आदरणीय सांसद श्री वीरेंद्र सिंह 'मस्त' जी !
आपको सादर नमस्कार !
बिषय : कोरोनामहामारी को लेकर हो रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों के विषय में महत्वपूर्ण निवेदन करने हेतु !
महोदय,
इसके लिए के समय में
के समय का उद्देश्य होता है किंतु प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिकअनुसंधान और जनता की आवश्यकताओं की कसौटी पर उतने खरे नहीं उतर पा रहे हैं जितनी कि अपेक्षा है |
महोदय !
आपको सादर नमस्कार !
बिषय : कोरोनामहामारी को लेकर हो रहे वैज्ञानिक अनुसंधानों के विषय में महत्वपूर्ण निवेदन करने हेतु !
महोदय,
वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य लोकहित होता है | जनता की आवश्यकताओं की आपूर्ति को आसान बनाने के उद्देश्य से वैज्ञानिक अनुसंधान सरकारें करवाया करती हैं | कोरोना जैसी किसी भी महामारी ,भूकंप ,बाढ़ तूफान एवं हिंसक प्राकृतिक आपदाओं से लोगों का अधिक से अधिक बचाव जिस किसी भी प्रकार से किया जा सके इसके लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता होती है | ऐसे अनुसंधान समाज की आवश्यकताओं की आपूर्ति करने में कितने प्रतिशत सफल हो रहे हैं यह समीक्षा का बिषय है |
भूकंप वर्षा बाढ़ तूफ़ान या महामारी जैसे संकटों से बचाव के लिए सबसे पहले इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने की ही आवश्यकता होती है आपदा प्रबंधन तो पूर्वानुमान पता लगने के बाद की बात है | दुर्भाग्य से पिछले दस वर्षों में भूकंप वर्षा बाढ़ तूफ़ान ,महामारी आदि जितनी भी बड़ी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित हुई हैं उनमें से दो चार घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो किसी भी घटना के बिषय में स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है जो जनधन की हानि को कम करने में विशेष मददगार सिद्ध हो सका हो |
भूकंपों के बिषय में अभी तक किए गए वैज्ञानिकअनुसंधानों के द्वारा केवल इतना पता लगाया जा सकता है कि किस भूकंप की तीव्रता कितनी थी !ऐसे ही वर्षा बाढ़ तूफ़ानों के विषय में बादलों और तूफ़ानों को उपग्रहों की मदद से देख कर दिशा एवं गति का अंदाजा लगा लिया जाता है या किस प्राकृतिक घटना ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है या कितने बारिश हुई है या किस तूफान का क्या नाम रखा जाना चाहिए !ये बातें जनता की आवश्यकताओं की न तो कसौटी पर खरी उतरती हैं और न ही इनमें कोई वैज्ञानिकता है इसमें वैज्ञानिक उपलब्धि जैसा कुछ भी नहीं है | इसी प्रकार से कोरोना जैसी महामारी के विषय में टेस्ट करके किसे संक्रमण है किसे नहीं केवल इतना ही पता लगाया जा सका है |
श्रीमान जी ! इस बिषय पर मैं पिछले 25 वर्षों से गणितीय प्रक्रिया से अनुसंधान करता आ रहा हूँ जिसके आधार पर
इस महामारी की बनती बिगड़ती परिस्थितियों का भी पूर्वानुमान लगाने में काफी
सफलता मिली है | इसके आधार पर अनुसंधान पूर्वक अनुभव में आया है कि कोरोना जैसी महामारी भी मौसमसंबंधी घटनाओं की कमी या अधिकता से निर्मित होती हैं | ऐसी महामारियों के आने की सूचना मौसम संबंधी घटनाएँ महामारियों के प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले से देने लगती हैं इनका पूर्वानुमान मौसम संबंधी अनुसंधानों के द्वारा ही लगाया जा सकता है |
मौसम संबंधी घटनाओं का दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान न होने के कारण कोरोना जैसी महामारी के विषय में न तो पूर्वानुमान लगाया जा सका है और न ही इस महारोग के निश्चित कारणों को खोजा जा सका !महारोग के निश्चितलक्षणों की खोज नहीं की जा सकी और न ही महामारी से मुक्त होने की कोई चिकित्सा ही खोजी जा सकी है | ये महामारी कब तक रहेगी या इस महामारी के फैलाव के बिषय में संबंधित वैज्ञानिकों के विरोधाभाषी बयान सुने जा रहे हैं इसके साथ ही इतनी बड़ी महामारी के विषय में अभी तक प्राप्त लगभग सभी सूचनाओं में वैज्ञानिकनिश्चयों का अभाव रहा है |
कुलमिलाकर हमेंशा चलाए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधानों की इतनी बड़ी महामारी में अभी तक कोई भूमिका सिद्ध नहीं हो सकी है संक्रमित होने से लेकर स्वस्थ या अस्वस्थ रहने संबंधी सभी परिस्थितियों में जनता को अकेले अपने बल पर इतनी बड़ी महामारी का सामना करना पड़ रहा है | प्राकृतिक आपदाओं के समय में भी जनता को ही जूझना पड़ता है |वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में आपदा प्रबंधन भी अचानक उतनी मदद नहीं पहुँचा पाते हैं पहले से पता होने पर उनका अधिक लाभ लिया जा सकता है |
ऐसी परिस्थिति में भारत की प्राचीन गणितीयपद्धति से अनुसंधान पूर्वक मौसम और महामारी के बिषय में दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने में बड़ी मदद मिल सकती है जिससे संबंधित सूचनाएँ मैं प्रधानमंत्री जी की मेल पर भेजता रहा हूँ जो आपको भी फॉरवर्ड कर रहा हूँ किंतु प्रधानमंत्री जी के यहाँ से हमारे किसी पत्र का कोई उत्तर नहीं दिया गया है |
महोदय !अतएव आपसे विनम्र निवेदन है कि इस गणितीयअनुसंधान को लोकोपयोगी बनाने हेतु आप सरकारी स्तर पर मेरी मदद करें जिससे इस अनुसंधान को और अधिक विस्तार पूर्वक आगे बढ़ाकर मौसम एवं महामारी से संबंधित घटनाओं का आगे से आगे पूर्वानुमान लगाकर समाज की आवश्यकताओं के अनुशार आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सके !
रें सहयोग से कुछ समाज बचाव तो उसके बाद की बात होती है ऐसी घटनाओं के बिषय में उसके बाद में आती है
इसके लिए के समय में
के समय का उद्देश्य होता है किंतु प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिकअनुसंधान और जनता की आवश्यकताओं की कसौटी पर उतने खरे नहीं उतर पा रहे हैं जितनी कि अपेक्षा है |
भूकंपों के विषय में समाज की आवश्यकता पूर्वानुमान जानने की है ताकि भूकंप आने से पहले समाज सुरक्षित स्थानों पर पहुँच जाए इस आवश्यकता की आपूर्ति के लिए कहाँ कितनी तीव्रता का भूकंप आया है इसका पता लगाने के लिए भूकंप सूचकयंत्र लगाए जा रहे हैं जिनका जनता की आवश्यकताओं से कोई लेना देना नहीं है |
इसीप्रकार से कृषि योजना बनाने के लिए किसानों की आवश्यकता दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की है जबकि अधिकतम पूर्वानुमान 5 दिन पहले के उपलब्ध करवाए जा पा रहे हैं जो किसानों की आवश्यकताओं की पूर्ति में उतने सहायक नहीं होते हैं जितनी अपेक्षा है |
प्राकृतिक घटनाओं की दृष्टि से पिछले कुछ वर्षों में आँधी तूफ़ान की बड़ी घटनाओं एवं बाढ़ की बड़ी घटनाओं का स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है | वस्तुतः प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने का अभी तक कोई प्रमाणित विज्ञान खोजा ही नहीं जा सका है और यह समय की गति के अनुसंधान के बिना संभव भी नहीं है |
श्रीमानजी! मौसम का पूर्वानुमान लगाए बिना किसी महामारी के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि किसी महामारी के प्रारंभ होने से पूर्व कुछ वर्ष पहले से आँधी तूफ़ान वर्षा बज्रपात आदि न केवल हिंसक होने लगते हैं अपितु इनके कर्म और प्रभाव में भी अंतर आने लगता है | ऐसा पिछले कुछ वर्षों से हो भी रहा है बार बार भूकंप आ रहे हैं इनके द्वारा मिलने वाले संकेतों को समयविज्ञान के द्वारा समझकर ही मैंने 19 मार्च 2020 को प्रधान मंत्री जी को महामारी के विषय में पत्र लिखा था कि उसमें इस महामारी के विषय में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई हैं वो मेल मैं संलग्न कर रहा हूँ | 6 मई के बाद से महामारी समाप्त होने लगेगी उसमें ऐसा लिखा गया है बिना किसी दवा एवं वैक्सीन आदि के ही 6 मई के बाद ही कोरोनासंक्रमितों के स्वस्थ होने की गति बढ़ी है जो क्रमशः बढ़ती चली जाएगी ! 9 अगस्त 2020 के बाद कोरोना जैसे किसी संक्रमण के दोबारा बढ़ने की संभावना है जो 24 सितंबर 2020 तक चलेगा !इस विषय में मैंने 16 जून को भेजा है वह भी आपको भेज रहा हूँ |
मैं प्राचीन भारत के समयविज्ञान पर पिछले 25 वर्षों से अनुसंधान करता आ
रहा हूँ महामारियों मौसम एवं भूकंपों के प्रभाव के विषय में इसकी गणना
अत्यंत सही एवं सटीक बैठती है | इससे महामारी मौसम आदि प्राकृतिक घटनाओं
के विषय में अनुसंधान करने में बहुत मदद मिल सकती है |मैंने समय संबंधी
अनुसंधानों को प्रोत्साहित करने के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी को इस विषय
में कई पत्र लिखे किंतु उनका आज तक कोई उत्तर नहीं मिला है |
कोरोना जैसी महामारी के इतने बड़े संकट से निपटने में कुछ समय तो लगेगा
किंतु अधिक घबड़ाने की आवश्यकता इसलिए नहीं है क्योंकि इस दृष्टि से जो समय
अधिक बिषैला था वो 11 फरवरी तक ही निकल चुका था | इसलिए महामारी का केंद्र
रहे वुहान में यहीं से इस रोग पर अंकुश लगना प्रारंभ हो गया था | उसके बाद
इस महामारी
के वुहान से दक्षिणी और पश्चिमी देशों प्रदेशों में फैलने का समय चल रहा
है | जो
24 मार्च 2020 तक चलेगा | उसके बाद इस महामारी का समाप्त होना
प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद समय में
पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से
मुक्ति पा सकेगा |
ऐसी महामारियों
को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं
ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |इसमें चिकित्सकीय प्रयासों
का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों
का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है | किसी भी
महामारी की शुरुआत समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने पर ही
महामारी की समाप्ति होती है | समय से पहले इस पर नियंत्रण करने के लिए
अपनाए जाने वाले प्रयास उतने अधिक प्रभावी नहीं होते हैं |
किसी महामारी पर नियंत्रण न हो पाने का कारण यह है कि कोई भी महामारी तीन
चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते
समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती है
ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं
पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों
बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है
वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों आदि का जल
प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए
शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम
पड़ पाता है |
विशेष बात यह है
जो औषधियाँ बनस्पतियाँ आदि ऐसे रोगों में लाभ पहुँचाने के लिए जानी जाती
रही हैं बुरे समय का प्रभाव उन पर भी पड़ने से वे उतने समय के लिए निर्वीर्य
अर्थात गुण रहित हो जाती हैं जिससे उनमें रोगनिवारण की क्षमता नष्ट हो
जाती है |
महामारी समय के
बिगड़ने से प्रारम्भ होती है और समय के सुधरने से ही समाप्त होती है
प्रयत्नों का बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाता है |पहले समय की गति सँभलती है उस प्रभाव से
ऋतुविकार नष्ट होते हैं उससे पर्यावरण सँभलता है |उसका प्रभाव वृक्षों
बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की
वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर पड़ता है |कुओं नदियों तालाबों आदि का
जल प्रदूषण मुक्त होकर जीवन के लिए हितकारी होने लग जाता है |
इसीलिए आयुर्वेद की चरक और सुश्रुत आदि संहिताओं में महामारी फैलने तथा
उनके समाप्त होने से संबंधित पूर्वानुमान लगाने की विधि बताई गई है जिस पर
मैं विगत लगभग तीस वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ | उसी 'समयविज्ञान'
के आधार पर मैंने पूर्वानुमान लगाने का यह प्रयास किया है |जिसके सही होने
की संभावना समझकर ही मैं यह निवेदन पत्र आपको भेज रहा हूँ |
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