Wednesday, 30 August 2017

नेताओं और रईस लोगों की ऐय्यासी के अड्डे बन जाते हैं हाईटेक आश्रम !

   बाबा बलात्कारी होते नहीं हैं वस्तुतः ये बनाए जाते हैं ?उनको इस नर्क में धकेलने वाले स्त्री पुरुष कभी बदनाम नहीं होते !
    ऐसे ही लोगों ने भागवत कथाओं को चौपट कर दिया !विद्वान् लोग उनकी ऐय्यासी में साथ नहीं देते थे इसलिए देखने सुनने में अच्छे लगने वाले नचैयों गवैयों को सेक्स लालचियों ने पैसे के बलपर कथाबाचक सिद्ध कर दिया अब वही जिगोलो गिरी करते अच्छे खासे घरों की सुख शांति भंग करते घूम रहे हैं !
    अपने वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट एवं बदनामी से डरने वाले सेक्स लालची लोग एवं ऐय्यासी के शौकीन स्त्री पुरुष  समाज के सुंदर स्त्री पुरुषों को प्रभावित करने के लिए आश्रमों बाबाओं पर धन खर्च करते हैं इसके बाद बाबाओं का कद बढ़ जाने से अच्छे अच्छे परिवारों के भले स्त्री पुरुष उनसे जुड़ते चले  जाते हैं फिर बाबा लोग उन्हें परोसते जाते हैं ऐसे स्त्री पुरुषों को !
   सेक्स सुखों के लालची सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त कुछ बासनाव्याकुल स्त्री पुरुष बदनामी के बचते हुए अपनी सेक्स इच्छाओं की पूर्ति हेतु धर्म का उपयोग करते हैं पहले तो ये अपने जैसा कामी कोई अत्यंत साधारण सा दिखने वाला बाबा पकड़ लेते हैं फिर ऐसे धनी लोग उसे इतना अधिक धन देते हैं कि उसकी साधारण सी कुटी को अपने ऐय्यासी करने लायक सब सुख सुविधाओं से पूर्ण कोठी बना लेते हैं !फिर अभिनेता लोग ऐसे बाबाओं का प्रचार प्रसार करके इन्हें पॉपुलर कर देते हैं फिर कुछ शारीरिक सेवाएँ प्रदान करने वाले कुछ स्वयं सेवी युवा आकर्षक आदि स्त्री पुरुष जोड़े जाते हैं !ये खेल कहीं पकड़ न जाए इसके लिए कुछ रसिक टाइप के नेता जोड़ लिए जाते हैं जो ऐसे पापकर्मों के लिए ढाल बने रहते हैं इनकी पूरी सुरक्षा करते हैं !
ये बलात्कारी बाबाओं के ये चारों घटक द्रव्य ऐसे आश्रमों में अक्सर चक्कर लगाते देखे जा सकते हैं ऐसे स्थलों के वीडियो चेक किए जाएं तो बड़े बड़े  प्रतिष्ठा प्राप्त लोग निकलेंगे किन्तु जब बाबा बेचारा पकड़ जाता है तो ये सारे लोग बाबा की बुराई करते हुए खुद को बचा लेते हैं और बाबा बेचारे को अकेला फँसा देते हैं ! बाबाओं के कुकृत्यों में सम्मिलित चेला चेलियाँ अपने अपने बाबाओं के पापों पर पर्दा डालते घूम रहे होते हैं ! 
   ऐसे ये खुदगर्ज लोग  एक आम इंसान को बाबा बनाते हैं पकड़ा बेचारा बाबा जाता है ये तीनों सफेदपोस लोग बाबा की बलि देकर खुद साफ सुथरे बच जाते हैं !इसके बाद तो बाबा जिन जेलों में बंद होते हैं वहाँ आरती उतारने समय से पहुँच जाते हैं लोग उन्हें बाबाओं का चेला चली या भक्त समझते हैं जबकि वे ऐय्यासी में सम्मिलित वे लोग  होते हैं जो अपनी बदनामी को दर रहे होते हैं कि बाबा कहीं हमारा नाम न कबूल दे !
    कुल मिलाकर बलात्कारी बाबाओं के पास बिलासी और भ्रष्टनेताओं का बल होता है धनवान लोगों का धन होता है शरीर दान करने वालों के शरीर होते हैं और अभिनेताओं का प्रचार बल साथ दे रहा होता है | 

    बाबाओं के घिनौने कारोबार में सम्मिलित चेला चेलियों  ने तो अपने अपने बाबाओं  को धोना पोछना शुरू कर दिया है ताकि उनके कुकर्मों का किसी को पाता  न लग जाए फिर तो चेला चेलियों का भी धंधा बंद हो जाएगा सारी पोल खुल जाएगी !इसलिए सेक्स कारोबार से जुड़े हाईटेक बाबाओं ने अपनी तारीफ करवाने के लिए महँगे महँगे  भाड़े के सुरक्षाकर्मी उतार दिए हैं सोसल साईटों पर !वो दिन भर यही लिखते बताते हैं कि उनका बाबा कितना  अच्छा है राम रहीम के चेलों की तरह उन्होंने ने भी अपने अपने बाबाओं को बाप (पिताजी) बना रखा है इसलिए वो भी अपने अपने बेटा बेटी सौंप रखे हैं बाबाओं को !ऐसे लोग बुराई कैसे करें अपनी भी इज्जत जाती है |  कुछ तो टीवी पर समय खरीदकर अपने अपने कर्मों की सफाई दे रहे हैं कुछ ने सोशल वर्क करने शुरू पर दिए हैं !कोई कोई बाबा तो रोडों का शोर शांत करता घूम रहा है !अचानक सक्रिय हो गए बाबाओं के पीछे लगाया जाए खुफिया तंत्र और उनकी सच्चाई समाज के सामने उद्घाटित करे सरकार !सरकार अपनी भी कुछ जिम्मेदारी समझे अन्यथा यदि चेला चेली आरोप लगावें तो सरकार पकड़ेगी और जो चेला चेलियों को साध कर रख पाया वो कितने भी कुकर्म करता रहे क्या उससे भोली भाली जनता को बचाना सरकार का कर्तव्य नहीं होना चाहिए !
 ऐसे कुकर्मों से धर्म और धर्म से जुड़े चरित्रवान  साधू संतों पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा है उन्हें तो पहले से ही पता था कि किस लालच में ये सोशल कार्यों का नाटक कर रहे हैं फिर भी समाज के सामने दुविधा तो होती ही है !इसलिए बाबाओं पर अंकुश लगाया जाए ! 
      बलात्कार में पकड़ जाएं तो दोषी और न पकड़े जाएँ तो !चेला चेलियों को पटाने में जो सफल हैं वो चारित्रवान !ऐसे लोगों को पकड़ने के लिए सरकार खुपिया तंत्र विकसित करे !और पता करे कि बाबाओं के सेवा कार्यों के पीछे चल क्या क्या रहा है और उनके चेला चेली उनकी तारीफों के पुल क्यों बाँध रहे हैं !ऐसे कर्मों में ये कितना सम्मिलित हैं !सबकी जाँच की जाए  !

Sunday, 27 August 2017

बाबाओं का आश्रम ही तो घर होता है और आश्रमवाली ही तो ......होती है फिर बाबाओं पर बलात्कार के आरोप क्यों ?

  संपत्ति कमाने वाले प्रपंचों में फँसे बाबा लोग अपने आश्रमों में भी स्वतंत्र नहीं रह सकते हैं क्या ? 
    जो बाबा अपने आश्रमों में स्त्रियों को रखते हैं अपने द्वारा चलाए जा रहे सेवाकार्यों में उन्हें सम्मिलित करते हैं कमा(माँग)कर खिलाते हैं दवा दारू की जिम्मेदारी उठाते हैं पति की तरह जब सारे फर्ज निभाते हैं तो उनमें पतिभावना आनी स्वाभाविक है फिर उसमें आपत्ति क्यों ?और उनके संबंध बलात्कार कैसे !आखिर ऐसे लोगों के पास रहने वालों से पूछा जाना चाहिए कि वे इन पर फिदा क्यों हुए !ऐसे बाबाओं की ये मजबूरी भी है कि उनके हजार 500 अपने बच्चे नहीं होगें तो उनकी हजारों करोड़ की सम्पत्तियों को सँभालेगा कौन ?आखिर वो कमाते किसके लिए हैं !
  धन पैदा करने वाले बाबाओं को उत्तराधिकारी तो पैदा करने ही पड़ेंगे !जितनी संख्या में संपत्तियाँ उतनी संख्या में उत्तराधिकारी !सलवार वाले बाबा को अक्सर कहते सुना जाता है अबकी साल इतने हजार करोड़ कमाएँगे ! धन वो पैदा करेंगे तो धन रखाने वाले भी तो उनके अपने ही होंगे !अपनी कमाई हुई सम्पत्तियों के उत्तराधिकारी  दूसरों के बच्चों को बना देंगे क्या और दूसरों को ही बनाना होता तो दूसरे तो कमा ही रहे थे फिर खुद क्यों कूदते व्यापार में !
      स्वदेशी आटा दाल चावल की तरह ही स्वदेशी शुद्ध सेक्स भी उपलब्ध करवाते सुने गए हैं कई बाबा लोग !एड्स आदि घातक बीमारियों से समाज को बचाने के लिए हजारों करोड़ का टर्नओवर दिखाने के लिए सेक्स मार्केट में कदम रख रहे हैं कई बाबा लोग !ये भी बहुत बड़ा कारोबार है विदेशी कम्पनियों को मात देने के लिए बाबाओं को उठाने पड़े ये कठोर कदम और बड़ी सफलता पूर्वक स्वदेशी शुद्ध सेक्स उपलब्ध करवा रहे हैं !विश्व को भारत के "स्वदेशीशुद्धसेक्सबाजार" के विषय में तो तब पता लगा जब नासिक कुम्भ में कंडोम की शार्टेज अखवारों में छपी ! तब लोगों को आश्चर्य हुआ !जब उन्हें पता लगा कि इतने इतने बड़े सेक्स कारोबारी समाज को अपनी सेक्स सेवाएँ उपलब्ध करवा रहे हैं ! 
       ऐसे हाईटेक आश्रमों को देशीशुद्धसेक्सबाजार" के रूप में प्रचारित करता जा रहा है मीडियाक्यों ? कई बाबाओं के सेक्स कारोबार में सम्मिलित होने की खबरें दिखाता रहता है मीडिया क्यों ? पहले भी कई सुख सुविधा पूर्ण  हाईटेक बाबाओं के आश्रमों से तलाशी के दौरान भी पूजा पाठ की सामग्री से अधिक सेक्ससामग्री मिलने की ख़बरें  दिखाता रहा है मीडिया ! मीडिया इस रहस्य को छिपाए रहता है  कि सेक्स सामग्री होने की सम्भावनाएँ देखकर तलाशी ली जाती है या हाईटेक आश्रमों की तलाशी होने पर वहाँ से सेक्सोपासना की सामग्री प्रायः मिलती ही है !
    मीडिया की बातों पर भरोसा किया जाए तो जीवन में सुख सुविधा भोगने की इच्छा पूरी करने के लिए साधू संत बनने वाले बाबाओं का एक वर्ग सेवाकार्यों के बहाने धन इकट्ठा करता है अत्याधुनिक सुख सुविधाओं से युक्त हाईटेक आश्रम बनाता हैउनमें स्त्रीपुरुषों को इकट्ठा करता है रखता है उनके भोजन पानी की व्यवस्था करता है और उन सभी सुख सुविधाओं का सभी प्रकार से उपभोग करता है !
     विशेष बात ये भी बताई जाती है कि  ब्राह्मण जाति का साधू ही विरक्त हो सकता है साधू संतों का स्वरूप समाज से पैसे माँगने के लिए कोई भी धारण कर सकता है किंतु वैराग्य ब्राह्मण साधुओं में ही होता है यद्यपि आजकल कुछ ब्राह्मण साधुओं का भी चारित्र्यिकपतन कुछ ब्राह्मण साधुओं में भी होता देखा गया है किंतु उनकी संख्या अन्य जातियों की अपेक्षा बहुत कम है ! ब्राह्मण साधूसंत आज भी संयम पूर्वक पूजन भजन यज्ञ आदि कर्म कांडों का दिखावा  नहीं अपितु वास्तव में त्याग तपस्या पूर्वक जीवन व्यतीति करते हैं !
       इसीलिए तो आज भी ब्राह्मण जाति  के लोग राजनीति करने के लिए ,व्यापार करने के लिए ,सुख सुविधाएँ भोगने के लिए जहाज़ों पर चढ़कर विदेशों में घूमने के लिए  समाज से पैसे माँगने के लिए ,तमाम सुख सुविधाओं को जुटाकर उसमें बासनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधूसंत नहीं बनते हैं ब्राह्मणों ने आज भी साधुसंतों के वेष को बदनाम नहीं किया है !        
    जो साधू संत बनकर भी सारी  सुख सुविधाएँ जुटाएगा वो उन्हें भोगेगा क्यों नहीं !अपनी इच्छा क्यों रोकेगा !जिसके लिए वो साधू बना इतने सारे प्रपंच किए हैं धंधा व्यापार फैलाया है अब सेक्स के लिए वो विदेश जाएगा क्या या आम जनता के घरों में कूदेगा ?वो तो वहीँ निपटेगा जो उसके आगे पीछे घूमते हैं या आश्रम में रहते हैं !
   बाबा लोग अपने अपने घरों से भगाए गए कामचोर स्त्री  पुरुषों को इकट्ठा करते हैं आश्रम नाम की कोठी बनाना उसमें बेडरूम बनाना सामने टीवी लगा होना उसमें वैसी वाली सीडी देखने के बाद बेड पर कोई बाबा अकेला सो लेगा क्या ? 
   समाज सेवा हेतु  धन माँगने के लिए साधू बनना कितना उचित है !व्यापार करने के लिए राजनीति करने के लिए विदेशों में घूमने के लिए धन जुटाना है तो साधू बन जाओ !
   त्याग तपस्या और वैराग्य के बिना साधू बनकर कोई करेगा भी क्या ?पैसे न होने के कारण बिना साधू बने जो काम नहीं किए जा सकते थे वही काम करने के लिए ही तो साधू बनने  का उद्देश्य होता है !क्योंकि साधू बनने के बाद समाज से पैसे माँगने में शर्म छूट जाती है!
   साधू बनकर भी जातियों के अनुशार ही आचरण  करते हैं लोग ! जो साधू ब्राह्मण नहीं हैं वो करते हैं ऊट पटाँग काम ! जातियों की जड़ें बहुत गहरी हैं इन्हें मिटाना या झुठलाना इतना आसान नहीं है !ब्राह्मण न होने के बाद भी जो लोग साधू संत बन जाते हैं उनमें अधिकाँश लोगों का मन न त्याग वैराग्य में !
   मनुवाद और जातिवाद का विरोध करने वालों को ये समझ लेना चाहिए कि जातियाँ ही सच्चाई हैं ये मनुष्य निर्मित नहीं हैं और जातियों के अनुरूप ही स्वभाव बनता बिगड़ता है विश्व के महान जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु ने मनुस्मृति नामक जातिविज्ञान के महान ग्रन्थ की रचना ही इसी दृष्टि से की थी किंतु जातियाँ उन्होंने निर्मित नहीं की हैं अपितु गुण कर्मों और स्वभाव के अनुशार निर्मित जातियाँ अनादि काल से चली आ रही थीं जैसे आग गर्म और पानी ठंडा होता है ये उनका स्वभाव है उसी प्रकार से जातियाँ स्वभावों में सम्मिलित हैं !
   अब तो सिद्ध हो गया कि चरित्रहीन अधिकाँश बाबा ब्राह्मण नहीं हैं जो ब्राह्मण हैं वो अधिकाँश बाबा चरित्रहीन  नहीं हैं ये सिद्ध हो गया कि जातियाँ सौ प्रतिशत सच हैं !

Friday, 25 August 2017

बाबाओं मठाधीशों आदि का साथ देने वाली भीड़ भगवान की भक्त होती है क्या ? और यदि भक्त नहीं तो क्या ?

  कानून व्यवस्था के लिए समस्या बनने वाले बाबाओं पर अंकुश लगाया जाए !देश के कानून के विरुद्ध खड़े होने वाले लोग धार्मिक नहीं हो सकते !
  चरित्रवान संत वैभव व्यापार संपत्तियां नहीं धारण करते !भीड़ से बचने के लिए ही तो लोग साधू संत बनते हैं भीड़ जुटाने के लिए नहीं !
   बाबा तमाशा राम की भीड़ ,बाबा कामपाल की भीड़ और मथुरा के उस बाबा की भीड़ जिसने प्रशासन को छका दिया था!सलवार वाले बाबा जिन्होंने जनता को जूझने के लिए तो खूब ललकारा किंतु जब अपनी बारी आई तो सलवार पहन कर भागने लगे क्यों ?आखिर कानून का सम्मान क्यों नहीं किया जाना चाहिए ?
बाबाओं के समर्थक एवं कानून के विरोधी लोगों का धर्म कर्म से कोई संबंध नहीं होता!ऐसे बाबाओं का और उनके भक्तों का भगवान् से कोई लेनादेना होता है क्या ? 
     होटलों की तरह हाईटेक बनाए जाने वाले आश्रमों में पूजन भजन कथा कीर्तन भागवत रामायण यज्ञ आदि होते हैं क्या ?
  अधिकाँश हाईटेक आश्रमों में रहने वाले राजभोगी लोग संन्यासी ,विरक्त या भगवान् के भक्त होते हैं क्या?ऐसे लोगों के चेला चेलियों के आचार विचार संस्कारों से कहीं कोई धर्मकर्म झलकता है क्या ? आखिर बाबाओं के किन आचारों व्यवहारों से जुड़े होते हैं लोग !बाबाओं के लिए मरने मिटने के लिए तैयार भीड़ का बाबाओं से अपना संबंध क्या होता है और किन कार्यों के लिए बनाए जाते हैं ऐसे हाईटेक आश्रम और जब इतने हाईटेक तो आश्रम किस बात के ?यदि राजसी सब सुख सुविधाएँ ही भोगनी है तो बाबा किस बात के ?किंतु धर्म के नाम पर प्रपंचों का संग्रह  सरकार और समाज के लिए चिंताजनक है !
    धर्मकर्म विमुख बाबाओं के यहाँ धर्म कर्म करने वालों की भीड़ होगी ये तो कल्पना ही नहीं की जानी चाहिए !किसी आश्रम में कोई दो चार दिन ठहर कर कोई भी देख ले !बड़े बड़े मठाधीशों के पास पूजा पाठ आदि करने के लिए समय कहाँ होता है मठाधीश तो सारे प्रपंचों में ही फँसा रहता है !फिर भी भीड़ आगे पीछे चूमने चाटने को घूम रही होती है क्यों ?आखिर कौन सा रास टपकता है उनमें !
  वस्तुतःघरेलू कलह से तंग स्त्री पुरुष शांति पाने के लिए आश्रमों से जुड़  जाते हैं !घर में जब तनाव हुआ तो आश्रमों में भाग आए!जिम्मेदारी विहीन  आश्रमी जीवन जीने में शांति दिखती है इसीप्रकार से  जवान स्त्री पुरुषों का अखाड़ा  बन जाते हैं आश्रम !
    मठाधीशों की कृपा से अपने अपने गृहस्थ जीवन से निराश थके हैरान परेशान तनावग्रस्त स्त्री पुरुषों को आपस में एक दूसरेके साथ जोड़ दिया जाता है ऐसे आश्रमी जोड़े पतिपत्नी की तरह ही आश्रमों में एक अलग तरह का आनंद अनुभव करने लगते हैं ! सारी मौज मस्ती भी होती है और कमरे भी अलग अलग होते हैं आश्रम नाम ही ऐसा है कि लोग शक भी नहीं करते! समाज समझता है कि ऐसे आश्रमों में तो केवल सत्संग होता है !आश्रमों में आनेवाले लोगों के परिजनों को जब शक होता है तो वे आश्रम में आते हैं और देखते हैं वहाँ की गतिविधियाँ तो कलह करते हैं शिकायत मठाधीशों के पास पहुँचती है तो बाबा उन्हें भी किसी के साथ जोड़ देते हैं वे भी एक नए प्रकार का आनंद अनुभव करने लगते हैं !अब तो उन्हें भी आश्रमों में आनंद मिलने लगता है !इसी प्रक्रिया से मठाधीशों की भीड़ बढ़ती चली जाती है कारवाँ बनता जाता है वहां पूजापाठ यज्ञ हवन जैसी चीजों का नाम निशान भी नहीं होता है!आश्रमों में मठाधीशों का केवल इतना काम होता है घर से लड़कर आश्रम में आने वाले स्त्री पुरुषों को न केवल आश्रमों में शरण भोजन आदि व्यवस्था दी जाती है अपितु उन्हें सभी प्रकार के शारीरिक सुख भी उपलब्ध करवाए जाते हैं इसीलिए ऐन्द्रिक सुखों के लिए आने वाली भीड़ ऐसेमठाधीशों को अपना मसीहा मानने लग जाती है !और मठाधीश लोग युवाओं के मन मुताबिक उनके बनाया करते हैं !इसके अलावा आश्रमों को चलाने की चिंता मठाधीश जी को नहीं होती है !
    जो नेता, अभिनेता, उद्योगपति, अफसर या आम समाज के लोग आदि एक बार आश्रमों के आनंद का स्वाद चख चुके होते हैं उन आश्रमों का रस समाज को इतना अधिक लग चुका होता है कि वही अपने खर्चे से आश्रम बनाया सजाया सँवारा करते हैं !मठाधीश तो केवल आनंद लिया करते हैं !इसी आपाधापी में न न करते भी मठाधीशों के अपने भी  दर्जनों बच्चे हो ही जाते हैं !
   जिन्हें इन सब बातों का भरोसा न हो उन्हें ऐसे मठाधीशों के साथ पहले घट चुकी घटनाओं या पकड़े गए बाबाओं के विषय में भी ध्यान देना चाहिए !अभी तक जो बाबा पकड़े गए उनके आश्रमों से पूजा पाठ का सामान कम और सेक्स अधिक निकलती हैं क्यों ?       जब बाबाओं पर या  ऐसे आश्रमों पर कोई कानूनी शिकंजा कसता है तो मठाधीशों के द्वारा बनाए गए वही जोड़े बाबाओं के लिए मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं ! मठाधीश सबको कह देता है कि देख यदि मैं फँसा तो सबका नाम क़बूलूँगा !
   इसीलिए घबड़ाकर आस्था दिखाने वाले  आश्रमों में रँगरेलियाँ  मना चुके स्त्री पुरुष मठाधीश के समर्थन में मरने मारने को तैयार हो जाते हैं !जेलों थानों में बंद बाबाओं की भी आरती उतारते और  जेलों को दंडवत प्रणाम कर रहे होते हैं | मानो प्रार्थना कर रहे होते हैं हे बाबा जी !मेरा नाम मत कबूल दियो !

Thursday, 24 August 2017

समयविज्ञान

                                                 'समयविज्ञान' 
       'साधन' और 'समय' ये दो पहिए हैं जिन पर जीवन चलता है | जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता के दो प्रमुख माध्यम हैं एक साधन और दूसरा समय !जैसे साधन अनुकूल न हों तो काम नहीं किया जा सकता है वैसे ही समय अनुकूल न हो तो सफलता नहीं पायी जा सकती है | ऐसी परिस्थिति में साधनों की अपेक्षा समय को अधिक प्रभावी मानना चाहिए क्योंकि कुछ कम साधन होने पर भी समय साथ  दे दे तो एक से एक गरीब लोग भी उद्योगपति बनते देखे जाते हैं और समय साथ न दे तो बड़े बड़े समझदारों को भी धूल में मिला देता है समय ! 
      इसी प्रकार से चिकित्सा के विषय में है गाँवों में आदिवासियों में जंगलों में जहाँ आधुनिक चिकित्सा के साधन बिल्कुल नहीं हैं वहाँ भी जिस किसी का साथ उसका अपना समय दे देता है बड़ी से बड़ी बीमारियाँ होने के बाद भी वे  बिना चिकित्सा या कमजोर  चिकित्सा व्यवस्था होने पर भी स्वस्थ होते देखे जाते हैं उनके बड़े बड़े घाव बिना दवा के भी भरते देखे जाते हैं ठीक हो जाते हैं दूसरी ओर समय जिनका साथ नहीं देता है वे चिकित्सा संबंधी अत्याधुनिक सुविधा युक्त चिकित्सा व्यवस्था पाकर भी मरते देखे जाते हैं !समय महत्वपूर्ण है !
    एक चिकित्सक एक जैसे 100 लोगों की चिकित्सा एक जैसी पद्धति एक जैसी औषधियों से एक साथ करता है किंतु परिणाम समय के ही अनुशार मिलता है जिनका समय साथ देता है वे स्वस्थ हो जाते हैं समय कम साथ देता है तो अस्वस्थ रहते हैं और समय जिसके बिल्कुल विपरीत हो जाता है वे अच्छी से अच्छी चिकित्सा पाकर भी मरते ही हैं समय सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है !
      कोई कार या बस खाई में गिर जाती है भूकंप आने पर बिल्डिंगों के मलबे में कुछ लोग दब जाते हैं बाढ़ में बह जाते हैं ट्रेनों में दुर्घटना ग्रस्त हो जाते हैं जहाँ और जिन परिस्थितियों में जीवित बचने की कोई संभावनाएँ ही नहीं बचती हैं किंतु जिनका समय अच्छा होता है वे वहाँ से भी जीवित बचते देखे जाते हैं!
      जिसका जब समय अच्छा होता है तो बहुत सारे लोग मित्र बन जाते हैं नए नए संबंध जुड़ जाते हैं बड़े बड़े पद प्रतिष्ठा आदि मिल जाते हैं ,विवाह हो जाता है तमाम संपत्तियाँ इकट्ठी हो जाती हैं उसी का जब समय विपरीत होता है तो सब कुछ उल्टा होने लगता है तलाक हो जाता है !समय सबसे अधिक बलवान होता है!
   समय जैसा जैसा बदलता है हमारा स्वभाव वैसा वैसा बनता जाता है !हमारे जीवन में जब समय अच्छाआता है तो हमारा स्वभाव हर जगह से अच्छाइयों का संग्रह करके प्रसन्न हो लिया करता है यहाँ तक कि किसी के बुरे वर्ताव से भी अच्छी बातें खोज कर हमें प्रसन्नता प्रदान करने लगता है अच्छा समय हमारा मनोबल इतना बढ़ा देता है कि हम असंभव काम को भी संभव बना लेने की ठान लेते हैं और जब हमारा बिपरीत अर्थात बुरा समय आता है तो हमारा स्वभाव हर जगह से बुरे बिचारों का संग्रह करने लगता है किसी अच्छे से अच्छे व्यक्ति की बहुत अच्छी बातों से भी हम अपनी तनाव सामग्री एकत्रित कर लिया करते हैं हमें जहाँ जहाँ जैसे जैसे जिस किसी के द्वारा दुखप्रद या मनोबल तोड़ने वाले विचार मिलते हैं हमें उस समय वही सबसे अच्छे लगने लगते हैं और हम अपने आप अपने में ही अकारण दुखी हो लिया करते हैं और वो बुरा समय हमारा मनोबल इतनी बुरी तरह से तोड़ देता है कि हमें लगने लगता है कि जीवन में हम अब कुछ नहीं कर पाएँगे और हम छोटे छोटे कामों के लिए अपने को दूसरों के आधीन समझने लगते हैं | 
      जिस किसी का एक बार बुरा समय आ जाता  है उस समय के बुरे पन का प्रवाह  इतना अधिक होता है कि उसको सभी के द्वारा मिलने वाली सभी प्रकार की मदद ब्यर्थ होती चली जाती है |जीवन से संबंधित सभी प्रकार की सभी समस्याओं से बाहर निकालने वाले सभी प्रयास निरर्थक लगने लगते हैं !बुरे समय से प्रभावित रोगियों के विषय में बड़े से बड़े चिकित्सकों के अच्छे से अच्छे प्रयासों के परिणाम बिल्कुल विपरीत अर्थात उल्टे आते दिख रहे होते हैं  सभी प्रकार की चिकित्सा औषधियाँ आपरेशन आदि बुरे से बुरा परिणाम देने पर आमादा दिख रहे होते हैं बड़े बड़े विद्वान चिकित्सक भीषण बाढ़ में बचाव कर्मियों की तरह परिणामों की परवाह किए बिना निरंतर प्रयासों में जी जान लगाए होते  हैं फिर भी जैसे भीषण बाढ़ में बचाव कर्मियों के सारे प्रयास निष्फल हो जाते हैं उसी प्रकार से अत्यंत बुरे समय से संबंधित होने वाली बीमारियों में सभी प्रकार के चिकित्सकीय प्रयास असर हीन  होते देखे जाते हैं | जैसे यदि बाढ़ सीमित हुई तो बचाव कर्मी बहुत कुछ बचा पाने में सफल भी हो जाते हैं उसी प्रकार से किसी रोगी का समय यदि अधिक बुरा  न हुआ तो कई गंभीर रोगियों के जीवन को भी चिकित्सक प्रयास पूर्वक बचा पाने में सफल हो जाया करते हैं किंतु समय की अनुकूलता उन्हें भी चाहिए क्योंकि अच्छे चिकित्सकों के अच्छे प्रयासों का परिणाम भी उनके प्रयास नहीं अपितु रोगी के अपने अच्छे बुरे समय के अनुशार ही मिलते हैं  |
    बुरे समय से पूरी तरह प्रभावित हो चुकने के बाद रोगियों पर चिकित्सा का और मनोरोगियों पर काउंसलिंग आदि उपचारों का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है फिर भी भूकंप आने के बाद किए जाने वाले बचाव कार्यों की तरह जितना जो कुछ बचा पाने में सफल हो पाते हैं उतना ही बहुत होता है | 
  किसीके ऊपर बुरे समय का प्रभाव प्रारम्भ हो चुकने के बाद उसके मित्रों ,शुभ चिंतकों ,परिवार के सभी सगे संबंधियों , नाते रिस्तेदारों आदि के द्वारा पहुँचाई गई बड़ी से बड़ी मदद उसी प्रकार से बेकार जाती दिखती है जैसे किसी नदी में भीषण बाढ़ आ जाने के बाद बनाए जाने वाले बड़े बड़े बाँध पुल आदि सब बहते चले जाते हैं !
      बिपरीत समय से जूझ रहे लोगों के जीवन से जुड़े बड़े पुराने पुराने विश्वसनीय लोग भी उनके विषय में मदद संबंधी कोई प्रयास करते समय अपने आपने सिद्धांतों से ऐसे हिलने लग जाते हैं जैसे भूकंप आने के समय बड़े बड़े पिलर्स विश्वसनीय नहीं रह जाते हैं !
     प्राकृतिक समय जब अच्छा होता है तो सभी ऋतुएँ उचित मात्रा में सर्दी गर्मी वर्षात के द्वारा चराचर जगत का पोषण करती हैं प्रकृति अच्छी मात्रा में पेड़ पौधे फल फूल फसलें शाक आदि उत्पन्न करने लगती  है आरोग्यता प्रदान करने वाली उत्तम वायु बहने लगती है सभी स्त्री पुरुष स्वाभाविक रूप से  प्रसन्न रहने लगते हैं सब कुछ अच्छा अच्छा होता चला जाता है! वही समय विपरीत होने पर आँधी तूफान सूखा बाढ़  और  भूकंप आदि प्राकृतिक उपद्रव होते देखे जाते हैं सामूहिक महामारी रोग आदि पैदा होने लगते हैं सब कुछ विपरीत होने लगता है समाज में उन्माद फैलने लगता है फसलें धोखा देने लगती हैं सामाजिक संघर्ष कलह आदि होते दिखाई पड़ने लगते हैं !
     

Monday, 21 August 2017

मरने वालों को मुआबजा देने और मारने वालों को सैलरी देने के लिए ही होती है सरकार ! या कुछ काम भी करना होता है ?!

 सरकारी विभागों की लापरवाही घूसखोरी अकर्मण्यता से घटित होती हैं अधिकाँश दुर्घटनाएँ और सभी प्रकार के अपराध !मुआबजा और सैलरी देने के लिए बनती है सरकार वो अपना काम किया करती है !
    काम करना जिनके बश का न हो योग्यता जिनमें हो न फिर भी उन्हें सैलरी देने का बहाना खोजती  सरकार और उन्हें आफिस बोला लेती है घर भेज देती है !उन्हें भी केवल सैलरी के लिए हाजिरी लगाने आफिस आना पड़ता है !लक्ष्यहीन, जिम्मेदारी विहीन जीवन जीने वाले तो ऐसे ही काण्ड करेंगे ही !गोरखपुर अस्पताल हो या ट्रेन हादसा जनता की सेवा ऐसे करते हैं सरकारी लोग ! सरकार के हर विभाग का ऐसा ही बुरा हाल है जब तक इनकी छटनी कायदे से बड़ी संख्या में नहीं की जाएगी तब तक ये लोग न काम करेंगे और न किसी और को करने देंगे !
     अधिकारी आफिसों में बैठे रहते हैं कर्मचारी काम करने के बहाने निकलते हैं मार्केट किया करते हैं या अपनी नाते रिस्तेदारियों में घूमा करते हैं काम करना न जरूरी है न कोई करता है और न सरकार ने काम करने के लिए उन्हें रखा है यदि ये काम करते ही होते तो लोग सिफारिस के लिए पार्षदों विधायकों सांसदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों के यहाँ चक्कर क्यों लगाते !वो भी सरकारी कार्यालयों में फाड़ कर फ़ेंक दिए जाने वाले सिफारिशी लेटर बाँटने के लिए सुबह सुबह दुकानें सजाकर बैठ जाते हैं !उन्हें भी इतना अपना कर्तव्य नहीं समझते हैं कि उन अधिकारियों कर्मचारियों से पूछें कि आप काम क्यों नहीं करते लोगों को सिफारिस के लिए हमारे पास क्यों आना पड़ता है !किंतु उन्हें पता है कि सरकारी अधिकरियों कर्मचारियों के दिमाग में जनप्रतिनिधियों की क्या औकात होती है और वो कितनी उनकी बात मानते हैं इसी डर  से तो वो दबाव नहीं डालते हैं !
     जिस विभाग  से जुड़े सारे काम बिगड़े पड़े हों अधूरे पड़े हों जनता उन्हें करवाने के लिए धक्के खाती घूमती हो किंतु इन पर जूँ न रेंगता हो समझ में नहीं आता है किस काम के लिए बने हैं अधिकारी कर्मचारी और सरकार इन्हें क्यों देती है सैलरी !अधिकारियों की तो भूमिका ही धीरे धीरे समाप्त होती जा रही है ये कुछ करते नहीं हैं इसलिए जनता भी इनसे निरास होने लगी है !
 अधिकारियों कर्मचारियों की लापरवाही ,संवेदनशून्यता अयोग्यता भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया गोरख पुर अस्पताल और रेलवे दुर्घटना !सरकार के हर विभाग को ऐसे ही बर्बाद कर रहे हैं सरकार के दुलारे !सरकार इनसे डरती क्यों है इनकी योग्यता परीक्षा ले !सोर्स और घूस के बलपर नौकरी पाने वालों में काम करने की योग्यता कहाँ से आएगी !घूस देकर नौकरी पाने वाले घूस लेकर घापने घोटाले करके अपना दिया हुआ धन तो निकालेंगे ही जिनके बच्चे मरे वो बच्चे वाले जानें !

Sunday, 20 August 2017

सरकार जिन्हें सैलरी देने के लिए टैक्स माँगती है काम करने के लिए वही घूस माँगते हैं क्यों ?

 सरकारी अपराधी गिरोहों तक पहुँचने में असफल रही है सरकार !बेकार ही बीते जा रहे हैं 5 साल मोदी सरकार !               सरकारी अपराधियों  के गिरोह प्राईवेट अपराधियों से ज्यादा खतरनाक हैं !  जो जितने बड़े ओहदे पर वो उतनी बड़ी भूमिका निभा रहा है भ्रष्टाचार  को प्रोत्साहित करने में !यदि अच्छाई होती तो इसका श्रेय भी उन्हें ही जाता जिन्हें आज दोषी माना जा रहा है !    भ्रष्टाचार अकर्मण्यता लापरवाही घूस खोरी कामचोरी यदि देश में बढ़ी है तो इसका कारण या तो सरकार भ्रष्टाचारी है या फिर सरकारी कर्मचारी जनता की इसमें कोई भूमिका नहीं है !जनता से घूस लेकर यदि सरकारी जमीनों पर ये कब्जे करवा देते हैं हैं तो जनता पेमेंट करके ले लेती है वो न ले कोई दूसरा ले लेगा जब ये बेचने को तैयार बैठे ही हैं तो कोई खरीद लेगा !सरकार अपने भ्रष्टाचारियों की भ्रष्टाचारी कमाई से यदि हिस्सा नहीं लेती है तो सरकार उन पर कार्यवाही क्यों नहीं करती है !इससे सरकार या तो भ्रष्ट सिद्ध होती है या फिर लापरवाह अथवा कामचोर!या फिर गरीब जनता से वोट माँगने के लिए बड़ी बड़ी योजनाओं की घोषणा किया करती है करना धरना कुछ नहीं है आखिर सरकार के ऐसे आचरणों को किस श्रेणी में रखा जाए !     सरकार पहले अपने अपराधियों को पकड़े बाद में शुरू करे विकास का कामकाज अन्यथा जनता के विकास का सारा पैसा ये खुद खाए जा रहे हैं और जनता को ठेंगा दिखाते जा रहे हैं ! सरकार को बेवकूप बना देंगे जनता को !सरकारी अपराधी शिक्षित तो होते ही हैं इसलिए अपने बचाव के सारे इंतजाम करके चलते हैं तभी तो उन्हें पकड़ना आसान नहीं होता है !      सरकार यदि काम कम भी करवा पावे केवल सरकारी अपराधियों के द्वारा किए जाने वाले अपराध रोक ले को पकड़ पावे तो प्राईवेट अपराधियों से ज्यादा खतरा नहीं है जनता को !वैसे भी प्राईवेट अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है सरकारी मदद के बिना वे बेचारे छोटे मोटे अपराध ही कर पाते हैं दाल रोटी चलने भर के लिए इसलिए जनता को उनसे अधिक समस्या नहीं है मुख्य समस्या तो सरकारी विभागों से ही है ! इसलिए सरकार जनता की केवल इतनी मदद कर दे कि वो जनता से घूस मांगना और जनता को सताना बंद कर दें हो सके तो कुछ काम भी करें और न करें तो न करें केवल लूट पात बंद कर दें सैलरी लेते रहें सरकार से जनता उनके बीबी बच्चों परिवार आदि का बोझ यूं ही ढोती रहेगी !
  
   


Saturday, 19 August 2017

महिलाओं की सुरक्षा करना सरकार बंद करे तो शायद सुरक्षित हो जाएँ महिलाएँ !

     "महिलाओं का रहन सहन अभी तो सरकार को चुनौती देने जैसा है बिल्कुल ऐसा कि मेरी सुरक्षा करके दिखाओ तो जानें"इसलिए  बलात्कार का आरोप केवल पुरुषों पर लगाना ही क्यों महिलाएँ पीछे हैं क्या ? पुरुषों में चरित्रवान लोग नहीं होते हैं क्या ?महिला सुरक्षा का मतलब है पुरुषों से सुरक्षा ये शब्द पुरुषों का  अपमान करते हैं !अन्यथा अपराध घटने पर जोर दे सरकार उसी में सभी प्रकार के अपराधी आ जाएँगे ! 
  सेक्स के लिए पुरुषों में पागलपन देखा जाता है तो
पुरुषों में भी होता है वे भी पागल हो उठते हैं तो महिलाएँ भी तो ऐसी होती हैं "पीजीएडी (पर्सिस्टेंट जेनिटल अरॉउजल डिसऑर्डर)" से ग्रसित !उनकी भी होती है ऐसी दुर्दशा फिर पुरुषों को ही दोषी क्यों ठहराया जाए see more... http://teznews.com/for-the-sake-of-sex-there-is-a-woman-in-front-of-the-partner-because-65402-2/ 
       बासना (सेक्स) की इच्छा तो महिलाओं में भी होती है बल्कि पुरुषों की अपेक्षा आठ गुना अधिक सेक्सुअल पागलपन होता है महिलाओं में !अंतर इतना है कि महिलाओं को क़ानूनी संरक्षण प्राप्त है जिसकी मदद लेकर महिलाएँ पुरुषों पर गुप्त अत्याचार किया करती हैं पहल भी खुद करना प्रयास भी खुद करना पैसे भी ऐंठना और पहले की अपेक्षा अधिक पैसे वाला या सुन्दर या प्रतिष्ठा प्राप्त व्यक्ति मिल गया तो पहले को छोड़ देती हैं यदि पहले वाला नहीं माना और वो प्रेम प्यार का हवाला देकर चिपका ही रहना चाहता है तो उस पर बलात्कार के केस करके सबक सिखा देती हैं उसे !
      लड़कियों  के पीछे यदि लड़के लगे रहते हैं तो क्या ये सच नहीं है कि लड़कों के पीछे भी लड़कियाँ लगी रहती हैं प्रेमी प्रेमिकाओं के जोड़े अक्सर पार्कों में पार्किंगों में झाड़ियों खुले में मेट्रो सूनी बसों में स्कूलों के एकांत स्थलों में लिपटे चिपटे चूमते चाटते मूत्रमार्गों के व्यापार में लगे जोड़े अपना  अपना प्रेम अपने पार्टनर के शरीर में उतार देने की पूरी कोशिश करते देखे जा सकते हैं उस समय उन्हें सार्वजानिक मर्यादा का ध्यान भी नहीं रहता है !
    ऐसी लड़कियों को कोई पकड़ कर नहीं लाता अपितु गन्दी गन्दी गालियाँ देकर मिलन बिंदु पर बोलाते देखे जाते हैं लडके !एक दिन दिल्ली के एक पार्क में बैठा एक लड़का किसी को फोन कर रहा था  - "साली तू अभी आई नहीं मैं पार्क के झाड़ में बैठा हूँ मच्छरों ने खा डाला मुझे कहीं डेंगू हो गया तो तेरा बाप बचाने आएगा क्या !और उसे माँ की गन्दी गन्दी गालियाँ देने लगा इसके बाद फोन काट दिया !थोड़ी देर में लड़की पहुँची दोनों एक दूसरे से चिपक गए चलने लगीं रँग रैलियाँ !उसने पूछा कहाँ हो गई इतनी देर ?तोवो बोली कि पापा आफिस से आ गए थे उन्होंने पूछ दिया कहाँ जाती हो तो रुकना पड़ा !अभी भी डाक्टर का बहाना बनाकर आई हूँ "इसके बाद उस लड़के ने उसके पिता को इतनी गन्दी गंदी  गालियाँ दीं और उसे मार डालने पर उतारू हो गया !लड़की उससे माफी माँग रही थी हाथ पैर जोड़ कर बड़ी मुश्किल से मनाया उसे !इसके बाद उसका गुस्सा कम करने के लिए वो लड़की चूमने चाटने की हद किए हुए थी !यहाँ तक कि वो जिस अंग पर धोखे से भी हाथ रख देता था वो ख़ुशी ख़ुशी खुद खोलती जा रही थी वे बटनें ! 
     प्रेमिका नाम की लड़कियों के द्वारा बिगाड़े गए ऐसे लड़के अपनी पत्नियों के साथ भी जब ऐसा ही वर्ताव करना चाहते हैं उनके माता पिता आदि घर वालों को गन्दी गन्दी गालियाँ देने लगते हैं उनकी आदत पड़ चुकी है वो छूटे कैसे इस कारण समाज में वैवाहिक जीवन बिगड़ रहे हैं | लड़कियाँ  भी घर से झूठ बोल बोल कर ट्यूशन डाक्टर या जरूरी कामों का बहाना कर कर के लड़कों से शरीर रगड़ने जाती रही होती हैं उनकी भी आदत पद चुकी होती है|गृहस्थी के बोझ तले दबा मजबूर पिता तो सह गया किंतु ससुराल वाले कैसे सह जाएँगे जो पैदा ही बहू की कमियाँ निकालने के लिए हुए होते हैं | जिस लड़की में कोई कमी न हो वो भी विवाह करके ससुराल पहुँचे भर वहाँ उसके पुरखों तक की गलतियाँ गिना दी जाती हैं उसे ! इतना अच्छा होम वर्क किए होते हैं वो लोग !इसलिए लड़की के वैवाहिक जीवन सकुशल चलने का मतलब लड़की का समझौता वादी होना होता है और बहू से ससुराल पक्ष यदि वास्तव में संतुष्ट हो तो ऐसी बहू की तुलना सहनशीलता के मामले में धरती के किसी स्त्री पुरुष से नहीं की जा सकती अनुपमेय होती हैं ऐसी स्त्रियाँ !धन्य है उनका चरित्र जो समर्पण और सेवा से ससुराल वालों का दिल जीत लिया करती हैं ये साधारण काम नहीं  है !
   दूसरी ओर फैशनेबल स्त्रियों या प्रेमिकाओं के साथ अधिकाँश हादसे उनकी पहले की बिगड़ी हुई आदतों के कारण होते हैं या फिर उनके पति या ससुराल वालों की वैसी ही बिगड़ैल लतों के कारण होते हैं | हत्या या आत्म हत्या जैसे जघन्य अधिकांश अपराधों की जड़ों में उनके उनके प्रेम प्रसंग होते हैं !
   कई बार जिनके साथ उनका कोई सम्बन्ध नहीं है किंतु जिनके साथ संबंध है इसलिए उन्हें वैसा करते देखने वाले दर्शक के मन में भी उसके प्रति वैसा करने की इच्छा जग गई होती है अब वो सेक्सालु बहुत दूर तक उसका पीछा करता है जहाँ जैसा मौका मिलता है वहाँ वो वैसा वर्ताव करने लगता है और उसके लिए किसी भी हद तक उतर जाता है लड़का किंतु उस लड़के में सेक्सुअल पागल पन भरा तो उसी लड़की के अपने आचरणों ने था जिसे वो प्रेमी के साथ कर रही थी जिसे देखकर वो लड़का उसका पीछा करने लगा ! प्रेमी के साथ वो रास्ते में रँगरेलियाँ मनाती चली आ रही थी वो तो चूम चाट कर चला गया किंतु उसकी हरकतें देखकर तुरंत आशिक बना वो नया सिरफिरा उससे तो अकेला लड़की को ही जूझना पड़ेगा !परिणाम कुछ भी हो सरकार की सतर्क सुरक्षा व्यवस्था भी उसकी मदद कैसे कर सकती है!अपनी सुरक्षा के साथ खिलवाड़ उसने स्वयं किया है | 
     ऐसे प्रकरणों में कानून कहता है कि "लड़की आपसी सहमति से कुछ करे तो गलत नहीं है जो जबरदस्ती करेगा उसके लिए कानून है पुलिस है "किंतु भ्रष्टाचार के चर्म पर है भारत की कानून व्यवस्था !यहाँ तो हर प्रकार के अपराध करने की अघोषित लिस्ट सरकार के हर विभाग से सम्बंधित दलालों के पास होती है !वही गाइड करते हैं कि किसी को छेड़ने के लिए क्या देना पड़ेगा और मारने के लिए क्या देना पड़ेगा !ऐसे समाज में कानून व्यवस्था के सहारे अपने को सुरक्षित मानना सबसे बड़ा आत्मघाती  कदम है !सरकारों में बैठे नेता जो दावा करते हैं कि कानून व्यवस्था बहुत अच्छी है सुरक्षा के बहुत अच्छे इंतजाम है और अपराधों का ग्राफ घटा है  वही खुद निकलते हैं तो सैकड़ों पुलिस वालों का काफिला होता है उनके साथ !ऐसे झूठों का भरोसा करके महिलाएं सुरक्षित रहना चाहती हैं तो भोगें !
       जहाँ तक बात लड़की की "आपसी सहमति से कुछ करे तो गलत नहीं है" की है तो कोई सेक्सालु किसी कानून की परवाह नहीं करता वो तो छत से कूद जाता है पंखे में लटक जाता है  तुलसी दास जी तो साँप पकड़ कर ससुराल की छत पर चढ़ गए थे उन्हें इतना होश नहीं रहा था फिर आजकल के लड़कों से इतने धैर्य की आशा करना कि वो लड़की की हरी झंडी का इन्तजार करेंगे ये तो मूर्खता है !
      ऐसे लखैरे लड़कों  को पहचान पता होती है कि किस प्रकार की लड़की या स्त्री को वो अपने चंगुल में फँसा सकते हैं किसको नहीं !वो जानते हैं जो किसी एक से फँस चुकी है इसका मतलब  उसे चरित्र की परवाह नहीं है !जो अंगों को दिखाने वाले कपड़े पहने है उसे विज्ञापन मानकर चलता है वो !वैसे भी  उसके उन अंगों में जलन तो नहीं हो रही होती है इतने कटे कपडे पहने की उसकी आखिर क्या मजबूरी थी !जिसके कारण उसे ऐसा करना पड़ा हो स्वाभाविक है कि इसके पीछे अपनी सेक्स भावना प्रकट करना ही उसका मूल उद्देश्य रहा होगा  इसके पीछे और कोई दूसरा कारण वो बता ही नहीं सकती है !
   वैसे भी फैशन के निर्माता तो फ़िल्म वाले ही होते हैं वो जैसे कपडे पहनाकर जैसे मटका मटकाकर डायलॉग बोलवाते हैं समाज के कुछ सेक्सालु लोग भी उसी मंडी में बिकने को तैयार हो जाते हैं और वैसी ही वेषभूषा बना डालते हैं और तमन्ना उनकी भी वही होते है कि फिल्मों की तरह ही उन्हें भी कोई छेड़े !उनके वेषभूषात्मक  इशारे उस तरह के लड़कों की हिम्मत बँधवा देते है और उन्हें अपना शिकार समझ कर हमलावर हो उठते हैं लड़के !
   बनारस में एक पाँड़े जी पढ़े लिखे विद्वान एवं गंभीर थे एक दिन उनके साथ मैं बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी में मालवीय भवन के सामने से रोड पर जा रहा था तभी फैशनेबल वेषभूषा में आधे चौथाई कपडे पहने कुछ लड़कियाँ वहाँ से निकलीं पाँड़े जी उन्हें देखकर सीटी बजाने लगे यद्यपि वो वैसे थे नहीं मुझे आश्चर्य हुआ !खैर बाद में उन्होंने हमें समझाया कि ऐसे कपडे अमुक फ़िल्म में कोई हीरोइन पहनती  है वो जहाँ जाती है लड़के उसे देखकर सीटी बजाने और उसे छेड़ने लगते हैं तो वो लड़की खुश होती है इसीलिए उससे प्रेरित होकर जिस भी लड़की को वैसा करने करवाने का मन होता है वो भी वैसी वेषभूषा धारण कर लेती है |इसलिए ये लड़कियाँ तो वैसी ड्रेस पह आईं इतनी महँगी !किन्तु इन्हें छेड़ना तो किसी लड़के को ही पड़ेगा तब तो इनकी अभिलाषा पूरी होगी वो खुद तो छेड़ नहीं लेंगी ! ड्रेस खरीद कर पहन तो आई हैं इसे देख कर किसी ने सीटी नहीं बजाई और इसे छेड़ा नहीं तो इसके पैसे बेकार चले जाएँगे और जहाँ  यहाँ पढ़ने  आई होगी वहाँ जाकर बनारस की बुराई करेगी कि वहाँ के लड़के नामर्द हैं वो कंजूस फिल्में देखते ही नहीं हैं एकदम रूढ़िवादी कहीं के !इसलिए काशी की गरिमा को बचाए रखने के लिए मैंने ऐसा किया है !
      उस दिन उन्होंने एक बात और बताई कि कोई महिला या लड़की जब किसी ब्यूटी पार्लर से निकलती है ताजा ताजा पैसा लगा होता है उस समय उस पैसे का सदुपयोग होते देखना चाहती है उस समय उसकी कल्पना होती है कि जैसे ही मैं निकलूँगी तो हमारे लिए लोगों में लड़ाइयाँ हो रही होंगी इतनी सुन्दर लगूँगी मैं !उसमें भी जो जैसा भड़कीला श्रृंगार किए होती है उसे छेड़वाने की जरूरत उतनी अधिक होती है !इसलिए मैं ऐसी महिलाओं की बहुत मदद करता हूँ उन्हें कभी मायूस नहीं होने देता अन्यथा ऐसे सजे धजे पीस शादीपार्टियों में इतने व्याकुल हो जाते हैं कि खुद ही अपने शरीर औरों से रगड़ते घूम रही होती हैं और इस तरह के पुरुष भी ऐसे ही अपनी  भूमिका अदा कर रहे होते हैं तो मैं भी समाज का ही एक अंग हूँ !
   खैर, पाँड़े जी की परोपकार भावना के आगे मैं निरुत्तर हो गया !और ये सोचने पर मैं भी मजबूर हो गया कि पुलिस हो या कानून कितना भी कठोर क्यों न बना दिया जाए किंतु सुरक्षा हो उसी की पाएगी जो सुरक्षित रहना चाहता है बाकी सभी खबरें बनाने के लिए  केवल मीडिया जिम्मेदार है | क्योंकि मीडिया छेड़ने को तो गलत बताता है और छेड़ने से रोकने को प्यार पर पहरा बताता है !ये मीडिया से ही पूछा जाए कि वो चाहता क्या है ?

Thursday, 10 August 2017


नेताओं के बेटे और बलात्कार ! राजनीति करनी है तो प्रेक्टिस तो करनी पड़ेगी ! सब नेता सतोगुणी तो नहीं हो सकते !

   नेताओं के बच्चे फुटपाथ पर भुट्टे बेचें या  कंचे कबड्डी खेलें? आखिर उनके पीछे क्यों पड़ा है मीडिया ?हर धंधे में बाप का व्यापार बेटा पकड़ता है फिर राजनीति में छेड़छाड़ पर आपत्ति क्यों ?
   महिलाएँ जिस देश पर अपना भी हक़ समझती हैं वो केवल नेताओं और अधिकारियों का है ये बात उनकी भी समझ में आ जानी चाहिए !इसलिए ऊटपटाँग पहनावे और देर सबेर आने जाने पर पुनर्विचार करें !अपनी सुरक्षा अपने हाथ ! 
  मीडिया को भी कोई कोई बलात्कार बहुत बुरा लग जाता है किंतु जहाँ कुछ टुकड़े उनके लिए भी फ़ेंक दिए जाते हैं वहाँ चुप बना  रहता है मीडिया !कहीं छेड़ छाड़ को भी इतना तूल दे देता है तो कहीं हत्या बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों की  भी एक लाइन की खबर होती है मात्र ! मीडिया ही बतावे कि नेताओं की आय के स्रोत और संचित सम्पत्तियों के अम्बारों का आपसी तालमेल कैसे बैठा पाता है मीडिया ?क्यों नहीं उठाता है ये मुद्दे !लानत है लोकतंत्र के ऐसे चौथे स्तम्भ को !
   नेताओं पर अंगुली उठाने से पहले मीडिया बतावे कि आखिर क्या करें ये देश के मेहमान(नेता) लोग !
 नेताओं की कमाई के प्रमुख साधन क्या हैं ?
 कुछ सरकार है कुछ भ्रष्टाचार ! दालरोटी चल जाती है !
    नेताओं के काम क्या हैं ?
  न कमाने की चिंता !न खाने की चिंता ,न पचाने की चिंता ,न उन्हें अपने बीबी बच्चे रखाने की चिंता !सब सरकार सँभालती है जनता कमा कर खिलाती है !
 नेताओं के बच्चों का प्रमुख रोजगार ?
  'भ्रष्टाचार' !वे फुटपाथ पर भुट्टे तो बेचेंगे क्या ?
 नेताओं के बच्चों का मनोरंजन - नशा,रेप ,मर्डर मुर्डर आदि !आखिर वे कंचे और कबड्डी खेलेंगे क्या ? 
नेतापुत्रों को काम करने की  जरूरत तो होती नहीं है तो क्या वे मनोरंजन भी न करें ?
      जिनके बापू की कमाई कुछ सरकार से हो जाती है और कुछ भ्रष्टाचार से  उन्हें कमाने की चिंता तो होती नहीं है फिर क्या मनोरंजन भी न करें ! नशा,रेप और उनके द्वारा किए जाने वाले मर्डर मुर्डर पर क्यों शोर मचाने लगता है मीडिया !  खाली बैठे बैठे क्या करें 'मनोरंजन' भी न करें ! नेता बनना है तो प्रेक्टिस तो करनी पड़ेगी !
 नशा और बलात्कार जैसे मनोरंजन के साधन छोड़कर क्या वे कीर्तन करें या फुटपाथ पर बैठ कर भुट्टे बेचें !
नेताओं के लड़के बलात्कारी हो जाएँ तो इसमें उनका क्या दोष ?
     जिस देश में नेता बन जाने के बाद किसी व्यक्ति को कमाने की चिंता न रह जाती हो खाने की चिंता न रह जाती हो पचाने की चिंता न रह जाती हो उन्हें रखाने की चिंता न रह जाती हो !पुलिस उन्हीं को रखाने के लिए होती है डॉक्टर उन्हीं का खाना पचाने के लिए होते हैं  इंद्रियों से भोगने लायक देश की सभी सम्पत्तियों पर उनका अघोषित एवं सहज स्वामित्व होता है !सरकार का हर विभाग उनके इशारे के इंतजार में बैठा रहता है जैसा वो कहें वैसा किया जाए !सारा देश नेताओं के लिए ही कमा रहा है जो नेता लोग नेता बनते समय कंगाल थे आज अरबोंपति है काम उन्होंने कुछ किया नहीं व्यापार करते उन्हें देखा नहीं गया ये संपत्तियाँ नेताओं के आचारों ब्यवहारों के विषय में बहुत कुछ कहती हैं जिनके बाप ऐसे होंगे तो बेटे भी उनसे कुछ तो सीखेंगे !  ऐसी परिस्थिति में नेताओं के लड़के यदि बलात्कारों या नशे के अपराधों में फँसे तो इसमें आश्चर्य ही क्यों होना चाहिए ?
   सरकार चलाने का सही सिद्धांत !"कुछ तुम खाओ कुछ हम !"भ्रष्टाचार की निंदा और विकास की बातें करते रहो !जनता को इतना ही चाहिए !
  मीडिया जिसे लोग अपना हितैषी मानते हैं वो केवल पैसे को पीर है जिसका पक्ष लेने से या जिसका विरोध करने से पैसे मिलेंगे वो करेगा मीडिया ! राजनीति हो या मीडिया सिद्धांतवादियों को पूछता कौन है !
नौकरी में प्रमोशन भी अक्सर वही लोग पाते हैं जिनमें उस तरह के गुण होते हैं ! पढ़ाई लिखाई न नौकरी पाने के लिए जरूरी होती है न प्रमोशन के लिए ! सोर्स और घूस सब काम आसान कर देते हैं !
पढ़ाई लिखाई के नियमों का यदि कड़ाई से पालन हो तो आधे से अधिक लोगों को नौकरियों से निकालना पड़ेगा सरकार को ?जो खुद नहीं पढ़े हैं उन्हें पढ़ाने की नौकरी देकर लाखों रूपए सैलरी दे रही है सरकार !
अधिकारियों की योग्यता और काम की यदि जाँच हो जाए तो कितने अधिकारी रह जाएँगे सरकारी विभागों में !गलत कामों के लिए जितने जिम्मेदार अपराधी नहीं निकलेंगे उससे ज्यादा अधिकारी निकलेंगे !हिम्मत हो तो जाँच कराए सरकार !अवैध सम्पत्तियों पर कब्जे या अवैध काम काज के लिए अधिकारी नहीं तो कौन है जिम्मेदार सरकार उसका नाम सार्वजनिक करे !जबजिन्होंने अपनी ड्यूटी ही नहीं निभाई तो किस मजबूरी में सरकार सैलरी देती रही उन्हें और आज रिफंड लेने में क्या आपत्ति है ?पाई पाई और पल पल का हिसाब देने वाली सरकार को कुछ करके दिखाना भी पड़ेगा !अभी तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट अधिकारियोंके विरुद्ध कार्यवाही हुई ही कहाँ है !सरकार करने की हिम्मत तो करे जंगल दिखेंगे जाएँगे सरकारी विभाग !देश की बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की समस्या हमेंशा हमेंशा के लिए समाप्त हो जाएगी !
नेताओं की कृपा प्राप्त होने के बाद तो कोई फार्मीलिटी नहीं करनी पड़ती फिर तो देश ही अपना हो जाता है जो जितना चाहे जिस कोने से चाहे उतना उस कोने से देश को नोचे खाए उससे पूछने तक की हिम्मत करेगा कौन ?
लोकतंत्र कब तक ?नेताओं को लूटने की आजादी और जनता को बरबादी सहने की हिम्मत जब तक बनी रहती है तभी तक चल पाता है लोकतंत्र see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2017/08/blog-post_10.html

Sunday, 6 August 2017

अधिकारियों को सरकार सुधार ले तो अपराधी स्वयं सुधर जाएँगे !सोचना सरकार को ही है कि वो अपराध घटाना चाहती भी है या.....!

   अधिकारियों  की मदद के बिना अपराध असंभव ! अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ कि वे अपने बल पर कर लें अपराध !
  इसलिए अपराधियों की निगरानी करने बजाए सरकार भ्रष्ट अधिकारियों की निगरानी करे तब तो अपराधों पर लगाई जा सकती है लगाम अन्यथा अपराध के लिए बदनाम लोग वास्तविक अपराधी नहीं होते अपितु मजबूरियों में फँसे होते हैं बेचारे !उन्हें एक जगह फँसा कर सारे जीवन गुलाम बनाए रखते हैं आर्थिक अपराधी लोग !
    अब ये निर्णय तो सरकार को ही लेना होगा कि वो अपराधों पर अंकुश लगाना चाहती है या नहीं यदि हाँ तो सक्रिय   करे निगरानी तंत्र !अभी पता लग जाएगा कि अपराध और बलात्कार बनाए और बचाए रखने के लिए अभी तक की सरकारें अघोषित रूप से कितना योगदान देती रही हैं !
   अपराध से होने वाली कमाई यदि अपराधियों को मिलती होती तो उनके भी चेहरे भी चमकते होते उनके भी घरों में रौनक होती !वस्तुतः अपराधी तो भाड़े के टट्टू होते हैं उन्हें तो दिहाड़ी मिलती है बाकी कमाई का हिस्सा कहते हैं ये लोग !जिनसे सरकार अपराधों पर अंकुश लगाने का झूठा आश्वासन दिया करती है स्वयं देखिए -

   CBI ने घूस लेती एसडीएम को पति समेत किया गिरफ्तारsee more...http://navbharattimes.indiatimes.com/state/punjab-and-haryana/chandigarh/sdm-along-with-her-husband-arrested-for-taking-bribe-in-chandigarh/articleshow/59942440.cms