प्राकृतिक तनाव -सहज चिंतन
मानव शरीर की तरह ही यह विशाल संसार है इस संसार और प्रकृति को समझने के लिए भी मानव शरीर और मानव आहारों व्यवहारों को ही आधार मानना होगा और उसी तरह की सोच बनानी होगी !मानव मन की तरह ही प्रकृति भी स्वतंत्रता से रहना चाहती है !प्रकृति हमारी परवाह न भी करे तो भी उसका गुजारा हो सकता है किंतु प्रकृति का सहारा लिए बिना हम तो जीवित रह ही नहीं सकते !प्रकृति पीयूष (अमृत ) के बिना समस्त प्राणियों का कोई आस्तित्व ही नहीं है ! जो प्रकृति हमारे जीवन के लिए साक्षात आधार स्वरूपा है जिसकी मर्यादा (सीमा) के अंदर रहकर प्रकृति की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही हम कुछ भी बना या बिगाड़ सकते हैं उससे अलग रहकर हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं ! प्रकृति के स्वभाव के विरुद्ध हमारे द्वारा किए गए परिवर्तनों को हमारे प्रयासों की परवाह किए बिना प्रकृति स्वयं ही नष्ट कर देती है! इसके लिए प्रकृति ने कुछ निश्चित मानक बना रखे हैं समय समय पर जिनका उपयोग करके आत्म शोधन किया करती है !हमारे द्वारा किए गए अनधिकृत निर्माणों को हटाने के लिए प्रकृति भूकंपों का सहारा लेती है !हमारे द्वाराफैलाए गए वायु प्रदूषण को हटाने के लिए प्रकृति आँधी तूफानों का सहारा लेती है इसी प्रकार से हमारे द्वारा प्रदूषित की गई झीलों नदियों और तालाबों के शोधन के लिए प्रकृति बाढ़ वा भीषण बाढ़ या सुनामी जैसी विशेष योजनाओं के द्वारा सबकुछ साफ करती चली जाती है !
मानव शरीर की तरह ही यह विशाल संसार है इस संसार और प्रकृति को समझने के लिए भी मानव शरीर और मानव आहारों व्यवहारों को ही आधार मानना होगा और उसी तरह की सोच बनानी होगी !मानव मन की तरह ही प्रकृति भी स्वतंत्रता से रहना चाहती है !प्रकृति हमारी परवाह न भी करे तो भी उसका गुजारा हो सकता है किंतु प्रकृति का सहारा लिए बिना हम तो जीवित रह ही नहीं सकते !प्रकृति पीयूष (अमृत ) के बिना समस्त प्राणियों का कोई आस्तित्व ही नहीं है ! जो प्रकृति हमारे जीवन के लिए साक्षात आधार स्वरूपा है जिसकी मर्यादा (सीमा) के अंदर रहकर प्रकृति की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही हम कुछ भी बना या बिगाड़ सकते हैं उससे अलग रहकर हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं ! प्रकृति के स्वभाव के विरुद्ध हमारे द्वारा किए गए परिवर्तनों को हमारे प्रयासों की परवाह किए बिना प्रकृति स्वयं ही नष्ट कर देती है! इसके लिए प्रकृति ने कुछ निश्चित मानक बना रखे हैं समय समय पर जिनका उपयोग करके आत्म शोधन किया करती है !हमारे द्वारा किए गए अनधिकृत निर्माणों को हटाने के लिए प्रकृति भूकंपों का सहारा लेती है !हमारे द्वाराफैलाए गए वायु प्रदूषण को हटाने के लिए प्रकृति आँधी तूफानों का सहारा लेती है इसी प्रकार से हमारे द्वारा प्रदूषित की गई झीलों नदियों और तालाबों के शोधन के लिए प्रकृति बाढ़ वा भीषण बाढ़ या सुनामी जैसी विशेष योजनाओं के द्वारा सबकुछ साफ करती चली जाती है !
भूकम्पों आँधी तूफानों या बाढ़ और सुनामियों को जो अज्ञानी लोग प्राकृतिक आपदाओं के नाम से दुष्प्रचार किया करते हैं ऐसे बुद्धि बिहीन लोगों को इस बात का अनुमान ही नहीं है कि यदि कभी दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ कि पाँच दस वर्ष के लिए भूकम्प आँधी तूफान और बाढ़ एवं सुनामी जैसी प्रकृतिशोधक घटनाएँ घटनी बंद हो जाएँ तो पृथ्वी पर जीवन बचना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होगा !वस्तुतः जिस प्रकार का प्रदूषण बढ़ता है प्रकृति उसी माध्यम से शोधन प्रारंभ करती है और उस प्रदूषण को हटा कर बाक़ी संसार को जीवित बचा लेती है !
वायु जनित प्रदूषण को सुदूर आकाश में ले जाकर सूर्य किरणों के अत्युष्ण ताप से गरम करके वायु का शोधन करके फिर उपयोगी बना लेती है ! इसी प्रकार से जल जनित प्रदूषण को बाढ़ और सुनामियों के माध्यम से समुद्र के अंदर ले जाती है जहाँ समुद्र का खारापन उन जलों का शोधन करता है इसके बाद उस शुद्ध जल की बादलों के द्वारा सारी पृथ्वी पर वितरण अर्थात सप्लाई कर दी जाती है !
प्रकृति अनंत काल से सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित ढंग से अत्यंत जिम्मेदारी पूर्वक जीवन को सँवारती सुधारती सब सुख सुविधाएँ प्रदान करती एवं सुरक्षा करती चली आ रही है !प्रकृति यदि इतनी जिम्मेदार और संवेदन शील न होती तब तो निरंकुश भी हो सकती थी !बाढ़ और सुनामियाँ सब कुछ बहा कर ले जा सकती थीं !आँधी तूफान आदि सब कुछ उड़ाकर ले जा सकते थे !भूकंप सब कुछ नष्ट कर सकते थे !आखिर इनके हाथ किसने पकड़ रखे हैं और किसने रोक रखा है इन्हें ऐसा करने से !वस्तुतः प्रकृति हमारी वास्तविक माता है जो किसी का कभी अहित नहीं कर सकती सबके साथ अत्यंत उत्तम एवं आत्मीय बात व्यवहार करती दिखती है !
जैसे कोई मनुष्य प्रेमवश किसी के घर में रहने चला जाए वहाँ बत्ती भी जलावे पंखे कूलर हीटर गीजर का भी आनंद ले कपड़े धोवे शौच आदि क्रियाओं में पानी का उपयोग करता रहे टंकियों में गंदगी जमती चली जाए !कुल मिलाकर सम्पूर्ण सुविधाओं का उपयोग तो करे किंतु उस घर की सफाई न करे !ऐसा कितने दिन चल पाएगा !आखिर उसके भी धैर्य की कोई सीमा तो होगी ही !अपने घर को ख़राब होता कितने दिन और कैसे देख लेगी और कैसे सह लेगा !यही स्थिति तो इस संसार की है हमें प्रकाश गर्मी पानी हवा आदि सब कुछ तो मिल रहा है यहाँ रहने का भी कोई किराया हमें नहीं देना पड़ता है !हम प्रेम पूर्वक रहते जा रहे हैं !किंतु गंदगी जब बहुत अधिक बढ़ जाती है तब जैसे मकान मालिक सारे संबंधों को भूलकर घर खाली करवा लेता है उसी प्रकार से प्रकृति भूकंपों के माध्यम से उलट पलट करके बहुत बड़े बड़े क्षेत्र खाली करवा लेती है !मकान मालिक तो उस घर में कुछ भी कर सकता है वो तो पूरा तोड़कर बना भी सकता है जैसे मकान मालिक अपने घर को अच्छा बनाने के लिए सभी प्रकार की तोड़ फोड़ कर सकता है !ऐसे ही ये प्रकृति भी इस संसार में भूकम्पों आदि के माध्यम से कितनी भी बड़ी तोड़फोड़ कर सकती है ! घर में यदि अधिक गंदगी हो जाए तो मकान मालिक उसे साफ करने के लिए अपने घर की धुलाई भी कर सकता है ऐसे ही वर्षा के द्वारा प्रकृति भी धुलाई करती है ! जैसे गन्दी टंकियों को साफ करने के लिए सफाई करने वाला पहले उनका पानी निकालता है फिर उनकी धुलाई करता है इसके बाद उनमें साफ पानी भरता है !ठीक इसी प्रकार से प्रकृति भी करती है ग्रीष्म अर्थात गर्मी की ऋतु में पहले नदियों तालाबों को सुखा कर खाली करवा लेती है इसके बाद बार बार बाढ़ लाकर उनकी गंदगी को बहा कर ले जाती है और नदियों में साफ पानी भर देती है ! जैसे घरों में पानी को शुद्ध करने के लिए पानी गर्म करके शुद्ध किया जाता है उसी प्रकार से जिन झीलों नदियों तालाबों को प्रकृति पूरी तरह से खाली नहीं कर पाती है उस जल को ग्रीष्म ऋतु में अपनी गर्मी के द्वारा गरम करके शुद्ध कर लेती है ! इसी प्रकार से उस घर में वायु प्रदूषण यदि अधिक बढ़ जाता है तो बड़े एग्जास्ट आदि लगा करके शुद्ध करना होता है !ऐसे ही दुर्गंध जहाँ जितनी अधिक होती है प्रकृति भी वहाँ वैसे निर्णय लेती है कहीं हवा चला कर गंध समाप्त करती है कहीं के लिए आँधी तूफान और भूकंप जैसे भयानक निर्णय प्रकृति को लेने पड़ते हैं !
ऐसे बड़े निर्णयों को लेने से180 दिन पहले से उस तरह की भावी घटनाओं की सूचना प्रकृति अपने लक्षणों के माध्यम से संसार को देने लगती है !जिन्हें प्रकृति के लक्षणों पेड़ पौधों बनस्पतियों समेत समस्त प्राकृतिक वातावरण का अनुभव है उन्हें ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाते अक्सर देखा जाता है!प्राचीन काल में ऐसी अवधारणाएँ बहुत अधिक प्रचलन में थीं सुदूर जंगलों के लोग भी ऐसे ही संकेतों के आधार पर भविष्य में घटित होने वाली कई बड़ी प्राकृतिक घटनाओं का भी पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !
प्रकृति में भी सुख दुःख तनाव रोग आरोग्य आदि सभी कारण विद्यमान हैं जैसे मनुष्य जीवन में जन्म हो मृत्यु हो स्वस्थ हो अस्वस्थ हो सुखी हो दुखी हो लाभ हो हानि हो आदि सभी कुछ तो अपने आप से होता जा रहा है मनुष्य बेचारा अत्यंत छोटे शिशु की तरह सब कुछ सहता चला जा रहा है बस !कभी कभी थोड़े हाथ पैर चला लेता है कभी चिल्ला पड़ता है कभी कुछ और किंतु वो क्या चाहता है क्या नहीं इसकी परवाह किए बिना प्रकृति माँ को बालक के लिए जो कुछ करना हितकर लगता है वो माँ अपने मन से करती चली जाती है इस विषय में बच्चे से उसका कोई संवाद नहीं हो सकता है और न वो बच्चे की परेशानी पूछ सकती है और न बच्चा बता ही सकता है !बच्चे की क्रियाएँ प्रतिक्रियाएँ अलग चला करती हैं और माँ की अलग !बच्चा माँ के विषय में कुछ सोचता है या नहीं किंतु माँ तो बच्चे के विषय में ही सब कुछ सोचती है और बच्चे का हित जैसे जितना अच्छा हो सकता है माँ उस पर पूरा ध्यान केंद्रित रखती है वो बच्चे से दूर रहकर भी हृदय से बच्चे के पास ही होती है ! बच्चे को जब जिस वस्तु की आवश्यकता होती है माँ उसे लेकर बच्चे के पास उपस्थित हो जाती है !बच्चे को जब भूख लगती है तो माँ के स्तनों से दूध बहने लगता है बच्चे के लिए माँ के स्तनों में उमड़े दूध का बहना चाह कर भी माँ बंद नहीं कर सकती है !
बिल्कुल इसीप्रकार से प्रकृति माता संसार के सभी प्राणियों का ध्यान रखती है मनुष्यों को जिस ऋतु में जिस तत्व की जितनी आवश्यकता होती है उस ऋतु में उस तत्व से संबंधित फल फूल आदि उड़ेलने लगती है प्रकृति माँ !औषधियों से लेकर आवश्यकता की सभी वस्तुएँ औषधियाँ सुलभ करवाती रहती है !यही प्रकृति गर्मी में नदियों को सुखाकर साफ करती है फिर वर्षा ऋतु में बाढ़ के वेग से पहले नदी तालाब आदि पृथ्वी पात्रों की धुलाई करती हैं फिर उसमें स्वच्छ जल भरती है ऐसे ही वायु का शोधन करती हैं !भूकम्पों आदि के माध्यम से पृथ्वी का संतुलन बनाए रखती हैं !
प्रकृति को निर्जीव मानकर प्रकृति के साथ अनात्मीय व्यवहार करने वाले लोग भूकंप संबंधी रिसर्च के नाम पर लोग गड्ढे खोदते और उनमें मिट्टी पूर्ति रहते हैं उन्हें लगता होगा शायद रिसर्च इसी को कहते हैं !इसी प्रकार से प्राकृतिक विषयों में सरकारें मंत्रालय गठित करती हैं जिसके संचालन में करोड़ों अरबों रुपए खर्च कर देती हैं ! ये धन जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्स रूप में प्राप्त करती हैं सरकारें !जिस धन को जिस रिसर्च के लिए खर्च किया जा रहा है विशेष कर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में वहाँ से ऐसा कोई परिणाम तो निकलता दिखा नहीं जिससे जनता को भूकंप आदि के विषय में कुछ बताया जा सके इस रिसर्च में जिसकी कमाई खर्च हो रही है !आधुनिक विश्व वैज्ञानिक अभी तक ये बताने की स्थिति में नहीं हैं कि भूकंप आता आखिर क्यों है ! वे लोग भूकंप आने के जो कारण आज बता पाते हैं उन्हें वे लोग ही दस पाँच वर्ष बीतते बीतते स्वयं बदल देते हैं फिर कुछ और कहने लगते हैं !
ज्वालामुखी ,कृत्रिमजलाशय या जमीन के अंदर की गैसों के दबाव से अंतःप्लेटों का कम्पन आदि इन तीनों को रिसर्चकारों के द्वारा समय समय पर बताया बदलता जाता रहा है रिसर्च के नाम पर भारी भरकम गड्ढे खोदे जाते हैं बाद में उनमें मिट्टी भर दी जाती है इस प्रकार से गड्ढे खोदने और उन्हें पूरने में खर्च होने वाले भारी भरकम खर्चों के बिल सरकारों को भेज दिये जाते हैं वर्तमान समय में इस विषय में विश्व वैज्ञानिकों का यही हाल है संभवतः इसे ही रिसर्च बताया जा रहा है! इसके अलावा भी अगर कुछ किया जाता हो तो मुझे उसके बारे में पता नहीं है !इतना अवश्य अनुमान लगा लिया जाता है कि इतने वर्षों की बहुखर्चीली रिसर्च के बाद भी भूकंपों को रोकने या इनका पूर्वानुमान लगाने में सफलता मिलना तो दूर अपितु मेरी जानकारी के अनुशार अभी तक भूकंपों के आने के विषय में निश्चित कारणों को विश्वास पूर्वक बता पाने में सफल नहीं हो पाया है विराट विश्व का आधुनिक भूकंप विज्ञान !भूकम्पों को खोजने के लिए अपनाई जा रही प्रायः सभी प्रक्रियाओं के द्वारा बताए जा रहे सभी कारणों का प्रमाणित किया जाना अभी तक बाकी है !
वस्तुतः मानसून अर्थात बादलों को देख कर वर्षा की भविष्यवाणी करने लगना एवं धरती को काँपते देखकर धरती में गड्ढे खोदने लगना और रोगी की स्थिति बिगड़ते देखकर उसे न स्वस्थ होने लायक कह देना आदि बातों पर अनुसंधान यदि आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से ही किया जाए तो किसी बौद्धिक व्यक्ति के लिए इसमें तर्कसंगत वैज्ञानिक विचारों के दर्शन दुर्लभ हो जाएँगे !
No comments:
Post a Comment