Wednesday, 21 November 2018

       मित्रता जैसी संबंधों की महान अवस्था को कभी भी पसंद या नापसंद के आधार पर नहीं बनाना या छोड़ देना चाहिए क्योंकि पसंद मन का विषय है और मन तो बदला करता है!इसलिए ऐसी मित्रता भी किसी के प्रति बनती बिगड़ती रहती है !उसके ये कुछ प्रमुख कारण  से
  1. पहला कारण स्वार्थ होता है स्वार्थ के कारण संबंध बनते बिगड़ते रहते हैं !
  2. दूसरा कारण संबंधित लोगों के नाम के पहले अक्षरों का उनके स्वभाव पर पड़ने वाला असर !
  3. तीसरा कारण उन दोनों का अपना अपना समय होता है जिस व्यक्ति का अपना समय बहुत अच्छा चल रहा होता है वह व्यक्ति बुरे समय से ग्रस्त अपने भूतपूर्व मित्र  की मित्रता का परित्याग  कर देता है !यद्यपि अच्छे और बुरे  समय से ग्रस्त दो बहुत पूर्वमित्रों के आचार व्यवहार संस्कार सदाचार सोच आदि में भारी अंतर आ चुका होता है जबकि पूर्व में उन दोनों के स्वभाव सामान थे तब मित्रता हुई थी किंतु  समय  बदल जाने से स्वभाव  बदल जाता है !पसंद नापसंद बदल जाती है जिसे पहले आप पसंद कर रहे होते हैं वही ना पसंद होने लगता है !
      किसी लड़की - लड़के या स्त्री - पुरुष को देखकर यदि आपको गुस्सा लगने लगे,उसकी चर्चा या प्रशंसा सुनने में आपको बुरा लगने लगे !किसी के द्वारा किए गए अच्छे कामों में भी यदि आपका मन कमी निकालने का होने लगे अकारण ही किसी की निंदा करने का मन हो तो इसका मतलब ये कतई नहीं है कि वो व्यक्ति गलत ही हो या स्वयं आप ही गलत हों ऐसा भी नहीं है अपितु संभव ऐसा भी है कि आपके और उसके नाम के पहले अक्षर एक दूसरे के लिए अच्छे न हों इसीलिए उन अक्षरों ने अकारण ही ऐसा स्वभाव बना दिया है !
      इसी प्रकार से किसी को देखकर आपको सुख मिलता है उसकी बातें हृदय को आनंदित करती हैं उसके विषय की चर्चा या उसकी प्रशंसा सुनने में आपको अच्छा लगने लगता है उसके गलत आचरणों में भी आप अच्छाइयाँ खोजने लगते हैं !इसका मतलब आपके और उसके नाम का पहलाक्षर आपके नाम के पहले अक्षर को प्रभावित कर रहा होता है !
      ऐसी परिस्थिति में स्वार्थ के कारण ,समय के कारण ,नाम के पहले अक्षर के कारणों से प्रभावित होकर हम अपने मित्र और शत्रु बना लेते हैं जबकि अपनी पसंद के आधीन होकर उनमें से जिन लोगों को हम मित्र बना लेते हैं वे ज्ञान प्रतिभा चरित्र कर्मठता अपनेपन ईमानदारी आदि की दृष्टि से वे हमारे मित्र बनने के योग्य नहीं होते हैं और जो लोग वास्तव में हमारे मित्र बनने लायक होते हैं उनकी पहचान हम नहीं कर पाते हैं !इसीप्रकार से कुछ कारणों से या अपनी मूडीपन के कारण हम कुछ ऐसे लोगों को शत्रु बना बैठते हैं जो वास्तव में हमारे लिए बहुत अच्छे हितैषी एवं अपनेपन की सोच रखने वाले होते हैं !+

 ण हर किसी की पसंद और नापसंद प्रभाव में आकर

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