देश में सामाजिक न्याय के लिए IAS , IPS जैसी परीक्षाओं में सवर्णों को बैठने से बिलकुल रोक दिया जाए !
देश के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जैसे सभी बड़े पद सीधे दलितों और महादलितों के लिए आरक्षित किए जाएँ !
महादलितों को सबसे अधिक सीटें मिलनी चाहिए उससे कम सीटें दलितों को दी जाएं !इसके बाद नंबर आवे पिछड़ों का और अल्प संख्यकों का और सवर्णों के लिए तो कुछ सीटें बचें तो दे दी जाएँ नहीं तो जरूरत क्या है !सवर्ण आखिर गुस्सा भी हो जाएँगे तो क्या बिगाड़ लेंगे !
अब बारी सरकार गठन की उसमें भी कुछ ऐसी ही प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए जैसे -महादलितों की जीती हुई एक सीट को दस सीटों के बराबर माना जाए और दलितों की एक सीट को पाँच और पिछड़ों की एक सीट को तीन सीटों के बराबर माना जाए !अल्प संख्यकों को एक सीट को चार के बराबर माना जाए ! रही बात सवर्णों की तो जीती हुई सवर्णों की पाँच सीटों को एक माना जाए !
सवर्ण लोग स्वस्थ हैं बुद्धिमान हैं शिक्षित हैं इसलिए उन्हें तब तक कुछ न करने दिया जाए सारे काम काज उनसे छीन लिए जाएं जब तक देश में खाने पीने के लिए कुछ भी बचे और जो कुछ बचे वो दलितों को मिले इसके बाद बाहरी लोग जैसे चाहें वैसे चलावें देश !दलित हों या सवर्ण हाथ जोड़कर बैठ जाएँ !
आरक्षण ! जिन्हें इलाज की जरूरत है उन्हें आरक्षण देने की बात क्यों ? उनका इलाज ही क्यों न कराया जाए !
जातिगत आरक्षण कितना अप्रासंगिक है !आप भी देखिए !
जो
लोग दशकों से चिल्ला चिल्ला कर कह रहे हैं कि हम देखने में स्वस्थ जरूर लग
रहे हैं किंतु अपनी शिक्षा के बल पर नौकरी नहीं पा सकते
!और यदि पा भी गए तो प्रमोशन नहीं पा सकते !सम्मान नहीं हासिल कर सकते !
सरकारें सुविधाओं के नाम पर जो कुछ भी दे देती हैं बस उसी में गुजर चलता है
नौकरी दे देती हैं तो वो भी कर लेते हैं बाकी कुछ भी अपने बल पर नहीं कर सकते !
बंधुओ !इतनी हीन भावना से ग्रस्त लोगों को केवल आरक्षण देकर क्यों छोड़ दिया जाए इनका इलाज क्यों न कराया जाए !लोकतांत्रिक भारत में देश के प्रत्येक व्यक्ति को आरक्षण माँगने का अधिकार है!आखिर ये कैसे मान लिया जाए कि सवर्ण
जातियों के द्वारा किए गए शोषण के कारण गरीब हो गए हैं कुछ लोग !क्या ये
आरोप सच है !और यदि नहीं तो समाप्त किया जाए सभी का सभी प्रकार का आरक्षण
!नेताओं को भी अब बंद कर देनी चाहिए आरक्षण पर राजनीति !
दलितों के शोषण संबंधी ये दकियानूसी बातें ये किंबदन्तियाँ ये मन गढंत किस्से कहानियों जैसे अंधविश्वासों से ऊपर उठकर आरक्षण
माँगने वाले लोंगों की हो मेडिकली जाँच और पता लगाया जाए उनकी कमजोरी का
फिर सरकारी खर्चे से कराया जाए उनका इलाज !और आरक्षण देने दिलाने की बात
करने वाले नेताओं की सम्पत्तियों की हो जाँच और उनके बताए हुए संपत्ति
स्रोतों का सम्यक परीक्षण किया जाए !
आखिर कुछ जातियों के लोग स्वस्थ
होने के बाद भी ऐसा क्यों सोचते हैं कि वो अपने परिश्रम के बल पर कमा कर
नहीं खा सकते या अपनी तरक्की नहीं कर सकते !आखिर उनमें ऐसी कमजोरी क्या है
?जबकि सवर्णों में भी गरीब हैं वो तो अपने त्याग तपस्या और पारिश्रमिक
बलिदान के आधार पर ही तरक्की कर रहे हैं उन्हें तो कोई आरक्षण नहीं मिला है
यदि सवर्ण ऐसा कर सकते हैं तो बाकी क्यों नहीं कर सकते !दूसरीबात वो कर
नहीं सकते या करना नहीं चाहते !
वैसे भी परिश्रम करना केवल वही चाहते हैं जो स्वाभिमान पूर्वक जीना चाहते
हैं बाकी संघर्ष रहित तरक्की की कामना रखने वाले लोग हमेंशा पराजित होते
रहे हैं किंतु वो अपनी पराजय का दोषी कभी अपने को नहीं मानते दोष हमेंशा
दूसरों पर मढ़ते हैं जैसे कहा जा रहा है कि सवर्णों ने दलितों का शोषण किया
!किन्तु यदि ये सच होता तो दलितों की इतनी बड़ी संख्या थी और सवर्णों की कम
थी फिर सवर्ण यदि शोषण करना भी चाहते तो दलित सह क्यों जाते !इसलिए ये आरोप
ही झूठ है !ये झूठ इसलिए भी है कि अपने देश में शासन करने वाले मुस्लिम
शासक रहे हों या अंग्रेज उन्होंने दलितों का शोषण करने के लिए सवर्णों को
कोई अधिकार नहीं दे रखे थे फिर भी यदि सवर्ण लोग ऐसा करते तो दण्डित किए
जाते सुना जाता है कि उस समय कानून बड़ा शक्त था इसलिए उस समय शोषण की कोई
गुंजाइस ही नहीं थी और आजादी के बाद सरकारें दलितों के लिए ही काम और
सवर्णों को बदनाम करती रही हैं दलितों को ही आगे बढ़ाने के लिए योजनाएँ
बनाती हैं नेता लोग सवर्णों निंदा कर कर के नेता चुनाव जीतते हैं और दलितों
के विकास के लिए ही जीवन जीते हैं फिर भी दलित जहाँ के तहाँ हैं और दलितों
के हितों की लड़ाई लड़ने का ढोंग करने वाले वे नेता जो कभी दो दो कौड़ी के
लिए मारे फिरते थे वही लोग आज दलितों का नाम ले लेकर करोड़ों अरबों पति हो
गए जिन्हें कभी किसी ने कोई काम करते नहीं देखा होगा जो फुलटाइम राजनीति ही
करते हैं फिर भी राजाओं की तरह के उनके ठाटबाट होते हैं ये पैसा उनके पास
आखिर आता कहाँ से है !यही दलितों के शुभ चिंतक नेता लोग दलितों की मदद के
लिए दिए गए बजट को पचा जाते हैं वही लोग संसद और विधान सभाओं में आज
पहलवानी करते अक्सर देखे जा सकते हैं !मजे की बात तो ये है कि सवर्ण जाति
के नेताओं ने ही दलितों के साथ ऐसी गद्दारी की हो ये भी सही नहीं हैं सच तो
ये है कि इसमें वो लोग भी सम्मिलित हैं जो दलित होकर भी दलितों के मसीहा
बनने निकले थे आखिर जब वो राजनीति में आए थे तब उनके पास इतना पैसा था क्या
जितना आज है और यदि नहीं तो किसी ईमानदार सक्षम एजेंसी से जाँच क्यों न
करवा ली जाए कि इनकी अकूत सम्पत्तियों के आगम के स्रोत कौन कौन से हैं और
क्या वे इतनी संपत्ति संग्रह करने के लिए पर्याप्त हैं !ऐसा होते ही नेताओं
का जो चेहरा जनता के सामने आएगा वो उनका वास्तविक चेहरा होगा जिससे पता
चलेगा कि दलितों के विकास का हिस्सा गया कहाँ !
जो लोग आरक्षण के बिना छोटे से घर की रसोई नहीं चला सकते वे मंत्री मुख्यमंत्री आदि बन कर कोई प्रदेश कैसे चला लेंगे !
जिन
लोगों को लगता है कि आरक्षण के बिना वो अपनी तरक्की नहीं कर सकते तो वो
विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि क्यों बनना चाहते हैं जो ये मान चुका
है कि आरक्षण के बिना अपने बल पर हम अपनी घर गृहस्थी नहीं चला सकते कुछ
नहीं कर सकते ऐसी जातियों के लोग विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि बनकर
भी उन पदों की गरिमा कैसे बचा सकेंगे क्योंकि वह तो आरक्षण जैसी वैशाखी की
कोई सुविधा ही नहीं है !इसलिए उन्हें अपनी अयोग्यता स्वीकार करते हुए ऐसे
जिम्मेदारी वाले पदों से दूर रहना चाहिए !
आरक्षण
है या हथियार ?जातियों के नाम पर विकास की योजनाओं से सवर्णों का
बहिष्कार क्यों ?
सवर्णों ने किसका शोषण कब किस प्रकार से किया था आखिर उन
बहुसंख्य लोगों ने शोषण सहा क्यों होगा !इसलिए शोषण का आरोप ही गलत है ! आखिर
सवर्ण मिट्टी खाएँ क्या या चोरी करें ? आखिर उन्हें किस अपराध का दंड दिया
जा रहा है ?
जिन्हें इलाज चाहिए उन्हें दिया जा रहा है आरक्षण !और जिन गरीबों को
सहयोग चाहिए उन्हें सवर्ण बताकर दुत्कारा जा रहा है !आखिर क्यों नहीं दिया
जा सकता है पटेलों को आरक्षण ?
जिन
लोगों को लगता है कि उनमें ऐसी कोई ख़ास कमजोरी है जिससे वो अपने बल पर
अपना विकास नहीं कर सकते ऐसे लोगों को आरक्षण नहीं अपितु इलाज चाहिए !एक
बार ठीक से इलाज हो जाए तो उनकी सारी पीढ़ियाँ सुधर जाएँगी अन्यथा आजादी के
बाद से आजतक दिए गए आरक्षण से उनका क्या भला हुआ जबकी तबसे अब तक बिना
आरक्षण की ही कई गरीब सवर्णों ने अपनी योग्यता के बल पर अपना विकास कर लिया
है !उन्हें किसी के सामने किसी आरक्षण माँगने के लिए हाथ फैलाने ही नहीं
पड़े !
जिसमें जो योग्यता न हो उसे
वो काम दिया जाए और उस काम के लिए अधिकृत एवं योग्य व्यक्ति का उसकी जाति
के कारण बहिष्कार कर दिया जाए!जिस देश में सत्ता लोलुप राजनेताओं की इतनी
बुरी सोच हो ऐसा देश एवं समाज कभी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो सकता और
भ्रष्टाचार नाम के पाप में सभी प्रकार के अपराध कीड़े मकोड़ों की तरह अवगाहन
किया करते हैं !अपराध निर्मात्री नीतियों से निमज्जित कोई समाज सुखी एवं
तनाव रहित कैसे हो सकता है !यह उसके साथ अन्याय एवं देश के साथ गद्दारी है ऐसे तो समाज प्रतिभाविहीन होता जाएगा !
जातितंत्र
और लोकतंत्र में क्या अंतर है ?
किसी जातितांत्रिक देश को लोकतांत्रिक
कहना क्या अंध विश्वास नहीं है ?जिस देश का कानून सवर्णों की न सुनता हो और
न उनके विषय में सोचता हो वो सवर्ण देश के कानून की क्यों सुनें !
जिस देश में लोगों की भूख प्यास,हैरानी परेशानी गरीबी अमीरी सुख दुःख का
अनुमान जातियों के आधार पर लगाया जाता हो वो जातितंत्र और जहाँ बिना किसी
भेद भाव के सभी लोगों को देश के समान नागरिक समझकर सबके साथ समान व्यवहार
किया जाता हो वो लोकतंत्र होता है! समाज को जोड़कर चलने में लोकतंत्र ही
सफल है न कि जातितंत्र !अनेकों प्रकार के अपराध जातितंत्र में होते हैं न
कि लोकतंत्र में क्योंकि लोकतंत्र में सबकी सुनी जाती है और सबके विषय में
सोचा जाता है किन्तु जाति तंत्र में लोग तो गौण हो जाते हैं जातियाँ प्रमुख
हो जाती हैं जैसे दो लोगों को भूख लगी हो और दोनों गरीब हों किन्तु एक
ब्राह्मण आदि हो और दूसरा दलित हो तो दलित के लिए राशन की व्यवस्था सरकार
कर देगी और उस ब्राह्मण आदि को यह जानते हुए भी कि ये भी गरीब है और ये
भी भूखा है उसे भगवान भरोसे छोड़ दिया जाएगा ऐसी परिस्थिति में उस
ब्राह्मणादि का जो पेट भरेगा उसी को अपना मानना उसका धर्म हो जाता है भले
वो अपराधी ही क्यों न हो !सरकार को उससे अपराध न करने की आशा भी नहीं करनी
चाहिए क्योंकि सरकार ने उसके साथ अपराध किया है !
इसी प्रकार से सरकारी नौकरियों
की स्थिति है दो छात्रों की समान शिक्षा है किन्तु दलित छात्र को नौकरी
देने के लिए सरकार दरवाजे खोल देती है जबकि सवर्ण छात्रों की उससे अच्छी
शिक्षा होने पर भी उनका बहिष्कार कर देती है। आखिर उनका दोष क्या है जिस
सरकार की सवर्णों के विषय में कोई सोच ही न हो वो सवर्ण उसके और उसके बनाए
हुए कानूनों के विषय में क्यों ध्यान दें ऐसी सरकार उन सवर्णों से कानून
के अनुशार चलने की अपेक्षा ही क्यों करती है ? वो भी जैसे रह सकेंगे वैसे
रहेंगे ।
आखिर यह
कैसा लोक तंत्र है जहाँ लोगों को अपनी इच्छानुसार मतदान न करने दिया जाए वैसे
भी किसी भी जाति क्षेत्र समुदाय संप्रदाय के नाम पर पार्टी बनाने वालों
का समर्थन देने और माँगने वालों का और सुख सुविधाएँ देने और लेने वालों का
बहिष्कार किया जाना चाहिए !
देश पर सबसे अधिक वर्षों तक शासन करने वाली काँग्रेस यदि आज तक देश में
एक ऐसा अस्पताल नहीं बनवा पाई जिसमें सोनियाँ जी इलाज करवा लेतीं !दूसरी
बात आजादी के साठ वर्षों बाद देश की जनता के भोजन की याद आई!इसके बाद भी
काँग्रेस देश की जनता से वोट माँगने का साहस कर रही है ये बहुत बड़ा आश्चर्य
है !
सभी प्रकार का आरक्षण भ्रष्टाचार का दूसरा स्वरूप और सामाजिक बुराई एवं अन्याय है इसे समाप्त करने का संकल्प करो !आरक्षण
सामाजिक न्याय कभी नहीं हो सकता ,आरक्षण की व्यवस्था केवल उनके लिए होनी
चाहिए जो काम करने लायक न हों अपाहिज हों,अनाथ हों,अनाश्रित हों,असाध्यरोगी
हों,पागल हों अत्यंत परेशान हों ,अत्यंत पीड़ित हों ,अत्यंत
गरीब होने के बाद भी शारीरिक लाचारी के कारण बेचारे कमाने लायक न रह गए
हों! ऐसे लोगों के विषय में जाति,क्षेत्र,समुदाय,संप्रदाय,स्त्री-पुरुष आदि
भेद भावनाओं से ऊपर उठकर उदार भावना एवं अपनेपन से मदद की जानी चाहिए
जिससे उन अपाहिजों को लेते भी अच्छा लगे और देने वाले को भी देने में
प्रसन्नता हो उन्हें भी लगे कि हमारा हक़ छीन कर वास्तव में उन्हें दिया गया
है जिनके प्रति हमारा दायित्व बनता है इसलिए ऐसे लोगों का सहयोग किया जाना
चाहिए ऐसे लोग जो कुछ भी करने लायक हों वे पद ऐसे लोगों के लिए आरक्षित
कर
दिए जाने चाहिए जैसे किसी के पैर कट गए हों किन्तु वह शिक्षित होने के कारण
शिक्षा से जुड़े कार्य कर सकता हो पढ़ा सकता हो तो ऐसे कामों में इनका सौ
प्रतिशत आरक्षण इन्हें दिया जाना चाहिए ताकि ये भी उत्साह एवं
स्वाभिमान
पूर्वक जीवन जी सकें !जो स्वस्थ हैं वो तो कुछ भी कर के कमा खा लेंगे।
इसलिए आरक्षण की व्यवस्था हमेंशा उन लोगों के लिए की जानी चाहिए जो
लोग कुछ करने लायक न रह गए हों अपाहिज हों किन्तु जो करने लायक हों और कुछ करना चाहते
हों सरकार उन्हें शिक्षित करने में सहायता करे उन्हें उनके लायक रोजगार
उपलब्ध करावे,कम ब्याज पर बाधा मुक्त ऋण देने की व्यवस्था करे इनमें सरकार
को चाहिए कि पक्षपात विहीन होकर सभी के साथ समान दृष्टि से न्याय करे
किसी को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि उसके साथ अन्याय हो रहा है क्योंकि प्रजा
प्रजा में भेद करना अन्याय भी है अत्याचार भी है अपराध भी है और सबसे बड़ा
पाप भी !
कोई भी पूरी जाति,पूरा क्षेत्र और सम्पूर्ण सम्प्रदाय कभी अपाहिज, असाध्य
या अक्षम नहीं हो सकता यदि यह सच है तो किसी पूरी जाति,पूरे क्षेत्र और
सम्पूर्ण सम्प्रदाय को सरकार आरक्षण जैसा विशेष दर्जा क्यों दे ?उसके लिए
तो अन्य लोगों की तरह ही सारे देश के सभी स्कूल पढ़ने के लिए खुले हैं और
प्राइवेट या सरकारी नौकरियों के लिए सभी संस्थान समानरूप से अवसर दे रहे
हैं व्यापार के लिए सारा मार्केट खुला हुआ है फिर भी जो लोग पिछड़े हैं
उसमें समाज का दोष क्या है आखिर समाज क्यों ऐसे लोगों का बोझ ढोता फिरे !
लाख टके का सवाल यह है कि स्वस्थ होने पर भी आरक्षण पाने की इच्छा रखने
वाले लोगों से शपथ पूर्वक पूछा जाना चाहिए कि यदि सवर्ण वर्ग के गरीब लोग
परिश्रम पूर्वक काम करके बिना आरक्षण के अपनी तरक्की कर सकते हैं तो आप में
ऐसी कमजोरी
क्या है आप क्यों हिम्मत हार रहे हैं आखिर आपको क्यों लगता है कि अपने
परिश्रम के बल पर हम तरक्की नहीं कर सकते ! आखिर आप में ऐसी कमजोरी क्या
है?और यदि वास्तव में आप अपने को कमजोर मान ही बैठे हैं तो अपने को ठीक करा
लीजिए जाँच कराइए इलाज कराइए इसमें सरकार का सहयोग लीजिए और फिर परिश्रम
पूर्वक काम करके अपनी तरक्की आप स्वयं भी कर सकते हैं इससे आपका उत्साह
बढ़ेगा जिससे आप सवर्णों से केवल बराबरी ही नहीं कर सकते हैं अपितु उन्हें
पछाड़ भी सकते हैं न केवल इतना अपितु परिश्रम पूर्वक काम करके अपनी तरक्की
करने से जिस उत्साह एवं स्वाभिमान का प्राकट्य होगा उससे पीढ़ियों की
पीढ़ियाँ पवित्र हो जाएँगी हर कोई आपको अपना आदर्श मानेगा और आदर करेगा
!किन्तु आरक्षण के द्वारा ये सब चीजें नहीं मिल पाएँगी केवल पेट भरने का
साधन बनता रहेगा वो भी आरक्षण से ! पेट तो पशु भी भर लेते हैं वह भी बिना
किसी आरक्षण के इसलिए केवल पेट भरने के लिए ही सारी कवायद क्यों?सच्चाई के
साथ आत्मबल एवं मनोबल बढ़ाने के लिए कुछ कीजिए-
जो लोग कहते हैं कि पहले
सवर्णों ने हमारा शोषण किया था इसलिए हम पिछड़ गए हैं किन्तु यह कई कारणों
से
सच नहीं है पहला कारण तो यह है कि कब शोषण हुआ था! किसने किया था! कितना
किया था !किस प्रकार से किया था! दूसरा सहने वालों ने सहा क्यों था
उन्होंने विरोध क्यों नहीं किया था ! क्योंकि सहने वालों की संख्या बहुत
अधिक थी इसलिए ये भी नहीं कहा जा सकता है कि भयवश इन लोगों ने अपना शोषण सह
लिया होगा, इसलिए सच्चाई तो यही है कि पहले भी किसी ने किसी का शोषण किया
ही नहीं होगा! और यदि शोषण की बात को सच मान भी लिया जाए तो पिछले लगभग
60 वर्षों से तो आरक्षण ले रहे हैं वो लोग! आखिर क्यों नहीं कर ली
तरक्की?60वर्ष भी थोड़े तो नहीं होते हैं।
इसलिए
यदि अपने पीछे रह जाने के प्रकरण में आत्म मंथन करके यदि अपनी कमजोरी नहीं
खोज पाए और उनका सुधार नहीं किया तो कैसे हो पाएगा विकास ?ऐसे तो सवर्णों
के शोषण का रोना धोना लेकर बैठे रहेंगे 60 क्या 600 वर्षों में भी अपना
उत्थान कर पाना असम्भव होगा ! आरक्षण तो किसी की कृपा से प्राप्त अवसर है
याद रखिए कि किसी की कृपा पूर्वक प्रदान की गई आजीविका कभी आत्मबल या मनोबल
नहीं बढ़ने देगी।
कुल मिलाकर आरक्षण नाम का इतना बड़ा भ्रष्टाचार जब सरकारी नीतियों
में सम्मिलित किया जा सकता है तब भ्रष्टाचार समाप्त करने का ड्रामा भले ही
कोई सरकार करे किन्तु इसे समाप्त कर पाना कठिन ही नहीं असम्भव भी होगा !
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