सरकार के द्वारा सरकारी विभागों में काम करने का वातावरण बनाए अन्यथा प्राइवेट लोगों को ही दी जाए ये जिम्मेदारी वही सँभालें सरकारी कामकाज !सरकारी सिस्टम में जनता की जरूरतों और शिकायतों पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है और न ही सरकारी निगरानी तंत्र ही किसी काम का है यदि इस न होता तो सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों पर निगरानी तो रखी ही जा सकती थी और सरकारी कर्मचारियों की लूट समाप्त होते ही रोका जा सकता है सभी प्रकार का भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचार रुकते ही स्वयं रुक जाएँगे सभी प्रकार के अपराध !
सरकार अपने कर्मचारियों से काम तो ले ही नहीं पा रही है अपितु उन उन क्षेत्रों के काम को बदनाम भी करती जा रही है । शिक्षा के क्षेत्र को ही लें प्राइवेट स्कूलों अपने स्कूलों में शिक्षकों को तिहाई चौथाई सैलरी देकर भी उनसे इतना अच्छा काम लेते हैं कि प्राइवेट स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना हर किसी का सपना होता है जबकि सरकारी शिक्षक अपनी बेइज्जती करवा रहे होते हैं वो अपने बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं !ऐसा सरकार के सभी विभागों में हो रहा है किंतु उन कामों से संबंधित प्राइवेट संस्थान संस्थाएँ सँभाल लिया करते हैं काम तो सरकार की थू थू होने से कुछ हद तक बच जाती है जैसे सरकारी स्कूलों की कमजोरियों से उत्पन्न रिक्तता को प्राइवेट स्कूल देते हैं इसलिए दिखाई नहीं पड़ती है ऐसी ही टेलीफोन मोबाईल,चिकित्सा,डाक विभाग आदि को प्राइवेट कंपनियाँ ,हॉस्पिटल,कोरिअर आदि सँभाल लेती हैं किंतु पुलिस जैसे जिन विभागों में प्राइवेट का विकल्प नहीं है उनकी आए दिन बेइज्जती होती रहती है क्योंकि वो सरकारी लचर व्यवस्था के शिकार हैं जिस जनता की सुरक्षा के लिए पुलिस विभाग हुआ है उस जनता का ही उस पर भरोसा नहीं है तरफ से इस भरोसे को जीतने का कोई कारगर प्रयास ही उनकी तरफ से किया जाता है उनके विषय में आमजनधारणा है कि पैसे या सोर्स के बिना पुलिस से काम ले पाना केवल ही नहीं अपितु कई मामलों में असंभव से भी ज्यादा ये है कि भोले भाले सीधे साधे ईमानदार शिकायत करने वालों के विरुद्ध ही पुलिस करने लगती है कार्यवाही क्योंकि उसके पास घूस देने को पैसे नहीं हैं और सोर्स नहीं है ! जनता को ऐसे ही अपमान और प्रताड़ना का सामना सरकार के लगभग हर विभाग में करना पड़ता है !
यही कारण है कि जनता को सुख पहुँचाने के लिए सरकार बड़ी बड़ी योजनाएँ लाँच करती है किंतु जनता उन्हें बकवास समझती है जिन गाँवों को गोद लिया गया क्या हुआ उनका हस्र !सरकार के निगरानी तंत्र के गुप्त नंबर समाज को दिए जाएँ और उनपर कोई अमल भी किया जाए हो सकता है उससे समाज का सरकार पर उससे कुछ भरोसा बढे अभी तो एक सरकार आती है चली जाती है सरकार के विषय में जनता को पता ही नहीं लग पाता है कि इन्होंने नया किया क्या है !
जनता एक पार्टी से निराश होकर दूसरी को वोट देती है वो समझ लेते हैं कि हमें पसंद किए गए है !कितना बड़ा भ्रम है ये !सरकारें और नेता खाली मूली अपनी अपनी डींगें मारा करते हैं और चले जाया करते हैं जनता उनकी भी सुन लेती है दूसरों की भी सुन लेती है किंतु भरोसा कहीं नहीं जमा पाती है !इसीलिए स्त्री पुरुष जाति धर्म एवं अपने पराए के आधार पर मतदान करती है प्रत्याशियों के गुणों चरित्र जनसेवा तक किसी का ध्यान ही नहीं जा पाता है !
सरकार का चरित्रवान इमानदार और कर्मठ नेतृत्व हो मजबूत और जनता का भरोसा जीतने वाला निगरानी तंत्र हो सेना के जवानों की तरह राष्ट्र भक्त सरकारी कर्मचारी हों जिनकी अपनी जरा सी लापरवाही की कीमत उन्हें जान देकर स्वयं चुकानी पड़ती हो !इसलिए सरकारी हर विभाग में कर्मचारियों पर ऐसी ही तलवार लटकाई जाए जिसमें सरकार के जिस विभाग से संबंधित जिस क्षेत्र में जो गड़बड़ी हुई है उससे लिए जिम्मेदार अपराधियों से ज्यादा जवाबदेय उन अधिकारियों कर्मचारियों को माना जाए !जो उस प्रकार के अपराधों को रोकने के लिए जिम्मेदार होते हैं !
No comments:
Post a Comment