Wednesday, 14 December 2016

सरकारें जनता से लिए गए टैक्स के पैसों का दुरूपयोग रोकें अन्यथा नेताओं की कमाई का जनता को हिसाब दें !

   सरकारी कर्मचारियों से काम लेना सीखे बिना सरकारी विभागों का भ्रष्टाचार घटा ही नहीं सकती है सरकार !
     नेता लोग प्रायः अनपढ़ या अल्प शिक्षित होते हैं और अधिकारी लोग प्रायः पढ़े लिखे बुद्धिमान होते हैं ऐसी परिस्थिति में अनपढ़ लोगों को सुशिक्षित अधिकारियों से काम लेने की योग्यता होगी ये भरोसा करना भी सरकारी धन का दुरुपयोग है !यदि सरकारें ईमानदार हैं तो चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के लिए उच्च शिक्षा अनिवार्य क्यों नहीं करतीं ?
   नोटबंदी अभियान के भ्रष्टाचार में सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की संलिप्तता ये सिद्ध करती है कि सरकारी विभागों में भयंकर भ्रष्टाचार है इससे सिद्ध होता है कि जिन  कर्मचारियों ने सरकार के विश्वास की परवाह नहीं की वे  जनता का विश्वास जीतने का कोई प्रयास करते भी होंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए ऐसे लोगों को दी जाने वाली सैलरी को सरकारी धन का सदुपयोग कैसे माना जाए ?                                                                                               संसद को न चलने देना ये जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिए गए धन का दुरूपयोग क्यों न माना जाए क्योंकि जनता के धन से चलती है संसद !इसलिए संसद में केवल जनहित के मुद्दे ही उठाने की अनुमति मिलनी चाहिए !

     संसद की हर चर्चा जनता के हितों से जुड़ी होनी चाहिए !संसद में किसी भी सदस्य पर व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बजाए उसकी जाँच और उस पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए निजी मुद्दों को उठाने में विवाद होता ही है और विवाद होते ही संवाद रुक जाता है जबकि संसद का उद्देश्य संवाद कायम करना है न कि विवाद भड़काना !
   जनता जिन्हें सैलरी देने के लिए टैक्स देती है उन्हीं सरकारी कर्मचारियों से काम कराने के लिए उन्हें देनी पड़ती है घूस !क्यों ?
    सरकार जिन्हें जो अपराध रोकने की जिम्मेदारी सौंपती है जिसकी उन्हें सैलरी देती है वे अपराध घटित होने पर सरकार उन्हें गैर जिम्मेदार लापरवाह कर्तव्य भ्रष्ट या भ्रष्टाचारी मानकर कार्यवाही क्यों नहीं करती है घर में चोरी होने पर यदि चौकीदार पर कार्यवाही होती है तो सरकारी संपत्तियों या जमीनों पर जो अवैध कब्जे किए गए हैं इसके लिए उन अधिकारियों कर्मचारियों पर कार्यवाही क्यों न की जाए जिनके कार्यकाल में वो कब्जे हुए हैं ?ऐसे कर्मचारियों को आज तक दी गई सैलरी वापस ली जाए और उन पर सरकार का विश्वास तोड़ने के लिए कानूनी कार्यवाही की जाए !
     सरकारी अयोग्य अकर्मण्य एवं भ्रष्ट कर्मचारियों को सैलरी क्यों दी जाए और जिन्हें  लिए दी गई है यदि वो काम ठीक ढंग से नहीं किया गया है उस धन का दुरुपयोग मानते हुए उसे वापस क्यों न लिया जाए ?सरकारी स्कूल अस्पताल टेलीफोन एवं डाक विभाग से जुड़ी विश्वसनीय सेवाएँ क्यों नहीं दे पा रहे हैं सरकारी कर्मचारी और यदि वे देते ही होते तो जनता प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों मोबाईल कंपनियों एवं कोरियर कंपनियों पर अधिक विश्वास क्यों कर रही होती ?ऐसे कर्मचारियों की सैलरी में दिए जाने वाले धन को टैक्स  सदुपयोग कैसे मान लिया जाए ?
    सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे प्रायः वही अधिकारी कर्मचारी करवाते हैं जिन्हें उन्हें रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई होती है !जिन  अधिकारियों कर्मचारियों  के कार्यकाल में जो अवैध कब्जे होते हैं उनमें कब्जा करने वाले तो दोषी माने जाते हैं किंतु कब्ज़ा करवाने वालों से कैसे निपटती है सरकार ?उन्हें दी गई सैलरी क्या जनता के द्वारा दिए गए टैक्स का सदुपयोग है क्या?
    संसद की कार्यवाही पर जनता का भारी भरकम धन खर्च होता है फिर वहाँ हुल्लड़ हंगामा करके क्यों रोकी जाती है कार्यवाही ?
    संसद जैसे चर्चा के महान मंदिर में चर्चा के लिए पहुँचने वाले सदस्यों में उच्च शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य क्यों न की जाए !जो शिक्षित ही नहीं होंगे वो चर्चा कैसे करेंगे ?
    जो अशिक्षित या अल्पशिक्षित सांसद विधायक आदि लोग सदनों में बोलने और और समझने की योग्यता नहीं रखते उनके चर्चा में सम्मिलित होने का क्या मतलब ?उनके समर्थन और विरोध को  कितना महत्त्व मिलना चाहिए !
     योग्यता के अभाव में सदनों की चर्चा में सक्रिय सहभागिता निभाने में अक्षम सदस्य अपनी कुर्सियाँ छोड़कर बाहर टहलें !सीटों पर बैठे बैठे सोवें !मोबाईल पर फिल्में देखें या हुल्लड़ मचावें !आखिर वे अपना समय कैसे बिताएँ?
    अक्सर  धन एवं समय को बर्बाद करके निराश कर देने वाली परिणामशून्य सरकारी कानूनी जाँच प्रक्रिया से आम जनता को भी न्याय मिले नेताओं और बड़े लोगों पर भी कानूनी कार्यवाही हो ऐसा सुनिश्चय सरकार क्यों न करे ?
    जो नेता लोग सामान्य परिवारों से निकले होते हैं नौकरी करते देखे नहीं जाते हैं व्यापार करने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते समय नहीं होता चुनाव जीतने के बाद अचानक वो करोड़ों अरबों के मालिक बन जाते हैं जिन संपत्तियों का उनके घोषित आयस्रोतों से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं दिखाई देता है । इन्हें मिलने वाली सैलरी की अपेक्षा कई कई गुना अधिक होते हैं इनके परिवारों के खर्च ?फिर भी इनके पास चल अचल संपत्तियों के अंबार लग जाते हैं कैसे ?इसे सरकार को टैक्स रूप में दिया गया पैसा ही क्यों न माना जाए !इन्होंने हासिल चाहें जैसे किया गया हो !यदि नहीं तो नेताओं के चुनाव जीतने से पहले एवं वर्तमान संपत्तियाँ और उनके स्रोतों की जाँच का अधिकार जनता को क्यों न दिया जाए !ईमानदारी पसंद सरकार ये सारा ब्यौरा सार्वजनिक क्यों न करे ?
    वो भाग चर्चा मंच पर   जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियाँ न समझने वाले सांसदों विधायकों पार्षदों अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी का बोझ जनता पर और  जनता को ही ठेंगा दिखावें ये लोग !बारे लोकतंत्र !!

    सरकारी काम काज और राजनीति दोनों सेवा कहे  जाते हैं परंतु सेवा में सैलरी तो होती नहीं है किंतु यहाँ तो सैलरी भी है सेवा भी ये है सरकारी चमत्कार !ये तो उसी तरह का झूठ हो गया जैसे हजारों करोड़ का बिजिनेस बढ़ाने वाले बाबा लोग अपने काम काज को चैरिटी बताने लगते हैं !अरे !चैरिटी में कमाई भी होती है क्या !इसी प्रकार सबसे कालाधन माँग माँग कर अपने पास करोड़ों रूपए इकठ्ठा करने के बाद कालेधन के विरुद्ध आंदोलन चलाने वाले लोग हों या अपने कारखानों में बड़ी बड़ी विदेशी मशीनें लगा कर काम धंधा करने वाले चलावें स्वदेशी आंदोलन !इतने बड़े बड़े झूठ कोई आम इंसान कैसे बोल सकता है ऐसी हिम्मत तो कोई नेता या बाबा ही कर सकता है ।
आधुनिक लोकतंत्र में जनता जनार्दन की ये दुर्दशा !
         ईमानदारी से जीना कितना कठिन हो गया है इसका अंदाजा लगाने के लिए 8 नवम्बर से 30 दिसंबर के बीच के देखे जाएँ बैंकों के अंदर के वीडियो !जिन कालेधनवालों के विरुद्ध सरकार भाषण दे रही थी उन्हीं की  सेवा में व्यस्त थी सरकारी मशीनरी !ये आम जनता के साथ मजाक नहीं तो क्या है !जनता की परेशानियों और दुर्भाग्य पूर्ण मौतों के लिए जिम्मेदार कौन !
      कालेधन का हाहाकार क्यों ?
   क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि सरकारी विभागों में जनता जनार्दन के साथ प्रिय व्यवहार हो और जिम्मेदारी पूर्वक उसका काम किया जाए !सरकारी विभागों की लापरवाही और गैर जिम्मेदारी के कारण ही तो जनता को सरकारी दुर्व्यवस्था से मुख मोड़कर प्राइवेट वालों से समझौता करना पड़ता है !सरकारी विभागों में जनता को कोई कुछ समझता नहीं है लोग एक दूसरे पर टालते रहते हैं शिकायतें !और  प्राइवेट में तुरंत दूर की जाती हैं समस्याएँ !इसीलिए तो प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कोरियर और टेलीफोन कंपनियों से जुड़कर जनता को काम चलाना पड़ता है फिर भी उन सरकारी कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए उसी जनता को  टैक्स देना पड़ता है जिनकी सेवाओं से जनता ऊभ चुकी होती है या जिनसे विश्वास उठ चुका होता है !ऐसे लोगों को भारी भरकम सैलरी देने के लिए जनता से टैक्स क्यों लिया जाए ?
    सरकारी विभागों में जनता का काम समय से कराने की गारंटी कौन लेगा !और बिना काम काज के गुजारा कैसे हो !सरकारी अनुशासन से जो काम नहीं होते उन्हें लालच देकर कराना पड़ता है !और उस लालच को पूरा करने में लगता ही कालाधन है !उस काली मंडी में चलता ही ब्लैक है ।

       संसद की कारवाही में करोड़ों रुपए जनता के खर्च होते हैं किंतु सदन में कभी भी किसी भी मुद्दे पर या बिना मुद्दे के ही छोटी सी बात की आड़ लेकर भी हंगामा किया जाने लगता है कार्यवाही रोक दी जाती है कई बार तो कई कई दिन तक नहीं चल पाती है संसद !जनता का पैसा बर्बाद होता रहता है जनता से टैक्स क्या इसके लिए वसूला जाता है !
     चुनावों में प्रत्याशियों के चयन में शिक्षा  योग्यता  अनुभव आदि को प्राथमिकता न दिए जाने के कारण जो अशिक्षित एवं अयोग्य लोग चुनाव जीत कर संसद में पहुँच जाते हैं वो संसद की चर्चा में भाग कैसे लें वहाँ की चर्चा में बोलना तो दूर समझना भी जिनके बश का न हो वो वहाँ खाली कब तक बैठे रहें !वो मोबाइल पर वीडियो देखें !घूम टहल कर समय पास करें या सोवें या फिर अपनी पार्टी के मालिक की ओर ताकते रहें जब वो इशारा करे तो हुल्लड़ मचावें,कागज़ फाड़ फाड़कर  फेंकें गैलरी में चले जाएँ ,अपशब्द प्रयोग करें ,लपटा  झपटी लड़ाई झगड़ा आदि उपद्रव न करें तो वो अपनी किस योग्यता का प्रदर्शन आखिर कैसे करें वहाँ !उनका चेहरा टीवी पर कैसे आवे !उन्हें भी चाहने वाले तो होते ही हैं चुनाव जीत कर गए हैं !किंतु अत्यंत उच्चस्तरीय गौरवपूर्ण चर्चामंच संसद के बहुमूल्य समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करने के लिए प्रत्याशियों की शिक्षा योग्यता एवं अनुभव को क्यों  नहीं दिया जाना  चाहिए महत्त्व !
       इसी प्रकार से विगत कुछ दसकों से कई स्थलों पर सरकारी नौकरियाँ देते समय शिक्षा योग्यता अनुभव आदि की उपेक्षा करके घूसखोरी से लेकर सोर्स सिफारिस के बल पर भी नौकरियाँ दी जाती रही हैं प्रायः ऐसा सभी लोग स्वीकार करते हैं ऐसी परिस्थितियों में जो अयोग्य लोग जहाँ कहीं योग्य स्थानों पर बैठाए दिए गए हैं वे अपने पदों के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं कुछ में काम करने लायक शिक्षा नहीं है कुछ काम करना नहीं चाहते कुछ थोड़ा बहुत जितना भी कर पाते हैं उसके लिए जनता के साथ अप्रिय व्यवहार करते हैं या घूस आदि की डिमांड रखते हैं यदि काम कराना है तो जनता को उन कर्मचारियों की शर्तों पर ही समझौता करना पड़ता है इसके अलावा जनता के पास सरकारी विभागों में किसी की शिकायत कोई नहीं सुनता सबकी टाँग एक दूसरे के नीचे दबी होती है उसकी खोलने से अपनी भी खुलती है इसलिए जनता के पास कोई विकल्प नहीं होते !ऐसे लोगों को जनता की खून पसीने की कमाई से सैलरी क्यों दी जाए ?
 सरकार को अपने अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना नहीं आता तो उनकी भारी भरकम सैलरी जनता पर क्यों थोपती जाती है सरकार !
     सामान्य जनता की कमाई से दो गुनी चार गुनी होती तो चल भी जाता कई कई गुनी सैलरी क्यों ?क्या आम जनता का राष्ट्र निर्माण में कोई योगदान नहीं है क्या ?
      सरकार के द्वारा इतनी अधिक सैलरी दिए जाने के बाद भी वो अक्सर अपनी माँगें मनवाने के लिए हड़ताल पर चले जाते हैं क्यों ?क्या  आम आदमी की आमदनी से उन्हें अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए !आखिर ये देश उनका नहीं है क्या ?आम जनता भी उनकी ही तरह जरूरतों से पीड़ित है यह क्यों नहीं सोचा जाना चाहिए ?
        हड़ताल करने वालों से सरकार समझौता क्यों करती है यदि वे सरकारी  सैलरी और सुविधाओं से संतुष्ट नहीं हैं तो वो भी स्वतंत्र हैं कोई और धंधा पानी देखें उन्हें घेर घेर कर क्यों रखती है सरकार !क्या अपनी कोई पोल खोले जाने से डरती है आखिर उनसे झुककर समझौता क्यों करती है सरकार ?
       कई काम तो ऐसे हैं जिनमें सरकार के एक एक कर्मचारी की सैलरी में चार चार छै छै प्राइवेट कर्मचारी रखे जा सकते हैं उनकी शार्टेज भी नहीं है उससे देश की बेरोजगारी भी घट सकती है फिर भी उन्हीं के सामने घुटने क्यों टेकती है सरकार ?
      स्कूलों को ही लें - सरकार शिक्षकों को भारी भरकम सैलरी सुविधाएँ पेंसन आदि सबकुछ देती है बच्चों को भोजन कपड़े और पैसे भी देती है विज्ञापन पर भारी भरकम धनराशि खर्च कर देती है किंतु सरकार अपने स्कूलों के शिक्षकों अधिकारियों की गैर जिम्मेदारियों के कारण प्राइमरी स्कूलों को वो सम्मान नहीं दिला पाई जो प्राइवेट स्कूलों को हासिल है क्यों ?
    प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक प्रायः ट्रेंड नहीं होते अक्सर अल्पशिक्षित होते हैं उन्हें सैलरी भी सरकारी शिक्षकों की अपेक्षा कम मिलती है पेंशन नहीं मिलती बच्चों को भोजन कपड़े और पैसे नहीं मिलते ऊपर से भारी भरकम (फीस) धनराशि भी वसूली जाती है तमाम नखरे दिखाते हैं फिर भी शिक्षित समझदार संपन्न लोग यहाँ तक कि सरकारी कर्मचारी और सरकारी शिक्षक एवं उनके अधिकारी भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाते हैं क्यों ?
       देश भक्त बंदनीय सैनिकों को छोड़कर सरकार का हर विभाग अयोग्य,गैरजिम्मेदार एवं अकर्मण्य लोगों से भरा पड़ा है जनता उनके काम काज की शैली से संतुष्ट नहीं है समय से काम लेने के लिए सोर्स सिफारिस और घूस का सहारा लेना जनता की मजबूरी है कहावत है कि "काँटे से काँटा निकलता है" "बिष बिष को मारता है" इसी प्रकार से भ्रष्टाचारियों को भ्रष्टाचार से ही जीता जा सकता है वही करने लगी है जनता !लोग कालाधन रखते हैं और देते हैं घूस !सरकारी विभागों में जनता का काम यदि समय से और जिम्मेदारी पूर्वक होने लगता तो क्यों देनी पड़ती घूस और क्यों कोई रखता कालाधन !
      सरकारी स्कूलों को पीट रहे हैं प्राइवेट स्कूल,सरकारी अस्पतालों को प्राइवेट अस्पताल,डाक सेवा को कोरियर टेलीफोन सेवाओं को प्राइवेट कंपनियाँ !पुलिस में प्राइवेट विकल्प नहीं है तो जनता भोग रही है सरकारी लापरवाहियों का फल ! आखिर इतने ईमानदार और जिम्मेदार  क्यों नहीं हैं सरकारी विभाग कि जनता सरकारी सेवाओं की ओर आकर्षित हो !जिन विभागों की सेवाओं से जनता ही असंतुष्ट होगी उनमें नियुक्त अधिकारियों कर्मचारियों को दी जाने वाली सैलरी को टैक्स से प्राप्त  हुए धन का दुरूपयोग नहीं तो क्या माना जाए !
        नोटबंदी अभियान को ही लें -
       सरकार यदि भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देना ही चाहती है तो 8 नवम्बर से तीस दिसंबर तक के बैंकों के अंदर के लगे वीडियो चेक करवाए कई बैंकों में तो समझदार कर्मचारियों ने वीडियो भी खराब कर रखे हैं फिर भी सरकारी सेवाओं का दर्पण तो सरकार के सामने आ ही जाएगा !वैसे भी सरकार का साथ यदि सरकारी कर्मचारी ही नहीं देंगे तो किसके सहारे निर्णय लेगी सरकार !सेवाएँ यदि निष्पक्ष और ईमानदार होतीं तो इससे जुड़ी मौतें घटाई भी जा सकती थीं ! जनता तो सरकार के सहारे थी सरकार अपने कर्मचारियों के और कर्मचारी कुछ लोगों पर तो बहुत मेहरबान थे किंतु कुछ लोगों से न जाने किस जन्म का बदला ले रहे थे ऐसे लोग बैंकों के अंदर के वीडियो से चिंहिंत किए जा सकते हैं और उन पर होनी चाहिए कार्यवाही !
  अधिकाँश अधिकारियों से निराश हो चुका है समाज !
      अधिकारियों की नियुक्ति क्या केवल इसलिए होती है कि वे अपनी आफिसों में सुख सुविधा पूर्ण एक कमरा रूपी मंदिर बनाकर उसमें देवता बनकर खुद बैठे रहें और उनके जूनियर लोग उनके विषय में बता बता कर उनके प्रति जनता के मन में खौफ पैदा करते रहें !इसलिए जनता उनसे अपनी समस्या बताने में डरती रहे !कुछ लोग यदि हिम्मत करके उनके पास पहुँचें भी तो जवाब वहीँ मिलें जो निचले कर्मचारियों से मिले थे जिनसे असंतुष्ट होकर वो वहाँ गए थे ऐसे में उन अधिकारियों का जनहित में उपयोग क्या है जैसे -
        किसी का टेली फोन ख़राब हो गया उसे ठीक करने के लाइन मैंन  ने कुछ पैसे माँगे उसने उसे न देकर ऊपर के अधिकारियों से संपर्क किया और अपनी समस्या बताई उन्होंने लाइन मैंन से जवाब माँगा उसने कहा सर !अंडर ग्राउंड की केबल खराब है इसलिए ठीक नहीं हो सकता है अधिकारी ने यही जवाब उपभोक्ता को दे दिया इसपर निराश हताश अपमानित उपभोक्ता सौ पचास रूपए देकर लाइन मैंन  से तुरंत तार जोड़वा लेता है और फोन चालू हो जाता है ऐसे अधिकारियों को जनता क्या माने जिनकी कीमत उनके विभाग के जूनियर लोग ही सौ पचास रूपए भर भी नहीं मानते हैं !ऐसे अनुपयोगी अधिकारियों की सैलरियों सुख सुविधाओं पर खर्च किए जाने वाले धन को जनता के द्वारा प्रदत्त टैक्स का सदुपयोग कैसे माना जाए ?
     भरकम सैलरी देने इसमें जनता का क्या दोष ! क्या इसलिए दिया जाए टैक्स ! आखिर टैक्स क्यों दिया जाए ?
    जनता को टैक्स तो देना चाहिए किंतु उस टैक्स के पैसे का सदुपयोग भी तो दिखना चाहिए !सुना जाता है कि संसद चलाने में भारी खर्च होता है किंतु सार्थक चर्चा कम और निरर्थक हुल्लड़ ज्यादा मचाया जाता है ऐसे हुल्लड़ मचाने वालों पर खर्च करने के लिए जनता क्यों दे टैक्स !इसी प्रकार से भ्रष्टाचार करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की भारी भरकम सैलरी जनता के टैक्स के पैसे से क्यों दी जाए !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना सरकार को आता नहीं है या सरकारों में बैठे लोगों को काम की जरूरत नहीं पड़ती है और वो अधिकारी कर्मचारी जनता की बात न सुनते हैं न ध्यान देते हैं ऐसे लोगों की सैलरी जनता के टैक्स के पैसों से क्यों दी जाए जो जनता को कुछ समझते ही नहीं हैं !
      हे PM साहब ! जनता को टैक्स देना ही चाहिए और कठोरता पूर्वक वसूला भी जाना चाहिए उन्हें टैक्सचोर पापी आदि सब कुछ कहा भी जाना चाहिए  काले धन के नाम पर उन्हें जितना बेइज्जत किया जा सकता हो किया जाना चाहिए !किंतु जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिए गए पैसों का सदुपयोग करना सरकार का कर्तव्य है या नहीं यदि हाँ तो क्या कर पा रही है सरकार !
      संसद की कार्यवाही पर प्रतिदिन खर्च होने वाला भारी भरकम अमाउंट जनता की गाढ़ी खून पसीने की कमाई का होता है जिसे नेता लोग संसद में हुल्लड़ मचा कर उड़ा देते हैं घंटों कार्यवाही बाधित रहती है क्यों ?कई कई दिन बीत जाते हैं ऐसे क्यों !
     संसद चर्चा का मंच है चर्चा करने सुनने वालों की शिक्षा और बौद्धिक स्तर चर्चा करने और समझने लायक होना चाहिए किंतु जो सदस्य अल्प शिक्षित हैं उनका संसद में क्या काम वो सोवें तो शिकायत बाहर  जाकर समय पास करें तो शिकायत और मोबाईल पर पिच्चर देखें तो शिकायत और हुल्लड़ करें तब तो शिकायत है ही !वो तो अपने पार्टी मालिकों का इशारा पाते ही हुल्लड़ मचाने लगते हैं उन्हें न संसद से कुछ लेना देना होता है न संसद की मर्यादाओं से वो तो बड़ी बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों की तरह अपनी पार्टी के मालिकों को ही सब कुछ समझते हैं देश समाज एवं जनता के लिए उनकी कोई निजी सोच ही नहीं होती है फिर भी सरकार उनकी सुख सुविधाओं सैलरी आदि पर जनता से टैक्स रूप में प्राप्त धन खर्च करती है क्यों ?
    देशवासियों की आखों के सामने ही टैक्स का दुरूपयोग जब साफ साफ दिखाई पड़ रहा हो तो जनता टैक्स क्यों दे ?उच्च शिक्षा ,संसदीय योग्यता चरित्र एवं सुसंस्कारों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन यदि किया जाता होता तो न इतना हुल्लड़ होता न उट  पटाँग भाषा बोली जाती और सम्मान्य सदस्यों के वैचारिक आदान प्रदान का उच्चस्तरीय स्तर भी भारतीय संसद को दुनियाँ में गौरवान्वित कर रहा होता !राजनैतिक दलों में उच्च शिक्षा ,सदाचरण एवं संसादीय गुणवत्ता की अनिवार्यता क्यों न की जाए !
     कालेधन को सफेद करने वाले अपनी बैंकों के कुछ कुकर्मचारियों के भ्रष्ट चेहरे सरकार भी देखे !बैंकों के आगे लगने वाली लंबी लंबी लाइनों का सच क्या था लाइनें आगे क्यों नहीं बढ़ती थीं इसकी सच्चाई भी सरकार को मिलेगी उसी वीडियो में !
   नेताओं के कालेधन को भी निकालने की हिम्मत क्या कर पाएगी सरकार !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की भी संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए !जितनी संपत्ति उनके पास आज है वो उनको मिलने वाली सैलरी से बनाई जा सकती थी क्या ?

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