Sunday, 18 December 2016

बैंक कर्मचारियों से सरकार ने उमींद ही क्यों की ?

    
       सरकारी स्कूल अस्पताल टेलीफोन से लेकर डाक सेवाएँ तक नेताओं की गैर जिम्मेदारी लापरवाही गद्दारी की भेंट चढ़ चुकी हैं सबकी भद्द पिटी पड़ी है जैसे बैंक वालों ने नोट बंदी के समय जनता के साथ गद्दारी करके सौ लोगों को मरने पर मजबूर कर दिया सरकार का हर विभाग आम जनता को ऐसे ही मारने पर मजबूर कर रहा है किंतु अब सरकार की भद्द पिटने लगी तो सरकार ने बैंक वाले अपने दुलारे पियारे कुछ भ्रष्टाचारियों को पकड़ कर अपने मुख की स्याही साफ की !सब को पकड़ते तो वो तार सरकारों मेंसम्मिलित नेताओं से जुड़ने लगते इसलिए जनता का मुख बंद करने के लिए बश काम चलाने भर को बस थोड़े से पकड़ लिए गए हैं !पकडे जाने वाले तो साफ कहते हैं कि ये धन ऊपर तक जाता है इसीलिए लिए सरकार इन कमाऊपूतों की सैलरी और सुविधाओं का ध्यान रखती है आम जनता मरे तो मरे !इनके हड़ताल पर जाते ही सरकार बार बार इन्हें इसीलिए तो मन मन कर रखती है कि कहीं हमारे भ्रष्टाचार की पोल न खोल दें अन्यथा हड़ताली कर्मचारियों को धक्का देकर बाहर करे और नई नियुक्तियाँ करे !देश में योग्य लोगों की कमी है क्या किंतु सरकारी नेताओं की भ्रष्टाचारी सोच ने अयोग्य लोगों को सोर्स और घूस के बलपर अच्छे अच्छे पद दे रखे हैं इन फिसड्डियों को सरकारों ने गले तो लगा लिया किंतु जिनका मन पढ़ने में नहीं लगा घूस देकर सोर्स लगाकर पास हुए ऐसे ही नौकरी हासिल की अब सरकार के हर विभाग की भद्द पीट रहे हैं यही फिसड्डी लोग !

Wednesday, 14 December 2016

सरकारें जनता से लिए गए टैक्स के पैसों का दुरूपयोग रोकें अन्यथा नेताओं की कमाई का जनता को हिसाब दें !

   सरकारी कर्मचारियों से काम लेना सीखे बिना सरकारी विभागों का भ्रष्टाचार घटा ही नहीं सकती है सरकार !
     नेता लोग प्रायः अनपढ़ या अल्प शिक्षित होते हैं और अधिकारी लोग प्रायः पढ़े लिखे बुद्धिमान होते हैं ऐसी परिस्थिति में अनपढ़ लोगों को सुशिक्षित अधिकारियों से काम लेने की योग्यता होगी ये भरोसा करना भी सरकारी धन का दुरुपयोग है !यदि सरकारें ईमानदार हैं तो चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के लिए उच्च शिक्षा अनिवार्य क्यों नहीं करतीं ?
   नोटबंदी अभियान के भ्रष्टाचार में सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की संलिप्तता ये सिद्ध करती है कि सरकारी विभागों में भयंकर भ्रष्टाचार है इससे सिद्ध होता है कि जिन  कर्मचारियों ने सरकार के विश्वास की परवाह नहीं की वे  जनता का विश्वास जीतने का कोई प्रयास करते भी होंगे इसकी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए ऐसे लोगों को दी जाने वाली सैलरी को सरकारी धन का सदुपयोग कैसे माना जाए ?                                                                                               संसद को न चलने देना ये जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिए गए धन का दुरूपयोग क्यों न माना जाए क्योंकि जनता के धन से चलती है संसद !इसलिए संसद में केवल जनहित के मुद्दे ही उठाने की अनुमति मिलनी चाहिए !

     संसद की हर चर्चा जनता के हितों से जुड़ी होनी चाहिए !संसद में किसी भी सदस्य पर व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के बजाए उसकी जाँच और उस पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए निजी मुद्दों को उठाने में विवाद होता ही है और विवाद होते ही संवाद रुक जाता है जबकि संसद का उद्देश्य संवाद कायम करना है न कि विवाद भड़काना !
   जनता जिन्हें सैलरी देने के लिए टैक्स देती है उन्हीं सरकारी कर्मचारियों से काम कराने के लिए उन्हें देनी पड़ती है घूस !क्यों ?
    सरकार जिन्हें जो अपराध रोकने की जिम्मेदारी सौंपती है जिसकी उन्हें सैलरी देती है वे अपराध घटित होने पर सरकार उन्हें गैर जिम्मेदार लापरवाह कर्तव्य भ्रष्ट या भ्रष्टाचारी मानकर कार्यवाही क्यों नहीं करती है घर में चोरी होने पर यदि चौकीदार पर कार्यवाही होती है तो सरकारी संपत्तियों या जमीनों पर जो अवैध कब्जे किए गए हैं इसके लिए उन अधिकारियों कर्मचारियों पर कार्यवाही क्यों न की जाए जिनके कार्यकाल में वो कब्जे हुए हैं ?ऐसे कर्मचारियों को आज तक दी गई सैलरी वापस ली जाए और उन पर सरकार का विश्वास तोड़ने के लिए कानूनी कार्यवाही की जाए !
     सरकारी अयोग्य अकर्मण्य एवं भ्रष्ट कर्मचारियों को सैलरी क्यों दी जाए और जिन्हें  लिए दी गई है यदि वो काम ठीक ढंग से नहीं किया गया है उस धन का दुरुपयोग मानते हुए उसे वापस क्यों न लिया जाए ?सरकारी स्कूल अस्पताल टेलीफोन एवं डाक विभाग से जुड़ी विश्वसनीय सेवाएँ क्यों नहीं दे पा रहे हैं सरकारी कर्मचारी और यदि वे देते ही होते तो जनता प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों मोबाईल कंपनियों एवं कोरियर कंपनियों पर अधिक विश्वास क्यों कर रही होती ?ऐसे कर्मचारियों की सैलरी में दिए जाने वाले धन को टैक्स  सदुपयोग कैसे मान लिया जाए ?
    सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे प्रायः वही अधिकारी कर्मचारी करवाते हैं जिन्हें उन्हें रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई होती है !जिन  अधिकारियों कर्मचारियों  के कार्यकाल में जो अवैध कब्जे होते हैं उनमें कब्जा करने वाले तो दोषी माने जाते हैं किंतु कब्ज़ा करवाने वालों से कैसे निपटती है सरकार ?उन्हें दी गई सैलरी क्या जनता के द्वारा दिए गए टैक्स का सदुपयोग है क्या?
    संसद की कार्यवाही पर जनता का भारी भरकम धन खर्च होता है फिर वहाँ हुल्लड़ हंगामा करके क्यों रोकी जाती है कार्यवाही ?
    संसद जैसे चर्चा के महान मंदिर में चर्चा के लिए पहुँचने वाले सदस्यों में उच्च शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य क्यों न की जाए !जो शिक्षित ही नहीं होंगे वो चर्चा कैसे करेंगे ?
    जो अशिक्षित या अल्पशिक्षित सांसद विधायक आदि लोग सदनों में बोलने और और समझने की योग्यता नहीं रखते उनके चर्चा में सम्मिलित होने का क्या मतलब ?उनके समर्थन और विरोध को  कितना महत्त्व मिलना चाहिए !
     योग्यता के अभाव में सदनों की चर्चा में सक्रिय सहभागिता निभाने में अक्षम सदस्य अपनी कुर्सियाँ छोड़कर बाहर टहलें !सीटों पर बैठे बैठे सोवें !मोबाईल पर फिल्में देखें या हुल्लड़ मचावें !आखिर वे अपना समय कैसे बिताएँ?
    अक्सर  धन एवं समय को बर्बाद करके निराश कर देने वाली परिणामशून्य सरकारी कानूनी जाँच प्रक्रिया से आम जनता को भी न्याय मिले नेताओं और बड़े लोगों पर भी कानूनी कार्यवाही हो ऐसा सुनिश्चय सरकार क्यों न करे ?
    जो नेता लोग सामान्य परिवारों से निकले होते हैं नौकरी करते देखे नहीं जाते हैं व्यापार करने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते समय नहीं होता चुनाव जीतने के बाद अचानक वो करोड़ों अरबों के मालिक बन जाते हैं जिन संपत्तियों का उनके घोषित आयस्रोतों से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं दिखाई देता है । इन्हें मिलने वाली सैलरी की अपेक्षा कई कई गुना अधिक होते हैं इनके परिवारों के खर्च ?फिर भी इनके पास चल अचल संपत्तियों के अंबार लग जाते हैं कैसे ?इसे सरकार को टैक्स रूप में दिया गया पैसा ही क्यों न माना जाए !इन्होंने हासिल चाहें जैसे किया गया हो !यदि नहीं तो नेताओं के चुनाव जीतने से पहले एवं वर्तमान संपत्तियाँ और उनके स्रोतों की जाँच का अधिकार जनता को क्यों न दिया जाए !ईमानदारी पसंद सरकार ये सारा ब्यौरा सार्वजनिक क्यों न करे ?
    वो भाग चर्चा मंच पर   जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियाँ न समझने वाले सांसदों विधायकों पार्षदों अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी का बोझ जनता पर और  जनता को ही ठेंगा दिखावें ये लोग !बारे लोकतंत्र !!

    सरकारी काम काज और राजनीति दोनों सेवा कहे  जाते हैं परंतु सेवा में सैलरी तो होती नहीं है किंतु यहाँ तो सैलरी भी है सेवा भी ये है सरकारी चमत्कार !ये तो उसी तरह का झूठ हो गया जैसे हजारों करोड़ का बिजिनेस बढ़ाने वाले बाबा लोग अपने काम काज को चैरिटी बताने लगते हैं !अरे !चैरिटी में कमाई भी होती है क्या !इसी प्रकार सबसे कालाधन माँग माँग कर अपने पास करोड़ों रूपए इकठ्ठा करने के बाद कालेधन के विरुद्ध आंदोलन चलाने वाले लोग हों या अपने कारखानों में बड़ी बड़ी विदेशी मशीनें लगा कर काम धंधा करने वाले चलावें स्वदेशी आंदोलन !इतने बड़े बड़े झूठ कोई आम इंसान कैसे बोल सकता है ऐसी हिम्मत तो कोई नेता या बाबा ही कर सकता है ।
आधुनिक लोकतंत्र में जनता जनार्दन की ये दुर्दशा !
         ईमानदारी से जीना कितना कठिन हो गया है इसका अंदाजा लगाने के लिए 8 नवम्बर से 30 दिसंबर के बीच के देखे जाएँ बैंकों के अंदर के वीडियो !जिन कालेधनवालों के विरुद्ध सरकार भाषण दे रही थी उन्हीं की  सेवा में व्यस्त थी सरकारी मशीनरी !ये आम जनता के साथ मजाक नहीं तो क्या है !जनता की परेशानियों और दुर्भाग्य पूर्ण मौतों के लिए जिम्मेदार कौन !
      कालेधन का हाहाकार क्यों ?
   क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि सरकारी विभागों में जनता जनार्दन के साथ प्रिय व्यवहार हो और जिम्मेदारी पूर्वक उसका काम किया जाए !सरकारी विभागों की लापरवाही और गैर जिम्मेदारी के कारण ही तो जनता को सरकारी दुर्व्यवस्था से मुख मोड़कर प्राइवेट वालों से समझौता करना पड़ता है !सरकारी विभागों में जनता को कोई कुछ समझता नहीं है लोग एक दूसरे पर टालते रहते हैं शिकायतें !और  प्राइवेट में तुरंत दूर की जाती हैं समस्याएँ !इसीलिए तो प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कोरियर और टेलीफोन कंपनियों से जुड़कर जनता को काम चलाना पड़ता है फिर भी उन सरकारी कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए उसी जनता को  टैक्स देना पड़ता है जिनकी सेवाओं से जनता ऊभ चुकी होती है या जिनसे विश्वास उठ चुका होता है !ऐसे लोगों को भारी भरकम सैलरी देने के लिए जनता से टैक्स क्यों लिया जाए ?
    सरकारी विभागों में जनता का काम समय से कराने की गारंटी कौन लेगा !और बिना काम काज के गुजारा कैसे हो !सरकारी अनुशासन से जो काम नहीं होते उन्हें लालच देकर कराना पड़ता है !और उस लालच को पूरा करने में लगता ही कालाधन है !उस काली मंडी में चलता ही ब्लैक है ।

       संसद की कारवाही में करोड़ों रुपए जनता के खर्च होते हैं किंतु सदन में कभी भी किसी भी मुद्दे पर या बिना मुद्दे के ही छोटी सी बात की आड़ लेकर भी हंगामा किया जाने लगता है कार्यवाही रोक दी जाती है कई बार तो कई कई दिन तक नहीं चल पाती है संसद !जनता का पैसा बर्बाद होता रहता है जनता से टैक्स क्या इसके लिए वसूला जाता है !
     चुनावों में प्रत्याशियों के चयन में शिक्षा  योग्यता  अनुभव आदि को प्राथमिकता न दिए जाने के कारण जो अशिक्षित एवं अयोग्य लोग चुनाव जीत कर संसद में पहुँच जाते हैं वो संसद की चर्चा में भाग कैसे लें वहाँ की चर्चा में बोलना तो दूर समझना भी जिनके बश का न हो वो वहाँ खाली कब तक बैठे रहें !वो मोबाइल पर वीडियो देखें !घूम टहल कर समय पास करें या सोवें या फिर अपनी पार्टी के मालिक की ओर ताकते रहें जब वो इशारा करे तो हुल्लड़ मचावें,कागज़ फाड़ फाड़कर  फेंकें गैलरी में चले जाएँ ,अपशब्द प्रयोग करें ,लपटा  झपटी लड़ाई झगड़ा आदि उपद्रव न करें तो वो अपनी किस योग्यता का प्रदर्शन आखिर कैसे करें वहाँ !उनका चेहरा टीवी पर कैसे आवे !उन्हें भी चाहने वाले तो होते ही हैं चुनाव जीत कर गए हैं !किंतु अत्यंत उच्चस्तरीय गौरवपूर्ण चर्चामंच संसद के बहुमूल्य समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करने के लिए प्रत्याशियों की शिक्षा योग्यता एवं अनुभव को क्यों  नहीं दिया जाना  चाहिए महत्त्व !
       इसी प्रकार से विगत कुछ दसकों से कई स्थलों पर सरकारी नौकरियाँ देते समय शिक्षा योग्यता अनुभव आदि की उपेक्षा करके घूसखोरी से लेकर सोर्स सिफारिस के बल पर भी नौकरियाँ दी जाती रही हैं प्रायः ऐसा सभी लोग स्वीकार करते हैं ऐसी परिस्थितियों में जो अयोग्य लोग जहाँ कहीं योग्य स्थानों पर बैठाए दिए गए हैं वे अपने पदों के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं कुछ में काम करने लायक शिक्षा नहीं है कुछ काम करना नहीं चाहते कुछ थोड़ा बहुत जितना भी कर पाते हैं उसके लिए जनता के साथ अप्रिय व्यवहार करते हैं या घूस आदि की डिमांड रखते हैं यदि काम कराना है तो जनता को उन कर्मचारियों की शर्तों पर ही समझौता करना पड़ता है इसके अलावा जनता के पास सरकारी विभागों में किसी की शिकायत कोई नहीं सुनता सबकी टाँग एक दूसरे के नीचे दबी होती है उसकी खोलने से अपनी भी खुलती है इसलिए जनता के पास कोई विकल्प नहीं होते !ऐसे लोगों को जनता की खून पसीने की कमाई से सैलरी क्यों दी जाए ?
 सरकार को अपने अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना नहीं आता तो उनकी भारी भरकम सैलरी जनता पर क्यों थोपती जाती है सरकार !
     सामान्य जनता की कमाई से दो गुनी चार गुनी होती तो चल भी जाता कई कई गुनी सैलरी क्यों ?क्या आम जनता का राष्ट्र निर्माण में कोई योगदान नहीं है क्या ?
      सरकार के द्वारा इतनी अधिक सैलरी दिए जाने के बाद भी वो अक्सर अपनी माँगें मनवाने के लिए हड़ताल पर चले जाते हैं क्यों ?क्या  आम आदमी की आमदनी से उन्हें अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए !आखिर ये देश उनका नहीं है क्या ?आम जनता भी उनकी ही तरह जरूरतों से पीड़ित है यह क्यों नहीं सोचा जाना चाहिए ?
        हड़ताल करने वालों से सरकार समझौता क्यों करती है यदि वे सरकारी  सैलरी और सुविधाओं से संतुष्ट नहीं हैं तो वो भी स्वतंत्र हैं कोई और धंधा पानी देखें उन्हें घेर घेर कर क्यों रखती है सरकार !क्या अपनी कोई पोल खोले जाने से डरती है आखिर उनसे झुककर समझौता क्यों करती है सरकार ?
       कई काम तो ऐसे हैं जिनमें सरकार के एक एक कर्मचारी की सैलरी में चार चार छै छै प्राइवेट कर्मचारी रखे जा सकते हैं उनकी शार्टेज भी नहीं है उससे देश की बेरोजगारी भी घट सकती है फिर भी उन्हीं के सामने घुटने क्यों टेकती है सरकार ?
      स्कूलों को ही लें - सरकार शिक्षकों को भारी भरकम सैलरी सुविधाएँ पेंसन आदि सबकुछ देती है बच्चों को भोजन कपड़े और पैसे भी देती है विज्ञापन पर भारी भरकम धनराशि खर्च कर देती है किंतु सरकार अपने स्कूलों के शिक्षकों अधिकारियों की गैर जिम्मेदारियों के कारण प्राइमरी स्कूलों को वो सम्मान नहीं दिला पाई जो प्राइवेट स्कूलों को हासिल है क्यों ?
    प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक प्रायः ट्रेंड नहीं होते अक्सर अल्पशिक्षित होते हैं उन्हें सैलरी भी सरकारी शिक्षकों की अपेक्षा कम मिलती है पेंशन नहीं मिलती बच्चों को भोजन कपड़े और पैसे नहीं मिलते ऊपर से भारी भरकम (फीस) धनराशि भी वसूली जाती है तमाम नखरे दिखाते हैं फिर भी शिक्षित समझदार संपन्न लोग यहाँ तक कि सरकारी कर्मचारी और सरकारी शिक्षक एवं उनके अधिकारी भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाते हैं क्यों ?
       देश भक्त बंदनीय सैनिकों को छोड़कर सरकार का हर विभाग अयोग्य,गैरजिम्मेदार एवं अकर्मण्य लोगों से भरा पड़ा है जनता उनके काम काज की शैली से संतुष्ट नहीं है समय से काम लेने के लिए सोर्स सिफारिस और घूस का सहारा लेना जनता की मजबूरी है कहावत है कि "काँटे से काँटा निकलता है" "बिष बिष को मारता है" इसी प्रकार से भ्रष्टाचारियों को भ्रष्टाचार से ही जीता जा सकता है वही करने लगी है जनता !लोग कालाधन रखते हैं और देते हैं घूस !सरकारी विभागों में जनता का काम यदि समय से और जिम्मेदारी पूर्वक होने लगता तो क्यों देनी पड़ती घूस और क्यों कोई रखता कालाधन !
      सरकारी स्कूलों को पीट रहे हैं प्राइवेट स्कूल,सरकारी अस्पतालों को प्राइवेट अस्पताल,डाक सेवा को कोरियर टेलीफोन सेवाओं को प्राइवेट कंपनियाँ !पुलिस में प्राइवेट विकल्प नहीं है तो जनता भोग रही है सरकारी लापरवाहियों का फल ! आखिर इतने ईमानदार और जिम्मेदार  क्यों नहीं हैं सरकारी विभाग कि जनता सरकारी सेवाओं की ओर आकर्षित हो !जिन विभागों की सेवाओं से जनता ही असंतुष्ट होगी उनमें नियुक्त अधिकारियों कर्मचारियों को दी जाने वाली सैलरी को टैक्स से प्राप्त  हुए धन का दुरूपयोग नहीं तो क्या माना जाए !
        नोटबंदी अभियान को ही लें -
       सरकार यदि भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देना ही चाहती है तो 8 नवम्बर से तीस दिसंबर तक के बैंकों के अंदर के लगे वीडियो चेक करवाए कई बैंकों में तो समझदार कर्मचारियों ने वीडियो भी खराब कर रखे हैं फिर भी सरकारी सेवाओं का दर्पण तो सरकार के सामने आ ही जाएगा !वैसे भी सरकार का साथ यदि सरकारी कर्मचारी ही नहीं देंगे तो किसके सहारे निर्णय लेगी सरकार !सेवाएँ यदि निष्पक्ष और ईमानदार होतीं तो इससे जुड़ी मौतें घटाई भी जा सकती थीं ! जनता तो सरकार के सहारे थी सरकार अपने कर्मचारियों के और कर्मचारी कुछ लोगों पर तो बहुत मेहरबान थे किंतु कुछ लोगों से न जाने किस जन्म का बदला ले रहे थे ऐसे लोग बैंकों के अंदर के वीडियो से चिंहिंत किए जा सकते हैं और उन पर होनी चाहिए कार्यवाही !
  अधिकाँश अधिकारियों से निराश हो चुका है समाज !
      अधिकारियों की नियुक्ति क्या केवल इसलिए होती है कि वे अपनी आफिसों में सुख सुविधा पूर्ण एक कमरा रूपी मंदिर बनाकर उसमें देवता बनकर खुद बैठे रहें और उनके जूनियर लोग उनके विषय में बता बता कर उनके प्रति जनता के मन में खौफ पैदा करते रहें !इसलिए जनता उनसे अपनी समस्या बताने में डरती रहे !कुछ लोग यदि हिम्मत करके उनके पास पहुँचें भी तो जवाब वहीँ मिलें जो निचले कर्मचारियों से मिले थे जिनसे असंतुष्ट होकर वो वहाँ गए थे ऐसे में उन अधिकारियों का जनहित में उपयोग क्या है जैसे -
        किसी का टेली फोन ख़राब हो गया उसे ठीक करने के लाइन मैंन  ने कुछ पैसे माँगे उसने उसे न देकर ऊपर के अधिकारियों से संपर्क किया और अपनी समस्या बताई उन्होंने लाइन मैंन से जवाब माँगा उसने कहा सर !अंडर ग्राउंड की केबल खराब है इसलिए ठीक नहीं हो सकता है अधिकारी ने यही जवाब उपभोक्ता को दे दिया इसपर निराश हताश अपमानित उपभोक्ता सौ पचास रूपए देकर लाइन मैंन  से तुरंत तार जोड़वा लेता है और फोन चालू हो जाता है ऐसे अधिकारियों को जनता क्या माने जिनकी कीमत उनके विभाग के जूनियर लोग ही सौ पचास रूपए भर भी नहीं मानते हैं !ऐसे अनुपयोगी अधिकारियों की सैलरियों सुख सुविधाओं पर खर्च किए जाने वाले धन को जनता के द्वारा प्रदत्त टैक्स का सदुपयोग कैसे माना जाए ?
     भरकम सैलरी देने इसमें जनता का क्या दोष ! क्या इसलिए दिया जाए टैक्स ! आखिर टैक्स क्यों दिया जाए ?
    जनता को टैक्स तो देना चाहिए किंतु उस टैक्स के पैसे का सदुपयोग भी तो दिखना चाहिए !सुना जाता है कि संसद चलाने में भारी खर्च होता है किंतु सार्थक चर्चा कम और निरर्थक हुल्लड़ ज्यादा मचाया जाता है ऐसे हुल्लड़ मचाने वालों पर खर्च करने के लिए जनता क्यों दे टैक्स !इसी प्रकार से भ्रष्टाचार करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की भारी भरकम सैलरी जनता के टैक्स के पैसे से क्यों दी जाए !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना सरकार को आता नहीं है या सरकारों में बैठे लोगों को काम की जरूरत नहीं पड़ती है और वो अधिकारी कर्मचारी जनता की बात न सुनते हैं न ध्यान देते हैं ऐसे लोगों की सैलरी जनता के टैक्स के पैसों से क्यों दी जाए जो जनता को कुछ समझते ही नहीं हैं !
      हे PM साहब ! जनता को टैक्स देना ही चाहिए और कठोरता पूर्वक वसूला भी जाना चाहिए उन्हें टैक्सचोर पापी आदि सब कुछ कहा भी जाना चाहिए  काले धन के नाम पर उन्हें जितना बेइज्जत किया जा सकता हो किया जाना चाहिए !किंतु जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिए गए पैसों का सदुपयोग करना सरकार का कर्तव्य है या नहीं यदि हाँ तो क्या कर पा रही है सरकार !
      संसद की कार्यवाही पर प्रतिदिन खर्च होने वाला भारी भरकम अमाउंट जनता की गाढ़ी खून पसीने की कमाई का होता है जिसे नेता लोग संसद में हुल्लड़ मचा कर उड़ा देते हैं घंटों कार्यवाही बाधित रहती है क्यों ?कई कई दिन बीत जाते हैं ऐसे क्यों !
     संसद चर्चा का मंच है चर्चा करने सुनने वालों की शिक्षा और बौद्धिक स्तर चर्चा करने और समझने लायक होना चाहिए किंतु जो सदस्य अल्प शिक्षित हैं उनका संसद में क्या काम वो सोवें तो शिकायत बाहर  जाकर समय पास करें तो शिकायत और मोबाईल पर पिच्चर देखें तो शिकायत और हुल्लड़ करें तब तो शिकायत है ही !वो तो अपने पार्टी मालिकों का इशारा पाते ही हुल्लड़ मचाने लगते हैं उन्हें न संसद से कुछ लेना देना होता है न संसद की मर्यादाओं से वो तो बड़ी बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों की तरह अपनी पार्टी के मालिकों को ही सब कुछ समझते हैं देश समाज एवं जनता के लिए उनकी कोई निजी सोच ही नहीं होती है फिर भी सरकार उनकी सुख सुविधाओं सैलरी आदि पर जनता से टैक्स रूप में प्राप्त धन खर्च करती है क्यों ?
    देशवासियों की आखों के सामने ही टैक्स का दुरूपयोग जब साफ साफ दिखाई पड़ रहा हो तो जनता टैक्स क्यों दे ?उच्च शिक्षा ,संसदीय योग्यता चरित्र एवं सुसंस्कारों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन यदि किया जाता होता तो न इतना हुल्लड़ होता न उट  पटाँग भाषा बोली जाती और सम्मान्य सदस्यों के वैचारिक आदान प्रदान का उच्चस्तरीय स्तर भी भारतीय संसद को दुनियाँ में गौरवान्वित कर रहा होता !राजनैतिक दलों में उच्च शिक्षा ,सदाचरण एवं संसादीय गुणवत्ता की अनिवार्यता क्यों न की जाए !
     कालेधन को सफेद करने वाले अपनी बैंकों के कुछ कुकर्मचारियों के भ्रष्ट चेहरे सरकार भी देखे !बैंकों के आगे लगने वाली लंबी लंबी लाइनों का सच क्या था लाइनें आगे क्यों नहीं बढ़ती थीं इसकी सच्चाई भी सरकार को मिलेगी उसी वीडियो में !
   नेताओं के कालेधन को भी निकालने की हिम्मत क्या कर पाएगी सरकार !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की भी संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए !जितनी संपत्ति उनके पास आज है वो उनको मिलने वाली सैलरी से बनाई जा सकती थी क्या ?

Saturday, 10 December 2016

प्रधानमंत्री जी ! जनता आपके भाषणों पर भरोसा करे या आपके बैंक कर्मचारियों के आचरण पर ?

बैंकों में लगे सीसीटीवी फुटेज खँगाले जाएँ दिख  जाएँगे बैंक वाले भ्रष्टाचारियों के चेहरे !जिनकी कृपा से काले धन वालों के कालेधन को सफेद किया जाता रहा है !
    सरकार अपने कर्मचारियों को सुधार ले तो न होंगे अपराध और न होगा भ्रष्टाचार !बैंकों में दो दो चार चार हजार वाले दिन दिन भर लाइनों में खड़े रखे गए और करोड़ों रूपए का काला धन सफेद किया जाता रहा !आखिर लोगों के यहाँ से निकलने वाली करोड़ों रूपए की नए नोटों की गड्डियाँ किसी न किसी सरकारी कर्मचारी की सरकार के साथ की गई गद्दारी की कहानी बयाँ करती हैं !ऐसे गद्दारों पर कठोर कार्यवाही किए बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकार के द्वारा की गई बड़ी से बड़ी कार्यवाही न केवल बेकार होगी अपितु सरकार की ही फजीहत कराएगी ।ईमानदार अधिकारियों कर्मचारियों का  चाहिए किंतु भ्रष्टाचारियों पर जरूर कसी जानी चाहिए नकेल !
बैंक कर्मचारियों से हुई है बड़ी लापरवाही !
      सरकार के आह्वान पर बलिदान केवल जनता दे बैंक कर्मचारी क्या लंच भी नहीं छोड़ सकते आखिर ये तो घर से नास्ता करके निकलते थे !
    आधी आधी रात से लाइनों में खड़े भूखे प्यासे लोगों दिखा दिखा कर लंच करते रहे बैंक वाले उन्हें देख देख कर ललचाते और मरते रहे लाइनों में खड़े भूखे प्यासे लोग !विशेष परिस्थिति में आदर्श व्यवहार करना बैंक  कर्मचारियों का दायित्व नहीं होना चाहिए था क्या ?सरकार सारे बलिदान की अपेक्षा केवल जनता से ही क्यों करती है और जिन्हें सैलरी देती है वे तो सरकार के अपने परिवार के अंग हैं आखिर उनमें नैतिकता क्यों नहीं हों चाहिए थी ?
     जनता देश के मुखिया के आह्वान पर बलिदान देने को तैयार हो गई ये चेतना सरकारी कर्मचारियों में क्यों नहीं आई !जनता में से इतने लोग मरे किंतु बैंक कर्मचारियों में से तो किसी को जुकाम भी नहीं हुआ !क्यों ?क्या जनता इतनी कमजोर थी या  बैंक कर्मचारी लापरवाह और संवेदना विहीन निकले !
   मोदी जी ! बैंकों में लगे कैमरों की जाँच हो !काले धन को सफेद करने वाले दोषियों के खिलाफ की जाए कठोर कार्यवाही ! जो बैंकों की लाइनों में खड़े होने के कारण मरे हैं !नेताओं की तरह ही जनता की मौत को भी मौत माना जाए उनके भी परिजन होते हैं उनकी भी पीड़ा को समझे सरकार !
        हे प्रधानमंत्री जी ! कालेधन के विरुद्ध युद्ध के लिए जनता को ललकार रहे थे आप !उधर काले धन को सफेद करते रहे बैंक कर्मचारी !
    आखिर काले धन वालों का सैकड़ों करोड़ सफेद कैसे हुआ !जगह जगह नोटों का जखीरा मिल रहा है कैसे?क्या इसके लिए केवल कालेधन वाले दोषी हैं ?महोदय !नीति के अनुसार -'अपराधियों को अभयदान या सहयोग देने वाला अपराधी की अपेक्षा कई गुना अधिक दोषी माना जाता है'!सभी प्रकार के अपराधों में ये भूमिका अक्सर निभाते देखी जाती है सरकारी मशीनरी !
  महोदय!जिस अपराध को पकड़ने के लिए आप जनसभाओं में ललकार रहे थे उस अपराध के आका आपके ही अपने घरों अर्थात सरकारी विभागों में छिपे बैठे रहे !जो सरकार से सैलरी लेते रहे हैं और भ्रष्टाचारियों की मदद करते रहे हैं उन आस्तीन के सर्पों को सरकारी विभागों से बाहर किए बिना भ्रष्टाचार विरोधी किसी भी अभियान से कोई अर्थ नहीं निकलेगा !केवल जनता तंग होती रहेगी !इसलिए पहले उन्हें क्यों न पकड़ा जाए जो अपराधों के साक्षात जन्मदाता  हैं । इसके लिए बैंकों के कैमरे चेक किए जाएँ और दोषियों पर कार्यवाही की जाए !लाइनों में खड़े लोगों की हुई मौतों के लिए भी बैंक के भ्रष्ट कर्मियों को ही दोषी माना जाए !
   महोदय!जिस घर का मुखिया अपने घर की कमजोरियों का दोष दूसरों पर मढ़ता है और अपना घर नहीं सँभाल पाता है उसकी वही दुर्दशा होती है जिसे आज आपको झेलना पड़ रहा है मुझे भय है कि भ्रष्टाचार विरोधी आपके इस महान अभियान को  कुछ गद्दार कर्मचारियों के कारण कहीं बीच में ही न दम तोड़नी पड़े और आपको अपने कदम पीछे करने के लिए आपको मजबूर न होना पड़े !यदि दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ तो भ्रष्टचार विरोधी अभियान में बलिदान हुए उन लोगों को जवाब कैसे दिया जाएगा जिनकी संख्या 80 से अधिक पहुँच चुकी है ।
   मान्यवर !जनता में से दो दो चार चार हजार की जरूरी जरूरतों वाले लोग बैंकों की लाइनों में खड़े मरते रहे !किसी को खाना नहीं मिला किसी को दवाई नहीं मिली और तो और कफन के कपड़े के लिए तरसते चले गए कुछ लोग जो आपके द्वारा किए जाने वाले विकास को अब कभी नहीं देखने आ पाएँगे !आखिर उनका दोषी किसे माना जाए !
    कालेधन वालों की मोदी जी बुराई करते रहे और बैंक कर्मचारी उनका काले से सफेद करते रहे उनकी सेवा करते रहे जिनके विरुद्ध मोदी जी भाषण  दे रहे थे !
   कालेधन पर लगाम लगाने के लिए प्रधानमंत्री जी भाषण कर रहे थे उधर बैंक वाले काले धन वालों की मदद कर रहे थे !सरकार से सैलरी लेने वाले जो कर्मचारी सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की न केवल हवा निकालते रहे अपितु सरकार की बेइज्जती कराने के लिए जिम्मेदार हैं वो !जितने कैस में सैकड़ों गरीबों ग्रामीणों मजदूरों और मध्यम वर्ग के लाइनों में लगे लोगों की जरूरतें पूरी की जा सकती थीं वो कैस उन लोगों के यहाँ पहुँचा दिया गया जो बैंक झाँकने भी नहीं आए !उनके गोदामों में सौ करोड़ की जगह अस्सी करोड़ घर बैठे आ गया !
   कालेधन को सफेद करने वाले अपनी बैंकों के कुछ कुकर्मचारियों के भ्रष्ट चेहरे सरकार भी देखे !बैंकों के आगे लगने वाली लंबी लंबी लाइनों का सच क्या था लाइनें आगे क्यों नहीं बढ़ती थीं इसकी सच्चाई भी सरकार को मिलेगी बैंकों के अंदर लगे कैमरों में !

     नेताओं के कालेधन को भी निकालने की हिम्मत क्या कर पाएगी सरकार !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की भी संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए !जितनी संपत्ति उनके पास आज है वो उनको मिलने वाली सैलरी से बनाई जा सकती थी क्या ?
     जनता को टैक्स तो देना चाहिए किंतु उस टैक्स के पैसे का सदुपयोग भी तो दिखना चाहिए !सुना जाता है कि संसद चलाने में भारी खर्च होता है किंतु सार्थक चर्चा कम और निरर्थक हुल्लड़ ज्यादा मचाया जाता है ऐसे हुल्लड़ मचाने वालों पर खर्च करने के लिए जनता क्यों दे टैक्स !इसी प्रकार से भ्रष्टाचार करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की भारी भरकम सैलरी जनता के टैक्स के पैसे से क्यों दी जाए !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना सरकार को आता नहीं है या सरकारों में बैठे लोगों को काम की जरूरत नहीं पड़ती है और वो अधिकारी कर्मचारी जनता की बात न सुनते हैं न ध्यान देते हैं ऐसे लोगों की सैलरी जनता के टैक्स के पैसों से क्यों दी जाए जो जनता को कुछ समझते ही नहीं हैं !
      हे PM साहब ! जनता को टैक्स देना ही चाहिए और कठोरता पूर्वक वसूला भी जाना चाहिए उन्हें टैक्सचोर पापी आदि सब कुछ कहा भी जाना चाहिए  काले धन के नाम पर उन्हें जितना बेइज्जत किया जा सकता हो किया जाना चाहिए !किंतु जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिए गए पैसों का सदुपयोग करना सरकार का कर्तव्य है या नहीं यदि हाँ तो क्या कर पा रही है सरकार !
      संसद की कार्यवाही पर प्रतिदिन खर्च होने वाला भारी भरकम अमाउंट जनता की गाढ़ी खून पसीने की कमाई का होता है जिसे नेता लोग संसद में हुल्लड़ मचा कर उड़ा देते हैं घंटों कार्यवाही बाधित रहती है क्यों ?कई कई दिन बीत जाते हैं ऐसे क्यों !
     संसद चर्चा का मंच है चर्चा करने सुनने वालों की शिक्षा और बौद्धिक स्तर चर्चा करने और समझने लायक होना चाहिए किंतु जो सदस्य अल्प शिक्षित हैं उनका संसद में क्या काम वो सोवें तो शिकायत बाहर  जाकर समय पास करें तो शिकायत और मोबाईल पर पिच्चर देखें तो शिकायत और हुल्लड़ करें तब तो शिकायत है ही !वो तो अपने पार्टी मालिकों का इशारा पाते ही हुल्लड़ मचाने लगते हैं उन्हें न संसद से कुछ लेना देना होता है न संसद की मर्यादाओं से वो तो बड़ी बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों की तरह अपनी पार्टी के मालिकों को ही सब कुछ समझते हैं देश समाज एवं जनता के लिए उनकी कोई निजी सोच ही नहीं होती है फिर भी सरकार उनकी सुख सुविधाओं सैलरी आदि पर जनता से टैक्स रूप में प्राप्त धन खर्च करती है क्यों ? 
    देशवासियों की आखों के सामने ही टैक्स का दुरूपयोग जब साफ साफ दिखाई पड़ रहा हो तो जनता टैक्स क्यों दे ?उच्च शिक्षा ,संसदीय योग्यता चरित्र एवं सुसंस्कारों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन यदि किया जाता होता तो न इतना हुल्लड़ होता न उट  पटाँग भाषा बोली जाती और सम्मान्य सदस्यों के वैचारिक आदान प्रदान का उच्चस्तरीय स्तर भी भारतीय संसद को दुनियाँ में गौरवान्वित कर रहा होता !राजनैतिक दलों में उच्च शिक्षा ,सदाचरण एवं संसादीय गुणवत्ता की अनिवार्यता क्यों न की जाए !
      दूसरा जनता के टैक्स का पैसा सरकार उन सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी सुविधाओं आदि पर खर्च करती है जिन पर काम की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है फिर भी सैलरी भारी भारी होती हैं ऊपर से सरकार समय समय पर बढ़ाए जा रही होती है क्यों ?सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण पिछले कुछ दसकों से सरकारी नौकरियाँ पाने के लिए लोग सोर्स और घूस के बल पर घुस जाते रहे हैं नौकरियों में उन अयोग्य लोगों को योग पदों पर बैठा देने के दुष्परिणाम जनता भोग रही है वे या  करते नहीं हैं या कर नहीं पाते हैं या घूस लेकर करते हैं !सरकारी स्कूल अस्पताल डाक एवं दूर संचार व्यवस्था आदि तो लापरवाही के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं इनकी कार्यशैली जनता का हृदय नहीं जीत सकी । शिक्षक,चिकित्सक,डाककर्मी या टेलीफोन विभाग से जुड़े लोगों की प्राइवेट वालों से कई कई गुना अधिक सैलरी और उनसे कमजोर काम !जबकि उनसे कम सैलरी पर रखे गए लोगों ने प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कोरियरों मोबाइल कंपनियों के माध्यम से जनता का विश्वास जीत रखा है !तभी तो देशवासी सरकारी की अपेक्षा प्राइवेट सेवाओं पर ज्यादा भरोसा करते हैं । जबकि प्राइवेट वालों की सैलरी इतनी कम होती है कि सरकारी एक कर्मचारी की सैलरी में प्राइवेट दो तीन चार लोग आसानी से निपटाए जा सकते हैं !वो लोग अलभ्य नहीं हैं फिर भी सरकार उन सस्ते लोगों को न रखकर महँगे लोग रखती है क्यों ?उनकी सैलरी बढ़ाती रहती है क्यों ? इसे टैक्स से प्राप्त पैसे का सदुपयोग कैसे मान लिया जाए ! सरकार के कई विभागों में तो  कुछ लोग बिनाघूस लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाते हैं उनसे समय पर काम कराने के लिए व्यापारियों को रखना पड़ता है कालाधन !
    प्रधानमन्त्री जी ! अधिक नहीं आप केवल 8-30 नवंबर के बीच के किसी भी बैंक के अंदर के वीडियो देख लीजिए !PM साहब !सब कुछ पता चल जाएगा आपको कि नोटबंदी में लाइनें इतनी लंबी क्यों हुईं और सरकारी इंतजामों की भद्द क्यों और किसने पिटवाई !महोदय ! भ्रष्टाचार का जन्म ही सरकार के  भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की कोख से हुआ है ! सोर्स और घूस देकर जिन्हें नौकरियाँ मिली हों उनसे योग्यता  और आदर्श आचरणों की अपेक्षा भी कैसे की जाए !ऐसे लोगों को जब नौकरियाँ मिली थीं तब उनके पास कुछ ख़ास नहीं था किंतु आज कई के पास तो करोड़ों अरबों का अम्बार लगा है कई कई मकान हैं उनकी संपत्तियों का उनकी सैलरी या घोषित आय स्रोतों से कहीं कोई मेल नहीं खाता !क्या ऐसे भ्रष्ट और अयोग्य अपने कर्मचारियों की संपत्तियों की जाँच भी करेगी सरकार !
       जो नेता जब से पहला चुनाव जीता था तब उसके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है ! जाँच के दायरे में चल अचल सारी  संपत्तियाँ लाई जाएँ !और इस बीच के उनके आय स्रोतों की भी जाँच हो !अक्सर नेता लोग सामान्य परिवारों से आते हैं चुनाव जीतते ही बिना कुछ किए धरे ही सारे राज सुख भोगते भोगते करोड़ों अरबों पति बन जाते हैं दो चार मकान तो निगमपार्षदों के कब और कैसे बन जाते हैं उन्हें पता ही नहीं लगता !राजनीति शुरू करते समय प्रायः नेताओं के पास व्यापार करने के लिए न पैसा होता है और न समय फिर भी करोड़ों अरबों की कमाई कर लेते हैं आखिर कैसे ?वो भी ईमानदारी पूर्वक !ऐसा कैसे संभव हो पाता है जाँच इसकी भी हो और जनता के सामने लाई जाए सच्चाई !
       सरकारी जमीनों पर कब्जा करवाने वाले यही सरकारी अधिकारी और कर्मचारी होते हैं कुछ तो अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं कुछ घूस लेकर शांत हो जाते हैं उनकी आँखों के सामने सरकारी जमीनों पर बनाकर खड़ी कर दी जाती हैं बिल्डिंगें !ऐसे अवैध कब्जों के लिए सरकार उन्हें जिम्मेदार मानकर उन पर कार्यवाही क्यों नहीं करती है ! ऐसे सभी प्रकार के अपराध जिन अधिकारियों कर्मचारियों के तत्वावधान में घटित होते हैं उन्हें ही जिम्मेदार मानकर की जानी चाहिए कार्यवाही । 
      भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी सुधरेंगे क्यों और सरकारें उन्हें सुधारेंगी क्यों ?और सुधारने ही थे तो पहले ही बिगाड़े क्यों गए आखिर वो अपने आप तो नहीं बिगड़ गए उनके बिगड़ने से भी किसी का तो भला होता ही रहा होगा अन्यथा वो तभी सुधार लिए जाते !लापरवाही गैर जिम्मेदारी जैसे दुर्गुण ही तो सरकारी नौकरियों की मस्ती और मनोरंजन हैं इसी से तो लोग इनके प्रति आकर्षित होते हैं !इनके स्वभावों में व्याप्त भ्रष्टाचार या तो इन्हें काम नहीं करने देता है या फिर ये सोचते हैं कि काम करके हम एहसान कर रहे हैं या फिर घूस लेते हैं ।       ये जो काम करने के लिए रखे गए हैं उसकी जिम्मेदारी का एहसास कराने में नाकाम रही है सरकार !सरकारों में सम्मिलित लोग इनसे कमाई करवाते रहे बदले में इनकी सैलरी बढ़ा देते रहे इस तुष्टीकरण के कारण ही आम आदमी की आमदनी से दसों बीसों गुणा बढ़ा दी गईं इनकी सैलरियाँ !अभी भी गरीबों की परवाह किए बिना इनकी बढ़ा दी जाती हैं सैलरियाँ !अन्यथा ये हड़ताल पर चले जाते हैं !
    सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने का मतलब होता है कि सरकार में सम्मिलित मंत्रियों के द्वारा इनसे भ्रष्टाचार पूर्वक करवाई गई अंधाधुंध वसूली की पोल खोल देने की धमकी !
   इनसे झुक कर भ्रष्ट सरकारें इनके सामने घुटने टेक देती हैं इनकी माँगे मान लेती हैं इनसे सौदा पटाकर समझौता कर लेती हैं किंतु ईमानदार प्रशासक अपने निर्णय पर अडिग रहते हैं और इनसे सीधे कह देते हैं कि प्राप्त सुविधाओं से  संतुष्ट  हो तो नौकरी करो अन्यथा जगह खाली करो !ईमानदार लोगों को भय किस बात का !


 

जवान आदमी यदि कुँआरा रह जाए तो इतना खतरनाक हो जाता है .....! क्या इसीलिए अक्सर आने लगे हैं भूकंप !

मैं 'बोलूंगा तो भूकंप आ जाएगा: कुँआरा गाँधी ' !
      भूकंप हे गाँधीब्रह्मचारी जी !आपका भूकंप सहने को तैयार हैं लोग !आप बोलिए तो !सब चाहते हैं की आप अपना भूकंप अकेले समेंटे न घूमें !क्योंकि अब आपका भूकंप आपसे सँभल नहीं रहा है !अब जनता आपकी मदद करेगी और संभालेगी आपका भूकंप !इसलिए आप बोलिए बिलकुल बोलिए  !धमकाइए मत !धमकाने से लगता है कि आप मोदी सरकार को पटाने का प्रयास कर रहे हैं !अन्यथा आप मोदी जी के कान में ही कहने को क्यों तैयार हैं !आप देश के सामने रखें अपना भूकंप !मीडिया वाले आपके भूकंप की कवरेज करने को तैयार हैं जनता मनोरंजन के लिए तैयार है फिर इन्तजार किस बात का !हे गाँधीकुल भूषण ! बोलिए !बोलिए !हिम्मत कीजिए !डरिए मत !कहीं भूलोगे तो जनता बता देगी !जनता को पता होता है कि कौन नेता किस समय किस प्रकरण में क्या बोलेगा !जनता को ये भी पता है कि नोट बंदी के विषय में आप क्या बोलेंगे !जनता को ये भी पता  कि मोदी जी ने जिन्हें तंग किया है वो गालियाँ नहीं देंगे तो मोदी जी की आरती उतरेंगे क्या ?सोचने वाली बात है ब्लैक बोरे जिस किसी के भी अभी तक सफेद नहीं हुए होंगे आज 10 दिसंबर हो गया है क्रोध तो आएगा ही !

Friday, 9 December 2016

काँग्रेस यदि नोटबंदी करती तो न लगतीं लाइनें न घटता कैस ! जातियों संप्रदायों के हिसाब से दिए जाते नोट !

    काँग्रेसी सरकारों ने हमेंशा गंजों को कंघे और अंधों को दर्पण(मिरर) बाँटे हैं लेकिन वो गंजे और वो अंधे ये कभी समझ नहीं पाए कि काँग्रेसी सरकार उनकी इतनी हमदर्द है क्यों ?और इस हमदर्दी का लाभ उठा कौन रहा है ?
    दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों के प्रति दिखाई जा रही हमदर्दी से केवल नेता रईस होते जा रहे हैं दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों के नाम  पर तो केवल छूट दी जाती है किंतु उसका फायदा तो वे नेता ही उठालेते हैंजो छूट देते हैं तभी तो नेता रईस होते चले गए और दलित पिछडो से अभी भी आरक्षण मँगवाए जा रहे हैं किंतु उसका लाभ उन्हें कभी नहीं मिला !यदि मिलता तो आजादी के इतने दिन बाद भी क्या कुछ सुधार नहीं होना चाहिए था !
     काँग्रेस की सरकार होती तो नोटबंदी जैसे बड़े प्रयास को भी दलितों अल्पसंख्यकों की आरक्षणी फैक्ट्री में डालकर इतना अधिक उलझा दिया गया होता और इसी बीच नेताओं के द्वारा अपने बोरे बदल लिए जाते ! 
      काँग्रेस की सरकार होती तो जातियों और संप्रदायों के हिसाब से कैस निकालने और जमा करने की छूट दी जाती !ब्राह्मण क्षत्रिय बनियों की कसी जाती लगाम !इन्हें  दो दो हजार लेन  देन  की छूट दी जाती !जबकि दलितों ,अल्पसंख्यकों से कहती तुम जितना चाहो उतना कैस जमा करो निकालो  या बदलो उन्हें पूरी छूट होती। देश के संसाधनों पर पहला अधिकार तुम्हारा है !जैसे आरक्षण देने के बाद भी सीटें खाली जाती ही हैं वैसे ही दलितों और अल्प संख्यकों के नाम पर बैंकों के काउंटर खाली पड़े होते !और ब्राह्मण आदि सवर्णों को घुसने नहीं दिया जाता तो न लाइनें होतीं न भीड़ होती न कैस घटता !
    उन्होंने यहाँ भी ब्राह्मण आदि सवर्णों को सबसे पीछे धकेल रखा होता !सवर्णों को अभी तक देखने को न मिला होता दो हजार का नोट !    
       ये ऐसे लागू करते कि सबसे पहले कैस अल्प  संख्यकों को मिलेगा !दूसरा कहता कि दलितों को मिलेगा तीसरा बोलता कि पिछड़ों को मिलेगा चौथा कहता कि महिलाओं को मिलेगा किंतु ब्राह्मणों और सवर्णों को कब मिलेगा !ये पूछने की कोई हिम्मत भी नहीं करता !तब तक अपने कालेधन के बोरे बदल लेते ये नेता लोग ! बेचारों को आज काली पट्टियाँ बाँधे नहीं  घूमना पड़ता आज !मोदी सरकार के विरुद्ध हाहाकार इसीलिए मचाते फिर रहे हैं ये बेरोजगार नेता  लोग क्योंकि इस सरकार ने इस अभियान में सवर्णों को बराबरी का हक़ दे कैसे दिया !
     ये सरकार ईमानदार है तो काले धन वाले नेताओं पर भी की जाए कठोर कार्यवाही !ये बात सबको पता है कि अपना अपना कालाधन सफेद करवाने के लिए काली पट्टियाँ बाँधे घूम रहे हैं कालेधन को पसंद करने वाले नेता लोग!इसमें जनता की हमदर्दी नहीं अपितु सबके अपने अपने स्वार्थ हैं !
     सरकार पर दबाव केवल इसलिए बनाया जा रहा है ताकि उनका कालाधन बचा लिया जाए यदि सरकार झुकी तो सरकार पक्षपाती और नेताओं की भी चल अचल संपत्तियों की जाँच करवाकर ब्यौरा जनता के सामने रखा गया तो ईमानदार सरकार !
        काले धन का समर्थन करने वाले नेताओं की संचित संपत्तियों की जाँच करावे सरकार कि जब  नेता जी राजनीति में आए थे तब उन लोगों के पास क्या था अर्थात कितने मकान दूकान खेत खलिहान फैक्ट्री बैंक बैलेंस आदि तब थे और आज कितने हैं ये तो सारा विवरण सरकारी कागजों में उपलब्ध होगा !फिर सार्वजनिक क्यों न किया जाए !साथ ही ये भी पता लगाया जाए कि राजनीति में आने के बाद इन नेताओं के आय के स्रोत क्या क्या थे इन्होंने नौकरी की या व्यापार किया यदि किया तो कब किया इनके पास इतना समय और इतना धन कहाँ था !प्रायः सामान्य परिवारों में अवतरित होने वाले नेताओं के पास अचानक करोड़ों अरबों के अम्बार कैसे लग जाते हैं इन सभी बातों की न केवल जाँच हो अपितु सबकुछ सार्वजनिक भी किया जाए !
   काली पट्टियाँ बाँधने वालों को नोटबंदी से इसीलिए तो लग रही हैं टट्टियाँ !कि उन्हें नोटबंदी जैसे बड़े अभियान को अल्पसंख्यकों दलितों पिछड़ों आदि की चासनी में डुबोने का मौका नहीं मिला !आज वो जनता की हमदर्दी के लिए नोटबंदी का विरोध कर रहे हैं या अपने काले बोरे  सफेद करने के लिए ? 
     ब्राह्मणों सवर्णों के विषय में कोई पूछता तो ये लोग लोग कह देते कि तुमने अल्पसंख्यकों और दलितों का शोषण किया था इसलिए भोगो ! 
    इन बेशर्मों ने हिंदुओं ब्राह्मणों सवर्णों पर शोषण के झूठे आरोप लगा लगाकर हमेंशा सताया है अपमानित किया है और सजा दी है !यहाँ तक कि सफाई देने का भी मौका नहीं दिया और सजा सुना दी !हिंदुओं और सवर्णों के साथ हमेंशा सौतेला व्यवहार करते रहे हैं वो !जो आज काली पट्टियाँ बाँधे घूम रहे हैं उन्हें आखिर आज क्यों लग रही हैं लग रही हैं टट्टियाँ !केवल इसीलिए न कि उन्हें नोटबंदी जैसे बड़े अभियान को अल्पसंख्यकों दलितों पिछड़ों आदि की चासनी में डुबोने का मौका नहीं दिया गया !आज वो जनता की हमदर्दी के लिए नोटबंदी का विरोध कर रहे हैं या अपने काले बोरे  सफेद करने के लिए ? जनता से यदि इतनी ही हमदर्दी थी तो नसबंदी और आपात काल जैसे अपने दुष्कर्मों को भूल गए क्या ?
    मोदी सरकार ने स्वतन्त्र भारत के इतिहास में ब्राह्मण आदि सवर्णों को पहली बार दिया है बराबरी का हक़ !नोटबंदी अभियान में सभी जातियों और सभी सम्प्रदायों के साथ किया है बराबरी का व्यवहार !
     देश वासियों ने ऐसे ऐसे खूसट प्रधानमन्त्री देखे  हैं जो कहा करते थे कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अमुक जाति या अमुक संप्रदाय वालों का है !देश के शासकों की जबान से ऐसे गंदे शब्द भी सुने और सहे हैं देश वासियों ने दूसरी जाति और सम्प्रदाय वाले लोग अपना मन मसोस कर रह जाते थे!"एक खाए दूसरा देखे"कुछ जातियों और कुछ सम्प्रदायों के साथ इतना घटिहा व्यवहार किया करते थे पापी !मोदी सरकार में सबसे बड़ा संतोष इस बात का है कि जो होगा वो सबके साथ होगा !अन्यथा राजनैतिक राक्षसों ने सभी सुविधाओं और सभी कानूनों में जातियाँ सम्प्रदाय घुसा रखे थे ! 
        आजकल संसद रोकने वालों के बीत रहे हैं कालेदिन !काले को सफेद करवाने की जुगत भिड़ा रहे हैं विपक्षी नेतालोग !कालेधन पर की गई कार्यवाही कसक रही है कालेधन वाले नेताओं को !
     यही योजना यदि भ्रष्टाचारी नेताओं की सरकारों में बनाई गई होती तो इन्होंने इसे जाति  और धर्म   अधिक उलझा  दिया होता कि जनता उसी में भ्रमित हो जाती और उसी गैप में काले नेताओं ने अपने अपने काले बोरे सफेद कर लिए होते !   
    भ्रष्टाचार पर प्रहार करने में पक्षपात न करे सरकार !
 भ्रष्ट बाबाओं और भ्रष्ट नेताओं का पैसा गरीबों में बाँट दिया जाए वो सारा कालाधन ही तो है !
       भ्रष्ट बाबाओं  और भ्रष्ट नेताओं के काले धन पर भी हो कार्यवाही ये कुछ वर्षों में ही हजारों करोड़ के मालिक कैसे बन जाते हैं जनता को बरगलाकर या झूठे सपने दिखाकर या झूठे विज्ञापन दिखा दिखाकर  समाज से ऐंठा गया पैसा होता है जो अपने परिश्रम से कमाया हुआ न होकर अपितु छल प्रपंच पूर्वक संग्रह किए जाने के कारण ये संपूर्ण पैसा ही कालेधन की श्रेणी में आता है !,सरकारी कर्मचारियों एवं भूमाफियाओं के कालेधन पर भी की जाए कार्यवाही ?   
     गंगानदी  भगवान के चरणों से निकलती है और भ्रष्टाचार की नदी भ्रष्टनेताओं, भ्रष्टअधिकारियों एवं भ्रष्टबाबाओं तथा भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !इसीलिए इनकी संपत्तियों एवं आयस्रोतों की जाँच के बिना भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए की गई सारी कसरतें बेकार हैं ।see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/11/1000-500.html
 भ्रष्ट सरकारी कुकर्मचारियों ने ऐसे लूटा है देश !
   इनकी भी संपत्तियों की जाँच की जाए और मांगे जाएँ इनसे भी सम्पतियों के स्रोतों के प्रमाण !सरकारी कर्मचारियों को जिस दिन नौकरी मिली थी तब से आज तक की उनकी चल अचल संपत्तियों की जाँच की जाए उनका मिलान उनकी सैलरी से किया जाए जिनका मिलान न हो सके उनसे पूछे जाएँ आय स्रोत बता पावें तो ठीक न बता पावें तो उनकी संपत्तियों को भी घोषित किया जाए सरकारी संपत्ति !कार्यवाही हो तो सब पर हो ! 
मध्य प्रदेश के लोकायुक्त पुलिस की छापेमारी में पीडब्ल्यूडी अफसर की बेहिसाब संपत्ति का खुलासा !
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बैंककर्मियों के भ्रष्टाचार को भी पकड़े  सरकार !जाँच हो तो सबकी हो !  बैंककर्मियों के भ्रष्टाचार को पकड़ने का ऐसा मौका दोबारा फिर कभी नहीं मिलेगा जितना अभी है सरकार यदि वास्तव में भ्रष्टाचार मिटाना ही चाहती है तो नोटबंदी के समय के बैंकों के अंदर के वीडियो खँगाले जाएँ और लापरवाह एवं भ्रष्ट लोगों पर लिया जाए शक्त निर्णय !इधर सरकार काले धन वालों के विरुद्ध भाषण देती रही उधर बैंक कर्मी काले धन वालों को उपलब्ध करते रहे सफेद करने की सुविधाएं -जनता बेचारी लाइनों में खड़ी भोगती रही सरकार की बातों पर भरोसा करने का फल !seemore.... http://sahjchintan.blogspot.in/2016/12/blog-post.html

 बाबाओं की संपत्तियों का सच भी तो जनता के सामने लाया जाए !
      बंधुओ ! दस पंद्रह बीस वर्षों में न्याय और नैतिकता पूर्वक हजारों करोड़ कैसे कमाए जा सकते हैं वो भी कोई निर्धन बाबा ऐसा कैसे कर सकता है और यदि उसके लिए ऐसा कर पाना वास्तव में संभव है तो गरीबों को भी ऐसी ही बाबा गिरी की ट्रेनिंग क्यों न दिलाई जाए और बिना पैसे लगाए ही हजारों करोड़ का व्यापारी उन्हें भी बना दिया जाए !जिसे व्यापार करना हो वो व्यापार करे किंतु व्यापार करने हेतु फंड जुटाने के लिए साधू संतों जैसी वेषभूषा बनाकर धार्मिक भावुक लोगों से पहले फंड जुटाया जाए और खुद पूंजीपति बन जाए ये धोखा धड़ी नहीं तो क्या है !जिनसे कालाधन माँग माँग कर खुद को तो पवित्र पूँजीपति सिद्ध कर लिया जाए और उन्हें कालाधन वाला बताकर उनके विरुद्ध आंदोलन चलाया जाए ये "चोर मचावे शोर" नहीं तो और क्या है !वैसे भी जो एक गिलास गाय का दूध पीकर रह लेता होगा वह सरकारी नेताओं के यहाँ चमचागिरी करता क्यों घूमेंगा !दूसरी बात जो स्वदेशी सामानों का इतना ही बड़ा समर्थक होगा वो खुद विदेशी मशीनों से दवाइयाँ क्यों बनाएगा !तीसरी बात जिसे भारत पर इतना ही स्वाभिमान होगा वो  विदेशों में मारा  मारा  क्यों फिरेगा !चौही बात संन्यास लेने का मतलब सब कुछ छोड़ना होता है सबकुछ छोड़ने की घोषणा करने वाले पर लोग भरोसा करने लगते हैं और उसे बहुत कुछ दे देते हैं किंतु उसे वो यदि गृहस्थों की तरह भोगने लगता है जैसे कोई ब्रह्मचर्य की घोषणा करके लड़कियों के हॉस्टल में रहने लगे और अपनी घोषणा के विरुद्ध आचरण करने लगे इसे धोखाधड़ी नहीं तो क्या कहेंगे !ऐसे अविश्वसनीय लोगों की भारी भरकम संपत्तियों के स्रोतों पर संशय होना स्वाभाविक है आखिर उनकी पवित्रता की जाँच क्यों नहीं कराई जानी चाहिए !see more ....http://samayvigyan.blogspot.in/2016/11/blog-post_28.html
टैक्स लेती है सरकार !भ्रष्टाचार के लिए भी वही जिम्मेदार ! "जो सैलरी लें वही घूस माँगें" ये हिम्मत !  ये सरकारी लापरवाहियों के कारण ही तो हो पाता है तभी तो  सरकार और सरकारी कर्मचारियों ने फैला रखा है भ्रष्टाचार !इसमें आम जनता का क्या दोष !सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती  अस्पतालों में दवाई नहीं होती डाक खाने में सुनवाई नहीं होती टेलीफोन विभाग में समय से ध्यान नहीं दिया जाता तभी तो जनता प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कैरियरों और टेलीफ़ोन कंपनियों में चक्कर लगाया करती है सरकारी लोग भी सैलरी सरकारी और सेवाएँ प्राइवेट की ही लेना पसंद करे हैं क्यों ?सरकारी सेवाएँ विश्वास करने लायक हैं  ही नहीं फिर भी ग़रीबों ग्रामीणों मजदूरों को सरकारी सेवाएँ प्रदान करने के लिए फार्मिलिटी अदा करती जा रही है सरकार !इसे धोखा धड़ी नहीं तो क्या कहा जाए !सरकार को चाहिए कि नोटबंदी की तरह ही एक एक विभाग के कर्मचारियों को एक रात में सेवा मुक्त कर दे और दो दिन बाद  नवयुक्तियों के लिए खुली परीक्षा करा दे जिसमें शिक्षित हर कोई बैठ सकता हो और परीक्षाएँ जो पास कर ले सो सेवाएँ दे जो फेल हो सो घर बैठे !सोर्स और भ्रष्टाचार के बलपर हुई नियुक्तियों के गलत निर्णयों को सुधारा आखिर कैसे जाए ! सरकारी विभागों से जनता को निराश कर रखा है इस भरोसे को वापस लाने में दशकों लग जाएँगे !see more.... http://sahjchintan.blogspot.in/2016/12/blog-post_3.html

Sunday, 4 December 2016

भ्रष्टाचार पर प्रहार करने में पक्षपात न करे सरकार !

 भ्रष्ट बाबाओं और भ्रष्ट नेताओं का पैसा गरीबों में बाँट दिया जाए वो सारा कालाधन ही तो है !
       भ्रष्ट बाबाओं  और भ्रष्ट नेताओं के काले धन पर भी हो कार्यवाही ये कुछ वर्षों में ही हजारों करोड़ के मालिक कैसे बन जाते हैं जनता को बरगलाकर या झूठे सपने दिखाकर या झूठे विज्ञापन दिखा दिखाकर  समाज से ऐंठा गया पैसा होता है जो अपने परिश्रम से कमाया हुआ न होकर अपितु छल प्रपंच पूर्वक संग्रह किए जाने के कारण ये संपूर्ण पैसा ही कालेधन की श्रेणी में आता है !,सरकारी कर्मचारियों एवं भूमाफियाओं के कालेधन पर भी की जाए कार्यवाही ?   
     गंगानदी  भगवान के चरणों से निकलती है और भ्रष्टाचार की नदी भ्रष्टनेताओं, भ्रष्टअधिकारियों एवं भ्रष्टबाबाओं तथा भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !इसीलिए इनकी संपत्तियों एवं आयस्रोतों की जाँच के बिना भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए की गई सारी कसरतें बेकार हैं ।see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/11/1000-500.html
 भ्रष्ट सरकारी कुकर्मचारियों ने ऐसे लूटा है देश !
   इनकी भी संपत्तियों की जाँच की जाए और मांगे जाएँ इनसे भी सम्पतियों के स्रोतों के प्रमाण !सरकारी कर्मचारियों को जिस दिन नौकरी मिली थी तब से आज तक की उनकी चल अचल संपत्तियों की जाँच की जाए उनका मिलान उनकी सैलरी से किया जाए जिनका मिलान न हो सके उनसे पूछे जाएँ आय स्रोत बता पावें तो ठीक न बता पावें तो उनकी संपत्तियों को भी घोषित किया जाए सरकारी संपत्ति !कार्यवाही हो तो सब पर हो ! 
मध्य प्रदेश के लोकायुक्त पुलिस की छापेमारी में पीडब्ल्यूडी अफसर की बेहिसाब संपत्ति का खुलासा !
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बैंककर्मियों के भ्रष्टाचार को भी पकड़े  सरकार !जाँच हो तो सबकी हो !  बैंककर्मियों के भ्रष्टाचार को पकड़ने का ऐसा मौका दोबारा फिर कभी नहीं मिलेगा जितना अभी है सरकार यदि वास्तव में भ्रष्टाचार मिटाना ही चाहती है तो नोटबंदी के समय के बैंकों के अंदर के वीडियो खँगाले जाएँ और लापरवाह एवं भ्रष्ट लोगों पर लिया जाए शक्त निर्णय !इधर सरकार काले धन वालों के विरुद्ध भाषण देती रही उधर बैंक कर्मी काले धन वालों को उपलब्ध करते रहे सफेद करने की सुविधाएं -जनता बेचारी लाइनों में खड़ी भोगती रही सरकार की बातों पर भरोसा करने का फल !seemore.... http://sahjchintan.blogspot.in/2016/12/blog-post.html

 बाबाओं की संपत्तियों का सच भी तो जनता के सामने लाया जाए !

      बंधुओ ! दस पंद्रह बीस वर्षों में न्याय और नैतिकता पूर्वक हजारों करोड़ कैसे कमाए जा सकते हैं वो भी कोई निर्धन बाबा ऐसा कैसे कर सकता है और यदि उसके लिए ऐसा कर पाना वास्तव में संभव है तो गरीबों को भी ऐसी ही बाबा गिरी की ट्रेनिंग क्यों न दिलाई जाए और बिना पैसे लगाए ही हजारों करोड़ का व्यापारी उन्हें भी बना दिया जाए !जिसे व्यापार करना हो वो व्यापार करे किंतु व्यापार करने हेतु फंड जुटाने के लिए साधू संतों जैसी वेषभूषा बनाकर धार्मिक भावुक लोगों से पहले फंड जुटाया जाए और खुद पूंजीपति बन जाए ये धोखा धड़ी नहीं तो क्या है !जिनसे कालाधन माँग माँग कर खुद को तो पवित्र पूँजीपति सिद्ध कर लिया जाए और उन्हें कालाधन वाला बताकर उनके विरुद्ध आंदोलन चलाया जाए ये "चोर मचावे शोर" नहीं तो और क्या है !वैसे भी जो एक गिलास गाय का दूध पीकर रह लेता होगा वह सरकारी नेताओं के यहाँ चमचागिरी करता क्यों घूमेंगा !दूसरी बात जो स्वदेशी सामानों का इतना ही बड़ा समर्थक होगा वो खुद विदेशी मशीनों से दवाइयाँ क्यों बनाएगा !तीसरी बात जिसे भारत पर इतना ही स्वाभिमान होगा वो  विदेशों में मारा  मारा  क्यों फिरेगा !चौही बात संन्यास लेने का मतलब सब कुछ छोड़ना होता है सबकुछ छोड़ने की घोषणा करने वाले पर लोग भरोसा करने लगते हैं और उसे बहुत कुछ दे देते हैं किंतु उसे वो यदि गृहस्थों की तरह भोगने लगता है जैसे कोई ब्रह्मचर्य की घोषणा करके लड़कियों के हॉस्टल में रहने लगे और अपनी घोषणा के विरुद्ध आचरण करने लगे इसे धोखाधड़ी नहीं तो क्या कहेंगे !ऐसे अविश्वसनीय लोगों की भारी भरकम संपत्तियों के स्रोतों पर संशय होना स्वाभाविक है आखिर उनकी पवित्रता की जाँच क्यों नहीं कराई जानी चाहिए !see more ....http://samayvigyan.blogspot.in/2016/11/blog-post_28.html
टैक्स लेती है सरकार !भ्रष्टाचार के लिए भी वही जिम्मेदार ! "जो सैलरी लें वही घूस माँगें" ये हिम्मत !  ये सरकारी लापरवाहियों के कारण ही तो हो पाता है तभी तो  सरकार और सरकारी कर्मचारियों ने फैला रखा है भ्रष्टाचार !इसमें आम जनता का क्या दोष !सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती  अस्पतालों में दवाई नहीं होती डाक खाने में सुनवाई नहीं होती टेलीफोन विभाग में समय से ध्यान नहीं दिया जाता तभी तो जनता प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कैरियरों और टेलीफ़ोन कंपनियों में चक्कर लगाया करती है सरकारी लोग भी सैलरी सरकारी और सेवाएँ प्राइवेट की ही लेना पसंद करे हैं क्यों ?सरकारी सेवाएँ विश्वास करने लायक हैं  ही नहीं फिर भी ग़रीबों ग्रामीणों मजदूरों को सरकारी सेवाएँ प्रदान करने के लिए फार्मिलिटी अदा करती जा रही है सरकार !इसे धोखा धड़ी नहीं तो क्या कहा जाए !सरकार को चाहिए कि नोटबंदी की तरह ही एक एक विभाग के कर्मचारियों को एक रात में सेवा मुक्त कर दे और दो दिन बाद  नवयुक्तियों के लिए खुली परीक्षा करा दे जिसमें शिक्षित हर कोई बैठ सकता हो और परीक्षाएँ जो पास कर ले सो सेवाएँ दे जो फेल हो सो घर बैठे !सोर्स और भ्रष्टाचार के बलपर हुई नियुक्तियों के गलत निर्णयों को सुधारा आखिर कैसे जाए ! सरकारी विभागों से जनता को निराश कर रखा है इस भरोसे को वापस लाने में दशकों लग जाएँगे !see more.... http://sahjchintan.blogspot.in/2016/12/blog-post_3.html

ममता बनर्जी की चाटुकारिता का सीधा मतलब है कि बाबा जी को प्लांट लगाने के लिए जमीन चाहिए !

   प्लांट लगाने के लिए बाबा जी को जिस प्रदेश में जमीन चाहिए होती है उस प्रदेश के  मुख्यमंत्री की बटरिंग करने लगते हैं बाबा जी ! 
     ममता जी की भी इसलिए चिरौरी कर रहे होंगे बाबा जी !इसीलिए आजकल उन्हें ममता जी में प्रधानमन्त्री बनने के गुण दीखने लगे हैं !कोई प्लांट लगाना होगा ममता जी की कृपा चाहिए होगी इसीलिए उनका कीर्तन कर रहे हैं बाबा जी ! पापी पेट का सवाल है आखिर एक गिलास गाय के दूध का इंतजाम तो करना ही पड़ता है मरता क्या न करता !अन्यथा बटरिंग करने की किसी संन्यासी को जरूरत क्या है ! वैसे भी कोई सच्चा संन्यासी मरना पसंद करेगा किंतु चाटुकारिता नहीं करेगा !लेकिन बाबा जी को भूखे रहने की आदत नहीं है इसलिए उनके पेट पर जब लात लगने लगती है तब उन्हें कुछ भी करना पड़ता है तो वो करने को तैयार हो जाते हैं !आपको याद होगा कि एक बार लालू जी ने यह कहकर धमका दिया था कि बाबाओं की संपत्तियों की भी जाँच की जानी चाहिए तब से कोई न कोई बहाना बनाकर लालू जी की जी हुजूरी करने की अक्सर जुगत भिड़ाने लालू जी के घर पहुँचने लगे हैं बाबा जी !पेट के लिए सबको सबकुछ करना पड़ता है एक ग्लास गाय के दूध का सवाल है ।
       बाबाओं की संपत्तियों का सच भी तो जनता के सामने लाया जाए !
      बंधुओ ! दस पंद्रह बीस वर्षों में न्याय और नैतिकता पूर्वक हजारों करोड़ कैसे कमाए जा सकते हैं वो भी कोई निर्धन बाबा ऐसा कैसे कर सकता है और यदि उसके लिए ऐसा कर पाना वास्तव में संभव है तो गरीबों को भी ऐसी ही बाबा गिरी की ट्रेनिंग क्यों न दिलाई जाए और बिना पैसे लगाए ही हजारों करोड़ का व्यापारी उन्हें भी बना दिया जाए !जिसे व्यापार करना हो वो व्यापार करे किंतु व्यापार करने हेतु फंड जुटाने के लिए साधू संतों जैसी वेषभूषा बनाकर धार्मिक भावुक लोगों से पहले फंड जुटाया जाए और खुद पूंजीपति बन जाए ये धोखा धड़ी नहीं तो क्या है !जिनसे कालाधन माँग माँग कर खुद को तो पवित्र पूँजीपति सिद्ध कर लिया जाए और उन्हें कालाधन वाला बताकर उनके विरुद्ध आंदोलन चलाया जाए ये "चोर मचावे शोर" नहीं तो और क्या है !वैसे भी जो एक गिलास गाय का दूध पीकर रह लेता होगा वह सरकारी नेताओं के यहाँ चमचागिरी करता क्यों घूमेंगा !दूसरी बात जो स्वदेशी सामानों का इतना ही बड़ा समर्थक होगा वो खुद विदेशी मशीनों से दवाइयाँ क्यों बनाएगा !तीसरी बात जिसे भारत पर इतना ही स्वाभिमान होगा वो  विदेशों में मारा  मारा  क्यों फिरेगा !चौही बात संन्यास लेने का मतलब सब कुछ छोड़ना होता है सबकुछ छोड़ने की घोषणा करने वाले पर लोग भरोसा करने लगते हैं और उसे बहुत कुछ दे देते हैं किंतु उसे वो यदि गृहस्थों की तरह भोगने लगता है जैसे कोई ब्रह्मचर्य की घोषणा करके लड़कियों के हॉस्टल में रहने लगे और अपनी घोषणा के विरुद्ध आचरण करने लगे इसे धोखाधड़ी नहीं तो क्या कहेंगे !ऐसे अविश्वसनीय लोगों की भारी भरकम संपत्तियों के स्रोतों पर संशय होना स्वाभाविक है आखिर उनकी पवित्रता की जाँच क्यों नहीं कराई जानी चाहिए !see more ....http://samayvigyan.blogspot.in/2016/11/blog-post_28.html

Saturday, 3 December 2016

टैक्स क्यों दिया जाए ?जनता जिन्हें सैलरी देने के लिए टैक्स देती है उन्हीं से काम कराने के लिए देनी पड़ती है घूस !

    जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारियाँ न समझने वाले सांसदों विधायकों पार्षदों अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी का बोझ जनता पर और  जनता को ही ठेंगा दिखावें ये लोग !बारे लोकतंत्र !!
    सरकारी काम काज और राजनीति दोनों सेवा कहे  जाते हैं किंतु सेवा में सैलरी तो होती नहीं है किंतु यहाँ तो सैलरी भी है सेवा भी ये है सरकारी चमत्कार !ये तो उसी तरह का झूठ हो गया जैसे हजारों करोड़ का बिजिनेस बढ़ाने वाले बाबा लोग अपने काम काज को चैरिटी बताने लगते हैं !अरे !चैरिटी में कमाई भी होती है क्या !इसी प्रकार सबसे कालाधन माँग माँग कर अपने पास करोड़ों रूपए इकठ्ठा करने के बाद कालेधन के विरुद्ध आंदोलन चलाने वाले लोग हों या अपने कारखानों में बड़ी बड़ी विदेशी मशीनें लगा कर काम धंधा करने वाले चलावें स्वदेशी आंदोलन !इतने बड़े बड़े झूठ कोई आम इंसान कैसे बोल सकता है ऐसी हिम्मत तो कोई नेता या बाबा ही कर सकता है ।
आधुनिक लोकतंत्र में जनता जनार्दन की ये दुर्दशा !
         ईमानदारी से जीना कितना कठिन हो गया है इसका अंदाजा लगाने के लिए 8 नवम्बर से 30 दिसंबर के बीच के देखे जाएँ बैंकों के अंदर के वीडियो !जिन कालेधनवालों के विरुद्ध सरकार भाषण दे रही थी उन्हीं की  सेवा में व्यस्त थी सरकारी मशीनरी !ये आम जनता के साथ मजाक नहीं तो क्या है !जनता की परेशानियों और दुर्भाग्य पूर्ण मौतों के लिए जिम्मेदार कौन !
      कालेधन का हाहाकार क्यों ?
   क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि सरकारी विभागों में जनता जनार्दन के साथ प्रिय व्यवहार हो और जिम्मेदारी पूर्वक उसका काम किया जाए !सरकारी विभागों की लापरवाही और गैर जिम्मेदारी के कारण ही तो जनता को सरकारी दुर्व्यवस्था से मुख मोड़कर प्राइवेट वालों से समझौता करना पड़ता है !सरकारी विभागों में जनता को कोई कुछ समझता नहीं है लोग एक दूसरे पर टालते रहते हैं शिकायतें !और  प्राइवेट में तुरंत दूर की जाती हैं समस्याएँ !इसीलिए तो प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कोरियर और टेलीफोन कंपनियों से जुड़कर जनता को काम चलाना पड़ता है फिर भी उन सरकारी कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए उसी जनता को  टैक्स देना पड़ता है जिनकी सेवाओं से जनता ऊभ चुकी होती है या जिनसे विश्वास उठ चुका होता है !ऐसे लोगों को भारी भरकम सैलरी देने के लिए जनता से टैक्स क्यों लिया जाए ?
    सरकारी विभागों में जनता का काम समय से कराने की गारंटी कौन लेगा !और बिना काम काज के गुजारा कैसे हो !सरकारी अनुशासन से जो काम नहीं होते उन्हें लालच देकर कराना पड़ता है !और उस लालच को पूरा करने में लगता ही कालाधन है !उस काली मंडी में चलता ही ब्लैक है ।
       संसद की कारवाही में करोड़ों रुपए जनता के खर्च होते हैं किंतु सदन में कभी भी किसी भी मुद्दे पर या बिना मुद्दे के ही छोटी सी बात की आड़ लेकर भी हंगामा किया जाने लगता है कार्यवाही रोक दी जाती है कई बार तो कई कई दिन तक नहीं चल पाती है संसद !जनता का पैसा बर्बाद होता रहता है जनता से टैक्स क्या इसके लिए वसूला जाता है !
     चुनावों में प्रत्याशियों के चयन में शिक्षा  योग्यता  अनुभव आदि को प्राथमिकता न दिए जाने के कारण जो अशिक्षित एवं अयोग्य लोग चुनाव जीत कर संसद में पहुँच जाते हैं वो संसद की चर्चा में भाग कैसे लें वहाँ की चर्चा में बोलना तो दूर समझना भी जिनके बश का न हो वो वहाँ खाली कब तक बैठे रहें !वो मोबाइल पर वीडियो देखें !घूम टहल कर समय पास करें या सोवें या फिर अपनी पार्टी के मालिक की ओर ताकते रहें जब वो इशारा करे तो हुल्लड़ मचावें,कागज़ फाड़ फाड़कर  फेंकें गैलरी में चले जाएँ ,अपशब्द प्रयोग करें ,लपटा  झपटी लड़ाई झगड़ा आदि उपद्रव न करें तो वो अपनी किस योग्यता का प्रदर्शन आखिर कैसे करें वहाँ !उनका चेहरा टीवी पर कैसे आवे !उन्हें भी चाहने वाले तो होते ही हैं चुनाव जीत कर गए हैं !किंतु अत्यंत उच्चस्तरीय गौरवपूर्ण चर्चामंच संसद के बहुमूल्य समय का अधिक से अधिक सदुपयोग करने के लिए प्रत्याशियों की शिक्षा योग्यता एवं अनुभव को क्यों  नहीं दिया जाना  चाहिए महत्त्व !
       इसी प्रकार से विगत कुछ दसकों से कई स्थलों पर सरकारी नौकरियाँ देते समय शिक्षा योग्यता अनुभव आदि की उपेक्षा करके घूसखोरी से लेकर सोर्स सिफारिस के बल पर भी नौकरियाँ दी जाती रही हैं प्रायः ऐसा सभी लोग स्वीकार करते हैं ऐसी परिस्थितियों में जो अयोग्य लोग जहाँ कहीं योग्य स्थानों पर बैठाए दिए गए हैं वे अपने पदों के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं कुछ में काम करने लायक शिक्षा नहीं है कुछ काम करना नहीं चाहते कुछ थोड़ा बहुत जितना भी कर पाते हैं उसके लिए जनता के साथ अप्रिय व्यवहार करते हैं या घूस आदि की डिमांड रखते हैं यदि काम कराना है तो जनता को उन कर्मचारियों की शर्तों पर ही समझौता करना पड़ता है इसके अलावा जनता के पास सरकारी विभागों में किसी की शिकायत कोई नहीं सुनता सबकी टाँग एक दूसरे के नीचे दबी होती है उसकी खोलने से अपनी भी खुलती है इसलिए जनता के पास कोई विकल्प नहीं होते !ऐसे लोगों को जनता की खून पसीने की कमाई से सैलरी क्यों दी जाए ?
 सरकार को अपने अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना नहीं आता तो उनकी भारी भरकम सैलरी जनता पर क्यों थोपती जाती है सरकार !
     सामान्य जनता की कमाई से दो गुनी चार गुनी होती तो चल भी जाता कई कई गुनी सैलरी क्यों ?क्या आम जनता का राष्ट्र निर्माण में कोई योगदान नहीं है क्या ?
      सरकार के द्वारा इतनी अधिक सैलरी दिए जाने के बाद भी वो अक्सर अपनी माँगें मनवाने के लिए हड़ताल पर चले जाते हैं क्यों ?क्या  आम आदमी की आमदनी से उन्हें अपनी तुलना नहीं करनी चाहिए !आखिर ये देश उनका नहीं है क्या ?आम जनता भी उनकी ही तरह जरूरतों से पीड़ित है यह क्यों नहीं सोचा जाना चाहिए ?
        हड़ताल करने वालों से सरकार समझौता क्यों करती है यदि वे सरकारी  सैलरी और सुविधाओं से संतुष्ट नहीं हैं तो वो भी स्वतंत्र हैं कोई और धंधा पानी देखें उन्हें घेर घेर कर क्यों रखती है सरकार !क्या अपनी कोई पोल खोले जाने से डरती है आखिर उनसे झुककर समझौता क्यों करती है सरकार ?
       कई काम तो ऐसे हैं जिनमें सरकार के एक एक कर्मचारी की सैलरी में चार चार छै छै प्राइवेट कर्मचारी रखे जा सकते हैं उनकी शार्टेज भी नहीं है उससे देश की बेरोजगारी भी घट सकती है फिर भी उन्हीं के सामने घुटने क्यों टेकती है सरकार ?
      स्कूलों को ही लें - सरकार शिक्षकों को भारी भरकम सैलरी सुविधाएँ पेंसन आदि सबकुछ देती है बच्चों को भोजन कपड़े और पैसे भी देती है विज्ञापन पर भारी भरकम धनराशि खर्च कर देती है किंतु सरकार अपने स्कूलों के शिक्षकों अधिकारियों की गैर जिम्मेदारियों के कारण प्राइमरी स्कूलों को वो सम्मान नहीं दिला पाई जो प्राइवेट स्कूलों को हासिल है क्यों ?
    प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक प्रायः ट्रेंड नहीं होते अक्सर अल्पशिक्षित होते हैं उन्हें सैलरी भी सरकारी शिक्षकों की अपेक्षा कम मिलती है पेंशन नहीं मिलती बच्चों को भोजन कपड़े और पैसे नहीं मिलते ऊपर से भारी भरकम (फीस) धनराशि भी वसूली जाती है तमाम नखरे दिखाते हैं फिर भी शिक्षित समझदार संपन्न लोग यहाँ तक कि सरकारी कर्मचारी और सरकारी शिक्षक एवं उनके अधिकारी भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ाते हैं क्यों ?
       देश भक्त बंदनीय सैनिकों को छोड़कर सरकार का हर विभाग अयोग्य,गैरजिम्मेदार एवं अकर्मण्य लोगों से भरा पड़ा है जनता उनके काम काज की शैली से संतुष्ट नहीं है समय से काम लेने के लिए सोर्स सिफारिस और घूस का सहारा लेना जनता की मजबूरी है कहावत है कि "काँटे से काँटा निकलता है" "बिष बिष को मारता है" इसी प्रकार से भ्रष्टाचारियों को भ्रष्टाचार से ही जीता जा सकता है वही करने लगी है जनता !लोग कालाधन रखते हैं और देते हैं घूस !सरकारी विभागों में जनता का काम यदि समय से और जिम्मेदारी पूर्वक होने लगता तो क्यों देनी पड़ती घूस और क्यों कोई रखता कालाधन !
      सरकारी स्कूलों को पीट रहे हैं प्राइवेट स्कूल,सरकारी अस्पतालों को प्राइवेट अस्पताल,डाक सेवा को कोरियर टेलीफोन सेवाओं को प्राइवेट कंपनियाँ !पुलिस में प्राइवेट विकल्प नहीं है तो जनता भोग रही है सरकारी लापरवाहियों का फल ! आखिर इतने ईमानदार और जिम्मेदार  क्यों नहीं हैं सरकारी विभाग कि जनता सरकारी सेवाओं की ओर आकर्षित हो !जिन विभागों की सेवाओं से जनता ही असंतुष्ट होगी उनमें नियुक्त अधिकारियों कर्मचारियों को दी जाने वाली सैलरी को टैक्स से प्राप्त  हुए धन का दुरूपयोग नहीं तो क्या माना जाए !
        नोटबंदी अभियान को ही लें -
       सरकार यदि भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देना ही चाहती है तो 8 नवम्बर से तीस दिसंबर तक के बैंकों के अंदर के लगे वीडियो चेक करवाए कई बैंकों में तो समझदार कर्मचारियों ने वीडियो भी खराब कर रखे हैं फिर भी सरकारी सेवाओं का दर्पण तो सरकार के सामने आ ही जाएगा !वैसे भी सरकार का साथ यदि सरकारी कर्मचारी ही नहीं देंगे तो किसके सहारे निर्णय लेगी सरकार !सेवाएँ यदि निष्पक्ष और ईमानदार होतीं तो इससे जुड़ी मौतें घटाई भी जा सकती थीं ! जनता तो सरकार के सहारे थी सरकार अपने कर्मचारियों के और कर्मचारी कुछ लोगों पर तो बहुत मेहरबान थे किंतु कुछ लोगों से न जाने किस जन्म का बदला ले रहे थे ऐसे लोग बैंकों के अंदर के वीडियो से चिंहिंत किए जा सकते हैं और उन पर होनी चाहिए कार्यवाही !
  अधिकाँश अधिकारियों से निराश हो चुका है समाज !
      अधिकारियों की नियुक्ति क्या केवल इसलिए होती है कि वे अपनी आफिसों में सुख सुविधा पूर्ण एक कमरा रूपी मंदिर बनाकर उसमें देवता बनकर खुद बैठे रहें और उनके जूनियर लोग उनके विषय में बता बता कर उनके प्रति जनता के मन में खौफ पैदा करते रहें !इसलिए जनता उनसे अपनी समस्या बताने में डरती रहे !कुछ लोग यदि हिम्मत करके उनके पास पहुँचें भी तो जवाब वहीँ मिलें जो निचले कर्मचारियों से मिले थे जिनसे असंतुष्ट होकर वो वहाँ गए थे ऐसे में उन अधिकारियों का जनहित में उपयोग क्या है जैसे -
        किसी का टेली फोन ख़राब हो गया उसे ठीक करने के लाइन मैंन  ने कुछ पैसे माँगे उसने उसे न देकर ऊपर के अधिकारियों से संपर्क किया और अपनी समस्या बताई उन्होंने लाइन मैंन से जवाब माँगा उसने कहा सर !अंडर ग्राउंड की केबल खराब है इसलिए ठीक नहीं हो सकता है अधिकारी ने यही जवाब उपभोक्ता को दे दिया इसपर निराश हताश अपमानित उपभोक्ता सौ पचास रूपए देकर लाइन मैंन  से तुरंत तार जोड़वा लेता है और फोन चालू हो जाता है ऐसे अधिकारियों को जनता क्या माने जिनकी कीमत उनके विभाग के जूनियर लोग ही सौ पचास रूपए भर भी नहीं मानते हैं !ऐसे अनुपयोगी अधिकारियों की सैलरियों सुख सुविधाओं पर खर्च किए जाने वाले धन को जनता के द्वारा प्रदत्त टैक्स का सदुपयोग कैसे माना जाए ?
     भरकम सैलरी देने इसमें जनता का क्या दोष ! क्या इसलिए दिया जाए टैक्स ! आखिर टैक्स क्यों दिया जाए ?
    जनता को टैक्स तो देना चाहिए किंतु उस टैक्स के पैसे का सदुपयोग भी तो दिखना चाहिए !सुना जाता है कि संसद चलाने में भारी खर्च होता है किंतु सार्थक चर्चा कम और निरर्थक हुल्लड़ ज्यादा मचाया जाता है ऐसे हुल्लड़ मचाने वालों पर खर्च करने के लिए जनता क्यों दे टैक्स !इसी प्रकार से भ्रष्टाचार करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की भारी भरकम सैलरी जनता के टैक्स के पैसे से क्यों दी जाए !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना सरकार को आता नहीं है या सरकारों में बैठे लोगों को काम की जरूरत नहीं पड़ती है और वो अधिकारी कर्मचारी जनता की बात न सुनते हैं न ध्यान देते हैं ऐसे लोगों की सैलरी जनता के टैक्स के पैसों से क्यों दी जाए जो जनता को कुछ समझते ही नहीं हैं !
      हे PM साहब ! जनता को टैक्स देना ही चाहिए और कठोरता पूर्वक वसूला भी जाना चाहिए उन्हें टैक्सचोर पापी आदि सब कुछ कहा भी जाना चाहिए  काले धन के नाम पर उन्हें जितना बेइज्जत किया जा सकता हो किया जाना चाहिए !किंतु जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिए गए पैसों का सदुपयोग करना सरकार का कर्तव्य है या नहीं यदि हाँ तो क्या कर पा रही है सरकार !
      संसद की कार्यवाही पर प्रतिदिन खर्च होने वाला भारी भरकम अमाउंट जनता की गाढ़ी खून पसीने की कमाई का होता है जिसे नेता लोग संसद में हुल्लड़ मचा कर उड़ा देते हैं घंटों कार्यवाही बाधित रहती है क्यों ?कई कई दिन बीत जाते हैं ऐसे क्यों !
     संसद चर्चा का मंच है चर्चा करने सुनने वालों की शिक्षा और बौद्धिक स्तर चर्चा करने और समझने लायक होना चाहिए किंतु जो सदस्य अल्प शिक्षित हैं उनका संसद में क्या काम वो सोवें तो शिकायत बाहर  जाकर समय पास करें तो शिकायत और मोबाईल पर पिच्चर देखें तो शिकायत और हुल्लड़ करें तब तो शिकायत है ही !वो तो अपने पार्टी मालिकों का इशारा पाते ही हुल्लड़ मचाने लगते हैं उन्हें न संसद से कुछ लेना देना होता है न संसद की मर्यादाओं से वो तो बड़ी बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों की तरह अपनी पार्टी के मालिकों को ही सब कुछ समझते हैं देश समाज एवं जनता के लिए उनकी कोई निजी सोच ही नहीं होती है फिर भी सरकार उनकी सुख सुविधाओं सैलरी आदि पर जनता से टैक्स रूप में प्राप्त धन खर्च करती है क्यों ?
    देशवासियों की आखों के सामने ही टैक्स का दुरूपयोग जब साफ साफ दिखाई पड़ रहा हो तो जनता टैक्स क्यों दे ?उच्च शिक्षा ,संसदीय योग्यता चरित्र एवं सुसंस्कारों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन यदि किया जाता होता तो न इतना हुल्लड़ होता न उट  पटाँग भाषा बोली जाती और सम्मान्य सदस्यों के वैचारिक आदान प्रदान का उच्चस्तरीय स्तर भी भारतीय संसद को दुनियाँ में गौरवान्वित कर रहा होता !राजनैतिक दलों में उच्च शिक्षा ,सदाचरण एवं संसादीय गुणवत्ता की अनिवार्यता क्यों न की जाए !
     कालेधन को सफेद करने वाले अपनी बैंकों के कुछ कुकर्मचारियों के भ्रष्ट चेहरे सरकार भी देखे !बैंकों के आगे लगने वाली लंबी लंबी लाइनों का सच क्या था लाइनें आगे क्यों नहीं बढ़ती थीं इसकी सच्चाई भी सरकार को मिलेगी उसी वीडियो में !
   नेताओं के कालेधन को भी निकालने की हिम्मत क्या कर पाएगी सरकार !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की भी संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए !जितनी संपत्ति उनके पास आज है वो उनको मिलने वाली सैलरी से बनाई जा सकती थी क्या ?

Friday, 2 December 2016

धर्मक्रांति के योद्धाओ ! अपने को ! अपनों को !अपनी आँखों से देखो !

साधू संत कौन ?
       जिन्हें भगवान पर भी भरोसा न हो हम उन्हें भी साधू संत मानते हैं धिक्कार है हमें !
    अँधेरी रातों में बरसते पानी कड़कती बिजली गरजते बादलों के बीच भगवान के भरोसे अकेले खेतों  खलिहानों जंगलों में सर्पों बिच्छुओं एवं सिंह आदि हिंसक जीव जंतुओं के बीच काम करने वाले गरीब ग्रामीण और किसान लोग या फिर आश्रम नाम की सभी सुख सुविधाओं से युक्त बड़ी बड़ी 'भोगपीठों' में सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे जिंदा रहने वाले बाबा लोग !जिन्हें भगवान पर भरोसा ही नहीं वे साधू किस बात के ?


 चित्र नहीं चरित्र देखो !
 चरित्रवान लोग
    चरित्रवान गरीब ग्रामीण और किसान लोग अँधेरी रातों में बरसते पानी कड़कती बिजली गरजते बादलों के बीच भगवान के भरोसे अकेले       खेतों  खलिहानों जंगलों में सर्पों बिच्छुओं एवं सिंह आदि हिंसक जीव जंतुओं के बीच काम

धर्म को जब अपनी आँखों से देखोगे तब बड़े बड़े धार्मिक पाखंडियों से घृणा करने लगोगे   !

अरे नेताओ !देश यदि तुम पर भरोसा न करे तो किस पर करे !


     कालेधन वाले बाबालोग भी काले धन का विरोध करते देखे जाते रहे हैं केवल इसलिए कि उनके कालेधन की ओर किसी का ध्यान न जाए किंतु क्या देशवासी इतना भी नहीं समझते हैं कि दस पंद्रह सालों में हजारों करोड़ की संपत्ति काले धन के बिना कैसे इकट्ठी की जा सकती है !कुल मिलाकर जो बाबालोग धंधा शुरू करते समय माँग माँग कर धन इकठ्ठा करते रहे हों उन्हें किसी ने कालाधन नहीं तो क्या सफेद दे दिया होगा !किंतु तब जो  बाबा लोग काला पीला हरा  गुलाबी आदि सभी कलरों का धन पचा जाते रहे हों और जब अपना पेट भर गया तब दूसरों का धन उन्हें कालाधन लगता है ये बाबा लोग यदि वास्तव में इतने ही ईमानदार हैं तो देश की आम जनता के सामने ऑनलाइन 


 ता रहा हो ही इकठ्ठा करते रहे हैं
अरे बाबा लोगो !
    कालाधन तुम इसी समाज से माँग माँग कर करोड़ो अरबों पति बन जाते हो तब तुम्हें कालेधन का होश आता है पड़ता

Thursday, 1 December 2016

नोटबंदी में हुई मौतों के लिए जिम्मेदार कौन ?बैंकों के अंदर के वीडियो चेक किए जाएँ !

  बैंककर्मियों की कुकार्यशैली से जनता तंग हुई इसलिए इतनी ज्यादा घटीं ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण दुर्घटनाएँ !विपक्ष चौड़ा हुआ लोगों की मौतें हुई संसद बाधित हुई ! क्यों ?
    बैंककर्मियों की कुकार्यशैली कितनी जिम्मेदार थी लाइनों में खड़े लोगों की मौतों के लिए कौन कितना दोषी था !नोटबंदी अभियान में सरकार की भद्द पीटने का विपक्ष को मौका किसने दिया बैंक कर्मियों ने जिम्मेदारी निभाते हुए ईमानदारी और निष्पक्षता बरती होती  परिस्थिति इतनी नहीं बिगड़ती ! बैंकों के अंदर के वीडियो चेक कराए जाएँ !
    ये वीडियो बताएँगे आम जनता के साथ बैंक कर्मियों ने कैसा व्यवहार किया !इतने लोगों की मौतों को ऐसे भूल जाना ठीक नहीं होगा !देखा जाए कौन कितने समय तक किस काउंटर पर खड़ा रहा किसे कितनी सहूलितें किस बैंक कर्मचारी ने दीं किस एक ही व्यक्ति ने किस दिन कितनी बार कैस जमा किया !किस बैंक  कर्मचारी ने जनता के साथ कैसा वर्ताव किया और उन स्पेशल लोगों के साथ कैसा बर्ताव किया ! किसने किसका कितना किस बदला कौन कितनी गड्डियाँ लेकर कहाँ गया !चाय  और नास्ता लाने वालों ने कितना कैस अंदर पहुँचाया और कितना किस बदलकर बाहर ले गए !बैंक का कौन कर्मचारी क्या लेकर आया और क्या लेकर निकला !कैस लाने वाली गाड़ी आने के कितनी देर बाद कितने पैसे देकर आम जनता को यह बता कर भगा दिया कि किस ख़तम हो गया है इसके बाद देर देर रात तक किस किस किस का कैसे कैसे निपटाया गया कितना कितना काम !क्या उसमें आम जनता के लोग भी थे !आदि बातों की जाँच कराने के लिए सीसीटीवी के वीडियो चेक करे जाएँ !
    सैनिक सीमाओं पर दिन रात लड़ सकते हैं तो बैंक क्यों नहीं खोले जा सकते थे दिनरात !आधीरात से लाइनों में भूखेप्यासे खड़े लोगों को दिखा दिखाकर बैंक कर्मी करने लगते थे लंच !वो तो नास्ता भी करके आए होते थे जनता के मुख में पानी भी नहीं गया होता था !प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में साथ देने के लिए जनता यदि इतना बड़ा बलिदान दे रही थी तो बैंक कर्मचारियों का कोई कर्तव्य नहीं था क्या !उन्हें लंच लेना जरुरी क्यों था !उन्हें तो सरकार सैलरी देती इसी बात की है कि वो सरकार का साथ अधिक से अधिक दें किंतु यहाँ सरकार की बात मानकर जनता तो भूखी प्यासी रह सकती है परन्तु बैंक कर्मचारी नहीं आखिर क्यों ?
     भ्रष्टाचारी बैंक कर्मियों के कारण नोटबंदी अभियान पर कटघरे में खड़ी की गई सरकार अन्यथा कमजोर विपक्ष संसद को रोकने की हैसियत में था ही कहाँ !बैंक कर्मियों ने जनता के साथ पक्षपात विहीन ईमानदार वर्ताव किया होता तो न कैस घटता न लाइनें इतनी लंबी होतीं,  लोगों की मौतें न हुई होंतीं ,न जनता परेशान होती तो विपक्ष को भी सरकार पर हावी होने का बहाना न मिलता और न ही संसद की बहुमूल्य कार्यवाही रोकने की हिम्मत ही कर पाता विपक्ष !जनता की परेशानियों का बहाना लेकर ही तो उपद्रव उठा रहा है विपक्ष !
     संसद की बहुमूल्य कार्यवाही न बाधित होती और न ही लाइनों में खड़े लोगों की मौतें ही होतीं !इन सबके लिए जिम्मेदार लापरवाह भ्रष्टाचारी बैंक कर्मचारियों की पहचान के लिए बैंकों के अंदर लगे कैमरों के वीडियो खँगाले जाएँ और दोषी कर्मचारियों के विरुद्ध हो कठोर कार्यवाही !भ्रष्टाचार के विरुद्ध सरकारी कर्मचारियों को भी कड़ा संदेश दिया जाए !
  विपक्ष तो बोलने की स्थिति में ही नहीं था भ्रष्टाचार से तंग जनता भ्रष्टाचार समाप्त करने के हर काम में मोदी जी का साथ देना चाहती है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि नोटबंदी के बाद बड़ी बड़ी कठिनाइयों का सामना करने वाले आमलोग आज भी सरकार का समर्थन कर रहे हैं !काले धन वाले नेताओं को छोड़कर नोटबंदी का विरोध और कर ही कौन रहा है ऐसे नेताओं पर कैसे क्या कार्यवाही हो ये सरकार को सोचना है जनता सब दुःख सह लेगी किंतु बचना कोई भ्रष्टाचारी नहीं चाहिए !भले वो नेता बाबा या सरकारी कर्मचारी ही क्यों न हों !इनके प्रति थोड़ा भी पक्षपात दिखा तो जनता सह नहीं पाएगी क्योंकि नोट  बंदी से बहुत दुख सहा है आम जनता ने !कितने लोगों ने अपने जीवन की कुर्बानियाँ दी हैं !ये भुलाया नहीं जाना चाहिए !
    बैंकों में गड़बड़ हुई या नहीं या तो वीडियो देखने से ही पता लगेगा !इसीलिए तो बैंकों के अंदर के सीसीटीवी फुटेज खँगाले जाएँ और ईमानदार बैंक कर्मियों का तो प्रोत्साहन हो किंतु भ्रष्टाचारियों को सजा मिलनी ही चाहिए !जिनके कारण लाइनों में खड़ी जनता सजा भोग रही है! जिनकी लापरवाहियों ,गैर जिम्मेदारियों और भ्रष्टाचार के कारण कुछ लोगों की तो बड़ी बड़ी धनराशि काले की सफेद की जाती रही किंतु जरूरत वालों की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति भी न होने के कारण कितने लोग मर गए कितने लोग भूखे रहे और भी तरह तरह की बड़ी परेशानियाँ झेलते रहे लोग !जबकि वो दो दो चार चार हजार के लिए लाइनों में लगे होते थे दूसरी ओर सोर्सफुल बड़े लोग न लाइनों में लगते थे न कुछ !फिर भी मोटा मोटा का कैस ले लेकर जाते देखे जाते थे आखिर कैसे !
   उनके लिए क्यों थे ये अघोषित स्पेशल नियम और छूट !बैंकों में कैस की गाड़ी आती थी उसके बाद दस बीस लोग लाइनों से बुलाकर कहला दिया जाता था कि कैस ख़त्म हो गया है किंतु बीस पच्चीस लोगों को दो दो चार चार हजार देने से इतनी जल्दी कैसे ख़त्म हो जाता था कैस !
     कई बैंकों में बैंक कर्मियों की मिली भगत से बड़े लोगों में कोई एक व्यक्ति घुसा लिया जाता था अंदर !उसको घंटों या पूरे पूरे दिन वीडियो फुटेज में देखा जा सकता है कैस काउंटरों पर दो चार लोग लाइन वाले लिए जाते फिर उनका नंबर उनके बड़े बड़े काम होने के कारण अधिक समय तो लगना ही था !फिर वो फोन करके घर से दूसरा कैस मँगा लेते थे और नए नोट घर भेज देते !चैनल से ही लेन देन हो जाता था कहने को हो जाता था कि किसी को घुसने नहीं दिया गया है । अंदर भी उनका नंबर पहला दूसरा ही लग जाता था उन्हें सब पहचानते थे कि ये तो लाइनों में खड़े ही थे !बैंक वाले भी उनकी ही सुनते थे जनता में कोई बोले तो धमका दिया जाए और भंग करने के आरोप में बाहर निकाल दिया जाए ! 
     कुल मिलाकर वीडियो फुटेज देखकर पकड़े जाएँ बैंकों के वे भ्रष्ट कर्मचारी जो लाइनों में लगी आम जनता की परवाह किए बिना अपने परिचितों एवं ब्लैकमनी वालों के काम किया जरते थे या फिर ब्लैकमनी वालों के ब्लैक को व्हाइट किया करते थे !

Wednesday, 30 November 2016

बैंकों के अंदर लगे वीडियो भी चेक कराए जाएँ और पहचाने जाएँ भ्रष्टाचारी कुकर्मचारियों के चेहरे !

     कालेधन को सफेद करने वाले अपनी बैंकों के कुछ कुकर्मचारियों के भ्रष्ट चेहरे सरकार भी देखे !बैंकों के आगे लगने वाली लंबी लंबी लाइनों का सच क्या था लाइनें आगे क्यों नहीं बढ़ती थीं इसकी सच्चाई भी सरकार को मिलेगी उसी वीडियो में !
   नेताओं के कालेधन को भी निकालने की हिम्मत क्या कर पाएगी सरकार !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की भी संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए !जितनी संपत्ति उनके पास आज है वो उनको मिलने वाली सैलरी से बनाई जा सकती थी क्या ?
     जनता को टैक्स तो देना चाहिए किंतु उस टैक्स के पैसे का सदुपयोग भी तो दिखना चाहिए !सुना जाता है कि संसद चलाने में भारी खर्च होता है किंतु सार्थक चर्चा कम और निरर्थक हुल्लड़ ज्यादा मचाया जाता है ऐसे हुल्लड़ मचाने वालों पर खर्च करने के लिए जनता क्यों दे टैक्स !इसी प्रकार से भ्रष्टाचार करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की भारी भरकम सैलरी जनता के टैक्स के पैसे से क्यों दी जाए !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना सरकार को आता नहीं है या सरकारों में बैठे लोगों को काम की जरूरत नहीं पड़ती है और वो अधिकारी कर्मचारी जनता की बात न सुनते हैं न ध्यान देते हैं ऐसे लोगों की सैलरी जनता के टैक्स के पैसों से क्यों दी जाए जो जनता को कुछ समझते ही नहीं हैं !
      हे PM साहब ! जनता को टैक्स देना ही चाहिए और कठोरता पूर्वक वसूला भी जाना चाहिए उन्हें टैक्सचोर पापी आदि सब कुछ कहा भी जाना चाहिए  काले धन के नाम पर उन्हें जितना बेइज्जत किया जा सकता हो किया जाना चाहिए !किंतु जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिए गए पैसों का सदुपयोग करना सरकार का कर्तव्य है या नहीं यदि हाँ तो क्या कर पा रही है सरकार !
      संसद की कार्यवाही पर प्रतिदिन खर्च होने वाला भारी भरकम अमाउंट जनता की गाढ़ी खून पसीने की कमाई का होता है जिसे नेता लोग संसद में हुल्लड़ मचा कर उड़ा देते हैं घंटों कार्यवाही बाधित रहती है क्यों ?कई कई दिन बीत जाते हैं ऐसे क्यों !
     संसद चर्चा का मंच है चर्चा करने सुनने वालों की शिक्षा और बौद्धिक स्तर चर्चा करने और समझने लायक होना चाहिए किंतु जो सदस्य अल्प शिक्षित हैं उनका संसद में क्या काम वो सोवें तो शिकायत बाहर  जाकर समय पास करें तो शिकायत और मोबाईल पर पिच्चर देखें तो शिकायत और हुल्लड़ करें तब तो शिकायत है ही !वो तो अपने पार्टी मालिकों का इशारा पाते ही हुल्लड़ मचाने लगते हैं उन्हें न संसद से कुछ लेना देना होता है न संसद की मर्यादाओं से वो तो बड़ी बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों की तरह अपनी पार्टी के मालिकों को ही सब कुछ समझते हैं देश समाज एवं जनता के लिए उनकी कोई निजी सोच ही नहीं होती है फिर भी सरकार उनकी सुख सुविधाओं सैलरी आदि पर जनता से टैक्स रूप में प्राप्त धन खर्च करती है क्यों ? 
    देशवासियों की आखों के सामने ही टैक्स का दुरूपयोग जब साफ साफ दिखाई पड़ रहा हो तो जनता टैक्स क्यों दे ?उच्च शिक्षा ,संसदीय योग्यता चरित्र एवं सुसंस्कारों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन यदि किया जाता होता तो न इतना हुल्लड़ होता न उट  पटाँग भाषा बोली जाती और सम्मान्य सदस्यों के वैचारिक आदान प्रदान का उच्चस्तरीय स्तर भी भारतीय संसद को दुनियाँ में गौरवान्वित कर रहा होता !राजनैतिक दलों में उच्च शिक्षा ,सदाचरण एवं संसादीय गुणवत्ता की अनिवार्यता क्यों न की जाए !
      दूसरा जनता के टैक्स का पैसा सरकार उन सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी सुविधाओं आदि पर खर्च करती है जिन पर काम की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है फिर भी सैलरी भारी भारी होती हैं ऊपर से सरकार समय समय पर बढ़ाए जा रही होती है क्यों ?सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण पिछले कुछ दसकों से सरकारी नौकरियाँ पाने के लिए लोग सोर्स और घूस के बल पर घुस जाते रहे हैं नौकरियों में उन अयोग्य लोगों को योग पदों पर बैठा देने के दुष्परिणाम जनता भोग रही है वे या  करते नहीं हैं या कर नहीं पाते हैं या घूस लेकर करते हैं !सरकारी स्कूल अस्पताल डाक एवं दूर संचार व्यवस्था आदि तो लापरवाही के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं इनकी कार्यशैली जनता का हृदय नहीं जीत सकी । शिक्षक,चिकित्सक,डाककर्मी या टेलीफोन विभाग से जुड़े लोगों की प्राइवेट वालों से कई कई गुना अधिक सैलरी और उनसे कमजोर काम !जबकि उनसे कम सैलरी पर रखे गए लोगों ने प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कोरियरों मोबाइल कंपनियों के माध्यम से जनता का विश्वास जीत रखा है !तभी तो देशवासी सरकारी की अपेक्षा प्राइवेट सेवाओं पर ज्यादा भरोसा करते हैं । जबकि प्राइवेट वालों की सैलरी इतनी कम होती है कि सरकारी एक कर्मचारी की सैलरी में प्राइवेट दो तीन चार लोग आसानी से निपटाए जा सकते हैं !वो लोग अलभ्य नहीं हैं फिर भी सरकार उन सस्ते लोगों को न रखकर महँगे लोग रखती है क्यों ?उनकी सैलरी बढ़ाती रहती है क्यों ? इसे टैक्स से प्राप्त पैसे का सदुपयोग कैसे मान लिया जाए ! सरकार के कई विभागों में तो  कुछ लोग बिनाघूस लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाते हैं उनसे समय पर काम कराने के लिए व्यापारियों को रखना पड़ता है कालाधन !
    प्रधानमन्त्री जी ! अधिक नहीं आप केवल 8-30 नवंबर के बीच के किसी भी बैंक के अंदर के वीडियो देख लीजिए !PM साहब !सब कुछ पता चल जाएगा आपको कि नोटबंदी में लाइनें इतनी लंबी क्यों हुईं और सरकारी इंतजामों की भद्द क्यों और किसने पिटवाई !महोदय ! भ्रष्टाचार का जन्म ही सरकार के  भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की कोख से हुआ है ! सोर्स और घूस देकर जिन्हें नौकरियाँ मिली हों उनसे योग्यता  और आदर्श आचरणों की अपेक्षा भी कैसे की जाए !ऐसे लोगों को जब नौकरियाँ मिली थीं तब उनके पास कुछ ख़ास नहीं था किंतु आज कई के पास तो करोड़ों अरबों का अम्बार लगा है कई कई मकान हैं उनकी संपत्तियों का उनकी सैलरी या घोषित आय स्रोतों से कहीं कोई मेल नहीं खाता !क्या ऐसे भ्रष्ट और अयोग्य अपने कर्मचारियों की संपत्तियों की जाँच भी करेगी सरकार !
       जो नेता जब से पहला चुनाव जीता था तब उसके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है ! जाँच के दायरे में चल अचल सारी  संपत्तियाँ लाई जाएँ !और इस बीच के उनके आय स्रोतों की भी जाँच हो !अक्सर नेता लोग सामान्य परिवारों से आते हैं चुनाव जीतते ही बिना कुछ किए धरे ही सारे राज सुख भोगते भोगते करोड़ों अरबों पति बन जाते हैं दो चार मकान तो निगमपार्षदों के कब और कैसे बन जाते हैं उन्हें पता ही नहीं लगता !राजनीति शुरू करते समय प्रायः नेताओं के पास व्यापार करने के लिए न पैसा होता है और न समय फिर भी करोड़ों अरबों की कमाई कर लेते हैं आखिर कैसे ?वो भी ईमानदारी पूर्वक !ऐसा कैसे संभव हो पाता है जाँच इसकी भी हो और जनता के सामने लाई जाए सच्चाई !
       सरकारी जमीनों पर कब्जा करवाने वाले यही सरकारी अधिकारी और कर्मचारी होते हैं कुछ तो अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं कुछ घूस लेकर शांत हो जाते हैं उनकी आँखों के सामने सरकारी जमीनों पर बनाकर खड़ी कर दी जाती हैं बिल्डिंगें !ऐसे अवैध कब्जों के लिए सरकार उन्हें जिम्मेदार मानकर उन पर कार्यवाही क्यों नहीं करती है ! ऐसे सभी प्रकार के अपराध जिन अधिकारियों कर्मचारियों के तत्वावधान में घटित होते हैं उन्हें ही जिम्मेदार मानकर की जानी चाहिए कार्यवाही ।