Friday, 22 December 2017

सेक्सालु बाबाओं और सेक्सालु कथाबाचकों के पास जाने वाले भी तो वैसे ही होते हैं !

     धर्म के नाम पर सेक्स का लुफ्त  उठाने के शौकीन समाज को ईश्वर सद्बुद्धि दे !
    ऐसे समाज को ये बात क्यों नहीं समझ में आनी चाहिए कि जिसने भगवान का भजन करने के लिए अपने माता पिता भाई बहनों पत्नी बच्चों आदि को छोड़ा है वो चेली चेले बनाता क्यों  घूमेगा !धंधा व्यापार क्यों फैलाएगा !जो घर द्वार अपनी इच्छा से छोड़ के आया वो आश्रमों के झमेले में पड़ेगा ही क्यों !
    जो बाबा धन दौलत के  पीछे भागेगा भोगपीठ बनाएगा धंधा व्यापार फैलाएगा हाईटेक आश्रम बनाएगा सुख सुविधा के साधन जुटाएगा सुंदर सुंदर चेला चेली बनाएगा तो उन्हें भोगेगा क्यों नहीं !जिसे भोगना न होता वो भोगियों या सद्गृहस्थों  जैसे साधन इकट्ठे ही क्यों करता !मांस न खाने वाले लोग मांस मछली अंडे आदि इकट्ठे ही क्यों करेंगे और पकाएँगे ही क्यों ?जो पका रहे हैं वे खाएँगे क्यों नहीं ?हाँ ,अभी नहीं तो बाद में खाएँगे सबके सामने नहीं तो अकेले में खाएँगे अन्यथा जो चीज खानी ही न होती वो पकाते ही क्यों ? 
    इसीलिए तो चरित्रवान संतों के पास न इतनी बड़ी भीड़ें कहाँ  होती हैं और न इतना धन होता है और न इतने इतने बड़े आश्रम होते हैं न उनके कोई धंधा व्यापार होते हैं और न  किसी सेठ साहूकार नेता खूँटा के पीछे पीछे दुम हिलाते घूमते ही हैं !!
    सेक्सालु कथावाचक सेक्स के लोभ में ही तो कीर्तन करते समय कहते सबसे कहते हैं हाथ उठाकर बोलो क्योंकि वे जिस लालच में कथा वाचक बने उन्हें वो सबकुछ देखने को मिल जाता है जागरण आदि में भी यही होता है !जहाँ हाथ नहीं उठवाए जाते हैं वहाँ अंग प्रदर्शन करने के शौक़ीन लोग जाते ही नहीं है इसी लिए चरित्रवान साधु संतों के पास भीड़ नहीं होती क्योंकि वे सेक्स सुविधाएँ प्रोवाइड नहीं कराते !
      ऐसे ब्याभिचारी बाबाओं कथा वाचकों का धर्म कर्म से कोई लेना देना  नहीं होता है जो जैसा है उसे वैसे ही बाबा मिल जाते हैं वैसे ही कथा  वाले अपनी अपनी पसंद !

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