Sunday, 31 January 2016

"हिंदू और हिंदुत्व को न मानने वाले नेता हिंदी और हिंदुस्तान को क्यों मानते होंगे ? इन्हें क्या पता 'जयहिंद' के उद्घोष का महत्त्व !

   जिस पार्टी के नेताओं के मन में हिंदी हिन्दू हिंदुत्व और हिंदुस्तान का सम्मान ही न रहा हो ऐसी पार्टी के नेताओं से  देश प्रेम की क्या आशा की जाए !
"हिंदू ना कोई शब्द और ना मैं हिंदुत्व को मानता हूं.-दिग्विजय सिंह "-एक खबर
    किंतु दिग्विजय सिंह जी यदि आप हिंदू को नहीं मानते और हिंदुत्व को नहीं मानते तो 'हिंदुस्तान ' शब्द को भी नहीं मानते होंगे और जब हिंदू ,हिंदुत्व और 'हिंदुस्तान ' को आप नहीं मानते तो आप राष्ट्रभाषा 'हिंदी ' को क्या मानते होंगे !'जयहिंद' का पवित्र उद्घोष भी पता नहीं आप मानते होंगे या नहीं क्योंकि ये सारे शब्द एक ही पद्धति से प्रकट हुए हैं । 
     भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है। "बृहस्पति आगम" के अनुसार-
हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
अर्थात् हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
जय हिन्द'-
   जय हिन्द विशेषरुप से भारत में प्रचलित एक देशभक्तिपूर्ण नारा है जो कि भाषणों में तथा संवाद में भारत के प्रति देशभक्ति प्रकट करने के लिये प्रयोग किया जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ "भारत की विजय" है। यह नारा भारतीय क्रान्तिकारी डॉ॰ चम्पकरमण पिल्लई द्वारा दिया गया था। तत्पश्चात यह भारतीयों में प्रचलित हो गया एवं नेता जी सुभाषचन्द्र बोस द्वारा आज़ाद हिन्द फ़ौज के युद्ध घोष के रुप में प्रचलित किया गया।
     जय हिन्द' नारे का सीधा सम्बन्ध नेताजी से है, मगर सबसे पहले प्रयोगकर्ता नेताजी सुभाष चन्द्र बोस नहीं थे। आइये देखें यह किसके हृदय में पहले पहल उमड़ा और आम भारतीयों के लिए जय-घोष बन गया।
“जय हिन्द” के नारे की शुरूआत जिनसे होती है, उन क्रांतिकारी 'चेम्बाकरमण पिल्लई' का जन्म 15 सितम्बर 1891 को तिरूवनंतपुरम में हुआ था। गुलामी के आदी हो चुके देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के लिए उन्होने कॉलेज के के दौरान “जय हिन्द” को अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू किया।पिल्लई 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष से मिले तब “जय हिन्द” से उनका अभिवादन किया। पहली बार सुने ये शब्द नेताजी को प्रभावित कर गए। सुभाषचन्द्र बोस के अनुयायी तथा नौजवान स्वतन्त्रता सेनानी ग्वालर (वर्तमान नाम ग्वालियर), मध्य भारत के रामचन्द्र मोरेश्वर करकरे ने तथ्यों पर आधारित एक देशभक्तिपूर्ण नाटक "जय हिन्द" लिखा तथा "जय हिन्द" नामक एक हिन्दी पुस्तक प्रकाशित की।
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा-
प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इक़बाल ने १९०५ में लिखा था और सबसे पहले सरकारी कालेज, लाहौर में पढ़कर सुनाया था। यह इक़बाल की रचना बंग-ए-दारा में शामिल है। उस समय इक़बाल लाहौर के सरकारी कालेज में व्याख्याता थे। उन्हें लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने का निमंत्रण दिया। इक़बाल ने भाषण देने के बजाय यह ग़ज़ल पूरी उमंग से गाकर सुनाई। यह ग़ज़ल हिन्दुस्तान की तारीफ़ में लिखी गई है और अलग-अलग सम्प्रदायों के लोगों के बीच भाई-चारे की भावना बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है। १९५० के दशक में सितार-वादक पण्डित रवि शंकर ने इसे सुर-बद्ध किया। जब इंदिरा गांधी ने भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो शर्मा ने इस गीत की पहली पंक्ति कही।
"सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा"
हिंदू राष्ट्र - 
   अभी कुछ वर्ष पहले तक हिंदू राष्ट्र के नाम से विख्यात नेपाल इसी हिंदू शब्द संस्कृति से तो अपने साथ जुड़ा रहा है आज ये कैसे मान लिया जाए कि ये शब्द ही गलत है !



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