Sunday, 27 August 2017

बाबाओं का आश्रम ही तो घर होता है और आश्रमवाली ही तो ......होती है फिर बाबाओं पर बलात्कार के आरोप क्यों ?

  संपत्ति कमाने वाले प्रपंचों में फँसे बाबा लोग अपने आश्रमों में भी स्वतंत्र नहीं रह सकते हैं क्या ? 
    जो बाबा अपने आश्रमों में स्त्रियों को रखते हैं अपने द्वारा चलाए जा रहे सेवाकार्यों में उन्हें सम्मिलित करते हैं कमा(माँग)कर खिलाते हैं दवा दारू की जिम्मेदारी उठाते हैं पति की तरह जब सारे फर्ज निभाते हैं तो उनमें पतिभावना आनी स्वाभाविक है फिर उसमें आपत्ति क्यों ?और उनके संबंध बलात्कार कैसे !आखिर ऐसे लोगों के पास रहने वालों से पूछा जाना चाहिए कि वे इन पर फिदा क्यों हुए !ऐसे बाबाओं की ये मजबूरी भी है कि उनके हजार 500 अपने बच्चे नहीं होगें तो उनकी हजारों करोड़ की सम्पत्तियों को सँभालेगा कौन ?आखिर वो कमाते किसके लिए हैं !
  धन पैदा करने वाले बाबाओं को उत्तराधिकारी तो पैदा करने ही पड़ेंगे !जितनी संख्या में संपत्तियाँ उतनी संख्या में उत्तराधिकारी !सलवार वाले बाबा को अक्सर कहते सुना जाता है अबकी साल इतने हजार करोड़ कमाएँगे ! धन वो पैदा करेंगे तो धन रखाने वाले भी तो उनके अपने ही होंगे !अपनी कमाई हुई सम्पत्तियों के उत्तराधिकारी  दूसरों के बच्चों को बना देंगे क्या और दूसरों को ही बनाना होता तो दूसरे तो कमा ही रहे थे फिर खुद क्यों कूदते व्यापार में !
      स्वदेशी आटा दाल चावल की तरह ही स्वदेशी शुद्ध सेक्स भी उपलब्ध करवाते सुने गए हैं कई बाबा लोग !एड्स आदि घातक बीमारियों से समाज को बचाने के लिए हजारों करोड़ का टर्नओवर दिखाने के लिए सेक्स मार्केट में कदम रख रहे हैं कई बाबा लोग !ये भी बहुत बड़ा कारोबार है विदेशी कम्पनियों को मात देने के लिए बाबाओं को उठाने पड़े ये कठोर कदम और बड़ी सफलता पूर्वक स्वदेशी शुद्ध सेक्स उपलब्ध करवा रहे हैं !विश्व को भारत के "स्वदेशीशुद्धसेक्सबाजार" के विषय में तो तब पता लगा जब नासिक कुम्भ में कंडोम की शार्टेज अखवारों में छपी ! तब लोगों को आश्चर्य हुआ !जब उन्हें पता लगा कि इतने इतने बड़े सेक्स कारोबारी समाज को अपनी सेक्स सेवाएँ उपलब्ध करवा रहे हैं ! 
       ऐसे हाईटेक आश्रमों को देशीशुद्धसेक्सबाजार" के रूप में प्रचारित करता जा रहा है मीडियाक्यों ? कई बाबाओं के सेक्स कारोबार में सम्मिलित होने की खबरें दिखाता रहता है मीडिया क्यों ? पहले भी कई सुख सुविधा पूर्ण  हाईटेक बाबाओं के आश्रमों से तलाशी के दौरान भी पूजा पाठ की सामग्री से अधिक सेक्ससामग्री मिलने की ख़बरें  दिखाता रहा है मीडिया ! मीडिया इस रहस्य को छिपाए रहता है  कि सेक्स सामग्री होने की सम्भावनाएँ देखकर तलाशी ली जाती है या हाईटेक आश्रमों की तलाशी होने पर वहाँ से सेक्सोपासना की सामग्री प्रायः मिलती ही है !
    मीडिया की बातों पर भरोसा किया जाए तो जीवन में सुख सुविधा भोगने की इच्छा पूरी करने के लिए साधू संत बनने वाले बाबाओं का एक वर्ग सेवाकार्यों के बहाने धन इकट्ठा करता है अत्याधुनिक सुख सुविधाओं से युक्त हाईटेक आश्रम बनाता हैउनमें स्त्रीपुरुषों को इकट्ठा करता है रखता है उनके भोजन पानी की व्यवस्था करता है और उन सभी सुख सुविधाओं का सभी प्रकार से उपभोग करता है !
     विशेष बात ये भी बताई जाती है कि  ब्राह्मण जाति का साधू ही विरक्त हो सकता है साधू संतों का स्वरूप समाज से पैसे माँगने के लिए कोई भी धारण कर सकता है किंतु वैराग्य ब्राह्मण साधुओं में ही होता है यद्यपि आजकल कुछ ब्राह्मण साधुओं का भी चारित्र्यिकपतन कुछ ब्राह्मण साधुओं में भी होता देखा गया है किंतु उनकी संख्या अन्य जातियों की अपेक्षा बहुत कम है ! ब्राह्मण साधूसंत आज भी संयम पूर्वक पूजन भजन यज्ञ आदि कर्म कांडों का दिखावा  नहीं अपितु वास्तव में त्याग तपस्या पूर्वक जीवन व्यतीति करते हैं !
       इसीलिए तो आज भी ब्राह्मण जाति  के लोग राजनीति करने के लिए ,व्यापार करने के लिए ,सुख सुविधाएँ भोगने के लिए जहाज़ों पर चढ़कर विदेशों में घूमने के लिए  समाज से पैसे माँगने के लिए ,तमाम सुख सुविधाओं को जुटाकर उसमें बासनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधूसंत नहीं बनते हैं ब्राह्मणों ने आज भी साधुसंतों के वेष को बदनाम नहीं किया है !        
    जो साधू संत बनकर भी सारी  सुख सुविधाएँ जुटाएगा वो उन्हें भोगेगा क्यों नहीं !अपनी इच्छा क्यों रोकेगा !जिसके लिए वो साधू बना इतने सारे प्रपंच किए हैं धंधा व्यापार फैलाया है अब सेक्स के लिए वो विदेश जाएगा क्या या आम जनता के घरों में कूदेगा ?वो तो वहीँ निपटेगा जो उसके आगे पीछे घूमते हैं या आश्रम में रहते हैं !
   बाबा लोग अपने अपने घरों से भगाए गए कामचोर स्त्री  पुरुषों को इकट्ठा करते हैं आश्रम नाम की कोठी बनाना उसमें बेडरूम बनाना सामने टीवी लगा होना उसमें वैसी वाली सीडी देखने के बाद बेड पर कोई बाबा अकेला सो लेगा क्या ? 
   समाज सेवा हेतु  धन माँगने के लिए साधू बनना कितना उचित है !व्यापार करने के लिए राजनीति करने के लिए विदेशों में घूमने के लिए धन जुटाना है तो साधू बन जाओ !
   त्याग तपस्या और वैराग्य के बिना साधू बनकर कोई करेगा भी क्या ?पैसे न होने के कारण बिना साधू बने जो काम नहीं किए जा सकते थे वही काम करने के लिए ही तो साधू बनने  का उद्देश्य होता है !क्योंकि साधू बनने के बाद समाज से पैसे माँगने में शर्म छूट जाती है!
   साधू बनकर भी जातियों के अनुशार ही आचरण  करते हैं लोग ! जो साधू ब्राह्मण नहीं हैं वो करते हैं ऊट पटाँग काम ! जातियों की जड़ें बहुत गहरी हैं इन्हें मिटाना या झुठलाना इतना आसान नहीं है !ब्राह्मण न होने के बाद भी जो लोग साधू संत बन जाते हैं उनमें अधिकाँश लोगों का मन न त्याग वैराग्य में !
   मनुवाद और जातिवाद का विरोध करने वालों को ये समझ लेना चाहिए कि जातियाँ ही सच्चाई हैं ये मनुष्य निर्मित नहीं हैं और जातियों के अनुरूप ही स्वभाव बनता बिगड़ता है विश्व के महान जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु ने मनुस्मृति नामक जातिविज्ञान के महान ग्रन्थ की रचना ही इसी दृष्टि से की थी किंतु जातियाँ उन्होंने निर्मित नहीं की हैं अपितु गुण कर्मों और स्वभाव के अनुशार निर्मित जातियाँ अनादि काल से चली आ रही थीं जैसे आग गर्म और पानी ठंडा होता है ये उनका स्वभाव है उसी प्रकार से जातियाँ स्वभावों में सम्मिलित हैं !
   अब तो सिद्ध हो गया कि चरित्रहीन अधिकाँश बाबा ब्राह्मण नहीं हैं जो ब्राह्मण हैं वो अधिकाँश बाबा चरित्रहीन  नहीं हैं ये सिद्ध हो गया कि जातियाँ सौ प्रतिशत सच हैं !

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