प्रथम अध्याय - भूकंप संबंधी पूर्वानुमानों की खोज कहाँ कहाँ की जाए -
भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमानों के लिए अधिकाँश देश अपने अपने स्तर से जी जान लगाए हुए हैं इसके लिए सरकारों ने अलग मंत्रालय बना रखे हैं भूकंपों के विषय में पता लगाने के लिए अधिकारी कर्मचारी हैं भूकंप वैज्ञानिक हैं शिक्षण संस्थान हैं रिसर्च इंस्टीट्यूट हैं विश्व विद्यालयों में डिपार्टमेंट हैं और भूकंपों के विषय की पढ़ाई भी होती है प्रोफेसर पढ़ाते हैं छात्र पढ़ते हैं ! ऐसे सभी प्रकार के प्रयासोंमें सरकारें भारी भरकम धनराशि का व्यय करती हैं इस दिशा में सभी के द्वारा किए जाने वाले सभी प्रकार के प्रयास प्रशंसनीय हैं किंतु इन प्रयासों के परिणाम अर्थात भूकंप संबंधी सही पूर्वानुमान आने से पहले केवल प्रयासों को ही सच कैसे मान लिया जाए !यदि ये लोग भूकंपों को वास्तव में समझ पाए होते और भूकंप संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए सही पद्धति पर आगे बढ़ रहे होते तो परिणाम कुछ तो सामने आने चाहिए थे भूकंप अनुसंधान यात्रा कुछ तो आगे बढ़ी होती !आखिर कितने वर्षों से भूकंप शोधयात्रा में हम एक ही जगह पर खड़े हुए हैं | भूकंपों के विषय में आखिर कब तक हम वही पाँच लाइनें दोहराते रहेंगे -भूकंप की तीव्रता कितनी थी केंद्र क्या था डेंजर जोन कौन कौन हैं अभी आफ्टर साक्स आते रहेंगे ! पृथ्वी के अंदर गैसों के दबाव से धरती के अंदर की प्लेटें हिलती हैं उससे आता है भूकंप !केवल इतने के लिए क्या ये मंत्रालय मंत्री शिक्षण संस्थान शिक्षक छात्र आदि की संपूर्ण पारिकल्पनाएँ हैं !यदि ऐसा हो तो भी पूर्वानुमानों के सही घटित होने से पहले इस सिद्धांत को सही कैसे मान लिया जाए तब तक तो ऐसी सभी बातें कोरी कल्पना मात्र ही हैं जो कोई भी कर सकता है इसमें विज्ञान है कहाँ और भूकंपों के विषय में किसी सही सिद्धांत का प्रतिपादन किए बिना केवल भरोसा करके किसी को भूकंप वैज्ञानिक कैसे स्वीकार कर लिया जाए !आखिर भूकंपों के विषय में कोई सटीक प्रमाणित और तर्कसंगत प्रस्तुति तो दिखे !
चूँकि पृथ्वी काँपती है इसलिए काँपने का कारण पृथ्वी के अंदर ही होगा ऐसा पूर्वाग्रह लेकर क्यों चलना !"यत्पिण्डे तत्ब्रह्माण्डे" के सिद्धान्त से तो शरीर और ब्रह्मांड की बनावट एक जैसी है यदि ऐसा है तो इनके अध्ययन की प्रक्रिया भी यथा संभव एक जैसी होनी चाहिए यदि इसे आधार मानकर चला जाएगा तब तो सामने खड़े किसी शेर के डर से या सर्दी से काँपते हुए व्यक्ति के अंदर भी ऊर्जा और गैसों का भारी भंडारण मान लिया जाना चाहिए और उसके शारीरिक कम्पन को उसी शरीरस्थ ऊर्जा का विस्फोट या प्रकटीकरण मान लिया जाना चाहिए !किंतु कितना उचित होगा यह ?
यदि मनुष्य में शेर का भय है तो इस असीम ब्रह्मांड में यह कैसे मन लिया जाए कि पृथ्वी स्वतंत्र हो न हो वो भी किसी के भय से काँपने लगती हो जिसे हम भूकंप कहते हैं भूकंप चिंतकों में बहुत विद्वानों का ऐसा मत भी है कि दैवी प्रकोप से भूकंप आता है उस बात को बिना तर्कों प्रमाणों साक्ष्यों के हवा में कैसे और क्यों उड़ा दिया जाए ?
सर्दी से ठिठुरता हुआ कोई जीव यदि काँपने लग सकता है तो इस संगति से पृथ्वी का अनुसंधान क्यों न किया जाए हो न हो पंचतत्वों का इस प्रकार का कोई असर पृथ्वी पर भी पड़ता हो !और उसी प्रभाव से काँपने लगती हो पृथ्वी !
यदि मान लिया जाए कि पृथ्वी निर्जीव है उस पर ये संगति नहीं बैठाई जा सकती तो समुद्र भी तो निर्जीव है उस पर भी तो चंद्र का प्रभाव पड़ता है और ज्वार भाटा उसी प्रभाव से आते हैं इस बात को भूकंप संबंधी अध्ययनों में सम्मिलित क्यों न किया जाए !सुना है कि सर्दी में रेल की पटरियाँ सिकुड़ जाती हैं आखिर वे भी तो निर्जीव हैं किंतु उन पर भी पंचतत्वों का प्रभाव तो पड़ता है फिर भूकंपों के विषय में अध्ययन करते समय इस बात को नकार कैसे और क्यों दिया जाए !
चंद्र ग्रहण का कारण चंद्र में नहीं होता सूर्य ग्रहण का कारण सूर्य में नहीं होता ज्वार भाँटा का कारण समुद्र में नहीं होता तो ऐसी परिस्थिति में पंचतत्वों के अन्योन्याश्रित प्राकृतिक सिद्धांतों में पृथ्वी के काँपने के कारण केवल पृथ्वी के अंदर ही क्यों खोजा जाए !
जहाँ तक बात पृथ्वी के अंदर की गैसों की है या पृथ्वी के अंदर की अग्नि की है तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये गैसें और अग्नि पृथ्वी के लिए कोई अतिरिक्त पदार्थ नहीं हैं ये तो वायु पृथ्वी की बनावट में सम्मिलित पृथ्वी के अभिन्न अंग ही हैं जिनके कारण पृथ्वी का पृथ्वीत्व बना और बचा हुआ है जिन्हें पृथ्वी हमेंशा धारण किए रहती है इसलिए उन गैसों और पृथ्वी की गर्भगत वायु को भूकंपों के आने का कारण कैसे माना जा सकता है |
मनुष्य शरीर की बनावट भी तो पृथ्वी की तरह ही है इसमें पाचक पित्त ही आग है जो कैसे भी भोजन को पचा देता है ज्वर में शरीर को गर्म करने वाला पित्त ही तो है -
" 'ऊष्मा पित्तादृते नास्ति ज्वरो नास्त्यूषमणा बिना"
चूँकि शरीर के अंदर आग(पित्त) है और जल भी है उसी प्रकार से जैसे पृथ्वी के अंदर गर्म और ठंडी दोनों वस्तुएँ विद्यमान रहती हैं गर्म और ठंडी दोनों वस्तुएँ जहाँ एक साथ एकत्रित होती हैं तो ठंडी का प्रभाव अधिक होता है तो गर्म को ठंडा कर लेती है और गर्म का प्रभाव अधिक होता है तो ठंडा को गर्म कर लेती है इसी प्रक्रिया में भाफ बनती है जो पृथ्वी के पेट में भरी गैस है उसी प्रकार मनुष्यादि के पेट में भी गैस का निर्माण होता है !जैसे पेट के अंदर गैस का संचय होता रहता है वैसे ही पृथ्वी के अंदर भी होता रहता है किंतु शरीर जब गैस का विसर्जन करता है तो शरीर नहीं काँपता है तो उसी गैस का विसर्जन करते समय पृथ्वी कैसे काँप सकती है !
इस प्रकार से जिस मत के समर्थन में तर्क प्रमाण एवं साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने अभी तक बाक़ी हैं उस मत को इतना महत्त्व कैसे दे दिया जाए कि उसे स्थापित सत्य की तरह प्रस्तुत किया जाने लगे !ये कहाँ तक न्यायोचित है !इस कल्पना प्रसूतमत को महत्त्व देते हुए इतनी बड़ी बड़ी बातें कर देना कहाँ तक तर्क संगत हैं !आधे अधूरे इस काल्पनिक सच के आधार पर इतनी बड़ी बड़ी बातें करना कहाँ तक न्यायसंगत है !
हाल ही में हिंदी के एक अखवार में मैंने एक लेख पढ़ा -
"धीरे-धीरे खिसक रहा हिमालय, दे रहा है बड़े भूकंप का संकेत !"
वैज्ञानिकों का कहना है "हिमालय अब धीरे-धीरे खिसक रहा है। जो भविष्य में आने वाले एक बड़े भूकंप का संकेत है। "यह बात वैज्ञानिकों ने वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में हिमालय के फॉल्ट जोन की स्थिति पर आयोजित व्याख्यान के दौरान कही।! उनका कहना है कि रामनगर व लालढांग के बीच वर्ष 1344 में हाई पावर का भूकंप आने का पता लगाया जा चुका है।भूकंपीय फॉल्ट अधिक ढालदार होने से भूगर्भ में भूकंपीय ऊर्जा निरंतर संचित हो रही है।उनका मानना है कि भूगर्भ में तनाव बढ़ रहा है। इससे सबसे बड़ा खतरा यह है कि इससे उच्च तीव्रता वाला भूकंप कभी भी आ सकता है।ऐसी बातों में कितनी सच्चाई है और क्या प्रमाण हैं इसके समर्थन में दिए जाने वाले साक्ष्य कितने तर्क संगत हैं !
इसलिए भूकंप क्यों आते हैं कब आते हैं इनके आने का वास्तविक कारण क्या है ये प्राकृतिक हैं या पर्यावरण संबंधी प्रदूषण के कारण आते हैं या जलाशयों के कारण आते हैं या ज्वालामुखियों के कारण आते हैं धरती पर पाप अधिक बढ़ने के कारण आते हैं या दैवी शक्तियों के क्रोध के कारण आते हैं प्राचीन शास्त्र वैज्ञानिक कश्यप ऋषि का मत है कि जल में रहने वाले बड़े प्राणियों के धक्के से भूकंप होता है !गर्ग ऋषि का मत है कि पृथ्वी के भर से थके हुए दिग्गजों के विश्राम करने से भूकंप आता है | वशिष्ठ ऋषि कहते हैं कि वायु एक दूसरे से टकराकर पृथ्वी पर गिरते हुए शब्द के साथ भूकंप करता है | वृद्ध गर्ग का मत है कि समाज में अधिक अधर्म फैलने से भूकंप आता है ! ज्योतिष विज्ञान मानता है कि वायु अग्नि इंद्र और वरुण शुभ और अशुभ फलों का संकेत करने के लिए कँपाते हैं पृथ्वी !आयुर्वेद का शीर्ष ग्रन्थ चरक संहिता का मत है कि प्रकुपित वायु के कारण आता है भूकंप !
इसी प्रकार से भूकंप के विषय में विभिन्न विचारकों के अलग अलग मत हैं -
प्राचीन काल में भूकंपों को दैवी प्रकोप समझा जाता रहा है !
शेषनाग ने अपने फन पर धारण कर रखी है पृथ्वी !
कुछ लोगों का मानना है कि 'पृथ्वी आठ हाथियों के सिरों पर रखी हुई है। जब कोई हाथी सिर हिलाता है तो भूकंप के झटके महसूस होते हैं।' बिल्कुल इसी तरह धरती कछुए की पीठ पर खड़े चार हाथियों पर टिकी है और वह कछुआ एक सांप के फन पर है। इनके हिलने पर भूकंप आता है।'
आयुर्वेद के शीर्ष आचार्य महर्षि चरक कहते हैं कि "ज्वार भाँटा और भूकंप दोनों के होने का कारण वायु है !"यदि ऐसा है तो समुद्र में आने वाले ज्वार भाँटा का कारण तो चंद्र को मानते हैं उसे समुद्र में नहीं खोजते हैं जबकि उसी प्रकार के वायुकृत भूकंप का कारण जमीन के अंदर संगृहीत गैसों को बताया जाता है क्यों ?
जलाशयों के कारण भी होते हैं भूकंप !
जापान के लोग मानते हैं कि धरती के भीतर मांजू नाम की एक विशाल कैटफिश है और इसी की वजह से भूकंप के झटके आते हैं।
ग्रीक की पौराणिक कथाओं में माना जाता है कि धरती पर जब कुछ बुरा घटता है तो देवता दंड के तौर पर बिजली पैदा करते हैं और इससे धरती कांपने लगती है।
अरस्तू ने भूकंप के संबंध में कहा था, 'जमीन के अंदर की गुफाओं में हवाओं के बहने एवं निकलने से आता है भूकंप।
ज्वालामुखियों के फटने के कारण भी भूकम्प आते हैं।इनके दो कारण होते हैं टेक्टोनिक दोष तथा ज्वालामुखी में लावा की गतियां.ऐसे भूकंप ज्वालामुखी विस्फोट की पूर्व चेतावनी हो सकते हैं।
जलाशय जनित दबाव के कारण भी भूकम्प आते हैं।
ओविड नाम के रोमन कवि ने कहा था कि धरती के सूर्य के करीब आने से भूकंप आता है। क्योंकि सूर्य की विस्मयी विकिरणों से धरती कांपने लगती है।
16वीं और 17वीं शताब्दी में लोगों का अनुमान था कि पृथ्वी के अंदर रासायनिक कारणों से तथा गैसों के विस्फोटन से भूकंप होता है।
1874 ई में वैज्ञानिक एडवर्ड जुस ने अपनी खोजों के आधार पर कहा था कि भूकंप भ्रंश की सीध में भूपर्पटी के खंडन या फिसलने से होता है ।
गाँधी जी भूकंपों के आने का कारण नैतिकता का पतन और पाप की बृद्धि मानते थे !
टैगोर जी भूकंपों को प्राकृतिक घटना मात्र मानते थे !
18वीं शती में यह विचार पनप रहा था कि पृथ्वी के अंदरवाली गुफाओं के अचानक गिर पड़ने से भूकंप आता है।
18वीं शती में भूकंपों का कारण ज्वालामुखी समझा जाने लगा था, परंतु हिमालय पर्वत में कोई ज्वालामुखी नहीं है, परंतु हिमालय क्षेत्र में गत सौ वर्षो में अनेक भूकंप हुए हैं।
हैरी फील्डिंग रीड के अनुशार -"भूपर्पटी पर नीचे से कोई बल लंबी अवधि तक कार्य करे, तो वह एक निश्चत समय तथा बिंदु तक (अपनी क्षमता तक) उस बल को सहेगी और उसके पश्चात् चट्टानों में विकृति उत्पन्न हो जाएगी।ऐसे में भी यदि बल कार्य करता रहेगा तो चट्टानें टूट जाएँगी। इससे भूकंप गति बनानेवाली ऊर्जा चट्टानों में प्रत्यास्थ विकृति ऊर्जा के रूप में संचित होती रहती है। टूटने के समय चट्टानें भ्रंश के दोनों ओर अविकृति की अवस्था के प्रतिक्षिप्त प्रत्यास्थ ऊर्जा भूकंपतरंगों के रूप में मुक्त होती है।
पृथ्वी के शीतल होने का सिद्धांत - भूकंप के कारणों में प्राचीन विचार पृथ्वी का ठंढा होना भी है। पृथ्वी के अंदर अधिक गहराई में भूपपर्टी के ठोस होने के बाद भी कोई अंतर नहीं आया है। पृथ्वी अंदर से गरम तथा प्लास्टिक अवस्था में है और बाहरी सतह ठंडी तथा ठोस है। यह बाहरी सतह भीतरी सतहों के साथ ठीक ठीक से नहीं बैठती तथा निपतित होती है और इस तरह से भूकंप होते हैं।
समस्थितिसिद्धांत -इसके अनुसार भूतल के पर्वत एवं सागर धरातल एक दूसरे को तुला की भाँति संतुलन में रखे हुए हैं। जब क्षरण आदि द्वारा ऊँचे स्थान की मिट्टी नीचे स्थान पर जमा हो जाती है, तब संतुलन बिगड़ जाता है तथा पुन: संतुलन रखने के लिये जमाववाला भाग नीचे धँसता है और यह भूकंप का कारण बनता है
महाद्वीपीय विस्थापन प्रवाह सिद्धांत --(Continental drift) -अभी तक अनेकों भूविज्ञानियों ने महाद्वीपीय विस्थापन पर अपने अपने मत प्रतिपादित किए हैं। इनके अनुसार सभी महाद्वीप पहले एक पिंड थे, जो पीछे टूट गए और धीरे धीरे विस्थापन से अलग अलग होकर आज की स्थिति में आ गए। इसके अनुसार जब महाद्वीपों का विस्थापन होता है तब पहाड़ ऊपर उठते हैं और उसके साथ ही भ्रंश तथा भूकंप होते हैं।
रेडियोऐक्टिवता सिद्धांत -- रेडियोऐक्टिव ऊष्मा जो महाद्वीपों के आवरण के अंदर एकत्रित होती हैइसकी ऊष्मा जब मुक्त होती है तब महाद्वीपों के अंदर की चीजों को पिघला देती है तब घटित होते हैं भूकंप।
संवहन धारा सिद्धांत -अनेक सिद्धांतों में यह प्रतिपादित किया गया है कि पृथ्वी पर संवहन धाराएँ चलती हैं। इन धाराओं के परिणामस्वरूप सतही चट्टानों पर कर्षण होता है। ये धाराएँ रेडियोऐक्टिव ऊष्मा द्वारा संचालित होती हैं। परिणामस्वरूप विकृति धीरे धीरे बढ़ती जाती है। कुछ समय में यह विकृति इतनी अधिक हो जाती है कि इसका परिणाम भूकंप होता है।
उद्गम केंद्र और अधिकेंद्र सिद्धांत - भूकंप का उद्गम केंद्र पृथ्वी के अंदर वह विंदु है जहाँ से विक्षेप शुरू हाता है। अधिकेंद्र पृथ्वी की सतह पर उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर का बिंदु है।
आधुनिक विज्ञान का मानना है कि भूकंप अक्सर भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं। भूकंप प्राकृतिक घटना या मानवजनित कारणों से भी हो सकता है। धरती या समुद्र के अंदर होने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के कारण भी हो सकते हैं भूकंप आने के !
इन सबके साथ साथ भूकंपों के आने के कारणों के विषय में सर्वाधिक प्रचारित मत तो यही है जिसे जन जन जानता है कि पृथ्वी के अंदर गैसों के दबाव से धरती के अंदर की प्लेटें हिलती हैं उससे आता है भूकंप !
ऐसी परिस्थितियों में हमारे कहने का उद्देश्य मात्र यह है कि भूकंप जैसे अत्यंत उलझे हुए विषय में जहाँ प्राचीन से लेकर आधुनिक तक विद्वानों के विचारों में इतनी अधिक मत भिन्नता चली आ रही हो ऐसी परिस्थिति में उन समस्त मतों में किसी एक मत को ही पूर्णतः सच कैस मान लिया जाए जब तक कि तर्क और प्रमाणों के आधार पर ऐसे मतों की विश्वसनीयता अभी तक संदिग्ध बनी हुई हो फिर भी ऐसे किसी सिद्धांत को भूकंपीय सत्य पीठ पर प्रतिष्ठित कैसे कर दिया जाए और ऐसा आग्रह करने वालों को भूकंप वैज्ञानिक कैसे जाए जिनके पास भूकंपों के विषय में कुछ कोरी कल्पनाओं के अतिरिक्त और कुछ हो ही न !
यदि आधुनिक भूकंप वैज्ञानिकों का भूकम्पों के विषय में यही मानना है कि जितना वो जान पाए हैं बस उतना ही सही है उनके अलावा आधुनिक और प्राचीन सभी भूकंप विचारकों के मत गलत हैं तो उनका खंडन प्रमाणित सुदृढ़ और स्वीकार्य तर्कों के साथ तुरंत कर दिया जाना चाहिए और अपने मत के समर्थन में मजबूत तर्कों के साथ उतरना चाहिए साथ ही उन भूकंप विचारकों के मतों के विषय में प्रबुद्ध वर्ग की जिज्ञासाओं को भी प्रतिष्ठा पूर्ण ढंग से शांत किया जाना चाहिए !साथ ही अपने सिद्धांत को सही सिद्ध करने के लिए भावी भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमानों की आगे से आगे सार्वजानिक रूप से घोषणा की जानी चाहिए ! वे पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सच हों उतने प्रतिशत ही आधुनिक वैज्ञानिकों के भूकंपों से संबंधित सिद्धांत को विश्वसनीय माना जाना चाहिए !साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए जब अँधेले में ही तीर चलाना अर्थात तीर तुक्के ही लगाना है तो आधुनिक हों या प्राचीन सभी भूकंपविचारकों के मतों का न केवल सम्मान किया जाना चाहिए अपितु सभी मतों पर अनुसंधान चलाए जाने चाहिए और सभी का परीक्षण किया जाना चाहिए क्या पता किस मत में कितनी सत्यता छिपी हो जबकि आधुनिक वैज्ञानिकों ने उस विषय पर विचार करना ही छोड़ दिया हो ! भूकम्पों से संबंधित सच्चाई खोज पाने में विलंब होने का यह भी कारण हो सकता है !क्योंकि सच्चाई तक पहुँचे बिना उससे साक्षात्कार कैसे संभव है !
जिस भारतवर्ष का प्राचीन वैदिक विज्ञान ज्ञान विज्ञान इतना समृद्ध रहा हो कि आकाश से लेकर पाताल तक ग्रहों ग्रहणों नक्षत्रों तक स्वास्थ्य एवं मौसम संबंधी संपूर्ण आयामों तक न केवल अपनी स्पष्ट राय रखता हो अपितु जिसके वर्षा विज्ञान के द्वारा हजारों वर्षों से कृषि आदि संपूर्ण कार्य व्यापार जिसके आधार पर संचालित होते रहे हों ग्रहण जैसी गणनाएँ केवल गणित के द्वारा साध ली जाती रही हों ! ज्ञान विज्ञान के ऐसे सक्षम सिद्धांतों की उपेक्षा करके केवल आधुनिक विज्ञान के अपरीक्षित एवं कल्पनाप्रसूत तर्कों के हवाले संपूर्ण भूकंप विज्ञान को कर देना कहाँ तक उचित होगा !प्राचीन विद्याओं के विद्वान् जब वैज्ञानिक विषयों से संबंधित कार्यों में सहयोग देने के लिए संपर्क करते हैं तो उनसे कह दिया जाता है कि चूँकि आपने आधुनिक विज्ञान और अंग्रेजी नहीं पढ़ी है आपके पास बड़ी बड़ी मशीनें नहीं हैं आपके पास रिसर्च करने वालों की टीम नहीं हैं आपके पास कोई बड़ी प्रयोगशाला नहीं है इसलिए केवल प्राचीन विद्याओं के आधार पर भूकंप जैसे इतने बड़े विज्ञान से संबंधित विषयों में योगदान देने की पात्रता नहीं सिद्ध हो जाती है !सूर्य चंद्र के ग्रहण हों या वो अमावस्या पूर्णिमा अष्टमी आदि तिथियाँ जिनकी गणना सिद्धांत ज्योतिष के आधार पर गणित से ही की जाती है और वो प्रत्यक्ष घटित होते भी देखी जाती हैं पूर्णिमा के दिन ही चंद्र का पूर्ण रूप दिखाई देता है ज्वार भाटा जैसी प्राकृतिक जलीय घटनाएँ न्यूनाधिक रूप से घटित होने का समय भी इसी सिद्धांत ज्योतिष शास्त्र से ही संबंधित है ऐसे प्रत्यक्ष सिद्धांतों की आवश्यकता भूकंप संबंधी अनुसंधानों में क्यों नहीं समझी जाती रही है आखिर इन विषयों का उपयोग न किए जाने के पीछे का कारण क्या है | संभव ऐसा भी है कि ऐसे सिद्धांत गणित संबंधी विज्ञान का कोई एक सूत्र ही सटीक घटित हो जाए तो वही भूकंपों के संपूर्ण रहस्यों को गणित की पद्धति से सम्बद्ध कर सकता है | आखिर ग्रहणों के भी प्रारंभ काल में भी तो ऐसा कुछ ही हुआ होगा !
ऐसे ही समस्त विचारों से भावित होकर तो भूकंपों से संबंधित भविष्यवाणी के विषय में रूस की ताजिक विज्ञान अकादमी के भूकंप विज्ञान तथा भूकंप प्रतिरोधी निर्माण संस्थान के प्रयोगों के परिणामस्वरूप हाल में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यदि भूकंपों के दुबारा होने का समय अभिलेखित कर लिया जाय और विशेष क्षेत्र में पिछले इसी प्रकार के भूकंपों का काल विदित रहे, तो आगामी अधिक शक्तिशाली भूकंप का वर्ष निश्चित किया जा सकता है। भूकंप विज्ञानियों में एक संकेत प्रचलित है भूकंपों की आवृति की कालनीति का कोण और शक्तिशाली भूकंप की दशा का इस कालनीति में परिवर्तन आता है। इसकी जानकारी के पश्चात् भूकंपीय स्थल पर यदि तेज विद्युतीय संगणक उपलब्ध हो सके, तो दो तीन दिन के समय में ही शक्तिशाली भूकंप के संबंध में तथा संबद्ध स्थान के विषय में भविष्यवाणी की जा सकती है और भावी अधिकेंद्र तक का अनुमान लगाया जा सकता है !
रूस की ताजिक विज्ञान अकादमी के द्वारा भूकंपके विषय में ये जो विचार रखे गए हैं भूकंप संबंधी शोध कार्यों में उन्हें भी सम्मिलित करके इस शोध कार्य को आगे बढ़ाए जाने में सफलता की संभावनाएँ और अधिक बढ़ भी सकती हैं !ऐसी समस्त विधाओं विचारों मतों मतान्तरों आदि को भूकंप संबंधी शोध कार्यों में महत्त्व मिलना चाहिए न जाने किस विधा से भूकंप संबंधी शोध कार्यों में सफलता हाथ लग जाए !
पशु पक्षियों के बदलते व्यवहारों का अध्ययन -
माना जाता है कि कुछ जीव जंतु भूकंप के पहले के भौगोलिक परिवर्तनों को महसूस करने लगते हैं जैसे - भूकंप आने के कुछ दिन पहले ही मेढक वहाँ से पलायन करने लग जाते हैं ! ज्योतिष की ही एक शाखा है लक्षण शास्त्र और शकुन शास्त्र, जिसमें प्रकृति और विभिन्न प्राणियों के व्यवहार को देखकर प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है,यह बात कई शताब्दियों से चली आ रही है कि कुछ जानवर पशु-पक्षी आदि भी भूकंप आने से पहले अपनी हरकतें बदल डालते हैं। इसकी भले साइंटिफिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई हो, और खारिज भी नहीं किया गया हो, लेकिन ऐसे विषयों पर भी रिसर्च कई बार हुए हैं। जानवरों के भूकंप के संकेत देने को लेकर इटली, जापान, चीन सहित कई देशों में बौद्धिक शोधचर्चा होती रही है। इन पर रिसर्च कार्य हुए भी हैं |
जीव-जंतुओं में वर्षा, गर्मी, सर्दी, भूकंप, ज्वालामुखी से लेकर भावी घटनाओं के ज्ञान की विलक्षण क्षमता होती है। मनुष्य की अपेक्षा पक्षी एवं जीव-जंतुओं की इंद्रियां प्रकृतिजनित कारकों के प्रति कई गुना अधिक संवेदनशील व सक्रिय होती हैं। इसके कारण वे वातावरण के परिवर्तन और घटना विशेष के घटने के पूर्व अपना बचाव व व्यवहार परिवर्तन करने लगते हैं।लाखों-करोड़ों वर्षों से इन जीव-जंतुओं के मध्य रहकर मनुष्य ने अनेक शुभ-अशुभ संकेत का ज्ञान प्राप्त कर लिया है !चक्रवात, भूकंप, बाढ़, वर्षा आदि आपदाओं का जीव-जंतुओं को पूर्वाभास हो जाता है। चक्रवात, भूकंप आने से पूर्व जीव-जंतु भयवश इधर-उधर घबराते हुए मंडराते हैं। विचित्र आवाजें निकालते हैं, मालिक को उस स्थान को छोड़ने को विवश करते हैं।
बताया जाता है कि 26 जनवरी 2001 को भुज (गुजरात) में भूकंप आने से पहले घर में बंधे कुत्ते ने घबराते हुए तेजी से भौंकना, उछलना प्रारंभ कर दिया। लगातार कुत्ते के भौंकने और उछलने की क्रिया जारी रहने पर जब मालिक उसे लेकर घर के बाहर निकला ही था कि कुछ ही पल में उसका मकान भूकंप के झटके में गिर गया।बिल्ली को हम आवाज और व्यवहार में विविधता प्रकट करने के कारण अशुभ मानते हैं। विचित्र तरीकों से रोना और यात्रा अथवा विशेष अवसर पर जाते समय रास्ता काटने को संकट का प्रतीक मानते हैं।
सुना जाता है कि समुद्री नाविक यात्रा के समय बिल्लियों को अपने साथ ले जाते हैं। सन् 1912 में जब टाइटेनिक नामक जहाज अपनी यात्रा पर चल रहा था, तभी जहाज में मौजूद बिल्लियों ने कूदना आरंभ कर दिया। कुछ ही समय में सारी की सारी बिल्लियां नीचे कूद गईं। जहाज में बैठे लोगों का इस ओर ध्यान नहीं गया। कुछ ही समय उपरांत जहाज एक बड़े हिमखंड से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
इसी प्रकार सन् 1955 में 'जोतिया' नामक जहाज अपनी यात्रा पर निकला। जहाज निकलने के साथ ही जहाज में मौजूद सभी बिल्लियां रोने व चिल्लाने लगीं। यह जहाज भी यात्रा के मध्य में नष्ट हो गया।
अनेक बार रात्रि को कुत्ते ऊपर मुंह करके रोते हैं। उनके रोने की आवाज का क्रम निरंतर जारी रहता है।कुछ समय में पास के किसी घर से अशुभ समाचार मिलता है।कौवों के आचरणों में भी अनेक शुभ-अशुभ संकेत होते हैं।
कुल मिलाकर पक्षियों के क्रियाकलाप और उनके साथ घटी घटनाएं वर्षा, अल्पवर्षा और अतिवर्षा और सूखे आदि का संकेत माने जाते हैं।यदि कौआ कुएं में गिरकर मर जाता है तो माना जाता है कि इस वर्ष वर्षा बहुत कम, बाढ़ अथवा तीव्र गर्मी रहेगी !
वर्षा ऋतु में कौओं के झुंड का बिना आवाज निकाले अपने घोसले में लौटना तेज वर्षा होने का संकेत देता है, तो इसके विपरीत दिन की घनघोर घटाओं और चमकती बिजली के बीच यदि कबूतरों के झुंड आकाश में ऊंची उड़ान भरने के स्थान पर चुपचाप वृक्षों पर बैठे रहें तो उन घटाओं और बिजली चमकने का कोई अर्थ नहीं होता अर्थात वे घटनाएं बिना पानी बरसाते ही गुजर जाती हैं। गिरगिट के शरीर के वर्ण (रंग) का परिवर्तन वर्षा, अल्पवर्षा तथा पूर्ण वर्षा का संकेत देता है।
चींटी को भूकंप आने की जानकारी होजाती होगी क्योंकि चींटी भूकंप के झटके को महसूस कर लेती है, भूकंप की हलचल का भान होते ही चींटियां अपना घर छोड़ देती हैं। आमतौर पर चींटियां दिन में घर बदलती हैं, पर भूकंप का पता चलते ही वो किसी भी समय अपने घर से निकल पड़ती हैं!
भूकंप के झटके शुरू होने से पहले सांप अपने बिलों से बाहर भागने लगते हैं। समुद्र की गहराइयों में रहने वाली मछलियां भी भूकंप की तरंगों को बड़ी तीव्रता से पकड़ती हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि धरती से पहले भूकंप की तरंगें पानी को कंपित करती हैं
मेंढक या भेक मेंढक या भेक मेंढकों के समान या उनकी ही एक प्रजाति भेक को भूकंप से पहले आश्चर्यजनक रूप से पूरे समूह के साथ गायब होते पाया गया है। जहां भी भूकंप आया, वहां लगभग 3 दिन पहले से सारे भेक जादुई तरीके से गायब हो गए।
भूकंप आने से कुछ मिनट पहले राजहंस पक्षी एक समूह में जमा होते देखे गए हैं, तो बतखें डर के मारे पानी में उतरती पाई गई हैं। इतना ही नहीं, मोरों को झुंड बनाकर बेतहाशा चीखते हुए पाया गया है। विश्व में जहां भी जानवरों में इस तरह के बदलाव देखे गए हैं, वहां इसके कुछ मिनट बाद ही बड़ी भयंकर तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया है।
कुल मिलाकर जीव, जंतु, पशु, पक्षी आदि भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं को महसूस कर लेते हैं। माना जाता है कि ऐसा उनमें मौजूद संवेदी तंत्र के कारण होता है।
वर्षा के विषय में -पेड़ों पर दीमक तेजी से घर बनाने लगें तो इसे अच्छी वर्षा का संकेत माना जाता है। मोरों का नाचना, मेंढक का टर्राना और उल्लू का चीखना तो पूरे भारत में वर्षा का संकेत माना ही जाता है। बकरियां अगर अपने कानों को जोर-जोर से फड़फड़ाने लगें, तो यह भी शीघ्र वर्षा होने का सूचक माना जाता है। भेड़ें अगर अचानक अपने समूह में इकट्ठी होकर चुपचाप खड़ी हो जाएं, तो समझा जाता है कि भारी बारिश शुरू होने ही वाली है।शाम ढलते समय अगर लोमड़ी की आवाज कहीं दूर से दर्द से चीखने जैसी आए, तो यह बारिश आने का आसार मानी जाती है। अगर चींटियां भारी मात्रा में अपने समूह के साथ अंडे लेकर घर बदलती दिखाई दें, तो माना जाता है कि बारिश का मौसम अब शुरू होने ही वाला है। चिड़िया के घोंसले की उंचाई से भी बारिश का अंदाजा लगाया जाता है। अगर चिडि़या ने घोंसला पर्याप्त उंचाई पर बनाया हो, तो इसे अच्छी वर्षा का प्रतीक माना जाता है। यदि घोंसला नीचा है, तो वर्षा की अनुमान भी सामान्य से कम होने का लगाया जाता है आदि ।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैज्ञानिक उपकरणों की तुलना में जीव जंतु बेहद अधिक संवेदनशील होते हैं इसलिए भूकम्पों से संबंधित अनुसंधानों में इनके भी व्यवहारों में समय समय पर आने वाले स्वाभाविक परिवर्तनों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए | भूकंप के संकेत पशु पक्षी, मछलियां, कुत्ते व अन्य जीव जंतु पहले ही देने लगते हैं। उनके व्यवहार में परिवर्तन का मतलब है कि कोई दैविक आपदा आने वाली है। पुराने लोग कुत्ते बिल्लियों के रोने को अशुभ मानते हैं तथा अंदाजा लगा लेते हैं कि कुछ न कुछ अशुभ होने वाला है। संहिता ग्रंथों में पशुओं पक्षियों के व्यवहार परिवर्तनों का विशद वर्णन मिलता है !
जब भूकंप आने को होता है तो पशु-पक्षी कुछ अजीब हरकतें करने लगते हैं। चूहे अपनी बिलों से बाहर आ जाते हैं। अगर यह सही है तो वैज्ञानिक पशु-पक्षियों की इस अद्भुत क्षमता को भूकंप की पूर्व सूचना प्रणाली में क्यों नहीं बदल सकते। अगर ऐसा संभव हो जाए तो प्रकृति की इस तबाही पर विजय पा सकेगा मानव। यद्यपि प्रयोगशालाओं में इस पर शोध किए जा रहे हैं चूहे भूकंप आने का संकेत दे सकते हैं। जापान के शोधकर्ताओं ने पाया है कि भूकंप आने से पहले जिस तरह के विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र बनते है अगर चूहों को उन क्षेत्रों में रखा जाए तो वे अजीबोगरीब हरकतें करते हैं।चूहों का ऐसा व्यवहार कोबे में आए भूकंप से एक दिन पहले देखा गया था । इस तरह के व्यवहार से भूकंप के आने का कुछ अंदेशा लगाया जा सकता है। हालाँकि जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की हरकतें एक समान नहीं रहती इसलिए पक्की भविष्यवाणी करना कठिन हो जाता है।
इसी प्रकार से ज्वालामुखियों और जल संबंधी बड़े बाँधों और सरोवरों को भी ऐसे अध्ययनों में सम्मिलित किया जाना चाहिए आयुर्वेदोक्त वात विकृति को भी सम्मिलित किया जाए तथा ज्योतिषोक्त सूर्य चंद्र के प्रभावों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए !
संहिताशास्त्र में ग्रह नक्षत्रों से संबंधित ,आकाशीय एवं वायु जनित बहुत सारे ऐसे लक्षण हैं जो समय समय पर प्रकट और विलुप्त होते रहते हैं जिनका प्राकृतिक उत्पातों पर बड़ा असर होता है ऐसे लक्षणों का अध्ययन करना भी भूकंपीय शोध के संबंध में बहुत सहयोगी सिद्ध हो सकता है !
इसी प्रकार से सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य मंडल में चिन्ह वर्ण इसी प्रकार आकाश के वर्ण का अध्ययन चंद्र श्रृंगोन्नति का अध्ययन ,बज्रपातादि का अध्ययन ,ग्रहों नक्षत्रों के युति दृष्टि युक्ता आदि का फल अगस्त तारा उदित होते समय का अध्ययन यदि काँप रहा हो तो भूकंप का संकेत देता है इसी प्रकार और भी बहुत सारे लक्षण हैं भूकंप संबंधी पूर्वानुमान के लिए इन सब का अध्ययन किया जाना चाहिए !
इसी प्रकार प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन आवश्यक है !जिस जगह अकारण आकाश अचानक धूलि धूसरित हो जाए !या कुछ समय से लगातार वर्षा होने लगे सर्दी संबंधी बीमारियाँ जोर पकड़ने लगें !आग लगने की अचानक बहुत अधिक घटनाएँ घटित होने लगें गर्मी बहुत अधिक पड़ने लगे कुएँ तालाब अचानक सूखने लगें गरमी से सम्बंधित रोग जोर पकड़ने लगें ,अचानक भयानक आँधी तूफान आने लगें जो बहुत अधिक नष्ट भ्रष्ट कर गए हों ,आकाश में भयंकर काले काले बहुत बड़े बड़े आकार प्रकार के बादल घिरने लगें और बहुत थोड़ा सा बरस कर लौट जाएँ !ऐसे सभी लक्षणों का अध्ययन बहुत बारीकी से किया जाना चाहिए ऐसी सभी घटनाएँ भूकंप संबंधी पूर्व सूचना देने के लिए घटित हो रही होती हैं !
कुल मिलाकर भूकंप संबंधी पूर्वानुमानों को जानने के लिए ऐसे सभी लक्षणों का अध्ययन किया जाना चाहिए !
भूकंप तो कभी भी और कहीं भी आ सकते हैं और कितना भी बड़ा नुक्सान कर सकते हैं | भूकंपों को रोकने का तो कोई उपाय हो ही नहीं सकता किंतु इनके पूर्वानुमान के विषय में भी अभी तक विश्व वैज्ञानिक जगत सफलता शून्य है | लाचार है विश्व का भूकंप वैज्ञानिक समाज !भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाना तो बहुत बड़ी बात है भूकंप आते क्यों हैं इसका भी अभी तक कोई विश्वसनीय उत्तर उपलब्ध नहीं है जो उत्तर दिए जा रहे हैं उनके समर्थन में दिए जाने वाले आधारभूत तर्क इतने छिछले और परिवर्तनशील हैं कि उन पर विश्वास कैसे किया जाए !इन तर्कों में सत्यता के साक्ष्य न होने पर भी हर कोई अपनी अपनी बातें कहे जा रहा है !पर्यावरण वैज्ञानिक कहते हैं कि पर्यावरण बिगड़ने से आते हैं भूकंप !धार्मिक लोग कहते हैं कि जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब आते हैं भूकंप !ज्योतिष वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगलशनि की युति या कुग्रहों के संयोग से आते हैं भूकंप !शकुनशास्त्र जानने वाले अपने अपने तर्क देते हैं जबकि भूकंपों के विषय में अभी तक कुछ भी न जान्ने वाले भूकंप वैज्ञानिक कहते हैं धरती के अंदर की प्लेटें खिसकती हैं इसलिए आते हैं भूकंप !किंतु सही किसे माना जाए और क्यों माना जाए !विश्वास करने योग्य कोई तर्क प्रमाण आदि दे नहीं पा रहा है हर कोई अपनी अपनी बातें कहे जा रहा है भूकंपों के पूर्वानुमान की घोषणा कोई कर नहीं पा रहा है जिससे ये पता लग सके कि सही कौन है और गलत कौन !इन्हीं सभी कसौटियों पर कसे जाने पर भूकंप वैज्ञानिक अभी तक ये प्रूफ करने में असफल हैं कि वे भूकम्पों के विषय में कुछ अलग से जानते हैं और कोई भरोसा करने योग्य बात बता सकते हैं मेरी जानकारी के अनुशार विश्व के देशों में भूकंपविज्ञान के लिए मंत्रालय संस्थान विभाग आदि जो भी बनाए गए हैं वो अभी तक अपनी सार्थकता सिद्ध करने में असफल रहे हैं ! हर कोई अपने अपने राग अलापे जा रहा है किंतु सामूहिक रूप से सभी के अनुभवों का समवेत अध्ययन करके कोई रिसर्च किया गया हो काम से काम मेरी जानकारी में तो ऐसा कुछ भी नहीं है !भूकंपों के विषय में बिना किसी कारण और प्रमाण के भी मतभिन्नता है अज्ञानता है किंतु ये तभी तक है जब तक भूकंपों के संबंध में सच्चाई सामने नहीं आ जाती है !
भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमानों के लिए अधिकाँश देश अपने अपने स्तर से जी जान लगाए हुए हैं इसके लिए सरकारों ने अलग मंत्रालय बना रखे हैं भूकंपों के विषय में पता लगाने के लिए अधिकारी कर्मचारी हैं भूकंप वैज्ञानिक हैं शिक्षण संस्थान हैं रिसर्च इंस्टीट्यूट हैं विश्व विद्यालयों में डिपार्टमेंट हैं और भूकंपों के विषय की पढ़ाई भी होती है प्रोफेसर पढ़ाते हैं छात्र पढ़ते हैं ! ऐसे सभी प्रकार के प्रयासोंमें सरकारें भारी भरकम धनराशि का व्यय करती हैं इस दिशा में सभी के द्वारा किए जाने वाले सभी प्रकार के प्रयास प्रशंसनीय हैं किंतु इन प्रयासों के परिणाम अर्थात भूकंप संबंधी सही पूर्वानुमान आने से पहले केवल प्रयासों को ही सच कैसे मान लिया जाए !यदि ये लोग भूकंपों को वास्तव में समझ पाए होते और भूकंप संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए सही पद्धति पर आगे बढ़ रहे होते तो परिणाम कुछ तो सामने आने चाहिए थे भूकंप अनुसंधान यात्रा कुछ तो आगे बढ़ी होती !आखिर कितने वर्षों से भूकंप शोधयात्रा में हम एक ही जगह पर खड़े हुए हैं | भूकंपों के विषय में आखिर कब तक हम वही पाँच लाइनें दोहराते रहेंगे -भूकंप की तीव्रता कितनी थी केंद्र क्या था डेंजर जोन कौन कौन हैं अभी आफ्टर साक्स आते रहेंगे ! पृथ्वी के अंदर गैसों के दबाव से धरती के अंदर की प्लेटें हिलती हैं उससे आता है भूकंप !केवल इतने के लिए क्या ये मंत्रालय मंत्री शिक्षण संस्थान शिक्षक छात्र आदि की संपूर्ण पारिकल्पनाएँ हैं !यदि ऐसा हो तो भी पूर्वानुमानों के सही घटित होने से पहले इस सिद्धांत को सही कैसे मान लिया जाए तब तक तो ऐसी सभी बातें कोरी कल्पना मात्र ही हैं जो कोई भी कर सकता है इसमें विज्ञान है कहाँ और भूकंपों के विषय में किसी सही सिद्धांत का प्रतिपादन किए बिना केवल भरोसा करके किसी को भूकंप वैज्ञानिक कैसे स्वीकार कर लिया जाए !आखिर भूकंपों के विषय में कोई सटीक प्रमाणित और तर्कसंगत प्रस्तुति तो दिखे !
चूँकि पृथ्वी काँपती है इसलिए काँपने का कारण पृथ्वी के अंदर ही होगा ऐसा पूर्वाग्रह लेकर क्यों चलना !"यत्पिण्डे तत्ब्रह्माण्डे" के सिद्धान्त से तो शरीर और ब्रह्मांड की बनावट एक जैसी है यदि ऐसा है तो इनके अध्ययन की प्रक्रिया भी यथा संभव एक जैसी होनी चाहिए यदि इसे आधार मानकर चला जाएगा तब तो सामने खड़े किसी शेर के डर से या सर्दी से काँपते हुए व्यक्ति के अंदर भी ऊर्जा और गैसों का भारी भंडारण मान लिया जाना चाहिए और उसके शारीरिक कम्पन को उसी शरीरस्थ ऊर्जा का विस्फोट या प्रकटीकरण मान लिया जाना चाहिए !किंतु कितना उचित होगा यह ?
यदि मनुष्य में शेर का भय है तो इस असीम ब्रह्मांड में यह कैसे मन लिया जाए कि पृथ्वी स्वतंत्र हो न हो वो भी किसी के भय से काँपने लगती हो जिसे हम भूकंप कहते हैं भूकंप चिंतकों में बहुत विद्वानों का ऐसा मत भी है कि दैवी प्रकोप से भूकंप आता है उस बात को बिना तर्कों प्रमाणों साक्ष्यों के हवा में कैसे और क्यों उड़ा दिया जाए ?
सर्दी से ठिठुरता हुआ कोई जीव यदि काँपने लग सकता है तो इस संगति से पृथ्वी का अनुसंधान क्यों न किया जाए हो न हो पंचतत्वों का इस प्रकार का कोई असर पृथ्वी पर भी पड़ता हो !और उसी प्रभाव से काँपने लगती हो पृथ्वी !
यदि मान लिया जाए कि पृथ्वी निर्जीव है उस पर ये संगति नहीं बैठाई जा सकती तो समुद्र भी तो निर्जीव है उस पर भी तो चंद्र का प्रभाव पड़ता है और ज्वार भाटा उसी प्रभाव से आते हैं इस बात को भूकंप संबंधी अध्ययनों में सम्मिलित क्यों न किया जाए !सुना है कि सर्दी में रेल की पटरियाँ सिकुड़ जाती हैं आखिर वे भी तो निर्जीव हैं किंतु उन पर भी पंचतत्वों का प्रभाव तो पड़ता है फिर भूकंपों के विषय में अध्ययन करते समय इस बात को नकार कैसे और क्यों दिया जाए !
चंद्र ग्रहण का कारण चंद्र में नहीं होता सूर्य ग्रहण का कारण सूर्य में नहीं होता ज्वार भाँटा का कारण समुद्र में नहीं होता तो ऐसी परिस्थिति में पंचतत्वों के अन्योन्याश्रित प्राकृतिक सिद्धांतों में पृथ्वी के काँपने के कारण केवल पृथ्वी के अंदर ही क्यों खोजा जाए !
जहाँ तक बात पृथ्वी के अंदर की गैसों की है या पृथ्वी के अंदर की अग्नि की है तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये गैसें और अग्नि पृथ्वी के लिए कोई अतिरिक्त पदार्थ नहीं हैं ये तो वायु पृथ्वी की बनावट में सम्मिलित पृथ्वी के अभिन्न अंग ही हैं जिनके कारण पृथ्वी का पृथ्वीत्व बना और बचा हुआ है जिन्हें पृथ्वी हमेंशा धारण किए रहती है इसलिए उन गैसों और पृथ्वी की गर्भगत वायु को भूकंपों के आने का कारण कैसे माना जा सकता है |
मनुष्य शरीर की बनावट भी तो पृथ्वी की तरह ही है इसमें पाचक पित्त ही आग है जो कैसे भी भोजन को पचा देता है ज्वर में शरीर को गर्म करने वाला पित्त ही तो है -
" 'ऊष्मा पित्तादृते नास्ति ज्वरो नास्त्यूषमणा बिना"
चूँकि शरीर के अंदर आग(पित्त) है और जल भी है उसी प्रकार से जैसे पृथ्वी के अंदर गर्म और ठंडी दोनों वस्तुएँ विद्यमान रहती हैं गर्म और ठंडी दोनों वस्तुएँ जहाँ एक साथ एकत्रित होती हैं तो ठंडी का प्रभाव अधिक होता है तो गर्म को ठंडा कर लेती है और गर्म का प्रभाव अधिक होता है तो ठंडा को गर्म कर लेती है इसी प्रक्रिया में भाफ बनती है जो पृथ्वी के पेट में भरी गैस है उसी प्रकार मनुष्यादि के पेट में भी गैस का निर्माण होता है !जैसे पेट के अंदर गैस का संचय होता रहता है वैसे ही पृथ्वी के अंदर भी होता रहता है किंतु शरीर जब गैस का विसर्जन करता है तो शरीर नहीं काँपता है तो उसी गैस का विसर्जन करते समय पृथ्वी कैसे काँप सकती है !
इस प्रकार से जिस मत के समर्थन में तर्क प्रमाण एवं साक्ष्य प्रस्तुत किए जाने अभी तक बाक़ी हैं उस मत को इतना महत्त्व कैसे दे दिया जाए कि उसे स्थापित सत्य की तरह प्रस्तुत किया जाने लगे !ये कहाँ तक न्यायोचित है !इस कल्पना प्रसूतमत को महत्त्व देते हुए इतनी बड़ी बड़ी बातें कर देना कहाँ तक तर्क संगत हैं !आधे अधूरे इस काल्पनिक सच के आधार पर इतनी बड़ी बड़ी बातें करना कहाँ तक न्यायसंगत है !
हाल ही में हिंदी के एक अखवार में मैंने एक लेख पढ़ा -
"धीरे-धीरे खिसक रहा हिमालय, दे रहा है बड़े भूकंप का संकेत !"
वैज्ञानिकों का कहना है "हिमालय अब धीरे-धीरे खिसक रहा है। जो भविष्य में आने वाले एक बड़े भूकंप का संकेत है। "यह बात वैज्ञानिकों ने वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान में हिमालय के फॉल्ट जोन की स्थिति पर आयोजित व्याख्यान के दौरान कही।! उनका कहना है कि रामनगर व लालढांग के बीच वर्ष 1344 में हाई पावर का भूकंप आने का पता लगाया जा चुका है।भूकंपीय फॉल्ट अधिक ढालदार होने से भूगर्भ में भूकंपीय ऊर्जा निरंतर संचित हो रही है।उनका मानना है कि भूगर्भ में तनाव बढ़ रहा है। इससे सबसे बड़ा खतरा यह है कि इससे उच्च तीव्रता वाला भूकंप कभी भी आ सकता है।ऐसी बातों में कितनी सच्चाई है और क्या प्रमाण हैं इसके समर्थन में दिए जाने वाले साक्ष्य कितने तर्क संगत हैं !
इसलिए भूकंप क्यों आते हैं कब आते हैं इनके आने का वास्तविक कारण क्या है ये प्राकृतिक हैं या पर्यावरण संबंधी प्रदूषण के कारण आते हैं या जलाशयों के कारण आते हैं या ज्वालामुखियों के कारण आते हैं धरती पर पाप अधिक बढ़ने के कारण आते हैं या दैवी शक्तियों के क्रोध के कारण आते हैं प्राचीन शास्त्र वैज्ञानिक कश्यप ऋषि का मत है कि जल में रहने वाले बड़े प्राणियों के धक्के से भूकंप होता है !गर्ग ऋषि का मत है कि पृथ्वी के भर से थके हुए दिग्गजों के विश्राम करने से भूकंप आता है | वशिष्ठ ऋषि कहते हैं कि वायु एक दूसरे से टकराकर पृथ्वी पर गिरते हुए शब्द के साथ भूकंप करता है | वृद्ध गर्ग का मत है कि समाज में अधिक अधर्म फैलने से भूकंप आता है ! ज्योतिष विज्ञान मानता है कि वायु अग्नि इंद्र और वरुण शुभ और अशुभ फलों का संकेत करने के लिए कँपाते हैं पृथ्वी !आयुर्वेद का शीर्ष ग्रन्थ चरक संहिता का मत है कि प्रकुपित वायु के कारण आता है भूकंप !
इसी प्रकार से भूकंप के विषय में विभिन्न विचारकों के अलग अलग मत हैं -
प्राचीन काल में भूकंपों को दैवी प्रकोप समझा जाता रहा है !
शेषनाग ने अपने फन पर धारण कर रखी है पृथ्वी !
कुछ लोगों का मानना है कि 'पृथ्वी आठ हाथियों के सिरों पर रखी हुई है। जब कोई हाथी सिर हिलाता है तो भूकंप के झटके महसूस होते हैं।' बिल्कुल इसी तरह धरती कछुए की पीठ पर खड़े चार हाथियों पर टिकी है और वह कछुआ एक सांप के फन पर है। इनके हिलने पर भूकंप आता है।'
आयुर्वेद के शीर्ष आचार्य महर्षि चरक कहते हैं कि "ज्वार भाँटा और भूकंप दोनों के होने का कारण वायु है !"यदि ऐसा है तो समुद्र में आने वाले ज्वार भाँटा का कारण तो चंद्र को मानते हैं उसे समुद्र में नहीं खोजते हैं जबकि उसी प्रकार के वायुकृत भूकंप का कारण जमीन के अंदर संगृहीत गैसों को बताया जाता है क्यों ?
जलाशयों के कारण भी होते हैं भूकंप !
जापान के लोग मानते हैं कि धरती के भीतर मांजू नाम की एक विशाल कैटफिश है और इसी की वजह से भूकंप के झटके आते हैं।
ग्रीक की पौराणिक कथाओं में माना जाता है कि धरती पर जब कुछ बुरा घटता है तो देवता दंड के तौर पर बिजली पैदा करते हैं और इससे धरती कांपने लगती है।
अरस्तू ने भूकंप के संबंध में कहा था, 'जमीन के अंदर की गुफाओं में हवाओं के बहने एवं निकलने से आता है भूकंप।
ज्वालामुखियों के फटने के कारण भी भूकम्प आते हैं।इनके दो कारण होते हैं टेक्टोनिक दोष तथा ज्वालामुखी में लावा की गतियां.ऐसे भूकंप ज्वालामुखी विस्फोट की पूर्व चेतावनी हो सकते हैं।
जलाशय जनित दबाव के कारण भी भूकम्प आते हैं।
ओविड नाम के रोमन कवि ने कहा था कि धरती के सूर्य के करीब आने से भूकंप आता है। क्योंकि सूर्य की विस्मयी विकिरणों से धरती कांपने लगती है।
16वीं और 17वीं शताब्दी में लोगों का अनुमान था कि पृथ्वी के अंदर रासायनिक कारणों से तथा गैसों के विस्फोटन से भूकंप होता है।
1874 ई में वैज्ञानिक एडवर्ड जुस ने अपनी खोजों के आधार पर कहा था कि भूकंप भ्रंश की सीध में भूपर्पटी के खंडन या फिसलने से होता है ।
गाँधी जी भूकंपों के आने का कारण नैतिकता का पतन और पाप की बृद्धि मानते थे !
टैगोर जी भूकंपों को प्राकृतिक घटना मात्र मानते थे !
18वीं शती में यह विचार पनप रहा था कि पृथ्वी के अंदरवाली गुफाओं के अचानक गिर पड़ने से भूकंप आता है।
18वीं शती में भूकंपों का कारण ज्वालामुखी समझा जाने लगा था, परंतु हिमालय पर्वत में कोई ज्वालामुखी नहीं है, परंतु हिमालय क्षेत्र में गत सौ वर्षो में अनेक भूकंप हुए हैं।
हैरी फील्डिंग रीड के अनुशार -"भूपर्पटी पर नीचे से कोई बल लंबी अवधि तक कार्य करे, तो वह एक निश्चत समय तथा बिंदु तक (अपनी क्षमता तक) उस बल को सहेगी और उसके पश्चात् चट्टानों में विकृति उत्पन्न हो जाएगी।ऐसे में भी यदि बल कार्य करता रहेगा तो चट्टानें टूट जाएँगी। इससे भूकंप गति बनानेवाली ऊर्जा चट्टानों में प्रत्यास्थ विकृति ऊर्जा के रूप में संचित होती रहती है। टूटने के समय चट्टानें भ्रंश के दोनों ओर अविकृति की अवस्था के प्रतिक्षिप्त प्रत्यास्थ ऊर्जा भूकंपतरंगों के रूप में मुक्त होती है।
पृथ्वी के शीतल होने का सिद्धांत - भूकंप के कारणों में प्राचीन विचार पृथ्वी का ठंढा होना भी है। पृथ्वी के अंदर अधिक गहराई में भूपपर्टी के ठोस होने के बाद भी कोई अंतर नहीं आया है। पृथ्वी अंदर से गरम तथा प्लास्टिक अवस्था में है और बाहरी सतह ठंडी तथा ठोस है। यह बाहरी सतह भीतरी सतहों के साथ ठीक ठीक से नहीं बैठती तथा निपतित होती है और इस तरह से भूकंप होते हैं।
समस्थितिसिद्धांत -इसके अनुसार भूतल के पर्वत एवं सागर धरातल एक दूसरे को तुला की भाँति संतुलन में रखे हुए हैं। जब क्षरण आदि द्वारा ऊँचे स्थान की मिट्टी नीचे स्थान पर जमा हो जाती है, तब संतुलन बिगड़ जाता है तथा पुन: संतुलन रखने के लिये जमाववाला भाग नीचे धँसता है और यह भूकंप का कारण बनता है
महाद्वीपीय विस्थापन प्रवाह सिद्धांत --(Continental drift) -अभी तक अनेकों भूविज्ञानियों ने महाद्वीपीय विस्थापन पर अपने अपने मत प्रतिपादित किए हैं। इनके अनुसार सभी महाद्वीप पहले एक पिंड थे, जो पीछे टूट गए और धीरे धीरे विस्थापन से अलग अलग होकर आज की स्थिति में आ गए। इसके अनुसार जब महाद्वीपों का विस्थापन होता है तब पहाड़ ऊपर उठते हैं और उसके साथ ही भ्रंश तथा भूकंप होते हैं।
रेडियोऐक्टिवता सिद्धांत -- रेडियोऐक्टिव ऊष्मा जो महाद्वीपों के आवरण के अंदर एकत्रित होती हैइसकी ऊष्मा जब मुक्त होती है तब महाद्वीपों के अंदर की चीजों को पिघला देती है तब घटित होते हैं भूकंप।
संवहन धारा सिद्धांत -अनेक सिद्धांतों में यह प्रतिपादित किया गया है कि पृथ्वी पर संवहन धाराएँ चलती हैं। इन धाराओं के परिणामस्वरूप सतही चट्टानों पर कर्षण होता है। ये धाराएँ रेडियोऐक्टिव ऊष्मा द्वारा संचालित होती हैं। परिणामस्वरूप विकृति धीरे धीरे बढ़ती जाती है। कुछ समय में यह विकृति इतनी अधिक हो जाती है कि इसका परिणाम भूकंप होता है।
उद्गम केंद्र और अधिकेंद्र सिद्धांत - भूकंप का उद्गम केंद्र पृथ्वी के अंदर वह विंदु है जहाँ से विक्षेप शुरू हाता है। अधिकेंद्र पृथ्वी की सतह पर उद्गम केंद्र के ठीक ऊपर का बिंदु है।
आधुनिक विज्ञान का मानना है कि भूकंप अक्सर भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं। भूकंप प्राकृतिक घटना या मानवजनित कारणों से भी हो सकता है। धरती या समुद्र के अंदर होने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के कारण भी हो सकते हैं भूकंप आने के !
इन सबके साथ साथ भूकंपों के आने के कारणों के विषय में सर्वाधिक प्रचारित मत तो यही है जिसे जन जन जानता है कि पृथ्वी के अंदर गैसों के दबाव से धरती के अंदर की प्लेटें हिलती हैं उससे आता है भूकंप !
ऐसी परिस्थितियों में हमारे कहने का उद्देश्य मात्र यह है कि भूकंप जैसे अत्यंत उलझे हुए विषय में जहाँ प्राचीन से लेकर आधुनिक तक विद्वानों के विचारों में इतनी अधिक मत भिन्नता चली आ रही हो ऐसी परिस्थिति में उन समस्त मतों में किसी एक मत को ही पूर्णतः सच कैस मान लिया जाए जब तक कि तर्क और प्रमाणों के आधार पर ऐसे मतों की विश्वसनीयता अभी तक संदिग्ध बनी हुई हो फिर भी ऐसे किसी सिद्धांत को भूकंपीय सत्य पीठ पर प्रतिष्ठित कैसे कर दिया जाए और ऐसा आग्रह करने वालों को भूकंप वैज्ञानिक कैसे जाए जिनके पास भूकंपों के विषय में कुछ कोरी कल्पनाओं के अतिरिक्त और कुछ हो ही न !
यदि आधुनिक भूकंप वैज्ञानिकों का भूकम्पों के विषय में यही मानना है कि जितना वो जान पाए हैं बस उतना ही सही है उनके अलावा आधुनिक और प्राचीन सभी भूकंप विचारकों के मत गलत हैं तो उनका खंडन प्रमाणित सुदृढ़ और स्वीकार्य तर्कों के साथ तुरंत कर दिया जाना चाहिए और अपने मत के समर्थन में मजबूत तर्कों के साथ उतरना चाहिए साथ ही उन भूकंप विचारकों के मतों के विषय में प्रबुद्ध वर्ग की जिज्ञासाओं को भी प्रतिष्ठा पूर्ण ढंग से शांत किया जाना चाहिए !साथ ही अपने सिद्धांत को सही सिद्ध करने के लिए भावी भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमानों की आगे से आगे सार्वजानिक रूप से घोषणा की जानी चाहिए ! वे पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सच हों उतने प्रतिशत ही आधुनिक वैज्ञानिकों के भूकंपों से संबंधित सिद्धांत को विश्वसनीय माना जाना चाहिए !साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए जब अँधेले में ही तीर चलाना अर्थात तीर तुक्के ही लगाना है तो आधुनिक हों या प्राचीन सभी भूकंपविचारकों के मतों का न केवल सम्मान किया जाना चाहिए अपितु सभी मतों पर अनुसंधान चलाए जाने चाहिए और सभी का परीक्षण किया जाना चाहिए क्या पता किस मत में कितनी सत्यता छिपी हो जबकि आधुनिक वैज्ञानिकों ने उस विषय पर विचार करना ही छोड़ दिया हो ! भूकम्पों से संबंधित सच्चाई खोज पाने में विलंब होने का यह भी कारण हो सकता है !क्योंकि सच्चाई तक पहुँचे बिना उससे साक्षात्कार कैसे संभव है !
जिस भारतवर्ष का प्राचीन वैदिक विज्ञान ज्ञान विज्ञान इतना समृद्ध रहा हो कि आकाश से लेकर पाताल तक ग्रहों ग्रहणों नक्षत्रों तक स्वास्थ्य एवं मौसम संबंधी संपूर्ण आयामों तक न केवल अपनी स्पष्ट राय रखता हो अपितु जिसके वर्षा विज्ञान के द्वारा हजारों वर्षों से कृषि आदि संपूर्ण कार्य व्यापार जिसके आधार पर संचालित होते रहे हों ग्रहण जैसी गणनाएँ केवल गणित के द्वारा साध ली जाती रही हों ! ज्ञान विज्ञान के ऐसे सक्षम सिद्धांतों की उपेक्षा करके केवल आधुनिक विज्ञान के अपरीक्षित एवं कल्पनाप्रसूत तर्कों के हवाले संपूर्ण भूकंप विज्ञान को कर देना कहाँ तक उचित होगा !प्राचीन विद्याओं के विद्वान् जब वैज्ञानिक विषयों से संबंधित कार्यों में सहयोग देने के लिए संपर्क करते हैं तो उनसे कह दिया जाता है कि चूँकि आपने आधुनिक विज्ञान और अंग्रेजी नहीं पढ़ी है आपके पास बड़ी बड़ी मशीनें नहीं हैं आपके पास रिसर्च करने वालों की टीम नहीं हैं आपके पास कोई बड़ी प्रयोगशाला नहीं है इसलिए केवल प्राचीन विद्याओं के आधार पर भूकंप जैसे इतने बड़े विज्ञान से संबंधित विषयों में योगदान देने की पात्रता नहीं सिद्ध हो जाती है !सूर्य चंद्र के ग्रहण हों या वो अमावस्या पूर्णिमा अष्टमी आदि तिथियाँ जिनकी गणना सिद्धांत ज्योतिष के आधार पर गणित से ही की जाती है और वो प्रत्यक्ष घटित होते भी देखी जाती हैं पूर्णिमा के दिन ही चंद्र का पूर्ण रूप दिखाई देता है ज्वार भाटा जैसी प्राकृतिक जलीय घटनाएँ न्यूनाधिक रूप से घटित होने का समय भी इसी सिद्धांत ज्योतिष शास्त्र से ही संबंधित है ऐसे प्रत्यक्ष सिद्धांतों की आवश्यकता भूकंप संबंधी अनुसंधानों में क्यों नहीं समझी जाती रही है आखिर इन विषयों का उपयोग न किए जाने के पीछे का कारण क्या है | संभव ऐसा भी है कि ऐसे सिद्धांत गणित संबंधी विज्ञान का कोई एक सूत्र ही सटीक घटित हो जाए तो वही भूकंपों के संपूर्ण रहस्यों को गणित की पद्धति से सम्बद्ध कर सकता है | आखिर ग्रहणों के भी प्रारंभ काल में भी तो ऐसा कुछ ही हुआ होगा !
ऐसे ही समस्त विचारों से भावित होकर तो भूकंपों से संबंधित भविष्यवाणी के विषय में रूस की ताजिक विज्ञान अकादमी के भूकंप विज्ञान तथा भूकंप प्रतिरोधी निर्माण संस्थान के प्रयोगों के परिणामस्वरूप हाल में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यदि भूकंपों के दुबारा होने का समय अभिलेखित कर लिया जाय और विशेष क्षेत्र में पिछले इसी प्रकार के भूकंपों का काल विदित रहे, तो आगामी अधिक शक्तिशाली भूकंप का वर्ष निश्चित किया जा सकता है। भूकंप विज्ञानियों में एक संकेत प्रचलित है भूकंपों की आवृति की कालनीति का कोण और शक्तिशाली भूकंप की दशा का इस कालनीति में परिवर्तन आता है। इसकी जानकारी के पश्चात् भूकंपीय स्थल पर यदि तेज विद्युतीय संगणक उपलब्ध हो सके, तो दो तीन दिन के समय में ही शक्तिशाली भूकंप के संबंध में तथा संबद्ध स्थान के विषय में भविष्यवाणी की जा सकती है और भावी अधिकेंद्र तक का अनुमान लगाया जा सकता है !
रूस की ताजिक विज्ञान अकादमी के द्वारा भूकंपके विषय में ये जो विचार रखे गए हैं भूकंप संबंधी शोध कार्यों में उन्हें भी सम्मिलित करके इस शोध कार्य को आगे बढ़ाए जाने में सफलता की संभावनाएँ और अधिक बढ़ भी सकती हैं !ऐसी समस्त विधाओं विचारों मतों मतान्तरों आदि को भूकंप संबंधी शोध कार्यों में महत्त्व मिलना चाहिए न जाने किस विधा से भूकंप संबंधी शोध कार्यों में सफलता हाथ लग जाए !
पशु पक्षियों के बदलते व्यवहारों का अध्ययन -
माना जाता है कि कुछ जीव जंतु भूकंप के पहले के भौगोलिक परिवर्तनों को महसूस करने लगते हैं जैसे - भूकंप आने के कुछ दिन पहले ही मेढक वहाँ से पलायन करने लग जाते हैं ! ज्योतिष की ही एक शाखा है लक्षण शास्त्र और शकुन शास्त्र, जिसमें प्रकृति और विभिन्न प्राणियों के व्यवहार को देखकर प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है,यह बात कई शताब्दियों से चली आ रही है कि कुछ जानवर पशु-पक्षी आदि भी भूकंप आने से पहले अपनी हरकतें बदल डालते हैं। इसकी भले साइंटिफिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई हो, और खारिज भी नहीं किया गया हो, लेकिन ऐसे विषयों पर भी रिसर्च कई बार हुए हैं। जानवरों के भूकंप के संकेत देने को लेकर इटली, जापान, चीन सहित कई देशों में बौद्धिक शोधचर्चा होती रही है। इन पर रिसर्च कार्य हुए भी हैं |
जीव-जंतुओं में वर्षा, गर्मी, सर्दी, भूकंप, ज्वालामुखी से लेकर भावी घटनाओं के ज्ञान की विलक्षण क्षमता होती है। मनुष्य की अपेक्षा पक्षी एवं जीव-जंतुओं की इंद्रियां प्रकृतिजनित कारकों के प्रति कई गुना अधिक संवेदनशील व सक्रिय होती हैं। इसके कारण वे वातावरण के परिवर्तन और घटना विशेष के घटने के पूर्व अपना बचाव व व्यवहार परिवर्तन करने लगते हैं।लाखों-करोड़ों वर्षों से इन जीव-जंतुओं के मध्य रहकर मनुष्य ने अनेक शुभ-अशुभ संकेत का ज्ञान प्राप्त कर लिया है !चक्रवात, भूकंप, बाढ़, वर्षा आदि आपदाओं का जीव-जंतुओं को पूर्वाभास हो जाता है। चक्रवात, भूकंप आने से पूर्व जीव-जंतु भयवश इधर-उधर घबराते हुए मंडराते हैं। विचित्र आवाजें निकालते हैं, मालिक को उस स्थान को छोड़ने को विवश करते हैं।
बताया जाता है कि 26 जनवरी 2001 को भुज (गुजरात) में भूकंप आने से पहले घर में बंधे कुत्ते ने घबराते हुए तेजी से भौंकना, उछलना प्रारंभ कर दिया। लगातार कुत्ते के भौंकने और उछलने की क्रिया जारी रहने पर जब मालिक उसे लेकर घर के बाहर निकला ही था कि कुछ ही पल में उसका मकान भूकंप के झटके में गिर गया।बिल्ली को हम आवाज और व्यवहार में विविधता प्रकट करने के कारण अशुभ मानते हैं। विचित्र तरीकों से रोना और यात्रा अथवा विशेष अवसर पर जाते समय रास्ता काटने को संकट का प्रतीक मानते हैं।
सुना जाता है कि समुद्री नाविक यात्रा के समय बिल्लियों को अपने साथ ले जाते हैं। सन् 1912 में जब टाइटेनिक नामक जहाज अपनी यात्रा पर चल रहा था, तभी जहाज में मौजूद बिल्लियों ने कूदना आरंभ कर दिया। कुछ ही समय में सारी की सारी बिल्लियां नीचे कूद गईं। जहाज में बैठे लोगों का इस ओर ध्यान नहीं गया। कुछ ही समय उपरांत जहाज एक बड़े हिमखंड से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
इसी प्रकार सन् 1955 में 'जोतिया' नामक जहाज अपनी यात्रा पर निकला। जहाज निकलने के साथ ही जहाज में मौजूद सभी बिल्लियां रोने व चिल्लाने लगीं। यह जहाज भी यात्रा के मध्य में नष्ट हो गया।
अनेक बार रात्रि को कुत्ते ऊपर मुंह करके रोते हैं। उनके रोने की आवाज का क्रम निरंतर जारी रहता है।कुछ समय में पास के किसी घर से अशुभ समाचार मिलता है।कौवों के आचरणों में भी अनेक शुभ-अशुभ संकेत होते हैं।
कुल मिलाकर पक्षियों के क्रियाकलाप और उनके साथ घटी घटनाएं वर्षा, अल्पवर्षा और अतिवर्षा और सूखे आदि का संकेत माने जाते हैं।यदि कौआ कुएं में गिरकर मर जाता है तो माना जाता है कि इस वर्ष वर्षा बहुत कम, बाढ़ अथवा तीव्र गर्मी रहेगी !
वर्षा ऋतु में कौओं के झुंड का बिना आवाज निकाले अपने घोसले में लौटना तेज वर्षा होने का संकेत देता है, तो इसके विपरीत दिन की घनघोर घटाओं और चमकती बिजली के बीच यदि कबूतरों के झुंड आकाश में ऊंची उड़ान भरने के स्थान पर चुपचाप वृक्षों पर बैठे रहें तो उन घटाओं और बिजली चमकने का कोई अर्थ नहीं होता अर्थात वे घटनाएं बिना पानी बरसाते ही गुजर जाती हैं। गिरगिट के शरीर के वर्ण (रंग) का परिवर्तन वर्षा, अल्पवर्षा तथा पूर्ण वर्षा का संकेत देता है।
चींटी को भूकंप आने की जानकारी होजाती होगी क्योंकि चींटी भूकंप के झटके को महसूस कर लेती है, भूकंप की हलचल का भान होते ही चींटियां अपना घर छोड़ देती हैं। आमतौर पर चींटियां दिन में घर बदलती हैं, पर भूकंप का पता चलते ही वो किसी भी समय अपने घर से निकल पड़ती हैं!
भूकंप के झटके शुरू होने से पहले सांप अपने बिलों से बाहर भागने लगते हैं। समुद्र की गहराइयों में रहने वाली मछलियां भी भूकंप की तरंगों को बड़ी तीव्रता से पकड़ती हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि धरती से पहले भूकंप की तरंगें पानी को कंपित करती हैं
मेंढक या भेक मेंढक या भेक मेंढकों के समान या उनकी ही एक प्रजाति भेक को भूकंप से पहले आश्चर्यजनक रूप से पूरे समूह के साथ गायब होते पाया गया है। जहां भी भूकंप आया, वहां लगभग 3 दिन पहले से सारे भेक जादुई तरीके से गायब हो गए।
भूकंप आने से कुछ मिनट पहले राजहंस पक्षी एक समूह में जमा होते देखे गए हैं, तो बतखें डर के मारे पानी में उतरती पाई गई हैं। इतना ही नहीं, मोरों को झुंड बनाकर बेतहाशा चीखते हुए पाया गया है। विश्व में जहां भी जानवरों में इस तरह के बदलाव देखे गए हैं, वहां इसके कुछ मिनट बाद ही बड़ी भयंकर तीव्रता का भूकंप दर्ज किया गया है।
कुल मिलाकर जीव, जंतु, पशु, पक्षी आदि भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं को महसूस कर लेते हैं। माना जाता है कि ऐसा उनमें मौजूद संवेदी तंत्र के कारण होता है।
वर्षा के विषय में -पेड़ों पर दीमक तेजी से घर बनाने लगें तो इसे अच्छी वर्षा का संकेत माना जाता है। मोरों का नाचना, मेंढक का टर्राना और उल्लू का चीखना तो पूरे भारत में वर्षा का संकेत माना ही जाता है। बकरियां अगर अपने कानों को जोर-जोर से फड़फड़ाने लगें, तो यह भी शीघ्र वर्षा होने का सूचक माना जाता है। भेड़ें अगर अचानक अपने समूह में इकट्ठी होकर चुपचाप खड़ी हो जाएं, तो समझा जाता है कि भारी बारिश शुरू होने ही वाली है।शाम ढलते समय अगर लोमड़ी की आवाज कहीं दूर से दर्द से चीखने जैसी आए, तो यह बारिश आने का आसार मानी जाती है। अगर चींटियां भारी मात्रा में अपने समूह के साथ अंडे लेकर घर बदलती दिखाई दें, तो माना जाता है कि बारिश का मौसम अब शुरू होने ही वाला है। चिड़िया के घोंसले की उंचाई से भी बारिश का अंदाजा लगाया जाता है। अगर चिडि़या ने घोंसला पर्याप्त उंचाई पर बनाया हो, तो इसे अच्छी वर्षा का प्रतीक माना जाता है। यदि घोंसला नीचा है, तो वर्षा की अनुमान भी सामान्य से कम होने का लगाया जाता है आदि ।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैज्ञानिक उपकरणों की तुलना में जीव जंतु बेहद अधिक संवेदनशील होते हैं इसलिए भूकम्पों से संबंधित अनुसंधानों में इनके भी व्यवहारों में समय समय पर आने वाले स्वाभाविक परिवर्तनों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए | भूकंप के संकेत पशु पक्षी, मछलियां, कुत्ते व अन्य जीव जंतु पहले ही देने लगते हैं। उनके व्यवहार में परिवर्तन का मतलब है कि कोई दैविक आपदा आने वाली है। पुराने लोग कुत्ते बिल्लियों के रोने को अशुभ मानते हैं तथा अंदाजा लगा लेते हैं कि कुछ न कुछ अशुभ होने वाला है। संहिता ग्रंथों में पशुओं पक्षियों के व्यवहार परिवर्तनों का विशद वर्णन मिलता है !
जब भूकंप आने को होता है तो पशु-पक्षी कुछ अजीब हरकतें करने लगते हैं। चूहे अपनी बिलों से बाहर आ जाते हैं। अगर यह सही है तो वैज्ञानिक पशु-पक्षियों की इस अद्भुत क्षमता को भूकंप की पूर्व सूचना प्रणाली में क्यों नहीं बदल सकते। अगर ऐसा संभव हो जाए तो प्रकृति की इस तबाही पर विजय पा सकेगा मानव। यद्यपि प्रयोगशालाओं में इस पर शोध किए जा रहे हैं चूहे भूकंप आने का संकेत दे सकते हैं। जापान के शोधकर्ताओं ने पाया है कि भूकंप आने से पहले जिस तरह के विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र बनते है अगर चूहों को उन क्षेत्रों में रखा जाए तो वे अजीबोगरीब हरकतें करते हैं।चूहों का ऐसा व्यवहार कोबे में आए भूकंप से एक दिन पहले देखा गया था । इस तरह के व्यवहार से भूकंप के आने का कुछ अंदेशा लगाया जा सकता है। हालाँकि जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की हरकतें एक समान नहीं रहती इसलिए पक्की भविष्यवाणी करना कठिन हो जाता है।
इसी प्रकार से ज्वालामुखियों और जल संबंधी बड़े बाँधों और सरोवरों को भी ऐसे अध्ययनों में सम्मिलित किया जाना चाहिए आयुर्वेदोक्त वात विकृति को भी सम्मिलित किया जाए तथा ज्योतिषोक्त सूर्य चंद्र के प्रभावों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए !
संहिताशास्त्र में ग्रह नक्षत्रों से संबंधित ,आकाशीय एवं वायु जनित बहुत सारे ऐसे लक्षण हैं जो समय समय पर प्रकट और विलुप्त होते रहते हैं जिनका प्राकृतिक उत्पातों पर बड़ा असर होता है ऐसे लक्षणों का अध्ययन करना भी भूकंपीय शोध के संबंध में बहुत सहयोगी सिद्ध हो सकता है !
इसी प्रकार से सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य मंडल में चिन्ह वर्ण इसी प्रकार आकाश के वर्ण का अध्ययन चंद्र श्रृंगोन्नति का अध्ययन ,बज्रपातादि का अध्ययन ,ग्रहों नक्षत्रों के युति दृष्टि युक्ता आदि का फल अगस्त तारा उदित होते समय का अध्ययन यदि काँप रहा हो तो भूकंप का संकेत देता है इसी प्रकार और भी बहुत सारे लक्षण हैं भूकंप संबंधी पूर्वानुमान के लिए इन सब का अध्ययन किया जाना चाहिए !
इसी प्रकार प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन आवश्यक है !जिस जगह अकारण आकाश अचानक धूलि धूसरित हो जाए !या कुछ समय से लगातार वर्षा होने लगे सर्दी संबंधी बीमारियाँ जोर पकड़ने लगें !आग लगने की अचानक बहुत अधिक घटनाएँ घटित होने लगें गर्मी बहुत अधिक पड़ने लगे कुएँ तालाब अचानक सूखने लगें गरमी से सम्बंधित रोग जोर पकड़ने लगें ,अचानक भयानक आँधी तूफान आने लगें जो बहुत अधिक नष्ट भ्रष्ट कर गए हों ,आकाश में भयंकर काले काले बहुत बड़े बड़े आकार प्रकार के बादल घिरने लगें और बहुत थोड़ा सा बरस कर लौट जाएँ !ऐसे सभी लक्षणों का अध्ययन बहुत बारीकी से किया जाना चाहिए ऐसी सभी घटनाएँ भूकंप संबंधी पूर्व सूचना देने के लिए घटित हो रही होती हैं !
कुल मिलाकर भूकंप संबंधी पूर्वानुमानों को जानने के लिए ऐसे सभी लक्षणों का अध्ययन किया जाना चाहिए !
भूकंप तो कभी भी और कहीं भी आ सकते हैं और कितना भी बड़ा नुक्सान कर सकते हैं | भूकंपों को रोकने का तो कोई उपाय हो ही नहीं सकता किंतु इनके पूर्वानुमान के विषय में भी अभी तक विश्व वैज्ञानिक जगत सफलता शून्य है | लाचार है विश्व का भूकंप वैज्ञानिक समाज !भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाना तो बहुत बड़ी बात है भूकंप आते क्यों हैं इसका भी अभी तक कोई विश्वसनीय उत्तर उपलब्ध नहीं है जो उत्तर दिए जा रहे हैं उनके समर्थन में दिए जाने वाले आधारभूत तर्क इतने छिछले और परिवर्तनशील हैं कि उन पर विश्वास कैसे किया जाए !इन तर्कों में सत्यता के साक्ष्य न होने पर भी हर कोई अपनी अपनी बातें कहे जा रहा है !पर्यावरण वैज्ञानिक कहते हैं कि पर्यावरण बिगड़ने से आते हैं भूकंप !धार्मिक लोग कहते हैं कि जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब आते हैं भूकंप !ज्योतिष वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगलशनि की युति या कुग्रहों के संयोग से आते हैं भूकंप !शकुनशास्त्र जानने वाले अपने अपने तर्क देते हैं जबकि भूकंपों के विषय में अभी तक कुछ भी न जान्ने वाले भूकंप वैज्ञानिक कहते हैं धरती के अंदर की प्लेटें खिसकती हैं इसलिए आते हैं भूकंप !किंतु सही किसे माना जाए और क्यों माना जाए !विश्वास करने योग्य कोई तर्क प्रमाण आदि दे नहीं पा रहा है हर कोई अपनी अपनी बातें कहे जा रहा है भूकंपों के पूर्वानुमान की घोषणा कोई कर नहीं पा रहा है जिससे ये पता लग सके कि सही कौन है और गलत कौन !इन्हीं सभी कसौटियों पर कसे जाने पर भूकंप वैज्ञानिक अभी तक ये प्रूफ करने में असफल हैं कि वे भूकम्पों के विषय में कुछ अलग से जानते हैं और कोई भरोसा करने योग्य बात बता सकते हैं मेरी जानकारी के अनुशार विश्व के देशों में भूकंपविज्ञान के लिए मंत्रालय संस्थान विभाग आदि जो भी बनाए गए हैं वो अभी तक अपनी सार्थकता सिद्ध करने में असफल रहे हैं ! हर कोई अपने अपने राग अलापे जा रहा है किंतु सामूहिक रूप से सभी के अनुभवों का समवेत अध्ययन करके कोई रिसर्च किया गया हो काम से काम मेरी जानकारी में तो ऐसा कुछ भी नहीं है !भूकंपों के विषय में बिना किसी कारण और प्रमाण के भी मतभिन्नता है अज्ञानता है किंतु ये तभी तक है जब तक भूकंपों के संबंध में सच्चाई सामने नहीं आ जाती है !
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