Saturday, 19 August 2017

महिलाओं की सुरक्षा करना सरकार बंद करे तो शायद सुरक्षित हो जाएँ महिलाएँ !

     "महिलाओं का रहन सहन अभी तो सरकार को चुनौती देने जैसा है बिल्कुल ऐसा कि मेरी सुरक्षा करके दिखाओ तो जानें"इसलिए  बलात्कार का आरोप केवल पुरुषों पर लगाना ही क्यों महिलाएँ पीछे हैं क्या ? पुरुषों में चरित्रवान लोग नहीं होते हैं क्या ?महिला सुरक्षा का मतलब है पुरुषों से सुरक्षा ये शब्द पुरुषों का  अपमान करते हैं !अन्यथा अपराध घटने पर जोर दे सरकार उसी में सभी प्रकार के अपराधी आ जाएँगे ! 
  सेक्स के लिए पुरुषों में पागलपन देखा जाता है तो
पुरुषों में भी होता है वे भी पागल हो उठते हैं तो महिलाएँ भी तो ऐसी होती हैं "पीजीएडी (पर्सिस्टेंट जेनिटल अरॉउजल डिसऑर्डर)" से ग्रसित !उनकी भी होती है ऐसी दुर्दशा फिर पुरुषों को ही दोषी क्यों ठहराया जाए see more... http://teznews.com/for-the-sake-of-sex-there-is-a-woman-in-front-of-the-partner-because-65402-2/ 
       बासना (सेक्स) की इच्छा तो महिलाओं में भी होती है बल्कि पुरुषों की अपेक्षा आठ गुना अधिक सेक्सुअल पागलपन होता है महिलाओं में !अंतर इतना है कि महिलाओं को क़ानूनी संरक्षण प्राप्त है जिसकी मदद लेकर महिलाएँ पुरुषों पर गुप्त अत्याचार किया करती हैं पहल भी खुद करना प्रयास भी खुद करना पैसे भी ऐंठना और पहले की अपेक्षा अधिक पैसे वाला या सुन्दर या प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्ति मिल गया तो पहले को छोड़ देती हैं यदि पहले वाला नहीं माना और वो प्रेम प्यार का हवाला देकर चिपका ही रहना चाहता है तो उस पर बलात्कार के केस करके सबक सिखा देती हैं उसे !
      लड़कियों  के पीछे यदि लड़के लगे रहते हैं तो क्या ये सच नहीं है कि लड़कों के पीछे भी लड़कियाँ लगी रहती हैं प्रेमी प्रेमिकाओं के जोड़े अक्सर पार्कों में पार्किंगों में झाड़ियों खुले में मेट्रो सूनी बसों में स्कूलों के एकांत स्थलों में लिपटे चिपटे चूमते चाटते मूत्रमार्गों के व्यापार में लगे जोड़े अपना  अपना प्रेम अपने पार्टनर के शरीर में उतार देने की पूरी कोशिश करते देखे जा सकते हैं उस समय उन्हें सार्वजानिक मर्यादा का ध्यान भी नहीं रहता है !
    ऐसी लड़कियों को कोई पकड़ कर नहीं लाता अपितु गन्दी गन्दी गालियाँ देकर मिलन बिंदु पर बोलाते देखे जाते हैं लडके !एक दिन दिल्ली के एक पार्क में बैठा एक लड़का किसी को फोन कर रहा था  - "साली तू अभी आई नहीं मैं पार्क के झाड़ में बैठा हूँ मच्छरों ने खा डाला मुझे कहीं डेंगू हो गया तो तेरा बाप बचाने आएगा क्या !और उसे माँ की गन्दी गन्दी गालियाँ देने लगा इसके बाद फोन काट दिया !थोड़ी देर में लड़की पहुँची दोनों एक दूसरे से चिपक गए चलने लगीं रँग रैलियाँ !उसने पूछा कहाँ हो गई इतनी देर ?तोवो बोली कि पापा आफिस से आ गए थे उन्होंने पूछ दिया कहाँ जाती हो तो रुकना पड़ा !अभी भी डाक्टर का बहाना बनाकर आई हूँ "इसके बाद उस लड़के ने उसके पिता को इतनी गन्दी गंदी  गालियाँ दीं और उसे मार डालने पर उतारू हो गया !लड़की उससे माफी माँग रही थी हाथ पैर जोड़ कर बड़ी मुश्किल से मनाया उसे !इसके बाद उसका गुस्सा कम करने के लिए वो लड़की चूमने चाटने की हद किए हुए थी !यहाँ तक कि वो जिस अंग पर धोखे से भी हाथ रख देता था वो ख़ुशी ख़ुशी खुद खोलती जा रही थी वे बटनें ! 
     प्रेमिका नाम की लड़कियों के द्वारा बिगाड़े गए ऐसे लड़के अपनी पत्नियों के साथ भी जब ऐसा ही वर्ताव करना चाहते हैं उनके माता पिता आदि घर वालों को गन्दी गन्दी गालियाँ देने लगते हैं उनकी आदत पड़ चुकी है वो छूटे कैसे इस कारण समाज में वैवाहिक जीवन बिगड़ रहे हैं | लड़कियाँ  भी घर से झूठ बोल बोल कर ट्यूशन डाक्टर या जरूरी कामों का बहाना कर कर के लड़कों से शरीर रगड़ने जाती रही होती हैं उनकी भी आदत पद चुकी होती है|गृहस्थी के बोझ तले दबा मजबूर पिता तो सह गया किंतु ससुराल वाले कैसे सह जाएँगे जो पैदा ही बहू की कमियाँ निकालने के लिए हुए होते हैं | जिस लड़की में कोई कमी न हो वो भी विवाह करके ससुराल पहुँचे भर वहाँ उसके पुरखों तक की गलतियाँ गिना दी जाती हैं उसे ! इतना अच्छा होम वर्क किए होते हैं वो लोग !इसलिए लड़की के वैवाहिक जीवन सकुशल चलने का मतलब लड़की का समझौता वादी होना होता है और बहू से ससुराल पक्ष यदि वास्तव में संतुष्ट हो तो ऐसी बहू की तुलना सहनशीलता के मामले में धरती के किसी स्त्री पुरुष से नहीं की जा सकती अनुपमेय होती हैं ऐसी स्त्रियाँ !धन्य है उनका चरित्र जो समर्पण और सेवा से ससुराल वालों का दिल जीत लिया करती हैं ये साधारण काम नहीं  है !
   दूसरी ओर फैशनेबल स्त्रियों या प्रेमिकाओं के साथ अधिकाँश हादसे उनकी पहले की बिगड़ी हुई आदतों के कारण होते हैं या फिर उनके पति या ससुराल वालों की वैसी ही बिगड़ैल लतों के कारण होते हैं | हत्या या आत्म हत्या जैसे जघन्य अधिकांश अपराधों की जड़ों में उनके उनके प्रेम प्रसंग होते हैं !
   कई बार जिनके साथ उनका कोई सम्बन्ध नहीं है किंतु जिनके साथ संबंध है इसलिए उन्हें वैसा करते देखने वाले दर्शक के मन में भी उसके प्रति वैसा करने की इच्छा जग गई होती है अब वो सेक्सालु बहुत दूर तक उसका पीछा करता है जहाँ जैसा मौका मिलता है वहाँ वो वैसा वर्ताव करने लगता है और उसके लिए किसी भी हद तक उतर जाता है लड़का किंतु उस लड़के में सेक्सुअल पागल पन भरा तो उसी लड़की के अपने आचरणों ने था जिसे वो प्रेमी के साथ कर रही थी जिसे देखकर वो लड़का उसका पीछा करने लगा ! प्रेमी के साथ वो रास्ते में रँगरेलियाँ मनाती चली आ रही थी वो तो चूम चाट कर चला गया किंतु उसकी हरकतें देखकर तुरंत आशिक बना वो नया सिरफिरा उससे तो अकेला लड़की को ही जूझना पड़ेगा !परिणाम कुछ भी हो सरकार की सतर्क सुरक्षा व्यवस्था भी उसकी मदद कैसे कर सकती है!अपनी सुरक्षा के साथ खिलवाड़ उसने स्वयं किया है | 
     ऐसे प्रकरणों में कानून कहता है कि "लड़की आपसी सहमति से कुछ करे तो गलत नहीं है जो जबरदस्ती करेगा उसके लिए कानून है पुलिस है "किंतु भ्रष्टाचार के चर्म पर है भारत की कानून व्यवस्था !यहाँ तो हर प्रकार के अपराध करने की अघोषित लिस्ट सरकार के हर विभाग से सम्बंधित दलालों के पास होती है !वही गाइड करते हैं कि किसी को छेड़ने के लिए क्या देना पड़ेगा और मारने के लिए क्या देना पड़ेगा !ऐसे समाज में कानून व्यवस्था के सहारे अपने को सुरक्षित मानना सबसे बड़ा आत्मघाती  कदम है !सरकारों में बैठे नेता जो दावा करते हैं कि कानून व्यवस्था बहुत अच्छी है सुरक्षा के बहुत अच्छे इंतजाम है और अपराधों का ग्राफ घटा है  वही खुद निकलते हैं तो सैकड़ों पुलिस वालों का काफिला होता है उनके साथ !ऐसे झूठों का भरोसा करके महिलाएं सुरक्षित रहना चाहती हैं तो भोगें !
       जहाँ तक बात लड़की की "आपसी सहमति से कुछ करे तो गलत नहीं है" की है तो कोई सेक्सालु किसी कानून की परवाह नहीं करता वो तो छत से कूद जाता है पंखे में लटक जाता है  तुलसी दास जी तो साँप पकड़ कर ससुराल की छत पर चढ़ गए थे उन्हें इतना होश नहीं रहा था फिर आजकल के लड़कों से इतने धैर्य की आशा करना कि वो लड़की की हरी झंडी का इन्तजार करेंगे ये तो मूर्खता है !
      ऐसे लखैरे लड़कों  को पहचान पता होती है कि किस प्रकार की लड़की या स्त्री को वो अपने चंगुल में फँसा सकते हैं किसको नहीं !वो जानते हैं जो किसी एक से फँस चुकी है इसका मतलब  उसे चरित्र की परवाह नहीं है !जो अंगों को दिखाने वाले कपड़े पहने है उसे विज्ञापन मानकर चलता है वो !वैसे भी  उसके उन अंगों में जलन तो नहीं हो रही होती है इतने कटे कपडे पहने की उसकी आखिर क्या मजबूरी थी !जिसके कारण उसे ऐसा करना पड़ा हो स्वाभाविक है कि इसके पीछे अपनी सेक्स भावना प्रकट करना ही उसका मूल उद्देश्य रहा होगा  इसके पीछे और कोई दूसरा कारण वो बता ही नहीं सकती है !
   वैसे भी फैशन के निर्माता तो फ़िल्म वाले ही होते हैं वो जैसे कपडे पहनाकर जैसे मटका मटकाकर डायलॉग बोलवाते हैं समाज के कुछ सेक्सालु लोग भी उसी मंडी में बिकने को तैयार हो जाते हैं और वैसी ही वेषभूषा बना डालते हैं और तमन्ना उनकी भी वही होते है कि फिल्मों की तरह ही उन्हें भी कोई छेड़े !उनके वेषभूषात्मक  इशारे उस तरह के लड़कों की हिम्मत बँधवा देते है और उन्हें अपना शिकार समझ कर हमलावर हो उठते हैं लड़के !
   बनारस में एक पाँड़े जी पढ़े लिखे विद्वान एवं गंभीर थे एक दिन उनके साथ मैं बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में मालवीय भवन के सामने से रोड पर जा रहा था तभी फैशनेबल वेषभूषा में आधे चौथाई कपडे पहने कुछ लड़कियाँ वहाँ से निकलीं पाँड़े जी उन्हें देखकर सीटी बजाने लगे यद्यपि वो वैसे थे नहीं मुझे आश्चर्य हुआ !खैर बाद में उन्होंने हमें समझाया कि ऐसे कपडे अमुक फ़िल्म में कोई हीरोइन पहनती  है वो जहाँ जाती है लड़के उसे देखकर सीटी बजाने और उसे छेड़ने लगते हैं तो वो लड़की खुश होती है इसीलिए उससे प्रेरित होकर जिस भी लड़की को वैसा करने करवाने का मन होता है वो भी वैसी वेषभूषा धारण कर लेती है |इसलिए ये लड़कियाँ तो वैसी ड्रेस पह आईं इतनी महँगी !किन्तु इन्हें छेड़ना तो किसी लड़के को ही पड़ेगा तब तो इनकी अभिलाषा पूरी होगी वो खुद तो छेड़ नहीं लेंगी ! ड्रेस खरीद कर पहन तो आई हैं इसे देख कर किसी ने सीटी नहीं बजाई और इसे छेड़ा नहीं तो इसके पैसे बेकार चले जाएँगे और जहाँ  यहाँ पढ़ने  आई होगी वहाँ जाकर बनारस की बुराई करेगी कि वहाँ के लड़के नामर्द हैं वो कंजूस फिल्में देखते ही नहीं हैं एकदम रूढ़िवादी कहीं के !इसलिए काशी की गरिमा को बचाए रखने के लिए मैंने ऐसा किया है !
      उस दिन उन्होंने एक बात और बताई कि कोई महिला या लड़की जब किसी ब्यूटी पार्लर से निकलती है ताजा ताजा पैसा लगा होता है उस समय उस पैसे का सदुपयोग होते देखना चाहती है उस समय उसकी कल्पना होती है कि जैसे ही मैं निकलूँगी तो हमारे लिए लोगों में लड़ाइयाँ हो रही होंगी इतनी सुन्दर लगूँगी मैं !उसमें भी जो जैसा भड़कीला श्रृंगार किए होती है उसे छेड़वाने की जरूरत उतनी अधिक होती है !इसलिए मैं ऐसी महिलाओं की बहुत मदद करता हूँ उन्हें कभी मायूस नहीं होने देता अन्यथा ऐसे सजे धजे पीस शादीपार्टियों में इतने व्याकुल हो जाते हैं कि खुद ही अपने शरीर औरों से रगड़ते घूम रही होती हैं और इस तरह के पुरुष भी ऐसे ही अपनी  भूमिका अदा कर रहे होते हैं तो मैं भी समाज का ही एक अंग हूँ !
   खैर, पाँड़े जी की परोपकार भावना के आगे मैं निरुत्तर हो गया !और ये सोचने पर मैं भी मजबूर हो गया कि पुलिस हो या कानून कितना भी कठोर क्यों न बना दिया जाए किंतु सुरक्षा हो उसी की पाएगी जो सुरक्षित रहना चाहता है बाकी सभी खबरें बनाने के लिए  केवल मीडिया जिम्मेदार है | क्योंकि मीडिया छेड़ने को तो गलत बताता है और छेड़ने से रोकने को प्यार पर पहरा बताता है !ये मीडिया से ही पूछा जाए कि वो चाहता क्या है ?

No comments: