नेता बनने की प्रचलित विधियों में 'स्याहीसंस्कार' सबसे लोकप्रिय ब्यवहार है क्योंकि ये हानि रहित विधा है और इससे लाभ भी पूरे होते हैं और कोई नुक्सान भी नहीं होता !चुनावों के समय नेता लोग अक्सर ऐसे शो अरेंज किया करते हैं
जिनसे उन्हें हानिरहित प्रसिद्धि की प्राप्ति हो । सरकारों में सम्मिलित नेता लोग तो ये स्याही संस्कार भी सरकारी बजट के पैसे से ही करवाते होंगे आखिर ये भी तो सरकारी काम का ही अंग होता है और विज्ञापन का अंग भी !वैसे भी राजनीति में सफल होने की इच्छा रखने वाला कोई व्यक्ति यदि अपने ऊपर स्याही फेंकवाने का भी छोटा सा इंतजाम नहीं कर सका तो वो नेतागिरी में फेल ही माना जाना चाहिए !
कानपुर का एक संस्मरण मुझे याद है बात 1995 की है मेरे परिचित एक दीक्षित जी हैं जो जिला स्तरीय राजनीति में हाथ पैर मारते मारते थक चुके थे कोई जुगत काम नहीं कर रही थी बेचारे राजनीति में कुछ बन नहीं पाए थे !मैंने एक दिन उनसे पूछ दिया कहाँ तक पहुँच पाई आपकी राजनीति ? वो बोले पहुँची तो कहीं नहीं ठहरी हुई है तो हमने कहा क्यों हाथ पैर मारो संपर्क करो लोगों से !तो उन्होंने कहा कि ये सब जितना होना था वो चुका अब तो नेता बनने का डायरेक्ट जुगाड़ करना होगा ,तो मैंने कहा कि वो कैसे होगा तो उन्होंने कहा कि धन और सोर्स है नहीं न कोई खास काबिलियत ही है अब तो राजनीति में सफल होने के लिए लीक से हट कर ही कुछ करना होगा मैंने पूछा वो क्या ? तो उन्होंने कुछ बिंदु सुझाए -
- पहली बात यदि मैं ब्राह्मण न होता तो ब्राह्मणों सवर्णों को गालियाँ दे दे कर नेता बनने की सबसे लोकप्रिय विधा है जिससे बहुत लोग ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गए !
- दूसरी बात बड़े बड़े मंचों पर खड़े होकर मीडिया के सामने देश के मान्य महापुरुषों प्रतीकों को गालियाँ दी जाएँ, दूसरे बड़े नेताओं पर चोरी, छिनारा ,भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाए जाएँ ,गालियाँ दी जाएँ महापुरुषों की मूर्तियाँ या देश के प्रतीक तोड़े जाएँ जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हों !
- तीसरी बात किसी सभा में मंच पर अपने ऊपर स्याही या जूता चप्पल आदि कोई भी हलकी फुल्की चीजें फेंकवाई जाएँ जिससे चोट लगने की सम्भावना भी न हो और प्रसिद्धि भी पूरी मिले इससे एक ही नुक्सान हो सकता है कि सारा अरेंजमेंट मैं करूँ और फेंकने वाले का निशाना चूक गया तो बगल में बैठा कार्यकर्ता नेता बन जाएगा मैं फिर बंचित रह जाऊँगा इस सौभाग्य से !
- चौथी बात अपने घर में जान से मारने की धमकी जैसे पत्र किसी से लिखवाए भिजवाए जाएँ किंतु पोल खुल गई तो फजीहत !
- पाँचवीं बात अपने आगे पीछे कहीं बम वम लगवाए जाएँ जो अपने निकलने के पहले या बाद में फूटें किंतु बम लगाने वाला इतना एक्सपर्ट हो तब न !अन्यथा थोड़ी भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो क्या होगा पता नहीं !
- छठी बात किसी दरोगा सिपाही से मिला जाए और उससे टाइ अप किया जाए कि वो यदि किसी चौराहे पर मुझे बेइज्जती कर करके गिरा गिराकर कर मारे इससे मैं नेता बन जाऊँगा और उसकी तरक्की हो जायेगी !इसी प्रकार से यदि मैं किसी किसी दरोगा को मारूँ तो मैं नेता बन जाऊँगा और उसका ट्राँसफर हो जाएगा !
- सातवीं बात किसी जनप्रिय विंदु को मुद्दा बनाकर खुले आम आमरण अनशन या आत्म हत्या की घोषणा की जाए किंतु कोई मनाने क्यों आएगा मेरा कोई कद तो है नहीं !
कुल मिलाकर सभी चुनावों के समय नेता लोग अक्सर ऐसे आइटम अरेंज किया करते हैं इनसे समाज को भयभीत नहीं होना चाहिए और मैं ऐसे ड्रामे कर नहीं पा रहा हूँ इसलिए मुझे तो नेता बनने के ख़्वाब छोड़ ही देने चाहिए !
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