Tuesday, 21 November 2017

आकृतियों शब्दों समय

समय और शब्दों का संबंधों के बनने बिगड़ने में बहुत बड़ा महत्त्व !
    'शब्दविज्ञान' भारत की प्राचीन परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा है इस आधार पर किसी प्रकरण पर विचार विमर्श करते समय संबंधित लोगों के मुख से निकले पहले शब्द का पहला अक्षर बहुत महत्वपूर्ण होता है उस अक्षर के आधार पर उस प्रकरण में उस व्यक्ति के द्वारा भविष्य में किए जाने वाले योगदान का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
     इसी विधा के आधार पर किसी व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर का अनुसंधान करके उसी के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यह व्यक्ति किस देश शहर गाँव आदि में कितना संतुष्ट रह सकता है एवं किस संगठन राजनैतिकपार्टियाँ  संस्थाएँ  परिवार आदि के विकास में कितना योगदान दे सकता है !साथ ही किस व्यक्ति के साथ इसका कैसा व्यवहार रहेगा एवं कौन व्यक्ति इसके साथ कैसा व्यवहार करेगा ?
 इसी नाम के आपसी सामंजस्य न बैठ पाने के कारण बहुत लोगों ने अपनों के अपनेपन को खो दिया है इससे वैवाहिक जीवन नष्ट हो रहे हैं परिवार बिखरते जा रहे हैं समाज टूटता जा रहा है !जब नाम विज्ञान के विचार की परंपरा थी तब कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे सभी दूसरे के साथ शांति पूर्ण ढंग से रह लिया करते थे !
     कई राजनैतिकपार्टियाँ संगठन  संस्थाएँ आदि इसी नामविज्ञान का दंश आज भी झेल रहे हैं जिनमें या तो विभाजन हो चुके हैं या विभाजन के लिए तैयार बैठे हैं !ऐसे तथ्य तर्कों प्रमाणों अनुभवों उदाहरणों के साथ यदि कभी किसी उचित मंच पर रखना प्रारम्भ किया जाए तो आम समाज के शिक्षित अशिक्षित आदि सभी वर्ग के लोग बहुत बड़ी संख्या में शब्दविज्ञान के विशाल प्रभाव को स्वीकार करने पर विवश होंगे !
       प्राचीनकाल में संभवतः इसीलिए नामकरण संस्कार की परंपरा थी जिसके आधार पर 'जन्मनाम' तो निश्चित हो जाता था किंतु व्यवहार के लिए पुकारने का नाम अलग से ऐसा रख लिया जाता था जिससे घर के सम्पूर्ण सदस्यों के साथ मधुर वर्ताव बना रहे !इसीलिए विवाह के बाद कन्या का नाम बदलने की परंपरा कुछ समाजों समुदायों में आज भी है !
     जिस ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का नाम उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर रखा गया वो जीवंत हो उठे बाकी  जिनका जैसा सामंजस्य उनको वैसी सफलता !रामचरित मानस में इस विधा का अधिक से अधिक पालन किया गया है वहाँ  पात्रों के नाम बदल पाना संभव न था इसलिए गोस्वामी जी ने घटनाओं और पात्रों के संवादों में आवश्यकतानुसार पात्रों के पर्यायवाची शब्दों का चयन किया है !
      ऐसी परिस्थिति में नामविज्ञान या शब्दविज्ञान के महत्त्व को समझते हुए सरकारी स्तर पर ऐसे अनुसंधान कार्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !

                       समय और आकृतियों का स्वभाव पर प्रभाव !

     समय बदलने से स्वभाव बदल जाता है और स्वभाव के अनुशार आकृतियाँ बदलती रहती हैं !जैसे कुछ स्वभाव स्थिर होते हैं वैसे ही कुछ आकृतियाँ भी स्थिर होती हैं !कुछ स्वभाव परिवर्तित होता रहता है उतनी ही आकृतियाँ भी बदलती रहती हैं !
    'आकृतिविज्ञान' भारतीय संस्कृति का हमेंशा से अभिन्न हिस्सा रहा है प्रकृति से लेकर पुरुष तक सबकी आकृति परिवर्तनों पर अनुसंधान किया जाता रहा है !सूर्य चंद्रमा की आकृति !इंद्र धनुष की आकृति ,बादलों की आकृति, आकाश में चमकने वाली बिजली की आकृति ऐसी ही समय समय पर आकाश में प्रकट होने वाली विभिन्न आकृतियाँ !इसी प्रकार से पृथ्वी और प्रकृति के विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ने वाली अनेकों प्रकार की आकृतियाँ !भवनों की आकृतियाँ ,पशुओं पक्षियों की आकृतियाँ या स्त्री पुरुषों की आकृतियाँ कुछ स्थाई होती हैं कुछ अस्थाई होती हैं जो अस्थाई या स्वनिर्मित होती हैं उनका प्रभाव भी अस्थाई ही होता है किंतु जो स्थाई अर्थात प्रकृति निर्मित होते हैं उनके स्थाई स्वभाव होते हैं !स्वभाव और आकार अर्थात आकृति का हमेंशा से अन्योन्याश्रित संबंध रहा है !जो व्यक्ति जैसा होता है वैसा उसका स्वभाव होता है इसी प्रकार से जो व्यक्ति जैसा दिखता है वैसा स्वभाव बनाने के लिए वो प्रयासरत होता है !इसीलिए तो किसी के शरीर का श्रृंगार देखकर किसी व्यक्ति के मन की बासना का पता लग जाता है !कम कपड़े पहनने वाले या अश्लील वेषभूषा धारण करने वाले स्त्री पुरुष औरों की अपेक्षा यौन दुर्घटनाओं के शिकार होते अधिक देखे जाते हैं !
      आकृतिविज्ञान के आधार पर किसी स्त्री या पुरुष के संभावित स्वभावजन्य विकारों का अनुसंधान करके उनके द्वारा भविष्य में घटित होने वाले अच्छे बुरे कार्यों का पूर्वानुमान बहुत पहले लगाया जा सकता है ! इसके द्वारा अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की पहचान में मदद मिल सकती हैं एवं अत्यधिक कामी पुरुषों स्त्रियों को अलग से पहचाना जा सकता है जिसके आधार पर उनसे वर्ताव करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं !राजनैतिकपार्टियों संगठनों  संस्थाओं आदि में कार्यकर्ताओं की शरीराकृतियों के अनुशार क्षमता परख कर जिम्मेदारी दी जाए तो वे उसका उत्साह पूर्वक निर्वाह कर सकेंगे !अन्यथा नहीं !
    इसी प्रकार से  ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का चयन करते समय यदि उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर पात्रों की आकृति का चयन करके यदि उचित भूमिका सौंपी जाए तो उस भूमिका में जीवंतता आ जाती है अन्यथा नहीं !


समय और शब्दों का संबंधों के बनने बिगड़ने में बहुत बड़ा महत्त्व !
    'शब्दविज्ञान' भारत की प्राचीन परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा है इस आधार पर किसी प्रकरण पर विचार विमर्श करते समय संबंधित लोगों के मुख से निकले पहले शब्द का पहला अक्षर बहुत महत्वपूर्ण होता है उस अक्षर के आधार पर उस प्रकरण में उस व्यक्ति के द्वारा भविष्य में किए जाने वाले योगदान का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
     इसी विधा के आधार पर किसी व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर का अनुसंधान करके उसी के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यह व्यक्ति किस देश शहर गाँव आदि में कितना संतुष्ट रह सकता है एवं किस संगठन राजनैतिकपार्टियाँ  संस्थाएँ  परिवार आदि के विकास में कितना योगदान दे सकता है !साथ ही किस व्यक्ति के साथ इसका कैसा व्यवहार रहेगा एवं कौन व्यक्ति इसके साथ कैसा व्यवहार करेगा ?
 इसी नाम के आपसी सामंजस्य न बैठ पाने के कारण बहुत लोगों ने अपनों के अपनेपन को खो दिया है इससे वैवाहिक जीवन नष्ट हो रहे हैं परिवार बिखरते जा रहे हैं समाज टूटता जा रहा है !जब नाम विज्ञान के विचार की परंपरा थी तब कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे सभी दूसरे के साथ शांति पूर्ण ढंग से रह लिया करते थे !
     कई राजनैतिकपार्टियाँ संगठन  संस्थाएँ आदि इसी नामविज्ञान का दंश आज भी झेल रहे हैं जिनमें या तो विभाजन हो चुके हैं या विभाजन के लिए तैयार बैठे हैं !ऐसे तथ्य तर्कों प्रमाणों अनुभवों उदाहरणों के साथ यदि कभी किसी उचित मंच पर रखना प्रारम्भ किया जाए तो आम समाज के शिक्षित अशिक्षित आदि सभी वर्ग के लोग बहुत बड़ी संख्या में शब्दविज्ञान के विशाल प्रभाव को स्वीकार करने पर विवश होंगे !
       प्राचीनकाल में संभवतः इसीलिए नामकरण संस्कार की परंपरा थी जिसके आधार पर 'जन्मनाम' तो निश्चित हो जाता था किंतु व्यवहार के लिए पुकारने का नाम अलग से ऐसा रख लिया जाता था जिससे घर के सम्पूर्ण सदस्यों के साथ मधुर वर्ताव बना रहे !इसीलिए विवाह के बाद कन्या का नाम बदलने की परंपरा कुछ समाजों समुदायों में आज भी है !
     जिस ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का नाम उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर रखा गया वो जीवंत हो उठे बाकी  जिनका जैसा सामंजस्य उनको वैसी सफलता !रामचरित मानस में इस विधा का अधिक से अधिक पालन किया गया है वहाँ  पात्रों के नाम बदल पाना संभव न था इसलिए गोस्वामी जी ने घटनाओं और पात्रों के संवादों में आवश्यकतानुसार पात्रों के पर्यायवाची शब्दों का चयन किया है !
      ऐसी परिस्थिति में नामविज्ञान या शब्दविज्ञान के महत्त्व को समझते हुए सरकारी स्तर पर ऐसे अनुसंधान कार्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !

                       समय और आकृतियों का स्वभाव पर प्रभाव !

     समय बदलने से स्वभाव बदल जाता है और स्वभाव के अनुशार आकृतियाँ बदलती रहती हैं !जैसे कुछ स्वभाव स्थिर होते हैं वैसे ही कुछ आकृतियाँ भी स्थिर होती हैं !कुछ स्वभाव परिवर्तित होता रहता है उतनी ही आकृतियाँ भी बदलती रहती हैं !
    'आकृतिविज्ञान' भारतीय संस्कृति का हमेंशा से अभिन्न हिस्सा रहा है प्रकृति से लेकर पुरुष तक सबकी आकृति परिवर्तनों पर अनुसंधान किया जाता रहा है !सूर्य चंद्रमा की आकृति !इंद्र धनुष की आकृति ,बादलों की आकृति, आकाश में चमकने वाली बिजली की आकृति ऐसी ही समय समय पर आकाश में प्रकट होने वाली विभिन्न आकृतियाँ !इसी प्रकार से पृथ्वी और प्रकृति के विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ने वाली अनेकों प्रकार की आकृतियाँ !भवनों की आकृतियाँ ,पशुओं पक्षियों की आकृतियाँ या स्त्री पुरुषों की आकृतियाँ कुछ स्थाई होती हैं कुछ अस्थाई होती हैं जो अस्थाई या स्वनिर्मित होती हैं उनका प्रभाव भी अस्थाई ही होता है किंतु जो स्थाई अर्थात प्रकृति निर्मित होते हैं उनके स्थाई स्वभाव होते हैं !स्वभाव और आकार अर्थात आकृति का हमेंशा से अन्योन्याश्रित संबंध रहा है !जो व्यक्ति जैसा होता है वैसा उसका स्वभाव होता है इसी प्रकार से जो व्यक्ति जैसा दिखता है वैसा स्वभाव बनाने के लिए वो प्रयासरत होता है !इसीलिए तो किसी के शरीर का श्रृंगार देखकर किसी व्यक्ति के मन की बासना का पता लग जाता है !कम कपड़े पहनने वाले या अश्लील वेषभूषा धारण करने वाले स्त्री पुरुष औरों की अपेक्षा यौन दुर्घटनाओं के शिकार होते अधिक देखे जाते हैं !
      आकृतिविज्ञान के आधार पर किसी स्त्री या पुरुष के संभावित स्वभावजन्य विकारों का अनुसंधान करके उनके द्वारा भविष्य में घटित होने वाले अच्छे बुरे कार्यों का पूर्वानुमान बहुत पहले लगाया जा सकता है ! इसके द्वारा अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की पहचान में मदद मिल सकती हैं एवं अत्यधिक कामी पुरुषों स्त्रियों को अलग से पहचाना जा सकता है जिसके आधार पर उनसे वर्ताव करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं !राजनैतिकपार्टियों संगठनों  संस्थाओं आदि में कार्यकर्ताओं की शरीराकृतियों के अनुशार क्षमता परख कर जिम्मेदारी दी जाए तो वे उसका उत्साह पूर्वक निर्वाह कर सकेंगे !अन्यथा नहीं !

    इसी प्रकार से  ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का चयन करते समय यदि उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर पात्रों की आकृति का चयन करके यदि उचित भूमिका सौंपी जाए तो उस भूमिका में जीवंतता आ जाती है अन्यथा नहीं !

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