पूर्वानुमान विज्ञान
पूर्वानुमानों की आवश्यकता क्यों ?
प्राचीन काल से ही भविष्य में झाँकने की मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति रही है भारत वर्ष में इसका अतिप्राचीन इतिहास है ! अति प्राचीन काल से भारतीय लोग प्रकृति एवं जीवन से संबंधित विभिन्न प्रकार की घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !उसी के अनुसार जीवन जीना शुरू कर दिया करते थे जिससे प्रयास पूर्वक कुछ नुक्सान कम कर लिया करते थे और कुछ नुक्सान सह लिया करते थे ऐसे सभी का जीवन बीतता चला जाता था !उस युग में किए जाने वाले पूर्वानुमानों से इतना लाभ तो अवश्य था कि उस युग में मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ झूठी नहीं हुआ करती थीं इसलिए किसान उनका पूरा लाभ उठा लिया करते थे इसीलिए सभी सुखी रहते थे !जब से भारत के प्राचीन मौसम पूर्वानुमान को अंधविश्वास बताकर उसे पीछे किया गया और आधुनिक मौसम विज्ञान को आगे लाया गया !उसमें वो सच्चाई मिली नहीं मिली जो प्राचीन समय वैज्ञानिक पूर्वानुमानों से मिलती रही इससे विगत कुछ दशकों में मौसमविभाग के गलत पूर्वानुमानों से नुक्सान उठा चुके किसान लोग आत्महत्या करते देखे जाने लगे !किसानों की अपेक्षाओं पर आधुनिक मौसम पूर्वानुमान विभाग खरा उतर भी नहीं सकता है !
प्राचीन या काल में केवल मौसम का ही नहीं अपितु प्रकृति या जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित पूर्वानुमान लगाए जाते थे !उसी के अनुसार चला जाता था इसीलिए तब प्रकृति या जीवन में दुर्घटनाएँ इतनी नहीं घटित होती थीं !बीमारियाँ इतना भयानक रूप नहीं ले पाती थीं,रोग इतने नहीं हुआ करते थे !वैद्य लोग रोगी को देखते ही पूर्वानुमान लगा लिया करते थे कि ये स्वस्थ होगा या नहीं अथवा मृत्यु को प्राप्त होगा !उसी हिसाब से चिकित्सा किया करते थे !वर्तमान समय में तो मरने से कुछ पूर्व भी लोग ग्लुकोष की बोतल लगाए रखते हैं !
इन्हीं पूर्वानुमानों के कारण तब अपराध इतने नहीं होते थे हर किसी को अपना अपना भविष्य पता होता था कि किस प्रकार के काम काज से वो कितना आगे बढ़ सकता है उसके अलावा उसे किसी अन्य क्षेत्र में कोई लाभ नहीं मिलेगा !इसलिए लोग उन्हीं पूर्वानुमानों के आधार पर जीवन जिया करते थे !इसलिए अपराध तब कम होते थे !तब किसी व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर को देखकर इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता था किस नाम के व्यक्ति से इसके संबंध कैसे रहेंगे !या किस नाम के व्यक्ति से संबंध निभाने के लिए किस नाम के व्यक्ति को किस प्रकार से कितना सहनशील बनना होगा !किसका किससे कौन संबंध निभ पाएगा कौन नहीं निभेगा !आदि बातों का पूर्वानुमान लगाकर उसी प्रकार से लोग अपना अपना जीवन ढाल लिया करते थे !जिससे सबका जीवन सुख पूर्वक निर्वाह हुआ करता था !इसीलिए तब कोई मित्र किसी के साथ धोखाधड़ी नहीं करता था बड़े बड़े परिवार एक साथ संयुक्त रूप से प्रसन्नता पूर्वक रह लिया करते थे !पति पत्नी कम व्यवस्था में भी आनंद पूर्वक एक साथ रह लिया करते थे !इसीलिए तब तलाक होते नहीं देखे जाते थे !किस नाम के व्यक्ति को किस नाम के स्त्री पुरुष के साथ रहना पड़ेगा तो तनाव होगा !इस बात का पूर्वानुमान लगा लेने के बाद लोग ऐसे लोगों से संबंध सीमित कर लिया करते थे जिससे अवसाद और अवसाद जन्य सुगर वीपी जैसे रोगों से बच जाया करते थे !आत्महत्या जैसी पीड़ाएँ दूर दूर तक देखने सुनने को नहीं मिलती थीं !परिवारों में त्योहारों में कामकाज में इसीलिए लोग प्रसन्न रह लिया करते थे !आज वो प्रसन्नता अपनों के साथ नहीं दिखाई पड़ती है इतने मन टूट चुके हैं !जीवन से संबंधित सही सही पूर्वानुमान पता न होने के कारण सारा समाज आज असहन शील होता चला जा रहा है !आधुनिक वैज्ञानिक सोच रखने वाले लोग जिस प्राचीनविज्ञान या सोच का उपहास उड़ाया करते थे लोगों के मन में उसके प्रति घृणा पैदा किया करते थे !उसे अंध विश्वास बता बताकर समाज को उससे दूर ले आए अब उनके पुरखों की चुनौती है कि आधुनिक विज्ञान के द्वारा समाज में वे पुराने सभ्यता संस्कार भर कर दिखावें अपराध घटाकर दिखावें धोखाधड़ी घटाकर दिखावें !परिवारों के सदस्यों को एक दूसरे के साथ जोड़ कर दिखावें !पति पत्नी के बीच तलाक जैसे अभिशाप को मिटाकर दिखावें !परिवारों त्योहारों काम काजों में प्रसन्नता का वातावरण तैयार करके दिखावें !तनाव अवसाद आत्म हत्या जैसे अभिशाप समाज से समाप्त करें !आधुनिक वैज्ञानिकों को चुनौती है वो अपनी आधुनिक वैज्ञानिक सोच से समाज में सद्गुण और सुसंस्कारों का सृजन करें !
आधुनिक वैज्ञानिक न इस विषय में कुछ करेंगे और न ही उनके वश का कुछ है ये चुनौती अब भारत के प्राचीन वेद वैज्ञानिकों को ही सँभालनी पड़ेगी ऐसा निश्चय करके हमारे यहाँ प्रकृति या जीवन से संबंधित सभी प्रकार की पूर्वानुमान सेवाओं पर न केवल अनुसंधान किया जाता है अपितु सभी लोगों को ऐसी विषम परिस्थितियों से निकालने के लिए पूर्वानुमान सेवाएँ भी प्रदान की जाती हैं जिनके लिए लोग कुछ दशकों से हमारे साथ संपर्क बनाए हुए हैं भारत की प्राचीन विद्याओं से लाभान्वित होते रहे हैं !इसी प्राच्य विद्या से प्राप्त पूर्वानुमानों के द्वारा इस समाज को स्वर्ग बनाया जा सकेगा !ऐसा मेरा विश्वास है हम अपने इसी प्रयास में निरंतर अग्रसर हैं !
पूर्वानुमान की पद्धति -
प्राचीन काल से ही भविष्य में झाँकने की मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति रही है भारत वर्ष में इसका अतिप्राचीन इतिहास है ! अति प्राचीन काल से भारतीय लोग प्रकृति एवं जीवन से संबंधित विभिन्न प्रकार की घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !उसी के अनुसार जीवन जीना शुरू कर दिया करते थे जिससे प्रयास पूर्वक कुछ नुक्सान कम कर लिया करते थे और कुछ नुक्सान सह लिया करते थे ऐसे सभी का जीवन बीतता चला जाता था !उस युग में किए जाने वाले पूर्वानुमानों से इतना लाभ तो अवश्य था कि उस युग में मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ झूठी नहीं हुआ करती थीं इसलिए किसान उनका पूरा लाभ उठा लिया करते थे इसीलिए सभी सुखी रहते थे !जब से भारत के प्राचीन मौसम पूर्वानुमान को अंधविश्वास बताकर उसे पीछे किया गया और आधुनिक मौसम विज्ञान को आगे लाया गया !उसमें वो सच्चाई मिली नहीं मिली जो प्राचीन समय वैज्ञानिक पूर्वानुमानों से मिलती रही इससे विगत कुछ दशकों में मौसमविभाग के गलत पूर्वानुमानों से नुक्सान उठा चुके किसान लोग आत्महत्या करते देखे जाने लगे !किसानों की अपेक्षाओं पर आधुनिक मौसम पूर्वानुमान विभाग खरा उतर भी नहीं सकता है !
प्राचीन या काल में केवल मौसम का ही नहीं अपितु प्रकृति या जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित पूर्वानुमान लगाए जाते थे !उसी के अनुसार चला जाता था इसीलिए तब प्रकृति या जीवन में दुर्घटनाएँ इतनी नहीं घटित होती थीं !बीमारियाँ इतना भयानक रूप नहीं ले पाती थीं,रोग इतने नहीं हुआ करते थे !वैद्य लोग रोगी को देखते ही पूर्वानुमान लगा लिया करते थे कि ये स्वस्थ होगा या नहीं अथवा मृत्यु को प्राप्त होगा !उसी हिसाब से चिकित्सा किया करते थे !वर्तमान समय में तो मरने से कुछ पूर्व भी लोग ग्लुकोष की बोतल लगाए रखते हैं !
इन्हीं पूर्वानुमानों के कारण तब अपराध इतने नहीं होते थे हर किसी को अपना अपना भविष्य पता होता था कि किस प्रकार के काम काज से वो कितना आगे बढ़ सकता है उसके अलावा उसे किसी अन्य क्षेत्र में कोई लाभ नहीं मिलेगा !इसलिए लोग उन्हीं पूर्वानुमानों के आधार पर जीवन जिया करते थे !इसलिए अपराध तब कम होते थे !तब किसी व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर को देखकर इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता था किस नाम के व्यक्ति से इसके संबंध कैसे रहेंगे !या किस नाम के व्यक्ति से संबंध निभाने के लिए किस नाम के व्यक्ति को किस प्रकार से कितना सहनशील बनना होगा !किसका किससे कौन संबंध निभ पाएगा कौन नहीं निभेगा !आदि बातों का पूर्वानुमान लगाकर उसी प्रकार से लोग अपना अपना जीवन ढाल लिया करते थे !जिससे सबका जीवन सुख पूर्वक निर्वाह हुआ करता था !इसीलिए तब कोई मित्र किसी के साथ धोखाधड़ी नहीं करता था बड़े बड़े परिवार एक साथ संयुक्त रूप से प्रसन्नता पूर्वक रह लिया करते थे !पति पत्नी कम व्यवस्था में भी आनंद पूर्वक एक साथ रह लिया करते थे !इसीलिए तब तलाक होते नहीं देखे जाते थे !किस नाम के व्यक्ति को किस नाम के स्त्री पुरुष के साथ रहना पड़ेगा तो तनाव होगा !इस बात का पूर्वानुमान लगा लेने के बाद लोग ऐसे लोगों से संबंध सीमित कर लिया करते थे जिससे अवसाद और अवसाद जन्य सुगर वीपी जैसे रोगों से बच जाया करते थे !आत्महत्या जैसी पीड़ाएँ दूर दूर तक देखने सुनने को नहीं मिलती थीं !परिवारों में त्योहारों में कामकाज में इसीलिए लोग प्रसन्न रह लिया करते थे !आज वो प्रसन्नता अपनों के साथ नहीं दिखाई पड़ती है इतने मन टूट चुके हैं !जीवन से संबंधित सही सही पूर्वानुमान पता न होने के कारण सारा समाज आज असहन शील होता चला जा रहा है !आधुनिक वैज्ञानिक सोच रखने वाले लोग जिस प्राचीनविज्ञान या सोच का उपहास उड़ाया करते थे लोगों के मन में उसके प्रति घृणा पैदा किया करते थे !उसे अंध विश्वास बता बताकर समाज को उससे दूर ले आए अब उनके पुरखों की चुनौती है कि आधुनिक विज्ञान के द्वारा समाज में वे पुराने सभ्यता संस्कार भर कर दिखावें अपराध घटाकर दिखावें धोखाधड़ी घटाकर दिखावें !परिवारों के सदस्यों को एक दूसरे के साथ जोड़ कर दिखावें !पति पत्नी के बीच तलाक जैसे अभिशाप को मिटाकर दिखावें !परिवारों त्योहारों काम काजों में प्रसन्नता का वातावरण तैयार करके दिखावें !तनाव अवसाद आत्म हत्या जैसे अभिशाप समाज से समाप्त करें !आधुनिक वैज्ञानिकों को चुनौती है वो अपनी आधुनिक वैज्ञानिक सोच से समाज में सद्गुण और सुसंस्कारों का सृजन करें !
आधुनिक वैज्ञानिक न इस विषय में कुछ करेंगे और न ही उनके वश का कुछ है ये चुनौती अब भारत के प्राचीन वेद वैज्ञानिकों को ही सँभालनी पड़ेगी ऐसा निश्चय करके हमारे यहाँ प्रकृति या जीवन से संबंधित सभी प्रकार की पूर्वानुमान सेवाओं पर न केवल अनुसंधान किया जाता है अपितु सभी लोगों को ऐसी विषम परिस्थितियों से निकालने के लिए पूर्वानुमान सेवाएँ भी प्रदान की जाती हैं जिनके लिए लोग कुछ दशकों से हमारे साथ संपर्क बनाए हुए हैं भारत की प्राचीन विद्याओं से लाभान्वित होते रहे हैं !इसी प्राच्य विद्या से प्राप्त पूर्वानुमानों के द्वारा इस समाज को स्वर्ग बनाया जा सकेगा !ऐसा मेरा विश्वास है हम अपने इसी प्रयास में निरंतर अग्रसर हैं !
पूर्वानुमान की पद्धति -
प्रकृति या जीवन के सभी क्षेत्रों में बदलाव तो होते ही रहते हैं कण कण में प्रतिपल कोई न कोई बदलाव तो होता ही जा रहा है इन्हीं सूक्ष्म से लेकर बड़े बदलावों तक को बार बार पहचानने से लगता है कि समय बीत रहा है इन्हीं बदलावों के साथ समय बीत रहा है या समय बीतने के साथ बदलाव हो रहे हैं ऐसे प्रश्नों का उत्तर ये है कि समय बदलावों के साथ नहीं जुड़ा है अपितु बदलाव समय के अनुसार होते जाते हैं !
इसी प्रकार से सूर्य चंद्र आदि ग्रहों के चलने से समय बदलता जाता है !या फिर समय बदलने के साथ साथ साथ सूर्य चंद्र आदि ग्रहों में गति होती है ? इसका उत्तर है कि समय के अनुशार ही सूर्य चंद्रादि ग्रहों में गति होती है इसलिए समय स्वतंत्र होते हुए भी अपने निश्चित सिद्धांतों के अनुसार आगे बढ़ता जाता है सूर्यचन्द्रादि ग्रह समय के साथ साथ आगे बढ़ते जाते हैं ! समय बीत रहा है ये हमें दिखाई नहीं देता है सूर्य चंद्रादि ग्रहों चलने से समय व्यतीत होने का अनुमान लगा करता है !सच्चाई यही है कि ब्रह्मांड घड़ी की सूर्य चंद्रादि घंटा मिनट बताने वाली सुइयाँ मात्र हैं !जैसे हाथ की घड़ी के द्वारा हमें समय का ज्ञान होता है किंतु घड़ी ख़राब होने पर घड़ी रुक जाती है अर्थात समय बीतने का संकेत देना बंद कर देती है किंतु घड़ी के बंद होने के बाद भी समय तो बीता ही करता है और समय के साथ होने वाले बदलाव भी हुआ ही करते हैं न समय घड़ी की परवाह करता है और न ही बदलाव घड़ी की प्रतीक्षा करते हैं !इसी प्रकार से सूर्य और चंद्र यदि न हों तो भी समय का बीतने बंद नहीं हो जाएगा समय तो तब भी बीतता ही रहेगा !किंतु ऐसा होगा नहीं क्योंकि सूर्य चंद्र समयचक्र के अभिन्न अंग हैं इसलिए समय उनके अनुसार चले या न चले किंतु उन्हें तो समय के अनुसार चलना ही है !इसलिए समय के साथ होने वाले बदलावों को हम सूर्य और चंद्र की गति के अनुसार समझ सकते हैं !क्योंकि सूर्य और चंद्र की गति युति आदि का गणित के द्वारा पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !इसीलिए तो भविष्य में घटित होने वाले सूर्य और चंद्र आदि ग्रहणों का घटित होने से सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !जैसे ग्रहणों का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है वैसे ही प्राकृतिक अच्छाइयों और आपदाओं का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
इसी प्रकार से शरीर में होने वाले रोगों आपदाओं आदि जीवन से संबंधित सभी प्रकार की समस्याओं और मानसिक समस्याओं तनाव अवसाद आदि का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !क्योंकि ब्रह्मांड और जीवन साथ साथ चलता है !जीवन को समझने के लिए ब्रह्मांड को समझना होगा !
प्राकृतिक आपदाएँ और जीवन संबंधी समस्याएँ -
प्रकृति और जीवन दोनों साथ साथ चलते हैं दोनों से संबंधित अच्छाइयाँ और बुराइयाँ दोनों साथ साथ घटित होती हैं अंतर केवल इतना है कि सुकोमल प्रकृति में वे प्रारंभिक लक्षण आरंभ में ही दिखाई पड़ने लगते हैं धीरे धीरे वे बढ़ते चले जाते हैं और सारी प्रकृति में फ़ैल जाते हैं ! यदि वे लक्षण बुरे हैं और वायु से संबंधित हैं तो इससे वायु मंडल को दूषित करते हैं उससे प्रकृति में आँधी तूफान आदि वायु संबंधी घटनाएँ घटित होती हैं वायु के प्रदूषित होने से वृक्ष बनौषधियाँ अन्न आदि आहार दूषित हो जाते हैं इसका असर जब जीवन पर पड़ता है तो शारीरिक रोग मानसिक रोग अवसाद आदि अनेकों प्रकार की मानसिक समस्याएँ तैयार हो जाती हैं !जिन्हें हम रोग मानकर उनकी चिकित्सा करते हैं !
ऐसी परिस्थिति में यदि शारीरिक और मानसिक समस्याओं का पूर्वानुमान करना होता तो जैसे ही प्रकृति में ऐसे लक्षण दिखाई पड़ना प्रारंभ हुए थे उन्हीं लक्षणों का अनुसंधान करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता था कि ऐसे लक्षणों का असर भविष्य में प्रकृति में अधिक बढ़ा विक्षोभ पैदा करेगा उससे आँधी तूफ़ान पैदा होगा उससे प्राणियों में शारीरिक और मानसिक समस्याएँ बढ़ेंगी !ऐसे प्रकरणों में प्रारंभ से ही इन परिवर्तनों पर नजर रखी जा सकती थी इससे भविष्य में घटित होने वाली आँधी तूफान आदि प्राकृतिक घटनाओं का एवं वायु जनित शारीरिक मानसिक आदि रोगों का पूर्वानुमान महीनों पहले लगाया जा सकता है !
इसी प्रकार से जल जनित विकारों का अध्ययन बहुत पहले से ही प्रारंभ किया जा सकता है जो बाद में सूखा या अधिक वर्षा भीषण बाढ़ तथा जलजनित शारीरिक और मानसिक रोगों के रूप में दिखाई पड़ता है !
वस्तुतः ऐसी घटनाएँ समय से संबंधित होती हैं समय का असर संपूर्ण विराट ब्रह्मांड पर पड़ता है उससे सूर्य चंद्र आदि ग्रह प्रभावित होते हैं आकाशीय परिस्थितियाँ उनके आकार प्रकार स्वभाव आदि में सूक्ष्म बदलाव होने लगते हैं !उसका असर सूर्य चंद्र की किरणों पर पड़ता है उसका असर संपूर्ण प्रकृति पर पड़ता है प्रकृति का असर वृक्षों बनस्पतियों पेड़ पौधों अनाजों बनौषधियों पर पड़ता है उसका असर जीवन पर पड़ता है !
वृक्षों बनस्पतियों पेड़ पौधों अनाजों बनौषधियों आदि पर असर पड़ते ही वे अपने गुण धर्म छोड़ने लगते हैं मिर्च अपनी कडुआहट छोड़ने लगता है गन्ना की मिठास कम होने लगती है सुगंधित पेड़ पौधौं की सुगंध मरने लग जाती है आदि और भी बहुत कुछ बदलने लग जाता है !पशु पक्षी आदि अपना स्वभाव छोड़ने लगते हैं उनमें बेचैनी साफ देखी जा सकती है साँप बिल से निकल कर भागने लगते हैं जल से डरने वाले पशु जल में अपनी इच्छा से घुसने लगते हैं पशुओं पक्षियों की बोलियाँ बदलने लग जाती हैं उनके व्यवहार स्वभाव स्वाद आदि बदलने लग जाते हैं वृक्ष ऋतुधर्म छोड़ छोड़कर फूलने फलने लग जाते हैं !पहाड़ों के रंग बदलने लग जाते हैं पेड़ पौधों की सुकोमल पत्तियों पर सुकोमल जीव जंतुओं एवं बाल वृद्ध बीमार लोगों पर इस बदलाव के सूक्ष्म संकेत बहुत पहले से उभरते दिखाई पड़ने लग जाते हैं !बढ़ते बढ़ते यही लक्षण प्राकृतिक आपदाओं शारीरिक रोगों और मानसिक समस्याओं के रूप में सामने प्रकट होते हैं !
पूर्वानुमान- ऐसी सभी घटनाओं के द्वारा आँधी तूफ़ान बाढ़ भूकंपादि प्राकृतिक आपदाओं जैसा भयंकर स्वरूप धारण करने से पहले उन्हें पहचानने के लिए समय अनेकों स्तरों पर अलग अलग प्रकार के अवसर प्रदान करता है जो जितनी प्रारंभिक अवस्था में पहचान जाता है प्राकृतिक आपदाओं के मूल को समझने सुधरने एवं सजग होने में उसे उतना अधिक अवसर मिल जाता है जिससे संभावित जनधन की हानि के अनुपात को अपेक्षाकृत कम कर लिया जाता है !
इसीलिए प्राचीन ऋषिलोग खगोल विद्या के द्वारा प्राकृकी दशा दिशा को समझकर तिक आपदाओं के निर्मित होने के अत्यंत प्रारंभिक प्रक्रिया में ब्रह्मांडीय संकेतों का अनुभव कर लिया करते थे !इसके बाद ब्रह्मांडीय प्रक्रिया से प्राप्त संकेतों का को सूर्य चंद्र आदि ग्रहों की गति युति आदि के द्वारा पुनर्मिलान कर लिया करते थे !इसके बाद वायु मंडल का अनुसन्धान करके तीसरा मिलान उससे कर लिया करते थे चौथा मिलान प्रकृति के लक्षणों से कर लिया करते थे !वृक्षों बनस्पतियों पर प्रकट सूक्ष्म बदलावों से पूर्व में प्राप्त अनुभवों को मिला लिया करते थे !इसके बाद जीवजंतुओं के स्वभावों व्यवहारों में प्रकट बदलावों का मिलान करते थे जिन्हें प्राचीन काल में 'शकुनशास्त्र ' के नाम से जाना जाता था ! ऐसे सभी प्रकार से दृढ़ निश्चय करके बादलों हवाओं आदि की दशा दिशा को समझकर न केवल प्राकृतिक आपदाओं आदि का पूर्वानुमान कर लिया करते थे अपितु उनका दुष्प्रभाव घटाने के लिए यज्ञ यागादि किया करते थे उनका प्राकृतिक आपदाओं पर पर्याप्त असर पड़ते देखा जाता था !उससे उन आपदाओं का दुष्प्रभाव कुछ घट जाया करता था !कुछ राजा लोगों के प्रयास करने से सहारा मिल जाता था ! कुछ सतर्क होकर जनता अपना बचाव कर लिया करती थी !कुछ समाज सह जाया करता था !
जैसे अमावस्या पूर्णिमा आदि के आस पास इतिहास में सबसे अधिक भूकंप आते देखे गए विशेष कर ग्रहण वाली अमावस्या पूर्णिमा के आस पास तो अक्सर ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं के घटित होने का अँदेशा बना रहता था !इसलिए ऋषियों ने अमावस्या पूर्णिमा जैसे पर्वों पर गंगा नान के लिए प्रेरित किया और ग्रहण वाली अमावस्या पूर्णिमा में तो गंगा आदि में स्नान करने का बहुत बड़ा पुण्य कहा ताकि लोग खुले मैदान में रहें और भूकंप आदि कोई प्राकृतिक आपदा घटित भी हो तो उससे जनधन की हानि कम से कम होती थी !
वैसे भी वर्तमान मौसम या भूकंप वैज्ञानिकों के पास उनके अनुसंधानों के परीक्षण का पूर्वानुमानों के अलावा और कोई आधार है नहीं और न ही उसमें ऐसी प्रमाणित पारदर्शिता है कि सूर्य चंद्र ग्रहण की तरह जो सबको दिखाई पड़ता हो ऐसा कोई सटीक पूर्वानुमान करके आधुनिक वैज्ञानिक उसकी सच्चाई सिद्ध कर सकें !इसीलिए तो आधुनिक मौसमविज्ञान से जुड़े लोग निराधार तीर तुक्के लगाया करते हैं वो यदि सही निकल गए तो पूर्वानुमान और यदि गलत निकल गए तो जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग पश्चिमी विक्षोभ जैसी काल्पनिक बातों के मत्थे मढ़ दिया करते हैं !
चूँकि इनके मौसम संबंधी पूर्वानुमानों में सच्चाई तो होती है अधिकतर गलत ही होते हैं इसीलिए उनकी बातों में निर्भीकता नहीं होती है न चेहरे पर वैज्ञानिकों जैसा तेज होता है और न वाणी में ओज होता है गोल मोल बातें करके मौसम के नाम पर जो तीर तुक्के लगाकर समय पास किया करते हैं !सरकारी काम काज में यही तो सुविधा होती है कि जिम्मेदारी का एहसास बहुत कम लोगों को होता है और लक्ष्य बनाकर बहुत कम लोग ही काम करते देखे जाते हैं !
प्रकृति के जो बदलाव वृक्षों बनस्पतियों आदि सभी पेड़ पौधों से लेकर सभी जीवजंतुओं पशु पक्षियों प्राणियों मनुष्यों आदि के लिए हितकर होते हैं प्रकृति के उन बदलावों को अच्छा माना जाता है !इसके अलावा प्रकृति में हो रहे जो परिवर्तन इन सभी के विरुद्ध होते हैं जिनमें जनधन की हानि संभावित होती है !जिससे सभी प्राणिमात्र दुखी होते हैं उन्हें प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में गिना जाता है !अतिवर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप या महामारी जैसी घटनाएँ इसी श्रेणी में आती हैं !
आज जो भी मौसमी वैज्ञानिक लोग ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी बातें करने लगते हैं उन्हें यह सोचना चाहिए कि जिस विज्ञान का आस्तित्व ही अभी सौ दो सौ वर्ष पहले का है !उस विज्ञान के मुख से इतनी बड़ी बड़ी बातें शोभा नहीं देती हैं और न ही वैज्ञानिक ऐसी कोई विश्वसनीयता ही इस क्षेत्र में बना पाए हैं !
ग्लोबल वार्मिंग-
सूर्य की किरणें प्रातः काल कम गर्म लगती हैं मध्यान्ह में अधिक सायंकाल में फिर कम गर्म लगने लगती हैं और रात्रि के समय में वातावरण बिलकुल ठंडा हो जाता है !जिन लोगों को समय का ये क्रम पता है वे तो इस बात को ऐसा समझकर निश्चिंत रहते हैं उन्हें पता होता है कि जैसे जैसे दोपहर होती जाती है वैसे वैसे सूर्य का प्रभाव बढ़ता जाता है दोपहर बाद घटता जाता है !
इस क्रम को न जानने वाला यदि कोई व्यक्ति कोई व्यक्ति अज्ञानवश दिन के बारह बजे यह कहने लगे कि अभी जब इतनी गर्मी है तो शाम चार बजे इससे तो अधिक गर्मी होगी तथा गर्मी यदि इसी हिसाब से बढ़ी तब तो रात बारह बजे तक सब कुछ जलने लगेगा और कल सुबह तक तो कुछ बचेगा ही नहीं !समय चक्र का ज्ञान जिन्हें नहीं होता है वो ऐसी ही ऊटपटाँग कल्पनाएँ किया करते हैं !ऐसे सिरफिरे लोग ग्लोबल वार्मिंग जैसे भ्रम फैलाया करते हैं न केवल इतना अपितु अंटार्कटिका की सारी बर्फ पिघलने का अंधविश्वास फैलाया करते हैं !ऐसे लोगों से पूछ जाए कि अंटार्कटिका पर बर्फ आपने जमाई थी क्या वातावरण ने जब उस तरह का करवट मारा था तभी तो वो बर्फ जमी थी अब उसी वातावरण के प्रभाव से ही तो वो बर्फ पिघल रही है कल उसी वातावरण के बदलाव से पिघले हुए ग्लेशियर फिर बर्फ से ढक जाएँगे ! इसमें ग्लोबल वार्मिंग जैसी कौन सी बात है !जैसे अज्ञानी ज्योतिषी लोग ज्योतिष न पढ़े लिखे होने के कारण ज्योतिष के विषय में अपना महत्त्व बनाए रखने के लिए लोगों में बहम अधिक फैलाते हैं उसी प्रकार से प्रकृति के स्वभाव से अपरिचत अज्ञानी लोग अपना महत्त्व बनाए और बचाए रखने के लिए ग्लोबल वार्मिंग जैसे बहम फैलाया करते हैं जो गलत है ग्लोबल वार्मिंग जैसी कोई चीज है ही नहीं !
जलवायु परिवर्तन का अंधविश्वास -
सच्चाई तो ये है कि जलवायु परिवर्तन कभी हो ही नहीं सकता है क्योंकि जल और वायु के आधीन जीवन है यही दोनों प्राणों की रक्षा करते हैं इनके स्वभाव बदल लेने से जीव जंतुओं पशु पक्षियों मनुष्यों का ही नहीं अपितु पेड़ों पौधों बनस्पतियों का भी जीवन बचा पाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होगा !इसलिए जलवायु परिवर्तन हो ही नहीं सकता है !जो मौसमीवैज्ञानिक कहे जाने वाले जो भी लोग ऐसी बातें करते हैं वे अपनी अकर्मण्यता छिपाने के लिए ऐसे अंधविश्वास फैला रहे होते हैं !
वस्तुतः मौसम आदि विषयों में किसी के द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमान जब गलत होने लगते हैं तो अपने को सही सिद्ध करने के लिए ऐसे चालाक लोग जलवायु परिवर्तन जैसे झूठ का सहारा लेते हैं !झूठ को फैलाने की अपेक्षा आखिर सीधे यह कहने में क्या बुराई है कि हम मौसम के विषय में कुछ नहीं जानते हैं !
मौसम के विषय में पूर्वानुमान के नाम पर जो कुछ भी तीर तुक्के लगाए जाते हैं वो यदि सच निकल गए तब तो वो प्रमाणित मौसमवैज्ञानिक और ये उनके पूर्वानुमान और गलत निकल गए तो जलवायुपरिवर्तन ! वस्तुतः मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोगों ने क्लाइमेट चेंज ,ग्लोबलवार्मिंग और पश्चिमीविक्षोभ जैसे कुछ शब्द न गढ़े होते तो मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोगों के झूठ का न जानें कब का पर्दाफाश हो चुका होता !किंतु मौसम वैज्ञानिकों के लिए ये तीन शब्द वरदान सिद्ध हुए हैं जिनके बलपर सरकारों को भ्रमित किया करते हैं इसीलिए वे अपने हर झूठ पर इन तीन में से एक शब्द चिपका दिया करते हैं और चतुराई पूर्वक अपनी इज्जत बचा ले जाते हैं !
विश्व की तो नहीं कह सकता किंतु इतना अवश्य कह सकता हूँ कि भारत के मौसम विज्ञान की हालत उन बनियों जैसी है जिनकी दुकान नहीं चलती है तो अपने को व्यस्त दिखाने के लिए बटखरे तौला करते हैं !इसी प्रकार से हमारे मौसम वैज्ञानिक कोई न कोई झूठ बोलते रहते हैं !इन्हें मौसम के विषय में पूर्वानुमान बताने के अलावा और सब कुछ आता है कोई बिना सर पैर की बातें इनसे कितनी भी क्यों न करवा ले केवल इन्हें मौसम के पूर्वानुमान के विषय में कुछ भी पता नहीं होता है !इसके अलावा जो जितना बड़ा झूठ बोलवाना चाहे बोलवा ले !कोई झूठ पकड़ जाता है तो क्लाइमेटचेंज ,ग्लोबलवार्मिंग आदि का बहाना बना लेते हैं !
भूकंप की मन गढंत कहानियाँ -
यही स्थिति भूकंप की प्रक्रिया को न समझ पाने वाले तथा कथित भूकंप वैज्ञानिकों की है वो भूकंप के विषय में इतने ज्यादा समझदार हैं कि वे भी मौसम वैज्ञानिकों की तरह भूकंप के विषय में ऐसी ऐसी काल्पनिक कथाएँ गढ़े बैठे हैं जब भूकंप आता है तो टीवी चैनलों पर आ आकर वही तथ्य विहीन कहानियाँ बाँचने लगते हैं वही उतनी बातें जमींन के अंदर की प्लेटों का खिसकना उन्हीं संचित गैसों की बातें करते करते ऐसे लोग भूकंपों पर रिसर्च के नाम पर इसी प्रकार से गड्ढे खोदते मिट्टी भरते कई सदियाँ गुजार सकते हैं ! आधार विहीन झूठी कहानियाँ गढ़ने में बड़े हिम्मती होते हैं ऐसे लोग !अन्यथा भूकंप और मौसम जैसे विषयों में ऐसे वैज्ञानिकों के द्वारा गढ़ी गई किस्से कहानियों में यदि रंच मात्र भी सच्चाई होती तो मौसम और भूकंपों से संबंधित रिसर्च क्या एक कदम भी आगे न बढ़ा होता !रिसर्चों के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त धन का बहुत बड़ा भाग ऐसे लोगों की सुख सुविधाओं सैलारियों रिसर्चों पर पानी की तरह बहाया जा रहा है जो रिसर्च होते साल मॉल हैं किंतु किसी को नहीं पता है कि रिसर्चों के नाम पर होता आखिर क्या है एक सेंटीमीटर का सौवाँ हिस्सा भी तो इनका रिसर्च आगे नहीं बढ़ा है सच्चाई तो ये है कि ऐसे लोगों का रिसर्च अभी तक यही नहीं तय कर पाया है कि भूकंप और मौसम या आँधी तूफान जैसी घटनाओं पर रिसर्च करने के लिए इन्हें करना वास्तव में क्या है ?ये लोग अभी तक वो मार्ग नहीं पकड़ पाए हैं जिस पर चलकर इन विषयों पर रिसर्च की जा सकती है पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
गाँव गाँव में आकाश में राडार लगा दिए जाएँ उसमें बादल देख देखकर ये बताते रहेंगे कि आज पानी बरसेगा या कल आँधी आएगी !आज कल कल की बातों को पूर्वानुमान नहीं कहा जा सकता है और न ही इनका कोई उपयोग ही हो सकता है और न ही इसमें कोई रिसर्च ही है !सच्चाई तो ये है समाज में वैज्ञानिक अंधविश्वास फैलाने वाले ऐसे काल्पनिक कथा वाचकों (भूकंप एवं मौसम वैज्ञानिकों )पर तब तक रोक लगाई जानी चाहिए जब तक इन विषयों में इनके द्वारा बताए गए पूर्वानुमान सच न घटित होने लगें तब तक के लिए ऐसे लोगों के नाम के साथ ववैज्ञानिक शब्द लगाने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए !जो जिस विषय को जनता ही नहीं है वो उस विषय का वैज्ञानिक कैसे हो सकता है !इसके साथ ही जो विषय अभी तक विज्ञान सिद्ध ही नहीं हो पाए हैं इसीलिए तो उनके पूर्वानुमान नहीं लगाए जा पा रहे हैं ऐसे मन गढंत काल्पनिक विषयों को शिक्षण संस्थाओं में पढ़वाकर नौजवानों का जीवन क्यों बर्बाद किया जाए जबकि उनकी सच्चाई सिद्ध होनी अभी बाक़ी है !
ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा झूठ है -
सौरविज्ञान प्रक्रिया से समयचक्र के आधार पर मौसमसंबंधी पूर्वानुमान हम जो लगाते हैं वो सौ प्रतिशत नहीं तो कम से कम 70 प्रतिशत तो सच निकलता ही है जबकि वो हम महीनों वर्षों पहले लगा लेते हैं और वह सच निकलते चला जाता है ! जिसके हमारे पास एक नहीं अनेकों प्रमाण हैं जिसके साक्ष्य सरकार की अपनी साइटों और जीमेल पर विद्यमान हैं !जो बहुत सही निकलते हैं !
मैं तो पिछले तीस वर्षों से इसी विषय पर अनुसन्धान करता चला आ रहा हूँ जिसके अनुभव काफी अच्छे रहते रहे हैं !हमारे साथ रहने वाले सभी मित्र गण इस बात का अनुभव करते रहे हैं किंतु सोर्स न होने के कारण सरकार ने हमारी बात कभी सुनी नहीं !और धन न होने के कारण मीडिया ने हमारी बात प्रकाशित नहीं की !रही बात मौसम विभाग की उनका तो मानना है कि जिसने अंगेजी नहीं पढ़ी और आधुनिक विज्ञान नहीं पढ़ी उसे मौसम और विज्ञान के विषय की चर्चा करने का कोई नैतिक अधिकार ही नहीं ही !इसलिए वो हमारी बात तो सुनते ही नहीं थे जो सुनते थे वे मजाक उड़ाते थे !
एक दिन हमारे किसी मित्र ने इस विधा की सच्चाई देखकर हमारी मुलाकात भारत सरकार के मौसम विभाग के डायरेक्टर साहब से मई 2018 में करवाई तो उन्होंने हमें अपने तीन जीमेल आईडी दिए और मोबाईल नम्बर दिया और कहा कि आप प्रत्येक महीने का मौसम संबंधी पूर्वानुमान हमारे जीमेल पर भेजते रहो हम बचन देते हैं कि हर सप्ताह हम आपको फीडबैक उपलब्ध करवाएँगे उसमें तुम्हारा पूर्वानुमान जिस हद तक सच निकलेगा वो सब कुछ आपको लिखकर भेजते रहेंगे ! जैसा होगा वैसा सच को सच लिख कर देंगे कहेंगे !
मैंने उन्हें मई के अंतिम सप्ताह में 1 जून से 30 जून 2018 तक का पूर्वानुमान भेजा जो बिलकुल सच होता चला गया मैं भी अखवारों मीडिया साइटों से मिलान करता रहा उनका संग्रह मैंने रखा हुआ है डायरेक्टर साहब से जब बात हो तो वो भी प्रसन्नता पूर्वक बात करते थे और प्रशंसा करते थे तभी तो मैं चार महीने तक भेजता गया !जब फीडबैक माँगता था तो वो आज कल ऐसे बोलते बोलते टालते है रहे थे !फिर भी मैं हर महीने का पूर्वानुमान महीना प्रारंभ होने से पहले ही भेज दिया करता था !तीन महीने बाद बहुत दबाव डालने पर उन्होंने जो फ़ीडबैक दिया है वो इतना मूर्खता पूर्ण है जिसे पढ़कर लगता है कि ये मौसम संबंधी विषयों पर पूर्वानुमान क्या लगाएँगे जिन्हें पूर्वानुमान ठीक ढंग से पढ़ना भी नहीं आता है !खैर सरकार यदि ऐसे काल्पनिक वैज्ञानिकों पर मनगढंत मौसमी या भूकम्पीय अनुसंधान प्रक्रिया में समय रहते पार दर्शिता नहीं लाती है और इनसे सच्चाई नहीं उगलवाती है तो मैं विश्वास पूर्वक यह कह सकता हूँ मौसम संबंधी सभी विषयों का रहस्य उद्घाटन भारतीय वैदिक विज्ञान बहुत जल्दी करेगा उसकी पटकथा लिखी जा चुकी है उसे उचित मंच की प्रतीक्षा है !
पूर्वानुमान की वर्तमान पद्धति -
पूर्वानुमान की वर्तमान वैज्ञानिक पद्धति में पूर्वानुमान जैसा तो कुछ होता ही नहीं है और हो भी कैसे जब उसका आधार ही कुछ नहीं है जिसे वो आधार मान कर चलते हैं उन बातों का मौसम के पूर्वानुमान से कोई संबंध ही नहीं होता है वो तो कोरी कल्पनाएँ हैं !जिनसे सत्यता की अपेक्षा की जाती है !इसबात को मैं कभी भी कहीं भी चुनौतीपूर्ण ढंग से सिद्ध कर सकता हूँ !सच्चाई यही है कि मौसम का पूर्वानुमान करना मौसम वैज्ञानिकों के बश का भी नहीं है और मौसम के विषय में उनके द्वारा अभीतक किए गए सारे रिसर्च परिणाम विहीन सिद्ध हुए हैं और आगे भी जितने रिसर्च होंगे उनका कोई परिणाम नहीं निकलेगा !ये बात मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ !
भूकंप या मौसम के विषय में आज तक किए गए रिसर्च परिणाम शून्य हैं !किंतु रिसर्च के नाम पर कुछ होता रहे इसलिए कुछ न कुछ होता रहता है !
1. भूकंप
भूकंप के विषय में पूर्वानुमान के नाम पर जो कुछ भी बोला जाता है वो सच हुआ या नहीं पता लग जाता है इसलिए भूकंप के विषय में कह दिया गया कि इसके विषय में पूर्वानुमान हम नहीं लगा सकते !ऐसी परिस्थिति में मेरा प्रश्न है कि फिर आपको ये कैसे पता है कि भूकंप धरती के अंदर संचित गैसों या तथाकथित प्लेटों के कारण ही आते हैं !या डेंजर जोन कौन है कौन नहीं है !भारत में महाराष्ट्र की कोयना जैसी कई जगहैं ऐसी हैं जहां पहले भूकंप नहीं आता था अब आता है !इसलिए भूकंप के विषय में बिना किसी निष्कर्ष पर पहुँचे किसी भी काल्पनिक प्रक्रिया को विज्ञान तब तक नहीं माना जा सकता है जब तक कि पूर्वानुमानों के द्वारा उनका परीक्षण न कर लिया जाए !इसलिए भूकंप के विषय में अभी तक विज्ञान जैसी कोई बात ही नहीं है !
2. आँधीतूफान - भारत में 2018 मई में बहुत आँधी तूफ़ान की घटनाएँ घटीं जिनके विषय में मौसम विज्ञान के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !बाद में आँधी तूफ़ान आने की बातें प्रतिदिन कही जाने लगीं !जो प्रायः गलत निकलती रहीं जिसपर केंद्र सरकार ने मौसम विभाग से जवाब भी माँगा था !पहले पूर्वानुमान तो बता ही नहीं सके किंतु बाद में भी ये नहीं बता सके इसी वर्ष आँधी तूफ़ान की इतनी अधिक घटनाएँ क्यों घटित हुईं !
इसी प्रकार से 2016 सन की गर्मियों में इतनी अधिक गर्मी पड़ी कि कुएँ तालाब नदियाँ आदि अप्रत्याशित रूप से अतिशीघ्र सूख गए !इसलिए इतिहास में पहली बार ट्रेनों से पानी की सप्लाई करनी पड़ी !
इसी प्रकार से अचानक आग लगने की बीसों हजार घटनाएँ घटित हुईं जिससे परेशान बिहार सरकार को अपील करनी पड़ी कि दिन में चूल्हा न जलाओ और हवन न करो !इतिहास में पहली बार ऐसा क्यों करना पड़ा ऐसी परिस्थिति ही क्यों पैदा हुई !मौसम वैज्ञानिकों के पास इसका आजतक कोई उत्तर नहीं है क्यों ?
3. वर्षा के विषय में -मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा बीते 13 वर्षों में घोषित किए गए मौसम संबंधी दीर्घावधि
पूर्वानुमानों में केवल 5 वर्ष के ही सही निकले !ये तो आधे भी नहीं हैं इसलिए इन्हें पूर्वानुमान नहीं माना जा सकता है !अल्पावधि के साप्ताहिक पूर्वानुमान भी गलत होते हैं 2018 में तीन अगस्त को घोषित पूर्वानुमानों में इस बात का कहीं कोई संकेत नहीं है 8 अगस्त से केरल में इतनी भयानक बारिस होगी !मौसम विभाग पूर्वानुमान इतने अधिक गलत निकलते हैं कि किसानों को आत्महत्या करनी पड़ती है अंत में थक हार कर किसानों ने गलत पूर्वानुमानों के कारण मौसम विभाग पर एक FIR भी दर्ज करवाई !
यहाँ तक कि 2015 में एक महीने के अंदर प्रधान मंत्री जी की दो रैलियाँ आयोजित की गईं दोनों मौसम बिगड़ने के कारण कैंसिल की गईं जिनके आयोजन में करोड़ों रूपया व्यय हुआ था !क्या इसके लिए मौसम विज्ञान की कोई जवाबदेही नहीं होनी चाहिए ! सारा विश्व देख रहा था हमारी सरकार की मौसम वैज्ञानिकी असफलता को !ये छोटी बात नहीं थी इसे तभी गंभीरता से लिया जाना चाहिए था !अब समय आ गया है जब मौसम वैज्ञानिकों और भूकंप वैज्ञानिकों से साफ साफ ये पूछा जाना चाहिए कि वे इन विषयों में कुछ जानते भी हैं या नहीं यदि जानते हैं तो अरबों रूपए खर्चने के बाद इन अनुसंधानों के परिणाम सफलता की दिशा में एक सेंटीमीटर भी आगे क्यों नहीं बढ़ सके !
मौसम का मजाक -
जिनकी जिम्मेदारी मौसम संबंधी पूर्वानुमान बताने की है !वो पूर्वानुमान तो बता नहीं पाते हैं और बताते हैं तो गलत निकल जाते हैं इसलिए मौसम संबंधी पूर्वानुमान बताने से डरने वाले मौसमी वैज्ञानिक मौसम पूर्वानुमान बताने से बचने के लिए वे मौसमी वैज्ञानिक रिसर्च के नाम पर कहाँ कितने सेंटीमीटर हुई है लोग मौसम संबंधी आँकड़े बताने लगते हैं किस वर्ष किस क्षेत्र में किस महीने में कितने सेंटीमीटर बारिस हुई ये आंकड़ा जुटाकर इसी में समय पार कर लिया करते हैं !पिछले वर्ष कहाँ कितने सेंटीमीटर बारिस हुई थी इस वर्ष कहाँ कितने सेंटीमीटर हुई !अरे इन सेन्टीमीटरों में नापते रहने के लिए इन्हें वैज्ञानिक रूप में देश स्वीकार कर रहा है क्या ?
इसी प्रकार से इनका कहना है कि मौसम 22 जून से 15 सितम्बर तक रहता है 1 जून को केरल में आ जाता है !उसके पहले पानी बरस गया तो प्रीमानसून बारिस और 15 सितंबर के बाद बरसे तो मानसून के बाद की बारिस ऐसे मूर्खता पूर्ण आँकड़े बताकर समाज और सरकार को आखिर मूर्ख क्यों बनाया जा रहा है मानव जीवन में आखिर इन आंकड़ों का उपयोग क्या है और रिसर्च में ऐसे आंकड़ों का योगदान क्या है !ऐसे लोगों के द्वारा मौसम के विषय में खींची गई इन काल्पनिक सीमा रेखाओं से समाज को क्या लाभ हो रहा है !वस्तुतः समय स्वतंत्र होता है और समय के आधीन सभी ऋतुएँ हैं मौसम संबंधी सभी निर्णय समय के अनुसार ही समय के धरातल पर होते हैं !
जनता के खून पसीने की कमाई टैक्स रूप में नोच कर जनता से सरकार ले लेती है वो बहुमूल्य धन ऐसे लोगों पर लुटाया जा रहा होता है जिन्हें इस बात का ही होश नहीं है कि उन्हें सरकार सैलरी किस काम के लिए दे रही है ये आंकड़े बताने के लिए या मौसम संबंधी पूर्वानुमान बताने के लिए !यदि पूर्वानुमान आप बता नहीं सकते तो व्यर्थ की बकवास करने की आवश्यकता भी क्या है !यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिस हुई है वहाँ उतने सेंटीमीटर हुई है जनता का इससे क्या लेना देना !किसानों को इससे क्या लाभ है !ऐसे मौसमी लोगों के रिसर्चों पर इतना धन खर्च कर देने के बाद भी देश को मिलता क्या है ?इनकी रिसर्च से जो कुछ निकला होगा वो उन्हें ही पता होगा जो करते हैं जनता तो उसे परिणाम शून्य ही मानती है !जनता को तो ऐसे रिसर्ची अंधविश्वासों से कुछ मिला नहीं अपितु नुक्सान ही हुआ है !
सच्चाई ये है कि मौसम संबंधी पूर्वानुमान के विषय में मौसम वैज्ञानिक डरते डरते कुछ बोलने की हिम्मत करते हैं किंतु वे जो बोलते हैं वो इतना अधिक गोलमोल होता है कि दोनों तरफ बने रहते हैं !और कभी भी पाला बदल लिया करते हैं !2018 अगस्त में केरल में जो भीषण वर्षात हुई जिससे सौ वर्ष से अधिक का रिकार्ड टूटा कुछ सौ लोग मारे गए !ये वर्षात 8 अगस्त से शुरू हुई थी तीन अगस्त को जब अगस्त सितम्बर का पूर्वानुमान घोषित किया जा रहा था उसमें अगस्त की भीषण बाढ़ का कोई जिक्र तक नहीं था सामान्य वर्षा का पूर्वानुमान बताया गया था !केरल में जब भीषण वर्षात का कहर टूटा तो केरल सरकार ने कह दिया कि मौसमविभाग वालों ने ऐसा कोई पूर्वानुमान तो दिया नहीं था !तो मौसम विभाग वालों ने कहा मैंने तो बिलकुल सच सच बता दिया था लेकिन सरकार के कान में !अरे जब सब कुछ कान में ही बताना है तो 3 अगस्त 2018 को मौसम पूर्वानुमान घोषित ही क्यों किए गए !यदि यहाँ झूठ और कान में सच बोलना था तो केरल सरकार इतनी बहरी थी क्या कि कान में बोली गई बात भी उसे सुनाई नहीं पड़ी !
पूर्वानुमान- ऐसी सभी घटनाओं के द्वारा आँधी तूफ़ान बाढ़ भूकंपादि प्राकृतिक आपदाओं जैसा भयंकर स्वरूप धारण करने से पहले उन्हें पहचानने के लिए समय अनेकों स्तरों पर अलग अलग प्रकार के अवसर प्रदान करता है जो जितनी प्रारंभिक अवस्था में पहचान जाता है प्राकृतिक आपदाओं के मूल को समझने सुधरने एवं सजग होने में उसे उतना अधिक अवसर मिल जाता है जिससे संभावित जनधन की हानि के अनुपात को अपेक्षाकृत कम कर लिया जाता है !
इसीलिए प्राचीन ऋषिलोग खगोल विद्या के द्वारा प्राकृकी दशा दिशा को समझकर तिक आपदाओं के निर्मित होने के अत्यंत प्रारंभिक प्रक्रिया में ब्रह्मांडीय संकेतों का अनुभव कर लिया करते थे !इसके बाद ब्रह्मांडीय प्रक्रिया से प्राप्त संकेतों का को सूर्य चंद्र आदि ग्रहों की गति युति आदि के द्वारा पुनर्मिलान कर लिया करते थे !इसके बाद वायु मंडल का अनुसन्धान करके तीसरा मिलान उससे कर लिया करते थे चौथा मिलान प्रकृति के लक्षणों से कर लिया करते थे !वृक्षों बनस्पतियों पर प्रकट सूक्ष्म बदलावों से पूर्व में प्राप्त अनुभवों को मिला लिया करते थे !इसके बाद जीवजंतुओं के स्वभावों व्यवहारों में प्रकट बदलावों का मिलान करते थे जिन्हें प्राचीन काल में 'शकुनशास्त्र ' के नाम से जाना जाता था ! ऐसे सभी प्रकार से दृढ़ निश्चय करके बादलों हवाओं आदि की दशा दिशा को समझकर न केवल प्राकृतिक आपदाओं आदि का पूर्वानुमान कर लिया करते थे अपितु उनका दुष्प्रभाव घटाने के लिए यज्ञ यागादि किया करते थे उनका प्राकृतिक आपदाओं पर पर्याप्त असर पड़ते देखा जाता था !उससे उन आपदाओं का दुष्प्रभाव कुछ घट जाया करता था !कुछ राजा लोगों के प्रयास करने से सहारा मिल जाता था ! कुछ सतर्क होकर जनता अपना बचाव कर लिया करती थी !कुछ समाज सह जाया करता था !
जैसे अमावस्या पूर्णिमा आदि के आस पास इतिहास में सबसे अधिक भूकंप आते देखे गए विशेष कर ग्रहण वाली अमावस्या पूर्णिमा के आस पास तो अक्सर ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाओं के घटित होने का अँदेशा बना रहता था !इसलिए ऋषियों ने अमावस्या पूर्णिमा जैसे पर्वों पर गंगा नान के लिए प्रेरित किया और ग्रहण वाली अमावस्या पूर्णिमा में तो गंगा आदि में स्नान करने का बहुत बड़ा पुण्य कहा ताकि लोग खुले मैदान में रहें और भूकंप आदि कोई प्राकृतिक आपदा घटित भी हो तो उससे जनधन की हानि कम से कम होती थी !
वैसे भी वर्तमान मौसम या भूकंप वैज्ञानिकों के पास उनके अनुसंधानों के परीक्षण का पूर्वानुमानों के अलावा और कोई आधार है नहीं और न ही उसमें ऐसी प्रमाणित पारदर्शिता है कि सूर्य चंद्र ग्रहण की तरह जो सबको दिखाई पड़ता हो ऐसा कोई सटीक पूर्वानुमान करके आधुनिक वैज्ञानिक उसकी सच्चाई सिद्ध कर सकें !इसीलिए तो आधुनिक मौसमविज्ञान से जुड़े लोग निराधार तीर तुक्के लगाया करते हैं वो यदि सही निकल गए तो पूर्वानुमान और यदि गलत निकल गए तो जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग पश्चिमी विक्षोभ जैसी काल्पनिक बातों के मत्थे मढ़ दिया करते हैं !
चूँकि इनके मौसम संबंधी पूर्वानुमानों में सच्चाई तो होती है अधिकतर गलत ही होते हैं इसीलिए उनकी बातों में निर्भीकता नहीं होती है न चेहरे पर वैज्ञानिकों जैसा तेज होता है और न वाणी में ओज होता है गोल मोल बातें करके मौसम के नाम पर जो तीर तुक्के लगाकर समय पास किया करते हैं !सरकारी काम काज में यही तो सुविधा होती है कि जिम्मेदारी का एहसास बहुत कम लोगों को होता है और लक्ष्य बनाकर बहुत कम लोग ही काम करते देखे जाते हैं !
प्रकृति के जो बदलाव वृक्षों बनस्पतियों आदि सभी पेड़ पौधों से लेकर सभी जीवजंतुओं पशु पक्षियों प्राणियों मनुष्यों आदि के लिए हितकर होते हैं प्रकृति के उन बदलावों को अच्छा माना जाता है !इसके अलावा प्रकृति में हो रहे जो परिवर्तन इन सभी के विरुद्ध होते हैं जिनमें जनधन की हानि संभावित होती है !जिससे सभी प्राणिमात्र दुखी होते हैं उन्हें प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में गिना जाता है !अतिवर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप या महामारी जैसी घटनाएँ इसी श्रेणी में आती हैं !
आज जो भी मौसमी वैज्ञानिक लोग ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी बातें करने लगते हैं उन्हें यह सोचना चाहिए कि जिस विज्ञान का आस्तित्व ही अभी सौ दो सौ वर्ष पहले का है !उस विज्ञान के मुख से इतनी बड़ी बड़ी बातें शोभा नहीं देती हैं और न ही वैज्ञानिक ऐसी कोई विश्वसनीयता ही इस क्षेत्र में बना पाए हैं !
ग्लोबल वार्मिंग-
सूर्य की किरणें प्रातः काल कम गर्म लगती हैं मध्यान्ह में अधिक सायंकाल में फिर कम गर्म लगने लगती हैं और रात्रि के समय में वातावरण बिलकुल ठंडा हो जाता है !जिन लोगों को समय का ये क्रम पता है वे तो इस बात को ऐसा समझकर निश्चिंत रहते हैं उन्हें पता होता है कि जैसे जैसे दोपहर होती जाती है वैसे वैसे सूर्य का प्रभाव बढ़ता जाता है दोपहर बाद घटता जाता है !
इस क्रम को न जानने वाला यदि कोई व्यक्ति कोई व्यक्ति अज्ञानवश दिन के बारह बजे यह कहने लगे कि अभी जब इतनी गर्मी है तो शाम चार बजे इससे तो अधिक गर्मी होगी तथा गर्मी यदि इसी हिसाब से बढ़ी तब तो रात बारह बजे तक सब कुछ जलने लगेगा और कल सुबह तक तो कुछ बचेगा ही नहीं !समय चक्र का ज्ञान जिन्हें नहीं होता है वो ऐसी ही ऊटपटाँग कल्पनाएँ किया करते हैं !ऐसे सिरफिरे लोग ग्लोबल वार्मिंग जैसे भ्रम फैलाया करते हैं न केवल इतना अपितु अंटार्कटिका की सारी बर्फ पिघलने का अंधविश्वास फैलाया करते हैं !ऐसे लोगों से पूछ जाए कि अंटार्कटिका पर बर्फ आपने जमाई थी क्या वातावरण ने जब उस तरह का करवट मारा था तभी तो वो बर्फ जमी थी अब उसी वातावरण के प्रभाव से ही तो वो बर्फ पिघल रही है कल उसी वातावरण के बदलाव से पिघले हुए ग्लेशियर फिर बर्फ से ढक जाएँगे ! इसमें ग्लोबल वार्मिंग जैसी कौन सी बात है !जैसे अज्ञानी ज्योतिषी लोग ज्योतिष न पढ़े लिखे होने के कारण ज्योतिष के विषय में अपना महत्त्व बनाए रखने के लिए लोगों में बहम अधिक फैलाते हैं उसी प्रकार से प्रकृति के स्वभाव से अपरिचत अज्ञानी लोग अपना महत्त्व बनाए और बचाए रखने के लिए ग्लोबल वार्मिंग जैसे बहम फैलाया करते हैं जो गलत है ग्लोबल वार्मिंग जैसी कोई चीज है ही नहीं !
जलवायु परिवर्तन का अंधविश्वास -
सच्चाई तो ये है कि जलवायु परिवर्तन कभी हो ही नहीं सकता है क्योंकि जल और वायु के आधीन जीवन है यही दोनों प्राणों की रक्षा करते हैं इनके स्वभाव बदल लेने से जीव जंतुओं पशु पक्षियों मनुष्यों का ही नहीं अपितु पेड़ों पौधों बनस्पतियों का भी जीवन बचा पाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होगा !इसलिए जलवायु परिवर्तन हो ही नहीं सकता है !जो मौसमीवैज्ञानिक कहे जाने वाले जो भी लोग ऐसी बातें करते हैं वे अपनी अकर्मण्यता छिपाने के लिए ऐसे अंधविश्वास फैला रहे होते हैं !
वस्तुतः मौसम आदि विषयों में किसी के द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमान जब गलत होने लगते हैं तो अपने को सही सिद्ध करने के लिए ऐसे चालाक लोग जलवायु परिवर्तन जैसे झूठ का सहारा लेते हैं !झूठ को फैलाने की अपेक्षा आखिर सीधे यह कहने में क्या बुराई है कि हम मौसम के विषय में कुछ नहीं जानते हैं !
मौसम के विषय में पूर्वानुमान के नाम पर जो कुछ भी तीर तुक्के लगाए जाते हैं वो यदि सच निकल गए तब तो वो प्रमाणित मौसमवैज्ञानिक और ये उनके पूर्वानुमान और गलत निकल गए तो जलवायुपरिवर्तन ! वस्तुतः मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोगों ने क्लाइमेट चेंज ,ग्लोबलवार्मिंग और पश्चिमीविक्षोभ जैसे कुछ शब्द न गढ़े होते तो मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोगों के झूठ का न जानें कब का पर्दाफाश हो चुका होता !किंतु मौसम वैज्ञानिकों के लिए ये तीन शब्द वरदान सिद्ध हुए हैं जिनके बलपर सरकारों को भ्रमित किया करते हैं इसीलिए वे अपने हर झूठ पर इन तीन में से एक शब्द चिपका दिया करते हैं और चतुराई पूर्वक अपनी इज्जत बचा ले जाते हैं !
विश्व की तो नहीं कह सकता किंतु इतना अवश्य कह सकता हूँ कि भारत के मौसम विज्ञान की हालत उन बनियों जैसी है जिनकी दुकान नहीं चलती है तो अपने को व्यस्त दिखाने के लिए बटखरे तौला करते हैं !इसी प्रकार से हमारे मौसम वैज्ञानिक कोई न कोई झूठ बोलते रहते हैं !इन्हें मौसम के विषय में पूर्वानुमान बताने के अलावा और सब कुछ आता है कोई बिना सर पैर की बातें इनसे कितनी भी क्यों न करवा ले केवल इन्हें मौसम के पूर्वानुमान के विषय में कुछ भी पता नहीं होता है !इसके अलावा जो जितना बड़ा झूठ बोलवाना चाहे बोलवा ले !कोई झूठ पकड़ जाता है तो क्लाइमेटचेंज ,ग्लोबलवार्मिंग आदि का बहाना बना लेते हैं !
भूकंप की मन गढंत कहानियाँ -
यही स्थिति भूकंप की प्रक्रिया को न समझ पाने वाले तथा कथित भूकंप वैज्ञानिकों की है वो भूकंप के विषय में इतने ज्यादा समझदार हैं कि वे भी मौसम वैज्ञानिकों की तरह भूकंप के विषय में ऐसी ऐसी काल्पनिक कथाएँ गढ़े बैठे हैं जब भूकंप आता है तो टीवी चैनलों पर आ आकर वही तथ्य विहीन कहानियाँ बाँचने लगते हैं वही उतनी बातें जमींन के अंदर की प्लेटों का खिसकना उन्हीं संचित गैसों की बातें करते करते ऐसे लोग भूकंपों पर रिसर्च के नाम पर इसी प्रकार से गड्ढे खोदते मिट्टी भरते कई सदियाँ गुजार सकते हैं ! आधार विहीन झूठी कहानियाँ गढ़ने में बड़े हिम्मती होते हैं ऐसे लोग !अन्यथा भूकंप और मौसम जैसे विषयों में ऐसे वैज्ञानिकों के द्वारा गढ़ी गई किस्से कहानियों में यदि रंच मात्र भी सच्चाई होती तो मौसम और भूकंपों से संबंधित रिसर्च क्या एक कदम भी आगे न बढ़ा होता !रिसर्चों के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त धन का बहुत बड़ा भाग ऐसे लोगों की सुख सुविधाओं सैलारियों रिसर्चों पर पानी की तरह बहाया जा रहा है जो रिसर्च होते साल मॉल हैं किंतु किसी को नहीं पता है कि रिसर्चों के नाम पर होता आखिर क्या है एक सेंटीमीटर का सौवाँ हिस्सा भी तो इनका रिसर्च आगे नहीं बढ़ा है सच्चाई तो ये है कि ऐसे लोगों का रिसर्च अभी तक यही नहीं तय कर पाया है कि भूकंप और मौसम या आँधी तूफान जैसी घटनाओं पर रिसर्च करने के लिए इन्हें करना वास्तव में क्या है ?ये लोग अभी तक वो मार्ग नहीं पकड़ पाए हैं जिस पर चलकर इन विषयों पर रिसर्च की जा सकती है पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
गाँव गाँव में आकाश में राडार लगा दिए जाएँ उसमें बादल देख देखकर ये बताते रहेंगे कि आज पानी बरसेगा या कल आँधी आएगी !आज कल कल की बातों को पूर्वानुमान नहीं कहा जा सकता है और न ही इनका कोई उपयोग ही हो सकता है और न ही इसमें कोई रिसर्च ही है !सच्चाई तो ये है समाज में वैज्ञानिक अंधविश्वास फैलाने वाले ऐसे काल्पनिक कथा वाचकों (भूकंप एवं मौसम वैज्ञानिकों )पर तब तक रोक लगाई जानी चाहिए जब तक इन विषयों में इनके द्वारा बताए गए पूर्वानुमान सच न घटित होने लगें तब तक के लिए ऐसे लोगों के नाम के साथ ववैज्ञानिक शब्द लगाने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए !जो जिस विषय को जनता ही नहीं है वो उस विषय का वैज्ञानिक कैसे हो सकता है !इसके साथ ही जो विषय अभी तक विज्ञान सिद्ध ही नहीं हो पाए हैं इसीलिए तो उनके पूर्वानुमान नहीं लगाए जा पा रहे हैं ऐसे मन गढंत काल्पनिक विषयों को शिक्षण संस्थाओं में पढ़वाकर नौजवानों का जीवन क्यों बर्बाद किया जाए जबकि उनकी सच्चाई सिद्ध होनी अभी बाक़ी है !
ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा झूठ है -
सौरविज्ञान प्रक्रिया से समयचक्र के आधार पर मौसमसंबंधी पूर्वानुमान हम जो लगाते हैं वो सौ प्रतिशत नहीं तो कम से कम 70 प्रतिशत तो सच निकलता ही है जबकि वो हम महीनों वर्षों पहले लगा लेते हैं और वह सच निकलते चला जाता है ! जिसके हमारे पास एक नहीं अनेकों प्रमाण हैं जिसके साक्ष्य सरकार की अपनी साइटों और जीमेल पर विद्यमान हैं !जो बहुत सही निकलते हैं !
मैं तो पिछले तीस वर्षों से इसी विषय पर अनुसन्धान करता चला आ रहा हूँ जिसके अनुभव काफी अच्छे रहते रहे हैं !हमारे साथ रहने वाले सभी मित्र गण इस बात का अनुभव करते रहे हैं किंतु सोर्स न होने के कारण सरकार ने हमारी बात कभी सुनी नहीं !और धन न होने के कारण मीडिया ने हमारी बात प्रकाशित नहीं की !रही बात मौसम विभाग की उनका तो मानना है कि जिसने अंगेजी नहीं पढ़ी और आधुनिक विज्ञान नहीं पढ़ी उसे मौसम और विज्ञान के विषय की चर्चा करने का कोई नैतिक अधिकार ही नहीं ही !इसलिए वो हमारी बात तो सुनते ही नहीं थे जो सुनते थे वे मजाक उड़ाते थे !
एक दिन हमारे किसी मित्र ने इस विधा की सच्चाई देखकर हमारी मुलाकात भारत सरकार के मौसम विभाग के डायरेक्टर साहब से मई 2018 में करवाई तो उन्होंने हमें अपने तीन जीमेल आईडी दिए और मोबाईल नम्बर दिया और कहा कि आप प्रत्येक महीने का मौसम संबंधी पूर्वानुमान हमारे जीमेल पर भेजते रहो हम बचन देते हैं कि हर सप्ताह हम आपको फीडबैक उपलब्ध करवाएँगे उसमें तुम्हारा पूर्वानुमान जिस हद तक सच निकलेगा वो सब कुछ आपको लिखकर भेजते रहेंगे ! जैसा होगा वैसा सच को सच लिख कर देंगे कहेंगे !
मैंने उन्हें मई के अंतिम सप्ताह में 1 जून से 30 जून 2018 तक का पूर्वानुमान भेजा जो बिलकुल सच होता चला गया मैं भी अखवारों मीडिया साइटों से मिलान करता रहा उनका संग्रह मैंने रखा हुआ है डायरेक्टर साहब से जब बात हो तो वो भी प्रसन्नता पूर्वक बात करते थे और प्रशंसा करते थे तभी तो मैं चार महीने तक भेजता गया !जब फीडबैक माँगता था तो वो आज कल ऐसे बोलते बोलते टालते है रहे थे !फिर भी मैं हर महीने का पूर्वानुमान महीना प्रारंभ होने से पहले ही भेज दिया करता था !तीन महीने बाद बहुत दबाव डालने पर उन्होंने जो फ़ीडबैक दिया है वो इतना मूर्खता पूर्ण है जिसे पढ़कर लगता है कि ये मौसम संबंधी विषयों पर पूर्वानुमान क्या लगाएँगे जिन्हें पूर्वानुमान ठीक ढंग से पढ़ना भी नहीं आता है !खैर सरकार यदि ऐसे काल्पनिक वैज्ञानिकों पर मनगढंत मौसमी या भूकम्पीय अनुसंधान प्रक्रिया में समय रहते पार दर्शिता नहीं लाती है और इनसे सच्चाई नहीं उगलवाती है तो मैं विश्वास पूर्वक यह कह सकता हूँ मौसम संबंधी सभी विषयों का रहस्य उद्घाटन भारतीय वैदिक विज्ञान बहुत जल्दी करेगा उसकी पटकथा लिखी जा चुकी है उसे उचित मंच की प्रतीक्षा है !
पूर्वानुमान की वर्तमान पद्धति -
पूर्वानुमान की वर्तमान वैज्ञानिक पद्धति में पूर्वानुमान जैसा तो कुछ होता ही नहीं है और हो भी कैसे जब उसका आधार ही कुछ नहीं है जिसे वो आधार मान कर चलते हैं उन बातों का मौसम के पूर्वानुमान से कोई संबंध ही नहीं होता है वो तो कोरी कल्पनाएँ हैं !जिनसे सत्यता की अपेक्षा की जाती है !इसबात को मैं कभी भी कहीं भी चुनौतीपूर्ण ढंग से सिद्ध कर सकता हूँ !सच्चाई यही है कि मौसम का पूर्वानुमान करना मौसम वैज्ञानिकों के बश का भी नहीं है और मौसम के विषय में उनके द्वारा अभीतक किए गए सारे रिसर्च परिणाम विहीन सिद्ध हुए हैं और आगे भी जितने रिसर्च होंगे उनका कोई परिणाम नहीं निकलेगा !ये बात मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ !
भूकंप या मौसम के विषय में आज तक किए गए रिसर्च परिणाम शून्य हैं !किंतु रिसर्च के नाम पर कुछ होता रहे इसलिए कुछ न कुछ होता रहता है !
1. भूकंप
भूकंप के विषय में पूर्वानुमान के नाम पर जो कुछ भी बोला जाता है वो सच हुआ या नहीं पता लग जाता है इसलिए भूकंप के विषय में कह दिया गया कि इसके विषय में पूर्वानुमान हम नहीं लगा सकते !ऐसी परिस्थिति में मेरा प्रश्न है कि फिर आपको ये कैसे पता है कि भूकंप धरती के अंदर संचित गैसों या तथाकथित प्लेटों के कारण ही आते हैं !या डेंजर जोन कौन है कौन नहीं है !भारत में महाराष्ट्र की कोयना जैसी कई जगहैं ऐसी हैं जहां पहले भूकंप नहीं आता था अब आता है !इसलिए भूकंप के विषय में बिना किसी निष्कर्ष पर पहुँचे किसी भी काल्पनिक प्रक्रिया को विज्ञान तब तक नहीं माना जा सकता है जब तक कि पूर्वानुमानों के द्वारा उनका परीक्षण न कर लिया जाए !इसलिए भूकंप के विषय में अभी तक विज्ञान जैसी कोई बात ही नहीं है !
2. आँधीतूफान - भारत में 2018 मई में बहुत आँधी तूफ़ान की घटनाएँ घटीं जिनके विषय में मौसम विज्ञान के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !बाद में आँधी तूफ़ान आने की बातें प्रतिदिन कही जाने लगीं !जो प्रायः गलत निकलती रहीं जिसपर केंद्र सरकार ने मौसम विभाग से जवाब भी माँगा था !पहले पूर्वानुमान तो बता ही नहीं सके किंतु बाद में भी ये नहीं बता सके इसी वर्ष आँधी तूफ़ान की इतनी अधिक घटनाएँ क्यों घटित हुईं !
इसी प्रकार से 2016 सन की गर्मियों में इतनी अधिक गर्मी पड़ी कि कुएँ तालाब नदियाँ आदि अप्रत्याशित रूप से अतिशीघ्र सूख गए !इसलिए इतिहास में पहली बार ट्रेनों से पानी की सप्लाई करनी पड़ी !
इसी प्रकार से अचानक आग लगने की बीसों हजार घटनाएँ घटित हुईं जिससे परेशान बिहार सरकार को अपील करनी पड़ी कि दिन में चूल्हा न जलाओ और हवन न करो !इतिहास में पहली बार ऐसा क्यों करना पड़ा ऐसी परिस्थिति ही क्यों पैदा हुई !मौसम वैज्ञानिकों के पास इसका आजतक कोई उत्तर नहीं है क्यों ?
3. वर्षा के विषय में -मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा बीते 13 वर्षों में घोषित किए गए मौसम संबंधी दीर्घावधि
पूर्वानुमानों में केवल 5 वर्ष के ही सही निकले !ये तो आधे भी नहीं हैं इसलिए इन्हें पूर्वानुमान नहीं माना जा सकता है !अल्पावधि के साप्ताहिक पूर्वानुमान भी गलत होते हैं 2018 में तीन अगस्त को घोषित पूर्वानुमानों में इस बात का कहीं कोई संकेत नहीं है 8 अगस्त से केरल में इतनी भयानक बारिस होगी !मौसम विभाग पूर्वानुमान इतने अधिक गलत निकलते हैं कि किसानों को आत्महत्या करनी पड़ती है अंत में थक हार कर किसानों ने गलत पूर्वानुमानों के कारण मौसम विभाग पर एक FIR भी दर्ज करवाई !
यहाँ तक कि 2015 में एक महीने के अंदर प्रधान मंत्री जी की दो रैलियाँ आयोजित की गईं दोनों मौसम बिगड़ने के कारण कैंसिल की गईं जिनके आयोजन में करोड़ों रूपया व्यय हुआ था !क्या इसके लिए मौसम विज्ञान की कोई जवाबदेही नहीं होनी चाहिए ! सारा विश्व देख रहा था हमारी सरकार की मौसम वैज्ञानिकी असफलता को !ये छोटी बात नहीं थी इसे तभी गंभीरता से लिया जाना चाहिए था !अब समय आ गया है जब मौसम वैज्ञानिकों और भूकंप वैज्ञानिकों से साफ साफ ये पूछा जाना चाहिए कि वे इन विषयों में कुछ जानते भी हैं या नहीं यदि जानते हैं तो अरबों रूपए खर्चने के बाद इन अनुसंधानों के परिणाम सफलता की दिशा में एक सेंटीमीटर भी आगे क्यों नहीं बढ़ सके !
मौसम का मजाक -
जिनकी जिम्मेदारी मौसम संबंधी पूर्वानुमान बताने की है !वो पूर्वानुमान तो बता नहीं पाते हैं और बताते हैं तो गलत निकल जाते हैं इसलिए मौसम संबंधी पूर्वानुमान बताने से डरने वाले मौसमी वैज्ञानिक मौसम पूर्वानुमान बताने से बचने के लिए वे मौसमी वैज्ञानिक रिसर्च के नाम पर कहाँ कितने सेंटीमीटर हुई है लोग मौसम संबंधी आँकड़े बताने लगते हैं किस वर्ष किस क्षेत्र में किस महीने में कितने सेंटीमीटर बारिस हुई ये आंकड़ा जुटाकर इसी में समय पार कर लिया करते हैं !पिछले वर्ष कहाँ कितने सेंटीमीटर बारिस हुई थी इस वर्ष कहाँ कितने सेंटीमीटर हुई !अरे इन सेन्टीमीटरों में नापते रहने के लिए इन्हें वैज्ञानिक रूप में देश स्वीकार कर रहा है क्या ?
इसी प्रकार से इनका कहना है कि मौसम 22 जून से 15 सितम्बर तक रहता है 1 जून को केरल में आ जाता है !उसके पहले पानी बरस गया तो प्रीमानसून बारिस और 15 सितंबर के बाद बरसे तो मानसून के बाद की बारिस ऐसे मूर्खता पूर्ण आँकड़े बताकर समाज और सरकार को आखिर मूर्ख क्यों बनाया जा रहा है मानव जीवन में आखिर इन आंकड़ों का उपयोग क्या है और रिसर्च में ऐसे आंकड़ों का योगदान क्या है !ऐसे लोगों के द्वारा मौसम के विषय में खींची गई इन काल्पनिक सीमा रेखाओं से समाज को क्या लाभ हो रहा है !वस्तुतः समय स्वतंत्र होता है और समय के आधीन सभी ऋतुएँ हैं मौसम संबंधी सभी निर्णय समय के अनुसार ही समय के धरातल पर होते हैं !
जनता के खून पसीने की कमाई टैक्स रूप में नोच कर जनता से सरकार ले लेती है वो बहुमूल्य धन ऐसे लोगों पर लुटाया जा रहा होता है जिन्हें इस बात का ही होश नहीं है कि उन्हें सरकार सैलरी किस काम के लिए दे रही है ये आंकड़े बताने के लिए या मौसम संबंधी पूर्वानुमान बताने के लिए !यदि पूर्वानुमान आप बता नहीं सकते तो व्यर्थ की बकवास करने की आवश्यकता भी क्या है !यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिस हुई है वहाँ उतने सेंटीमीटर हुई है जनता का इससे क्या लेना देना !किसानों को इससे क्या लाभ है !ऐसे मौसमी लोगों के रिसर्चों पर इतना धन खर्च कर देने के बाद भी देश को मिलता क्या है ?इनकी रिसर्च से जो कुछ निकला होगा वो उन्हें ही पता होगा जो करते हैं जनता तो उसे परिणाम शून्य ही मानती है !जनता को तो ऐसे रिसर्ची अंधविश्वासों से कुछ मिला नहीं अपितु नुक्सान ही हुआ है !
सच्चाई ये है कि मौसम संबंधी पूर्वानुमान के विषय में मौसम वैज्ञानिक डरते डरते कुछ बोलने की हिम्मत करते हैं किंतु वे जो बोलते हैं वो इतना अधिक गोलमोल होता है कि दोनों तरफ बने रहते हैं !और कभी भी पाला बदल लिया करते हैं !2018 अगस्त में केरल में जो भीषण वर्षात हुई जिससे सौ वर्ष से अधिक का रिकार्ड टूटा कुछ सौ लोग मारे गए !ये वर्षात 8 अगस्त से शुरू हुई थी तीन अगस्त को जब अगस्त सितम्बर का पूर्वानुमान घोषित किया जा रहा था उसमें अगस्त की भीषण बाढ़ का कोई जिक्र तक नहीं था सामान्य वर्षा का पूर्वानुमान बताया गया था !केरल में जब भीषण वर्षात का कहर टूटा तो केरल सरकार ने कह दिया कि मौसमविभाग वालों ने ऐसा कोई पूर्वानुमान तो दिया नहीं था !तो मौसम विभाग वालों ने कहा मैंने तो बिलकुल सच सच बता दिया था लेकिन सरकार के कान में !अरे जब सब कुछ कान में ही बताना है तो 3 अगस्त 2018 को मौसम पूर्वानुमान घोषित ही क्यों किए गए !यदि यहाँ झूठ और कान में सच बोलना था तो केरल सरकार इतनी बहरी थी क्या कि कान में बोली गई बात भी उसे सुनाई नहीं पड़ी !
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