Saturday, 11 November 2017

प्रधानमंत्री जी !पाई पाई और पल पल का हिसाब देने वाली बात पर यदि अभी भी कायम हैं तो केवल इतना कर दीजिए -

  PMसाहब!केवल जनता को नंगा करने के लिए आन लाइन  और नेताओं अधिकारियों कर्मचारियों की सम्पत्तियाँ आन लाइन क्यों न की जाएँ !
  आनलाइन करना ही है तो सबकुछ कर दीजिए में आपकी बहुत रूचि है ही और कर भी रहे हैं तो अफसरों और नेताओं की संपत्तियाँ एवं उनके परिजनों की संपत्तियाँ भी आन लाइन कर ही दीजिए ताकि जनता को भी पता लगे कि इन लोगों के पास बेईमानी से इकठ्ठा किया गया धन है कितना !किस सन में कौन सी संपत्ति खरीदी और उसके पैसे उनके पास उस समय कहाँ से आए !इन्हें किसी ने गिफ्ट कीं  तो क्यों ?उस गिफ्टर की संपत्तियाँ भी जाँचिए और उसके अच्छे बुरे सभी कामों का व्यौरा आन लाइन कर दीजिए ! 
    इसके बाद बिना पक्षपात के भ्रष्ट नेताओं अफसरों के विरुद्ध कार्यवाही कीजिए उनमें से जो ईमानदार हैं उन्हें उनके हिस्से का सम्मान पाने योग्य बनाइए जिसके कि वो हकदार हैं !ऐसे अफसर और नेता जिन्होंने परिश्रम भी खूब किया ईमानदारी का पूरी तरह पालन किया !इसके बाद भी वो कोई सुख सुविधा शौक शान आदि का कोई  सामान  खरीदने लगें तो पडोसी और नाते रिस्तेदार उन्हें कोसने लगते हैं कि बेईमानी की कमाई के बल पर खरीद रहे हैं ! एक ईमानदार अफसर का बच्चा दूसरे खंड से गिरा कोमा में चला गया उसका इलाज इतना महँगा था कि वो कराने की हैसियत में नहीं थे तो उनके किसी रिस्तेदार को सेना से रिटायर होने पर कुछ  फंड मिला था उनके सहयोग से उन बेचारों का बच्चा बच पाया जबकि  रिस्तेदारपड़ोसी आदि कह रहे थे जैसी कमाई करेंगे वैसे ही निकलेगी !ऐसी परिस्थिति में कितना दुःख होता होगा !यही स्थिति नेताओं की भी है !इसलिए ऐसे लोगों को भी ईमानदारी प्रस्तुत करने का अवसर उपलब्ध कराया  चाहिए !
  वर्तमान भ्रष्ट राजनीति की स्थिति ये है कि  नेता लोग यदि राजनीति में न होते कहीं और होते तो वहां इतनी बड़ी समस्या पैदा कर रहे होते जिसका समाधान किसी के पास होता ही नहीं !ऐसे ये बेचारे देश और समाज के लिए भले ही न कुछ कर पा रहे हों लेकिन लोग जी तो ले रहे हैं अन्यथा ये सुख सुविधा भोगने का शौकीन ये अयोग्य एवं अकर्मण्य वर्ग यदि बेरोजगार होता तो कितना खतरनाक होता सोचकर सिहर उठता है मन !ऐसे लोग अपने फायदे के लिए किसी से भी समझौता कर सकते थे !
   भ्रष्टाचार समाप्त हो ही गया तो राजनीति वाले खाएँगे क्या ?रहेंगे कहाँ ?आखिर कैसे जिएँगे कैसे ?इनके बच्चे पलेंगे कैसे ?ऐसे लोगों के साथ कोई अपने बेटा बेटी की शादी क्यों करना चाहेगा !इसीलिए तो भ्रष्टाचार की ही चमक इनके परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर दमक रही होती है !
     भ्रष्टाचार तो नेताओं के पापी पेट का सवाल होता है !वस्तुतः राजनीति स्वयं में तो सेवाकर्म ही है उसमें ईमानदारी से कमाई के साधन हैं ही नहीं !बेईमानी करें कैसे पकड़ जाएँगे !इसीलिए बेईमान अफसरों कर्मचारियों के कुकर्मों में उनकी मदद कर देते हैं उन्हीं के साथ अपना भी कमीशन सेट कर लेते हैं आजादी के बाद आज तक यही होता चला आ  रहा है !
        ईमानदार नेतालोग  बड़े बड़े पदों पर पहुँचकर भी गरीब या सामान्य ही बने रहते रहते हैं और बेईमान नेताओं में से कोई निगमपार्षद या ग्राम प्रधान भी बन जाएँ तो भी दो चार दूकान खेत खलिहान तो बना ही लेते हैं! इससे बड़े नेताओं की तो प्रापर्टियाँ कितनी हैं उसका सही सही हिसाब तो उनके मरने के बाद उनकी तीसरी पीढ़ी ही लगा पाती है  अपनी जिंदगी में तो वो गिन नहीं पाते हैं !इसीलिए तो अक्सर ये कहते सुना जाता है कि हमारे बाबा जमींदार थे बाप को कोई जमींदार नहीं बताता !बेईमानों को बाप कोई नहीं बनाना चाहता !
    इसीलिए तो ईमानदार योग्य सुशिक्षित चरित्रवान परिश्रमी एवं जनता की सेवा करने वालों की राजनीति कहीं कोई पूछ ही नहीं बची है ! ऐसे लोग राजनीति में पहले तो घुसने नहीं दिए जाते हैं घुस गए तो उनके पास दो ही रास्ते होते हैं या तो किसी पार्टी के भ्रष्ट बेईमान नेता की जी हुजूरी करने में सफल हो गए तो कभी कुछ बनाए भी जा सकते हैं अन्यथा हासिए पर पड़े रहते हैं !इन्हें पूछता कौन है ! 
    किसी ईमानदार को राजनैतिक दलों के प्रमुख लोग नेता इसलिए नहीं बना सकते कि वो इन्हें बेईमानी नहीं करने देगा !इसीप्रकार से किसी सुशिक्षित व्यक्ति को भी नेता इसलिए नहीं बना सकते क्योंकि वो सजीव व्यक्ति कानून और संविधान के अनुशार स्वयं भी निर्णय लेना चाहेगा !संसद आदि सदनों की चर्चा में भाग लेते समय सब कुछ स्वयं समझेगा  और अपनी बात स्वयं कहेगा भी !अपने निर्णय भी स्वयं लेगा ! इन पागलों के कहने से अकारण हुल्लड़ नहीं मचाने लगेगा !भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही करने की जिद करने लगेगा !राजनीति में होने वाले पापों का पर्दाफास करने लगेगा इसलिए किसी विजातीय को राजनीति में घुसाना ठीक ही नहीं समझते हैं बेईमान पार्टियों के भ्रष्ट नेता लोग !
     ये लोग किसी चरित्रवान को नेता इसलिए नहीं बनाते कि किसी के पास जब धन धान्य बहुत बढ़ जाता है सब सुख सुविधाएँ इकट्ठी कर ली जाती हैं तब उन्हें भोगने का मन भी करता है चरित्रवान व्यक्ति इसका विरोध करेगा !
    वस्तुतः सेक्स मन में बसता है मन की प्रसन्नता जैसे जैसे बढ़ती जाती है वैसे वैसे बासना(सेक्स)बेलगाम होती जाती है!ऊँचे ऊँचे पद प्रतिष्ठा पा  जाने के बाद प्रसन्नता तो बढ़ती ही है किंतु जब योग्य लोगों को ऊँचे पद मिलते हैं तब तो वो अपनी प्रसन्नता पचाने में सफल हो जाते हैं किंतु अयोग्य नेता अधिकारी उद्योगपति या बाबा लोग ऐय्यासी में फँस जाते हैं !इसके लिए वे सेवाकार्यों या सामाजिक कार्यों का सहारा लेते देखे जाते हैं !कुछ आसन व्यायाम सिखाते हैं दवाएँ बेचते हैं राशन बेचते हैं स्कूल खोल लेते हैं ब्यूटीपार्लर खोल लेते हैं उसी में खोज लिया करते हैं अपनी अपनी बासना पूर्ति के साधन !
      ऐसे में मनुष्य का बन बासना अर्थात सेक्स की ओर भागता है ऐसे ही सेक्स के लिए बड़े बड़े बाबा लोग पागल हो उठते हैं नेताओं की कौन कहे !इसीलिए तो चरित्रवान लोगों को अपने आसपास न नेता रखते हैं और न बाबा लोग !क्योंकि चरित्रवान लोग इनके दुष्कर्मों में आड़े आते रहेंगे !
    इसीलिए चोरी चकारी लूट घसोट घपले घोटाले करने वाले लोगों को नेता बना लेते हैं तो वो भ्रष्टाचार के द्वारा खुद भी कमाई करते हैं और अपने गिरोह के सरदार (पार्टी प्रमुख ) का भी घर भरते हैं !अपराधियों के अपराध में कमीशन घूस खोर अधिकारियों कर्मचारियों के भ्रष्टाचार में कमीशन आदि सब जगह से केवल आमदनी ही होती है !इसी बलपर चल रही है अधिकाँश राजनीति !
      ईमानदार योग्य सुशिक्षित चरित्रवान परिश्रमी एवं जनता की सेवा करने में रूचि रखने वाले लोग अपनी शिक्षा से चरित्र से आदर्श आचार व्यवहार से परिश्रम से जनसेवा से समाज को बदलने की क्षमता रखते हैं किंतु जिन नेताओं के पास इनमें से कुछ होगा ही नहीं वे तो अपराध होता तो पुलिस कम्प्लेन करवा देंगे बात बात में कमिटी गठित कर देंगे पति पत्नी की लड़ाई होगी तो तलाक करवा देंगे !कोई अच्छा काम इन्हें सूझ ही नहीं सकता इनकी सोच इतनी गन्दी होती है !
  मैंने भी राजनीति में जाने के लिए अपना योग्यता प्रमाणपत्र है राजनैतिक दल के पास भेजा कई कई बार भेजा किंतु इन्होंने मुझे कभी इस योग्य भी नहीं समझा कि हमें भी राजनैतिक कार्यों में सहयोगी बना लेते मैं इनकी बेईमानी में साथ भले ही न दे पाता किन्तु ईमानदारी में तो दे ही सकता था !भ्रष्टाचार करने में साथ न देता तो भ्रष्टाचार भगाने में तो जरूर साथ देता  !


     http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/drshesh-narayan-vajpayee-drsnvajpayee.html

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