तनाव - सहज चिंतन
मनोरोग या तनाव के विषय में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हर किसी का स्वभाव सोच सुख दुःख रोगनिरोग हानि लाभ आदि उसके अपने समय के अनुशार सारे जीवन मिलता छूटता या बनता बिगड़ता रहता है !ऐसी परिस्थिति में किसी के जीवन के किस वर्ष में क्या मिलेगा या क्या छूटेगा क्या बनेगा और क्या बिगड़ेगा आदि परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाकर हम आगे से आगे अपने हित साधन के लिए प्रयास करते चले जाएँगे !
मनोरोग या तनाव के विषय में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हर किसी का स्वभाव सोच सुख दुःख रोगनिरोग हानि लाभ आदि उसके अपने समय के अनुशार सारे जीवन मिलता छूटता या बनता बिगड़ता रहता है !ऐसी परिस्थिति में किसी के जीवन के किस वर्ष में क्या मिलेगा या क्या छूटेगा क्या बनेगा और क्या बिगड़ेगा आदि परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाकर हम आगे से आगे अपने हित साधन के लिए प्रयास करते चले जाएँगे !
जब जिस व्यक्ति या वस्तु के मिलने या बिछुड़ने का समय प्रारंभ होना होगा उसका पूर्वानुमान लगाकर जिससे हम मिलकर चलना चाहते हैं या जिसे हम खोना या नाराज नहीं करना चाहते हैं !उतने समय के लिए ऐसी वस्तुओं की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देंगे एवं ऐसे संबंधों को बचाने के लिए सहनशीलता से सहेंगे अर्थात सब कुछ सहकर एवं सारे हानि लाभ उठाकर भी संबंधों को बचाने का प्रयास पहले से ही करने लगेंगे !इस प्रक्रिया से संबंध बचा लिए जाते हैं !कई बार यदि सामने वाले का समय भी यदि हमसे अलग होने का चल रहा हो तो उसे भी इसी प्रक्रिया का पालन होगा और उसे भी सहनशीलता का परिचय देना होगा अन्यथा केवल एक तरफ से किए जाने वाले प्रयास कितने भी अधिक क्यों न कर लिए जाएँ फिर भी वे संबंध बचाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं होते हैं !इसलिए ऐसे संबंधों को बचाने के लिए समय प्रारंभ होने से पहले ही दोनों तरफ से प्रयास शुरू कर देने चाहिए !क्योंकि समय प्रारम्भ हो जाने के बाद लोगों का स्वभाव अनुशार ही बदलते चला जाता है समय प्रभाव से बदले हुए स्वभाव के कारण सामने वाले की बात व्यवहार विचार एवं कार्यों के प्रति अरुचि अनादर एवं घृणा की भावना पनपने लगती है मन ऐसे संबंधों को इतना बोझ समझने लगता है कि छोटी छोटी गलतियाँ पकड़ कर भी ऐसे संबंधों को तोड़ने का बहाना खोजा करता है !
ऐसी परिस्थितियों में समय के संचार को न समझ पाने वाले लोग समय की ऐसी करवटों से तंग आकर संबंधित लोगों से ऊभकर उनसे संबंध ही समाप्त कर लेते हैं !कई बार माता पिता ,भाई बहन ,पति पत्नी ,पिता पुत्र आदि निजी एवं आवश्यक संबंध भी छूटते देखे जाते हैं !
समय के ऐसे ही प्रभाव से ऐसी ही घृणा की भावना कुछ देशों प्रदेशों या शहरों घरों आदि से हो जाती है जहाँ हम रहना जाना या काम नहीं करना चाहते इसीलिए लोग देशों प्रदेशों ,शहरों घरों आदि को छोड़ते देखे जाते हैं !
इसी प्रकार कुछ वस्तुओं से सम्बंधित व्यापारों से घृणा होने लगती है इसीलिए ऐसे व्यापारों से अरुचि होने लगती है लोग नौकरी या काम धंधा छोड़कर घर बैठ जाते हैं और दूसरे कामों की उन्हें जानकारी अनुभव या अभ्यास नहीं होता और चले आ रहे कामों से उन्हें घृणा होने लगती है !
ऐसी परिस्थितियों में ही कुछ लोग कुछ संगठन राजनैतिक दलों नेताओं उनके बिचारों आदि से घृणा करने लगते हैं और अपने ही मन में उनसे दूरी बनाने लगते हैं उनकी निंदा चुगली या बुराई करने लगते हैं !जैसे ही तनाव कर्क समय व्यतीत हो जाता है वैसे ही सबकुछ पहले के जैसा ही हो जाता है !
समय का दूसरा पक्ष ये भी है कि हम से जब जिस व्यक्ति या वस्तु को छोड़ने का समय आता है और हम उसे छोड़न भी चाहते हैं तो ऐसे समय का पूर्वानुमान लगाकर उतने समय में उन वस्तुओं व्यक्तियों से धीरे धीरे किनारा कर लिया करते हैं और वे छूट जाया करते हैं !किन्तु कई बार ऐसा होता है कि जिसे हम तो छोड़ना चाहते हैं किंतु उसका समय हमें छोड़ने का नहीं चल रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में हम तो उसे छोड़ते जाते हैं किंतु वो चिपक रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में यदि हमें लगता है कि उसका छूटना हमारे लिए हितकर है तो उसे छोड़ने के लिए हमें सम्पूर्ण प्रयास कर लेना चाहिए !धीरे धीरे वो छूट ही जाता है !
समय का असर स्वभाव पर भी पड़ता है इससे समय समय पर हमारी सोच बदलती रहती है जिससे हम कभी किसी व्यक्ति वस्तु स्थान भाव विचार या खाने पीने के सामान आदि को अच्छा समझने लगते हैं तो कभी उसी व्यक्ति वस्तु स्थान भाव विचार आदि को हम पसंद नहीं करने लगते हैं कई बार तो वही सब कुछ हमें बहुत बुरा लगने लगता है !
सोच पर भी समय का असर इतना अधिक होता है कि अक्सर जिस परिस्थिति में हम प्रसन्न रहा करते हैं अच्छे ढंग से हमारा समय व्यतीत हो रहा होता है और प्रायः हम अपने आस पास की परिस्थितियों से संतुष्ट रह रहे होते हैं !उसी परिस्थिति में बिना किसी बदलाव के और बिना किसी बाहरी दबाव के कई बार हम किसी विषय को बहुत अधिक सोचने लगते हैं और उस विषय को हम अपने लाभ हानि सुख दुःख सम्मान अपमान आदि के भाव से जोड़कर निराश और भयभीत होने लगते हैं !कई बार ऐसी अवस्था थोड़े समय की होती है तो कई बार ये समय काफी लंबा होता है !जब समय थोड़ा होता है तब तो बहुत आसानी से व्यतीत हो जाता है और जब समय अधिक होता है तब यही मानसिक तनाव निद्रा बाधित करता है उससे पेट ख़राब होता है उससे आगे पेट में गैस बनने लगती है गैस ऊपर चढ़ कर हृदय प्रदेश में पहुँचती है तब तो घबड़ाहट होने लगती है जब यही और ऊपर अर्थात मस्तिष्क प्रदेश में पहुँचती है तब चक्कर आता है सिर में दर्द होता है आँखों में जलन होने लगती है जब यही वायु शरीर के संधिस्थानों में पहुँचती है तब तो शरीर भारी लगने लगता है अपने हाथ पैर भी पराए जैसे बोझिल लगने लगते हैं इस प्रकार से हमारी रुग्ण सोच हमें धीरे धीरे मानसिक और शारीरिक रूप से रोगी बनाती चली जाती है !कई बार बुरी परिस्थितियों में हमारी अच्छी सोच हमें प्रसन्नता प्रदान करती है उससे हमारा मनोबल और शारीरिक बल अचानक बढ़ जाता है ! ऐसी सभी प्रकार की सोच भी हमारे अपने समय से ही प्रभावित होती है !
हमारे स्वास्थ्य पर भी हमारे समय का असर होता है जीवन में जब जैसा समय होता है तब तैसा स्वास्थ्य रहता है जीवन में कई बार तो समय इतना अधिक प्रतिकूल अर्थात बुरा होता है कि समय के दुष्प्रभाव से रोग न केवल पनपने लगते हैं अपितु इतने अधिक बढ़ जाते हैं कि उनमें उतने समय के लिए समय का वेग इतना अधिक होता है कि चिकित्सक चिकित्सा औषधियाँ आदि सब कुछ निष्फल सिद्ध होते चले जाते हैं समय से प्रोत्साहित रोग का वेग इतना अधिक प्रबल होता है !
ऐसी परिस्थितियों में समय के संचार को न समझ पाने वाले लोग समय की ऐसी करवटों से तंग आकर संबंधित लोगों से ऊभकर उनसे संबंध ही समाप्त कर लेते हैं !कई बार माता पिता ,भाई बहन ,पति पत्नी ,पिता पुत्र आदि निजी एवं आवश्यक संबंध भी छूटते देखे जाते हैं !
समय के ऐसे ही प्रभाव से ऐसी ही घृणा की भावना कुछ देशों प्रदेशों या शहरों घरों आदि से हो जाती है जहाँ हम रहना जाना या काम नहीं करना चाहते इसीलिए लोग देशों प्रदेशों ,शहरों घरों आदि को छोड़ते देखे जाते हैं !
इसी प्रकार कुछ वस्तुओं से सम्बंधित व्यापारों से घृणा होने लगती है इसीलिए ऐसे व्यापारों से अरुचि होने लगती है लोग नौकरी या काम धंधा छोड़कर घर बैठ जाते हैं और दूसरे कामों की उन्हें जानकारी अनुभव या अभ्यास नहीं होता और चले आ रहे कामों से उन्हें घृणा होने लगती है !
ऐसी परिस्थितियों में ही कुछ लोग कुछ संगठन राजनैतिक दलों नेताओं उनके बिचारों आदि से घृणा करने लगते हैं और अपने ही मन में उनसे दूरी बनाने लगते हैं उनकी निंदा चुगली या बुराई करने लगते हैं !जैसे ही तनाव कर्क समय व्यतीत हो जाता है वैसे ही सबकुछ पहले के जैसा ही हो जाता है !
समय का दूसरा पक्ष ये भी है कि हम से जब जिस व्यक्ति या वस्तु को छोड़ने का समय आता है और हम उसे छोड़न भी चाहते हैं तो ऐसे समय का पूर्वानुमान लगाकर उतने समय में उन वस्तुओं व्यक्तियों से धीरे धीरे किनारा कर लिया करते हैं और वे छूट जाया करते हैं !किन्तु कई बार ऐसा होता है कि जिसे हम तो छोड़ना चाहते हैं किंतु उसका समय हमें छोड़ने का नहीं चल रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में हम तो उसे छोड़ते जाते हैं किंतु वो चिपक रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में यदि हमें लगता है कि उसका छूटना हमारे लिए हितकर है तो उसे छोड़ने के लिए हमें सम्पूर्ण प्रयास कर लेना चाहिए !धीरे धीरे वो छूट ही जाता है !
समय का असर स्वभाव पर भी पड़ता है इससे समय समय पर हमारी सोच बदलती रहती है जिससे हम कभी किसी व्यक्ति वस्तु स्थान भाव विचार या खाने पीने के सामान आदि को अच्छा समझने लगते हैं तो कभी उसी व्यक्ति वस्तु स्थान भाव विचार आदि को हम पसंद नहीं करने लगते हैं कई बार तो वही सब कुछ हमें बहुत बुरा लगने लगता है !
सोच पर भी समय का असर इतना अधिक होता है कि अक्सर जिस परिस्थिति में हम प्रसन्न रहा करते हैं अच्छे ढंग से हमारा समय व्यतीत हो रहा होता है और प्रायः हम अपने आस पास की परिस्थितियों से संतुष्ट रह रहे होते हैं !उसी परिस्थिति में बिना किसी बदलाव के और बिना किसी बाहरी दबाव के कई बार हम किसी विषय को बहुत अधिक सोचने लगते हैं और उस विषय को हम अपने लाभ हानि सुख दुःख सम्मान अपमान आदि के भाव से जोड़कर निराश और भयभीत होने लगते हैं !कई बार ऐसी अवस्था थोड़े समय की होती है तो कई बार ये समय काफी लंबा होता है !जब समय थोड़ा होता है तब तो बहुत आसानी से व्यतीत हो जाता है और जब समय अधिक होता है तब यही मानसिक तनाव निद्रा बाधित करता है उससे पेट ख़राब होता है उससे आगे पेट में गैस बनने लगती है गैस ऊपर चढ़ कर हृदय प्रदेश में पहुँचती है तब तो घबड़ाहट होने लगती है जब यही और ऊपर अर्थात मस्तिष्क प्रदेश में पहुँचती है तब चक्कर आता है सिर में दर्द होता है आँखों में जलन होने लगती है जब यही वायु शरीर के संधिस्थानों में पहुँचती है तब तो शरीर भारी लगने लगता है अपने हाथ पैर भी पराए जैसे बोझिल लगने लगते हैं इस प्रकार से हमारी रुग्ण सोच हमें धीरे धीरे मानसिक और शारीरिक रूप से रोगी बनाती चली जाती है !कई बार बुरी परिस्थितियों में हमारी अच्छी सोच हमें प्रसन्नता प्रदान करती है उससे हमारा मनोबल और शारीरिक बल अचानक बढ़ जाता है ! ऐसी सभी प्रकार की सोच भी हमारे अपने समय से ही प्रभावित होती है !
हमारे स्वास्थ्य पर भी हमारे समय का असर होता है जीवन में जब जैसा समय होता है तब तैसा स्वास्थ्य रहता है जीवन में कई बार तो समय इतना अधिक प्रतिकूल अर्थात बुरा होता है कि समय के दुष्प्रभाव से रोग न केवल पनपने लगते हैं अपितु इतने अधिक बढ़ जाते हैं कि उनमें उतने समय के लिए समय का वेग इतना अधिक होता है कि चिकित्सक चिकित्सा औषधियाँ आदि सब कुछ निष्फल सिद्ध होते चले जाते हैं समय से प्रोत्साहित रोग का वेग इतना अधिक प्रबल होता है !
ऐसे सभी प्रकार के स्वभाव सोच सुख दुःख रोगनिरोग हानि लाभ आदि सब कुछ अपने समय के अनुशार सारे जीवन मिलता छूटता या बनता बिगड़ता रहता है ये समय हर किसी के जन्म के समय पर अआधारित होता है कि उसे जीवन में कब अर्थात किस वर्ष या किस महीने किस प्रकार के समय के समय का सामना करना पड़ेगा और उसके कारण किस समय हमारा जीवन किस प्रकार की शारीरिक मानसिक आर्थिक आदि परिस्थितियों से जूझ रहा होगा !ऐसी सभी परिस्थितियों का पूर्वानुमान जन्म के समय पर रिसर्च पूर्वक उसी आधार पर सम्पूर्ण जीवन का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
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