कानून व्यवस्था के लिए समस्या बनने वाले बाबाओं पर अंकुश लगाया जाए !देश के कानून के विरुद्ध खड़े होने वाले लोग धार्मिक नहीं हो सकते !
चरित्रवान संत वैभव व्यापार संपत्तियां नहीं धारण करते !भीड़ से बचने के लिए ही तो लोग साधू संत बनते हैं भीड़ जुटाने के लिए नहीं !
बाबा तमाशा राम की भीड़ ,बाबा कामपाल की भीड़ और मथुरा के उस बाबा की भीड़ जिसने प्रशासन को छका दिया था!सलवार वाले बाबा जिन्होंने जनता को जूझने के लिए तो खूब ललकारा किंतु जब अपनी बारी आई तो सलवार पहन कर भागने लगे क्यों ?आखिर कानून का सम्मान क्यों नहीं किया जाना चाहिए ?
बाबाओं के समर्थक एवं कानून के विरोधी लोगों का धर्म कर्म से कोई संबंध नहीं होता!ऐसे बाबाओं का और उनके भक्तों का भगवान् से कोई लेनादेना होता है क्या ?
होटलों की तरह हाईटेक बनाए जाने वाले आश्रमों में पूजन भजन कथा कीर्तन भागवत रामायण यज्ञ आदि होते हैं क्या ?
चरित्रवान संत वैभव व्यापार संपत्तियां नहीं धारण करते !भीड़ से बचने के लिए ही तो लोग साधू संत बनते हैं भीड़ जुटाने के लिए नहीं !
बाबा तमाशा राम की भीड़ ,बाबा कामपाल की भीड़ और मथुरा के उस बाबा की भीड़ जिसने प्रशासन को छका दिया था!सलवार वाले बाबा जिन्होंने जनता को जूझने के लिए तो खूब ललकारा किंतु जब अपनी बारी आई तो सलवार पहन कर भागने लगे क्यों ?आखिर कानून का सम्मान क्यों नहीं किया जाना चाहिए ?
बाबाओं के समर्थक एवं कानून के विरोधी लोगों का धर्म कर्म से कोई संबंध नहीं होता!ऐसे बाबाओं का और उनके भक्तों का भगवान् से कोई लेनादेना होता है क्या ?
होटलों की तरह हाईटेक बनाए जाने वाले आश्रमों में पूजन भजन कथा कीर्तन भागवत रामायण यज्ञ आदि होते हैं क्या ?
अधिकाँश हाईटेक आश्रमों में रहने वाले राजभोगी लोग संन्यासी ,विरक्त या भगवान् के भक्त होते हैं क्या?ऐसे लोगों के चेला चेलियों के आचार विचार संस्कारों से कहीं कोई धर्मकर्म झलकता है क्या ? आखिर बाबाओं के किन आचारों व्यवहारों से जुड़े होते हैं लोग !बाबाओं के लिए मरने मिटने के लिए तैयार भीड़ का बाबाओं से अपना संबंध क्या होता है और किन कार्यों के लिए बनाए जाते हैं ऐसे हाईटेक आश्रम और जब इतने हाईटेक तो आश्रम किस बात के ?यदि राजसी सब सुख सुविधाएँ ही भोगनी है तो बाबा किस बात के ?किंतु धर्म के नाम पर प्रपंचों का संग्रह सरकार और समाज के लिए चिंताजनक है !
धर्मकर्म विमुख बाबाओं के यहाँ धर्म कर्म करने वालों की भीड़ होगी ये तो कल्पना ही नहीं की जानी चाहिए !किसी आश्रम में कोई दो चार दिन ठहर कर कोई भी देख ले !बड़े बड़े मठाधीशों के पास पूजा पाठ आदि करने के लिए समय कहाँ होता है मठाधीश तो सारे प्रपंचों में ही फँसा रहता है !फिर भी भीड़ आगे पीछे चूमने चाटने को घूम रही होती है क्यों ?आखिर कौन सा रास टपकता है उनमें !
वस्तुतःघरेलू कलह से तंग स्त्री पुरुष शांति पाने के लिए आश्रमों से जुड़ जाते हैं !घर में जब तनाव हुआ तो आश्रमों में भाग आए!जिम्मेदारी विहीन आश्रमी जीवन जीने में शांति दिखती है इसीप्रकार से जवान स्त्री पुरुषों का अखाड़ा बन जाते हैं आश्रम !
मठाधीशों की कृपा से अपने अपने गृहस्थ जीवन से निराश थके हैरान परेशान तनावग्रस्त स्त्री पुरुषों को आपस में एक दूसरेके साथ जोड़ दिया जाता है ऐसे आश्रमी जोड़े पतिपत्नी की तरह ही आश्रमों में एक अलग तरह का आनंद अनुभव करने लगते हैं ! सारी मौज मस्ती भी होती है और कमरे भी अलग अलग होते हैं आश्रम नाम ही ऐसा है कि लोग शक भी नहीं करते! समाज समझता है कि ऐसे आश्रमों में तो केवल सत्संग होता है !आश्रमों में आनेवाले लोगों के परिजनों को जब शक होता है तो वे आश्रम में आते हैं और देखते हैं वहाँ की गतिविधियाँ तो कलह करते हैं शिकायत मठाधीशों के पास पहुँचती है तो बाबा उन्हें भी किसी के साथ जोड़ देते हैं वे भी एक नए प्रकार का आनंद अनुभव करने लगते हैं !अब तो उन्हें भी आश्रमों में आनंद मिलने लगता है !इसी प्रक्रिया से मठाधीशों की भीड़ बढ़ती चली जाती है कारवाँ बनता जाता है वहां पूजापाठ यज्ञ हवन जैसी चीजों का नाम निशान भी नहीं होता है!आश्रमों में मठाधीशों का केवल इतना काम होता है घर से लड़कर आश्रम में आने वाले स्त्री पुरुषों को न केवल आश्रमों में शरण भोजन आदि व्यवस्था दी जाती है अपितु उन्हें सभी प्रकार के शारीरिक सुख भी उपलब्ध करवाए जाते हैं इसीलिए ऐन्द्रिक सुखों के लिए आने वाली भीड़ ऐसेमठाधीशों को अपना मसीहा मानने लग जाती है !और मठाधीश लोग युवाओं के मन मुताबिक उनके बनाया करते हैं !इसके अलावा आश्रमों को चलाने की चिंता मठाधीश जी को नहीं होती है !
जो नेता, अभिनेता, उद्योगपति, अफसर या आम समाज के लोग आदि एक बार आश्रमों के आनंद का स्वाद चख चुके होते हैं उन आश्रमों का रस समाज को इतना अधिक लग चुका होता है कि वही अपने खर्चे से आश्रम बनाया सजाया सँवारा करते हैं !मठाधीश तो केवल आनंद लिया करते हैं !इसी आपाधापी में न न करते भी मठाधीशों के अपने भी दर्जनों बच्चे हो ही जाते हैं !
जिन्हें इन सब बातों का भरोसा न हो उन्हें ऐसे मठाधीशों के साथ पहले घट चुकी घटनाओं या पकड़े गए बाबाओं के विषय में भी ध्यान देना चाहिए !अभी तक जो बाबा पकड़े गए उनके आश्रमों से पूजा पाठ का सामान कम और सेक्स अधिक निकलती हैं क्यों ? जब बाबाओं पर या ऐसे आश्रमों पर कोई कानूनी शिकंजा कसता है तो मठाधीशों के द्वारा बनाए गए वही जोड़े बाबाओं के लिए मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं ! मठाधीश सबको कह देता है कि देख यदि मैं फँसा तो सबका नाम क़बूलूँगा !
इसीलिए घबड़ाकर आस्था दिखाने वाले आश्रमों में रँगरेलियाँ मना चुके स्त्री पुरुष मठाधीश के समर्थन में मरने मारने को तैयार हो जाते हैं !जेलों थानों में बंद बाबाओं की भी आरती उतारते और जेलों को दंडवत प्रणाम कर रहे होते हैं | मानो प्रार्थना कर रहे होते हैं हे बाबा जी !मेरा नाम मत कबूल दियो !
धर्मकर्म विमुख बाबाओं के यहाँ धर्म कर्म करने वालों की भीड़ होगी ये तो कल्पना ही नहीं की जानी चाहिए !किसी आश्रम में कोई दो चार दिन ठहर कर कोई भी देख ले !बड़े बड़े मठाधीशों के पास पूजा पाठ आदि करने के लिए समय कहाँ होता है मठाधीश तो सारे प्रपंचों में ही फँसा रहता है !फिर भी भीड़ आगे पीछे चूमने चाटने को घूम रही होती है क्यों ?आखिर कौन सा रास टपकता है उनमें !
वस्तुतःघरेलू कलह से तंग स्त्री पुरुष शांति पाने के लिए आश्रमों से जुड़ जाते हैं !घर में जब तनाव हुआ तो आश्रमों में भाग आए!जिम्मेदारी विहीन आश्रमी जीवन जीने में शांति दिखती है इसीप्रकार से जवान स्त्री पुरुषों का अखाड़ा बन जाते हैं आश्रम !
मठाधीशों की कृपा से अपने अपने गृहस्थ जीवन से निराश थके हैरान परेशान तनावग्रस्त स्त्री पुरुषों को आपस में एक दूसरेके साथ जोड़ दिया जाता है ऐसे आश्रमी जोड़े पतिपत्नी की तरह ही आश्रमों में एक अलग तरह का आनंद अनुभव करने लगते हैं ! सारी मौज मस्ती भी होती है और कमरे भी अलग अलग होते हैं आश्रम नाम ही ऐसा है कि लोग शक भी नहीं करते! समाज समझता है कि ऐसे आश्रमों में तो केवल सत्संग होता है !आश्रमों में आनेवाले लोगों के परिजनों को जब शक होता है तो वे आश्रम में आते हैं और देखते हैं वहाँ की गतिविधियाँ तो कलह करते हैं शिकायत मठाधीशों के पास पहुँचती है तो बाबा उन्हें भी किसी के साथ जोड़ देते हैं वे भी एक नए प्रकार का आनंद अनुभव करने लगते हैं !अब तो उन्हें भी आश्रमों में आनंद मिलने लगता है !इसी प्रक्रिया से मठाधीशों की भीड़ बढ़ती चली जाती है कारवाँ बनता जाता है वहां पूजापाठ यज्ञ हवन जैसी चीजों का नाम निशान भी नहीं होता है!आश्रमों में मठाधीशों का केवल इतना काम होता है घर से लड़कर आश्रम में आने वाले स्त्री पुरुषों को न केवल आश्रमों में शरण भोजन आदि व्यवस्था दी जाती है अपितु उन्हें सभी प्रकार के शारीरिक सुख भी उपलब्ध करवाए जाते हैं इसीलिए ऐन्द्रिक सुखों के लिए आने वाली भीड़ ऐसेमठाधीशों को अपना मसीहा मानने लग जाती है !और मठाधीश लोग युवाओं के मन मुताबिक उनके बनाया करते हैं !इसके अलावा आश्रमों को चलाने की चिंता मठाधीश जी को नहीं होती है !
जो नेता, अभिनेता, उद्योगपति, अफसर या आम समाज के लोग आदि एक बार आश्रमों के आनंद का स्वाद चख चुके होते हैं उन आश्रमों का रस समाज को इतना अधिक लग चुका होता है कि वही अपने खर्चे से आश्रम बनाया सजाया सँवारा करते हैं !मठाधीश तो केवल आनंद लिया करते हैं !इसी आपाधापी में न न करते भी मठाधीशों के अपने भी दर्जनों बच्चे हो ही जाते हैं !
जिन्हें इन सब बातों का भरोसा न हो उन्हें ऐसे मठाधीशों के साथ पहले घट चुकी घटनाओं या पकड़े गए बाबाओं के विषय में भी ध्यान देना चाहिए !अभी तक जो बाबा पकड़े गए उनके आश्रमों से पूजा पाठ का सामान कम और सेक्स अधिक निकलती हैं क्यों ? जब बाबाओं पर या ऐसे आश्रमों पर कोई कानूनी शिकंजा कसता है तो मठाधीशों के द्वारा बनाए गए वही जोड़े बाबाओं के लिए मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं ! मठाधीश सबको कह देता है कि देख यदि मैं फँसा तो सबका नाम क़बूलूँगा !
इसीलिए घबड़ाकर आस्था दिखाने वाले आश्रमों में रँगरेलियाँ मना चुके स्त्री पुरुष मठाधीश के समर्थन में मरने मारने को तैयार हो जाते हैं !जेलों थानों में बंद बाबाओं की भी आरती उतारते और जेलों को दंडवत प्रणाम कर रहे होते हैं | मानो प्रार्थना कर रहे होते हैं हे बाबा जी !मेरा नाम मत कबूल दियो !
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