विषय : 'प्रयागराज' की तरह ही 'हिंदुस्तान' शब्द को बदलकर 'आर्यावर्त'करने का निवेदन !इसीविषय में आपसे मिलने हेतु !
महोदय,
मैंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से वर्ण विज्ञान से संबंधित रिसर्च की है जिस अनुसंधान से मुझे पता लगा कि किसी के नाम के पहले अक्षर का कितना अधिक महत्त्व होता है उस व्यक्ति जनपद प्रांत देश आदि में उस नाम के पहले अक्षर के अनुसार गुण आ जाते हैं तथा उसके संबंध दूसरे व्यक्ति जनपद प्रांत देश आदि के साथ कैसे होंगे अर्थात निभेंगे या नहीं निभेंगे !इस पर भी उन दोनों के नाम के पहले अक्षरों का असर होता है !वर्णविज्ञान का पालन करने से बड़े बड़े संयुक्त परिवार होते देखे जाते थे तभी तो 'वसुधैव कुटुम्बकं' की भावना साकार हो पाती थी !'वर्णविज्ञान' की उपेक्षा करते ही पति पत्नी तक का साथ रह पाना कठिन होता जा रहा है !
हिंदी हिंदू हिंदुस्तान जैसे शब्दों को ही लें इनका पहला अक्षर 'ह' वर्णविज्ञान की दृष्टि से अत्यंत कमजोर प्रजाति का है !ये शब्द हमें किसने दिए क्यों दिए कब दिए देने वाले का उद्देश्य क्या रहा होगा !इससे उसे कितना लाभ हुआ एवं इसका लाभ या हानि हमें कितनी उठानी पड़ी !इसका मूल्याङ्कन भी किया जाना चाहिए !हिंदी हिंदू हिंदुस्तान जैसे शब्दों का भारत के प्राचीन किसी ग्रंथ में कोई इतिहास नहीं है इसका कहीं भी वर्णन नहीं मिलता है यदि कहीं प्रक्षिप्त हो तो और बात है ! 'वर्णविज्ञान' की दृष्टि से 'ह' अक्षर को सबसे कमजोर प्रजाति का वर्ण माना गया है !तभी तो -
हिंदी - हिंदीभाषी लोगों की जो रूचि या आदर अंग्रेजी के प्रति है वो हिंदी के प्रति क्यों नहीं है ?
हिंदू - हिंदू नाम मिलने के बाद ही तो हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ अयोध्या मथुरा काशी के प्रमुख मंदिर तोड़े गए जो आज तक अपने पुराने स्वरूप में नहीं लाए जा सके हैं !
हिंदुस्तान- देश का नाम हिंदुस्तान पड़ने के बाद ही यह देश सैकड़ों वर्षों तक परतंत्र रहा और देश के टुकड़े टुकड़े हो गए !पहले तो ऐसा नहीं हुआ था !
विदेशियों ने अपना लक्ष्य साधन करने के लिए हमारे देश धर्म एवं भाषा के नाम बदल डाले और हमें गुलाम बना लिया एवं हमारे भारत देश को टुकड़ों में बाँट दिया !
'हस्तिनापुर' को ही देखिए - 'ह' की कमजोरी के कारण ही तो हस्तिनापुर को सात बार गंगा जी बहा ले गईं !एक बार बलराम जी ने हल से इस नगर को खींच कर गंगा जी में लटका दिया था !पहले इस नगर का नाम 'आसंदीवत' था तब तो ऐसा नहीं हुआ था !हाथी अधिक हो जाने के कारण उसका नाम हस्तिनापुर बाद में रख दिया गया था !
ह अक्षर कमजोर होने के कारण ही तो श्री राम का नाम 'ह' अक्षर से न रख कर 'र' अक्षर से रखा गया था !अन्यथा 'पुनर्वसु' नक्षत्र के (के को हा ही) चौथे चरण में श्री राम का जन्म हुआ था तो उनका नाम 'ही' अक्षर से बनता था !किंतु इसीलिए तो वशिष्ठ जी ने 'ही' अक्षर पर न रखकर अपितु 'र' अक्षर से 'राम' नाम रखा था ! "धरे नाम गुरु हृदय बिचारी !"
स्वदेशी पर स्वाभिमान करने वाले हम लोग अपना कैसे समझें जो विदेशियों ने हमें अपना लक्ष्य साधने के लिए दिए थे !हमें हमारे इतिहास से काटने के लिए दिए थे!हमें गुलाम बनाने के लिए एवं हमारे देश के टुकड़े टुकड़े करने के लिए दिए थे ! ईरानियों ने भारत से 'वर्णविज्ञान' सीखा उससे संबंधित किताबें लिखीं और भारत को 'हिंदुस्तान' बना दिया !इसी प्रकार से अंग्रेजों ने ईरानियों के द्वारा भारतीय ज्योतिष की अरबी में अनूदित किताबों का अनुवाद अंग्रेजी में किया और ईरानियों से भारतीयों को अलग करने के लिए अपने देश का नाम 'इण्डिया' रख दिया !इस 'हिन्द' शब्द का सिंधु नदी से कोई संबंध नहीं है यदि होता तो यह देश हिंदुस्तान नहीं अपितु ' सिन्धुस्तान' होता ! भारत की सीमाएँ पहले अत्यंत विस्तारित थीं इस देश के पहले कभी टुकड़े टुकड़े नहीं हुए थे और न ही परतंत्र हुआ किंतु हिंदुस्तान नाम पड़ने के बाद ही ये सब कुछ हुआ !
श्रीमान जी ! प्रत्येक वर्ण(अक्षर) में अलग अलग प्रकार की स्थायी क्षमताएँ स्वभाव आदि होते हैं जो बदलते नहीं हैं !नाम के पहले अक्षरों के आधार पर ही लोगों के संबंध एक दूसरे से बनते या बिगड़ते देखे जाते हैं !क्योंकि अपने नाम का पहला अक्षर और उस व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर जिसके साथ हमें किसी भी प्रकार का कोई संबंध रखना है !इस दृष्टि से बहुत महत्त्व पूर्ण होता है !
महोदय,
मैंने काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से वर्ण विज्ञान से संबंधित रिसर्च की है जिस अनुसंधान से मुझे पता लगा कि किसी के नाम के पहले अक्षर का कितना अधिक महत्त्व होता है उस व्यक्ति जनपद प्रांत देश आदि में उस नाम के पहले अक्षर के अनुसार गुण आ जाते हैं तथा उसके संबंध दूसरे व्यक्ति जनपद प्रांत देश आदि के साथ कैसे होंगे अर्थात निभेंगे या नहीं निभेंगे !इस पर भी उन दोनों के नाम के पहले अक्षरों का असर होता है !वर्णविज्ञान का पालन करने से बड़े बड़े संयुक्त परिवार होते देखे जाते थे तभी तो 'वसुधैव कुटुम्बकं' की भावना साकार हो पाती थी !'वर्णविज्ञान' की उपेक्षा करते ही पति पत्नी तक का साथ रह पाना कठिन होता जा रहा है !
हिंदी हिंदू हिंदुस्तान जैसे शब्दों को ही लें इनका पहला अक्षर 'ह' वर्णविज्ञान की दृष्टि से अत्यंत कमजोर प्रजाति का है !ये शब्द हमें किसने दिए क्यों दिए कब दिए देने वाले का उद्देश्य क्या रहा होगा !इससे उसे कितना लाभ हुआ एवं इसका लाभ या हानि हमें कितनी उठानी पड़ी !इसका मूल्याङ्कन भी किया जाना चाहिए !हिंदी हिंदू हिंदुस्तान जैसे शब्दों का भारत के प्राचीन किसी ग्रंथ में कोई इतिहास नहीं है इसका कहीं भी वर्णन नहीं मिलता है यदि कहीं प्रक्षिप्त हो तो और बात है ! 'वर्णविज्ञान' की दृष्टि से 'ह' अक्षर को सबसे कमजोर प्रजाति का वर्ण माना गया है !तभी तो -
हिंदी - हिंदीभाषी लोगों की जो रूचि या आदर अंग्रेजी के प्रति है वो हिंदी के प्रति क्यों नहीं है ?
हिंदू - हिंदू नाम मिलने के बाद ही तो हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ अयोध्या मथुरा काशी के प्रमुख मंदिर तोड़े गए जो आज तक अपने पुराने स्वरूप में नहीं लाए जा सके हैं !
हिंदुस्तान- देश का नाम हिंदुस्तान पड़ने के बाद ही यह देश सैकड़ों वर्षों तक परतंत्र रहा और देश के टुकड़े टुकड़े हो गए !पहले तो ऐसा नहीं हुआ था !
विदेशियों ने अपना लक्ष्य साधन करने के लिए हमारे देश धर्म एवं भाषा के नाम बदल डाले और हमें गुलाम बना लिया एवं हमारे भारत देश को टुकड़ों में बाँट दिया !
'हस्तिनापुर' को ही देखिए - 'ह' की कमजोरी के कारण ही तो हस्तिनापुर को सात बार गंगा जी बहा ले गईं !एक बार बलराम जी ने हल से इस नगर को खींच कर गंगा जी में लटका दिया था !पहले इस नगर का नाम 'आसंदीवत' था तब तो ऐसा नहीं हुआ था !हाथी अधिक हो जाने के कारण उसका नाम हस्तिनापुर बाद में रख दिया गया था !
ह अक्षर कमजोर होने के कारण ही तो श्री राम का नाम 'ह' अक्षर से न रख कर 'र' अक्षर से रखा गया था !अन्यथा 'पुनर्वसु' नक्षत्र के (के को हा ही) चौथे चरण में श्री राम का जन्म हुआ था तो उनका नाम 'ही' अक्षर से बनता था !किंतु इसीलिए तो वशिष्ठ जी ने 'ही' अक्षर पर न रखकर अपितु 'र' अक्षर से 'राम' नाम रखा था ! "धरे नाम गुरु हृदय बिचारी !"
स्वदेशी पर स्वाभिमान करने वाले हम लोग अपना कैसे समझें जो विदेशियों ने हमें अपना लक्ष्य साधने के लिए दिए थे !हमें हमारे इतिहास से काटने के लिए दिए थे!हमें गुलाम बनाने के लिए एवं हमारे देश के टुकड़े टुकड़े करने के लिए दिए थे ! ईरानियों ने भारत से 'वर्णविज्ञान' सीखा उससे संबंधित किताबें लिखीं और भारत को 'हिंदुस्तान' बना दिया !इसी प्रकार से अंग्रेजों ने ईरानियों के द्वारा भारतीय ज्योतिष की अरबी में अनूदित किताबों का अनुवाद अंग्रेजी में किया और ईरानियों से भारतीयों को अलग करने के लिए अपने देश का नाम 'इण्डिया' रख दिया !इस 'हिन्द' शब्द का सिंधु नदी से कोई संबंध नहीं है यदि होता तो यह देश हिंदुस्तान नहीं अपितु ' सिन्धुस्तान' होता ! भारत की सीमाएँ पहले अत्यंत विस्तारित थीं इस देश के पहले कभी टुकड़े टुकड़े नहीं हुए थे और न ही परतंत्र हुआ किंतु हिंदुस्तान नाम पड़ने के बाद ही ये सब कुछ हुआ !
श्रीमान जी ! प्रत्येक वर्ण(अक्षर) में अलग अलग प्रकार की स्थायी क्षमताएँ स्वभाव आदि होते हैं जो बदलते नहीं हैं !नाम के पहले अक्षरों के आधार पर ही लोगों के संबंध एक दूसरे से बनते या बिगड़ते देखे जाते हैं !क्योंकि अपने नाम का पहला अक्षर और उस व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर जिसके साथ हमें किसी भी प्रकार का कोई संबंध रखना है !इस दृष्टि से बहुत महत्त्व पूर्ण होता है !
इसी प्रकार से आर्यावर्त या भारत को जब से
'हिंदुस्तान' कहा गया तब से भारत टुकड़ों टुकड़ों में विभाजित हो गया !भारत
परतंत्र हुआ !पहले मुस्लिम आक्रंताओं ने कब्ज़ा किया फिर अंग्रेजों ने कब्ज़ा
किया !जब से उनसे स्वतंत्र हुआ तब से आतंकवादियों और उग्रवादियों से
आक्रांत अपना भारत स्वस्थ नहीं है !
महोदय ,इसीविषय में 'वर्णविज्ञान' नाम से मैंने एक पुस्तक लिखी है वो आपको भेंट करके अपनी भावना निवेदित करने के लिए आपसे मिलने हेतु समय चाहता हूँ !
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