आयुर्वेद में वर्णन मिलता है कि वर्षा ऋतु में वायु पित्त एवं कफ से युक्त होकर ज्वर उत्पन्न करता है यथा - वर्षासु मरुतो दुष्टः पित्त श्लेष्मान्वितो ज्वरम् ।
यह त्रिदोषज या सन्निपात का बुखार होने के कारण इसमें कभी शर्दी और फिर तुरंत गरमी लगने लगती है हड्डियों जोड़ों एवं शिर में दर्द एवं आँखों में आंसू आने लगते हैं आँखें मैली ,लाल एवं बाहर निकली सी दिखने लगती हैं गले में दर्द ,बड़बड़ाना ,कष्टपूर्वक साँस आना,चक्कर, बेहोशी ,थूक में रक्तपित्त आना ,पाचन शक्ति बिलकुल नष्ट हो जाना आदि लक्षण होते हैं । ये बुखार प्रारम्भ होने के सातवें ,दसवें एवं बारहवें दिन खूब तेज होकर शांत हो जाता है किसी किसी का चौदहवें ,अठारहवें और बाइसवें दिन शांत होता है अन्यथा प्राण घातक होता है !
स्कंध पुराण में भी भगवान श्री कृष्ण ने इस (22 जून से 11 सितंबर तक के) समय को संभवतः इसी कारण से 'यमदंष्ट्र काल' अर्थात यमराज का दाँत कहा है व्रत और उपवास करने के लिए कहा गया है जिससे पाचन शक्ति ठीक बनी रहे और रोग अधिक न बढ़ने पावे !
चूँकि इस बुखार में सबसे पहले भोजन की रूचि घटनी शुरू हो जाती है और धीरे धीरे रोग बढ़ता जाता है और बढ़ते बढ़ते अगस्त और 11 सितम्बर तक इसका पूर्ण प्रकोप होता है !इसके बाद ये बीमारी धीरे धीरे स्वतः शांत होने लगती है । ऐसा होते देख सरकारें बीमारी पर कंट्रोल कर लेने का दावा ठोकने लगती हैं मच्छर मरने वाले निगम अपनी पीठ थपपाने लगते हैं किंतु यदि ये बीमारी मच्छरों से होती तो गाँवों ग़रीबों में अधिक होती शहरों में भी रिक्से वाले रेड़ी वाले या अन्य मजदूर वर्ग के लोग जिनके पास कैसे भी मच्छरों से बचने का कोई साधन नहीं होता है किंतु ये इस बीमारी से उतना प्रभावित नहीं हो पाते हैं जितना अन्य लोग
डेंगू खतरा 22 जून से 11 सितंबर तक रहता है -ज्योतिष एवं आयुर्वेद
मेरे अनुमान के आधार पर अभी भी ये बीमारी गावों गरीबों की अपेक्षा माध्यम या संपन्न वर्गीय परिवारों को अपनी चपेट में अधिक लेती है जबकि मच्छरों से बचने के लिए उनके पास अधिक बंदोबस्त होते हैं जबकि दूरदराज के गांवों में जहाँ आस पास हर प्रकार की गन्दगी रहती है वहाँ मच्छरों समेत हर प्रकार के बिषैले जीव जंतु होते हैं विजली न होने से पंखे आदि की व्यवस्था भी नहीं होती है ऐसी जगहों पर डेंगू जैसे बुखारों की संभावना बहुत अधिक होनी चाहिए किंतु वहाँ कम होती है जबकि सुख सुविधाओं से संपन्न शहरी एवं कस्बाई जगहों पर डेंगू का प्रभाव होते अधिक देखा जाता है यदि डेंगू का सम्बन्ध मच्छरों से है तब तो ऐसी जगहों पर यह बुखार अधिक फैलना चाहिए !
डेंगू बुखार का वास्तविक कारण क्या है यदि 'एडीज' मच्छर के काटने से ही होता है डेंगू तो जहाँ मच्छरों का प्रकोप अधिक रहता है वहां डेंगू का प्रकोप अधिक होना चाहिए किंतु उनका बचाव होने का कारण क्या है ?
वर्षा ऋतु में प्रारम्भ होकर यह रोग धीरे धीरे रोग बढ़ता जाता है और बढ़ते बढ़ते अगस्त और 11 सितम्बर तक इसका
पूर्ण प्रकोप होता है !इसके बाद ये बीमारी धीरे धीरे स्वतः शांत होने लगती
है । ऐसा होते देख सरकारें बीमारी पर कंट्रोल कर लेने का दावा ठोकने लगती
हैं मच्छर मरने वाले निगम अपनी पीठ थपपाने लगते हैं किंतु यदि ये बीमारी
मच्छरों से होती तो गाँवों ग़रीबों में अधिक होती शहरों में भी रिक्से वाले
रेड़ी वाले या अन्य मजदूर वर्ग के लोग जिनके पास कैसे भी मच्छरों से बचने का
कोई साधन नहीं होता है किंतु ये इस बीमारी से उतना प्रभावित नहीं हो पाते
हैं
वहां तो लोग बिना कपडे पाने घूम करते हैं यह मेडिकल साइंस का अनुमान है या उसका परीक्षण किया हुआ अपना बैज्ञानिक सच है यह ?