समय विज्ञान !
संसार में समय ही सबसे अधिक शक्तिशाली होता है इसीलिए प्रकृति से लेकर सामान्य जन जीवन तक एवं आकाश से लेकर पाताल तक सब जगह समय का ही बोलबाला है !सृष्टि में जब जो कुछ भी होता या हो सकता है या जो कुछ भी पहले कभी हो सका होगा वो सब कुछ समय के सहयोग से ही संभव हो पाया होगा !इस दुनियाँ में सब कुछ घटित होते देखा जाता है !
सृष्टि निर्माण के साथ ही जिस समय सारिणी का निर्माण हुआ होगा उसी का पालन होता चला आ रहा है !सामान्य रूप से देखने सुनने में जो नया भी लगता है या जो आकस्मिक होते दिखता है वो भी न तो नया है और न ही आकस्मिक ! सब कुछ उसी समय सारिणी के अनुशार ही तो होता चला जा रहा है !
समय की अत्यंत वेगवती बलवती धारा है जैसे बाढ़ग्रस्त प्रबल प्रवाह युक्त नदी अपनी धारा के साथ आसपास का सबकुछ चपेट में लेकर बहा ले जाती है उसी प्रकार से समय की विशाल धारा सारे संसार को अपने प्रवाह के साथ साथ दौड़ाए चली जा रही है इस विराट सृष्टि में समय के प्रवाह के साथ साथ सबकुछ बदलता चला जा रहा है नदियाँ मार्ग बदलती जा रही हैं पहाड़ों में परिवर्तन होते जा रहे हैं मौसम में बदलाव होते दिख रहे हैं !किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि इतनी जल्दी जल्दी आखिर सब कैसे हुआ जा रहा है ! बच्चा था वो युवा हो गया युवा वृद्ध हो गया पता ही नहीं चला कब और कैसे !जो नया सामान लाया गया था वो पुराना होकर टूट गया कूड़े दान में चला गया !जो सुखी था वो दुखी हुआ जा रहा है जो दुखी था उसके घर खुशियाँ छायी हुई हैं !जो घर बनाया गया था खूब चमकाया गया था वही पुराना होकर गिरने लग गया !जिस लड़की या लड़के से मिलने के लिए कभी दिनरात उत्सुकता बनी रहती थी !जिससे विवाह करने के लिए घर वालों का समाज का कितना वैर विरोध सहना पड़ा फिर भी उससे विवाह किया किंतु उसी से आज हम पीछा छुड़ाने को उतावले घूम रहे हैं वही घरवाले और वही समाज हमें समझा रहा है बेटा तलाक मत लो !जो पद पाने के लिए जो प्रतिष्ठा पाने के लिए जो पत्नी या पति पाने के लिए जो पुत्र या पुत्री पाने के लिए जिसे मित्र बनाने के लिए जिस उद्योग को लगाने के लिए हमने न जाने कितने प्रयास किए कितने लोगों से जी हुजूरी की कितनी मुशीबत उठाई किंतु उन सभी चीजों से अचानक मोह भंग होने लगा और उन्हीं परिस्थितियों में तनाव बढ़ने लगा जिसके लिए हमने अज्ञानवश किसी व्यक्ति वस्तु स्थान संबंध आदि को दोषी मानना शुरू कर दिया जबकि विवशता वहाँ भी है जबकि हम तो केवल अपने अंदर झाँक रहे हैं इसलिए अपने साथ होने वाला परिवर्तन ही पता है किंतु परिवर्तन तो उधर भी होते जा रहे हैं बदलाव की बेचैनी वहाँ भी है! कुल मिलाकर सब कुछ बदला जा रहा है जिसे रोक कर रखने का किसी में कोई वश नहीं है !बीमार होने वाले को हम स्वस्थ नहीं रख सकते मरने वाले को हम जीवित नहीं बचा सकते नष्ट होने वाले को हम सुरक्षित नहीं रख सकते !जो होने जा रहा होता है यदि हम भी वैसा ही करने के लिए कोई प्रयास कर रहे होते हैं तो उस हुए को अपने प्रयास का फल मान लेते हैं और यदि हमारे प्रयास के विरुद्ध कुछ हुआ तो मौन होकर कुदरत पर सारा दोष मढ़ देते हैं !कई बार किसी काम के लिए हम बहुत प्रयास कर रहे होते हैं किंतु उसमें लगातार असफलता मिलती चली जाती है और कई बार बिना प्रयास के भी वो सफलता हमें अनायास ही मिल जाती है!ऐसे सभी बदलाव न जाने क्यों और कैसे होते चले जा रहे हैं किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है मनुष्य के बश में क्या है क्या नहीं उसे समझ में ही नहीं आ रहा है !मनुष्य के प्रयासों की सीमाएँ क्या हैं पता ही नहीं लग पा रहा है एक व्यक्ति छोटी सी दुर्घटना का शिकार होकर मर जाता है तो दूसरा बहुत बड़ी दुघाटना का शिकार होकर ही बिल्कुल स्वस्थ बच जाता है !
चिकित्सा शास्त्र पर अत्यंत भरोसा रखने वाला मैं आयुर्वेद के लगभग सारे ग्रंथ गुरुमुख से समर्पित भावना से पढ़े हैं जिनके आधार पर जीवन को सुरक्षित रखने के विषय में लगने लगा कि चिकित्सा के बिना जीवन कितना कठिन है !आधुनिक चिकित्सा से विद्वानों के प्रयासों को देखकर मन अभिभूत हो गया इतनी सफलता !आँखों से लेकर लिवर हृदय किडनी घुटने आदि सब कुछ बदल देने जैसी बड़ी बड़ी सफलताएँ देखकर उन्हें नमन करने को मन करता है! महिला चिकित्सकों के हिसाब से प्रसव संबंधी असंख्य समस्याएँ सर्जरी आदि इतना कठिन हिसाब किताब !ऐसी सुविधाओं के अभाव में जीवन असंभव सा लगने लगता है !टीकाकरण जैसी बड़ी सफलताएँ जिन्हें कई बड़ी बीमारियों के उन्मूलन का श्रेय दिया जाता है !प्रश्न उठता है कि ऐसी सभी बड़ी स्वास्थ्य सुविधाएँ महानगरों या नगरों में सुलभ हैं किंतु किसानों गरीबों ग्रामीणों को धन के अभाव में ये सब कैसे सुलभ हो सकती हैं !जिज्ञासा वश सुदूर जंगलों में जाकर अलग अलग जगहों पर कुछ कुछ समय व्यतीत किया लोगों से मिला जुला उनके रहन सहन और समस्याओं को समझने का प्रयास किया !उनसे बातचीत करके उनके बीच रहकर लगा कि आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के बिना भी वे अपने स्वास्थ्य सुख से संतुष्ट हैं उनके यहाँ कभी कोई टीकाकरण नहीं हुआ !प्रसव करने के लिए कभी किसी चिकित्सक के यहाँ नहीं गए प्रसव संबंधी समस्याएँ भी महानगरों की अपेक्षा बहुत कम देखने सुनने को मिलीं !डेंगू जैसे रोगों से बचने के लिए वहाँ मच्छरों से बचना संभव ही न था !जहाँ दिन रात सोना जागना आदि सारा रहन सहन मच्छरों के बीच ही करना पड़ता हो यहाँ तक कि साँप बिच्छु आदि बिषैले जीव जंतुओं के बीच ही रहना पड़ता है सिंह भालू आदि हिंसक जीव जंतुओं के बीच फूस पत्तियों की बनी झोपड़ियों छप्परों कच्चे मकानों ने के लिए वहाँ मच्छरों
आदि में रहकर जीवन कितना सुरक्षित था ! किंतु उनसे बातचीत करके तमाम प्रकार से टोह लेने की कोशिश की तो उनके मन में अपने स्वास्थ्य को केवल संतुष्टि थी अपितु अपने स्वास्थ्य पर उन्हें इतना आत्म विश्वास था कि वे ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर चढ़ जाते दस पंद्रह फिट ऊपर से कूद जाते भारी वजन सिर पर रखकर काफी दूर तक चले जाते थकावट महसूस न करते !एक दूसरे से कुस्ती लड़ने का उत्साह और सारे सारे जीवन बिना दवाएँ खाए हुए निर्वाह करके स्वस्थ रह लेने वालों का अनुपात कम नहीं था ! उनका उत्साह देखकर लगता था कि इनके शरीर स्वस्थ हैं !कुछ भी कैसा भी खा पीकर पचा लेने की अद्भुत क्षमता थी उन लोगों में !ये सब देख कर लगा कि यदि शरीर इतने सुदृढ़ हों तो चिकित्सा की आवश्यकता ही न पड़े तो कितना अच्छा हो !
कुल मिलाकर महानगरों की उत्तम स्वास्थ्य सुविधाएँ देखकर मन मोहित हो जाता है किंतु सुदूर जंगलों में स्वस्थ शरीर एवं उत्साहित मन देख कर आत्म विभोर हुए बिना रह नहीं पाया !वास्तव में शरीर स्वस्थ हो और औषधि आदि चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता ही न पड़े तो इससे अच्छा और दूसरा क्या हो सकता है !
इन सबसे अलग जब अपने मनमें दोनों जगहों के रहन सहन का तुलनात्मिका दृष्टि से अध्ययन करने लगा तो देखा जंगलों में भी बहुत बूढ़े बूढ़े लोगों के भी दाँत सुरक्षित थे बुढ़ापे में भी आँखें इतनी ठीक थीं कि बिना चश्में के भी वे सुई में धागा डाल लेते थे!ऐसे में वे महानगरों के सुगर, वीपी, फैमिली डाक्टर, फिल्टर्ड पानी शुद्ध खाना जैसी बातें सुन कर वे अपने बीच उनका उपहास उड़ा रहे थे !इधर शहर के लोग वहाँ आभाव युक्त रहन सहन से सुविधाओं की दृष्टि से अपने को बेहतर समझते हैं !किंतु इतनी सारी सुख सुविधाएँ चिकित्सा सुविधाएँ एवं उत्तम खान पान आदि पाकर भी शरीर इतने स्वस्थ सुदृढ़ और उत्साहित क्यों नहीं हो पाते हैं कि ग्रामीणों की तरह शरीर के प्रति निश्चिंतता की भावना भरी जा सके !
वस्तुतः सुदूर जंगलों एवं महानगरों के जीवन में सुविधाओं की दृष्टि से बहुत बड़ा अन्तर होने के बाद भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं घटनाओं दुर्घटनाओं में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं था !दोनों जगह स्वस्थ और रोगी दोनों प्रकार के लोग थे मृत्यु जैसी दुर्घटनाएँ दोनों जगह समान रूप से घटती देखी जाती हैं !मनोरोग तनाव तलाक अर्थात वैवाहि जीवन में तनाव जैसी दुर्घटनाएँ भी दोनों जगहों पर लगभग समान थीं ! गरीबों ग्रामीणों जंगलों के रहन सहन में संसाधनों का अभाव होने के बाद भी प्रसन्नता पूरी थी जबकि महानगरों की जीवन शैली में सभी साधनों से संपन्न लोग भी तनावग्रस्त देखे जाते हैं !जंगली जीवन में अभाव जनित कुछ परेशानियाँ एवं स्वास्थ्य समस्याएँ दिखाई पड़ीं तो साधन संपन्न महानगरीय जीवन में स्वभाव जनित स्वास्थ्य और समस्याएँ देखने को मिलीं !कुल मिलाकर संसाधनों को भूलकर स्वास्थ्य मृत्युदर की दृष्टि से यदि देखा जाए तो दोनों जगहों को देखकर ऐसा लगा कि अधिकाँश मामलों में बहुत बड़ा अंतर नहीं है !
ऐसी परिस्थितियों में अपने शोध को संसाधनों से ऊपर उठाकर समय के धरातल पर स्थापित करके अनुसंधान प्रारंभ किया तो पाया कि रोग चिकित्सा और मृत्यु के विषय में सबसे अधिक महत्त्व समय का है क्योंकि प्रारब्ध जन्य रोगों का समय निश्चित होता है कि ऐसे रोग कितनी उम्र में कितने समय के लिए होंगे !उन रोगों में उतने समय तक चिकित्सा से कितना लाभ होगा ये समय के आधीन है क्योंकि अच्छी से अच्छी चिकित्सा भी समय विपरीत होने पर परिणाम भी विपरीत ही देती है !मानसिक तनाव भी किसको किस उम्र में कितने समय के लिए होगा ये भी समय के आधीन होता है !किसी की मृत्यु कब होगी ये भी समय के आधीन है इसीलिए जिसकी मृत्यु का समय समीप आ जाता है उस पर अच्छी से अच्छी चिकित्सा सुविधाओं के प्रयोग भी निष्फल होते देखे जाते हैं !इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रमुख है ही किन्तु चिकित्सा के परिणाम भी समय के अनुशार ही मिलते देखे जाते हैं !
जीवन की दृष्टि से समय और साधन दोनों का चाहिए समय अनुकूल होता है तो साधन बनते चले जाते हैं समय प्रतिकूल होता है तो बड़े से बड़े प्रयास निष्फल होते चले जाते हैं इसके बाद जीवन में सफलता तभी जब समय साथ देता है अन्यथा एक से एक ग्यानी गुणी अनुभवी परिश्रमी चरित्रवान लोग भी निरंतर प्रयास करके भी असफल जाते हैं तो कई बार साधन विहीन ज्ञान गुण हीन लोग भी सफल जाते हैं ! कुल मिलाकर सफलता की दृष्टि से यदि देखा जाए तो संसाधनों की अपेक्षा समय का महत्त्व अधिक है क्योंकि समय अनुकूल होता है तो संसाधन स्वयं ही मिलते चले जाते हैं !
समय की समस्या
समय सभी प्रकरणों में प्रमुख भूमिका निभाता है फिर भी समय चूँकि दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए लोग समय की भूमिका को समझ नहीं पाते हैं किंतु जैसे किसी घर में या कारखाने में बिजली के सारे उपकरण चलते दिखाई पड़ रहे हों और बिजली दिखाई नहीं पड़ती है तो भी उन उपकरणों को चलते देखकर उनमें बिजली की उपस्थिति का अंदाजा लगा लिया जाता है उसी तरह से जीवन के सभी पक्षों में समय की उपस्थिति का अनुभव किया जाना चाहिए !
पूर्वानुमान विज्ञान -
किसी कारखाने में बिजली के द्वारा चलने वाली मशीनों का चलना न चलना बिजली के आधीन होता है बिजली आएगी तो चलेंगी नहीं आएगी तो नहीं चलेंगी ऐसी परिस्थिति में मशीनें कब चलेंगी कब नहीं चलेंगी कितनी देर तक चलेंगी यदि ये जानना हो तो इसके लिए केवल मशीनों पर रिसर्च करके इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है अपितु इसके लिए तो बिजली के आने जाने के विषय में सटीक जानकारी जुटानी होगी उसी के आधार पर इस बात का निश्चय किया जा सकता है कि ये मशीनें कब चलेंगी कब नहीं चलेंगी !
इसके अलावा मशीनों के चलने न चलने के विषय में मशीनों को देखकर या मशीनों से निकलने वाले धुएँ ,कचरे को देखकर या फिर मशीनों से निकलने वाली आवाज को सुन कर उस पर अनुसंधान करके उसके आधार पर मशीनों के चलने न चलने का पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं होगा यदि ऐसा किया जाए तो ये दिखावा मात्र है इसके अलावा कुछ भी नहीं है ! पूर्वानुमान लगाने के लिए बिजली का अध्ययन करना होगा और उसी के आधार पर किया गया पूर्वानुमान ही सही मानना होगा
मशीनों के चलने के लिए जिस ऊर्जा की आवश्यकता होती है वो बिजली से मिलती है किंतु मशीनों के चलने में मुख्यभूमिका का निर्वाह करने वाली बिजली दिखाई नहीं पड़ती है फिर भी ये बात सबको पता है इसलिए इसका मतलब ये तो नहीं है कि मशीनों के चलने को कुदरत का करिश्मा मान लिया जाए !ठीक इसी प्रकार से इस सृष्टि में होने वाले सभी प्रकार के बड़े बदलावों में मुख्यभूमिका समय की होती है चूँकि समय दिखाई नहीं पड़ा रहा होता है इसलिए समय की भूमिका को नकारते हुए वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए बादल एवं समुद्रताप की जाँच के आधार पर लगाया गया पूर्वानुमान खानापूर्ति मात्र है इसे तर्कसंगत कैसे माना जा सकता है !!
इसी प्रकार से भूकंपादि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ समय से प्रेरित होकर ही घटित होती हैं फिर भी भूकम्पों के आने के कारण केवल पृथ्वी के अंदर खोजे जाना कितना तर्क संगत है उसके लिए तरह तरह की बातें गढ़ना या धरती के अंदर प्लेटों की परिकल्पना करना कितना युक्तियुक्त माना जा सकता है !
कुल मिलाकर समय जब जैसा आता है प्रकृति का स्वरूप भी तब तैसा ही स्वाभाविक रूप से स्वयमेव बनने लगता है वर्षा लायक समय आता है तो वर्षा होती है ऋतुएँ भी तो समय का ही प्रतिनिधित्व करती हैं !इसलिए वर्षाऋतु का समय आने पर बादल स्वयमेव आने लगते हैं काली काली घटाएँ उठने लगती वर्षा होने लगती है जैसे वर्षा ऋतु में बादलों को कहीं से पकड़ पकड़ कर आकाश में नहीं छोड़ना पड़ता है कुलमिलाकर मेघपालन की परंपरा तो कहीं भी नहीं है !समय का संकेत मिलते ही बादल आकाश में उपस्थित हो जाते हैं ! शरद ऋतु में मेघ रहित आकाश होता है हेमंत और शिशिर में सर्दी कोहरा पाला आदि होता है ग्रीष्म में धूल धूसरित आँधी चलने लगती है गर्मी बढ़ जाती है !ऋतुएँ समय का स्वरूप ही तो हैं आकाश एक जैसा रहने पर भी ऋतुएँ बदलने से वातावरण बदलता रहता है !
इसी प्रकार से सभी प्राणियों का शरीर हमेंशा एक जैसा रहता है समय बीतने के कारण शरीर में बाल वृद्ध आदि अवस्थाजन्य बदलाव समय बदलने के कारण ही तो होते जाते हैं इसी समय के बदलने या बिगड़ने से स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है और समय जब अच्छा होता है तो स्वास्थ्य सुधर जाता है समय के बदलने से स्वास्थ्य की परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं !स्वास्थ्य समय के आधीन होने के कारण ही तो कोई कुशल चिकित्सक सैकड़ों रोगियों को अच्छी से अच्छी चिकित्सा देने के प्रयास करता है फिर भी सभी रोगी तो स्वस्थ नहीं हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ ही रहते हैं कुछ मृत भी हो जाते हैं !कुलमिलाकर जिसका जैसा समय उस पर चिकित्सा का असर भी वैसा ही होता है !समय यदि अच्छा होता है तो कमजोर चिकित्सा से भी अच्छा लाभ मिल जाता है इसीकारण तो सुविधाओं के अभाव में भी गरीबों ग्रामीणों वनवासियों में भी स्वास्थ्य सामान्य रहने का अनुपात अच्छा रहता है !दूसरी ओर यदि समय अच्छा नहीं होता है तो सभी सुविधाओं से संपन्न बड़े बड़े अस्पतालों में मिलने वाली अच्छी से अच्छी चिकित्सा भी धोखा दे जाती है !इसलिए चिकित्सा के क्षेत्र में भी समय की ही प्रमुखता सिद्ध होती है !
इसी प्रकार से समय के अनुशार सोच बदलती रहती है जब समय अच्छा होता है तो जिन परिस्थितियों में जिन लोगों से मिलकर पहले प्रसन्नता हुआ करती उन्हीं से मिलकर बाद में तनाव होने लगता है न हम बदले न वो बदले न एक दूसरे के शरीर बदले फिर तनाव किस बात का !केवल समय के बदल जाने से संबंध बदल गए !कुल मिलाकर सत्ता संपत्ति संबंध स्वास्थ्य अदि सब कुछ समय के आधीन ही तो है समय अच्छा हो तो सब कुछ अच्छा बन जाए और समय बुरा हो तो सब कुछ बिगड़ जाता है !जिस परिस्थितियों में जिन लोगों के साथ पहले कभी प्रसन्न रह लिया करते थे उन्हीं परिस्थितियों में उन्हीं लोगों के साथ रहकर भी तनाव होने लगता है ! जिनकी एक झलक पाने को कभी तरसते रहते थे समय बदला तो उन्हीं से तलाक लेना पड़ा !बाक़ी सबकुछ तो वही था केवल समय बदल गया तो सम्बन्ध बिगड़ गए !
समय जब जब बिगड़ता है तब तब प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाएँ बढ़ने लग जाती हैं !प्रकृति शरीर और समाज का वातावरण बिगड़ने लग जाता है समय के बिगड़ने से वायु भी प्रदूषित होकर बहने लगती है !वायु प्रदूषित होते ही लोगों में अचानक पागलपन सवार होने लगता है उन्माद आतंकवाद आदि उपद्रवों में जन भागीदारी देखने को मिलने लगती है आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगता है ! तेज हवाएँ अर्थात आँधी तूफान आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल सी दिखने लगती हैं!अनाज, जल और औषधियों का नाश होने लगता है !वृक्ष फल फूल आदि रुग्ण होने लगते हैं पशुओं पक्षियों आदि जीव जंतुओं की चेष्टाएँ बदलने लगती हैं सूर्य चंद्र समेत समस्त ग्रहों के आकार प्रकार में विकार दिखने लगते हैं !पहाड़ अपने रंग बदलने लगते हैं कुएँ तालाब नदियाँ बड़ी तेजी से सूखने लगते हैं शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने लगती है लोगों में दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं लोगों को अचानक ऐसा गुस्सा आने लगता है कि वे मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग ! यहाँ के लोग उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस करेंगे ।अचानक ज्वर रोग तथा सामूहिक पागलपन की परेशानियाँ बढ़ने लगती हैं शिक्षित और समझदार लोग भी पागलों जैसी दलीलें देने लगते हैं ! ऐसे लक्षण जब लगातार कुछ समय तक बने रहते हैं तब भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं !भूकंप से प्रभावित क्षेत्र को तब तक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ साथ आतंकवादी समस्याओं से भी विशेष सावधान रहना होता है !सामाजिक दंगे भड़क सकते हैं ! कुल मिलाकर ऋतुओं के बदलते ही प्रकृति भी ऋतुजनित समय के स्वभाव के अनुरूप आचरण करने लगती है !
वर्षाऋतु का समय आने पर पानी बरसने लगता है प्रातः काल के समय के संकेत समझकर जैसे मुर्गा बोलने लगता है कमल खिल जाता है उसी समय के संकेत को समझकर सूर्य उग आता है ऐसी सभी घटनाएँ स्वतंत्र स्वतंत्र रूप से समय के कारण घट रही होती हैं गलती हम करते हैं कि कमलों के खिलने को समय के साथ स्वतंत्र रूप से न जोड़ कर हम सूर्य के साथ जोड़ देते हैं और कहने लगते हैं कि सूर्य उगने पर कमल खिलता है जबकि प्रातः काल होने पर कमल खिलते हैं और सुबह का समय देखकर ही मुर्गा बोलता है महत्त्व समय का होता है सभी घटनाएँ समय के साथ घट रही होती हैं भगवान् श्री कृष्ण के जन्म के समय तोआधी रात्रि के समय कमल खिल गए थे जबकि उस समय तो सूर्य का उदय न होकर अपितु चंद्र का उदय हुआ था !इससे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि कमल का खिलना समय से सम्बंधित है इसका सूर्य चन्द्रमा के उदयास्त से कोई विशेष संबंध नहीं है !
संसार में घटित होने वाली ऐसी बहुत सारी घटनाओं को हम समय के साथ न जोडका उन्हें आपस में एक दूसरे से चिपकाकर देखने लगते हैं जिसके कारण उनमें दिखने वाले समयजन्य प्रभावों का अनुभव हमें अलग अलग नहीं हो पाता है !
भागवत महापुराण में श्री कृष्ण जन्म प्रकरण में कहा गया कि
"अथ सर्व गुणोपेतः कालः परं शोभनः !"
अर्थात सभी गुणों से युक्त जब सुन्दर समय आया तब समय के प्रभाव से सभी ग्रह नक्षत्र तारे आदि सौम्य हो रहे थे !उसी सुन्दर समय के प्रभाव से दिशाएँ स्वच्छ एवं प्रसन्न थीं !वर्षा ऋतु होने पर भी नदियों का जल निर्मल हो गया और रात्रि होने पर भी कमल खिल गए फूलों से वृक्ष लद गए पशु पक्षी आदि सभी प्रन्नता का अनुभव करने लगे सुंदर वायु चलने लगी !सुन्दर समय के प्रभाव के कारण जिस प्रकार से समस्त चराचर जगत में चारों ओर सुखद प्रसन्नता पूर्ण वातावरण बनने लगा उसी प्रकार से समय की इसी शुभता के फल स्वरूप जैसे चराचर जगत में सभी प्रकार के शुभ लक्षण प्रकट होने लगे उसी प्रकार से समय की इसी शुभता के प्रभाव से भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार भी हो गया !इसके मूल में तो समय की शुभता ही थी !भगवान् श्री राम के अवतार के समय तो अत्यंत शुभ समय का संचार देखकर देवताओं को लगा कि इतना सुन्दर और शुभ समय चल रहा है इसमें तो भगवान का अवतार हो सकता है ऐसा समझकर देवता लोग भगवान् की स्तुति करने लगे और स्तुति करके जब अपने अपने धाम को चले गए तब भगवान प्रकट हुए !यथा -
दो.सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम !
जग निवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम !!
कुलमिलाकर समय की शुभता के दर्शन जो समस्त चराचर प्रकृति में दिख रहे थे वही श्री रामावतार या श्री कृष्णअवतार के स्वरूप में भी प्रकट हुए !सब में पृथक पृथक रूप से समय के दर्शन हो रहे थे किंतु समय के प्रभाव को पीछे करके बताया यह जाने लगा कि भगवान् के प्रादुर्भाव के प्रभाव से प्रकृति में सारे सुन्दर शुभ लक्षण प्रकट हो रहे थे !जिस सुन्दर समय के प्रभाव स्वरूप भगवान् का अवतार हो सकता है तो उस सुन्दर समय के प्रभाव से प्रकृति में यदि सुन्दर लक्षण प्रकट होने लगें तो इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए !दूसरी बात सुन्दर समय के प्रभाव से प्रकृति में यदि इतने सारे शुभ लक्षण देखने को मिल सकते हैं तो अशुभ समय के प्रभाव से अतिवर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप जैसी आपदाएँ दिखने लग जाएँ तो इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए ये भी समय का प्रभाव ही तो है !
वर्षा आदि ऋतुओं का समय आते ही समस्त प्रकृति समय के संकेतों का पालन करने लगती है वर्षाऋतु से संबंधित समय का संकेत मिलते ही यही प्रकृति ग्रीष्म ऋतु की तपी हुई धरती को वर्षा से सराबोर कर देती है सूखी पड़ी हुई नदियों तालाबों में जल ही जल दिखाई पड़ने लगता है !ऐसा ही सभी ऋतुओं के काल खंड में समय का प्रभाव देखने को मिलता है !कुलमिलाकर जो प्रकृति समय के आदेश की अवहेलना किए बिना उसका पालन निरंतर करती रहती है उस प्रकृति में भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफान जैसी प्राकृतिक घटनाएँ समय के आदेश की अवहेलना करके कैसे घटित हो जाएँगी ! कुल मिलाकर समय की उपेक्षा करते हुए समय को समझे बिना प्रकृति को समझने के लिए हम तरह तरह के तमाम असफल प्रयास किया करते हैं और प्राकृतिक विषयों पर पूर्वानुमान लगाया करते हैं या भविष्य वाणियाँ किया करते हैं जो तीर तुक्का ही साबित होती हैं !
समय की खोज !
समय को नापने के लिए ही तो युगों वर्षों ऋतुओं महीनों पक्षों सप्ताहों दिनों रातों की न केवल परिकल्पना की गई है अपितु इस ब्रह्मांड में सब कुछ समय चक्र से सुदृढ़ता पूर्वक बँधा हुआ है !प्रत्येक वर्ष एक निश्चित समय और सुनिश्चित प्राकृतिक वातावरण में प्रारंभ होते देखा जाता है !प्रत्येक वर्ष प्रारंभ होते समय किसी के द्वारा बिना कोई प्रयास किए हुए भी सारी प्राकृतिक परिस्थितियाँ एक जैसी स्वयं ही बनने लग जाती हैं !इसी प्रकार से वर्ष में 12 महीने बनते देखे जाते हैं वर्ष में 12 बार चंद्रमा और सूर्य का मिलन होता है जिसे अमावस्या कहा जाता है इसी प्रकार से अपनी अपनी गति के अनुशार अर्थात 13 अंश 20 कला प्रतिदिन के हिसाब से सूर्य और चंद्र दोनों ही वर्ष में 12 बार एक दूसरे से बिल्कुल दूर होते चले जाते हैं जिसे पूर्णिमा कहा जाता है ! जिस दिन ये दूरी सबसे अधिक होती है उसदिन पृथ्वीवासियों को चंद्रमा का पूर्णविम्ब दिखाई पड़ता है इसलिए उसे पूर्णिमा कहा जाता है!अमावस्या को सूर्य ग्रहण पड़ेगा और पूर्णिमा को चन्द्रगहण ये निश्चित है !किस अमावस्या पूर्णिमा को ग्रहण पड़ेगा किसमें नहीं पड़ेगा ये भी सुनिश्चित है कितने बजकर कितने मिनट से शुरू होगा कब समाप्त होगा कितने घंटा मिनट चलेगा !पृथ्वी के किस भाग में कौन ग्रहण दिखाई पड़ेगा किसमें नहीं दिखाई पड़ेगा ये सब कुछ सुनिश्चित है !
समय की अत्यंत वेगवती बलवती धारा है जैसे बाढ़ग्रस्त प्रबल प्रवाह युक्त नदी अपनी धारा के साथ आसपास का सबकुछ चपेट में लेकर बहा ले जाती है उसी प्रकार से समय की विशाल धारा सारे संसार को अपने प्रवाह के साथ साथ दौड़ाए चली जा रही है इस विराट सृष्टि में समय के प्रवाह के साथ साथ सबकुछ बदलता चला जा रहा है नदियाँ मार्ग बदलती जा रही हैं पहाड़ों में परिवर्तन होते जा रहे हैं मौसम में बदलाव होते दिख रहे हैं !किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि इतनी जल्दी जल्दी आखिर सब कैसे हुआ जा रहा है ! बच्चा था वो युवा हो गया युवा वृद्ध हो गया पता ही नहीं चला कब और कैसे !जो नया सामान लाया गया था वो पुराना होकर टूट गया कूड़े दान में चला गया !जो सुखी था वो दुखी हुआ जा रहा है जो दुखी था उसके घर खुशियाँ छायी हुई हैं !जो घर बनाया गया था खूब चमकाया गया था वही पुराना होकर गिरने लग गया !जिस लड़की या लड़के से मिलने के लिए कभी दिनरात उत्सुकता बनी रहती थी !जिससे विवाह करने के लिए घर वालों का समाज का कितना वैर विरोध सहना पड़ा फिर भी उससे विवाह किया किंतु उसी से आज हम पीछा छुड़ाने को उतावले घूम रहे हैं वही घरवाले और वही समाज हमें समझा रहा है बेटा तलाक मत लो !जो पद पाने के लिए जो प्रतिष्ठा पाने के लिए जो पत्नी या पति पाने के लिए जो पुत्र या पुत्री पाने के लिए जिसे मित्र बनाने के लिए जिस उद्योग को लगाने के लिए हमने न जाने कितने प्रयास किए कितने लोगों से जी हुजूरी की कितनी मुशीबत उठाई किंतु उन सभी चीजों से अचानक मोह भंग होने लगा और उन्हीं परिस्थितियों में तनाव बढ़ने लगा जिसके लिए हमने अज्ञानवश किसी व्यक्ति वस्तु स्थान संबंध आदि को दोषी मानना शुरू कर दिया जबकि विवशता वहाँ भी है जबकि हम तो केवल अपने अंदर झाँक रहे हैं इसलिए अपने साथ होने वाला परिवर्तन ही पता है किंतु परिवर्तन तो उधर भी होते जा रहे हैं बदलाव की बेचैनी वहाँ भी है! कुल मिलाकर सब कुछ बदला जा रहा है जिसे रोक कर रखने का किसी में कोई वश नहीं है !बीमार होने वाले को हम स्वस्थ नहीं रख सकते मरने वाले को हम जीवित नहीं बचा सकते नष्ट होने वाले को हम सुरक्षित नहीं रख सकते !जो होने जा रहा होता है यदि हम भी वैसा ही करने के लिए कोई प्रयास कर रहे होते हैं तो उस हुए को अपने प्रयास का फल मान लेते हैं और यदि हमारे प्रयास के विरुद्ध कुछ हुआ तो मौन होकर कुदरत पर सारा दोष मढ़ देते हैं !कई बार किसी काम के लिए हम बहुत प्रयास कर रहे होते हैं किंतु उसमें लगातार असफलता मिलती चली जाती है और कई बार बिना प्रयास के भी वो सफलता हमें अनायास ही मिल जाती है!ऐसे सभी बदलाव न जाने क्यों और कैसे होते चले जा रहे हैं किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा है मनुष्य के बश में क्या है क्या नहीं उसे समझ में ही नहीं आ रहा है !मनुष्य के प्रयासों की सीमाएँ क्या हैं पता ही नहीं लग पा रहा है एक व्यक्ति छोटी सी दुर्घटना का शिकार होकर मर जाता है तो दूसरा बहुत बड़ी दुघाटना का शिकार होकर ही बिल्कुल स्वस्थ बच जाता है !
चिकित्सा शास्त्र पर अत्यंत भरोसा रखने वाला मैं आयुर्वेद के लगभग सारे ग्रंथ गुरुमुख से समर्पित भावना से पढ़े हैं जिनके आधार पर जीवन को सुरक्षित रखने के विषय में लगने लगा कि चिकित्सा के बिना जीवन कितना कठिन है !आधुनिक चिकित्सा से विद्वानों के प्रयासों को देखकर मन अभिभूत हो गया इतनी सफलता !आँखों से लेकर लिवर हृदय किडनी घुटने आदि सब कुछ बदल देने जैसी बड़ी बड़ी सफलताएँ देखकर उन्हें नमन करने को मन करता है! महिला चिकित्सकों के हिसाब से प्रसव संबंधी असंख्य समस्याएँ सर्जरी आदि इतना कठिन हिसाब किताब !ऐसी सुविधाओं के अभाव में जीवन असंभव सा लगने लगता है !टीकाकरण जैसी बड़ी सफलताएँ जिन्हें कई बड़ी बीमारियों के उन्मूलन का श्रेय दिया जाता है !प्रश्न उठता है कि ऐसी सभी बड़ी स्वास्थ्य सुविधाएँ महानगरों या नगरों में सुलभ हैं किंतु किसानों गरीबों ग्रामीणों को धन के अभाव में ये सब कैसे सुलभ हो सकती हैं !जिज्ञासा वश सुदूर जंगलों में जाकर अलग अलग जगहों पर कुछ कुछ समय व्यतीत किया लोगों से मिला जुला उनके रहन सहन और समस्याओं को समझने का प्रयास किया !उनसे बातचीत करके उनके बीच रहकर लगा कि आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं के बिना भी वे अपने स्वास्थ्य सुख से संतुष्ट हैं उनके यहाँ कभी कोई टीकाकरण नहीं हुआ !प्रसव करने के लिए कभी किसी चिकित्सक के यहाँ नहीं गए प्रसव संबंधी समस्याएँ भी महानगरों की अपेक्षा बहुत कम देखने सुनने को मिलीं !डेंगू जैसे रोगों से बचने के लिए वहाँ मच्छरों से बचना संभव ही न था !जहाँ दिन रात सोना जागना आदि सारा रहन सहन मच्छरों के बीच ही करना पड़ता हो यहाँ तक कि साँप बिच्छु आदि बिषैले जीव जंतुओं के बीच ही रहना पड़ता है सिंह भालू आदि हिंसक जीव जंतुओं के बीच फूस पत्तियों की बनी झोपड़ियों छप्परों कच्चे मकानों ने के लिए वहाँ मच्छरों
आदि में रहकर जीवन कितना सुरक्षित था ! किंतु उनसे बातचीत करके तमाम प्रकार से टोह लेने की कोशिश की तो उनके मन में अपने स्वास्थ्य को केवल संतुष्टि थी अपितु अपने स्वास्थ्य पर उन्हें इतना आत्म विश्वास था कि वे ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर चढ़ जाते दस पंद्रह फिट ऊपर से कूद जाते भारी वजन सिर पर रखकर काफी दूर तक चले जाते थकावट महसूस न करते !एक दूसरे से कुस्ती लड़ने का उत्साह और सारे सारे जीवन बिना दवाएँ खाए हुए निर्वाह करके स्वस्थ रह लेने वालों का अनुपात कम नहीं था ! उनका उत्साह देखकर लगता था कि इनके शरीर स्वस्थ हैं !कुछ भी कैसा भी खा पीकर पचा लेने की अद्भुत क्षमता थी उन लोगों में !ये सब देख कर लगा कि यदि शरीर इतने सुदृढ़ हों तो चिकित्सा की आवश्यकता ही न पड़े तो कितना अच्छा हो !
कुल मिलाकर महानगरों की उत्तम स्वास्थ्य सुविधाएँ देखकर मन मोहित हो जाता है किंतु सुदूर जंगलों में स्वस्थ शरीर एवं उत्साहित मन देख कर आत्म विभोर हुए बिना रह नहीं पाया !वास्तव में शरीर स्वस्थ हो और औषधि आदि चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता ही न पड़े तो इससे अच्छा और दूसरा क्या हो सकता है !
इन सबसे अलग जब अपने मनमें दोनों जगहों के रहन सहन का तुलनात्मिका दृष्टि से अध्ययन करने लगा तो देखा जंगलों में भी बहुत बूढ़े बूढ़े लोगों के भी दाँत सुरक्षित थे बुढ़ापे में भी आँखें इतनी ठीक थीं कि बिना चश्में के भी वे सुई में धागा डाल लेते थे!ऐसे में वे महानगरों के सुगर, वीपी, फैमिली डाक्टर, फिल्टर्ड पानी शुद्ध खाना जैसी बातें सुन कर वे अपने बीच उनका उपहास उड़ा रहे थे !इधर शहर के लोग वहाँ आभाव युक्त रहन सहन से सुविधाओं की दृष्टि से अपने को बेहतर समझते हैं !किंतु इतनी सारी सुख सुविधाएँ चिकित्सा सुविधाएँ एवं उत्तम खान पान आदि पाकर भी शरीर इतने स्वस्थ सुदृढ़ और उत्साहित क्यों नहीं हो पाते हैं कि ग्रामीणों की तरह शरीर के प्रति निश्चिंतता की भावना भरी जा सके !
वस्तुतः सुदूर जंगलों एवं महानगरों के जीवन में सुविधाओं की दृष्टि से बहुत बड़ा अन्तर होने के बाद भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं घटनाओं दुर्घटनाओं में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं था !दोनों जगह स्वस्थ और रोगी दोनों प्रकार के लोग थे मृत्यु जैसी दुर्घटनाएँ दोनों जगह समान रूप से घटती देखी जाती हैं !मनोरोग तनाव तलाक अर्थात वैवाहि जीवन में तनाव जैसी दुर्घटनाएँ भी दोनों जगहों पर लगभग समान थीं ! गरीबों ग्रामीणों जंगलों के रहन सहन में संसाधनों का अभाव होने के बाद भी प्रसन्नता पूरी थी जबकि महानगरों की जीवन शैली में सभी साधनों से संपन्न लोग भी तनावग्रस्त देखे जाते हैं !जंगली जीवन में अभाव जनित कुछ परेशानियाँ एवं स्वास्थ्य समस्याएँ दिखाई पड़ीं तो साधन संपन्न महानगरीय जीवन में स्वभाव जनित स्वास्थ्य और समस्याएँ देखने को मिलीं !कुल मिलाकर संसाधनों को भूलकर स्वास्थ्य मृत्युदर की दृष्टि से यदि देखा जाए तो दोनों जगहों को देखकर ऐसा लगा कि अधिकाँश मामलों में बहुत बड़ा अंतर नहीं है !
ऐसी परिस्थितियों में अपने शोध को संसाधनों से ऊपर उठाकर समय के धरातल पर स्थापित करके अनुसंधान प्रारंभ किया तो पाया कि रोग चिकित्सा और मृत्यु के विषय में सबसे अधिक महत्त्व समय का है क्योंकि प्रारब्ध जन्य रोगों का समय निश्चित होता है कि ऐसे रोग कितनी उम्र में कितने समय के लिए होंगे !उन रोगों में उतने समय तक चिकित्सा से कितना लाभ होगा ये समय के आधीन है क्योंकि अच्छी से अच्छी चिकित्सा भी समय विपरीत होने पर परिणाम भी विपरीत ही देती है !मानसिक तनाव भी किसको किस उम्र में कितने समय के लिए होगा ये भी समय के आधीन होता है !किसी की मृत्यु कब होगी ये भी समय के आधीन है इसीलिए जिसकी मृत्यु का समय समीप आ जाता है उस पर अच्छी से अच्छी चिकित्सा सुविधाओं के प्रयोग भी निष्फल होते देखे जाते हैं !इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रमुख है ही किन्तु चिकित्सा के परिणाम भी समय के अनुशार ही मिलते देखे जाते हैं !
जीवन की दृष्टि से समय और साधन दोनों का चाहिए समय अनुकूल होता है तो साधन बनते चले जाते हैं समय प्रतिकूल होता है तो बड़े से बड़े प्रयास निष्फल होते चले जाते हैं इसके बाद जीवन में सफलता तभी जब समय साथ देता है अन्यथा एक से एक ग्यानी गुणी अनुभवी परिश्रमी चरित्रवान लोग भी निरंतर प्रयास करके भी असफल जाते हैं तो कई बार साधन विहीन ज्ञान गुण हीन लोग भी सफल जाते हैं ! कुल मिलाकर सफलता की दृष्टि से यदि देखा जाए तो संसाधनों की अपेक्षा समय का महत्त्व अधिक है क्योंकि समय अनुकूल होता है तो संसाधन स्वयं ही मिलते चले जाते हैं !
समय की समस्या
समय सभी प्रकरणों में प्रमुख भूमिका निभाता है फिर भी समय चूँकि दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए लोग समय की भूमिका को समझ नहीं पाते हैं किंतु जैसे किसी घर में या कारखाने में बिजली के सारे उपकरण चलते दिखाई पड़ रहे हों और बिजली दिखाई नहीं पड़ती है तो भी उन उपकरणों को चलते देखकर उनमें बिजली की उपस्थिति का अंदाजा लगा लिया जाता है उसी तरह से जीवन के सभी पक्षों में समय की उपस्थिति का अनुभव किया जाना चाहिए !
पूर्वानुमान विज्ञान -
किसी कारखाने में बिजली के द्वारा चलने वाली मशीनों का चलना न चलना बिजली के आधीन होता है बिजली आएगी तो चलेंगी नहीं आएगी तो नहीं चलेंगी ऐसी परिस्थिति में मशीनें कब चलेंगी कब नहीं चलेंगी कितनी देर तक चलेंगी यदि ये जानना हो तो इसके लिए केवल मशीनों पर रिसर्च करके इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है अपितु इसके लिए तो बिजली के आने जाने के विषय में सटीक जानकारी जुटानी होगी उसी के आधार पर इस बात का निश्चय किया जा सकता है कि ये मशीनें कब चलेंगी कब नहीं चलेंगी !
इसके अलावा मशीनों के चलने न चलने के विषय में मशीनों को देखकर या मशीनों से निकलने वाले धुएँ ,कचरे को देखकर या फिर मशीनों से निकलने वाली आवाज को सुन कर उस पर अनुसंधान करके उसके आधार पर मशीनों के चलने न चलने का पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं होगा यदि ऐसा किया जाए तो ये दिखावा मात्र है इसके अलावा कुछ भी नहीं है ! पूर्वानुमान लगाने के लिए बिजली का अध्ययन करना होगा और उसी के आधार पर किया गया पूर्वानुमान ही सही मानना होगा
मशीनों के चलने के लिए जिस ऊर्जा की आवश्यकता होती है वो बिजली से मिलती है किंतु मशीनों के चलने में मुख्यभूमिका का निर्वाह करने वाली बिजली दिखाई नहीं पड़ती है फिर भी ये बात सबको पता है इसलिए इसका मतलब ये तो नहीं है कि मशीनों के चलने को कुदरत का करिश्मा मान लिया जाए !ठीक इसी प्रकार से इस सृष्टि में होने वाले सभी प्रकार के बड़े बदलावों में मुख्यभूमिका समय की होती है चूँकि समय दिखाई नहीं पड़ा रहा होता है इसलिए समय की भूमिका को नकारते हुए वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए बादल एवं समुद्रताप की जाँच के आधार पर लगाया गया पूर्वानुमान खानापूर्ति मात्र है इसे तर्कसंगत कैसे माना जा सकता है !!
इसी प्रकार से भूकंपादि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ समय से प्रेरित होकर ही घटित होती हैं फिर भी भूकम्पों के आने के कारण केवल पृथ्वी के अंदर खोजे जाना कितना तर्क संगत है उसके लिए तरह तरह की बातें गढ़ना या धरती के अंदर प्लेटों की परिकल्पना करना कितना युक्तियुक्त माना जा सकता है !
कुल मिलाकर समय जब जैसा आता है प्रकृति का स्वरूप भी तब तैसा ही स्वाभाविक रूप से स्वयमेव बनने लगता है वर्षा लायक समय आता है तो वर्षा होती है ऋतुएँ भी तो समय का ही प्रतिनिधित्व करती हैं !इसलिए वर्षाऋतु का समय आने पर बादल स्वयमेव आने लगते हैं काली काली घटाएँ उठने लगती वर्षा होने लगती है जैसे वर्षा ऋतु में बादलों को कहीं से पकड़ पकड़ कर आकाश में नहीं छोड़ना पड़ता है कुलमिलाकर मेघपालन की परंपरा तो कहीं भी नहीं है !समय का संकेत मिलते ही बादल आकाश में उपस्थित हो जाते हैं ! शरद ऋतु में मेघ रहित आकाश होता है हेमंत और शिशिर में सर्दी कोहरा पाला आदि होता है ग्रीष्म में धूल धूसरित आँधी चलने लगती है गर्मी बढ़ जाती है !ऋतुएँ समय का स्वरूप ही तो हैं आकाश एक जैसा रहने पर भी ऋतुएँ बदलने से वातावरण बदलता रहता है !
इसी प्रकार से सभी प्राणियों का शरीर हमेंशा एक जैसा रहता है समय बीतने के कारण शरीर में बाल वृद्ध आदि अवस्थाजन्य बदलाव समय बदलने के कारण ही तो होते जाते हैं इसी समय के बदलने या बिगड़ने से स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है और समय जब अच्छा होता है तो स्वास्थ्य सुधर जाता है समय के बदलने से स्वास्थ्य की परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं !स्वास्थ्य समय के आधीन होने के कारण ही तो कोई कुशल चिकित्सक सैकड़ों रोगियों को अच्छी से अच्छी चिकित्सा देने के प्रयास करता है फिर भी सभी रोगी तो स्वस्थ नहीं हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ ही रहते हैं कुछ मृत भी हो जाते हैं !कुलमिलाकर जिसका जैसा समय उस पर चिकित्सा का असर भी वैसा ही होता है !समय यदि अच्छा होता है तो कमजोर चिकित्सा से भी अच्छा लाभ मिल जाता है इसीकारण तो सुविधाओं के अभाव में भी गरीबों ग्रामीणों वनवासियों में भी स्वास्थ्य सामान्य रहने का अनुपात अच्छा रहता है !दूसरी ओर यदि समय अच्छा नहीं होता है तो सभी सुविधाओं से संपन्न बड़े बड़े अस्पतालों में मिलने वाली अच्छी से अच्छी चिकित्सा भी धोखा दे जाती है !इसलिए चिकित्सा के क्षेत्र में भी समय की ही प्रमुखता सिद्ध होती है !
इसी प्रकार से समय के अनुशार सोच बदलती रहती है जब समय अच्छा होता है तो जिन परिस्थितियों में जिन लोगों से मिलकर पहले प्रसन्नता हुआ करती उन्हीं से मिलकर बाद में तनाव होने लगता है न हम बदले न वो बदले न एक दूसरे के शरीर बदले फिर तनाव किस बात का !केवल समय के बदल जाने से संबंध बदल गए !कुल मिलाकर सत्ता संपत्ति संबंध स्वास्थ्य अदि सब कुछ समय के आधीन ही तो है समय अच्छा हो तो सब कुछ अच्छा बन जाए और समय बुरा हो तो सब कुछ बिगड़ जाता है !जिस परिस्थितियों में जिन लोगों के साथ पहले कभी प्रसन्न रह लिया करते थे उन्हीं परिस्थितियों में उन्हीं लोगों के साथ रहकर भी तनाव होने लगता है ! जिनकी एक झलक पाने को कभी तरसते रहते थे समय बदला तो उन्हीं से तलाक लेना पड़ा !बाक़ी सबकुछ तो वही था केवल समय बदल गया तो सम्बन्ध बिगड़ गए !
समय जब जब बिगड़ता है तब तब प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाएँ बढ़ने लग जाती हैं !प्रकृति शरीर और समाज का वातावरण बिगड़ने लग जाता है समय के बिगड़ने से वायु भी प्रदूषित होकर बहने लगती है !वायु प्रदूषित होते ही लोगों में अचानक पागलपन सवार होने लगता है उन्माद आतंकवाद आदि उपद्रवों में जन भागीदारी देखने को मिलने लगती है आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगता है ! तेज हवाएँ अर्थात आँधी तूफान आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल सी दिखने लगती हैं!अनाज, जल और औषधियों का नाश होने लगता है !वृक्ष फल फूल आदि रुग्ण होने लगते हैं पशुओं पक्षियों आदि जीव जंतुओं की चेष्टाएँ बदलने लगती हैं सूर्य चंद्र समेत समस्त ग्रहों के आकार प्रकार में विकार दिखने लगते हैं !पहाड़ अपने रंग बदलने लगते हैं कुएँ तालाब नदियाँ बड़ी तेजी से सूखने लगते हैं शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने लगती है लोगों में दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं लोगों को अचानक ऐसा गुस्सा आने लगता है कि वे मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग ! यहाँ के लोग उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस करेंगे ।अचानक ज्वर रोग तथा सामूहिक पागलपन की परेशानियाँ बढ़ने लगती हैं शिक्षित और समझदार लोग भी पागलों जैसी दलीलें देने लगते हैं ! ऐसे लक्षण जब लगातार कुछ समय तक बने रहते हैं तब भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं !भूकंप से प्रभावित क्षेत्र को तब तक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ साथ आतंकवादी समस्याओं से भी विशेष सावधान रहना होता है !सामाजिक दंगे भड़क सकते हैं ! कुल मिलाकर ऋतुओं के बदलते ही प्रकृति भी ऋतुजनित समय के स्वभाव के अनुरूप आचरण करने लगती है !
वर्षाऋतु का समय आने पर पानी बरसने लगता है प्रातः काल के समय के संकेत समझकर जैसे मुर्गा बोलने लगता है कमल खिल जाता है उसी समय के संकेत को समझकर सूर्य उग आता है ऐसी सभी घटनाएँ स्वतंत्र स्वतंत्र रूप से समय के कारण घट रही होती हैं गलती हम करते हैं कि कमलों के खिलने को समय के साथ स्वतंत्र रूप से न जोड़ कर हम सूर्य के साथ जोड़ देते हैं और कहने लगते हैं कि सूर्य उगने पर कमल खिलता है जबकि प्रातः काल होने पर कमल खिलते हैं और सुबह का समय देखकर ही मुर्गा बोलता है महत्त्व समय का होता है सभी घटनाएँ समय के साथ घट रही होती हैं भगवान् श्री कृष्ण के जन्म के समय तोआधी रात्रि के समय कमल खिल गए थे जबकि उस समय तो सूर्य का उदय न होकर अपितु चंद्र का उदय हुआ था !इससे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि कमल का खिलना समय से सम्बंधित है इसका सूर्य चन्द्रमा के उदयास्त से कोई विशेष संबंध नहीं है !
संसार में घटित होने वाली ऐसी बहुत सारी घटनाओं को हम समय के साथ न जोडका उन्हें आपस में एक दूसरे से चिपकाकर देखने लगते हैं जिसके कारण उनमें दिखने वाले समयजन्य प्रभावों का अनुभव हमें अलग अलग नहीं हो पाता है !
भागवत महापुराण में श्री कृष्ण जन्म प्रकरण में कहा गया कि
"अथ सर्व गुणोपेतः कालः परं शोभनः !"
अर्थात सभी गुणों से युक्त जब सुन्दर समय आया तब समय के प्रभाव से सभी ग्रह नक्षत्र तारे आदि सौम्य हो रहे थे !उसी सुन्दर समय के प्रभाव से दिशाएँ स्वच्छ एवं प्रसन्न थीं !वर्षा ऋतु होने पर भी नदियों का जल निर्मल हो गया और रात्रि होने पर भी कमल खिल गए फूलों से वृक्ष लद गए पशु पक्षी आदि सभी प्रन्नता का अनुभव करने लगे सुंदर वायु चलने लगी !सुन्दर समय के प्रभाव के कारण जिस प्रकार से समस्त चराचर जगत में चारों ओर सुखद प्रसन्नता पूर्ण वातावरण बनने लगा उसी प्रकार से समय की इसी शुभता के फल स्वरूप जैसे चराचर जगत में सभी प्रकार के शुभ लक्षण प्रकट होने लगे उसी प्रकार से समय की इसी शुभता के प्रभाव से भगवान् श्रीकृष्ण का अवतार भी हो गया !इसके मूल में तो समय की शुभता ही थी !भगवान् श्री राम के अवतार के समय तो अत्यंत शुभ समय का संचार देखकर देवताओं को लगा कि इतना सुन्दर और शुभ समय चल रहा है इसमें तो भगवान का अवतार हो सकता है ऐसा समझकर देवता लोग भगवान् की स्तुति करने लगे और स्तुति करके जब अपने अपने धाम को चले गए तब भगवान प्रकट हुए !यथा -
दो.सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम !
जग निवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम !!
कुलमिलाकर समय की शुभता के दर्शन जो समस्त चराचर प्रकृति में दिख रहे थे वही श्री रामावतार या श्री कृष्णअवतार के स्वरूप में भी प्रकट हुए !सब में पृथक पृथक रूप से समय के दर्शन हो रहे थे किंतु समय के प्रभाव को पीछे करके बताया यह जाने लगा कि भगवान् के प्रादुर्भाव के प्रभाव से प्रकृति में सारे सुन्दर शुभ लक्षण प्रकट हो रहे थे !जिस सुन्दर समय के प्रभाव स्वरूप भगवान् का अवतार हो सकता है तो उस सुन्दर समय के प्रभाव से प्रकृति में यदि सुन्दर लक्षण प्रकट होने लगें तो इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए !दूसरी बात सुन्दर समय के प्रभाव से प्रकृति में यदि इतने सारे शुभ लक्षण देखने को मिल सकते हैं तो अशुभ समय के प्रभाव से अतिवर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप जैसी आपदाएँ दिखने लग जाएँ तो इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए ये भी समय का प्रभाव ही तो है !
वर्षा आदि ऋतुओं का समय आते ही समस्त प्रकृति समय के संकेतों का पालन करने लगती है वर्षाऋतु से संबंधित समय का संकेत मिलते ही यही प्रकृति ग्रीष्म ऋतु की तपी हुई धरती को वर्षा से सराबोर कर देती है सूखी पड़ी हुई नदियों तालाबों में जल ही जल दिखाई पड़ने लगता है !ऐसा ही सभी ऋतुओं के काल खंड में समय का प्रभाव देखने को मिलता है !कुलमिलाकर जो प्रकृति समय के आदेश की अवहेलना किए बिना उसका पालन निरंतर करती रहती है उस प्रकृति में भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफान जैसी प्राकृतिक घटनाएँ समय के आदेश की अवहेलना करके कैसे घटित हो जाएँगी ! कुल मिलाकर समय की उपेक्षा करते हुए समय को समझे बिना प्रकृति को समझने के लिए हम तरह तरह के तमाम असफल प्रयास किया करते हैं और प्राकृतिक विषयों पर पूर्वानुमान लगाया करते हैं या भविष्य वाणियाँ किया करते हैं जो तीर तुक्का ही साबित होती हैं !
समय की खोज !
समय को नापने के लिए ही तो युगों वर्षों ऋतुओं महीनों पक्षों सप्ताहों दिनों रातों की न केवल परिकल्पना की गई है अपितु इस ब्रह्मांड में सब कुछ समय चक्र से सुदृढ़ता पूर्वक बँधा हुआ है !प्रत्येक वर्ष एक निश्चित समय और सुनिश्चित प्राकृतिक वातावरण में प्रारंभ होते देखा जाता है !प्रत्येक वर्ष प्रारंभ होते समय किसी के द्वारा बिना कोई प्रयास किए हुए भी सारी प्राकृतिक परिस्थितियाँ एक जैसी स्वयं ही बनने लग जाती हैं !इसी प्रकार से वर्ष में 12 महीने बनते देखे जाते हैं वर्ष में 12 बार चंद्रमा और सूर्य का मिलन होता है जिसे अमावस्या कहा जाता है इसी प्रकार से अपनी अपनी गति के अनुशार अर्थात 13 अंश 20 कला प्रतिदिन के हिसाब से सूर्य और चंद्र दोनों ही वर्ष में 12 बार एक दूसरे से बिल्कुल दूर होते चले जाते हैं जिसे पूर्णिमा कहा जाता है ! जिस दिन ये दूरी सबसे अधिक होती है उसदिन पृथ्वीवासियों को चंद्रमा का पूर्णविम्ब दिखाई पड़ता है इसलिए उसे पूर्णिमा कहा जाता है!अमावस्या को सूर्य ग्रहण पड़ेगा और पूर्णिमा को चन्द्रगहण ये निश्चित है !किस अमावस्या पूर्णिमा को ग्रहण पड़ेगा किसमें नहीं पड़ेगा ये भी सुनिश्चित है कितने बजकर कितने मिनट से शुरू होगा कब समाप्त होगा कितने घंटा मिनट चलेगा !पृथ्वी के किस भाग में कौन ग्रहण दिखाई पड़ेगा किसमें नहीं दिखाई पड़ेगा ये सब कुछ सुनिश्चित है !
ऋतुएँ कितनी होंगी किस ऋतु के बाद कौन ऋतु आएगी वो कितने समय तक रहेगी उस समय प्राकृतिक वातावरण कैसा रहेगा आदि सब कुछ सुनिश्चित है उसी क्रम में अनादि काल से सब कुछ चलता चला आ रहा है !
इसी प्रकार से किस प्रतिपदा को चंद्र कितने बजे उदित होगा उस समय उसका कौन श्रृंग उन्नत दिखाई देगा यह भी निश्चित है !प्रतिदिन सूर्य चंद्र कितने बजे उदित होंगे और कितने बजे अस्त होंगे ये सब पूर्व निर्धारित है ऐसे ही सभी ग्रहों के उदय अस्त अदि का समय सुनिश्चित है !
ये सब सुनिश्चित तो पहले से ही रहे होंगे किंतु इनके क्रम को समझने के लिए पूर्वजों को उस युग में भारी रिसर्च करना पड़ा होगा अन्यथा समय के ये सारे भेद कैसे समझे जा सकते थे और कैसे इस बात का पता लगाया जा सकता था कि ग्रहण अमावस्या या पूर्णिमा को ही पड़ेगा एवं किस अमावस्या या पूर्णिमा को ग्रहण पड़ेगा और किसमें नहीं पड़ेगा !इसका पता लगा पाने में भी वे सफल हुए !
प्रकृति में जो कुछ भी हो रहा है वो देखने में भले ही अचानक होता हुआ दिखे किन्तु सच्चाई ये है कि अचानक कुछ भी नहीं हो रहा है सब कुछ पूर्व निर्धारित एवं समय सूत्र में पिरोया हुआ सा है !यहाँ जो कुछ भी हो रहा है हो चुका है या होगा वो सब कुछ समय के सिद्धांत के अनुशार ही घटित होता चला जा रहा है और सब कुछ सुनिश्चित है किंतु अंतर इतना है कि पूर्वजों ने समय के सिद्धांत को समझा और उसके आधार पर प्रकृति के बड़े बड़े रहस्य सुलझा लिए वर्षों महीनों पक्षों तिथियों ग्रहणों एवं ग्रहों के उदय अस्त आदि के रहस्य सुलझा लेना कोई आसान काम तो नहीं था किंतु अपने पूर्वज तपस्या साधना पूर्वक प्रकृति संबंधी अनुसंधानों में समर्पित भावना से निरंतर लगे रहे तो उसका फल यह हुआ कि प्रकृति से संबंधित बहुत कुछ आगे से आगे पता लगा लिया जाता है !ऋतुओं का क्रम हमें आगे से आगे पता होता है कि किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी उस समय का प्राकृतिक वातावरण अर्थात मौसम कैसा होगा !किस अमावस्या या पूर्णिमा पर कौन सा ग्रहण पड़ेगा वो कितने समय का होगा कब प्रारंभ होगा और कब समाप्त होगा उसकी कुल अवधि कितनी होगी आदि बातों का सटीक पूर्वानुमान समय की जिस विधा के आधार पर लगाया जा सका उसके आधार पर वर्षा बाढ़ आँधी तूफान भूकंपों आदि का पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है !
पूर्वजों के उस परिश्रम का सदुपयोग करने के लिए समय विज्ञान के विषय में विशेष अभियान छेड़ा जाना चाहिए! कितना कठिन रहा होगा उस युग में समय विज्ञान पर अनुसंधान करना !अब जब आधुनिक विज्ञान इतना विकसित हो चुका है तब भी सूर्य के आस पास तक पहुँच पाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव सा लगता है तो प्राचीन युग में जब आधुनिक विज्ञान का सहयोग बिल्कुल न के बराबर था एवं आधुनिक समय की तरह अत्याधुनिक यंत्रों की इतनी सुविधा उस समय में नहीं थी ऐसी परिस्थिति में उस समय सौर मंडल से लेकर समस्त सौर पद्धतियों समेत सूर्य की गति का अध्ययन करना कितना कठिन रहा होगा ! इससे मिलती जुलती कठिनाइयाँ चंद्र से संबंधित अध्ययनों के लिए भी थीं !इसी प्रकार से पृथ्वी पर मानव रहता अवश्य था किंतु पृथ्वी से संबंधित अध्ययनों के लिए परिस्थितियाँ सूर्य चंद्र आदि से बहुत कुछ अलग नहीं थीं कठिनाइयाँ यहाँ भी लगभग उतनी ही या उससे कुछ कम थीं !
अनुसंधानों की दृष्टि से सागरों सरिताओं पहाड़ों आदि से सुशोभित पृथ्वी के आकार प्रकार विस्तार आदि को समझ पाना कोई आसान काम तो नहीं था !ऐसी परिस्थिति में लौकिक प्रयासों से सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि के विषय में जानकारी और अनुभव कर पाना कितना कठिन रहा होगा कल्पना की जा सकती है !उस समय तो दूर संचार आदि के माध्यमों से सूचनाओं के आदान प्रदान का भी कोई साधन नहीं था !ऐसी परिस्थितियों में पृथ्वी सूर्य चंद्र आदि के अतिविशाल पिंडों के विषय में पहले तो जानकारी जुटाना फिर उनके विषय में अध्ययन करना अनुभव इकट्ठे कर पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु सीमित साधनों के उस युग में असंभव भी था !ऐसी परिस्थिति में लौकिक विधि से अनुसंधान कर पाना तो उनके वश का नहीं था फिर भी अपने पूर्वजों ने हिम्मत नहीं हारी और समय को माध्यम बनाया समय के सिद्धांतसूत्र खोजे और उन सूत्रों को गणित विधि से निबद्ध करके उन सूत्रों के आधार पर ही अनुसंधान पूर्वक सूर्य और चंद्र पर जाए बिना समस्त पृथ्वी का भ्रमण किए बिना भी एक जगह अपने आसन पर बैठे बैठे सूर्य चंद्र और पृथ्वी के आकार प्रकार विस्तार आदि को गणित के द्वारा नाप लिया उनकी गति का सटीक अनुमान लगा लिया और उन्हीं के आधार पर सुदूर आकाश में घटित होने वाले सूर्य चंद्र आदि ग्रहणों का हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त की है समय के उन्हीं सिद्धांतों का अध्ययन अनुसन्धान करके यदि वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप जैसी प्रकृति से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए !
ये सब कहने के पीछे मेरी एक ही भावना है कि जिस प्रकार से प्रकृति में जो कुछ भी घटित हो रहा है वो सब कुछ सुनिश्चित है इसके भी सुदृढ़ सिद्धांत हैं प्रकृति में होने वाले सभी प्रकार के बदलाव उन्हीं सुदृढ़ सिद्धांतों से बँधे हुए हैं उन्हीं के अनुशार होते चले जा रहे हैं उसी प्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों एवं भूकम्पों जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के घटने के लिए भी तो समय के कोई न कोई सुदृढ़ सिद्धांत अवश्य होंगे जिनके अनुशार सभी कुछ घटित होता चला जा रहा है उनकी खोज की जानी चाहिए !
समय से संबंधित इस गणितीय विधा के अलावा प्रकृति के किसी भी विषय में पूर्वानुमान लगाने की बातें करना कोरी कल्पना मात्र है क्योंकि पहली बात तो संपूर्ण प्रकृति के स्वभाव को समझ पाना उनके परिवर्तनों के विषय में अनुभवों का संग्रह करना आसान काम तो नहीं है इससे भी अधिक कठिन है प्रकृति के विषय में सब कुछ जानते हुए भी प्रकृति के प्रत्येक आयाम में प्रतिपल घटित हो रहे बदलावों पर एवं पृथ्वी समेत अति विशाल ग्रह पिंडों पर हमेंशा सूक्ष्म दृष्टि बनाए रखना और उन परिवर्तनों का संग्रह करते हुए उनके फलस्वरूप घटित होने वाली घटनाओं का अनुभव हँसी खेल का विषय तो नहीं होता है !
मनुष्य शरीर तो अति विशाल ग्रहपिंडों की तरह नहीं होता है कि जिसके प्रत्येक पक्ष को देखा समझा न जा जा सके किंतु इसके बाद भी किसी स्वास्थ्य वैज्ञानिक के साथ लगातार रहने वाला कोई भावी रोगी यदि चाहे कि स्वास्थ्य वैज्ञानिक उसे भविष्य में होने वाले रोगों के विषय में पहले से सचेत करता चले तो क्या संभव है कि वो स्वास्थ्य वैज्ञानिक अपने स्वास्थ्य विज्ञान के बल पर उसे भविष्य में होने वाले रोगों के विषय में पूर्वानुमान लगाकर सचेत कर सकता है कि उसे भविष्य में कब कौन सा रोग होने वाला है!शरीर वैज्ञानिक शरीर में होने वाले रोगों के विषय में यदि पूर्वानुमान नहीं लगा सकते तो मौसम वैज्ञानिक मौसम के विषय में एवं भूकंप वैज्ञानिक भूकंप के विषय में कभी कोई पूर्वानुमान लगाने में सफल हो पाएँगे इसकी कल्पना कैसे की जा सकती है !क्योंकि पूर्वानुमान विषय ही समय विज्ञान का है इसलिए उसमें अन्य प्रकार से लगाए गए तीर तुक्कों की कोई विश्वसनीयता नहीं होती है!
मनुष्य शरीरों से संबंधित पूर्वानुमानों को लगाने में असफल लोगोंके प्रकृति का विस्तार तो अत्यंत विशाल है इसलिए उसके प्रत्येक आयाम में हो रहे बदलाओं पर हमेंशा सूक्ष्म दृष्टि बनाए रखना तो असंभव है ही उसमें भी इस प्रकार की अपेक्षा आधुनिक विज्ञान के ऐसे दम्भियों से कटी नहीं की जा सकती जो स्वाभाविक वैज्ञानिक न हों अपितु केवल विज्ञान की कक्षाओं में बैठकर कुछ पढ़े और पास हो गए हैं इसलिए वैज्ञानिक हैं क्योंकि वास्तविक वैज्ञानिक,कवि और प्रेमी तो अपने लक्ष्य के प्रति इतना अधिक समर्पित होते हैं कि उन्हें अपने शरीर की भी सुध नहीं रह जाती शौक शान श्रृंगार सैलरी आदि के लिए कोई वैज्ञानिक जीना भी चाहे तो उसकी आत्मा गँवारा नहीं करती क्योंकि वो देश और समाज पर इतना बड़ा उपकार कर रहा होता है कि उसके अनुसंधान की कीमत कोई भी सरकार या समाज धन से नहीं चुका सकती क्योंकि इसके लिए उसे अपनी सभी इच्छाएँ छोड़नी पड़ती हैं इतना पढ़लिख कर भी उसे हर सुख सुविधा स्वाद सामग्रियों से मुख मोड़ना पड़ता है !आजीवन विद्यार्थी व्रत का कठोरता पूर्वक पालन करना होता है !
पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जैसे घर द्वार भूलना पड़ता है सब सुख भोग की भावनाओं का विसर्जन करना पड़ता है!अपनी सारी इच्छाओं को मारना पड़ता है कहाँ तक कहें कुछ बनने के लिए एक विद्यार्थी को भावनात्मक रूप से एक बार मरना पड़ता है! यदि कुछ बन कर निकल पाया तो यह उसका नूतन अर्थात नया जन्म होता है, यदि नहीं बन पाया तो वह इतना टूट चुका होता है कि उसे अपना मन मारकर आजीवन जीवन ढोना पड़ता है !ऐसे बलिदानी विद्यार्थियों को खाने का स्वाद, स्वजनों से संवाद एवं हास्य विनोद की भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए पूर्ण संयमित जीवन जीना पड़ता है! जब नींद बलपूर्वक अपनी चपेट में ले ले तो रात्रि और जब विद्यार्थी बलपूर्वक अपनी नींद को धक्का देकर भगा दे वहीँ सबेरा हो जाता है! सच्चे विद्यार्थी के जीवन में इस सूर्य के उदय अस्त का कोई महत्त्व नहीं होता उनका अपना सूरज अपना मन होता है रात-रात भर जगने का हर क्षण दिन के समान होता है इस व्रती जीवन की तुलना केवल एक सच्चे साधक से की जा सकती है!सच्चे वैज्ञानिकों का जीवन और अपने शोध के प्रति समर्पण इसी प्रकार का होता है वो गृहस्थी में रहते हुए भी मानसिक रूप से विरक्त होते हैं !
जब मैं बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में पढ़ता था तो गंगा जी के किनारे अस्सी घाट पर मिले एक साधक ने विज्ञानसाधना के विषय में समझाते हुए हमसे कहा था कि जैसे किसी व्यक्ति के हाथ पैर बाँधकर पानी में डाल दिया जाए उस पानी में डूबे हुए व्यक्ति के मनमें जितनी छटपटाहट बाहर निकलने के लिए होती है ठीक इसीप्रकार की छटपटाहट विज्ञान के विषय में अनुसंधान के वाले साधकों के मन में होनी चाहिए!
प्रकृति में जो कुछ भी हो रहा है वो देखने में भले ही अचानक होता हुआ दिखे किन्तु सच्चाई ये है कि अचानक कुछ भी नहीं हो रहा है सब कुछ पूर्व निर्धारित एवं समय सूत्र में पिरोया हुआ सा है !यहाँ जो कुछ भी हो रहा है हो चुका है या होगा वो सब कुछ समय के सिद्धांत के अनुशार ही घटित होता चला जा रहा है और सब कुछ सुनिश्चित है किंतु अंतर इतना है कि पूर्वजों ने समय के सिद्धांत को समझा और उसके आधार पर प्रकृति के बड़े बड़े रहस्य सुलझा लिए वर्षों महीनों पक्षों तिथियों ग्रहणों एवं ग्रहों के उदय अस्त आदि के रहस्य सुलझा लेना कोई आसान काम तो नहीं था किंतु अपने पूर्वज तपस्या साधना पूर्वक प्रकृति संबंधी अनुसंधानों में समर्पित भावना से निरंतर लगे रहे तो उसका फल यह हुआ कि प्रकृति से संबंधित बहुत कुछ आगे से आगे पता लगा लिया जाता है !ऋतुओं का क्रम हमें आगे से आगे पता होता है कि किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी उस समय का प्राकृतिक वातावरण अर्थात मौसम कैसा होगा !किस अमावस्या या पूर्णिमा पर कौन सा ग्रहण पड़ेगा वो कितने समय का होगा कब प्रारंभ होगा और कब समाप्त होगा उसकी कुल अवधि कितनी होगी आदि बातों का सटीक पूर्वानुमान समय की जिस विधा के आधार पर लगाया जा सका उसके आधार पर वर्षा बाढ़ आँधी तूफान भूकंपों आदि का पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है !
पूर्वजों के उस परिश्रम का सदुपयोग करने के लिए समय विज्ञान के विषय में विशेष अभियान छेड़ा जाना चाहिए! कितना कठिन रहा होगा उस युग में समय विज्ञान पर अनुसंधान करना !अब जब आधुनिक विज्ञान इतना विकसित हो चुका है तब भी सूर्य के आस पास तक पहुँच पाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव सा लगता है तो प्राचीन युग में जब आधुनिक विज्ञान का सहयोग बिल्कुल न के बराबर था एवं आधुनिक समय की तरह अत्याधुनिक यंत्रों की इतनी सुविधा उस समय में नहीं थी ऐसी परिस्थिति में उस समय सौर मंडल से लेकर समस्त सौर पद्धतियों समेत सूर्य की गति का अध्ययन करना कितना कठिन रहा होगा ! इससे मिलती जुलती कठिनाइयाँ चंद्र से संबंधित अध्ययनों के लिए भी थीं !इसी प्रकार से पृथ्वी पर मानव रहता अवश्य था किंतु पृथ्वी से संबंधित अध्ययनों के लिए परिस्थितियाँ सूर्य चंद्र आदि से बहुत कुछ अलग नहीं थीं कठिनाइयाँ यहाँ भी लगभग उतनी ही या उससे कुछ कम थीं !
अनुसंधानों की दृष्टि से सागरों सरिताओं पहाड़ों आदि से सुशोभित पृथ्वी के आकार प्रकार विस्तार आदि को समझ पाना कोई आसान काम तो नहीं था !ऐसी परिस्थिति में लौकिक प्रयासों से सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि के विषय में जानकारी और अनुभव कर पाना कितना कठिन रहा होगा कल्पना की जा सकती है !उस समय तो दूर संचार आदि के माध्यमों से सूचनाओं के आदान प्रदान का भी कोई साधन नहीं था !ऐसी परिस्थितियों में पृथ्वी सूर्य चंद्र आदि के अतिविशाल पिंडों के विषय में पहले तो जानकारी जुटाना फिर उनके विषय में अध्ययन करना अनुभव इकट्ठे कर पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु सीमित साधनों के उस युग में असंभव भी था !ऐसी परिस्थिति में लौकिक विधि से अनुसंधान कर पाना तो उनके वश का नहीं था फिर भी अपने पूर्वजों ने हिम्मत नहीं हारी और समय को माध्यम बनाया समय के सिद्धांतसूत्र खोजे और उन सूत्रों को गणित विधि से निबद्ध करके उन सूत्रों के आधार पर ही अनुसंधान पूर्वक सूर्य और चंद्र पर जाए बिना समस्त पृथ्वी का भ्रमण किए बिना भी एक जगह अपने आसन पर बैठे बैठे सूर्य चंद्र और पृथ्वी के आकार प्रकार विस्तार आदि को गणित के द्वारा नाप लिया उनकी गति का सटीक अनुमान लगा लिया और उन्हीं के आधार पर सुदूर आकाश में घटित होने वाले सूर्य चंद्र आदि ग्रहणों का हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त की है समय के उन्हीं सिद्धांतों का अध्ययन अनुसन्धान करके यदि वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप जैसी प्रकृति से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य क्यों होना चाहिए !
ये सब कहने के पीछे मेरी एक ही भावना है कि जिस प्रकार से प्रकृति में जो कुछ भी घटित हो रहा है वो सब कुछ सुनिश्चित है इसके भी सुदृढ़ सिद्धांत हैं प्रकृति में होने वाले सभी प्रकार के बदलाव उन्हीं सुदृढ़ सिद्धांतों से बँधे हुए हैं उन्हीं के अनुशार होते चले जा रहे हैं उसी प्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों एवं भूकम्पों जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के घटने के लिए भी तो समय के कोई न कोई सुदृढ़ सिद्धांत अवश्य होंगे जिनके अनुशार सभी कुछ घटित होता चला जा रहा है उनकी खोज की जानी चाहिए !
समय से संबंधित इस गणितीय विधा के अलावा प्रकृति के किसी भी विषय में पूर्वानुमान लगाने की बातें करना कोरी कल्पना मात्र है क्योंकि पहली बात तो संपूर्ण प्रकृति के स्वभाव को समझ पाना उनके परिवर्तनों के विषय में अनुभवों का संग्रह करना आसान काम तो नहीं है इससे भी अधिक कठिन है प्रकृति के विषय में सब कुछ जानते हुए भी प्रकृति के प्रत्येक आयाम में प्रतिपल घटित हो रहे बदलावों पर एवं पृथ्वी समेत अति विशाल ग्रह पिंडों पर हमेंशा सूक्ष्म दृष्टि बनाए रखना और उन परिवर्तनों का संग्रह करते हुए उनके फलस्वरूप घटित होने वाली घटनाओं का अनुभव हँसी खेल का विषय तो नहीं होता है !
मनुष्य शरीर तो अति विशाल ग्रहपिंडों की तरह नहीं होता है कि जिसके प्रत्येक पक्ष को देखा समझा न जा जा सके किंतु इसके बाद भी किसी स्वास्थ्य वैज्ञानिक के साथ लगातार रहने वाला कोई भावी रोगी यदि चाहे कि स्वास्थ्य वैज्ञानिक उसे भविष्य में होने वाले रोगों के विषय में पहले से सचेत करता चले तो क्या संभव है कि वो स्वास्थ्य वैज्ञानिक अपने स्वास्थ्य विज्ञान के बल पर उसे भविष्य में होने वाले रोगों के विषय में पूर्वानुमान लगाकर सचेत कर सकता है कि उसे भविष्य में कब कौन सा रोग होने वाला है!शरीर वैज्ञानिक शरीर में होने वाले रोगों के विषय में यदि पूर्वानुमान नहीं लगा सकते तो मौसम वैज्ञानिक मौसम के विषय में एवं भूकंप वैज्ञानिक भूकंप के विषय में कभी कोई पूर्वानुमान लगाने में सफल हो पाएँगे इसकी कल्पना कैसे की जा सकती है !क्योंकि पूर्वानुमान विषय ही समय विज्ञान का है इसलिए उसमें अन्य प्रकार से लगाए गए तीर तुक्कों की कोई विश्वसनीयता नहीं होती है!
मनुष्य शरीरों से संबंधित पूर्वानुमानों को लगाने में असफल लोगोंके प्रकृति का विस्तार तो अत्यंत विशाल है इसलिए उसके प्रत्येक आयाम में हो रहे बदलाओं पर हमेंशा सूक्ष्म दृष्टि बनाए रखना तो असंभव है ही उसमें भी इस प्रकार की अपेक्षा आधुनिक विज्ञान के ऐसे दम्भियों से कटी नहीं की जा सकती जो स्वाभाविक वैज्ञानिक न हों अपितु केवल विज्ञान की कक्षाओं में बैठकर कुछ पढ़े और पास हो गए हैं इसलिए वैज्ञानिक हैं क्योंकि वास्तविक वैज्ञानिक,कवि और प्रेमी तो अपने लक्ष्य के प्रति इतना अधिक समर्पित होते हैं कि उन्हें अपने शरीर की भी सुध नहीं रह जाती शौक शान श्रृंगार सैलरी आदि के लिए कोई वैज्ञानिक जीना भी चाहे तो उसकी आत्मा गँवारा नहीं करती क्योंकि वो देश और समाज पर इतना बड़ा उपकार कर रहा होता है कि उसके अनुसंधान की कीमत कोई भी सरकार या समाज धन से नहीं चुका सकती क्योंकि इसके लिए उसे अपनी सभी इच्छाएँ छोड़नी पड़ती हैं इतना पढ़लिख कर भी उसे हर सुख सुविधा स्वाद सामग्रियों से मुख मोड़ना पड़ता है !आजीवन विद्यार्थी व्रत का कठोरता पूर्वक पालन करना होता है !
पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जैसे घर द्वार भूलना पड़ता है सब सुख भोग की भावनाओं का विसर्जन करना पड़ता है!अपनी सारी इच्छाओं को मारना पड़ता है कहाँ तक कहें कुछ बनने के लिए एक विद्यार्थी को भावनात्मक रूप से एक बार मरना पड़ता है! यदि कुछ बन कर निकल पाया तो यह उसका नूतन अर्थात नया जन्म होता है, यदि नहीं बन पाया तो वह इतना टूट चुका होता है कि उसे अपना मन मारकर आजीवन जीवन ढोना पड़ता है !ऐसे बलिदानी विद्यार्थियों को खाने का स्वाद, स्वजनों से संवाद एवं हास्य विनोद की भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए पूर्ण संयमित जीवन जीना पड़ता है! जब नींद बलपूर्वक अपनी चपेट में ले ले तो रात्रि और जब विद्यार्थी बलपूर्वक अपनी नींद को धक्का देकर भगा दे वहीँ सबेरा हो जाता है! सच्चे विद्यार्थी के जीवन में इस सूर्य के उदय अस्त का कोई महत्त्व नहीं होता उनका अपना सूरज अपना मन होता है रात-रात भर जगने का हर क्षण दिन के समान होता है इस व्रती जीवन की तुलना केवल एक सच्चे साधक से की जा सकती है!सच्चे वैज्ञानिकों का जीवन और अपने शोध के प्रति समर्पण इसी प्रकार का होता है वो गृहस्थी में रहते हुए भी मानसिक रूप से विरक्त होते हैं !
जब मैं बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में पढ़ता था तो गंगा जी के किनारे अस्सी घाट पर मिले एक साधक ने विज्ञानसाधना के विषय में समझाते हुए हमसे कहा था कि जैसे किसी व्यक्ति के हाथ पैर बाँधकर पानी में डाल दिया जाए उस पानी में डूबे हुए व्यक्ति के मनमें जितनी छटपटाहट बाहर निकलने के लिए होती है ठीक इसीप्रकार की छटपटाहट विज्ञान के विषय में अनुसंधान के वाले साधकों के मन में होनी चाहिए!
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