भूकंप के विषय में दो शब्द -
भूकंप जब जहाँ कहीं भी आते हैं वहाँ सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता है चारों ओर हाहाकार मच जाता है अक्सर जब भूकंप आते हैं छोटे से लेकर बड़े तक बहुत नुक्सान होते देखे जाते हैं टीवी चैनलों पर गिरते हुए मकान फटी धरती टूटे पेड़ आदि के दृश्य वीडियो आदि दिखाए जा रहे होते हैं !आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा बार बार बताया जा रहा होता है कि भूकंप का केंद्र कहाँ था , कितना तीव्र था कितनी गहराई पर था कितने बजे आया था इसके अलावा फिर वही घिसी पिटी बातें कि जमीन के अंदर गैसें भरी हैं गैसों के दबाव से जमीन के अंदर की प्लेटें रगड़ती हैं उसी से आता है भूकंप ! वो लोग दूसरी बात बताते हैं डेंजर जोन वाली हर बार जरूर बताते हैं !चौथी बात ये कहना कभी नहीं भूलते कि निकट भविष्य में बहुत बड़ा भूकंप आएगा क्योंकि हिमालय के नीचे गैसों का भारी भंडार है |
वैज्ञानिकों के द्वारा अत्यंत विश्वास पूर्वक कही जाने वाली ऐसी बातें सुन पढ़ कर बड़ा आश्चर्य तब होता है जब एक बार तो विश्वसनीय सी लगने वाली ऐसी बातें बड़े आत्मविश्वास पूर्वक कही जाती हैं वहीँ दूसरी ओर जब अचानक ये कहा जाने लगता है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता | तब सबसे बड़ा संशय इस बात का होता है कि इन दोनों बातों में सच्चाई आखिर है क्या है ?भूकंपों के विषय में कुछ पता है भी या नहीं या फिर धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों वाली बातें भी केवल कल्पनामात्र हैं यदि ऐसा तो भूकंपों के विषय का सच क्या है |
भूकंपों के आने कारण धरती के अंदर संचित गैसों और उसके दबाव से रगड़ने वाली प्लेटों को तब तक नहीं माना जाना चाहिए जब तक उनके द्वारा दिए जा रहे तर्कों का पीछा काल्पनिकता नहीं छोड़ती है |अर्थात भूकंपों के विषय में उनके द्वारा दी जा रही गैसों और प्लेटों की थ्यौरी ही भूकंपों के आने का वास्तविक कारण है या कुछ और ये भी वास्तविक तर्कों से सिद्ध किया जाना चाहिए ! आधुनिक विज्ञान यदि इन्हीं गैसों और प्लेटों को भूकंपों के घटित होने का वास्तविक कारण मानता है तो इस थ्योरी को भी तर्कों के द्वारा और अधिक विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए !
सरकारों में भूकंपों से संबंधित मंत्रालय होते हैं अधिकारियों कर्मचारियों की बड़ी संख्या होती है कितना धन खर्च होता होगा इस व्यवस्था पर !इन्हीं भूकंपों के विषय में रिसर्च करने के लिए विश्व के बहुत संस्थान बड़ी बड़ी धनराशि खर्च करके बड़े बड़े शोध कार्य चला रहे होते हैं बहुत धन राशि खर्च होती होगी !इसी प्रकार से विश्व के बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में भूकंप अध्ययन अध्यापन के विभाग होते हैं शिक्षक होते हैं छात्र होते हैं शिक्षक गण भूकंपों को पढ़ा भी रहे होते हैं और विद्यार्थीगण पढ़ भी रहे होते हैं किंतु भूकंपों के विषय में जब विश्वास पूर्वक कुछ कहने की बारी आती है तब वही बात कि भूकंपों के पूर्वानुमान के विषय में कुछ कहना संभव नहीं है !फिर वही प्रश्न कि ऐसी परिस्थिति में गैसों और प्लेटों की थ्यौरी को ही को ही किस आधार पर सच मान लिया जाए !काल्पनिक सच पर शोध कैसा और पठन पाठन कैसा और क्या है इसका औचित्य ?ऐसे चिंतन में मैं निरंतर डूबा रहने लगा !चूँकि आधुनिक विज्ञान की समझ न होने के कारण आधुनिक विज्ञान की बारीकियाँ समझ पाने में सक्षम नहीं था !चूँकि मैंने आधुनिक विज्ञान पढ़ा नहीं है इसलिए आधुनिक शिक्षा से शिक्षित लोगों को मेरे मुख से भूकंप जैसी चर्चाएँ अच्छी नहीं लगती थीं |
इसके बाद मैंने पढ़ा कि भूकंप आने से पहले कुछ जीवों के स्वभावों में परिवर्तन आने लगता है !उधर जगदीश चंद वसु के वृक्ष विज्ञान पर भरोसा करते हुए मैंने वैदिक विज्ञान का स्वाध्याय प्रारंभ किया जिसमें वेद आयुर्वेद वनस्पतिविज्ञान स्वभावविज्ञान ज्योतिषविज्ञान योगविज्ञान आदि का गहन अध्ययन और मंथन करते हुए ऐसे सभी प्रकार से वैदिक ज्ञान और विज्ञान का अध्ययन करते हुए मैंने ब्रह्मांड को सविधि समझने का प्रयास किया !
मैंने पढ़ा था कि 'यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे' अर्थात जैसा ब्रह्मांड है वैसा ही शरीर है इसलिए ब्रह्मांड को सही सही समझने के लिए सर्व प्रथम अपने शरीर को समझना होगा इसके बाद शरीर को आधार बनाकर उसी के अनुशार ही ब्रह्मांड का अध्ययन किया जा सकता है और ब्रह्मांड के रहस्य में प्रवेश पाते ही भूकंप वर्षा एवं रोग और मनोरोग जैसे गंभीर विषयों की गुत्थियाँ सुलझाने में सफलता सकती है इसीविचार से मैं भूकंप से संबंधित रिसर्च विषयक अपने प्रयासों को आगे बढ़ाते चला गया !
भूकंप जब जहाँ कहीं भी आते हैं वहाँ सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता है चारों ओर हाहाकार मच जाता है अक्सर जब भूकंप आते हैं छोटे से लेकर बड़े तक बहुत नुक्सान होते देखे जाते हैं टीवी चैनलों पर गिरते हुए मकान फटी धरती टूटे पेड़ आदि के दृश्य वीडियो आदि दिखाए जा रहे होते हैं !आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा बार बार बताया जा रहा होता है कि भूकंप का केंद्र कहाँ था , कितना तीव्र था कितनी गहराई पर था कितने बजे आया था इसके अलावा फिर वही घिसी पिटी बातें कि जमीन के अंदर गैसें भरी हैं गैसों के दबाव से जमीन के अंदर की प्लेटें रगड़ती हैं उसी से आता है भूकंप ! वो लोग दूसरी बात बताते हैं डेंजर जोन वाली हर बार जरूर बताते हैं !चौथी बात ये कहना कभी नहीं भूलते कि निकट भविष्य में बहुत बड़ा भूकंप आएगा क्योंकि हिमालय के नीचे गैसों का भारी भंडार है |
वैज्ञानिकों के द्वारा अत्यंत विश्वास पूर्वक कही जाने वाली ऐसी बातें सुन पढ़ कर बड़ा आश्चर्य तब होता है जब एक बार तो विश्वसनीय सी लगने वाली ऐसी बातें बड़े आत्मविश्वास पूर्वक कही जाती हैं वहीँ दूसरी ओर जब अचानक ये कहा जाने लगता है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता | तब सबसे बड़ा संशय इस बात का होता है कि इन दोनों बातों में सच्चाई आखिर है क्या है ?भूकंपों के विषय में कुछ पता है भी या नहीं या फिर धरती के अंदर की गैसों और प्लेटों वाली बातें भी केवल कल्पनामात्र हैं यदि ऐसा तो भूकंपों के विषय का सच क्या है |
भूकंपों के आने कारण धरती के अंदर संचित गैसों और उसके दबाव से रगड़ने वाली प्लेटों को तब तक नहीं माना जाना चाहिए जब तक उनके द्वारा दिए जा रहे तर्कों का पीछा काल्पनिकता नहीं छोड़ती है |अर्थात भूकंपों के विषय में उनके द्वारा दी जा रही गैसों और प्लेटों की थ्यौरी ही भूकंपों के आने का वास्तविक कारण है या कुछ और ये भी वास्तविक तर्कों से सिद्ध किया जाना चाहिए ! आधुनिक विज्ञान यदि इन्हीं गैसों और प्लेटों को भूकंपों के घटित होने का वास्तविक कारण मानता है तो इस थ्योरी को भी तर्कों के द्वारा और अधिक विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए !
सरकारों में भूकंपों से संबंधित मंत्रालय होते हैं अधिकारियों कर्मचारियों की बड़ी संख्या होती है कितना धन खर्च होता होगा इस व्यवस्था पर !इन्हीं भूकंपों के विषय में रिसर्च करने के लिए विश्व के बहुत संस्थान बड़ी बड़ी धनराशि खर्च करके बड़े बड़े शोध कार्य चला रहे होते हैं बहुत धन राशि खर्च होती होगी !इसी प्रकार से विश्व के बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में भूकंप अध्ययन अध्यापन के विभाग होते हैं शिक्षक होते हैं छात्र होते हैं शिक्षक गण भूकंपों को पढ़ा भी रहे होते हैं और विद्यार्थीगण पढ़ भी रहे होते हैं किंतु भूकंपों के विषय में जब विश्वास पूर्वक कुछ कहने की बारी आती है तब वही बात कि भूकंपों के पूर्वानुमान के विषय में कुछ कहना संभव नहीं है !फिर वही प्रश्न कि ऐसी परिस्थिति में गैसों और प्लेटों की थ्यौरी को ही को ही किस आधार पर सच मान लिया जाए !काल्पनिक सच पर शोध कैसा और पठन पाठन कैसा और क्या है इसका औचित्य ?ऐसे चिंतन में मैं निरंतर डूबा रहने लगा !चूँकि आधुनिक विज्ञान की समझ न होने के कारण आधुनिक विज्ञान की बारीकियाँ समझ पाने में सक्षम नहीं था !चूँकि मैंने आधुनिक विज्ञान पढ़ा नहीं है इसलिए आधुनिक शिक्षा से शिक्षित लोगों को मेरे मुख से भूकंप जैसी चर्चाएँ अच्छी नहीं लगती थीं |
इसके बाद मैंने पढ़ा कि भूकंप आने से पहले कुछ जीवों के स्वभावों में परिवर्तन आने लगता है !उधर जगदीश चंद वसु के वृक्ष विज्ञान पर भरोसा करते हुए मैंने वैदिक विज्ञान का स्वाध्याय प्रारंभ किया जिसमें वेद आयुर्वेद वनस्पतिविज्ञान स्वभावविज्ञान ज्योतिषविज्ञान योगविज्ञान आदि का गहन अध्ययन और मंथन करते हुए ऐसे सभी प्रकार से वैदिक ज्ञान और विज्ञान का अध्ययन करते हुए मैंने ब्रह्मांड को सविधि समझने का प्रयास किया !
मैंने पढ़ा था कि 'यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे' अर्थात जैसा ब्रह्मांड है वैसा ही शरीर है इसलिए ब्रह्मांड को सही सही समझने के लिए सर्व प्रथम अपने शरीर को समझना होगा इसके बाद शरीर को आधार बनाकर उसी के अनुशार ही ब्रह्मांड का अध्ययन किया जा सकता है और ब्रह्मांड के रहस्य में प्रवेश पाते ही भूकंप वर्षा एवं रोग और मनोरोग जैसे गंभीर विषयों की गुत्थियाँ सुलझाने में सफलता सकती है इसीविचार से मैं भूकंप से संबंधित रिसर्च विषयक अपने प्रयासों को आगे बढ़ाते चला गया !
No comments:
Post a Comment