कोरोनिल : कोरोना किलर या इम्युनिटी बूस्टर? ये रामदेव को खुद नहीं पता है !महामारी को मजाक उड़ाते फिर रहे हैं रामदेव !
'कोरोनिल' अब कोरोना की दवा नहीं 'इम्युनिटीबूस्टर' है मतलब क्या ?पढ़िए यह रिसर्च !
कोरोनिल का आयुर्वेद में कहीं जिक्र ही नहीं है तो ये दवा आयुर्वैदिक कैसे हो सकती है और यदि इसमें किसी भी प्रकार के दवा संबंधी गुण होते तो इस कोरोनिल खाने का कुछ हानि लाभ भी होता |आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कोरोना जैसी इतनी बड़ी महामारी के लिए बनाई गई कोई भी ऐसी प्रभावी दवा कोई भी कभी ले सकता है जिसे कोरोना हो वो भी ले सकता है जिसे कोरोना न हो वो भी ले सकता है | बिल्कुल वही कोरोनिल जिसके बिषय में पहले कोरोना को सौ प्रतिशत ठीक करने का दावा किया जा रहा था जब उसे बेचने की अनुमति नहीं मिली तो कहने लगे ये तो इम्युनिटीबूस्टर है |
रामदेव जी !आपने 'इम्युनिटीबूस्टिंग' के लिए सबसे पहले कसरतें करानी शुरू की थीं !आपकी वो बात जब झूठी निकली तब 'इम्युनिटीबूस्टिंग' करने का झाँसा देकर ही तो आपने शुद्ध स्वदेशी आयुर्वेदिक दवाओं के नाम पर न जाने क्या क्या बेच दिया ! उसके बाद भी उन लोगों की इम्युनिटीबूस्टिंग नहीं हुई तो आपने इम्युनिटीबूस्टर शुद्ध स्वदेशी राशनकिट बनाई और वो बेचने लगे !लोग खुंदक में पूछने लगे तुम्हारा शुद्ध स्वदेशी घी के लिए इतनी गउएँ कहाँ पाल रखी हैं आपके पास कोई जवाब नहीं था तो लोगों के क्रोध से बचने के लिए आप राजनीति में हाथ पैर मरने लगे !इतनी बड़ी कोरोना जैसी महामारी देखकर आप इसे भी कैस करने निकल पड़े !
आयुर्वेद के नाम पर जो कबाड़ आप बेच रहे हो उसकी चर्चा आयुर्वेद के किस ग्रंथ के किस अध्याय में है आपको पता ही नहीं होता है दवा में क्या पड़ा इसके हानि लाभ क्या हैं आपको नहीं पता बेचने मतलब किसी नाम पर बिके कोरोना किलर या इम्युनिटी बूस्टर !आपको पता है ये नुक्सान करेगी नहीं फायदा इससे होना नहीं है संक्रमण रिकवरी रेट बढ़ ही रहा है हमारी दवा भी उसी घपले बाजी में बिक जाएगी !आपकी डब्बियों में दवाओं के नाम पर कुछ का भरा होता है जिनका आयुर्वेद के किसी ग्रंथ के किसी अध्याय में कोई प्रमाण ही नहीं होता और जिसका आयुर्वैदिक ग्रंथों में ही प्रमाण नहीं वो दवा आयुर्वेदिक कैसे हो सकती है | आपकी कोरोनिल की भी यही स्थिति है पहले कोरोना किलर कहा अब इम्युनिटी बूस्टर कह रहे हो इसे भी बंद कर दिया जाए तो कुछ और ..... !
दवाओं के नाम पर आपने कितना कबाड़ बेच दिया ये आपका संचित धन बताता है| के लिए ही आपने पर कुछ भी बेचना वाएँ बेचनी शुरू की थीं ! इसके बाद 'इम्युनिटीबूस्टिंग' के लिए आटा दाल चावल आटा आदि शुद्ध खाद्य पदार्थ बेचने शुरू किए थे लोगों ने खूब ख़रीदे खूब खाए इसीलिये आज आप इतने बड़े धनवान बन पाए हो !किंतु आपके उन प्रयासों का असर होना होता तो अब तक होता और लोगों की 'इम्युनिटीबूस्टिंग' हो जाती और यदि 'इम्युनिटीबूस्टिंग' हुई होती तो विश्व के लोगों पर महामारी का उतना असर नहीं हुआ होता क्योंकि आप तो अपने को "विश्व का योगगुरु "बताते हो | सारा विश्व आज महामारी से परेशान है !आपके प्रयासों की प्रशंसा की जा सकती है किंतु आपसे ये प्रश्न तो पूछा ही जा सकता है कि कोरोना जैसी महामारी के विस्तार में आपके 'इम्युनिटी बूस्टर' प्रयासों की क्या भूमिका रही ! आपका अब एक नया 'इम्युनिटी बूस्टर' !
इम्युनिटीबूस्टर केवल रामदेव की 'कोरोनिल' ही तो नहीं है और भी बहुत सारी चीजें हैं जो आमघरों में खान में प्रयोग की जा रही हैं' उन्हें 'इम्युनिटीबूस्टर' बताकर लोग बेचने निकल पड़े हैं एक थैली में चार छै चीजें डालकर 'इम्युनिटीबूस्टर' किट बना कर बेचने लगे हैं उनसे यह भी नहीं कहा जा सकता कि आपका 'इम्युनिटीबूस्टर' नहीं है क्योंकि इसके लिए कारण तो बताना पड़ेगा कि उनके द्वारा बनाई गई इम्युनिटीबूस्टिंग किट गलत है क्योंकि सही तो वे भी हैं -वे
पंसारियों की इम्युनिटी बूस्टर किट : दालचीनी, लौंग,सोंठ,मेथी, हल्दी ,जीरा,अजवाइन आदि !
जड़ीबूटी बेचने वालों की इम्युनिटी बूस्टर किट:गिलोय,आँवला ,हरड़,बहेड़ा,छोटीपीपल,असगंध,शतावरआदि !!
पार्क के मालियों की इम्युनिटी बूस्टर किट :गुर्च,जामुन, नीम, तुलसी ,आदि
सब्जीवालों की इम्युनिटी बूस्टर किट :अदरक,लहसुन,नीबू,प्याज,पुदीना ,गाजर,चुकंदर आदि
फलवालों की इम्युनिटीबूस्टर किट :गर्मियों में संतरा, तरबूज ,खरबूजा, ककड़ी ,सेब,अंगूर तथा आम आदि
डेरीवालों की इम्युनिटी बूस्टर किट :दूध, दही,घी, मक्खन,पनीर आदि !
नमकीन बेचने वालों की इम्युनिटी बूस्टर किट :मूँगफली,दालें ,मखाने,काजू ,आदि से बने नमकीन |
ड्राईफ्रूट बेचने वालों की इम्युनिटी बूस्टर किट :कोई काजू बादाम अखरोट आदि पाँच मेवा !
कसरत सिखाने वालों का इम्युनिटी बूस्टर किट : कोई भी पाँच प्रकार की कसरतें करने की लिस्ट बना रखी है |
सब अपनी अपनी चीजों के बिषय में कहते हैं कि ये इम्यूनिटी बूस्टर का काम करते हैं उन्हें गलत कैसे कहा जा सकता है |ऐसे लोगों की इम्युनिटी बूस्टर किटों में और आप वाली में कितना अंतर है | कोरोनिल' में उससे अलग क्या है ये अंतर रामदेव जी आपको समझाना चाहिए |
रामदेव जी आपने कहा कि हमारे प्रयासों की मंत्रालय ने सराहना की !आपने देखा होगा टीवी पर दिखाए जाने वाले प्रतिस्पर्द्धात्मक कार्यक्रमों में जिस पराजित कैंडिडेट को उस कार्यक्रम से बाहर करना होता है उसे निकालने से पहले वे सभी जज मिलकर उसके प्रयासों की बहुत प्रशंसा करते हैं बाद में धीरे से कह देते हैं "आईएमसॉरी" हुआ यहाँ भी कुछ यही है पढ़े लिखे लोग समझ भी गए हैं - "हम आपकी 'कोरोनिल' को कोरोना की दवा के रूप में मान्यता नहीं दे सकते !"इसका मतलब आपकी कोरोनिल को कोरोनामुक्ति दिलाने की दवा के योग्य नहीं पाया गया | इसका मतलब साफ है इसमें वे गुण नहीं पाए गए जिनका आप दावा कर रहे थे | इन सब बातों का इकठ्ठा मतलब ये होता है कि आप झूठ बोल रहे थे और आपका झूठ पकड़ लिया गया है | अब आप अपनी कोरोनिल फेंकेंगे तो है नहीं आप खपाएँगे तो इसी समाज में !जिसे अभी तक कोरोना की दवा बता रहे थे वही चीज अचानक 'इम्यूनिटी बूस्टर" कैसे बन गई !आप अपना दाँव खाली नहीं जाने देना चाहते हैं इसलिए आप कुछ भी करेंगे क्या और आप उम्मींद करते हैं कि समाज की जीवित बिचार वाले लोग भी प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करेंगे ! कितनी गिरी सोच !
कोरोनिल लोग खरीदेंगे भी !उसमें कोई नुकसान भी नहीं है आपने दवाएँ बेचने के लिए साधू संतों जैसा वेष बना रखा है लोग उस वेष को बहुत श्रृद्धा से देखते हैं | इसलिए समाज आपकी 'कोरोनिल' आपको पैसे देकर खरीदेगा !चंदा तो लोग नेताओं को भी विकास के नाम पर दे देते हैं वे उन्हें विकास के आश्वासन देकर चले जाते हैं | आपकी 'कोरोनिल' है आपको भी चंदा दे देंगे आप उन्हें इम्युनिटी बूस्टिंग का आश्वासन देकर मुक्त हो जाओगे !समाज नेताओं को सहती है ऐसे ही आपको भी सह ही लेगी ! किंतु समय आपसे पूछेगा कि महामारी के समय समाज के भय का दोहन करने की आपकी क्या मजबूरी थी |
इसके लिए लिए विश्व का सजीव समाज कुछ तो बोलेगा !उसे आप तुरंत कहने लगते हो ये ड्रग वाली दवाओं का समर्थक है इसने अंग्रेजी दवा वाली कंपनियों से पैसे खाए हैं !ये जातिवादी है !ये आयुर्वेद का विरोधी है! अरे आपकी कृतियों का विरोध आयुर्वेद का विरोध कैसे हो गया !आयुर्वेद है उतना ही हमारा भी है सारे सनातन धर्मावलंबियों का भी है आयुर्वेद पर केवल अपनी बपौती समझना कहाँ का न्याय है !आपके अलावा भी देश के करोड़ों लोग आयुर्वेद पर आस्था रखते हैं वे भी उन्हीं पूर्वजों की संतानें हैं जिनके आप है आयुर्वेद पर अधिकार उनका भी उतना ही है जितना आपका है इसलिए आपकी कृतियों का नीतिगत विरोध करने वालों के लिए आप अपने लोगों से अपशब्दों का प्रयोग करवाते हैं पेड़ मीडिया के कुछ लालची पत्रकारों को धन देकर उन लोगों की आलोचना करवाते हैं जो आपके महामारी भयदोहन का विरोध करते हैं | ये स्वस्थ परंपरा नहीं है अधिक आपत्ति लगती है तो खुले मंच पर चर्चा कर लेनी चाहिए सारा भ्रम समाप्त हो जाएगा !विद्वान् लोग आदिकाल से ऐसा करते रहे हैं ऐसा करने से आप बचते क्यों हैं |इस बिषय में प्रबंधितमीडिया की वैशाखी बहुत अधिक मदद नहीं कर पाएगी |
कुलमिलाकर बाबा रामदेव अब अपनी 'कोरोनिल' को किसी रोग की दवा के रूप में नहीं बेच सकते हैं | इस बात से 'कोरोनिल' कोरोना की दवा नहीं है यह प्रमाणित हो गया है | इससे यह भी प्रमाणित हो गया कि बाबा जी ने इस दवा से कोरोना ठीक करने का जो दावा किया था वह भी ख़ारिज कर दिया गया !रही बात इम्युनिटी बढ़ाने के योग्य इस दवा को माने जाने की तो इम्युनिटी सिस्टम सुधारने के लिए तो घी तेल पनीर दालें आदि वस्तुएँ पहले से बेची जाती रही हैं वैसे हो 'कोरोनिल' भी बेची जा सकती है इसका अदरक, दालचीनी, असगंध ,लौंग, गिलोय ,तुलसी जैसी सर्वजन हितकारी भारतीय जीवन शैली में अनंत काल से उपयोग की जा रही वस्तुओं से अलग आस्तित्व क्या है ? समाज को ये तो पता लगना चाहिए !
'कोरोनिल' अब कोरोना की दवा नहीं 'इम्युनिटीबूस्टर' है मतलब क्या ?पढ़िए यह रिसर्च !
कोरोनिल का आयुर्वेद में कहीं जिक्र ही नहीं है तो ये दवा आयुर्वैदिक कैसे हो सकती है और यदि इसमें किसी भी प्रकार के दवा संबंधी गुण होते तो इस कोरोनिल खाने का कुछ हानि लाभ भी होता |आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कोरोना जैसी इतनी बड़ी महामारी के लिए बनाई गई कोई भी ऐसी प्रभावी दवा कोई भी कभी ले सकता है जिसे कोरोना हो वो भी ले सकता है जिसे कोरोना न हो वो भी ले सकता है | बिल्कुल वही कोरोनिल जिसके बिषय में पहले कोरोना को सौ प्रतिशत ठीक करने का दावा किया जा रहा था जब उसे बेचने की अनुमति नहीं मिली तो कहने लगे ये तो इम्युनिटीबूस्टर है |
रामदेव जी !आपने 'इम्युनिटीबूस्टिंग' के लिए सबसे पहले कसरतें करानी शुरू की थीं !आपकी वो बात जब झूठी निकली तब 'इम्युनिटीबूस्टिंग' करने का झाँसा देकर ही तो आपने शुद्ध स्वदेशी आयुर्वेदिक दवाओं के नाम पर न जाने क्या क्या बेच दिया ! उसके बाद भी उन लोगों की इम्युनिटीबूस्टिंग नहीं हुई तो आपने इम्युनिटीबूस्टर शुद्ध स्वदेशी राशनकिट बनाई और वो बेचने लगे !लोग खुंदक में पूछने लगे तुम्हारा शुद्ध स्वदेशी घी के लिए इतनी गउएँ कहाँ पाल रखी हैं आपके पास कोई जवाब नहीं था तो लोगों के क्रोध से बचने के लिए आप राजनीति में हाथ पैर मरने लगे !इतनी बड़ी कोरोना जैसी महामारी देखकर आप इसे भी कैस करने निकल पड़े !
आयुर्वेद के नाम पर जो कबाड़ आप बेच रहे हो उसकी चर्चा आयुर्वेद के किस ग्रंथ के किस अध्याय में है आपको पता ही नहीं होता है दवा में क्या पड़ा इसके हानि लाभ क्या हैं आपको नहीं पता बेचने मतलब किसी नाम पर बिके कोरोना किलर या इम्युनिटी बूस्टर !आपको पता है ये नुक्सान करेगी नहीं फायदा इससे होना नहीं है संक्रमण रिकवरी रेट बढ़ ही रहा है हमारी दवा भी उसी घपले बाजी में बिक जाएगी !आपकी डब्बियों में दवाओं के नाम पर कुछ का भरा होता है जिनका आयुर्वेद के किसी ग्रंथ के किसी अध्याय में कोई प्रमाण ही नहीं होता और जिसका आयुर्वैदिक ग्रंथों में ही प्रमाण नहीं वो दवा आयुर्वेदिक कैसे हो सकती है | आपकी कोरोनिल की भी यही स्थिति है पहले कोरोना किलर कहा अब इम्युनिटी बूस्टर कह रहे हो इसे भी बंद कर दिया जाए तो कुछ और ..... !
दवाओं के नाम पर आपने कितना कबाड़ बेच दिया ये आपका संचित धन बताता है| के लिए ही आपने पर कुछ भी बेचना वाएँ बेचनी शुरू की थीं ! इसके बाद 'इम्युनिटीबूस्टिंग' के लिए आटा दाल चावल आटा आदि शुद्ध खाद्य पदार्थ बेचने शुरू किए थे लोगों ने खूब ख़रीदे खूब खाए इसीलिये आज आप इतने बड़े धनवान बन पाए हो !किंतु आपके उन प्रयासों का असर होना होता तो अब तक होता और लोगों की 'इम्युनिटीबूस्टिंग' हो जाती और यदि 'इम्युनिटीबूस्टिंग' हुई होती तो विश्व के लोगों पर महामारी का उतना असर नहीं हुआ होता क्योंकि आप तो अपने को "विश्व का योगगुरु "बताते हो | सारा विश्व आज महामारी से परेशान है !आपके प्रयासों की प्रशंसा की जा सकती है किंतु आपसे ये प्रश्न तो पूछा ही जा सकता है कि कोरोना जैसी महामारी के विस्तार में आपके 'इम्युनिटी बूस्टर' प्रयासों की क्या भूमिका रही ! आपका अब एक नया 'इम्युनिटी बूस्टर' !
इम्युनिटीबूस्टर केवल रामदेव की 'कोरोनिल' ही तो नहीं है और भी बहुत सारी चीजें हैं जो आमघरों में खान में प्रयोग की जा रही हैं' उन्हें 'इम्युनिटीबूस्टर' बताकर लोग बेचने निकल पड़े हैं एक थैली में चार छै चीजें डालकर 'इम्युनिटीबूस्टर' किट बना कर बेचने लगे हैं उनसे यह भी नहीं कहा जा सकता कि आपका 'इम्युनिटीबूस्टर' नहीं है क्योंकि इसके लिए कारण तो बताना पड़ेगा कि उनके द्वारा बनाई गई इम्युनिटीबूस्टिंग किट गलत है क्योंकि सही तो वे भी हैं -वे
पंसारियों की इम्युनिटी बूस्टर किट : दालचीनी, लौंग,सोंठ,मेथी, हल्दी ,जीरा,अजवाइन आदि !
जड़ीबूटी बेचने वालों की इम्युनिटी बूस्टर किट:गिलोय,आँवला ,हरड़,बहेड़ा,छोटीपीपल,असगंध,शतावरआदि !!
पार्क के मालियों की इम्युनिटी बूस्टर किट :गुर्च,जामुन, नीम, तुलसी ,आदि
सब्जीवालों की इम्युनिटी बूस्टर किट :अदरक,लहसुन,नीबू,प्याज,पुदीना ,गाजर,चुकंदर आदि
फलवालों की इम्युनिटीबूस्टर किट :गर्मियों में संतरा, तरबूज ,खरबूजा, ककड़ी ,सेब,अंगूर तथा आम आदि
डेरीवालों की इम्युनिटी बूस्टर किट :दूध, दही,घी, मक्खन,पनीर आदि !
नमकीन बेचने वालों की इम्युनिटी बूस्टर किट :मूँगफली,दालें ,मखाने,काजू ,आदि से बने नमकीन |
ड्राईफ्रूट बेचने वालों की इम्युनिटी बूस्टर किट :कोई काजू बादाम अखरोट आदि पाँच मेवा !
कसरत सिखाने वालों का इम्युनिटी बूस्टर किट : कोई भी पाँच प्रकार की कसरतें करने की लिस्ट बना रखी है |
सब अपनी अपनी चीजों के बिषय में कहते हैं कि ये इम्यूनिटी बूस्टर का काम करते हैं उन्हें गलत कैसे कहा जा सकता है |ऐसे लोगों की इम्युनिटी बूस्टर किटों में और आप वाली में कितना अंतर है | कोरोनिल' में उससे अलग क्या है ये अंतर रामदेव जी आपको समझाना चाहिए |
रामदेव जी आपने कहा कि हमारे प्रयासों की मंत्रालय ने सराहना की !आपने देखा होगा टीवी पर दिखाए जाने वाले प्रतिस्पर्द्धात्मक कार्यक्रमों में जिस पराजित कैंडिडेट को उस कार्यक्रम से बाहर करना होता है उसे निकालने से पहले वे सभी जज मिलकर उसके प्रयासों की बहुत प्रशंसा करते हैं बाद में धीरे से कह देते हैं "आईएमसॉरी" हुआ यहाँ भी कुछ यही है पढ़े लिखे लोग समझ भी गए हैं - "हम आपकी 'कोरोनिल' को कोरोना की दवा के रूप में मान्यता नहीं दे सकते !"इसका मतलब आपकी कोरोनिल को कोरोनामुक्ति दिलाने की दवा के योग्य नहीं पाया गया | इसका मतलब साफ है इसमें वे गुण नहीं पाए गए जिनका आप दावा कर रहे थे | इन सब बातों का इकठ्ठा मतलब ये होता है कि आप झूठ बोल रहे थे और आपका झूठ पकड़ लिया गया है | अब आप अपनी कोरोनिल फेंकेंगे तो है नहीं आप खपाएँगे तो इसी समाज में !जिसे अभी तक कोरोना की दवा बता रहे थे वही चीज अचानक 'इम्यूनिटी बूस्टर" कैसे बन गई !आप अपना दाँव खाली नहीं जाने देना चाहते हैं इसलिए आप कुछ भी करेंगे क्या और आप उम्मींद करते हैं कि समाज की जीवित बिचार वाले लोग भी प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करेंगे ! कितनी गिरी सोच !
कोरोनिल लोग खरीदेंगे भी !उसमें कोई नुकसान भी नहीं है आपने दवाएँ बेचने के लिए साधू संतों जैसा वेष बना रखा है लोग उस वेष को बहुत श्रृद्धा से देखते हैं | इसलिए समाज आपकी 'कोरोनिल' आपको पैसे देकर खरीदेगा !चंदा तो लोग नेताओं को भी विकास के नाम पर दे देते हैं वे उन्हें विकास के आश्वासन देकर चले जाते हैं | आपकी 'कोरोनिल' है आपको भी चंदा दे देंगे आप उन्हें इम्युनिटी बूस्टिंग का आश्वासन देकर मुक्त हो जाओगे !समाज नेताओं को सहती है ऐसे ही आपको भी सह ही लेगी ! किंतु समय आपसे पूछेगा कि महामारी के समय समाज के भय का दोहन करने की आपकी क्या मजबूरी थी |
इसके लिए लिए विश्व का सजीव समाज कुछ तो बोलेगा !उसे आप तुरंत कहने लगते हो ये ड्रग वाली दवाओं का समर्थक है इसने अंग्रेजी दवा वाली कंपनियों से पैसे खाए हैं !ये जातिवादी है !ये आयुर्वेद का विरोधी है! अरे आपकी कृतियों का विरोध आयुर्वेद का विरोध कैसे हो गया !आयुर्वेद है उतना ही हमारा भी है सारे सनातन धर्मावलंबियों का भी है आयुर्वेद पर केवल अपनी बपौती समझना कहाँ का न्याय है !आपके अलावा भी देश के करोड़ों लोग आयुर्वेद पर आस्था रखते हैं वे भी उन्हीं पूर्वजों की संतानें हैं जिनके आप है आयुर्वेद पर अधिकार उनका भी उतना ही है जितना आपका है इसलिए आपकी कृतियों का नीतिगत विरोध करने वालों के लिए आप अपने लोगों से अपशब्दों का प्रयोग करवाते हैं पेड़ मीडिया के कुछ लालची पत्रकारों को धन देकर उन लोगों की आलोचना करवाते हैं जो आपके महामारी भयदोहन का विरोध करते हैं | ये स्वस्थ परंपरा नहीं है अधिक आपत्ति लगती है तो खुले मंच पर चर्चा कर लेनी चाहिए सारा भ्रम समाप्त हो जाएगा !विद्वान् लोग आदिकाल से ऐसा करते रहे हैं ऐसा करने से आप बचते क्यों हैं |इस बिषय में प्रबंधितमीडिया की वैशाखी बहुत अधिक मदद नहीं कर पाएगी |
कुलमिलाकर बाबा रामदेव अब अपनी 'कोरोनिल' को किसी रोग की दवा के रूप में नहीं बेच सकते हैं | इस बात से 'कोरोनिल' कोरोना की दवा नहीं है यह प्रमाणित हो गया है | इससे यह भी प्रमाणित हो गया कि बाबा जी ने इस दवा से कोरोना ठीक करने का जो दावा किया था वह भी ख़ारिज कर दिया गया !रही बात इम्युनिटी बढ़ाने के योग्य इस दवा को माने जाने की तो इम्युनिटी सिस्टम सुधारने के लिए तो घी तेल पनीर दालें आदि वस्तुएँ पहले से बेची जाती रही हैं वैसे हो 'कोरोनिल' भी बेची जा सकती है इसका अदरक, दालचीनी, असगंध ,लौंग, गिलोय ,तुलसी जैसी सर्वजन हितकारी भारतीय जीवन शैली में अनंत काल से उपयोग की जा रही वस्तुओं से अलग आस्तित्व क्या है ? समाज को ये तो पता लगना चाहिए !
बाबा जी !पलायन करने वाले लाखों मजदूरों गरीबों या घनीबस्तियों में रहने वाले लोगों में संक्रमण न फैलने का कारण उनका आपकी 'कोरोनिल' जैसी इम्युनिटी बूस्टर खाना नहीं अपितु दालरोटी खाना एवं परिश्रम करना है | वे प्रायः कोई टॉनिक भी नहीं पीते हैं | कंट्रोल का राशन या सरकारी राशन या सामान्य क्वालिटी के राशन से ही वे अपना पेट भर लेते हैं वह भी यदि उन्हें समय से मिल जाए तो उनके लिए वही इम्युनिटी बूस्टर साबित होता है | इसलिए आपकी 'कोरोनिल' से लाकर राशन तक जितनी भी चीजें हैं वे बिना खाए भी उनकी इम्युनिटी बढ़ी हुई है |
ऐसी परिस्थिति में कोरोना महामारी से भयभीत लोगों के भय का दोहन करने के लिए निराधार ऊटपटाँग दावे करना ठीक नहीं है जिनका कोई सिर पैर न हो और आयुर्वेद से जिसका कोई संबंध ही न हो ! आपकी कोरोनिल उसका एक ज्वलंत उदाहरण है जिसे आप कैसे भी आयुर्वेदिक औषधि के रूप में प्रमाणित नहीं कर सकते क्योंकि | इस बीमारी का आयुर्वेद के किसी ग्रंथ के किसी अध्याय के किसी श्लोक या सूत्र में कोई वर्णन ही नहीं है | महामारी से निपटने के लिए चरकसंहिता में जो विधि बताई गई है उसे कर पाने में आप असफल रहे हो !या उसे समझ पाना कर पाना आपके बश का ही न रहा हो ये अच्छे ढंग से आप ही बता सकते हैं |आप कहें तो मैं 'चरकसंहिता' का वह अध्याय आपके लिए भेज भी सकता हूँ आपको उचित लगे तो विषय में आप चाहें तो उचित टिप्पणी भी कर सकते हैं |
इसलिए अब आपकी 'कोरोनिल' कोरोना की दवा के रूप में नहीं अपितु एक खाद्यवस्तु के रूप में बेचीं जा सकती है! समस्या यही तो थी कि महामारी से डरे सहमे लोगों के डर कैस करने के लिए आपने कोरोना की दवा बना लेने का दावा कर दिया और साथ ही सौ प्रतिशत रोग मुक्ति मिलने का भी दावा किया वो औंधे मुख जमीन पर गिरा है जिसके कारण आपको और आपके सहयोगी को भी ये कहना पड़ा कि हमने कोरोना की दवा नहीं बनाई है जबकि सारा मीडिया आपके मुखारविंद से निकले दोनों दावों का साक्ष्य लिए खड़ा है किंतु "एकां लज्जां परित्यज्य सर्वत्र विजयी भवेत् " आपकी 'कोरोनिलबिजय' उसी भावना का एक ज्वलंत उदाहरण है |
बिना किसी दवा के ही संक्रमण से मुक्त होने वाले रोगियों की दर 60 के आस पास पहुँच चुकी है ऐसे समय में आप कोरोना दोहन के लिए ऐसी चीज लेकर मार्केट में आए जो फायदा करे न करे नुक्सान तो नहीं ही करेगी क्योंकि आयुर्वेदिक दवा है इसलिए फायदा न करे तो भी चलेगा !
आयुर्वेद से जुड़े लोगों ने ही अपनी ऐसी सोच के कारण आयुर्वेद की गरिमा गिराई है | आज प्रायः लोगों को यह कहते सुना जाता है कि आयुर्वेदिक दवाएँ लाभ करें या न करें नुक्सान नहीं करेंगी बहुत लोग इसलिए खरीद लेते हैं आयुर्वेदिक दवाएँ !क्या ये आयुर्वेद की प्रतिष्ठा के लिए ठीक है !आखिर आयुर्वेद की दवाएँ फायदा क्यों न करें !आयुर्वेद प्राचीन पद्धति है उसकी दवाओं की बराबरी दूसरी दवाएँ कर ही नहीं सकती हैं यदि उन्हें जानने समझने अनुभव करने वाला कोई हो ! दूसरी पद्धतियां अभी आई हैं क्या प्राचीन काल में लोग रोगी नहीं होते थे और उन्हें आयुर्वेदिक औषधियों से मुक्ति मिलते नहीं देखा जाता था |
रामदेव जी ! आपको अपनी आयुर्वेदिक योग्यता का इतना ही बड़ा भरोसा था तो भारत में जैसे ही कोरोना पैर पसारने लगा था उसी समय आप मसीहा बनकर खड़े हो जाते कि किसी को डरने की आवश्यकता नहीं है हमारे पास इस महामारी को रोकने एवं इससे मुक्ति दिलाने की औषधि तैयार है | उस समय सारा समाज डरा सहमा बैठा था तब आपकी घोषणा के अनुरूप होती कि मैं अपने देश एवं समाज को इस महामारी से संक्रमित नहीं होने दूँगा और अपने देश एवं समाज को महामारी की इस त्रासदी से बचा लेते !तब ये इम्युनिटी सिस्टम सुधारने की दवाओं की भी कुछ भूमिका हो सकती थी |रही बात रिसर्च की तो आयुर्वेद में रिसर्च कोई क्या कर लेगा उसमें सारे रोग पहले से लिखें हैं और उनकी औषधियाँ भी लिखी हैं उसे ठीक से पढ़ ले और उसकी प्रक्रिया समझ ले तो सैकड़ों रिसर्चों से बढ़कर होगा !किंतु आपको अपनी इमेज बढ़ाने की दृष्टि से "रिसर्च" शब्द इमेज इम्युनिटी बूस्टर लगा होगा कोई बात नहीं अपनी अपनी शौक !यहाँ या बताते चलना उचित होगा कि यदि यह रिसर्च होता तो कोई खोज भी होती और उस रिसर्च के कोई महत्वपूर्ण परिणाम भी निकलते !तुलसी गिलोय असगंध आदि के जिन गुणों के कारण उनका उपयोग करते हुए पीढ़ियाँ बीत गईं उन्हें ही बताने के लिए आपने जो रिसर्च गेम खेला है यह दावा आप पर उल्टा पड़ गया है | यह सहने में आपको थोड़ी कठिनाई अवश्य होगी किंतु स्पष्ट रूप से लिखा है -"अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं "
महामारी जैसे जो रोग बुरा समय आने के कारण होते हैं वे अच्छा समय आने पर स्वयं चले जाते हैं |आप साधू संतों की तरह वेष बनाकर रहते हैं इसलिए आपसे मेरी अपेक्षा थी कि आप 'समयविज्ञान की इस सच्चाई को समझते भी होंगे !आयुर्वेद के शीर्षग्रंथ 'चरकसंहिता' में महामारियों को समय के साथ ही जोड़कर अध्ययन करने को कहा भी गया है |
मैं इसी समय विज्ञान पर पिछले 25 वर्षों से अनुसंधान करता आ रहा हूँ जीवन पर पड़ने वाले समय के अच्छे बुरे प्रभाव से मैं सुपरिचित हूँ इसीलिए यह मेरा अपना अनुसंधान है कि महामारी फैलने पर भी उससे अधिक संक्रमित वही लोग होते हैं जिनका अपना समय ख़राब चल रहा होता है जिनका जितना कम ज्यादा ख़राब होता है महामारियों का उन पर वैसा असर पड़ता है |
महामारी होने पर भी महामारी के संक्रमण से लोग उतना ही प्रभावित होते हैं जितना जिसका समय ख़राब होता है | इसलिए समय यदि रोग कारक नहीं होता है तो दिल्ली मुंबई से लाखों मजदूर भयंकर कोरोना काल में पलायित होते हैं पंद्रह पंद्रह दिन पैदल चलते हैं उसमें जहाँ जो कुछ जैसे हाथों से बनाकर जिस किसी ने दे दिया संक्रमण बढ़ाने का भय छोकर वही खाकर पानी पी लिया ऐसा करने वाले बालक बूढ़े आदि सभी श्रेणी के लोग थे | |गर्भिणी स्त्रियां भी थीं | आपस में डिस्टेंसिंग बना कर रखना उनके लिए संभव न था | घनी बस्तियों में या एक एक कमरे में , फैक्ट्रियों में जहाँ एक एक साथ अनेकों लोग रहा करते थे उनमें से कितने लोगों को कोरोना संक्रमण हुआ ये चिंतन करने वाली बात है और सोशल डिस्टेंसिंग की प्रक्रिया न पालन कर पाने के बाद भी उनमें उतना संक्रमण बढ़ा नहीं इसका कारण स्वास्थ्य के लिए यदि उनका अपना अच्छा समय नहीं तो और क्या था ?बहुत साधन संपन्न लोग कोरोना प्रारंभ होने के बाद महीनों बीत गए घर से निकले ही नहीं और न किसी से मिले, संपूर्ण सावधानियों का पालन किया इसके बाद भी उन्हें कोरोना से संक्रमित होना पड़ा है |यदि इसका कारण उनका अपना बुरा समय नहीं तो उनके संक्रमित होने का कारण और दूसरा क्या हो सकता है |
इसीप्रकार से मजदूरों गरीबों या घनीबस्तियों में रहने वाले लोगों का संक्रमण फैलने वाली परिस्थितियों में बने रहकर भी उनके कोरोना संक्रमित न होने का कारण यदि उनका अच्छा समय नहीं तो और दूसरा क्या हो सकता है |
वैसे भी भूकंप आदि में कोई मकान गिरने पर ,किसी बस के खाई में गिर जाने पर,किसी ट्रेन के दुर्घटना ग्रस्त होने पर उससे प्रभावित तो बहुत लोग होते हैं किंतु उनमें से कुछ लोगों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो जाती है कुछ घायल हो जाते हैं और कुछ वे भी होते हैं जिन्हें एक खरोंच भी नहीं लगती है | जिसका जब जैसा समय तब वो वैसा प्रभावित होता है |
इसलिए कोई दुर्घटना हो या महामारी एक साथ बहुत लोगों के होने के कारण उसका सामना तो सभी को करना पड़ता है किंतु उनमें से प्रत्येक व्यक्ति दुर्घटना या महामारी से एक समान पीड़ित नहीं होता है अपितु उतना ही होता है जितना उसका अपना समय ख़राब होता है | यदि उसका अपना समय बिलकुल ख़राब नहीं होता है तो वो उतनी बड़ी दुर्घटना से भी बाल बाल बच कर निकल आता है | ये सारा सबके अपने अच्छे और बुरे समय का खेल है |
रामदेव जी !आपके कुछ अनुयायी लोग या तो आप की साधू संतों जैसी वेषभूषा पर प्रभावित हैं या उनकी आयुर्वेद पर इतनी अधिक आस्था है कि वे आयुर्वेद के नाम पर कुछ भी खा लेने को तैयार हैं या उन्हें स्वदेशी की घूटी पिलाकर ये बताया गया कि विदेशी कंपनियों के विरुद्ध हमारा ये अभियान है इसलिए वे साथ दे रहे हैं जबकि वे मशीनें जिनसे दवा बनाई जाती है वे किस देश की निर्मित हैं ये जानकारी भी उन्हें दी जानी चाहिए | आयुर्वेद में वर्णित पद्धति से कितनी औषधियाँ बनाई जाती हैं ये जानकारी उन्हें न होने के कारण कुछ लोग भ्रमित हैं या फिर उनका दिमागी इम्युनिटी सिस्टम इतना अधिक बिगाड़ कर रखा गया है कि उन्हें सच बात समझ में ही न आ पाती है |जिस प्रकार से किसी का पेट ख़राब होने पर उसे घी नहीं पचता है उसी प्रकार से किसी का दिमागी इम्युनिटी सिस्टम बिगड़ जाने से उसकी सच समझने की सामर्थ्य समाप्त हो जाती है | ऐसे लोगों को समझाना चाहिए कि उनके आस्था पुरुष बाबा रामदेव को मैं अपमानित नहीं कर रहा हूँ उन्हें अपशब्द नहीं कह रहा हूँ मैं कुछ तर्कों प्रमाणों के साथ संयत शब्दों में अपना मत व्यक्त कर रहा हूँ !इसका अधिकार उन्हें और उनके अनुयायियों को भी है वे भी ऐसा कर सकते हैं | हमें गाली देने के बजाए हमारी बातों को तर्कों और प्रमाणों के साथ अस्वीकार कर सकते हैं या उनका खंडन भी कर सकते हैं |
वैसे तो रामदेवजी को स्वयं प्रकट होकर समाज को यह बता देना चाहिए कि आयुर्वेद के ग्रंथों के आधार पर वे कोरोना महामारी के विषय में जानते कितना हैं और रोग के लक्षणों के बिषय में क्या जानते हैं महामारी के होने का कारण क्या समझ पाए हैं और इसका निवारण कब होगा इसके बिषय में वे क्या जानते हैं ?महामारी से मुक्ति के लिए कोई औषधि लेनी आवश्यक है या अपने आपसे ही महामारी से मुक्ति मिलेगी आखिर संक्रमित लोगों के इतनी बड़ी संख्या में बिना किसी दवा के संक्रमण मुक्त होने का कारण क्या है ?रोग का संक्रमण फैलने न फैलने के माध्यम के बिषय में क्या जानते हैं |इसके बाद इस बात पर चर्चा हो सकती है कि कोरोना महामारी को आप समझ गए हैं और इसकी औषधि निर्माण की आपकी क्षमता विश्वसनीय है |
ऐसी बातों का उत्तर बाबा रामदेव को स्वयं प्रकट होकर दे देना चाहिए | समाज को भ्रम में रखे जाने से अच्छा है उसकी शंकाओं का समाधान किया जाना चाहिए |पहले भी धार्मिक साधू संत शास्त्रार्थ के माध्यम से सच की खोज में लगे रहते थे आप भी साधू संत हैं तो हो सकता है धार्मिक भी हों ! रिसर्च करते हैं तो हो सकता है शास्त्रों को आपने पढ़ा भी हो अन्यथा अपने सहयोगी बालकृष्ण की योग्यता की मदद ले सकते हैं |
श्रीमान बाबा रामदेव जी !इतनी बड़ी महामारी कोई सामान्य घटना नहीं है जिसके लिये आपकी कोरोनिल जैसी लीपापोती पर विश्वास कर लिया जाएगा !अभी भी समाज में जीवित बिचार धरा वाले बहुत लोग हैं जो तर्कों और प्रमाणों के साथ ही सच को स्वीकार करते हैं ऐसे सजीव पत्रकार भी हैं चिकित्सक भी हैं सरकारों में भी सम्मिलिलित ऐसे बहुत लोग हैं जिन्हें भेङियों की तरह किसी झुंड में नहीं दौड़ाया जा सकता है | वे अपनी जीवंतता सुरक्षित रखे हुए हैं | इस महामारी की समाप्ति की प्रतीक्षा में सभी शांत बैठे हैं | मैं भी "महामारी मौसम और विज्ञान" नाम से एक ग्रंथ लिख रहा हूँ जिसमें स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधानों पर अनुसंधान करने का प्रयास किया है जिसे महामारी के समाप्त होने के बाद नवंबर 2020 में प्रकाशित करने का प्रयास करूँगा | उनमें वे प्रश्न उठाए हैं जिनका उतर मिलना अभी तक बाकी है |
इस महामारी ने न केवल आयुर्वेद होम्योपैथ और एलोपैथ आदि सभी पैथियों के स्वास्थ्य रिसर्चरों को प्रश्नों के कटघरे में खड़ा कर रखा है अपितु मौसम वैज्ञानिकों को भी अपने हिस्से के उत्तर देने होंगे !पर्यावरणविदों से यह पूछा गया है कि उन्होंने इस महामारी को किस रूप में समझा है उनकी दृष्टि में इस महामारी का कारण क्या हो सकता है |ग्लोबलवार्मिंग जलवायु परिवर्तन जैसी मनगढंत कहानियाँ गढ़ने वाले कथाकारों को भी भयंकर महामारी का पूर्वाभाष क्यों नहीं हुआ ?दिनों दिन बढ़ती भूकंपों की संख्या आँधी तूफानों एवं बज्रपातों की एक से बढ़कर एक हिंसक घटनाएँ ,आकाश में टहलते टिड्डियों के दल ,दिनोंदिन बढ़ता वायु प्रदूषण ,कभी बहुत अधिक वर्षा बाढ़ तो कभी सूखा पड़ने की घटनाओं का इस महामारी से कोई संबंध है या नहीं और है तो क्या है ?सरकार जिन अनुसंधानों पर इतनी भारी भरकम धनराशि खर्च करती है यह धन जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से सरकार टैक्स रूप में लेती है वो धन जिन अनुसंधानों पर खर्च करती है उन अनुसंधानों का इतनी बड़ी महामारी को समझने में ,इसका कारण खोजने में ,इसका पूर्वानुमान लगाने में, इसके लक्षण पहचानने में इसकी दवा खोजने में किस प्रकार का कितना योगदान रहा है |
सरकार एवं समाज का पैसा हमेंशा रिसर्च करने के लिए जो लोग खर्च किया जाता है वे रिसर्चें सर्दी जुकाम बुखार सिरदर्द जैसी साधारण बीमारियाँ ठीक करने के लिए की जाती हैं क्या ?इतनी बड़ी महामारी से निपटने की उन रिसर्चरों के पास आखिर अपनी तैयारी क्या थी ? महामारी को सहने के लिए उस जनता को अकेली छोड़ दिया गया जिसके खून पसीने की गाढ़ी कमाई टैक्स रूप में सरकारें लेकर स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधानों पर खर्च करती किया करती हैं वही जनता किसी न किसी रूप में स्वास्थ्य संबंधी रिसर्च करने का दवा करने वाले बाबाओं को धन देती है | दोनों ने महामारी की इस महामुसीबत में जनता को जूझने के लिए अकेला छोड़ दिया |
इतनी भारी भरकम धनराशि खर्च करके किए कराए जाने वाले स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधानों का इस महामारी का पूर्वानुमान लगाने में इसके लक्षण पहचानने में इसका संक्रमण बढ़ने का माध्यम खोजने में या इस महामारी से मुक्ति दिलाने से क्या योगदान रहा ?इस पर चर्चा तो होगी और जवाब भी देने पड़ेंगे |
इस समय कोरोना संक्रमण से मुक्त होने वाले लोगों की दर 60 के आस पास
पहुँच चुकी है समय बदल रहा है समय के साथ साथ सुधार होता जा रहा है अन्यथा
इस समय सुधार की दर इतनी अधिक बढ़ने का कारण और कोई दूसरा नहीं हो सकता है ? अभी तक कोई औषधि
तो तैयार नहीं हुई और न ही कोई दवा बनी है रामदेव की कोरोनिल की भी अभी तक
कोई भूमिका नहीं है फिर भी संक्रमण मुक्त होने वालों की इतनी अधिक संख्या
बढ़ने का कारण यदि समय नहीं तो दूसरा और क्या हो सकता है दुर्भाग्य से उस समयविज्ञान की ओर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है इसे अनुसंधानों की दृष्टि से आवश्यक नहीं समझा जा रहा है बड़ी महामारी में समय जनित जूझने के लिए जनता को अकेला छोड़ दिया जा रहा है | सरकार रूचि लेती तो सहयोग करने में मुझे गर्व होता किंतु समयविज्ञान की उपेक्षा ने विश्व देश समाज को इस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है | इसके लिए किसी की तो जिम्मेदारी तय होनी चाहिए |
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