Saturday, 10 December 2016

प्रधानमंत्री जी ! जनता आपके भाषणों पर भरोसा करे या आपके बैंक कर्मचारियों के आचरण पर ?

बैंकों में लगे सीसीटीवी फुटेज खँगाले जाएँ दिख  जाएँगे बैंक वाले भ्रष्टाचारियों के चेहरे !जिनकी कृपा से काले धन वालों के कालेधन को सफेद किया जाता रहा है !
    सरकार अपने कर्मचारियों को सुधार ले तो न होंगे अपराध और न होगा भ्रष्टाचार !बैंकों में दो दो चार चार हजार वाले दिन दिन भर लाइनों में खड़े रखे गए और करोड़ों रूपए का काला धन सफेद किया जाता रहा !आखिर लोगों के यहाँ से निकलने वाली करोड़ों रूपए की नए नोटों की गड्डियाँ किसी न किसी सरकारी कर्मचारी की सरकार के साथ की गई गद्दारी की कहानी बयाँ करती हैं !ऐसे गद्दारों पर कठोर कार्यवाही किए बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकार के द्वारा की गई बड़ी से बड़ी कार्यवाही न केवल बेकार होगी अपितु सरकार की ही फजीहत कराएगी ।ईमानदार अधिकारियों कर्मचारियों का  चाहिए किंतु भ्रष्टाचारियों पर जरूर कसी जानी चाहिए नकेल !
बैंक कर्मचारियों से हुई है बड़ी लापरवाही !
      सरकार के आह्वान पर बलिदान केवल जनता दे बैंक कर्मचारी क्या लंच भी नहीं छोड़ सकते आखिर ये तो घर से नास्ता करके निकलते थे !
    आधी आधी रात से लाइनों में खड़े भूखे प्यासे लोगों दिखा दिखा कर लंच करते रहे बैंक वाले उन्हें देख देख कर ललचाते और मरते रहे लाइनों में खड़े भूखे प्यासे लोग !विशेष परिस्थिति में आदर्श व्यवहार करना बैंक  कर्मचारियों का दायित्व नहीं होना चाहिए था क्या ?सरकार सारे बलिदान की अपेक्षा केवल जनता से ही क्यों करती है और जिन्हें सैलरी देती है वे तो सरकार के अपने परिवार के अंग हैं आखिर उनमें नैतिकता क्यों नहीं हों चाहिए थी ?
     जनता देश के मुखिया के आह्वान पर बलिदान देने को तैयार हो गई ये चेतना सरकारी कर्मचारियों में क्यों नहीं आई !जनता में से इतने लोग मरे किंतु बैंक कर्मचारियों में से तो किसी को जुकाम भी नहीं हुआ !क्यों ?क्या जनता इतनी कमजोर थी या  बैंक कर्मचारी लापरवाह और संवेदना विहीन निकले !
   मोदी जी ! बैंकों में लगे कैमरों की जाँच हो !काले धन को सफेद करने वाले दोषियों के खिलाफ की जाए कठोर कार्यवाही ! जो बैंकों की लाइनों में खड़े होने के कारण मरे हैं !नेताओं की तरह ही जनता की मौत को भी मौत माना जाए उनके भी परिजन होते हैं उनकी भी पीड़ा को समझे सरकार !
        हे प्रधानमंत्री जी ! कालेधन के विरुद्ध युद्ध के लिए जनता को ललकार रहे थे आप !उधर काले धन को सफेद करते रहे बैंक कर्मचारी !
    आखिर काले धन वालों का सैकड़ों करोड़ सफेद कैसे हुआ !जगह जगह नोटों का जखीरा मिल रहा है कैसे?क्या इसके लिए केवल कालेधन वाले दोषी हैं ?महोदय !नीति के अनुसार -'अपराधियों को अभयदान या सहयोग देने वाला अपराधी की अपेक्षा कई गुना अधिक दोषी माना जाता है'!सभी प्रकार के अपराधों में ये भूमिका अक्सर निभाते देखी जाती है सरकारी मशीनरी !
  महोदय!जिस अपराध को पकड़ने के लिए आप जनसभाओं में ललकार रहे थे उस अपराध के आका आपके ही अपने घरों अर्थात सरकारी विभागों में छिपे बैठे रहे !जो सरकार से सैलरी लेते रहे हैं और भ्रष्टाचारियों की मदद करते रहे हैं उन आस्तीन के सर्पों को सरकारी विभागों से बाहर किए बिना भ्रष्टाचार विरोधी किसी भी अभियान से कोई अर्थ नहीं निकलेगा !केवल जनता तंग होती रहेगी !इसलिए पहले उन्हें क्यों न पकड़ा जाए जो अपराधों के साक्षात जन्मदाता  हैं । इसके लिए बैंकों के कैमरे चेक किए जाएँ और दोषियों पर कार्यवाही की जाए !लाइनों में खड़े लोगों की हुई मौतों के लिए भी बैंक के भ्रष्ट कर्मियों को ही दोषी माना जाए !
   महोदय!जिस घर का मुखिया अपने घर की कमजोरियों का दोष दूसरों पर मढ़ता है और अपना घर नहीं सँभाल पाता है उसकी वही दुर्दशा होती है जिसे आज आपको झेलना पड़ रहा है मुझे भय है कि भ्रष्टाचार विरोधी आपके इस महान अभियान को  कुछ गद्दार कर्मचारियों के कारण कहीं बीच में ही न दम तोड़नी पड़े और आपको अपने कदम पीछे करने के लिए आपको मजबूर न होना पड़े !यदि दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ तो भ्रष्टचार विरोधी अभियान में बलिदान हुए उन लोगों को जवाब कैसे दिया जाएगा जिनकी संख्या 80 से अधिक पहुँच चुकी है ।
   मान्यवर !जनता में से दो दो चार चार हजार की जरूरी जरूरतों वाले लोग बैंकों की लाइनों में खड़े मरते रहे !किसी को खाना नहीं मिला किसी को दवाई नहीं मिली और तो और कफन के कपड़े के लिए तरसते चले गए कुछ लोग जो आपके द्वारा किए जाने वाले विकास को अब कभी नहीं देखने आ पाएँगे !आखिर उनका दोषी किसे माना जाए !
    कालेधन वालों की मोदी जी बुराई करते रहे और बैंक कर्मचारी उनका काले से सफेद करते रहे उनकी सेवा करते रहे जिनके विरुद्ध मोदी जी भाषण  दे रहे थे !
   कालेधन पर लगाम लगाने के लिए प्रधानमंत्री जी भाषण कर रहे थे उधर बैंक वाले काले धन वालों की मदद कर रहे थे !सरकार से सैलरी लेने वाले जो कर्मचारी सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की न केवल हवा निकालते रहे अपितु सरकार की बेइज्जती कराने के लिए जिम्मेदार हैं वो !जितने कैस में सैकड़ों गरीबों ग्रामीणों मजदूरों और मध्यम वर्ग के लाइनों में लगे लोगों की जरूरतें पूरी की जा सकती थीं वो कैस उन लोगों के यहाँ पहुँचा दिया गया जो बैंक झाँकने भी नहीं आए !उनके गोदामों में सौ करोड़ की जगह अस्सी करोड़ घर बैठे आ गया !
   कालेधन को सफेद करने वाले अपनी बैंकों के कुछ कुकर्मचारियों के भ्रष्ट चेहरे सरकार भी देखे !बैंकों के आगे लगने वाली लंबी लंबी लाइनों का सच क्या था लाइनें आगे क्यों नहीं बढ़ती थीं इसकी सच्चाई भी सरकार को मिलेगी बैंकों के अंदर लगे कैमरों में !

     नेताओं के कालेधन को भी निकालने की हिम्मत क्या कर पाएगी सरकार !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की भी संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए !जितनी संपत्ति उनके पास आज है वो उनको मिलने वाली सैलरी से बनाई जा सकती थी क्या ?
     जनता को टैक्स तो देना चाहिए किंतु उस टैक्स के पैसे का सदुपयोग भी तो दिखना चाहिए !सुना जाता है कि संसद चलाने में भारी खर्च होता है किंतु सार्थक चर्चा कम और निरर्थक हुल्लड़ ज्यादा मचाया जाता है ऐसे हुल्लड़ मचाने वालों पर खर्च करने के लिए जनता क्यों दे टैक्स !इसी प्रकार से भ्रष्टाचार करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की भारी भरकम सैलरी जनता के टैक्स के पैसे से क्यों दी जाए !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना सरकार को आता नहीं है या सरकारों में बैठे लोगों को काम की जरूरत नहीं पड़ती है और वो अधिकारी कर्मचारी जनता की बात न सुनते हैं न ध्यान देते हैं ऐसे लोगों की सैलरी जनता के टैक्स के पैसों से क्यों दी जाए जो जनता को कुछ समझते ही नहीं हैं !
      हे PM साहब ! जनता को टैक्स देना ही चाहिए और कठोरता पूर्वक वसूला भी जाना चाहिए उन्हें टैक्सचोर पापी आदि सब कुछ कहा भी जाना चाहिए  काले धन के नाम पर उन्हें जितना बेइज्जत किया जा सकता हो किया जाना चाहिए !किंतु जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिए गए पैसों का सदुपयोग करना सरकार का कर्तव्य है या नहीं यदि हाँ तो क्या कर पा रही है सरकार !
      संसद की कार्यवाही पर प्रतिदिन खर्च होने वाला भारी भरकम अमाउंट जनता की गाढ़ी खून पसीने की कमाई का होता है जिसे नेता लोग संसद में हुल्लड़ मचा कर उड़ा देते हैं घंटों कार्यवाही बाधित रहती है क्यों ?कई कई दिन बीत जाते हैं ऐसे क्यों !
     संसद चर्चा का मंच है चर्चा करने सुनने वालों की शिक्षा और बौद्धिक स्तर चर्चा करने और समझने लायक होना चाहिए किंतु जो सदस्य अल्प शिक्षित हैं उनका संसद में क्या काम वो सोवें तो शिकायत बाहर  जाकर समय पास करें तो शिकायत और मोबाईल पर पिच्चर देखें तो शिकायत और हुल्लड़ करें तब तो शिकायत है ही !वो तो अपने पार्टी मालिकों का इशारा पाते ही हुल्लड़ मचाने लगते हैं उन्हें न संसद से कुछ लेना देना होता है न संसद की मर्यादाओं से वो तो बड़ी बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों की तरह अपनी पार्टी के मालिकों को ही सब कुछ समझते हैं देश समाज एवं जनता के लिए उनकी कोई निजी सोच ही नहीं होती है फिर भी सरकार उनकी सुख सुविधाओं सैलरी आदि पर जनता से टैक्स रूप में प्राप्त धन खर्च करती है क्यों ? 
    देशवासियों की आखों के सामने ही टैक्स का दुरूपयोग जब साफ साफ दिखाई पड़ रहा हो तो जनता टैक्स क्यों दे ?उच्च शिक्षा ,संसदीय योग्यता चरित्र एवं सुसंस्कारों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन यदि किया जाता होता तो न इतना हुल्लड़ होता न उट  पटाँग भाषा बोली जाती और सम्मान्य सदस्यों के वैचारिक आदान प्रदान का उच्चस्तरीय स्तर भी भारतीय संसद को दुनियाँ में गौरवान्वित कर रहा होता !राजनैतिक दलों में उच्च शिक्षा ,सदाचरण एवं संसादीय गुणवत्ता की अनिवार्यता क्यों न की जाए !
      दूसरा जनता के टैक्स का पैसा सरकार उन सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी सुविधाओं आदि पर खर्च करती है जिन पर काम की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है फिर भी सैलरी भारी भारी होती हैं ऊपर से सरकार समय समय पर बढ़ाए जा रही होती है क्यों ?सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण पिछले कुछ दसकों से सरकारी नौकरियाँ पाने के लिए लोग सोर्स और घूस के बल पर घुस जाते रहे हैं नौकरियों में उन अयोग्य लोगों को योग पदों पर बैठा देने के दुष्परिणाम जनता भोग रही है वे या  करते नहीं हैं या कर नहीं पाते हैं या घूस लेकर करते हैं !सरकारी स्कूल अस्पताल डाक एवं दूर संचार व्यवस्था आदि तो लापरवाही के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं इनकी कार्यशैली जनता का हृदय नहीं जीत सकी । शिक्षक,चिकित्सक,डाककर्मी या टेलीफोन विभाग से जुड़े लोगों की प्राइवेट वालों से कई कई गुना अधिक सैलरी और उनसे कमजोर काम !जबकि उनसे कम सैलरी पर रखे गए लोगों ने प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कोरियरों मोबाइल कंपनियों के माध्यम से जनता का विश्वास जीत रखा है !तभी तो देशवासी सरकारी की अपेक्षा प्राइवेट सेवाओं पर ज्यादा भरोसा करते हैं । जबकि प्राइवेट वालों की सैलरी इतनी कम होती है कि सरकारी एक कर्मचारी की सैलरी में प्राइवेट दो तीन चार लोग आसानी से निपटाए जा सकते हैं !वो लोग अलभ्य नहीं हैं फिर भी सरकार उन सस्ते लोगों को न रखकर महँगे लोग रखती है क्यों ?उनकी सैलरी बढ़ाती रहती है क्यों ? इसे टैक्स से प्राप्त पैसे का सदुपयोग कैसे मान लिया जाए ! सरकार के कई विभागों में तो  कुछ लोग बिनाघूस लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाते हैं उनसे समय पर काम कराने के लिए व्यापारियों को रखना पड़ता है कालाधन !
    प्रधानमन्त्री जी ! अधिक नहीं आप केवल 8-30 नवंबर के बीच के किसी भी बैंक के अंदर के वीडियो देख लीजिए !PM साहब !सब कुछ पता चल जाएगा आपको कि नोटबंदी में लाइनें इतनी लंबी क्यों हुईं और सरकारी इंतजामों की भद्द क्यों और किसने पिटवाई !महोदय ! भ्रष्टाचार का जन्म ही सरकार के  भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की कोख से हुआ है ! सोर्स और घूस देकर जिन्हें नौकरियाँ मिली हों उनसे योग्यता  और आदर्श आचरणों की अपेक्षा भी कैसे की जाए !ऐसे लोगों को जब नौकरियाँ मिली थीं तब उनके पास कुछ ख़ास नहीं था किंतु आज कई के पास तो करोड़ों अरबों का अम्बार लगा है कई कई मकान हैं उनकी संपत्तियों का उनकी सैलरी या घोषित आय स्रोतों से कहीं कोई मेल नहीं खाता !क्या ऐसे भ्रष्ट और अयोग्य अपने कर्मचारियों की संपत्तियों की जाँच भी करेगी सरकार !
       जो नेता जब से पहला चुनाव जीता था तब उसके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है ! जाँच के दायरे में चल अचल सारी  संपत्तियाँ लाई जाएँ !और इस बीच के उनके आय स्रोतों की भी जाँच हो !अक्सर नेता लोग सामान्य परिवारों से आते हैं चुनाव जीतते ही बिना कुछ किए धरे ही सारे राज सुख भोगते भोगते करोड़ों अरबों पति बन जाते हैं दो चार मकान तो निगमपार्षदों के कब और कैसे बन जाते हैं उन्हें पता ही नहीं लगता !राजनीति शुरू करते समय प्रायः नेताओं के पास व्यापार करने के लिए न पैसा होता है और न समय फिर भी करोड़ों अरबों की कमाई कर लेते हैं आखिर कैसे ?वो भी ईमानदारी पूर्वक !ऐसा कैसे संभव हो पाता है जाँच इसकी भी हो और जनता के सामने लाई जाए सच्चाई !
       सरकारी जमीनों पर कब्जा करवाने वाले यही सरकारी अधिकारी और कर्मचारी होते हैं कुछ तो अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं कुछ घूस लेकर शांत हो जाते हैं उनकी आँखों के सामने सरकारी जमीनों पर बनाकर खड़ी कर दी जाती हैं बिल्डिंगें !ऐसे अवैध कब्जों के लिए सरकार उन्हें जिम्मेदार मानकर उन पर कार्यवाही क्यों नहीं करती है ! ऐसे सभी प्रकार के अपराध जिन अधिकारियों कर्मचारियों के तत्वावधान में घटित होते हैं उन्हें ही जिम्मेदार मानकर की जानी चाहिए कार्यवाही । 
      भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी सुधरेंगे क्यों और सरकारें उन्हें सुधारेंगी क्यों ?और सुधारने ही थे तो पहले ही बिगाड़े क्यों गए आखिर वो अपने आप तो नहीं बिगड़ गए उनके बिगड़ने से भी किसी का तो भला होता ही रहा होगा अन्यथा वो तभी सुधार लिए जाते !लापरवाही गैर जिम्मेदारी जैसे दुर्गुण ही तो सरकारी नौकरियों की मस्ती और मनोरंजन हैं इसी से तो लोग इनके प्रति आकर्षित होते हैं !इनके स्वभावों में व्याप्त भ्रष्टाचार या तो इन्हें काम नहीं करने देता है या फिर ये सोचते हैं कि काम करके हम एहसान कर रहे हैं या फिर घूस लेते हैं ।       ये जो काम करने के लिए रखे गए हैं उसकी जिम्मेदारी का एहसास कराने में नाकाम रही है सरकार !सरकारों में सम्मिलित लोग इनसे कमाई करवाते रहे बदले में इनकी सैलरी बढ़ा देते रहे इस तुष्टीकरण के कारण ही आम आदमी की आमदनी से दसों बीसों गुणा बढ़ा दी गईं इनकी सैलरियाँ !अभी भी गरीबों की परवाह किए बिना इनकी बढ़ा दी जाती हैं सैलरियाँ !अन्यथा ये हड़ताल पर चले जाते हैं !
    सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने का मतलब होता है कि सरकार में सम्मिलित मंत्रियों के द्वारा इनसे भ्रष्टाचार पूर्वक करवाई गई अंधाधुंध वसूली की पोल खोल देने की धमकी !
   इनसे झुक कर भ्रष्ट सरकारें इनके सामने घुटने टेक देती हैं इनकी माँगे मान लेती हैं इनसे सौदा पटाकर समझौता कर लेती हैं किंतु ईमानदार प्रशासक अपने निर्णय पर अडिग रहते हैं और इनसे सीधे कह देते हैं कि प्राप्त सुविधाओं से  संतुष्ट  हो तो नौकरी करो अन्यथा जगह खाली करो !ईमानदार लोगों को भय किस बात का !


 

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