Friday, 27 May 2016

सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पताल बंद किए जाएँ या फिर प्राईवेट स्कूलों अस्पतालों में लगा दिए जाएँ ताले !

शिक्षा और चिकित्सा पर सबका समान अधिकार होना चाहिए किंतु ये कैसा न्याय है कि जिसके पास धन है उसी के बच्चे पढ़ सकते हैं और वही अपना इलाज करवा सकता है !
      देश का बचपन बाँटने की साजिशों को नाकाम किया जाएगा इलाज के अभाव में गरीबों को मरने नहीं दिया जाएगा जिन स्कूलों में गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं और जिन अस्पतालों में जिन लाइनों में खड़े होकर गरीब लोग अपना  इलाज करवाते हैं उन्हीं स्कूलों में सभी के बच्चे पढ़ें उन्हीं अस्पतालों में सबका इलाज  हो  !तब तो लोकतंत्र अन्यथा काहे का लोकतंत्र !
   देश के सभी बच्चे सरकार के हैं बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी सरकार की है बचपन बाँटने से अच्छा है देश में शिक्षा व्यवस्था सरकार सभी के लिए एक जैसी रखे!पक्षपात पूर्वक सरकारी स्कूलों से शिक्षित बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़े बच्चों से आँखें मिलाने लायक जीवन भर नहीं हो पाते हैं !अपने बच्चों को सरकारी  स्कूलों में पढ़ाने वाले माता पिता को समाज घृणा की नजर से देखता है और  अपने माता पिता से बच्चे कहते  हैं कि तुमने मेरे साथ किया क्या है यदि तुम किसी लायक ही होते तो मुझे भी प्राइवेट स्कूलों में क्यों न पढ़ा लेते !]इसलिए ग़रीबों के बच्चों की जिन्दगी बर्बाद करने  के लिए सरकारी स्कूल खोले गए हैं क्या ?प्राईवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले सरकारी शिक्षक भी सरकारी स्कूलों को इतनी घिनौनी दृष्टि से देखते हैं कि अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाते हैं !
      क्या ग़रीबों के बच्चों की जिन्दगी बर्बाद करने के लिए ही चलाए जा रहे हैं सरकारी स्कूल और रखे जाते हैं गैर जिम्मेदार सरकारी शिक्षक !देश की जनता अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में  पढ़ावे और जनता के टैक्स के पैसे से सैलरी लेने वाले सरकारी कर्मचारी एवं सरकारों में सम्मिलित लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं
सरकारी स्कूलों को इतनी गिरी निगाह से देखते हैं ये लोग !      
     सरकारी स्कूलों में कुछ टीचर पढ़े नहीं होते कुछ टीचरों को पढ़ाना नहीं आता और कुछ पढ़ाते नहीं हैं कुछ का पढ़ाने में मन नहीं लगता तो कुछ पढ़ाना जरूरी नहीं समझते! ऐसे लोगों का मनना होता है कि काम ही करना होता तो सरकारी नौकरी ही क्यों करते फिर तो प्राइवेट भी बहुत थीं ! ऐसे टीचरों के अपने बच्चे प्राईवेट स्कूलों में पढ़ते हैं खुद गरीब बच्चों की जिन्दगी बर्बाद करने चले आते हैं सरकारी स्कूलों में !ऐसे  सरकारी शिक्षकों का इरादा यदि बच्चों को पढ़ाना ही होता तो अपने बच्चे क्यों नहीं पढ़ाते सरकारी स्कूलों में !सरकारें यदि ईमानदार होतीं तो इनसे कहतीं कि सरकारी नौकरी करनी है तो अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाना होगा किंतु उनका अपना डर है कि फिर हमें भी अपने बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाने पड़ेंगे !उससे अच्छा है ग़रीबों के बच्चों की ही जिंदगी बर्बाद होने दो! कुल मिलाकर इस साजिश में सरकारें बुरी तरह से सम्मिलित हैं !
      सरकारी स्कूल भी भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं जितनी सैलरी में प्राइवेट स्कूलों को चार चार टीचर आसानी से मिल जाते हैं सरकारी स्कूल में एक एक शिक्षक को दी जा रही है वो सैलरी ! सरकारों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है !जब अच्छे अच्छे प्राइवेट स्कूलों को दस दस पंद्रह पंद्रह हजार में पढ़े लिखे और परिश्रमी शिक्षक मिल जाते हैं जो इतना अच्छा पढ़ाते हैं कि सरकारों में सम्मिलित बड़े बड़े लोग अफसर आदि अपने बच्चों को तो उन्हीं स्कूलों में पढ़ाते हैं जिनमें ऐसे परिश्रमी प्राइवेट शिक्षक पढ़ाते हैं और ग़रीबों के बच्चों की जिन्दगी बर्बाद करने को सरकारें चला रही हैं सरकारी स्कूल !जनता का पैसा है इसलिए बर्बाद करना जरूरी है क्या ?
     कम सैलरी वाले प्राइवेट शिक्षक सरकारी स्कूलों को क्यों नहीं मिलते !अरे उतने ही पैसों में एक शिक्षक की सैलरी में चार शिक्षक रखो स्कूलों को अधिक शिक्षक  मिल जाएँ वो भी जरूरतमंद जिन्हें नौकरी की कदर और शिक्षक होने का स्वाभिमान हो ,जो मेहनत और लगन से बच्चों को पढावें न धरना दें न प्रदर्शन करें न पेंसन देनी पड़े जब तक काम तब तक सैलरी इससे जनता की बेरोजगारी घटे  स्कूलों का वातावरण सुधरे शिक्षा ग़रीबों को भी मिलने लगे !
       शिक्षा प्रक्रिया की पोल न खुले इसलिए कक्षाओं में अभिभावकों को  जाने से पहले तो चौकीदार रोक लेता है यदि उसने जाने दिया तो प्रेंसिपल रोक लेता है वस्तुतः इन लोगों को पता होता है कि हमारे शिक्षक पढ़ाने के अलावा सबकुछ कर रहे होंगे ये वहाँ जाएँगे तो चार तरह की बातें उठेंगी सच भी है कोई भी अपने बच्चों की जिंदगी बर्बाद होते देखकर कैसे सह पाएगा ! स्कूलों में न पढ़ाने के लिए शिक्षकों को सरकार ने इतने  अधिक बहाने उपलब्ध करा रखे हैं कि बिना पढ़ाए सारा जीवन गुजार सकते हैं सरकारी शिक्षक !फिर भी सैलरी लेते रहेंगे पेंसन भी लेंगे !  
      मजे की बात शिक्षा के साथ हो रही इन साजिशों में सरकारें सम्मिलित हैं सरकारों में सम्मिलित लोग चाहते ही नहीं हैं कि ग़रीबों के बच्चे पढ़ लिख कर कुछ बनें !उसमें उनका स्वार्थ होता है कि बिना पढ़े लिखे लोग जैसा हमलोग कहेंगे वैसा करते जाएँगे पढ़े लिखे होंगे तो किंतु परंतु करके हमारे लिए रोज समस्याएँ खड़ी करते रहेंगे !गरीब लोग जितने पढ़ गए ये नेता लोग उन्हीं से तंग हैं इनका बस  चलता तो ये उन्हें भी नहीं पढ़ने देते !
  

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