Friday, 17 August 2018

युग पुरुष अटलजी के स्वधाम गमन पर सादर नमन !


युग पुरुष  श्रद्धेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी  जैसे महापुरुष मरने के लिए पैदा ही नहीं होते ये तो अमर होते हैं!

    जिनके बिचार स्मृतियाँ बात व्यवहार मिलनसारिता समदर्शिता हरकिसी को आज भी झकझोरे चलाए दे रही है !जिनके स्नेह से कातर होकर CM ,PM जैसे बड़े बड़े लोग मारे फिर रहे हैं !हर किसी के मन में अपनी अपनी स्मृतियाँ हैं और हर किसी के अपने अपने अटल जी !इसी प्रकार से हमारे भी अपने अटल    !

त्याग के सभी का मोह राष्ट्र निर्माण हेतु 

                   भारतीय  क्षितिज में अटल सितारा था। 

स्वार्थ पे न ध्यान सदा ध्येय परमार्थ रहा 

                    देश के लिए ही निज जीवन उतारा था॥ 

लूटते स्वशासकों के घृणित घोटाले देख 

                      राष्ट्र की सुरक्षा हेतु शासन सँवारा  था। 

रो चला था देश देख उनकी  विनम्रता को 

                  तेरह दिनों का ताज हँसके उतार था ॥

 जीवन का सारा भाग भारती की सेवा हेतु 

                 सौंप दिया जिसने समस्त सुख विसार के। 

 धैर्य धर्म सत्यता समाज के हितों का ध्यान 

                         रखते रहे सदैव त्याग के आधार पे ॥

 साधना  चरित्र वा पवित्र राष्ट्र सेवा की जो 

                   आज लौं  बचा रखी है चढ़ के भी धार पे । 

चाहते तो जाते सिद्धांत सरकार नहीं 

                 बिकने के लिए लोग तब भी तैयार थे ॥4॥                                                  - कारगिल विजय से

आदरणीय अटल जी जब प्रधानमंत्री थे तो एक दिन उनसे बात करने और अपनी काव्य पुस्तक कारगिल विजय भेंट करने एवं कविताएँ सुनाने का सौभाग्य मुझे भी मिला इतने व्यस्त जीवन में भी कितना तन्मय होकर वो सुन रहे थे हमारी रचनाएँ! उनकी टिप्पणियाँ  मुझे आज भी याद हैं देश एवं समाज के प्रति कितना अपनापन था उनमें !वास्तव में वो राष्ट्र निष्ठा के समुद्र थे साथ में भाजपा सांसद श्री श्याम बिहारी मिश्र जी एवं एक और पंडित जी थे जब मैं कविताएँ सुनाने लगा तो वो न केवल सुन रहे थे अपितु टिप्पणियाँ भी करते जा रहे थे । जब मैंने उनसे निवेदन किया कि आपके आदर्श जीवन को कोई आम आदमी समझना चाहे तो क्या पढ़े कितना पढ़े तो वो हँसने लगे और कहा -

         न भीतो मरणादस्मि केवलं दूषितो यशः । 

   अर्थात मैं मृत्यु से भयभीत नहीं हूँ केवल यश दूषित होने से डरता हूँ !

       हमारे द्वारा लिखी गई कारगिल विजय पुस्तक की श्री अटल जी से सम्बंधित कुछ और रचनाएँ -

  जेनेवा में भेजे जाने के लिए -

  चाह के भी सत्ता पक्ष खोज न विकल्प सका 

               अटल को भेजना ही एक मात्र चारा था ।

सबकी निगाहें ढूँढ़ते न थकती थीं जिसे 

         बुद्धिजीवियों कि भावनाओं का सितारा था ॥

  विज्ञ नरसिंह राव से प्रबुद्ध शासक ने

                      अपने ही मुख से कह गुरू पुकारा था  ।

कैसे छिनाया गया ताज उस शासक से 

     जो सौ करोड़ हिंदुओं कि आस का सहारा था ॥1॥

आपस में बढ़ते विवादों से विषाक्त विश्व 

                 चुने चुने नायकों का भारी अखारा था।

विश्व की विभूतियाँ न रौंद दें हमारा मान

          ध्यान था सभी का देश चिंतित बिचारा था॥

सौ करोड़ हिंदुओं कि आश का सहारा था जो 

             अटल बिहारी वहाँ प्रतिनिधि हमारा था । 

उससे छिनाया था ताज पद लोलुपों ने 

        जाकर जेनेवा जो न हारा  ललकारा था ॥ 2 ॥    

 भारत को शक्तिवान मान ले विशाल विश्व 

              करके परमाणु विस्फोट जो दहाड़ा  था। 

शोर सुन घोर चीत्कार उठे रौद्र राष्ट्र 

              जिनकी बहादुरी का बजता नगाड़ा था ॥

मान के कँगाल हमें कोटि प्रतिबन्ध किए

            पहले के शासकों की भीरुता को ताड़ा था । 

किन्तु पाला  पड़ा था आज अटल बिहारी जी से 

             डटे निःशंक और सबको लताड़ा था ॥ 3 ॥

                                                - कारगिल विजय से 

     

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