सूर्य चंद्र और वायु अर्थात सर्दी गर्मी और हवा इन तीनों की ही इस सृष्टि के संचालन में बहुत बड़ी भूमिका है !इन तीनों की ही सृष्टि को बहुत बड़ी आवश्यकता है इन तीनों के बिना न तो प्रकृति चल सकती है और न ही मनुष्य आदि प्राणिमात्र का जीवन ही रह सकता है !उन तीनों के उचित सीमा में रहने से प्रकृति और जीवन दोनों ठीक रहते हैं इनके कम या अधिक होने से प्रकृति और जीवन दोनों में समस्याएँ पैदा होने लगती हैं!
सूर्य चंद्र और वायु तीनों के उचित अनुपात से प्रकृति का पालन पोषण होता है और इन्हीं तीनों के उचित अनुपात से मनुष्य आदि सभी जीवों जंतुओं का पालन पोषण होता है !इन्हीं तीनों का आपसी अनुपात बिगड़ जाने से प्राकृतिक आपदाएँ और शारीरिक रोग घटित होते हैं !
आयुर्वेद में इन्हीं वायु, सूर्य और चंद्र को वात पित्त और कफ के स्वरूप में कहा गया है!इन तीनों का अनुपात बिगड़ने से शरीर रोगी होते हैं मन में तनाव चिंता भय आदि रोग घटित होते हैं!वृक्षायुर्वेद में इन्हीं तीनों का अनुपात बिगड़ने से वृक्षों के रोगी होने की बात कही गयी है!
चिकित्सा आदि की सहायता से इनके बिगड़े हुए अनुपात को उचित अनुपात में ले आने से जीवन स्वस्थ और मन प्रसन्न हो जाता है!और इनके उचित अनुपात में होने से वृक्षों के उत्तम स्वास्थ्य के विषय बताया गया है !
प्रारंभिक अवस्था - सहज परिस्थिति में तो वात पित्त और कफ आदि प्रकृति और शरीरों में उचित अनुपात में ही होते हैं ! और सभी को जीवन दान किया करते हैं किंतु सूर्य चंद्र आदि !प्रकृति में तो
प्राणियों के शरीरों में यही अनुपात बिगड़ने से रोग दोष आदि घटित होते हैं !इसी वातावरण का असर जब मन पर पड़ता है तो मानसिक तनाव चिंता भय शोक क्रोध सहनशीलता आदि घटते बढ़ते हैं !
ठंडी गर्मी वर्षा आदि तीन प्रकार की मुख्य ऋतुएँ होती हैं ये तीनों यदि सीमा में बनी रहें अर्थात उचित मात्रा में अपना असर करें तब तो सब कुछ ठीक चलता रहता है इनका असर सीमा से कम या अधिक बढ़ते ही सारे जीव जंतु आदि उससे पीड़ित होने लगते हैं!ऐसे ही अचानक मौसम बदल जाए या ऋतुसंधि आ जाए !जैसे मार्च - अप्रैल ,जून-जुलाई,अक्टूबर-नवंबर की संधि में जब मौसम बदलने लगता है और परस्पर विरोधी दो प्रकार की ऋतुओं का असर एक साथ होने लगता है तो उसका असर भी मनुष्य आदि सभी जीव जंतुओं पर पड़ते देखा जाता है !इसीलिए ऐसे समयों में अनेकों प्रकार के रोग दोष आदि जन्म लेते हैं ! प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही तो शारीरिक और मानसिक आपदाएँ भी होती हैं !
प्रकृति और जीवन दोनों साथ साथ चलते हैं प्रकृति गर्भ है तो मनुष्य आदि सभी जीव जंतुओं का जीवन उसमें पलने वाला गर्भस्थ शिशु है! गर्भिणी स्त्री को होने वाले रोग दोष दुःख आदि विकारों का असर उस गर्भस्थ शिशु पर भी पड़ता है !इसीप्रकार से प्रकृति में होने वाली सीमा से अधिक सर्दी गर्मी वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि प्रकृति विकारों का असर भी मनुष्य आदि सभी जीव जंतुओं पर होता है !उससे होने वाले रोगों दोषों आदि से सभी जीव पीड़ित होते हैं !
गर्भस्थ शिशु के जीवन की तरह ही प्रकृतिस्थ मनुष्य आदि सभी जीव जंतुओं का जीवन भी प्रकृति के गर्भ में ही पलता बढ़ता है!प्रकृति के प्रदूषित होने पर गर्भस्थ शिशु की तरह ही प्रकृति में स्थित सभी पेड़ पौधे बनस्पतियाँ अन्न जल फल फूल समेत सारा प्राकृतिक वातावरण ही रोगी हो जाता है !उसी अनुपात में मनुष्यादि जीव जंतु भी रोगी हो जाते हैं इसके साथ साथ उस समय निर्मित औषधियाँ या बनौषधियाँ आदि भी उसी अनुपात में रोगी हो जाती हैं!उनमें भी विकार आ जाते हैं ! वातावरण का असर प्रकृति से लेकर जीवन तक सब पर समान रूप से पड़ता है !
इसलिए ऐसे रोगों में लाभ करने के लिए हमेंशा से प्रसिद्ध रह चुकी औषधियाँ भी उस समय गुणहीन हो जाने के कारण उन्हीं रोगों पर असर करना छोड़ देती हैं! ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकों को भ्रम होने लगता है और वे उन्हें कोई नया रोग मानने की गलती कर बैठते हैं इसीलिए उसका कोई नया नाम रख लेते हैं और रोग लक्षणों के अनुसार ऐसे रोगियों पर लाभ करने वाली तरह तरह की औषधियों का प्रयोग एवं परीक्षण करने लगते हैं !किंतु जैसे ही प्राकृतिक प्रदूषण घटता है वैसे ही वातावरण में सुधार होने लगता है स्वच्छ वातावरण पाते ही जल वायु अन्न फल फूल औषधियाँ या बनौषधियाँ आदि अपने अपने वास्तविक गुण धर्म से युक्त हो जाती हैं !इसका असर रोगियों के शरीरों पर भी पड़ने लगता है और शरीर सबल एवं स्वतः ही रोग मुक्त होने लगते हैं !
स्वास्थ्य लाभ होते ही ऐसे समय उन रोगियों के द्वारा अपने स्वस्थ होने के लिए जो जो उपाय किए जा रहे होते हैं वे उन्हीं उपायों को अपनी बीमारी की औषधी मानने लगते हैं !ऐसे समय चिकित्सक लोग जिस रोगी पर जिस औषधि का प्रयोग कर रहे होते हैं वे उस रोग की औषधि उसे ही मान लेते हैं !ऐसी परिस्थिति में जो धन हीन साधन विहीन लोग अभाव के कारण बड़े बड़े अस्पतालों चिकित्सकों के पास नहीं जा सके महँगी महँगी दवाइयाँ नहीं खा सके वे अपनी अपनी सुविधा और विश्वास के अनुसार जो भी झाड़ फूँक यंत्र तंत्र ताबीज जादू टोने टोटके आदि कर रहे होते हैं वे अपने स्वस्थ होने का श्रेय अपने उन उन उपायों को देने लगते हैं !क्योंकि बीमार तो वे भी थे और स्वस्थ वो भी हुए होते हैं इसलिए उनके अनुभवों को भी झुठलाया कैसे जा सकता है!
इस प्रकार से प्रकृति में घटित हो रही अच्छी बुरी सभी घटनाओं का असर प्रकृतिस्थ जीवन पर अर्थात हम पर आप पर भी पड़ता है आँधी तूफान चक्रवात वर्षा बाढ़ भूकंप आदि सभी प्रकृति में होने वाले रोग हैं!इसी प्रकार से जुकाम बुखार टीवी आदि शरीर में होने वाले रोग हैं तनाव चिंता भय निराशा आदि मन में होने वाले रोग हैं !
सूर्य चंद्र और वायु तीनों के उचित अनुपात से प्रकृति का पालन पोषण होता है और इन्हीं तीनों के उचित अनुपात से मनुष्य आदि सभी जीवों जंतुओं का पालन पोषण होता है !इन्हीं तीनों का आपसी अनुपात बिगड़ जाने से प्राकृतिक आपदाएँ और शारीरिक रोग घटित होते हैं !
आयुर्वेद में इन्हीं वायु, सूर्य और चंद्र को वात पित्त और कफ के स्वरूप में कहा गया है!इन तीनों का अनुपात बिगड़ने से शरीर रोगी होते हैं मन में तनाव चिंता भय आदि रोग घटित होते हैं!वृक्षायुर्वेद में इन्हीं तीनों का अनुपात बिगड़ने से वृक्षों के रोगी होने की बात कही गयी है!
चिकित्सा आदि की सहायता से इनके बिगड़े हुए अनुपात को उचित अनुपात में ले आने से जीवन स्वस्थ और मन प्रसन्न हो जाता है!और इनके उचित अनुपात में होने से वृक्षों के उत्तम स्वास्थ्य के विषय बताया गया है !
प्रारंभिक अवस्था - सहज परिस्थिति में तो वात पित्त और कफ आदि प्रकृति और शरीरों में उचित अनुपात में ही होते हैं ! और सभी को जीवन दान किया करते हैं किंतु सूर्य चंद्र आदि !प्रकृति में तो
प्राणियों के शरीरों में यही अनुपात बिगड़ने से रोग दोष आदि घटित होते हैं !इसी वातावरण का असर जब मन पर पड़ता है तो मानसिक तनाव चिंता भय शोक क्रोध सहनशीलता आदि घटते बढ़ते हैं !
ठंडी गर्मी वर्षा आदि तीन प्रकार की मुख्य ऋतुएँ होती हैं ये तीनों यदि सीमा में बनी रहें अर्थात उचित मात्रा में अपना असर करें तब तो सब कुछ ठीक चलता रहता है इनका असर सीमा से कम या अधिक बढ़ते ही सारे जीव जंतु आदि उससे पीड़ित होने लगते हैं!ऐसे ही अचानक मौसम बदल जाए या ऋतुसंधि आ जाए !जैसे मार्च - अप्रैल ,जून-जुलाई,अक्टूबर-नवंबर की संधि में जब मौसम बदलने लगता है और परस्पर विरोधी दो प्रकार की ऋतुओं का असर एक साथ होने लगता है तो उसका असर भी मनुष्य आदि सभी जीव जंतुओं पर पड़ते देखा जाता है !इसीलिए ऐसे समयों में अनेकों प्रकार के रोग दोष आदि जन्म लेते हैं ! प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही तो शारीरिक और मानसिक आपदाएँ भी होती हैं !
प्रकृति और जीवन दोनों साथ साथ चलते हैं प्रकृति गर्भ है तो मनुष्य आदि सभी जीव जंतुओं का जीवन उसमें पलने वाला गर्भस्थ शिशु है! गर्भिणी स्त्री को होने वाले रोग दोष दुःख आदि विकारों का असर उस गर्भस्थ शिशु पर भी पड़ता है !इसीप्रकार से प्रकृति में होने वाली सीमा से अधिक सर्दी गर्मी वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि प्रकृति विकारों का असर भी मनुष्य आदि सभी जीव जंतुओं पर होता है !उससे होने वाले रोगों दोषों आदि से सभी जीव पीड़ित होते हैं !
गर्भस्थ शिशु के जीवन की तरह ही प्रकृतिस्थ मनुष्य आदि सभी जीव जंतुओं का जीवन भी प्रकृति के गर्भ में ही पलता बढ़ता है!प्रकृति के प्रदूषित होने पर गर्भस्थ शिशु की तरह ही प्रकृति में स्थित सभी पेड़ पौधे बनस्पतियाँ अन्न जल फल फूल समेत सारा प्राकृतिक वातावरण ही रोगी हो जाता है !उसी अनुपात में मनुष्यादि जीव जंतु भी रोगी हो जाते हैं इसके साथ साथ उस समय निर्मित औषधियाँ या बनौषधियाँ आदि भी उसी अनुपात में रोगी हो जाती हैं!उनमें भी विकार आ जाते हैं ! वातावरण का असर प्रकृति से लेकर जीवन तक सब पर समान रूप से पड़ता है !
इसलिए ऐसे रोगों में लाभ करने के लिए हमेंशा से प्रसिद्ध रह चुकी औषधियाँ भी उस समय गुणहीन हो जाने के कारण उन्हीं रोगों पर असर करना छोड़ देती हैं! ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकों को भ्रम होने लगता है और वे उन्हें कोई नया रोग मानने की गलती कर बैठते हैं इसीलिए उसका कोई नया नाम रख लेते हैं और रोग लक्षणों के अनुसार ऐसे रोगियों पर लाभ करने वाली तरह तरह की औषधियों का प्रयोग एवं परीक्षण करने लगते हैं !किंतु जैसे ही प्राकृतिक प्रदूषण घटता है वैसे ही वातावरण में सुधार होने लगता है स्वच्छ वातावरण पाते ही जल वायु अन्न फल फूल औषधियाँ या बनौषधियाँ आदि अपने अपने वास्तविक गुण धर्म से युक्त हो जाती हैं !इसका असर रोगियों के शरीरों पर भी पड़ने लगता है और शरीर सबल एवं स्वतः ही रोग मुक्त होने लगते हैं !
स्वास्थ्य लाभ होते ही ऐसे समय उन रोगियों के द्वारा अपने स्वस्थ होने के लिए जो जो उपाय किए जा रहे होते हैं वे उन्हीं उपायों को अपनी बीमारी की औषधी मानने लगते हैं !ऐसे समय चिकित्सक लोग जिस रोगी पर जिस औषधि का प्रयोग कर रहे होते हैं वे उस रोग की औषधि उसे ही मान लेते हैं !ऐसी परिस्थिति में जो धन हीन साधन विहीन लोग अभाव के कारण बड़े बड़े अस्पतालों चिकित्सकों के पास नहीं जा सके महँगी महँगी दवाइयाँ नहीं खा सके वे अपनी अपनी सुविधा और विश्वास के अनुसार जो भी झाड़ फूँक यंत्र तंत्र ताबीज जादू टोने टोटके आदि कर रहे होते हैं वे अपने स्वस्थ होने का श्रेय अपने उन उन उपायों को देने लगते हैं !क्योंकि बीमार तो वे भी थे और स्वस्थ वो भी हुए होते हैं इसलिए उनके अनुभवों को भी झुठलाया कैसे जा सकता है!
इस प्रकार से प्रकृति में घटित हो रही अच्छी बुरी सभी घटनाओं का असर प्रकृतिस्थ जीवन पर अर्थात हम पर आप पर भी पड़ता है आँधी तूफान चक्रवात वर्षा बाढ़ भूकंप आदि सभी प्रकृति में होने वाले रोग हैं!इसी प्रकार से जुकाम बुखार टीवी आदि शरीर में होने वाले रोग हैं तनाव चिंता भय निराशा आदि मन में होने वाले रोग हैं !
आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि मनुष्य जीवन को बाहर से चोट पहुँचाते हैं ये ही यदि भयानक रूप धारण कर लेते हैं तो प्राकृतिक आपदाएँ पैदा करते हैं जिसमें बहुत लोग मर भी जाते हैं उसी प्रकार से ये मनुष्य शरीर में भी अंदर से चोट पहुँचाते हैं और अनेकों प्रकार के रोग पैदा करते हैं उससे बहुत लोग मर भी जाते हैं !
यही प्राकृतिक विकार मन में तनाव चिंता भय निराशा आदि पैदा करते हैं उसमें भी यदि ये और अधिक भयानक स्वरूप धारण कर लेते हैं तो मृत्यु तक होते देखी जाती है !
सर्दी गर्मी और हवा का आश्रय लेकर ही सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ एवं शारीरिक रोग पैदा होते हैं !इसी से मानसिक समस्याएँ या तनाव आदि पैदा होता है !
जो सर्दी गर्मी वायु आदि प्राकृतिक आपदाओं को करते हैं शारीरिक रोगों को पैदा करते हैं मानसिक समस्याओं को पैदा करते हैं !वो गर्मी सर्दी भी सूर्य और चंद्र के ही आधीन है इसी गर्मी सर्दी का आपसी अनुपात कम या अधिक होने से तो वायु निर्मित होती है !
इसलिए इन तीनों में भी प्रमुख तो सूर्य और चंद्र ही हैं चंद्र भी तो सूर्य के ही आधीन है !इसप्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ एवं शारीरिक रोग और मानसिक समस्याएँ सूर्य के ही आधीन हैं !
सूर्य का प्रभाव - घटते बढ़ते सूर्य के प्रभाव का अध्ययन
इसलिए इन तीनों में भी प्रमुख तो सूर्य और चंद्र ही हैं चंद्र भी तो सूर्य के ही आधीन है !इसप्रकार से वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ एवं शारीरिक रोग और मानसिक समस्याएँ सूर्य के ही आधीन हैं !
सूर्य का प्रभाव - घटते बढ़ते सूर्य के प्रभाव का अध्ययन
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