Sunday 31 January 2016

"हिंदू और हिंदुत्व को न मानने वाले नेता हिंदी और हिंदुस्तान को क्यों मानते होंगे ? इन्हें क्या पता 'जयहिंद' के उद्घोष का महत्त्व !

   जिस पार्टी के नेताओं के मन में हिंदी हिन्दू हिंदुत्व और हिंदुस्तान का सम्मान ही न रहा हो ऐसी पार्टी के नेताओं से  देश प्रेम की क्या आशा की जाए !
"हिंदू ना कोई शब्द और ना मैं हिंदुत्व को मानता हूं.-दिग्विजय सिंह "-एक खबर
    किंतु दिग्विजय सिंह जी यदि आप हिंदू को नहीं मानते और हिंदुत्व को नहीं मानते तो 'हिंदुस्तान ' शब्द को भी नहीं मानते होंगे और जब हिंदू ,हिंदुत्व और 'हिंदुस्तान ' को आप नहीं मानते तो आप राष्ट्रभाषा 'हिंदी ' को क्या मानते होंगे !'जयहिंद' का पवित्र उद्घोष भी पता नहीं आप मानते होंगे या नहीं क्योंकि ये सारे शब्द एक ही पद्धति से प्रकट हुए हैं । 
     भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने "हिन्दुस्थान" नाम दिया था, जिसका अपभ्रंश "हिन्दुस्तान" है। "बृहस्पति आगम" के अनुसार-
हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
अर्थात् हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।
जय हिन्द'-
   जय हिन्द विशेषरुप से भारत में प्रचलित एक देशभक्तिपूर्ण नारा है जो कि भाषणों में तथा संवाद में भारत के प्रति देशभक्ति प्रकट करने के लिये प्रयोग किया जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ "भारत की विजय" है। यह नारा भारतीय क्रान्तिकारी डॉ॰ चम्पकरमण पिल्लई द्वारा दिया गया था। तत्पश्चात यह भारतीयों में प्रचलित हो गया एवं नेता जी सुभाषचन्द्र बोस द्वारा आज़ाद हिन्द फ़ौज के युद्ध घोष के रुप में प्रचलित किया गया।
     जय हिन्द' नारे का सीधा सम्बन्ध नेताजी से है, मगर सबसे पहले प्रयोगकर्ता नेताजी सुभाष चन्द्र बोस नहीं थे। आइये देखें यह किसके हृदय में पहले पहल उमड़ा और आम भारतीयों के लिए जय-घोष बन गया।
“जय हिन्द” के नारे की शुरूआत जिनसे होती है, उन क्रांतिकारी 'चेम्बाकरमण पिल्लई' का जन्म 15 सितम्बर 1891 को तिरूवनंतपुरम में हुआ था। गुलामी के आदी हो चुके देशवासियों में आजादी की आकांक्षा के बीज डालने के लिए उन्होने कॉलेज के के दौरान “जय हिन्द” को अभिवादन के रूप में प्रयोग करना शुरू किया।पिल्लई 1933 में आस्ट्रिया की राजधानी वियना में नेताजी सुभाष से मिले तब “जय हिन्द” से उनका अभिवादन किया। पहली बार सुने ये शब्द नेताजी को प्रभावित कर गए। सुभाषचन्द्र बोस के अनुयायी तथा नौजवान स्वतन्त्रता सेनानी ग्वालर (वर्तमान नाम ग्वालियर), मध्य भारत के रामचन्द्र मोरेश्वर करकरे ने तथ्यों पर आधारित एक देशभक्तिपूर्ण नाटक "जय हिन्द" लिखा तथा "जय हिन्द" नामक एक हिन्दी पुस्तक प्रकाशित की।
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा-
प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इक़बाल ने १९०५ में लिखा था और सबसे पहले सरकारी कालेज, लाहौर में पढ़कर सुनाया था। यह इक़बाल की रचना बंग-ए-दारा में शामिल है। उस समय इक़बाल लाहौर के सरकारी कालेज में व्याख्याता थे। उन्हें लाला हरदयाल ने एक सम्मेलन की अध्यक्षता करने का निमंत्रण दिया। इक़बाल ने भाषण देने के बजाय यह ग़ज़ल पूरी उमंग से गाकर सुनाई। यह ग़ज़ल हिन्दुस्तान की तारीफ़ में लिखी गई है और अलग-अलग सम्प्रदायों के लोगों के बीच भाई-चारे की भावना बढ़ाने को प्रोत्साहित करती है। १९५० के दशक में सितार-वादक पण्डित रवि शंकर ने इसे सुर-बद्ध किया। जब इंदिरा गांधी ने भारत के प्रथम अंतरिक्षयात्री राकेश शर्मा से पूछा कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो शर्मा ने इस गीत की पहली पंक्ति कही।
"सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा"
हिंदू राष्ट्र - 
   अभी कुछ वर्ष पहले तक हिंदू राष्ट्र के नाम से विख्यात नेपाल इसी हिंदू शब्द संस्कृति से तो अपने साथ जुड़ा रहा है आज ये कैसे मान लिया जाए कि ये शब्द ही गलत है !



Friday 29 January 2016

नकली पत्ता गोभी

संघ को चंदे के नाम पर जिनके बाप ने चवन्नी भी न दी हो वे भी माँगते हैं संघ से चंदे का हिसाब !

  • लालूपुत्र 'तेजस्वी' को इतना भी नहीं पता है!आश्चर्य !!
"नीतीश कुमार के जूनियर हैं नरेंद्र मोदी: तेजस्वी" -एक खबर 
किंतु क्या बिहार के डिप्टी CM लालूपुत्र 'तेजस्वी' को ये भी नहीं पता है कि किसी राज्य के CM और देश के PM में जूनियर कौन होता है !कोई बात नहीं पिता के कुछ गुण तो आएँगे ही !ऊटपटाँग संगति बैठाने मेंतेजस्वी के पिता जी कौन पीछे हैं !see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/01/blog-post_29.html

  •  जिसके बाप ने चंदे के नाम पर चवन्नी भी न दी हो उसे शर्म लगनी चाहिए हिसाब माँगने में !
"शिलापूजन और राम मंदिर के नाम पर संघ को करोड़ों का चंदा मिला था, आखिर वो पैसा कहां गया?-तेजस्वी यादव"
किंतु तेजस्वी भाई !जिस चंदे की बात आप कर रहे हैं वो जिन्होंने दिया था उनको संघ की ईमानदारी पर भरोसा है और उन्हें उसका सारा हिसाब किताब पता भी है किंतु तुम्हारे बापू ने जब चंदे के नाम पर संघ को चवन्नी भी नहीं दी तो तुम्हें संघ से उस चंदे का हिसाब माँगते शर्म  नहीं आती !ये कोई चारे घोटाले का पैसा है जो बिना हिसाब किताब के होगा !यहाँ संघ वाले राष्ट्र साधकों के झोले में एक धोती एक अँगौछा होता है उनपर वो अँगुली उठा रहा है जो शिक्षा विहीन रोजगार विहीन होने के बाद भी करोड़ोंपति है जनता कहे न कहे किंतु समझ वो भी रही है कि ये पैसा कहाँ से आया है !see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/01/blog-post_29.html 
  • " संघ को चुनाव के समय मंदिर निर्माण की बात याद आती है" --तेजस्वी यादव"
किंतु तेजस्वी भाई ! इसमें भी संघ की गलती क्या है लोकतंत्र में चुनावों के समय बादशाह जनता होती है उस समय हर कोई अपने अपने मुद्दे जनता जनार्दन की अदालत में लाकर डालता है जनता ने जिसके मुद्दे पर मोहर मार दी उसका  मुद्दा सफल हो जाता है संघ हर चुनावों में जनता जजों को याद दिलाता है किंतु जजजनता अगले चुनाव की तारीख़ दे देती है और तारीख पर तो पहुँचना ही पड़ता है अपनी बात जनता की अदालत में पेश करने को !इसलिए तेजस्वी जी ये लोकतंत्र और कानूनी दाँव पेंच पढ़े लिखे लोगों का विषय है शिक्षा आपके भाग्य में भगवान ने लिखी  नहीं है बलिहारी हो बिहार की जनता की कि आपकी ये बिना शिर पैर की बातें भी मीडिया में जगह पा  रही हैं दुर्भाग्य हमारे जैसे उनलोगों का भी है जो आप जैसों की बातों पर टिप्पणियाँ लिख रहे हैं ! संघ तो हर बार प्रयास करता है करता रहेगा प्रयासजन्य पुण्य तो मिलता ही है !पछताएँ वो जो श्री राम मंदिरनिर्माण कार्य में रोड़ा लगाते हैं रथ यात्रा रोकने वाले की मनोरथ यात्रा रुकी पड़ी है अब वो चाहकर भी वो नहीं बन सकता जिसके लिए रथयात्रा रोकी थी !see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/01/blog-post_29.html


  • पटना में नीतीश कुमार पर फेंका गया जूता-एक खबर 
    किंतु नीतीश कुमार जी पर कोई क्यों फेंकेगा जूता वे तो अत्यंत सीधे एवं शालीन व्यक्ति हैं उनका अपना व्यक्तित्व तो सराहनीय है इसीलिए उनके प्रति ऐसा विद्वेष कभी नहीं रहा !लालू जी पर से केस वापस लेने का कारण तो नहीं है इसी से ईमानदार बिहारबासी बौखलाने लगे फिर भी वे ऐसा नीतीश जी पर नहीं करेंगे और न ही उन्हें करना चाहिए !see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/01/blog-post_29.html
  •  नितीशजी पर जूता फेंका या फेंकवाया गया !-एक खबर 
  किंतु नितीशजी तो बेचारे भले आदमी हैं उनके साथ कोई ऐसा क्यों  करेगा ! इधर कुछ वर्षों से देखा गया है कि नितीशकुमार केजरीवाल को बहुत कुछ फॉलो करते देखे जा रहे हैं तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि जैसे केजरीवाल जी समय समय पर अपने ऊपर कुछ न कुछ फेंकवाया करते हैं नीतीश कुमार जी यहाँ भी उन्हीं की नकल तो नहीं कर रहे हैं ! अन्यथा उनके साथ कोई ऐसा क्यों करेगा !see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/01/blog-post_29.html

Thursday 28 January 2016

ज्योतिषाचार्य डॉ. शेषनारायण वाजपेयी

ज्योतिषाचार्य : डॉ. शेषनारायण वाजपेयी 
संस्थापकः-  राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान
व्याकरणाचार्य (एम.ए.)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी ज्योतिषाचार्य (एम.ए.ज्योतिष)संपूर्णानंदसंस्कृतविश्वविद्यालय वाराणसी \एम.ए. हिन्दी कानपुर विश्व विद्यालय पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता ,उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी 
बी. एच. यू. वाराणसी(काशी हिंदू विश्वविद्यालय)
हमारापता - के -71, छाछी बिल्डिंग चौक,कृष्णा नगर, दिल्ली-110051दूरभाष : 01122002689, 01122096548,मो. 9811226973,

Wednesday 27 January 2016

manu

महानजातिवैज्ञानिक महर्षि 'मनु' को  गाली देना और फिर उन्हीं की बनाई हुई जातियों के आधार पर आरक्षण माँगना ये दोहरे मापदंड क्यों ?     
महर्षि मनु को गलत मानने वाले लोग उन्हीं मनु की बनाई हुई जातियों के आधार पर क्यों माँगते हैं आरक्षण ?
ब्राह्मण शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो डॉ भीमराव अम्बेडकर से विशेष स्नेह रखते थे उनके कहने पर ही डॉ अम्बेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अम्बेडकर जोड़ लिया और सारे जीवन जोड़े रखा !फिर ब्राह्मण गलत कैसे हो गए !
 दलितों का शोषण किया किसने ? कब किया ? क्यों किया ?दलितों की संख्या अधिक थी फिर भी शोषण सहा क्यों होगा ? 
     आज दलित लोग सवर्णों का बहिष्कार करें किसने रोका  है उन्हें ?दलित लोग सवर्णों को अछूत मानने लगें न पिएँ सवर्णों का छुआ पानी !सवर्णों के यहाँ न करें अपने बच्चों के विवाह ! अब पढ़ लें वेद किंतु आरक्षण माँगने के लिए सवर्णों पर शोषण के आरोप गलत !


झूठे बहाने बना बना कर आरक्षण न माँगें !

यदि दलितों के यहाँ अपने बच्चों का विवाह नहीं करते तो दलित लोग सवर्णों का बहिष्कार कर दें और न करें उनके यहाँ अपने बच्चों का विवाह !दलितों को वेद नहीं पढ़ने दिए गए तो अब पढ़ लें कौन रोकता है उन्हें !दलित लोग व्यापार करें किसने रोक है उन्हें ?किंतु आरक्षण क्यों ?


किस मर्ज की दवा है
किसने किया

Tuesday 26 January 2016

केजरीवाल जी को फिर बड़े भाई की तलाश ! योगेंद्र और प्रशांतजी पहले भी सुशोभित कर चुके हैं ये पद !

 केजरीवाल जी अब चाहते हैं कि बड़े भाई की भूमिका निबाहे केंद्र !
"बड़े भाई राम की तरह केंद्र रखे हमारा ख्याल - केजरीवाल -एक खबर"
   किंतु केजरीवाल जी !इसका मतलब ये भी तो नहीं है कि आप सूपनखा की तरह बारबार नाक कटवा कर ही पहुँचते रहें बड़े भाई के सामने और बार बार उसे ललकारते रहें कि देख तेरे रहते मेरी ये दुर्दशा हो गई और देखते ही देखते नष्ट करवा डालें बड़े भाई का सारा खानदान ही !आपने योगेंद्र और प्रशांत को भी बड़ा भाई ही बनाया था और उन्होंने तो आपको छोटा भाई बताते हुए आपकी गलियाँ तक सही थीं आज  क्या हश्र आपने किया है उनका !  अन्ना जी को ही  ले लीजिए उनको भूखों मारते और जो गुडबिल बनी वो लेकर आप उड़ गए अब अन्ना जी खाली हाथ घूम रहे हैं कन्फ्यूज्ड ! कई बार खेल शुरू करने की कोशिश करते रहते हैं किंतु उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है कि शुरू कहाँ से करें उनकी लीला मंडली आप ले आए अपने साथ अब उनके अनशनों  आंदोलनों से गायब रहती हैं भीड़ें !अब उन्होंने सरेंडर कर दिया है आम आदमी पार्टी के सामने और करें भी क्या ?आप लालू प्रसाद से पेट लड़ा आए विज्ञापन के लिए इतने पैसे पास किए विधायकों की सैलरी बढ़ाई तो भी कहते हैं तो भी वो कहते हैं कि अरबिंद ठीक हैं !see more... http://sahjchintan.blogspot.in/2016/01/12.html  

Monday 25 January 2016

ज्योतिष के नाम पर फैलाए जा रहे पाखंडों अंधविश्वासों के विरुद्ध जनांदोलन !

     ज्योतिष के नाम पर अब  किसी को धोखा नहीं दिया जा सकेगा शास्त्रीय ज्योतिष विज्ञान के प्रति जन जन को जगाया जाएगा और बताया जाएगा कि ज्योतिष के नाम पर कैसे कैसे कितना कितना झूठ बोल रहे हैं लोग !जिन्हें आप ज्योतिषी समझ रहे हैं उन्होंने ज्योतिष पढ़ी ही नहीं है कभी उनसे पूछिए तो सही कि ज्योतिष  सब्जेक्ट में कब कहाँ से कौन सी डिग्री ली है ! हैरान परेशान लोगों को उपायों के नाम पर जो कुछ बताया समझाया जा रहा है उसका ज्योतिष के कहीं किसी ग्रन्थ में कोई जिक्र नहीं है 99 प्रतिशत झूठ बोल रहे हैं लोग !ऐसे लोगों से बचने के लिए जुड़ें हमारे ज्योतिष जनांदोलनों से !

Sunday 24 January 2016

jaruuri

                  ज्योतिष अपनाओ अंधविश्वास मिटाओ !
     बंधुओ ! हमारे संस्थान के द्वारा चलाए जा रहे ज्योतिष जन जागरण अभियान से आप स्वयं जुड़ें औरों को भी जोड़ें और समझें ज्योतिष एवं वास्तु ज्योतिष का सच !आज टीवी चैनलों से ज्योतिष के नाम पर जो परोसा जा रहा है वो ज्योतिष नहीं है और न ही वो ज्योतिषी हैं जिन्होंने किसी सरकार द्वारा प्रमाणित विश्व विद्यालय द्वारा ज्योतिष सब्जेक्ट में MA,PhD जैसी डिग्रियाँ नहीं ली हैं वो किस  बात के ज्योतिषी ! बंधुओ !यदि आप झोला छाप डॉक्टरों का बहिष्कार करते हैं तो झोला छाप ज्योतिषियों का क्यों नहीं !और यदि आप स्वयं ऐसा नहीं कर सकते तो किसी पाखंडी के द्वारा यदि कोई धोखाधड़ी होती है तो उसके लिए ज्योतिष शास्त्र कतई जिम्मेदार नहीं होगा !इसलिए आप स्वयं समझें कि ज्योतिष में क्या सच है और क्या झूठ !https://www.facebook.com/


  CM शीला दीक्षित जी को कोस कोस कर CM बनने वाले केजरीवाल जी अब PM बनने के लालच में किया करते हैं PM मोदी जी की निंदा !जनता ने इन्हें जितना समर्थन दिया है यदि चाहते तो कुछ काम भी कर सकते थे !
    हे केजरीवाल जी ! अब आप अपनी दिल्ली सँभालिए जहाँ गुंडागर्दी भ्रष्टाचार और अपराधों पर बिलकुल लगाम नहीं लगा सके हैं आप !   स्कूलों से लेकर सरकारी आफिसों के कामकाज में लापरवाही जस की तस जारी है पिछली बार आपके दो महीने के शासन को जनता सराह रही थी अब कराह रही है !क्या अपने और अपनी शासन शैली में कुछ परिवर्तन करना पसंद करेंगे आप !दिल्ली में रामराज्य है क्या ?जो आप दादरी और हैदराबाद में चक्कर लगाते घूम रहे हैं । हे केजरीवाल जी ! मृतकों से मिलने आप दादरी और अहमदाबाद पहुँच जाते हैं वहीं जीवितों के लिए दुर्लभ हैं दर्शन आपके !ऐसा क्यों ?इसी प्रकार से राहुल गाँधी जी जैसे लोग हैं और भी ऐसे जनता के हमदर्द नेता लोग हैं जो यदि जीवितों की समस्याएँ सुनते ही होते तो क्यों मरना पड़ता उन बेचारों को !आखिर क्यों नहीं खोजे जा सकते थे उनकी समस्याओं के समाधान !आखिर कोई ठेस तो लगी ही होगी अन्यथा मरना इतना आसान होता है क्या ?
समय रहते खोजे जाते यदि उनकी समस्याओं के समाधान तो संभव था कि दादरी में 'अखलाख' जैसों का जीवन बचाया जा सका होता और हो सकता है कि टाली जा पाती हैदराबाद के उस होनहार छात्र की मौत see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/01/blog-post_96.html

Wednesday 20 January 2016

सूक्तियाँ

सबकी गति है एक सी अंत समय पर होय, जो आये हैं जायेंगे राजा रंक फकीर ।

जनम होत नंगे भये, चौपायों की चाल, न वाणी न वाक्‍य थे पशुवत पाये शरीर ।
धीरे धीरे बदल गये चौपायों से बन इंसान । वाक्‍य और वाणी मिली वस्‍त्र पहन कर हुये बने महान ।
जाति बनी और ज्ञान बढ़ा तो बॉंट दिया फिर इंसान ।अंत समय नंगे फिर भये, गये सब वेद शास्‍त्र और ज्ञान ।।
(२) अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं ।
(३) कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है ।
(४) हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है ।
(५) बहुमत की आवाज न्याय का द्योतक नही है ।
(६) हमारे वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो, परन्तु दुनिया हमे हमारे कर्मो के द्वारा पहचानती है |
(७) यदि आप मरने का डर है तो इसका यही अर्थ है की आप जीवन के महत्व को ही नहीं समझते |
(८) अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते है उतनी ही नम्रता आती है |
(९) मेहनत, हिम्मत और लगन से कल्पना साकार होती है ।
(१०) अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नही होता ।


(११) मुस्कान प्रेम की भाषा है ।
(१२) सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है ।
(१३) अहंकार छोडे बिना सच्चा प्रेम नही किया जा सकता ।
(१४) अल्प ज्ञान खतरनाक होता है ।
(१५) कर्म सरल है, विचार कठिन ।
(१६) उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन ।
(१७) धन अपना पराया नही देखता ।
(१८) पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के टुकडों को ही रत्न कहते रहते हैं ।
(१९) संसार रूपी कटु-वृक्ष के केवल दो फल ही अमृत के समान हैं ; पहला, सुभाषितों का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति ।
(२०) हजारों मष्तिषकों में बुद्धिपूर्ण विचार आते रहे हैं ।लेकिन उनको अपना बनाने के लिये हमको ही उन पर गहराई से तब तक विचार करना चाहिये जब तक कि वे हमारी अनुभूति में जड न जमा लें ।

(२१) उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है । परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता ।

संस्कृत सुभाषित एवं सूक्तियाँ हिन्दी में अर्थ सहित----

(१) न राज्यं न च राजासीत् , न दण्डो न च दाण्डिकः ।
स्वयमेव प्रजाः सर्वा , रक्षन्ति स्म परस्परम् ॥
( न राज्य था और ना राजा था , न दण्ड था और न दण्ड देने वाला । स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी 
 )
(२) रत्नं रत्नेन संगच्छते ।
( रत्न , रत्न के साथ जाता है )
(३) गुणः खलु अनुरागस्य कारणं , न बलात्कारः ।
( केवल गुण ही प्रेम होने का कारण है , बल प्रयोग नहीं )
(४) निर्धनता प्रकारमपरं षष्टं महापातकम् ।
( गरीबी दूसरे प्रकार से छठा महापातक है । )
(५) अपेयेषु तडागेषु बहुतरं उदकं भवति ।
( जिस तालाब का पानी पीने योग्य नहीं होता , उसमें बहुत जल भरा होता है । )
(६) अङ्गुलिप्रवेशात्‌ बाहुप्रवेश: |
( अंगुली प्रवेश होने के बाद हाथ प्रवेश किया जता है । )
(७) अति तृष्णा विनाशाय.
( अधिक लालच नाश कराती है । )
(८) अति सर्वत्र वर्जयेत् ।
( अति ( को करने ) से सब जगह बचना चाहिये । )
(९) अजा सिंहप्रसादेन वने चरति निर्भयम्‌.
( शेर की कृपा से बकरी जंगल मे बिना भय के चरती है । )
(१०) अतिभक्ति चोरलक्षणम्‌.
( अति-भक्ति चोर का लक्षण है । )
(११) अल्पविद्या भयङ्करी.
( अल्पविद्या भयंकर होती है । )
(१२) कुपुत्रेण कुलं नष्टम्‌.
( कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है । )
(१३) ज्ञानेन हीना: पशुभि: समाना:.
( ज्ञानहीन पशु के समान हैं । )
(१४) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे गर्दभी ह्यप्सरा भवेत्‌.
( सोलह वर्ष की होने पर गदही भी अप्सरा बन जाती है । )
(१५) प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्‌.
( सोलह वर्ष की अवस्था को प्राप्त पुत्र से मित्र की भाँति आचरण करना चाहिये । )
(१६) मधुरेण समापयेत्‌.
( मिठास के साथ ( मीठे वचन या मीठा स्वाद ) समाप्त करना चाहिये । )
(१७) मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना.
( हर व्यक्ति अलग तरह से सोचता है । )
(१८) शठे शाठ्यं समाचरेत् ।
( दुष्ट के साथ दुष्टता का वर्ताव करना चाहिये । )
(१९) सत्यं शिवं सुन्दरम्‌.
( सत्य , कल्याणकारी और सुन्दर । ( किसी रचना/कृति या विचार को परखने की कसौटी ) )
(२०) सा विद्या या विमुक्तये.
( विद्या वह है जो बन्धन-मुक्त करती है । )

(२१) त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भग्यं दैवो न जानाति कुतो नरम् ।
( स्त्री के चरित्र को और पुरुष के भाग्य को भगवान् भी नहीं जानता , मनुष्य कहाँ लगता है । )
(२२) कामासक्त व्यक्ति की कोई चिकित्सा नहीं है। - नीतिवाक्यामृत-३।१२

महापुरुषों एवम संतों के अनमोल वचन-----

(१) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी —–महर्षि वाल्मीकि (रामायण)
( जननी ( माता ) और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है)
(२) जो दूसरों से घृणा करता है वह स्वयं पतित होता है – विवेकानन्द
(३) कबिरा घास न निन्दिये जो पाँवन तर होय । उड़ि कै परै जो आँख में खरो दुहेलो होय।। —-सन्त कबीर
(४) ऊँच अटारी मधुर वतास। कहैं घाघ घर ही कैलाश। —-घाघ भड्डरी (अकबर के समकालीन, कानपुर जिले के निवासी )
(५) तुलसी इस संसार मे, सबसे मिलिये धाय ।
ना जाने किस रूप में नारायण मिल जाँय ॥
(६) कोई भी देश अपनी अच्छाईयों को खो देने पर पतीत होता है। -गुरू नानक
(७) प्यार के अभाव में ही लोग भटकते हैं और भटके हुए लोग प्यार से ही सीधे रास्ते पर लाए जा सकते हैं। --ईसा मसीह
(८) जो हमारा हितैषी हो, दुख-सुख में बराबर साथ निभाए, गलत राह पर जाने से रोके और अच्छे गुणों की तारीफ करे, केवल वही व्यक्ति मित्र कहलाने के काबिल है। -वेद
(९) ज्ञानीजन विद्या विनय युक्त ब्राम्हण तथा गौ हाथी कुत्ते और चाण्डाल मे भी समदर्शी होते हैं ।
(१०) यदि सज्जनो के मार्ग पर पूरा नही चला जा सकता तो थोडा ही चले । सन्मार्ग पर चलने वाला पुरूष नष्ट नही होता।
(११) कोई भी वस्तु निरर्थक या तुच्छ नही है । प्रत्येक वस्तु अपनी स्थिति मे सर्वोत्कृष्ट है ।— लांगफेलो
(१२) दुनिया में ही मिलते हैं हमे दोजखो-जन्नत । इंसान जरा सैर करे , घर से निकल कर ॥ — दाग
(१३)विश्व एक महान पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर से बाहर नहीं निकलते ।— आगस्टाइन
(१४) दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। -डा रामकुमार वर्मा
(१५) डूबते को बचाना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। -डॉ.मनोज चतुर्वेदी
(१६) जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सब कुछ जीता। -अज्ञात
(१७) अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का । — डॉ. तपेश चतुर्वेदी
(१८) ऐसे देश को छोड़ देना चाहिये जहां न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा ।–विनोबा
(१९) विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है ।–रवींद्रनाथ ठाकुर
(२०) आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। -महात्मा गांधी
(२१) पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। - जयशंकर प्रसाद
(२२) उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।–अज्ञात
(२३) विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है । - अज्ञात
(२४) गरीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार गऱीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। - सादी
(२५) जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का पतिबिम्ब नहीं पड़ सकता । - रामकृष्ण परमहंस

(२६) मित्र के मिलने पर पूर्ण सम्मान सहित आदर करो, मित्र के पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद अवश्य करो। -डॉ.मनोज चतुर्वेदी
(२७) जैसे छोटा सा तिनका हवा का स्र्ख़ बताता है वैसे ही मामूली घटनाएं मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। - महात्मा गांधी
(२८) देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। -बलभद्र प्रसाद गुप्त ‘रसिक’
(२९) दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएं चाहता है, विलासी बहुत सी और लालची सभी वस्तुएं चाहता है। -अज्ञात
(३०) चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। -रवीन्द्र नाथ ठाकुर
(३१) जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। -रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(३२) चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। -सत्यसांई बाबा
(३३) अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। - प्रेमचंद
(३४) खातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। -शरतचन्द्र
(३५) लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है । -मुक्ता
(३६) अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। -हरिऔध
(३७) मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(३८) प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(३९) मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है । -गौतम बुद्ध
(४०) स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! -लोकमान्य तिलक
(४१) त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहां भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ
(४२) दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। -प्रेमचंद
(४३) अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। -जयशंकर प्रसाद
(४४) द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। - विनोबा
(४५) सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिये उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना । - डा शंकर दयाल शर्मा
(४६) सारा जगत स्वतंत्रताके लिये लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। - श्री अरविंद
(४७) सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है । एक जुल्मों के खिलाफ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध । - सरदार पटेल
(४८) तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। - वाल्मीकि
(४९) भूलना प्रायः प्राकृतिक है जबकि याद रखना प्रायः कृत्रिम है। - रत्वान रोमेन खिमेनेस
(५०) हँसमुख चेहरा रोगी के लिये उतना ही लाभकर है जितना कि स्वस्थ ऋतु ।— बेन्जामिन
(५१) हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव जमाने के लिये महंगे ढंग से रहते है ।— अनोन
(५२) कीरति भनिति भूति भलि सोई , सुरसरि सम सबकँह हित होई ॥— तुलसीदास
(५३) स्पष्टीकरण से बचें । मित्रों को इसकी आवश्यकता नहीं ; शत्रु इस पर विश्वास नहीं करेंगे ।— अलबर्ट हबर्ड
(५४) अपने उसूलों के लिये , मैं स्वंय मरने तक को भी तैयार हूँ , लेकिन किसी को मारने के लिये , बिल्कुल नहीं।— महात्मा गाँधी
(५५) विजयी व्यक्ति स्वभाव से , बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है।— प्रेमचंद
(५६) अतीत चाहे जैसा हो , उसकी स्मृतियाँ प्रायः सुखद होती हैं ।— प्रेमचंद
(५७) अपनी आंखों को सितारों पर टिकाने से पहले अपने पैर जमीन में गड़ा लो |-– थियोडॉर रूज़वेल्ट
 
(५८) आमतौर पर आदमी उन चीजों के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है जिनका उससे कोई लेना देना नहीं होता |-– जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
(५९) स्वास्थ्य के संबंध में , पुस्तकों पर भरोसा न करें। छपाई की एक गलती जानलेवा भी हो सकती है । — मार्क ट्वेन
(६०) मानसिक बीमारियों से बचने का एक ही उपाय है कि हृदय को घृणा से और मन को भय व चिन्ता से मुक्त रखा जाय ।— श्रीराम शर्मा , आचार्य
(६१) जिसका यह दावा है कि वह आध्यात्मिक चेतना के शिखर पर है मगर उसका स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता है तो इसका अर्थ है कि मामला कहीं गड़बड़ है।- महात्मा गांधी
(६२) स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क रहता है ।
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम । ( यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है / सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं )
आहार , स्वप्न ( नींद ) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ हैं ।
— महर्षि चरक
(६३) यदि आप इस बात की चिंता न करें कि आपके काम का श्रेय किसे मिलने वाला है तो आप आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं– हैरी एस. ट्रूमेन
(६४) श्रेष्ठ आचरण का जनक परिपूर्ण उदासीनता ही हो सकती है |-– काउन्ट रदरफ़र्ड
(६५) उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं । -गौतम बुद्ध
(६६) कबिरा आप ठगाइये , और न ठगिये कोय । आप ठगे सुख होत है , और ठगे दुख होय ॥ — कबीर

(६७) प्रत्येक मनुष्य में तीन चरित्र होता है. एक जो वह दिखाता है, दूसरा जो उसके पास होता है, तीसरी जो वह सोचता है कि उसके पास है |– अलफ़ॉसो कार
(६८) जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती । — विनोबा
(६९) मनुष्य की महानता उसके कपडों से नहीं बल्कि उसके चरित्र से आँकी जाती है । — स्वामी विवेकानन्द
(७०) अनेक लोग वह धन व्यय करते हैं जो उनके द्वारा उपार्जित नहीं होता, वे चीज़ें खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते। - जानसन
(७१) मुक्त बाजार में स्वतंत्र अभिव्यक्ति भी न्याय, मानवाधिकार, पेयजल तथा स्वच्छ हवा की तरह ही उपभोक्ता-सामग्री बन चुकी है।यह उन्हें ही हासिल हो पाती हैं, जो उन्हें खरीद पाते हैं। वे मुक्त अभिव्यक्ति का प्रयोग भी उस तरह का उत्पादन बनाने में करते हैं जो सर्वथा उनके अनुकूल होता है। - अरुंधती राय
(७२) अध्ययन हमें आनन्द तो प्रदान करता ही है, अलंकृत भी करता है और योग्य भी बनाता है, मस्तिष्क के लिये अध्ययन की उतनी ही आवश्यकता है जितनी शरीर के लिये व्यायाम की | — जोसेफ एडिशन
(७३) पढने से सस्ता कोई मनोरंजन नहीं ; न ही कोई खुशी , उतनी स्थायी । — जोसेफ एडिशन

(७४) सही किताब वह नहीं है जिसे हम पढ़ते हैं – सही किताब वह है जो हमें पढ़ता है | — डबल्यू एच ऑदेन
(७५) पुस्तक एक बग़ीचा है जिसे जेब में रखा जा सकता है, किताबों को नहीं पढ़ना किताबों को जलाने से बढ़कर अपराध है | -– रे ब्रेडबरी
(७६) पुस्तक प्रेमी सबसे धनवान व सुखी होता है, संपूर्ण रूप से त्रुटिहीन पुस्तक कभी पढ़ने लायक नहीं होती। - जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
(७७) यदि किसी असाधारण प्रतिभा वाले आदमी से हमारा सामना हो तो हमें उससे पूछना चाहिये कि वो कौन सी पुस्तकें पढता है । — एमर्शन
(७८) किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं । –अज्ञात

(७९) चिड़ियों की तरह हवा में उड़ना और मछलियों की तरह पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इन्सानों की तरह ज़मीन पर चलना सीखना है। - सर्वपल्ली राधाकृष्णन
(८०) हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है |हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है। - विनोबा
(८१) भारतीय संस्कृति और धर्म के नाम पर लोगों को जो परोसा जा रहा है वह हमें धर्म के अपराधीकरण की ओर ले जा रहा है। इसके लिये पंडे, पुजारी, पादरी, महंत, मौलवी, राजनेता आदि सभी जिम्मेदार हैं। ये लोग धर्म के नाम पर नफरत की दुकानें चलाकर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। - स्वामी रामदेव

(८२) ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ एक चेहरा दिया है और तुम उस पर कई चेहरे चढ़ा लेते हो, जो व्यक्ति सोने का बहाना कर रहा है उसे आप उठा नहीं सकते | -– नवाजो
(८३) जब तुम्हारे खुद के दरवाजे की सीढ़ियाँ गंदी हैं तो पड़ोसी की छत पर पड़ी गंदगी का उलाहना मत दीजिए | -– कनफ़्यूशियस
(८४) सोचना, कहना व करना सदा समान हो, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है । –संत तिस्र्वल्लुवर

(८५) यदि आपको रास्ते का पता नहीं है, तो जरा धीरे चलें | महान ध्येय ( लक्ष्य ) महान मस्तिष्क की जननी है । — इमन्स
(८६) जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डांवांडोल स्थिति में रहना । — सुभाषचंद्र बोस!
(८७) जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो । यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो । –इंदिरा गांधी
(८८) विफलता नहीं , बल्कि दोयम दर्जे का लक्ष्य एक अपराध है । --अज्ञात
(८९) मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है | – वेदव्यास
(९०) इच्छा ही सब दुःखों का मूल है | -– बुद्ध
(९१) भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या बिना अग्नि के धुएं की शिखा कभी दिखाई देती है ? - गाथासप्तशती
(९२) स्वप्न वही देखना चाहिए, जो पूरा हो सके । –आचार्य तुलसी
(९३) माया मरी न मन मरा , मर मर गये शरीर । आशा तृष्ना ना मरी , कह गये दास कबीर ॥ — कबीर

(९४) कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और स्र्आब दिखाने से नहीं । — प्रेमचंद
(९५) आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता । –चाणक्य
(९६) जहां प्रकाश रहता है वहां अंधकार कभी नहीं रह सकता । — माघ्र
(९७) जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं । –रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(९८) जहाँ अकारण अत्यन्त सत्कार हो , वहाँ परिणाम में दुख की आशंका करनी चाहिये । — कुमार सम्भव

(९९) विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास । एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है । –अज्ञात
(१००) मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता | –चाणक्य
(१०१) आपत्तियां मनुष्यता की कसौटी हैं । इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता । –पंडित रामप्रताप त्रिपाठी
(१०२) कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं । –लोकमान्य तिलक
(१०३) प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं । — अज्ञात
(१०४) जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिये | — वेदव्यास
(१०५) जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं । –गौतम बुद्ध
(१०६) वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। -स्वामी रामतीर्थ
(१०७) अपने विषय में कुछ कहना प्राय:बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को । –महादेवी वर्मा
(१०८) जैसे अंधे के लिये जगत अंधकारमय है और आंखों वाले के लिये प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिये जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिये आनंदमय | — सम्पूर्णानंद
(१०९) बाधाएं व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिये, मंद नहीं पड़ना चाहिये । — यशपाल
(११०) कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढाती है । — वीर सावरकर

(१११) जिसके पास न विद्या है, न तप है, न दान है , न ज्ञान है , न शील है , न गुण है और न धर्म है ; वे मृत्युलोक पृथ्वी पर भार होते है और मनुष्य रूप तो हैं पर पशु की तरह चरते हैं (जीवन व्यतीत करते हैं ) । — भर्तृहरि
(११२) मनुष्य कुछ और नहीं , भटका हुआ देवता है । — श्रीराम शर्मा , आचार्य
(११३) मानव तभी तक श्रेष्ठ है , जब तक उसे मनुष्यत्व का दर्जा प्राप्त है । बतौर पशु , मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है। — रवीन्द्र नाथ टैगोर
(११४) आदर्श के दीपक को , पीछे रखने वाले , अपनी ही छाया के कारण , अपने पथ को , अंधकारमय बना लेते हैं। — रवीन्द्र नाथ टैगोर
(११५) क्लोज़-अप में जीवन एक त्रासदी (ट्रेजेडी) है, तो लंबे शॉट में प्रहसन (कॉमेडी) | -– चार्ली चेपलिन
(११६) आपके जीवन की खुशी आपके विचारों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है | -– मार्क ऑरेलियस अन्तोनियस
(११७) हमेशा बत्तख की तरह व्यवहार रखो. सतह पर एकदम शांत , परंतु सतह के नीचे दीवानों की तरह पैडल मारते हुए | -– जेकब एम ब्रॉदे
(११८) जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है | -– रॉल्फ वाल्डो इमर्सन
(११९) अव्यवस्था से जीवन का प्रादुर्भाव होता है , तो अनुक्रम और व्यवस्थाओं से आदत | -– हेनरी एडम्स
(१२०) दृढ़ निश्चय ही विजय है, जब आपके पास कोई पैसा नहीं होता है तो आपके लिए समस्या होती है भोजन का जुगाड़. जब आपके पास पैसा आ जाता है तो समस्या सेक्स की हो जाती है, जब आपके पास दोनों चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है और जब सारी चीज़ें आपके पास होती हैं, तो आपको मृत्यु भय सताने लगता है | -– जे पी डोनलेवी
(१२१) दुनिया में सिर्फ दो सम्पूर्ण व्यक्ति हैं – एक मर चुका है, दूसरा अभी पैदा नहीं हुआ है |

प्रसिद्धि व धन उस समुद्री जल के समान है, जितना ज्यादा हम पीते हैं, उतने ही प्यासे होते जाते हैं |
हम जानते हैं कि हम क्या हैं, पर ये नहीं जानते कि हम क्या बन सकते हैं | -- शेक्सपीयर
(१२२) दूब की तरह छोटे बनकर रहो. जब घास-पात जल जाते हैं तब भी दूब जस की तस बनी रहती है | – गुरु नानक देव

(१२३) यदि कोई लडकी लज्जा का त्याग कर देती है तो अपने सौन्दर्य का सबसे बडा आकर्षण खो देती है । — सेंट ग्रेगरी
(१२४) सबसे उत्तम बदला क्षमा करना है | — रवीन्द्रनाथ ठाकुर
(१२५) दुष्टो का बल हिन्सा है, शासको का बल शक्ती है,स्त्रीयों का बल सेवा है और गुणवानो का बल क्षमा है । — रामधारी सिंह दिनकर
(१२६) उस मनुष्य का ठाट-बाट जिसे लोग प्यार नहीं करते, गांव के बीचोबीच उगे विषवृक्ष के समान है। -- तिरुवल्लुवर
(१२७) जो अकारण अनुराग होता है उसकी प्रतिक्रिया नहीं होती है क्योंकि वह तो स्नेहयुक्त सूत्र है जो प्राणियों को भीतर-ही-भीतर (ह्रदय में) सी देती है। -- उत्तररामचरित
(१२८) पुरुष के लिए प्रेम उसके जीवन का एक अलग अंग है पर स्त्री के लिए उसका संपूर्ण अस्तित्व है । - लार्ड बायरन

(१२९) संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास । — काका कालेलकर
(१३०) जिस तरह जौहरी ही असली हीरे की पहचान कर सकता है, उसी तरह गुणी ही गुणवान् की पहचान कर सकता है | – कबीर
(१३१) गहरी नदी का जल प्रवाह शांत व गंभीर होता है | – शेक्सपीयर
(१३२) कुल की प्रशंसा करने से क्या लाभ? शील ही (मनुष्य की पहचान का) मुख्य कारण है। क्षुद्र मंदार आदि के वृक्ष भी उत्तम खेत में पड़ने से अधिक बढते-फैलते हैं। - मृच्छकटिक
(१३३) सभी लोगों के स्वभाव की ही परिक्षा की जाती है, गुणों की नहीं। सब गुणों की अपेक्षा स्वभाव ही सिर पर चढ़ा रहता है (क्योंकि वही सर्वोपरिहै)। - हितोपदेश
(१३४) पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है । – गौतम बुद्ध
(१३५) आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला वैराग्यवान नहीं हो सकता और हिंसक दयालु नहीं हो सकता । - भगवान महावीर
(१३६) कलाविशेष में निपुण भले ही चित्र में कितने ही पुष्प बना दें पर क्या वे उनमें सुगंध पा सकते हैं और फिर भ्रमर उनसे रस कैसे पी सकेंगे । - पंडितराज जगन्नाथ
(१३७) कुलीनता यही है और गुणों का संग्रह भी यही है कि सदा सज्जनों से सामने विनयपूर्वक सिर झुक जाए । - दर्पदलनम् १।२९
(१३८) गुणवान पुरुषों को भी अपने स्वरूप का ज्ञान दूसरे के द्वारा ही होता है। आंख अपनी सुन्दरता का दर्शन दर्पण में ही कर सकती है । - वासवदत्ता
(१३९) घमंड करना जाहिलों का काम है । - शेख सादी
(१४०) तुम प्लास्टिक सर्जरी करवा सकते हो, तुम सुन्दर चेहरा बनवा सकते हो, सुंदर आंखें सुंदर नाक, तुम अपनी चमड़ी बदलवा सकते हो, तुम अपना आकार बदलवा सकते हो। इससे तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, क्रोध, ईर्ष्या, शक्ति के प्रति पागलपन भरा रहेगा। इन बातों के लिये प्लास्टिक सर्जन कुछ कर नहीं सकता। - ओशो
(१४१) मछली एवं अतिथि , तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं । — बेंजामिन फ्रैंकलिन
(१४२) जो पाप में पड़ता है, वह मनुष्य है, जो उसमें पड़ने पर दुखी होता है, वह साधु है और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है। - फुलर
(१४३) आंदोलन से विद्रोह नहीं पनपता बल्कि शांति कायम रहती है। - वेडेल फिलिप्स
(१४४) ‘हिंसा’ को आप सर्वाधिक शक्ति संपन्न मानते हैं तो मानें पर एक बात निश्चित है कि हिंसा का आश्रय लेने पर बलवान व्यक्ति भी सदा ‘भय’ से प्रताड़ित रहता है। दूसरी ओर हमें तीन वस्तुओं की आवश्यकता हैः अनुभव करने के लिए ह्रदय की, कल्पना करने के लिए मस्तिष्क की और काम करने के लिए हाथ की। - स्वामी विवेकानंद
(१४५) सत्य को कह देना ही मेरा मज़ाक करने का तरीका है। संसार में यह सब से विचित्र मज़ाक है। - जार्ज बर्नार्ड शॉ
(१४६) सत्य बोलना श्रेष्ठ है ( लेकिन ) सत्य क्या है , यही जानाना कठिन है । जो प्राणिमात्र के लिये अत्यन्त हितकर हो , मै इसी को सत्य कहता हूँ । — वेद व्यास
(१४७) सही या गलत कुछ भी नहीं है – यह तो सिर्फ सोच का खेल है, पूरी इमानदारी से जो व्यक्ति अपना जीविकोपार्जन करता है, उससे बढ़कर दूसरा कोई महात्मा नहीं है। - लिन यूतांग
(१४८) झूठ का कभी पीछा मत करो । उसे अकेला छोड़ दो। वह अपनी मौत खुद मर जायेगा । - लीमैन बीकर
(१४९) धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है । — डा. शंकरदयाल शर्मा
(१५०) धर्मरहित विज्ञान लंगडा है , और विज्ञान रहित धर्म अंधा । — आइन्स्टाइन

(१५१)  बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है । - अष्टावक्र

Monday 18 January 2016

नेता बनने के नौ नुस्खे उनमें सबसे सरल एवं पॉपुलर है चतुर नेताओं का 'स्याहीसंस्कार ' !

   स्याही फेंकवाने से लेकर जूते चप्पल तक कुछ भी फेंकवाना हो इससे मीडिया कवरेज पूरा मिलता है और नुक्सान कुछ भी होता नहीं है ! 
    कानपुर का एक संस्मरण मुझे याद है बात 1995 की है मेरे परिचित एक दीक्षित जी हैं जो जिला स्तरीय राजनीति में हाथ पैर मारते मारते थक चुके थे कोई जुगत काम नहीं कर रही थी बेचारे राजनीति में कुछ बन नहीं पाए थे !मैंने एक दिन उनसे पूछ दिया कहाँ तक पहुँच पाई आपकी राजनीति ? वो बोले पहुँची तो कहीं नहीं ठहरी हुई है तो हमने कहा क्यों हाथ पैर मारो संपर्क करो लोगों से !तो उन्होंने कहा कि ये सब जितना होना था वो चुका अब तो नेता बनने का डायरेक्ट जुगाड़ करना होगा ,तो मैंने कहा कि वो कैसे होगा तो उन्होंने कहा कि धन और सोर्स है नहीं न कोई खास काबिलियत ही है अब तो राजनीति में सफल होने के लिए लीक से हट कर ही कुछ करना होगा मैंने पूछा  वो क्या ? तो उन्होंने कुछ बिंदु सुझाए - 
  • पहली बात यदि मैं ब्राह्मण न होता तो ब्राह्मणों सवर्णों को गालियाँ दे दे कर नेता बनने की सबसे लोकप्रिय विधा है जिससे बहुत लोग ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गए ! 
  • दूसरी बात बड़े बड़े मंचों पर खड़े होकर मीडिया के सामने देश के मान्य महापुरुषों प्रतीकों को गालियाँ दी जाएँ, दूसरे बड़े नेताओं पर चोरी, छिनारा ,भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाए जाएँ ,गालियाँ दी जाएँ महापुरुषों की मूर्तियाँ या देश के प्रतीक तोड़े जाएँ जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हों ! 
  • तीसरी बात किसी सभा में मंच पर अपने ऊपर स्याही या जूता चप्पल आदि कोई भी हलकी फुल्की चीजें फेंकवाई जाएँ जिससे चोट  लगने की  सम्भावना भी न  हो  और प्रसिद्धि भी पूरी मिले इससे एक ही नुक्सान हो सकता है कि सारा अरेंजमेंट मैं करूँ और फेंकने वाले का निशाना चूक गया तो बगल में बैठा कार्यकर्ता नेता बन जाएगा मैं फिर बंचित रह जाऊँगा इस सौभाग्य से ! 
  •  चौथी बात अपने घर में जान से मारने की धमकी जैसे पत्र किसी से लिखवाए भिजवाए जाएँ किंतु पोल खुल गई  तो फजीहत ! 
  •   पाँचवीं बात अपने आगे पीछे  कहीं बम  वम लगवाए जाएँ जो अपने निकलने के पहले या बाद में फूटें किंतु बम लगाने वाला इतना एक्सपर्ट हो तब न !अन्यथा थोड़ी भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो क्या होगा पता नहीं ! 
  •  छठी बात किसी दरोगा सिपाही से मिला जाए और उससे टाइ अप किया जाए कि वो यदि किसी चौराहे पर मुझे बेइज्जती कर करके  गिरा गिराकर कर मारे इससे मैं नेता बन जाऊँगा और उसकी तरक्की हो जायेगी !इसी प्रकार से यदि मैं किसी किसी दरोगा को मारूँ तो मैं नेता बन जाऊँगा और उसका ट्राँसफर हो जाएगा ! 
  • सातवीं बात किसी जनप्रिय विंदु को मुद्दा बनाकर खुले आम आमरण अनशन या आत्म हत्या की घोषणा की जाए किंतु कोई मनाने क्यों आएगा मेरा कोई कद तो है नहीं !
  • किसी बड़े नेता पर बलात्कार का आरोप लगाकर प्रसिद्ध हो जाए और  प्रसिद्ध होने पर राजनीति में कद बढ़ ही जाता है किंतु मैं तो ये भी नहीं कर सकता!क्योंकि मैं महिला नहीं हूँ । 
  • यदि मैं अल्प संख्यक होता तो अपने धर्म स्थल की रात बिरात कोई दीवार तोड़वा देता बाद में बनती तो बन जाती नहीं बनती तो भी क्या किंतु मैं अपने धर्म का मसीह बन बैठता लोग हमें मनाते फिरते चुनाव  लिए किंतु मैं ब्राह्मण हूँ ये भी नहीं कर सकता !

हे अन्ना जी ! आपकी की रासलीला मंडली चारबूँद स्याही पड़ने से इतना घबड़ा गई कि केंद्र पर लगाने लगी हत्या का आरोप !

बारे अन्ना हजारे जी ! कमाल का है आप का कुनबा !
    अन्ना हजारे जी !ये आपके वही पालतू शेर हैं जो सिक्योरिटी न लेने की बातें किया करते थे!बारे अन्ना जी ! अच्छी बीमारी डाली है दिल्ली वालों के गले ! इनका  ऑड इवेन फॉर्मूला तो बाढ़ रोकने के लिए पेशाब करने वालों पर प्रतिबंध लगाने जैसा था उसकी सफलता का जश्न मनाते घूम रहे हैं !एक रोड भी बनाया नहीं गया कोई रोड अतिक्रमण मुक्त नहीं कराया गया कहीं से जाम काम नहीं हुआ ये तो महँगाई कम करने के लिए खाना बंद करा देंगे सीवर ठीक रखने के लिए पाखाना बंद कराएँगे ऊपर से दिल्ली वालों की गाढ़ी कमाई का धन जश्न मनाने में लुटाएँगे !ऐसा कौन सा तीर मार दिया है इन्होंने !
   "हे अन्ना जी !पुराने लोग कहा करते थे कि नेताओं का विरोध करना हो तो उनपर स्याही फेंके !तैरना सीखना हो तो गंगा में सीखे और कर्ज देना हो तो ब्राह्मण को दे !"मतलब साफ है स्याही फेंकते समय तवज्जो मिल जाती तब तो कहा जाता कि ऑड इवेन फॉर्मूला की सफलता पर हम लोग होली खेल रहे थे अन्यथा नेतागिरी चमक गई !इसी प्रकार गंगा में तैरना सीख गए तो बड़ी नदी में तैरने का अनुभव और डूब गए तो मोक्ष !इसी प्रकार ब्राह्मण ने कर्ज लौटा दिया तो ठीक अन्यथा दान तो हो ही गया !
हे अन्ना जी !आप ही बताइए -
  • जो नेता दूसरों के चरित्र पर कीचड़ उछालता रहा हो वो चार छींटे स्याही के पड़ने से घबड़ा गया और कोसने लगा केंद्र सरकार को ! 
  • वैसे भी जब हम किसी को गालियाँ देते या अपमानित करते हैं या उन पर अकारण भ्रष्टाचार के या चरित्र संबंधी आरोप लगाते हैं तब कुछ कर्तव्य तो उनका भी बन जाता है कि वो भी जवाब दें !
  • जिसने अधिकांश नेताओं को भ्रष्टाचारी चोर लुटेरे बताया हो और फिर उन्हीं से पेट रगड़ने पटना पहुँचा हो ! 
  •     जो सादगी और विरक्ति के बड़े बड़े सपने दिखाए हों और सत्ता में आते ही भोगने लगा हो सारी सुख सुविधाएँ ! 
  •    जिसने डेंगू की रोकथाम के लिए संचित की गई सैकड़ों करोड़ की धनराशि विज्ञापन पर खर्च कर दी हो जिसके परिणाम स्वरूप डेंगू ने 19 साल का रिकार्ड तोड़ा हो और कई मौतें हुई हों ! 
  •   इसी प्रकार से राजनीति को सेवा बताने वाले नेता सैलरी लूटने लगे हों ! 
  •  सिक्योरिटी न लेने के नाम पर राजनीति शुरू करने वाला नेता चार बूँद स्याही पड़ते ही केंद्र सरकार को सिक्योरिटी के नाम पर कटघरे इन खड़ा करने लगा !

Sunday 17 January 2016

'स्याहीसंस्कार' चतुर नेताओं को प्रसिद्ध होने का बड़ा हथियार होता है बशर्ते टाइमिंग सही और निशाने बाज ठीक हो !

     नेता बनने की प्रचलित विधियों में 'स्याहीसंस्कार' सबसे लोकप्रिय ब्यवहार है क्योंकि ये हानि रहित विधा है और इससे लाभ भी पूरे होते हैं और कोई नुक्सान भी नहीं होता !चुनावों के  समय नेता लोग अक्सर ऐसे शो अरेंज किया करते हैं जिनसे उन्हें हानिरहित प्रसिद्धि की प्राप्ति हो । सरकारों में सम्मिलित नेता लोग तो ये स्याही संस्कार  भी सरकारी बजट के पैसे से ही करवाते  होंगे आखिर ये भी तो सरकारी काम का ही अंग होता है और विज्ञापन का अंग भी !वैसे भी राजनीति में सफल होने की इच्छा रखने वाला कोई व्यक्ति यदि अपने ऊपर स्याही फेंकवाने का भी छोटा सा इंतजाम नहीं कर सका तो वो नेतागिरी में फेल ही माना  जाना चाहिए !
       कानपुर का एक संस्मरण मुझे याद है बात 1995 की है मेरे परिचित एक दीक्षित जी हैं जो जिला स्तरीय राजनीति में हाथ पैर मारते मारते थक चुके थे कोई जुगत काम नहीं कर रही थी बेचारे राजनीति में कुछ बन नहीं पाए थे !मैंने एक दिन उनसे पूछ दिया कहाँ तक पहुँच पाई आपकी राजनीति ? वो बोले पहुँची तो कहीं नहीं ठहरी हुई है तो हमने कहा क्यों हाथ पैर मारो संपर्क करो लोगों से !तो उन्होंने कहा कि ये सब जितना होना था वो चुका अब तो नेता बनने का डायरेक्ट जुगाड़ करना होगा ,तो मैंने कहा कि वो कैसे होगा तो उन्होंने कहा कि धन और सोर्स है नहीं न कोई खास काबिलियत ही है अब तो राजनीति में सफल होने के लिए लीक से हट कर ही कुछ करना होगा मैंने पूछा  वो क्या ? तो उन्होंने कुछ बिंदु सुझाए - 
  • पहली बात यदि मैं ब्राह्मण न होता तो ब्राह्मणों सवर्णों को गालियाँ दे दे कर नेता बनने की सबसे लोकप्रिय विधा है जिससे बहुत लोग ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गए ! 
  • दूसरी बात बड़े बड़े मंचों पर खड़े होकर मीडिया के सामने देश के मान्य महापुरुषों प्रतीकों को गालियाँ दी जाएँ, दूसरे बड़े नेताओं पर चोरी, छिनारा ,भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाए जाएँ ,गालियाँ दी जाएँ महापुरुषों की मूर्तियाँ या देश के प्रतीक तोड़े जाएँ जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हों ! 
  • तीसरी बात किसी सभा में मंच पर अपने ऊपर स्याही या जूता चप्पल आदि कोई भी हलकी फुल्की चीजें फेंकवाई जाएँ जिससे चोट  लगने की  सम्भावना भी न  हो  और प्रसिद्धि भी पूरी मिले इससे एक ही नुक्सान हो सकता है कि सारा अरेंजमेंट मैं करूँ और फेंकने वाले का निशाना चूक गया तो बगल में बैठा कार्यकर्ता नेता बन जाएगा मैं फिर बंचित रह जाऊँगा इस सौभाग्य से ! 
  •  चौथी बात अपने घर में जान से मारने की धमकी जैसे पत्र किसी से लिखवाए भिजवाए जाएँ किंतु पोल खुल गई  तो फजीहत ! 
  •   पाँचवीं बात अपने आगे पीछे  कहीं बम  वम लगवाए जाएँ जो अपने निकलने के पहले या बाद में फूटें किंतु बम लगाने वाला इतना एक्सपर्ट हो तब न !अन्यथा थोड़ी भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो क्या होगा पता नहीं ! 
  •  छठी बात किसी दरोगा सिपाही से मिला जाए और उससे टाइ अप किया जाए कि वो यदि किसी चौराहे पर मुझे बेइज्जती कर करके  गिरा गिराकर कर मारे इससे मैं नेता बन जाऊँगा और उसकी तरक्की हो जायेगी !इसी प्रकार से यदि मैं किसी किसी दरोगा को मारूँ तो मैं नेता बन जाऊँगा और उसका ट्राँसफर हो जाएगा ! 
  • सातवीं बात किसी जनप्रिय विंदु को मुद्दा बनाकर खुले आम आमरण अनशन या आत्म हत्या की घोषणा की जाए किंतु कोई मनाने क्यों आएगा मेरा कोई कद तो है नहीं !
     कुल मिलाकर सभी  चुनावों के  समय नेता लोग अक्सर ऐसे आइटम अरेंज किया करते हैं इनसे समाज को भयभीत नहीं होना चाहिए और मैं ऐसे ड्रामे कर नहीं पा रहा हूँ इसलिए मुझे तो नेता बनने के ख़्वाब छोड़ ही देने चाहिए ! 

Friday 15 January 2016

शत्रुघ्न जी !हनीमून पीरियडफिल्मों में चलता होगा राजनीति में नहीं

‘‘बिहार की नई सरकार का तो हनीमून पीरियड भी अभी खत्म नहीं हुआ है।’’-शत्रुघ्न सिन्हा 
     किंतु बिहारी बाबू जी !आपके ऐसा कहने का मतलब कहीं ये तो नहीं है कि  हनीमून पीरियड में सरकारी सतर्कता के अभाव में जो भी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ घटी हैं वे काउंट नहीं की जानी चाहिए क्या सरकार से उनके जवाब नहीं मिलने चाहिए क्या जो लोग मारे गए उनके परिजनों को न्याय नहीं मिलना चाहिए क्या उसके लिए बिहार सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए !वैसे भी नितीश कुमार जी की सरकार तो पुरानी ही है केवल चुनावी भाँवरें ही तो एक बार और घूम ली गई हैं या फिर सरकार में लालू जी के गणों का प्रवेश हुआ है बाकी तो सब जस का तस है! ऐसी परिस्थिति में इस समय घटी सभी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ क्या नितीश जी की लापरवाही या फिर लालूगणों का चमत्कार हैं ?

भूकंपों पर क्या कहता भारत का प्राचीन विज्ञान ?

       प्रकृति में होने वाले हर परिवर्तन को 'यदि ऐसा हुआ है तो वैसा होगा' की दृष्टि से रिसर्च अत्यंत आवश्यक है प्राचीन विज्ञान का मानना है कि भूकंप सुनामी तूफान महामारी महावृष्टि सूखा या जिस किसी भी प्रकार से होने वाले जनधन का बड़ा बिनाश आदि बड़े सुख दुःख आने से पहले प्रकृति संकेतों के द्वारा उनकी सूचना अवश्य देती है धरती से आकाश तक कोई न कोई ऐसी घटना जरूर घटती है जिसका प्राचीन विज्ञान के द्वारा विश्लेषण किए जाने पर उससे सम्बंधित घटने वाली घटना का पूर्वानुमान लगाया जाता है !कुल मिलाकर धरती से आकाश तक घटने वाली हर प्राकृतिक घटना का कुछ मतलब होता है वो हमें कुछ सूचना दे रही होती है किंतु जानकारी न होने के कारण हम समझ नहीं पाते हैं वे संकेत !प्रकृति में हर क्षण कुछ न कुछ बदल रहा है ये बदलाव कुछ बड़े होते हैं और कुछ छोटे कुछ हमें दिखाई पड़ते हैं तो कुछ नहीं कुछ सामान्य होते हैं और कुछ विशेष जो विशेष होते हैं उनमें से कुछ शुभ होते हैं कुछ अशुभ!इस शुभ और अशुभ का पूर्वानुमान लगाने के लिए हमारे संस्थान द्वारा चलाई जा रही है व्यापक रिसर्च आप भी दें हमारा साथ ! 
 Sun dog effect-Three Sun in Sky
  • कई बार अचानक और अकारण ही आसमान में छा जाती है बहुत अधिक धूल !
  • कई बार बादलों में उड़ते हुए शहर दीखते हैं -see more.... http://m.rajasthanpatrika.patrika.com/story/india/thousands-see-floating-city-filmed-in-skies-above-china-1389734.html
  • कई बार आकाश में दिखाई देते हैं एक साथ तीन सूर्य !see more ..... http://www.bbcbharat.com/sun-dog-effect-three-sun-in-sky/
  • कई बार उड़न तस्तरी देखने का दावा किया जाता है !
  • कई बार आकाश में आतिशबाजी देखी जाती है !
  • 15 00 प्रकार के प्रकाश दिखाई पड़ते हैं आकाश में !
  • सूर्य चन्द्र के रंग किरणे प्रकाश बिम्ब प्रतिबिम्ब अादि 
  • आकाश के बदलते रंग वायु संचरण आदि 
  • लाल रंग की बर्षा या बर्षा में मछलियाँ 
  • कई बार मंदिरों में रखी मूर्तियाँ हँसते रोते काँपते दिखाई पड़ती हैं !
  • कई बार सूर्य चंद्रमा का बिम्ब टूटा हुआ दिखाई पड़ता है !
  • कई बार आकाश अचानक रंग बदलने लगता है 
  • कई बार आकाश में पुरुषों जैसी आकृतियाँ दिखाई पड़ती हैं 
  • अलग अलग समयों पर हवा का संचरण 
  • पशुओं पक्षियों वृक्षों बनस्पतियों में आने वाले अचानक परिवर्तनों का अध्ययन !
     हिंदू (सनातन) धर्म केवल एक धर्म ही नहीं अपितु विज्ञान भी है इसका प्रत्येक आचार ब्यवहार वैज्ञानिक है सुबह उठने से लेकर रात्रि में सोने तक यहाँ तक कि सोने में भी बताई गई पद्धतियाँ विशुद्ध वैज्ञानिक हैं हमारा सोना जगना खाना पीना उठना बैठना बात व्यवहार आदि सारा वातावरण ही वैज्ञानिक है हमारे क्या करने या होने का परिणाम क्या होगा !हमारा संपूर्ण प्राचीन विज्ञान इसी पर टिका हुआ है ।यदि ऐसे रहस्य समाज के सामने खोल कर रखे जाएँ तो वो जीवन में जिन आपत्तियों विपत्तियों से बचना चाहेगा वैसे आचार ब्यवहार करना छोड़ देगा !यदि उसके बश में होगा तो !अन्यथा भोगने को तैयार रहेगा !
    भारत की केंद्र या प्रांतीय सरकारों  में सम्मिलित लोगों ,स्वदेश से विदेश तक फैले उद्योगपतियों , ब्यापारियों धनियों ,संगठनों ,धनी साधू संतों सहित देश के उन सभी भाई बहनों से निेवेदन है जो चाहते हैं कि भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान पर भी वास्तव में रिसर्च हो और खोजे जाएँ जीवन मूल्य एवं सुलझाए जाएँ  सृष्टि से संबंधित ज्ञान विज्ञान के गंभीर रहस्य तो  भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान  की गंभीर खोज में लगे "राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान" की आर्थिक मदद करें ! 
     हिन्दू(सनातन)धर्म सबसे प्राचीन है अपनी हर परंपरा वैज्ञानिक है हमारे सामने घटित होने वाली अच्छी बुरी हर घटना भविष्य में होने वाली किसी घटना की सूचना दे रही होती है ज्ञान के अभाव में हम उन संकेतों को समझ नहीं पाते हैं भूकंप जैसी और भी बड़ी आपदाएँ या अच्छाइयाँ हों अपने आने से लगभग एक सप्ताह पहले से अपने आने की सूचना देने लगती हैं प्रकृति से लेकर वृक्षों पशुओं पक्षियों स्त्रियों पुरुषों के आचार ब्यवहार में सूक्ष्म बदलाव आने लगते हैं जिन्हें समझपाना अत्यंत कठिन एवं महत्त्वपूर्ण होता है जो आने वाले अच्छे बुरे भविष्य की सूचना दे रहे होते हैं जिसमें आने वाले भूकंपों की ,सुनामियों की ,तूफानों की ,अतिवृष्टि की ,सामूहिक रूप में होने वाली बड़ी बीमारियों की महामारी की या सामाजिक वैमनस्य झगड़ा झंझटों की राष्ट्रीय युद्धों आदि विपत्तियों की सूचनाएँ छिपी होती हैं इसी प्रकार से अनेकों अच्छाइयों की भी सूचनाएँ दे चुकी होती हैं अतीत  की घटनाएँ !जिन पर लगातार चलने वाली  गंभीर रिसर्च की आवश्यकता है । 
    इसमें प्राचीन भविष्यवैज्ञानिकों की बड़ी भूमिका है ऐसे विद्वान साइंटिस्ट लोग रख सकते हैं उन बदलाओं पर सूक्ष्म और पैनी निगाह और निरंतर कठोर परिश्रम पूर्वक प्राप्त प्राकृतिक अनुभवों के सूक्ष्म अध्ययनों से भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में समाज के लिए बड़े मददगार सिद्ध हो सकते हैं ।
      इसके लिए प्राचीन भविष्यवैज्ञानिकों को संसाधन उपलब्ध कराए जाने बहुत आवश्यक हैं साथ ही उन्हें सम्मान जनक आजीविका भी !जिसके लिए अधिकमात्रा में धन की आवश्यकता होती है जिसमें उचित है कि सरकार रूचि ले और उपलब्ध कराए सारे संसाधन एवं बहन करे संपूर्ण  खर्च जो अधिक से अधिक आधुनिक मौसमविभाग या भूकंपविभाग पर होने वाले खर्च का एक प्रतिशत होगा आर्थिक सहयोग सरकार करे या फिर समाज !किंतु केंद्र सरकार से लेकर प्रांतीय सरकारों तक को कई बार लिखकर भेजने पर भी अभी तक उनकी कोई सकारात्मक  प्रतिक्रिया मिल नहीं पाई है ऐसी परिस्थिति में मैं अपने "राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान" की ऒर से समाज से आर्थिक मदद की याचना करता हूँ प्राचीन विज्ञान से जुड़े विषयों की खोज में जब तक सरकार की रूचि नहीं है तब तक समय ब्यर्थ में क्यों बिताया जाए ऐसा बिचार करके अपने सीमित साधनों से कार्य प्रारंभ किया जा चुका है जिसके सकात्मक परिणाम भी धीरे धीरे सामने अाने लगे हैं समय तो लगता ही है किंतु आधुनिक  वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाल्रे कुछ लोग ऐसी बातों को अंधविश्वास बताते हैं  इसलिए अपने  समाज का सहयोग लेकर ही अपने प्राचीनविज्ञान पर चलाए जा रहे रिसर्चकार्यों को आगे बढ़ाना होगा !इसलिए संस्थान की ओर से आप सभी भाई बहनों से आर्थिक  सहयोग का निवेदन ! 
        बंधुओ !प्राचीन विज्ञान वर्षा संबंधी चालीस प्रतिशत अनुमान तो वर्षों पहले लगाया  सकता है जबकि तीस प्रतिशत अनुमान नौ महीने पहले से लेकर छै महीने पहले तक लगाया जा सकता है !किसान लोग हजारों वर्षों से उसी के आधार पर खेती करते चले आ रहे हैं फरवरी मार्च में तैयार होने वाली फसलें कैसी होंगी इसका पूर्वानुमान लगा लिया करते थे उसी के आधार पर फसलों की तैयारियाँ किया करते थे । इसी प्रकार से मार्च अप्रैल में तैयार होने वाली रवि की फसल के समय यदि किसानों  को इस बात का पता लग पावे कि अक्टूबर नवंबर में होने वाली खरीफ की फसल कैसी होगी तो वो उसी हिसाब से आनाज एवं पशुओं के चारे का संग्रह मार्चअप्रैल में ही करके चलें इसके लिए आवश्यक है कि वर्षाऋतु में होने वाली कम या अधिक वर्षा का अनुमान उन्हें मार्चअप्रैल में ही लग सके !किंतु आधुनिक मौसम विज्ञान के पास ऐसी कोई विधा नहीं है कि वो इतने पहले से किसानों को कोई सटीक जानकारी दे सके । इसलिए आवश्यक है कि इन विषयों में प्राचीन विज्ञान का सहयोग लिया जाए !इसी संकल्प के साथ "राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान" की पहल का न केवल स्वागत किया जाना चाहिए अपितु आर्थिक मदद भी करें !
     बंधुओ !सामूहिक रूप से फैलने वाली बीमारियों के विषय में एक रहस्य और समझा जाना चाहिए कि जिस समय जिन चीजों कमी या अधिकता से जो बीमारियाँ होनी होती हैं उस समय उन तत्वों की कमी या अधिकता ऐसी बीमारियों के प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होने से लगभग तीस तीन पहले से सारे संसार में ही होने लगती है जिस तत्व की कमी से जो बीमारी होती है उस तत्व की कमी प्रायः सबमें होने लगती है चाहें वो वातावरण हो वायुमंडल हो शरीर हों या उस तत्व को बढ़ाने वाली बनस्पतियाँ हो उनमें भी उनमें में भी उस तत्व की कमी हो जाती है जिससे वो बीमारी ठीक हो सकती है जैसे तुलसी की पत्ती का रस यदि मलेरिया बुखार को ठीक करता है तो जब किसी एक दो को मलेरिया बुखार होगा तब तो उससे लाभ हो जाएगा क्योंकि वो बीमारी होती है किंतु जब बहुत लोगों को मलेरिया हो जाएगा तो इसका मतलब वातावरण में ही उस तत्व की कमी आ गई है ऐसे में तुलसी में भी वो तत्व घट जाएगा इसलिए तुलसी के रस से लाभ नहीं होगा !वो तत्व घटता सबमें समान रूप से है किंतु लोगों के शरीर भी तो एक जैसे नहीं होते हैं कुछ कमजोर होते हैं तो कुछ बलिष्ट होते हैं जिन शरीरों में वो तत्व पहले से ही अधिक मात्रा में विद्यमान रहता है घटता तो उनका भी है किंतु तब भी इतना तो बना रहता है जिससे कि वे बीमार नहीं होने पाते और जिन शरीरों में उस तत्व की कमी पहले से ही होती है वे उतनी कमी में बीमार हो जाते हैं !ऐसे लोगों को स्वस्थ करने की औषधि देते समय ये याद रखा जाना चाहिए कि उस समय सीमा से पहले की राखी हुई तुलसी यदि ऐसे लोगों को दी जाए तो स्वस्थ हो सकते हैं अन्यथा जब तक उस तरह का समय रहता है तब तक वो बीमारी खिंचती चली जाती है ऐसी परिस्थिति में प्राचीन विज्ञान के आधार पर भविष्य संबंधी  अनुसंधान किया जाए इतना सहयोग अवश्य मिल जाएगा कि बीमारियाँ आने से पहले ही बीमारियाँ होने के मौसम का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और औषधियों का संग्रह भी उस समय के प्रारम्भ होने से तीस दिन पहले किया जा सकता है जो रोगों पर नियंत्रण कर सकने में सक्षम होंगी ।
इसी प्रकार से -

Thursday 14 January 2016

बीजेपी, RSS के भय से गायब है लालू जी की नींद ! बेचारों को सोने में डर लगता है भयभीत हैं भाजपायी खटमलों से !

"लालू बोले- खटमल की तरह हैं बीजेपी, RSS "
 किंतु लालू जी ! भ्रष्टाचारियों को नींद नहीं आती तो उन्हें खटमल लगते हैं भाजपा आरएसएस !चोरों लुटेरों घोटाले बाजों को अतीत के  अपने दुष्कर्मों के कारण नींद नहीं आ रही है इसमें भाजपा आरएसएस का क्या दोष !  लालू जी !  आपका नौवीं पास बेटा करोड़ों पति कैसे हो गया !बिहार के दलित और पिछड़े आज भी गरीब क्यों हैं ?लालू जी ! घर भरते हो अपना और नारे लगाते हो दलितों पिछड़ों के ,आपने किसी दलित या अल्प संख्यक को कभी क्यों नहीं दिया अपनी पार्टी का अध्यक्ष ,या मुख्यमंत्री का पद ! आपने आवश्यकता पड़ने पर योग्यता एवं अनुभव विहीन पत्नी को तो बना दिया मुख्य मंत्री किन्तु योग्य और अनुभवी किसी दलित या अल्प संख्यक को क्यों नहीं ? जहाँ तक बात आरएसएस की है तो संघ सेवा संगठन है जिसमें त्याग और बलिदान की संस्कृति है!लालू जी !आपके गण बिहार की जनता को जीने नहीं दे रहे हैं रोज कोई न कोई घटना सुनाई पड़ती है आप इन्हें सँभाल कर रखिए अन्यथा आपको खटमल लगने वाले बीजेपी, RSS वहाँ भी चुप नहीं बैठेंगे चुनाव जीतने का मतलब ये तो नहीं है कि आप बिहार बासी भाई बहनों को तंग करेंगे तो ये खटमल तुम्हें चैन से सोने नहीं देंगे ।


Wednesday 13 January 2016

केजरीवाल जी देखते हैं 'निंदामंत्रालय' !केवल मोदी सरकार की निंदा करने की लेते हैं सैलरी !

  केजरीवाल का ऐसा बयान !जो चुनाव जीते वो सम्मानित और न जीते तो .....!      इसका मतलब ये तो कतई नहीं है कि जो चुनाव लड़े न या जीते न वो सम्मानित नहीं है बड़े बड़े नेताओं को चुनावों में हारते देखा जाता है और बड़े बड़े बदमाशों को जीतते देखा जाता है अगर कोई गुंडा किसी क्षेत्र में घोषणा कर देता है कि यदि मैं चुनाव नहीं जीता तुमसे बाद में निपटूँगा तो वोटर घबड़ाकर उसे वोट दे देता है इसका मतलब क्या वो सम्मानित हो गया !
 निकम्मे मुख्यमंत्री का निकम्मा प्लान है ऑड - इवेन फार्मूला ! यह दिल्लीवालों की स्वतन्त्र जीवन शैली में रोड़ा है !जो व्यापारी कर्मचारी सुबह आफिस चले जाते हैं शाम घर लौट आते हैं उनसे कैसे फैलता है प्रदूषण ?दिल्लीवासियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सँभालने वाली पुलिस को ब्यर्थ के कामों में फँसाया जा रहा है !
   भारत का पहला मुख्यमंत्री जिसके पास कोई काम अर्थात मंत्रालय नहीं है फिर भी सैलरी लेता है और जैसे खाली बैठा दूकानदार अपने 'बाँट' ही तौलता रहता है उसी प्रकार का है केजरीवाल का ऑड - इवेन फार्मूला !जलभराव रोकने के लिए जैसे पेशाब करना ही बंद करा दिया जाए उस प्रकार का है दिल्ली सरकार का ऑड - इवेन फार्मूला !एक ऐसा मुख्यमंत्री जो चलनी में गाय दुहता है किंतु जब दूध फैलता है तो केंद्र सरकार को दोषी ठहराता है ।
    निकम्मा शब्द का अर्थ होता है जिसके पास कोई काम न हो ! भारतवर्ष के इतिहास में किसी को यदि 'निकम्मामुख्यमंत्री'  चुनना हो तो केजरीवाल जी का नाम बड़े आदर पूर्वक लिया जा सकता है दिल्ली सरकार में केजरीवाल जी के पास कोई मंत्रालय नहीं हैं और केजरीवाल जिस निंदामंत्रालय का काम देखने के लिए पार्टी के द्वारा केजरीवाल जी गॉड लिए गए हैं  दिल्ली सरकार में वो मंत्रालय नहीं होता है ये कैसी बिडम्बना है कि जिस निंदा गुण से पार्टी सत्ता में आई 63 बेरोजगार लोगों को रोजगार मिला आज भी इसी गुण के द्वारा केंद्र में पहुँचने के सपने देखे जा रहे हैं उस निंदागौरव  के लिए केजरीवाल सरकार में कोई स्थान ही नहीं है उचित तो ये है कि दिल्ली सरकार में होना चाहिए एक 'निंदामंत्रालय' और उसकी जिम्मेदारी सँभालें केजरीवाल जी ! 
    निकम्मे मुख्यमंत्री का निकम्मा प्लान !ये मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल की पहली बड़ी उपलब्धि है जो दिल्ली वालों की दिनचर्या में रोड़ा लगा रही है ।प्रदूषण इससे रुकेगा या नहीं ये तो समय ही बताएगा किंतु दिल्ली इससे जरूर रुकती दिखाई दे रही है !निकम्मा शब्द का अर्थ होता है जिसके पार कोई काम न हो ,भारत के पहले मुख्यमंत्री हैं केजरीवाल जिनके पार किसी मंत्रालय की जिम्मेदारी नहीं है फिर भी मुख्यमंत्री हैं सैलरी लेते हैं ।
 अरे केजरी वाल जी ! प्रदूषण कम करने के लिए रोड रोकने नहीं अपितु बनाने होते हैं रोड बनाने और अतिक्रमण हटाने से घटेगा प्रदूषण !इसीलिए तो मोदी जी रोड बना रहे हैं और आप रोड रोक रहे हैं । रोड बनने से जाम घटेगा तब हटेगा प्रदूषण !केजरीवाल जी !रोडों  से अतिक्रमण हटवाइए स्वतः रुक जाएगा प्रदूषण !मुख्यमंत्री जी !आपका ऑड - इवेन फार्मूला तो बिलकुल उस ढंग की व्यवस्था है कि जलभराव रोकने के लिए पेशाब करना ही बंद करा दिया जाए ! 
    फूल क्यों बँटवा रहे हैं आप !अरे दिल्ली के नौसिखिया मुख्यमंत्री जी ! इसमेंशर्मिंदा होने की बात ही क्या है आजतक तो आप भी ऐसे ही चलते रहे जब आप कभी शर्मिंदा नहीं हुए तो दिल्ली वाले आज शर्मिंदा क्यों हों !मुख्य मंत्री जी !आपने अपने निजी जीवन में पहले कभी पालन किया ऑड इवेन फार्मूले का !और यदि नहीं तो आज अचानक इतना पसंद क्यों आ गया आपको ये फार्मूला केजरी वाल जी !
     अरे केजरी वाल जी ! मोदी जी से कुछ सीखिए कि प्रदूषण से कैसे निपटा जाए !प्रदूषण से मुक्ति के लिए ही मोदी जी रास्ता बना रहे हैं तो केजरीवाल जी  आप रास्ता रोक रहे हैं ! अपने अपने संस्कार ! RSS  और अन्ना हजारे के संस्कारों में इतना बड़ा अंतर है ! प्रदूषण कम करने के लिए मोदी जी ने  RSS  के संस्कारों से रोड बनाना सीखा है रास्ता साफ करना सीखा है जब रास्ते खुले होंगे तब तो जाम नहीं लगेगा और जाम में जो स्टार्ट बाहन घंटों फँसे रहते हैं वे फँसेंगे नहीं तो कैसे होगा धुआँ और कैसे बढ़ेगा प्रदूषण !
    मोदी जी इधर रास्ता बना रहे हैं तो दूसरी ओर केजरीवाल जी रास्ता रोक रहे हैं । बंधुओ !'आप'के ऑड इवेन फार्मूले से क्या धुआँ नहीं होगा क्या प्रदूषण नहीं फैलेगा !जिस दिन जिस नम्बर की गाड़ी का टर्न होगा वो एक की जगह दो चक्कर लगा लेगी !तो इससे प्रदूषण कम कैसे हो जाएगा !   
  ऑड- इवन फॉर्मूला है या दाँव ? जिन व्यापारियों ,अफसरों को केवल आफिस जाना-आना ही होता है उनसे कैसे बढ़ता है प्रदूषण ! 
केजरीवाल सरकार चाहती  तो रोडों और गलियों का अतिक्रमण हटाकर भी  जाम घटा सकती थी और जाम हटते ही समाप्त हो सकता था प्रदूषण ! रोडों और गलियों में जाम खुलने की प्रतीक्षा में घंटों  खड़े रहते हैं स्टार्ट बाहन,दिल्ली सरकार ने उसके लिए क्याकिया है ?
     विधायकों की सैलरी बढ़ाने से  डरे हुए केजरीवाल ने जनता की  गालियों  से बचने तथा जनता का ध्यान भटकाने के लिए केजरीवाल ने खेला है ये  ऑड  -  इवन दाँव !
अरे नौसिखिए मुख्यमंत्री !अगर दूसरों की निंदा चुगली से समय हो तो हिम्मत करके रोडों पर से अवैध निर्माण हटवाइए रोड़ों को अतिक्रमण मुक्त कराइए !फिर देखिए कहाँ है प्रदूषण !घंटों के लगते हैं जाम उन्हें खुलवाइए ! दिल्ली में जाम की सबसे बड़ी समस्या है रोडों पर अवैध निर्माण दिल्ली की लगभग सभी जगहों पर हैं जो ओड बचे भी है उनमें भी दुकानदार लोग दुकानों के बाहर रोडों पर दूर दूर तक फैला लेते हैं सामान !तो निकलने का रास्ता बिलकुल नहीं बचता है वहाँ कई कई घंटे तक फँसे रहते हैं बाहन !कई बार तो ऐसा होता है कि कुछ बाहन जिनके जाने का रास्ता ही आधे घंटे का होता है वे घंटों फंसे रहते हैं । ऐसी रोडों से बचने के लिए लोग गलियों में घुसने लगे हैं कि गलियां खली होंगी किंतु गलियों में उससे अधिक जाम होता है !कहाँ जाएं बाहन ? जहाँ तक ये  ऑड  -  इवन फॉर्मूला है ये बिलकुल बेहूदा है !यदि जाम न खुला प्रदूषण ख़त्म होना नहीं है तो क्या रोडें बिलकुल खाली करवा दी जाएंगी ?   ये बिल्कुल बेहूदा बिलकुल बकवास बिलकुल अप्रासंगिक बिलकुल अतार्किक बिलकुल हास्यास्पद बिलकुल अदूरदर्शी बिलकुल रोलबैक  करने वाला है । केजरीवाल भी इस सच्चाई को अच्छे ढंग से जानते होंगे कि ये चल नहीं पाएगा फिर भी विधायकों की सैलरी बढ़ाने का बिल पास किया था उन्हें पता था कि इस हरकत पर जनता जम कर  गालियाँ देगी कि अभी तक तुम बड़े त्यागवीर सादगी पसंद अादि बने रहे और अब सत्ता पाते ही  कँगलों की  तरह  पैसे पर टूट पड़े !विज्ञापन से लेकर सैलरी तक केवल दरिद्रता !बस दिल्ली की जनता को भटकने के लिए लाया गया ये ऑड  -  इवन फॉर्मूला !

अपने नौसिखिया मुख्यमंत्री की गलतियों के लिए दिल्ली वाले किस किस से माफी माँगें !उधर "केजरीवाल के जाँच आयोग को LG साहब ने बता दिया है  अवैध! उधर प्रधान मंत्री जी के लिए अपशब्द बोलने के बाद सब तो सब लोग कहने लगे हैं कि इन्हें बातचीत की तमीज नहीं है बारे केजरीवाल !
 "केजरीवाल के जाँच आयोग को LG ने बताया अवैध !-एक खबर "
        किंतु केजरीवाल जैसे नौसिखिया राजनेता को वैध अवैध क्या पता ये तो उसे पता हो जिसने  पहले कभी सरकार चलते देखी हो अखवार पढ़े हों नियम कानून पता हों !ये तो CM शीला जी की निंदा करके CM बने हैं अब PM की निंदा करके PM बनना चाह रहे हैं !जानकारी कुछ है नहीं किसी को कुछ भी बोल जाते हैं दिल्ली वाले इनकी मूर्खता के लिए कहाँ तक माफी माँगें ! केजरीवाल हैं कि मानने का नाम ही नहीं ले रहे हैं अपने को प्रधान मंत्री मान बैठे हैं और अपनी अज्ञानता के कारण कभी PM को ऊटपटांग बोलते हैं कभी LGको कभी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को !देखो दिल्ली वाले कब तक ढो  पाते हैं इन्हें !तब तक के लिए सभी अरुण जेटली नरेंद्र मोदी आदि सभी संभ्रांत शालीन नेताओं से निवेदन है कि माफ कर  देना इस अनाड़ी दिल्ली के मुख्य मंत्री को !