंशा से अन्योन्याश्रित संबंध रहा है !जो व्यक्ति जैसा होता है वैसा उसका स्वभाव होता है इसी प्रकार से जो व्यक्ति जैसा दिखता है वैसा स्वभाव बनाने के लिए वो प्रयासरत होता है !इसीलिए तो किसी के शरीर का श्रृंगार देखकर किसी व्यक्ति के मन की बासना का पता लग जाता है !कम कपड़े पहनने वाले या अश्लील वेषभूषा धारण करने वाले स्त्री पुरुष औरों की अपेक्षा यौन दुर्घटनाओं के शिकार होते अधिक देखे जाते हैं !
      आकृतिविज्ञान के आधार पर किसी स्त्री या पुरुष के संभावित स्वभावजन्य विकारों का अनुसंधान करके उनके द्वारा भविष्य में घटित होने वाले अच्छे बुरे कार्यों का पूर्वानुमान बहुत पहले लगाया जा सकता है ! इसके द्वारा अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की पहचान में मदद मिल सकती हैं एवं अत्यधिक कामी पुरुषों स्त्रियों को अलग से पहचाना जा सकता है जिसके आधार पर उनसे वर्ताव करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं !राजनैतिकपार्टियों संगठनों  संस्थाओं आदि में कार्यकर्ताओं की शरीराकृतियों के अनुशार क्षमता परख कर जिम्मेदारी दी जाए तो वे उसका उत्साह पूर्वक निर्वाह कर सकेंगे !अन्यथा नहीं !
    इसी प्रकार से  ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का चयन करते समय यदि उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर पात्रों की आकृति का चयन करके यदि उचित भूमिका सौंपी जाए तो उस भूमिका में जीवंतता आ जाती है अन्यथा नहीं !


समय और शब्दों का संबंधों के बनने बिगड़ने में बहुत बड़ा महत्त्व !
    'शब्दविज्ञान' भारत की प्राचीन परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा है इस आधार पर किसी प्रकरण पर विचार विमर्श करते समय संबंधित लोगों के मुख से निकले पहले शब्द का पहला अक्षर बहुत महत्वपूर्ण होता है उस अक्षर के आधार पर उस प्रकरण में उस व्यक्ति के द्वारा भविष्य में किए जाने वाले योगदान का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
     इसी विधा के आधार पर किसी व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर का अनुसंधान करके उसी के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यह व्यक्ति किस देश शहर गाँव आदि में कितना संतुष्ट रह सकता है एवं किस संगठन राजनैतिकपार्टियाँ  संस्थाएँ  परिवार आदि के विकास में कितना योगदान दे सकता है !साथ ही किस व्यक्ति के साथ इसका कैसा व्यवहार रहेगा एवं कौन व्यक्ति इसके साथ कैसा व्यवहार करेगा ?
 इसी नाम के आपसी सामंजस्य न बैठ पाने के कारण बहुत लोगों ने अपनों के अपनेपन को खो दिया है इससे वैवाहिक जीवन नष्ट हो रहे हैं परिवार बिखरते जा रहे हैं समाज टूटता जा रहा है !जब नाम विज्ञान के विचार की परंपरा थी तब कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे सभी दूसरे के साथ शांति पूर्ण ढंग से रह लिया करते थे !
     कई राजनैतिकपार्टियाँ संगठन  संस्थाएँ आदि इसी नामविज्ञान का दंश आज भी झेल रहे हैं जिनमें या तो विभाजन हो चुके हैं या विभाजन के लिए तैयार बैठे हैं !ऐसे तथ्य तर्कों प्रमाणों अनुभवों उदाहरणों के साथ यदि कभी किसी उचित मंच पर रखना प्रारम्भ किया जाए तो आम समाज के शिक्षित अशिक्षित आदि सभी वर्ग के लोग बहुत बड़ी संख्या में शब्दविज्ञान के विशाल प्रभाव को स्वीकार करने पर विवश होंगे !
       प्राचीनकाल में संभवतः इसीलिए नामकरण संस्कार की परंपरा थी जिसके आधार पर 'जन्मनाम' तो निश्चित हो जाता था किंतु व्यवहार के लिए पुकारने का नाम अलग से ऐसा रख लिया जाता था जिससे घर के सम्पूर्ण सदस्यों के साथ मधुर वर्ताव बना रहे !इसीलिए विवाह के बाद कन्या का नाम बदलने की परंपरा कुछ समाजों समुदायों में आज भी है !
     जिस ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का नाम उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर रखा गया वो जीवंत हो उठे बाकी  जिनका जैसा सामंजस्य उनको वैसी सफलता !रामचरित मानस में इस विधा का अधिक से अधिक पालन किया गया है वहाँ  पात्रों के नाम बदल पाना संभव न था इसलिए गोस्वामी जी ने घटनाओं और पात्रों के संवादों में आवश्यकतानुसार पात्रों के पर्यायवाची शब्दों का चयन किया है !
      ऐसी परिस्थिति में नामविज्ञान या शब्दविज्ञान के महत्त्व को समझते हुए सरकारी स्तर पर ऐसे अनुसंधान कार्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !

                       समय और आकृतियों का स्वभाव पर प्रभाव !

     समय बदलने से स्वभाव बदल जाता है और स्वभाव के अनुशार आकृतियाँ बदलती रहती हैं !जैसे कुछ स्वभाव स्थिर होते हैं वैसे ही कुछ आकृतियाँ भी स्थिर होती हैं !कुछ स्वभाव परिवर्तित होता रहता है उतनी ही आकृतियाँ भी बदलती रहती हैं !
    'आकृतिविज्ञान' भारतीय संस्कृति का हमेंशा से अभिन्न हिस्सा रहा है प्रकृति से लेकर पुरुष तक सबकी आकृति परिवर्तनों पर अनुसंधान किया जाता रहा है !सूर्य चंद्रमा की आकृति !इंद्र धनुष की आकृति ,बादलों की आकृति, आकाश में चमकने वाली बिजली की आकृति ऐसी ही समय समय पर आकाश में प्रकट होने वाली विभिन्न आकृतियाँ !इसी प्रकार से पृथ्वी और प्रकृति के विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ने वाली अनेकों प्रकार की आकृतियाँ !भवनों की आकृतियाँ ,पशुओं पक्षियों की आकृतियाँ या स्त्री पुरुषों की आकृतियाँ कुछ स्थाई होती हैं कुछ अस्थाई होती हैं जो अस्थाई या स्वनिर्मित होती हैं उनका प्रभाव भी अस्थाई ही होता है किंतु जो स्थाई अर्थात प्रकृति निर्मित होते हैं उनके स्थाई स्वभाव होते हैं !स्वभाव और आकार अर्थात आकृति का हमेंशा से अन्योन्याश्रित संबंध रहा है !जो व्यक्ति जैसा होता है वैसा उसका स्वभाव होता है इसी प्रकार से जो व्यक्ति जैसा दिखता है वैसा स्वभाव बनाने के लिए वो प्रयासरत होता है !इसीलिए तो किसी के शरीर का श्रृंगार देखकर किसी व्यक्ति के मन की बासना का पता लग जाता है !कम कपड़े पहनने वाले या अश्लील वेषभूषा धारण करने वाले स्त्री पुरुष औरों की अपेक्षा यौन दुर्घटनाओं के शिकार होते अधिक देखे जाते हैं !
      आकृतिविज्ञान के आधार पर किसी स्त्री या पुरुष के संभावित स्वभावजन्य विकारों का अनुसंधान करके उनके द्वारा भविष्य में घटित होने वाले अच्छे बुरे कार्यों का पूर्वानुमान बहुत पहले लगाया जा सकता है ! इसके द्वारा अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की पहचान में मदद मिल सकती हैं एवं अत्यधिक कामी पुरुषों स्त्रियों को अलग से पहचाना जा सकता है जिसके आधार पर उनसे वर्ताव करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं !राजनैतिकपार्टियों संगठनों  संस्थाओं आदि में कार्यकर्ताओं की शरीराकृतियों के अनुशार क्षमता परख कर जिम्मेदारी दी जाए तो वे उसका उत्साह पूर्वक निर्वाह कर सकेंगे !अन्यथा नहीं !

    इसी प्रकार से  ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का चयन करते समय यदि उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर पात्रों की आकृति का चयन करके यदि उचित भूमिका सौंपी जाए तो उस भूमिका में जीवंतता आ जाती है अन्यथा नहीं !

Monday, 13 November 2017

107 Copy

107 Copy सहज दर्शन !
भूकंप और सांख्य दर्शन !
         सांख्य-दर्शन का मुख्य आधार सत्कार्यवाद है।भूकंप ,आँधी तूफान हो या बाढ़ आदि किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या अन्य कोई भी कार्य अपनी उत्पत्ति के पूर्ण कारण में विद्यमान रहता है जैसे तिल में तेल , दूध में घी अर्थात कार्य अपने कारण का सार होता है ! इस सिद्धान्त के अनुसार, बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती।फलतः, इस जगत की उत्पत्ति शून्य से नहीं अपितु मूल सत्ता से ही हुई है।कार्य अपनी उत्पत्ति के पूर्ण कारण में विद्यमान रहता है इसलिए कार्य की खोज के लिए कारण की खोज होना बहुत आवश्यक है ! तिल और तेल के प्रकरण में कारण है तिल और कार्य है तेल !तिल रूपी कारण के प्रत्येक  हिस्से में तेल पहले से ही विद्यमान रहता है ! इसीप्रकार से दूध की प्रत्येक बूँद में घी पहले से ही विद्यमान रहता है इसलिए तेल संबंधी किसी भी अनुसंधान के लिए तिलों के विषय में जानकारी होनी ही चाहिए और घी के विषय में किसी भी अनुसंधान के लिए दूध के विषय में सम्पूर्ण जानकारी रखनी आवश्यक है !क्योंकि  कार्य अपने कारण का सार अर्थात तत्व होता है! कार्य और  कारण वस्तुतः समान प्रक्रिया के व्यक्त और अव्यक्त रूप हैं।कार्य व्यक्त रूप है और कारण अव्यक्त रूप है !कारण रूप में प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने वाला कार्य जब अपने अर्थात कार्य रूप में होता है तो प्रकट हो जाता है अर्थात प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने लगता है !जैसे तिलों के अंदर स्थित तेल और दूध में मिला हुआ घी दिखाई नहीं पड़ता है किंतु तेल और घी अपने अपने रूपों में आसानी से पहचाने जाते हैं !
      सांख्य दर्शन का उद्देश्य है  सत्कार्यवाद और इसके दो भेद हैं पहला परिणामवाद और दूसरा विवर्तवाद। परिणामवाद से तात्पर्य है कि जब कारण स्वयं ही कार्य रूप में परिवर्तित हो जाता है जैसे दूध ही दही रूप में रूपांतरित हो जाता है। विवर्तवाद के अनुसार परिवर्तन वास्तविक न होकर आभास मात्र होता है। जैसे-रस्सी में सर्प का आभास हो जाना।
     कार्य कारण की ही एक अवस्था है कार्य कारण भाव से जब हम भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं को तो देखते हैं ये आपदाएँ या घटनाएँ ही कार्य हैं!इस कार्य के होने का आधार भूत निश्चित कारण जाने बिना यह कहने लगना कि भूकंप आने का कारण अमुक है कुछ समय बाद कुछ और बता देना उसके बाद कुछ और कह देना ऐसे कारणों की खोज में दिग्विहीन भटकाव को अनुसंधान शोध या रिसर्च कैसे माना जा सकता है !कार्य की प्रवृत्ति समझे बिना और कार्य का कारण से कोई सीधा सुदृढ़ संबंध खोजे बिना भी मनगढंत काल्पनिक कारणों को  गिनाने लग्न ये रिसर्च तो हो ही नहीं सकता अपितु रिसर्च भावना का उपहास है !
       जैसे - भूकंप एक कार्य है तो इसका कारण  क्या है ?तेल का कारण तिल है और और घी का कारण दूध है तो भूकंप का कारण क्या है ?अर्थात तेल तिलों से बनता हैं घी दूध से बनता है तो भूकंप कैसे बनते हैं किस तत्व से बनते हैं कब और किन परिस्थितियों में बनते हैं यह सबकुछ जाने बिना भी भूकम्पों के आने का सुनिश्चित कारण गिनाने लगना विषय के प्रति गंभीरता  का अभाव प्रदर्शित करता है !
     भूकंप जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न का सीधा और विश्वसनीय उत्तर किसी के पास कोई नहीं मिलता है किंतु इस उत्तर का पता लगाए बिना भूकंपों पर कैसा रिसर्च !
   सांख्य दर्शन के विवर्तवाद की पद्धति के अनुसार तो जैसे रस्सी को देख कर सर्प होने का झूठा भ्रम हो जाता है उसी प्रकार से भूकम्पों के विषय में अनेकों प्रकार के झूठे भ्रम होते जा रहे हैं !जैसे -
  • भूकंपों के आने का कारण ज्वालामुखी बताए गए किंतु यदि ऐसा होता तो जिन क्षेत्रों में ज्वालामुखी नहीं होते हैं वहाँ भूकंप क्यों आता है ?
  • महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में कृत्रिम झील बनाई गई उसमें पानी भरा गया उसके  बाद वहाँ काफी भूकंप आने लगे !तब भूकंपों के आने का कारण कृत्रिम झीलों को बताया गया !किंतु यदि ऐसा होता तो जहाँ झीलें नहीं बनाई गई हैं वहाँ भूकंप क्यों आता है ?दूसरी बात जहाँ जहाँ झीलें बनाई गई हैं सब जगह  भूकंप क्यों नहीं आता है !
  • जमीन के अंदर की गैसों को भूकंपों के आने का कारण माना गया !यदि ऐसा होता तो गैसें तो पृथ्वी में सब जगह समान रूप से हैं फिर भूकंपों के प्रकोप सब जगह एक जैसे तो नहीं होते क्यों ?
  • धरती के अंदर जिन प्लेटों की परिकल्पना की गई है जिनके काँपने से भूकंप आने की बात बताई गई है किंतु गैसों के दबाव से प्लेटों के भ्रंशन की कल्पना पर तब तक विश्वास कैसे किया जा सकता है जब तक कार्य और कारण का कोई सीधा एवं विश्वसनीय संबंध सिद्ध न किया जा सके !
     ऐसी परिस्थिति में इतने सारे भ्रमों और कल्पनाप्रसूत तर्कों के आधार पर भूकंप जैसी इतनी विशाल घटना के घटित होने का कारण कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है !कदाचित ऐसी सभी बातों पर भरोसा किया भी जाए तो भी भूकम्पों के आने का वास्तविक कारण तो कोई एक होगा सभी तो नहीं हो सकते ! 
        सांख्य दर्शन और भूकंप - ब्रह्मांड के निर्माण में प्रकृति और पुरुष दोनों की अहम् भूमिका है इसमें प्रकृति अचेतन और पुरुष चेतन है !प्रकृति स्वतंत्र रूप से स्वत: समस्त विश्व की सृष्टि करती है। जगत् और जीवन में प्राप्त होने वाले जड़ एवं चेतन, दोनों ही रूपों के मूल रूप से जड़ प्रकृति, एवं चिन्मात्र पुरुष इन दो तत्वों की सत्ता मानी जाती है।जड़ प्रकृति सत्व, रजस एवं तमस् - इन तीनों गुणों की साम्यावस्था का नाम है। इस प्रकार सांख्यशास्त्र के अनुसार सारा विश्व त्रिगुणात्मक प्रकृति का वास्तविक परिणाम है।प्रकृति भी पुरुष की ही भाँति अज और नित्य  है सांख्य-दर्शन के अनुसार, बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती। फलतः, इस जगत की उत्पत्ति किसी शून्य से नहीं अपितु मूल सत्ता से हुई है इस बात को मानना ही होगा।ऐसी परिस्थिति में भूकंप की उत्पत्ति भी तो शून्य से नहीं होती होगी आखिर उनका भी आधारभूत कोई कारण तो होता ही होगा क्योंकि कारण के बिना कार्य का घटित होना असंभव है !जैसे बिछी हुई शय्या जड़ है भले ही उसका स्वयं अपने लिए कोई उपयोग हो या न भी हो किन्तु शय्या को देखकर ये अनुमान तो होता है कोई व्यक्ति है जो इसका उपयोग करेगा !इसी प्रकार से प्रकृति भी जड़ है और उसका अपने लिए कोई उपयोग नहीं है अतः उसका उपयोग करने के लिए कोई चेतन पुरुष है ऐसा प्रतीत होता है !
    प्राकृतिक आपदाओं का आधार हैं समय समय पर होने वाले प्रकृति परिवर्तन - 
  प्रकृति के प्रत्येक अंश में प्रतिक्षण परिवर्तन होते देखे जा रहे हैं प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षण बदलती जा रही है कुछ के परिवर्तनों की गति अत्यंत धीमी होती है इसलिए वे लंबे समय बाद पहचाने जाते हैं जबकि कुछ बदलाव  प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रहे होते हैं और कुछ प्रत्यक्ष होने के साथ साथ दिखाई नहीं पड़ते हैं अपितु अनुभव जन्य होते हैं !जैसे दूध का परिवर्तन ही तो दही है देखने में भले ही वो बाद में भी दूध की तरह ही सफेद लगता रहे किंतु वास्तव में देखा जाए तो उसमें परिवर्तन हो चुका होता है ! वस्तुतः दही भी दूध की ही बदली हुई अवस्था विशेष ही तो है !
     प्रकृति में स्थित परस्पर विरोधी गुण वाले तत्व भी आपस में मिलकर पिंड से लेकर ब्रह्माण्ड तक की रचना कर देते हैं !जैसे -समझने के लिए सत्व रज तम ये तीन गुण परस्पर विरोधी हैं ऐसे तो रुई तेल अग्नि भी परस्पर विरोधी होते हैं किंतु इनका संतुलित प्रयोग करके जैसे दीपक की रचना कर दी जाती है उसी प्रकार से परस्पर विरोधी इन तीनों गुणों से इस संसार की रचना की गई है !इन्हीं तीनों गुणों की साम्यावस्था ही प्रकृति है किंतु इनमें चेतन के संयोग से वैषम्य आने लगता हैयही विषमता विभिन्न प्रकार की आपदाओं का कारण बनती है !
   
 प्रकृति और पुरुष के संयोग से ही होता है सृष्टि का निर्माण !
        किसी बगीचे में आम के पेड़ में आम लगे हुए हैं उसके नीचे एक लँगड़ा व्यक्ति बैठा है तो दूसरा अंधा है !अंधे को आम दिखाई नहीं पड़ते हैं और लँगड़ा देखकर भी तोड़ नहीं सकता है!ऐसी परिस्थिति में अंधा व्यक्ति लंगड़े को यदि अपने कंधे पर बैठा ले तो दोनों को फल खाने को मिल सकते हैं इसी प्रक्रिया से जड़ प्रकृति और चेतन पुरुष ने मिलकर इस सृष्टि की रचना की है !प्रकृति में क्रिया शक्ति तो है किंतु चेतनता नहीं है इसलिए प्रकृति अंधे के समान है !पुरुष चेतन है !किंतु उसमें क्रिया शक्ति नहीं है !त्रिगुणात्मिका प्रकृति पुरुष अर्थात चेतन से भिन्न है !
प्रकृति विकृति भाव -इसमें तत्व रूपी प्रकृति अन्य तत्वों को उत्पन्न करती है  जबकि स्वयं किसी से उत्पन्न नहीं होती है !तत्व पुरुष न किसी से उत्पन्न होता है और न ही किसी को उत्पन्न करता है !
सूर्य चंद्र वायु ,अग्नि जल वायु ,पित्त कफ वायु ,दुःख सुख मोह !आदि संसार के साथ ही उत्पन्न होते हैं ! 

 
  

Saturday, 11 November 2017

प्राकृतिक तनाव -copy

प्राकृतिक तनाव -सहज चिंतन

 मानव शरीर की तरह ही यह विशाल संसार है इस संसार और प्रकृति को समझने के लिए भी मानव शरीर और मानव आहारों व्यवहारों को ही आधार मानना होगा और उसी तरह की सोच बनानी होगी !मानव मन की तरह ही प्रकृति भी स्वतंत्रता से रहना चाहती है !प्रकृति हमारी परवाह न भी करे तो भी उसका गुजारा हो सकता है किंतु प्रकृति का सहारा लिए बिना  हम तो जीवित रह ही नहीं सकते !प्रकृति पीयूष (अमृत ) के बिना समस्त प्राणियों का कोई आस्तित्व ही नहीं है ! जो प्रकृति हमारे जीवन के लिए साक्षात आधार स्वरूपा है जिसकी मर्यादा (सीमा) के अंदर रहकर प्रकृति की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही हम कुछ भी  बना  या बिगाड़ सकते हैं उससे अलग रहकर हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं ! प्रकृति के स्वभाव के विरुद्ध हमारे द्वारा किए गए परिवर्तनों को हमारे प्रयासों की परवाह किए बिना प्रकृति स्वयं ही नष्ट कर देती है! इसके लिए प्रकृति ने कुछ निश्चित मानक बना रखे हैं समय समय पर जिनका  उपयोग करके आत्म शोधन किया करती है !हमारे द्वारा किए गए अनधिकृत निर्माणों को हटाने के लिए प्रकृति भूकंपों का सहारा लेती है !हमारे द्वाराफैलाए गए वायु प्रदूषण को हटाने के लिए प्रकृति आँधी तूफानों का सहारा लेती है इसी प्रकार से हमारे द्वारा प्रदूषित की गई झीलों नदियों और तालाबों के शोधन के लिए प्रकृति बाढ़  वा  भीषण  बाढ़ या सुनामी जैसी  विशेष योजनाओं के द्वारा सबकुछ साफ करती चली जाती है !
     भूकम्पों  आँधी तूफानों या बाढ़ और सुनामियों को जो अज्ञानी लोग प्राकृतिक आपदाओं के नाम से दुष्प्रचार किया करते हैं ऐसे बुद्धि बिहीन लोगों को इस बात का अनुमान ही नहीं है कि यदि कभी दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ कि  पाँच  दस वर्ष के लिए भूकम्प आँधी तूफान और बाढ़ एवं सुनामी  जैसी प्रकृतिशोधक घटनाएँ घटनी बंद हो जाएँ  तो पृथ्वी पर जीवन बचना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होगा !वस्तुतः जिस प्रकार का प्रदूषण बढ़ता है प्रकृति उसी माध्यम से शोधन प्रारंभ करती है और उस प्रदूषण को हटा कर बाक़ी संसार को जीवित बचा लेती है !
      वायु जनित प्रदूषण को सुदूर आकाश में ले जाकर सूर्य किरणों के अत्युष्ण ताप से गरम करके वायु का शोधन करके फिर उपयोगी बना लेती है ! इसी प्रकार से जल जनित प्रदूषण को बाढ़ और सुनामियों के माध्यम से समुद्र के अंदर ले जाती है जहाँ समुद्र का खारापन  उन जलों का शोधन करता है इसके बाद उस शुद्ध जल की बादलों के द्वारा सारी पृथ्वी पर  वितरण अर्थात सप्लाई कर दी जाती है !
      प्रकृति अनंत काल से सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित ढंग से अत्यंत जिम्मेदारी पूर्वक जीवन को सँवारती सुधारती सब सुख सुविधाएँ प्रदान करती एवं सुरक्षा करती चली आ रही है !प्रकृति यदि इतनी जिम्मेदार और संवेदन शील न होती तब तो निरंकुश भी हो सकती थी !बाढ़ और सुनामियाँ सब कुछ बहा कर ले जा सकती थीं !आँधी तूफान आदि सब कुछ उड़ाकर ले जा सकते थे !भूकंप सब कुछ नष्ट कर सकते थे !आखिर इनके हाथ किसने पकड़ रखे हैं और किसने रोक रखा है इन्हें ऐसा करने से !वस्तुतः प्रकृति हमारी वास्तविक माता है जो किसी का कभी अहित नहीं कर सकती सबके साथ अत्यंत उत्तम एवं आत्मीय बात व्यवहार करती दिखती है !
          जैसे कोई मनुष्य प्रेमवश किसी के घर में रहने चला जाए वहाँ बत्ती भी जलावे पंखे कूलर हीटर गीजर का भी आनंद ले कपड़े धोवे शौच आदि क्रियाओं में पानी का उपयोग करता रहे टंकियों में गंदगी जमती चली जाए !कुल मिलाकर सम्पूर्ण सुविधाओं का उपयोग तो करे किंतु उस घर की सफाई न करे !ऐसा कितने दिन चल पाएगा !आखिर उसके भी धैर्य की कोई सीमा तो होगी ही !अपने घर को ख़राब होता कितने दिन और कैसे देख लेगी और कैसे सह लेगा !यही स्थिति तो इस संसार की है हमें प्रकाश गर्मी पानी हवा आदि सब कुछ तो मिल रहा है यहाँ रहने का भी कोई किराया हमें नहीं देना पड़ता है !हम प्रेम पूर्वक रहते जा रहे हैं !किंतु गंदगी जब बहुत अधिक बढ़ जाती है तब जैसे मकान मालिक सारे संबंधों को भूलकर घर खाली करवा लेता है उसी प्रकार से प्रकृति भूकंपों के माध्यम से उलट पलट करके बहुत बड़े बड़े क्षेत्र खाली करवा लेती है !मकान मालिक तो उस घर में कुछ भी कर सकता है वो तो पूरा तोड़कर बना भी सकता है जैसे मकान मालिक अपने घर को अच्छा बनाने के लिए सभी प्रकार की तोड़ फोड़ कर सकता है !ऐसे ही ये प्रकृति भी इस संसार में भूकम्पों आदि के माध्यम से कितनी भी बड़ी तोड़फोड़ कर सकती है ! घर में यदि अधिक गंदगी हो जाए तो मकान मालिक उसे साफ करने के लिए अपने घर की धुलाई भी कर सकता है ऐसे ही वर्षा के द्वारा प्रकृति भी धुलाई करती है ! जैसे गन्दी टंकियों को साफ करने के लिए सफाई करने वाला पहले उनका पानी निकालता है फिर उनकी धुलाई करता है इसके बाद उनमें साफ पानी भरता है !ठीक इसी प्रकार से प्रकृति भी करती है ग्रीष्म  अर्थात गर्मी की ऋतु में पहले नदियों तालाबों को सुखा कर खाली करवा लेती है इसके बाद बार बार बाढ़ लाकर उनकी गंदगी को बहा कर ले जाती है और नदियों में साफ पानी भर देती है ! जैसे घरों में पानी को शुद्ध करने के लिए पानी गर्म करके शुद्ध किया जाता है उसी प्रकार से जिन झीलों नदियों तालाबों को प्रकृति पूरी तरह से खाली नहीं कर पाती है उस जल को ग्रीष्म ऋतु में अपनी  गर्मी के द्वारा गरम करके शुद्ध कर लेती है ! इसी प्रकार से उस घर में वायु प्रदूषण यदि अधिक बढ़ जाता है तो बड़े एग्जास्ट आदि लगा करके शुद्ध करना होता है !ऐसे ही  दुर्गंध जहाँ जितनी अधिक होती है प्रकृति भी वहाँ वैसे निर्णय लेती है कहीं हवा चला कर गंध समाप्त करती है कहीं के लिए आँधी तूफान और भूकंप जैसे भयानक निर्णय प्रकृति को लेने पड़ते हैं !
      ऐसे बड़े निर्णयों को लेने से180 दिन पहले से उस तरह की भावी घटनाओं की सूचना प्रकृति अपने लक्षणों के माध्यम से संसार को देने लगती है !जिन्हें प्रकृति के लक्षणों पेड़ पौधों बनस्पतियों समेत समस्त प्राकृतिक वातावरण का अनुभव है उन्हें ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाते अक्सर देखा जाता है!प्राचीन काल में ऐसी अवधारणाएँ बहुत अधिक प्रचलन में थीं सुदूर जंगलों के लोग भी ऐसे ही संकेतों के आधार पर भविष्य में घटित होने वाली कई बड़ी प्राकृतिक घटनाओं का भी पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !
     प्रकृति में भी सुख दुःख तनाव रोग आरोग्य आदि सभी कारण विद्यमान हैं जैसे मनुष्य जीवन में जन्म हो मृत्यु हो स्वस्थ हो अस्वस्थ हो सुखी हो दुखी हो लाभ हो हानि हो आदि सभी कुछ तो अपने आप से होता जा रहा है मनुष्य बेचारा अत्यंत छोटे शिशु की तरह सब कुछ सहता  चला जा रहा है बस !कभी कभी थोड़े हाथ पैर चला लेता है कभी चिल्ला पड़ता है कभी कुछ और किंतु वो क्या चाहता है क्या नहीं  इसकी परवाह किए बिना प्रकृति माँ को बालक के लिए जो कुछ करना हितकर लगता है वो माँ अपने मन से करती चली जाती है इस विषय में बच्चे से उसका कोई संवाद नहीं  हो सकता है और न वो बच्चे की परेशानी पूछ सकती है और न बच्चा बता ही सकता है !बच्चे की क्रियाएँ प्रतिक्रियाएँ अलग चला करती हैं और माँ की अलग !बच्चा  माँ के विषय में कुछ सोचता है या नहीं किंतु माँ तो बच्चे के विषय  में ही सब कुछ सोचती है और बच्चे का हित जैसे जितना अच्छा हो सकता है माँ उस पर पूरा ध्यान केंद्रित रखती है वो बच्चे से दूर रहकर भी हृदय से बच्चे के पास ही होती है ! बच्चे को जब जिस  वस्तु की आवश्यकता होती है माँ उसे लेकर बच्चे के पास उपस्थित हो जाती है !बच्चे को जब भूख लगती है तो माँ के स्तनों से दूध बहने लगता है बच्चे के लिए माँ के स्तनों में उमड़े दूध का बहना चाह कर भी माँ बंद नहीं कर सकती है !
     बिल्कुल इसीप्रकार से प्रकृति माता संसार के सभी प्राणियों का ध्यान रखती है मनुष्यों को जिस ऋतु में जिस तत्व की जितनी आवश्यकता होती है उस ऋतु में उस तत्व से संबंधित फल फूल आदि उड़ेलने लगती है प्रकृति माँ !औषधियों से लेकर आवश्यकता की सभी वस्तुएँ औषधियाँ सुलभ करवाती रहती है !यही प्रकृति गर्मी में नदियों को सुखाकर साफ करती है फिर वर्षा ऋतु में बाढ़ के वेग से पहले नदी तालाब आदि पृथ्वी पात्रों की धुलाई करती हैं फिर उसमें स्वच्छ जल भरती है ऐसे ही वायु का शोधन करती हैं !भूकम्पों आदि के माध्यम से पृथ्वी का संतुलन बनाए रखती हैं !      
      प्रकृति को निर्जीव मानकर प्रकृति के साथ अनात्मीय व्यवहार करने वाले लोग भूकंप संबंधी रिसर्च के नाम पर लोग गड्ढे खोदते और उनमें मिट्टी पूर्ति रहते हैं उन्हें लगता होगा शायद रिसर्च इसी को कहते हैं !इसी प्रकार से  प्राकृतिक  विषयों  में सरकारें मंत्रालय गठित करती हैं जिसके संचालन में करोड़ों अरबों रुपए खर्च कर  देती हैं ! ये धन जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्स रूप में प्राप्त करती हैं सरकारें !जिस धन को  जिस रिसर्च के लिए खर्च किया जा रहा है विशेष कर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में वहाँ से  ऐसा कोई परिणाम तो  निकलता दिखा नहीं जिससे जनता को भूकंप आदि के विषय में कुछ बताया जा सके इस रिसर्च में जिसकी कमाई  खर्च  हो  रही है !आधुनिक विश्व वैज्ञानिक अभी तक ये बताने की स्थिति में नहीं हैं कि भूकंप आता आखिर क्यों है ! वे लोग भूकंप आने के जो कारण आज बता पाते हैं उन्हें वे लोग ही दस पाँच वर्ष बीतते बीतते स्वयं बदल देते हैं फिर कुछ और कहने लगते हैं !
     ज्वालामुखी ,कृत्रिमजलाशय या जमीन के अंदर की गैसों के दबाव से अंतःप्लेटों का कम्पन आदि इन तीनों को रिसर्चकारों के द्वारा समय समय पर बताया बदलता जाता रहा है रिसर्च के नाम पर भारी भरकम गड्ढे खोदे जाते हैं बाद में उनमें मिट्टी भर दी जाती है इस प्रकार से गड्ढे खोदने और उन्हें पूरने में खर्च होने वाले भारी भरकम खर्चों के बिल सरकारों को भेज दिये जाते हैं वर्तमान समय में इस विषय में विश्व वैज्ञानिकों का यही हाल है संभवतः इसे ही रिसर्च बताया जा रहा है! इसके अलावा भी अगर कुछ किया जाता हो तो मुझे उसके बारे में पता नहीं है !इतना अवश्य अनुमान लगा लिया जाता है कि इतने वर्षों की बहुखर्चीली रिसर्च के बाद भी भूकंपों को रोकने या इनका पूर्वानुमान लगाने में सफलता मिलना तो दूर अपितु मेरी जानकारी के अनुशार अभी तक भूकंपों के आने के विषय में निश्चित कारणों  को विश्वास पूर्वक बता पाने में सफल नहीं हो पाया है विराट विश्व का आधुनिक भूकंप विज्ञान !भूकम्पों को खोजने के लिए अपनाई जा रही प्रायः सभी प्रक्रियाओं के द्वारा बताए जा रहे सभी कारणों का प्रमाणित किया जाना अभी तक बाकी  है ! 
       वस्तुतः मानसून अर्थात बादलों को देख कर वर्षा की भविष्यवाणी करने लगना एवं धरती को काँपते देखकर धरती में गड्ढे खोदने लगना और रोगी की स्थिति बिगड़ते देखकर उसे न स्वस्थ होने लायक कह देना आदि बातों पर अनुसंधान यदि आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से ही किया जाए तो किसी बौद्धिक व्यक्ति के लिए इसमें तर्कसंगत वैज्ञानिक विचारों के दर्शन दुर्लभ हो जाएँगे !
     

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तनाव -   सहज चिंतन 

       मनोरोग या तनाव के विषय में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हर किसी का स्वभाव सोच सुख दुःख रोगनिरोग हानि लाभ आदि उसके अपने समय के अनुशार सारे जीवन मिलता छूटता या बनता बिगड़ता रहता है !ऐसी परिस्थिति में किसी के जीवन के किस वर्ष में क्या मिलेगा या क्या छूटेगा क्या बनेगा और क्या बिगड़ेगा आदि परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाकर हम आगे से आगे अपने हित  साधन के लिए प्रयास करते चले जाएँगे !
   जब जिस व्यक्ति या वस्तु के मिलने या बिछुड़ने का समय प्रारंभ होना होगा उसका पूर्वानुमान लगाकर जिससे हम मिलकर चलना चाहते हैं या जिसे हम खोना या नाराज नहीं करना चाहते हैं !उतने समय के लिए ऐसी वस्तुओं की  सुरक्षा  पर अधिक ध्यान देंगे एवं ऐसे संबंधों को बचाने के लिए सहनशीलता से सहेंगे अर्थात सब कुछ सहकर एवं  सारे हानि लाभ उठाकर भी संबंधों को बचाने का प्रयास पहले से ही करने लगेंगे !इस प्रक्रिया से संबंध बचा लिए जाते हैं !कई बार यदि सामने वाले का  समय भी यदि हमसे अलग होने का चल रहा हो तो उसे भी इसी प्रक्रिया का पालन  होगा और उसे भी सहनशीलता का परिचय देना होगा अन्यथा केवल एक तरफ से किए जाने वाले प्रयास कितने भी अधिक  क्यों न कर लिए जाएँ फिर भी वे संबंध बचाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं  होते हैं !इसलिए ऐसे संबंधों को बचाने के लिए समय प्रारंभ होने से पहले ही दोनों तरफ से प्रयास शुरू कर देने चाहिए !क्योंकि समय प्रारम्भ हो जाने के बाद लोगों का स्वभाव  अनुशार ही बदलते चला जाता है समय प्रभाव से बदले हुए स्वभाव के कारण सामने वाले की बात व्यवहार विचार एवं कार्यों के प्रति अरुचि अनादर एवं घृणा की भावना पनपने लगती है मन ऐसे संबंधों को इतना बोझ समझने लगता है कि छोटी छोटी गलतियाँ पकड़ कर भी ऐसे संबंधों को तोड़ने का बहाना खोजा करता है !
     ऐसी परिस्थितियों में समय के संचार को न समझ पाने वाले लोग समय की ऐसी करवटों से तंग आकर संबंधित लोगों से ऊभकर उनसे संबंध ही समाप्त कर लेते हैं !कई बार माता पिता ,भाई बहन ,पति पत्नी ,पिता पुत्र आदि  निजी एवं आवश्यक संबंध भी छूटते देखे जाते हैं !
     समय के ऐसे ही प्रभाव से ऐसी ही घृणा की भावना कुछ देशों प्रदेशों या शहरों घरों आदि से हो जाती है जहाँ हम रहना जाना  या  काम नहीं करना चाहते इसीलिए लोग देशों प्रदेशों ,शहरों घरों आदि को छोड़ते देखे जाते हैं !
     इसी प्रकार कुछ वस्तुओं से सम्बंधित व्यापारों से घृणा होने लगती है इसीलिए ऐसे व्यापारों से अरुचि होने लगती है लोग नौकरी या काम धंधा छोड़कर घर बैठ जाते हैं और दूसरे कामों की उन्हें जानकारी अनुभव या अभ्यास नहीं  होता  और चले आ रहे कामों से उन्हें घृणा होने लगती है !
     ऐसी परिस्थितियों में ही कुछ लोग कुछ संगठन राजनैतिक दलों नेताओं उनके बिचारों आदि से घृणा करने लगते हैं और अपने ही मन में उनसे दूरी बनाने लगते हैं उनकी निंदा चुगली या बुराई करने लगते हैं !जैसे ही तनाव कर्क समय व्यतीत हो जाता है वैसे ही सबकुछ पहले के जैसा ही हो जाता है !
    समय का दूसरा पक्ष ये भी है कि हम से जब जिस व्यक्ति या वस्तु को छोड़ने का समय आता है और हम उसे छोड़न भी चाहते हैं तो ऐसे समय का पूर्वानुमान लगाकर उतने समय में उन वस्तुओं व्यक्तियों से धीरे धीरे किनारा कर लिया करते हैं और वे छूट जाया करते हैं !किन्तु कई बार ऐसा होता है कि जिसे हम तो छोड़ना चाहते हैं किंतु उसका समय हमें छोड़ने का नहीं चल रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में हम तो उसे छोड़ते जाते हैं किंतु वो चिपक रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में यदि हमें लगता है कि उसका छूटना हमारे लिए हितकर है तो उसे छोड़ने के लिए हमें सम्पूर्ण प्रयास कर लेना चाहिए !धीरे धीरे वो छूट ही जाता है !
     समय का असर स्वभाव पर भी पड़ता है इससे समय समय पर हमारी सोच बदलती रहती है जिससे हम कभी किसी व्यक्ति वस्तु स्थान भाव विचार या खाने पीने के सामान आदि को अच्छा समझने लगते हैं तो कभी उसी व्यक्ति वस्तु स्थान भाव विचार आदि को हम पसंद नहीं करने लगते हैं कई बार तो वही सब कुछ हमें बहुत बुरा लगने लगता है !
     सोच पर भी समय का असर इतना अधिक होता है कि अक्सर जिस परिस्थिति में हम प्रसन्न रहा करते हैं अच्छे ढंग से हमारा समय व्यतीत हो रहा होता है और प्रायः हम अपने आस पास की परिस्थितियों से संतुष्ट रह रहे होते हैं !उसी परिस्थिति में बिना किसी बदलाव के और बिना किसी बाहरी दबाव के कई बार हम किसी विषय को बहुत अधिक सोचने लगते हैं और उस विषय को हम अपने लाभ हानि सुख दुःख सम्मान अपमान आदि के भाव से जोड़कर निराश और भयभीत होने लगते हैं !कई बार ऐसी अवस्था थोड़े समय की होती है तो कई बार ये समय काफी लंबा होता है !जब समय थोड़ा होता है तब तो बहुत आसानी से व्यतीत हो जाता है और जब समय अधिक होता है तब यही मानसिक तनाव निद्रा बाधित करता है उससे पेट ख़राब होता है उससे आगे पेट में गैस बनने लगती है गैस ऊपर चढ़ कर हृदय प्रदेश में पहुँचती है तब तो घबड़ाहट होने लगती है जब यही और ऊपर अर्थात मस्तिष्क प्रदेश में पहुँचती है तब चक्कर आता है सिर में दर्द होता है आँखों में जलन होने लगती है जब यही वायु शरीर के संधिस्थानों में पहुँचती है तब तो शरीर भारी लगने लगता है अपने हाथ पैर भी पराए जैसे बोझिल लगने लगते हैं इस प्रकार से हमारी रुग्ण सोच हमें धीरे धीरे मानसिक और शारीरिक रूप से रोगी बनाती चली जाती है !कई बार बुरी परिस्थितियों में हमारी अच्छी सोच हमें प्रसन्नता प्रदान करती है उससे हमारा मनोबल और शारीरिक बल अचानक बढ़ जाता है ! ऐसी सभी प्रकार की सोच भी हमारे अपने समय से ही प्रभावित होती है !
    हमारे स्वास्थ्य पर भी हमारे समय का असर होता है जीवन में जब जैसा समय होता है तब तैसा स्वास्थ्य रहता है जीवन में कई बार तो समय इतना अधिक प्रतिकूल अर्थात बुरा होता है कि समय के दुष्प्रभाव से रोग न केवल पनपने लगते हैं अपितु इतने अधिक बढ़ जाते हैं कि उनमें उतने समय के लिए समय का वेग इतना अधिक होता है कि चिकित्सक चिकित्सा औषधियाँ आदि सब कुछ निष्फल सिद्ध होते चले जाते हैं समय से प्रोत्साहित रोग का वेग इतना अधिक प्रबल होता है !
       ऐसे सभी प्रकार के स्वभाव सोच सुख दुःख रोगनिरोग हानि लाभ आदि सब कुछ अपने समय के अनुशार सारे जीवन मिलता छूटता या बनता बिगड़ता रहता है ये समय हर किसी के जन्म के समय पर अआधारित होता है कि उसे जीवन में कब अर्थात किस वर्ष या किस महीने किस प्रकार के समय के समय का सामना करना पड़ेगा और उसके कारण किस समय हमारा जीवन किस प्रकार की शारीरिक मानसिक आर्थिक आदि परिस्थितियों से जूझ रहा होगा !ऐसी सभी परिस्थितियों का पूर्वानुमान जन्म के समय पर रिसर्च पूर्वक उसी आधार पर सम्पूर्ण जीवन का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !