Friday, 18 September 2015

डेंगू RTI

22 जून से 11 सितंबर तक पेट की खराबी से होने वाला त्रिदोषज बुखार ही तो डेंगू नहीं है - ज्योतिष एवं आयुर्वेद

        एक अनुमान के आधार पर अभी भी ये बीमारी गावों गरीबों की अपेक्षा मध्यम या संपन्न वर्गीय परिवारों को अपनी चपेट में अधिक लेती है जबकि मच्छरों से बचने के लिए मध्यम या संपन्न वर्गीय परिवारों के पास अधिक बंदोबस्त होते हैं जबकि  दूरदराज के गांवों में जहाँ आस पास हर प्रकार की गन्दगी रहती है  वहाँ मच्छरों समेत हर प्रकार के बिषैले जीव जंतु होते हैं विजली न होने से पंखे आदि की व्यवस्था भी नहीं हो  पाती है ऐसी जगहों पर डेंगू जैसे बुखारों की संभावना बहुत अधिक होनी चाहिए किंतु वहाँ कम होती है यहाँ तक कि तिहाड़ जेल में इतने कैदी हैं किंतु डेंगू का कोई केस सुनने में नहीं आता है जबकि वहाँ मच्छर अधिक हैं सुख सुविधाओं से संपन्न शहरी एवं कस्बाई जगहों पर डेंगू का प्रभाव अधिक होते देखा जाता है जबकि शहरी गरीबों एवं खुले फुटपाथ पर  सोने वाले लोगों में डेंगू कम देखा जाता है !इसलिए यदि डेंगू का सम्बन्ध मच्छरों से है तब तो ऐसी जगहों पर डेंगू बुखार अधिक फैलना चाहिए !यदि डेंगू को मच्छरों से ही जोड़कर देखा जाए तब तो पहले से ही मच्छरों के भागने के उपाय कर लेने चाहिए ताकि ये स्थिति ही पैदा न हो !ऐसा भी करके देख लिया जाए !
    आयुर्वेद के अनुशार वर्षा ऋतु से प्रारम्भ होकर यह रोग धीरे धीरे रोग बढ़ता जाता है और बढ़ते बढ़ते अगस्त से लेकर  11 सितम्बर तक इसका पूर्ण प्रकोप होता है !इसके बाद ये बीमारी धीरे धीरे स्वतः शांत होने लगती है । ऐसा होते देख सरकारें बीमारी पर कंट्रोल कर लेने का दावा ठोकने लगती हैं मच्छर मारने वाले निगम आदि अपनी पीठ थपपाने लगते हैं किंतु यदि ये बीमारी मच्छरों से होती तो गाँवों ग़रीबों में अधिक होती शहरों में भी रिक्से वाले रेड़ी वाले या अन्य मजदूर वर्ग के लोग जिनके पास कैसे भी मच्छरों से बचने का कोई साधन नहीं होता है किंतु ये इस डेंगू  बीमारी से वे उतना प्रभावित नहीं हो पाते  हैं !
  • डेंगू बुखार का वास्तविक कारण क्या है यदि  'एडीज' मच्छर के काटने से ही होता है डेंगू तो जहाँ मच्छरों का प्रकोप अधिक रहता है वहां डेंगू का प्रकोप अधिक होना चाहिए किंतु ऐसा क्यों नहीं होता है ?
  •   यदि यही निश्चित है कि डेंगू मच्छरों से ही होता है डेंगू , और मच्छरों की दवा के छिड़काव से नियंत्रित हो जाता है तो करोड़ों रूपए विज्ञापन पर खर्च करने वाली सरकारें ये छिड़काव पहले से क्यों नहीं करवाने लगती हैं ?

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