महानजातिवैज्ञानिक महर्षि मनु से घृणा करने वाले दलितों
महानजातिवैज्ञानिक दूरदृष्टा महर्षिमनु-
पृथ्वीलोक कर्मभूमि है यहाँ गुण और कर्मों के आधार पर हमेंशा से ही सभी
जीवों द्रव्यों खनिज पदार्थों आदि को चार श्रेणियों में बाँटा जाता रहा है
हर किसी वर्ग में उन श्रेणियों का नाम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि
ही रखे जाते रहे हैं! अभ्रक हीरा पारा आदि खनिज पदार्थ एवं सर्पों आदि जीव
जंतु यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी अपने विभिन्न गुणों रंगों योग्यता आदि के
आधार पर ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि चार जातियों (श्रेणियों) के
रूप में आदि काल से ही विभाजित है और इसी रूप में ही पहचानी जाती रही है!
प्राचीनकाल में चराचर जगत के जीवों द्रव्यों आदि में वर्गीकरण की पद्धति ही यही थी!उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए महर्षि मनु ने
गुणों और कर्मों के आधार पर मनुष्यों को भी उन्हीं श्रेणियों में बाँट
दिया !
समृद्ध समाज की परिकल्पना के लिए आवश्यक समझकर योग्यता शिक्षा सद्गुण
सदाचार परोपकार सेवाभावना आदि के आधार पर मनुष्य समाज को भी चार भागों में
बाँट दिया इसमें योग्यता परिश्रम विद्यावीरता व्यापार पशुपालन कृषिकार्य
आदि में योग्यता गुण बहुलता को ही मुख्यआधार माना गया! इसमें भी मानवता की
रक्षा करना सबका सहयोग करते हुए परमार्थी जीवन जीना, हिंसा न करना,
सत्यबोलना, चोरी न करना, पवित्र रहना, ब्रह्मचर्य आदि संयम पूर्वक
इंद्रियनिग्रह करना, बुद्धिमत्ता, विद्याअध्ययन, क्रोध न करने जैसे
सद्गुणों को बरीयता दी गई! इसी के आधार पर ही मानव समाज का ब्राह्मण
क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि चार श्रेणियों के रूप में वर्गीकरण कर दिया गया!
इसका उद्देश्य जातियों के आधार पर किसी को ऊँच नीच बनाना नहीं था अपितु
समृद्ध समाज की परिकल्पना के लिए आवश्यक मानकर गुणों की दृष्टि से प्रतिभाओं को चिन्हित करना था !
वर्तमान
समय सरकारी से लेकर प्राइवेट आदि सभी विभागों में भी तो इन्हीं चार
श्रेणियों में ही तो कर्मचारियों को आज भी बाँटा जा रहा है !पहले जिनका ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि चार श्रेणियों के
रूप में वर्गीकरण किया जाता था उन्हें आज ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र
आदि न कहकर प्रथम श्रेणी के कर्मचारी द्वितीय श्रेणी के कर्मचारी तृतीय
श्रेणी के कर्मचारी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी आदि बताया जाता है!
पहले सारी
पृथ्वी को ही कर्मभूमि मानकर सबको ही कर्मचारी माना जाता था इसलिए सभी की श्रेणियाँ जन्म से ही बाँट दी जाती थीं !अब जो नौकरी
करते हैं केवल उन्हीं को कर्मचारी मानकर उन्हें ही चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है किंतु यदि देखा
जाए तो जो नौकरी नहीं भी करते हैं गुण और योग्यता आदि के हिसाब से बौद्धिक
स्तर योग्यता आदि गुण तो उनमें भी अलग अलग ही होंगे!वे भी तो इसी प्रकार की ही चार श्रेणियों में ही विभाजित होंगे !उन्हें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र
आदि कहा जाए या फिर प्रथम द्वितीय तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के
कर्मचारी आदि के रूप में पहचान दी जाए !योग्यता के अनुपात में अंतर तो करना
ही होगा उसे नाम कुछ भी क्यों न दिया जाए !
आज भी तो कलट्टर की कुर्सी पर चपरासी को नहीं बैठाया जा सकता है आखिर
मनुष्य तो दोनों ही हैं उन दोनों में केवल योग्यता का ही तो अंतर है !इसी
प्रकार से कलट्टरों की संयुक्त बैठकों में चपरासियों को बराबर की कुर्सियों
पर बैठने का अधिकार तो नहीं होता !वहाँ तो उन बैठकों में ऐसे लोगों के
अनावश्यक प्रवेश को भी वर्जित कर दिया जाता है !ऐसा तो कभी नहीं होता है कि
वहाँ भी आरक्षण पद्धति से सभी चपरासियों को थोड़े थोड़े कलट्टर बनने का
सुअवसर दिया जाए और न ही वहाँ चपरासियों के लिए ऐसे किसी आरक्षण का ही
विधान है !
गधों
और
घोड़ों के अंतर को समझाने के लिए हर जगह ऐसा करना ही पड़ता है घोड़ों के काम
में यदि
गधों को लगा दिया जाए तो वे दौड़ नहीं सकते जबकि वे बोझ ढो सकते हैं इसलिए
जो जैसा है उससे उस प्रकार का काम लिया जाए! इसीलिए तो जातियों का निर्माण
हुआ था और इसीलिए आज नौकरी में चार श्रेणियाँ बनाई जाती हैं तभी तो सृष्टि
का उद्देश्य
पूरा हो सकेगा ! अयोग्य लोगों को योग्य स्थानों पर बैठा देने से दोनों
बेकार हो जाएँगे !
ये तो कर्म भूमि है यहाँ तो जो जैसे कर्म करेगा
उसकी वैसी पहचान बनती है! इस धराधाम पर हमेंशा से कर्म की ही प्रधानता
देखी जाती रही है और उसी के हिसाब से सम्मान पद प्रतिष्ठा आदि मिलती रही
है!
वर्तमान समय कुछ अजीब से तर्क देकर जातियों के निर्माण के लिए महर्षि मनु
को दोषी ठहराया जा रहा है! जबकि सरकारें आज भी उन्हीं जातीय पद्धतियों के
आधार पर चल रही हैं राजनैतिक पद प्रतिष्ठा, चुनावी टिकट शिक्षा सरकारी
नौकरियों में आरक्षण प्रमोशन में आरक्षण सरकारी अनुदान आदि सब महर्षि मनुकी
बनाई हुई जातियों पर ही आश्रित हैं! जातियाँ न होतीं तो जातीय सुख
सुविधाएँ किसी को कैसे दी जातीं! राजनेताओं के द्वारा चलाए जाने वाले
जातीय उद्योग धंधे कैसे चलाए जाते!
योग्यता और गुणों के आधार पर समाज का जो वर्ग अपना विकास करता चला जा रहा
है उसके दिए हुए टैक्स से सरकारें चल रही हैं! उसी से सरकारी कर्मचारियों
को सैलरी आदि दी जा रही है सरकारी विभागों में सारी सुख सुविधाएँ उसी से
मिल रही हैं! सभी विकास कार्य उसी धन से किए जा रहे हैं! सरकारों की कमाई
का स्रोत ही उस योग्य और गुणी समाज के खून पसीने की कमाई है! इसके बाद भी
उसी की निंदा कर करके बहुत लोग सम्मानित हो गए चुनाव जीत गए बड़े बड़े पदों
पर पहुँच गए फिर भी निंदा उसी योग्य कर्मठ और गुणी वर्ग की करते हैं! वो
वर्ग आज भी अपनी विकास यात्रा निरंतर चलाए जा रहा है! यदि ये योग्य और
गुणी समाज भी अपना काम काज बंद करके निकम्मेपन को ओढ़कर निर्लज्जता पूर्वक
सरकारों के सामने ही कटोरा लेकर बैठ जाए तो सरकारों की आय का स्रोत आखिर
क्या होगा और कैसे चलेंगे सारे काम काज!
इसलिए जो लोग दलितों के पिछड़ने का आरोप गुणी कर्मठ और योग्य सवर्ण लोगों
पर लगाते हैं ये गलत है ये तो बिलकुल उसी प्रकार की बात है जैसे किसी के घर
में बच्चा न पैदा हो रहा हो
तो इसके लिए उसके पड़ोसी को दोषी ठहरा दिया जाए !
इसलिए सबको शिक्षा
व्यापार आदि करने की स्वतंत्रता मिली हुई है देश का सक्षम कानून सबको
सुरक्षा की गारंटी देता है इसके बाद कोई रोगी लँगड़ा लूला अंधा आदि व्यक्ति
कहे कि मैं काम नहीं कर सकता मुझे सरकार बैठाकर खिलाए तब तो बात समझ में
आती है जबकि ऐसे दिव्यांग लोगों में भी बहुत स्वाभिमानी और सम्मानप्रिय लोग
होते हैं वे अपने पेट को सरकारों या किसी और पर बोझ नहीं बनने देते जिस
लायक हैं उस लायक काम करके अपना और अपने परिवारों का भरण पोषण करते देखे
जाते हैं न केवल इतना अपितु तरक्की करते देखे जाते हैं तो जातियों के आधार
पर पिछड़ा हुआ कोई व्यक्ति या वर्ग अपने पिछड़ेपन के लिए किसी दूसरे व्यक्ति
या वर्ग को दोषी कैसे ठहरा सकता है! इसलिए जातियों के निर्माण के लिए
महर्षि मनु को दोषी ठहराना अयोग्य और गुण विहीन लोगों का दिमागी दिवालियापन
ही है!
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