जिसके अपने खुद के घर में एक भी खटिया न हो वो चुनावी मौका देखकर खटिया सभा करवा रहा है !हर बार ऐसी लीलाएँ करने निकलता है राजपरिवार ! चुनावों के समय देश के गरीबों को चिढ़ाने निकलते हैं काँग्रेसी राजपरिवार के होनहार राजकुमार !
साठ वर्ष के शासन में काँग्रेस देश वासियों को जो पार्टी इस लायक भी नहीं बना पायी कि वो अपने पैसों से एक चार पाई ही खरीद लेते !उस जनता से वोट की आशा करना किसी राजनैतिक पार्टी की कितनी बड़ी बेशर्मी है !जिसकी अपनी माँ बीमार हों तो जनता के पैसे से विदेश में इलाज करावें और जनता बीमार हो तो ...!
चुनावों के समय खेत खलिहान में घूम घूम कर गरीबों से झप्पियाँ डालकर चुनाव जीतने की आशा रखने वालो अब तुम क्या हो और हम क्या हैं और हमारे तुम्हारे बीच कितना बड़ा गैप है हमारी तुम्हारी रहन सहन की शैली में कितना अंतर है हम दिन रात काम करते हैं फिर भी हमारा बैंक में एकाउंट नहीं है तुम्हारी बैंकों में कितना पैसा है ये तुम्हें ही नहीं पता होगा काम करते भी नहीं देखे जाते हो !हमारे बच्चे साइकिल के लिए तरसते हैं तुम जहाज से नीचे पैर नहीं रखते !हम दिन रात परिश्रम करते हैं तुम कभी काम करते नहीं देखे जाते हो !
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