Monday, 27 July 2020


एवं आवश्यक




भगवान् राम भी भरत 

विरोधियों की अच्छाइयाँ न होकर अपितु काँग्रेस की अपनी कमजोरियाँ हैं | वैसे जो कमियाँ हैं उन्हें तो पार्टी के बरिष्ठ लोग मिल जुलकर पता लगा ही लेते हैं और उसका समाधान भी निकाल लेते हैं किंतु कुछ ऐसी कमियाँ हैं जिनके बिषय में सभी लोगों को पता ही नहीं होता है






प्रधानमंत्री जी !
     महोदय !कोरोना जैसी महामारी किसी दवा या वैक्सीन से समाप्त नहीं होती है पहले भी कभी ऐसा हुआ नहीं है |महामारी का समय समाप्त होने पर महामारी स्वयं समाप्त होने लगती है उस समय कुछ लोग वैक्सीन या किसी दवा को  प्रचारित कर लेते हैं कि इससे महामारी समाप्त हुई है जबकि महामारी की समाप्ति में उसकी कोई भूमिका ही नहीं होती है ! 

       श्रीमान जी !महामारी को समझने का विज्ञान अभी तक विकसित ही नहीं किया जा सका है जिस विज्ञान के द्वारा महामारी के वास्तविक स्वभाव को समझा जा सकता है उसे सरकार विज्ञान नहीं मानती है |


     आदरणीय !महामारी समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने से ठीक होती है !विश्व के  वैज्ञानिक 'समय' के बिषय में अनुसंधान करना आवश्यक नहीं समझते इसलिए महामारी को समझाना उनके बश की बात ही नहीं है !वे केवल तीर तुक्के लगाते रहेंगे !जब समय आ जाएगा तब महामारी अपने आपसे ही समाप्त होगी !

     श्रीमान जी !भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं महामारी आदि समय बिगड़ने से शुरू होती हैं !आज बार बार भूकंप आ रहे हैं मई जून तक वर्षा होती रही है हिंसक आँधी तूफ़ान घटित हुए हैं हिंसक बज्रपात हुए हैं उसी गति से महामारी बढ़ती जा रही है ! आखिर इसी वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है ?इनके  आपसी संबंध को समझने वाले वैज्ञानिक कहाँ हैं और जो समझते हैंसरकारें उन्हें वैज्ञानिक नहीं मानती हैं | 

    महोदय !भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ बज्रपात आदि घटनाएँ भी कुछ कहती हैं यदि उनके द्वारा दिए गए संदेशों पर ध्यान दिया गया होता तो आज यह दुर्दशा शायद न होती !किंतु उनकी भाषा समझना आवश्यक समझा ही नहीं जा रहा है !

     आदरणीय !मौसम को ठीक ठीक समझे बिना महामारी को नहीं समझा जा सकता है और मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले अभी तक सक्षम वैज्ञानिक तैयार ही नहीं किए जा सके हैं इसीलिए बड़ी बड़ी हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ अचानक घटित होते देखी जाती हैं !उपग्रहों रडारों की मदद से बादलों आँधी तूफानों की जासूसी कर लेना मौसमविज्ञान नहीं है ! 

    प्रधानमंत्री जी ! आप भी उन्हीं लोगों की बातें सुनते मानते हो तो सक्षम प्रचारित प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित होते हैं जबकि प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले सिद्ध साधक सरकारी कार्यालयों में बैठे नहीं मिलेंगे !यह सच्चाई है !



जिस ताले को खोलना है उसी की ताली लगानी पड़ेगी दूसरी ताली से कैसे खुल जाएगा !


क्षमता विज्ञानं के पास का विज्ञान अभी

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