Monday, 25 July 2016

nivedan

आदरणीय प्रधानमंत्री जी ! या लोकसभाअध्यक्षा जी   गृहमंत्री संसदीयकार्यमंत्री कानूनमंत्री जी   !                                                                                                   सादर नमस्कार ! 
      विषय : 'दलित 'शब्द के प्रयोग पर पुनर्विचार हेतु ! 
   महोदय ,
     ज्योतिषशास्त्र का मानना है कि जिसका जैसा नाम होता है उसका वैसा ही स्वभाव बनता चला जाता है इसलिए अपने ऋषियों मुनियों ने नामकरण संस्कार करते समय के लिए कहा है कि किसी का नाम ऐसा रखा जाना चाहिए जिसका अर्थ शुभ हो ऐसा करने से उसके मन में हमेंशा उत्साह बना रहता है और वो अपने नाम की गरिमा के अनुरूप आचरण करने का प्रयास करता है भले पूरा  न कर पावे किंतु आंशिक असर तो होता ही है इसीलिए पुराने जवाने में जिस समूह की रुचि जैसे काम में थी अपनी जाति का उन्होंने वैसा ही नाम रख लिया वही उनकी पहचान बन गई ।
      महोदय !इस दृष्टि से 'दलित' शब्द का अर्थ इतना अशुभ सूचक है कि मनुष्यों के किसी भी वर्ग के लिए 'दलित' शब्द का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए !संभव हो तो इसे बदला जाना चाहिए ! 
     'दलित' शब्द का अर्थ संस्कृत वा हिंदी व्याकरण के अनुशार टुकड़े -टुकड़े ,खंड -खंड ,छिन्न-भिन्न,नष्ट - भ्रष्ट,कुचला ,विदीर्ण जैसे अशुभ सूचक अर्थ होते हैं !ये शब्दकोशों में भी देखे जा सकते हैं ।वस्तुतः 'दल' शब्द का अर्थ होता ही टुकड़ा है । राजनैतिकदलों या युद्ध में सम्मिलित होने वाले समूहों को एक दल माना जाता है वो भी सेना की टुकड़ी होती है।ऐसे ही किसी दाने के दो बराबर टुकड़ों को 'दाल' कहते हैं और उसी दाने के बहुत टुकड़े कर दिए जाएँ तो उसे 'दलिया' या 'दलित' कहते हैं। 
      महोदय !कोई व्यक्ति गरीब तो हो सकता है किंतु 'दलित' नहीं !कोई जीवित व्यक्ति दलित कैसे हो सकता है !मैंने BHU से ज्योतिष विषय से संबंधी ही Ph.D. की है।मुझे नाम प्रभाव का अनुभव है और उसका प्रत्यक्ष प्रभाव देख भी रहा हूँ !आजादी मिले इतने वर्ष हो गए !आरक्षण राशन जैसी बहुत सारी  सुविधाएँ एवं कानूनी अधिकार देने के बाद भी इस वर्ग का मनोबल नहीं बढ़ाया जा सका है । सवर्णों के गरीब बच्चे भी व्यक्तिगत संघर्ष करके तरक्की करते देखे जाते हैं किंतु ये वर्ग पहले से ही हिम्मत हार जाता है कि हम अपने बल पर तरक्की नहीं कर सकते !
     श्रीमान जी ! अतएव मेरा आपसे निवेदन है कि देश के किसी भी वर्ग की पहचान इतने अशुभ सूचक शब्द के द्वारा न कराई जाए !ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि  में हम सभी ईश्वर की ही संतानें हैं इसलिए कम से कम हमें तो अपने मुख से किसी को 'दलित नहीं कहना पड़े !ये तो उस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि का भी अपमान है।इसलिए यदि संभव हो तो 'दलित' को बदलकर किसी शुभ सूचक शब्द का प्रयोग किया जाए तो अच्छा होगा और अच्छा लगेगा भी !
    निवेदक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
के-71 ,छाछी बिल्डिंगचौक ,कृष्णा नगर,दिल्ली -51
  09811226973 

महोदया

 
प्रधानमंत्री ! लोकसभाअध्यक्षा,  गृहमंत्री , संसदीयकार्यमंत्री जी, कानूनमंत्री जी ! 
 सादर नमस्कार !
 विषय : चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशियों के लिए उच्च शिक्षा अनिवार्य करने हेतु निवेदन !
महोदय ,
   निवेदन है मैंने सुना है कि लोकसभा ,राज्यसभा और विधानसभाओं की कार्यवाही चलते समय सदनों का एक एक सेकेंड बहुमूल्य होता है ।सदनों में चर्चाएँ अत्यंत सारगर्भित ,गम्भीर एवं विद्वत्ता पूर्ण होती हैं ।उस चर्चा में सम्मिलित होने के लिए अधिक से अधिक ज्ञान एवं अनुभव की आवश्यकता  होती है तो  ऐसे सदनों में पहुँचने वाले जो सदस्य अल्पशिक्षित या अशिक्षित होते होंगे वो इस चर्चा में बैठे भले रहते हों किंतु भाग कैसे लेते होंगे ! ज्ञान और अनुभव के अभाव में जिन्हें बोलना  नहीं आता है और जिनमें समझने की सामर्थ्य नहीं है ऐसे लोग इन  सदनों में पहुँचकर कानून बनाने में अपना मंतव्य कैसे दे पाते होंगे !
     उन्हें तो हर मुद्दे पर अपनी पार्टी के अध्यक्ष की इच्छा के अनुशार ही हाँ और न करना होता है । इसमें वो व्यक्ति न तो अपना मत प्रकट कर पाता है और न जिस क्षेत्र से चुनकर आया होता है वहाँ के लोगों की इच्छा ही सम्मान कर पाता है और न ही अपने सदस्यत्व का सम्मान ही रख पाता है ।वो सदस्य होने की भूमिका का स्वतंत्र निर्वाह नहीं कर सकता है ।
     वर्तमान समय में राजतंत्र गर्भित लोकतंत्र  है आज देश की अधिकाँश पार्टियों का मालिक एक व्यक्ति या परिवार है बाक़ी सारे लोगों को उन मालिकों के तत्वावधान में दिहाड़ी मजदूरों की तरह काम करने के साथ साथ  हाँ हुजूरी भी करनी होती है ।चूँकि ये काम शिक्षित ,स्वाभिमानी और सजीव विचारधारा रखने वाले लोग उतनी आसानी से नहीं कर पाते हैं इसलिए किसी पार्टी का मालिकऐसे लोगों को अपनी पार्टी में नहीं जोड़ना चाहता है ।
     दूसरी ओर जो सदस्य अल्प शिक्षित होते हैं वे तो पाकरस में पड़ी  कलछुल की तरह हैं उन्हें न अपने भाषण का स्वाद पता होता है और न ही औरों के !इसीलिए उन्हें वो कार्यवाही नीरस सी लगा करती है । वे तो
अपना भाषण लिखकर या किसी और से लिखवा कर लाते हैं और सदनों में खड़े होकर पढ़ तो देते हैं किंतु
इसके बाद उनकी चिंता समाप्त हो जाती है तो उन्हें या तो नींद आने  लगती है या फिर बाहर घूमने निकल जाते हैं अन्यथा मौका मिलते ही हुल्लड़ मचाने लग जाते हैं !जिसमें जनता के पैसों से चलने वाली बहुमूल्य कार्यवाही के घंटों ब्यर्थ में बर्बाद चले जाते हैं ।
       यही भाषण सदस्य गण यदि अपने ज्ञान बुद्धि और अनुभव आदि के आधार पर देते होते तो सदनों की चर्चा उन्हें बोझ न लगती और दूसरे सदस्यों की बातें भी वे ख़ुशी ख़ुशी ध्यान से सुनते ! ऐसी परिस्थिति में न तो शोर मचाते और न ही समय पास करने के लिए बाहर जाते और न ही घंटों कुर्सियाँ खाली पड़ी रहतीं ।
       अतएव आपसे विनम्र निवेदन है कि चुनाव लड़ने के इच्छुक प्रत्याशियों की शैक्षणिक योग्यता का मानक निर्धारित किया जाए !यदि संभव हो तो उच्च शिक्षा से शिक्षित लोगों को ही चुनाव लड़ने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि वो लोग संसद जैसे महान सदनों की गरिमा को समझ सकें और उसके अनुरूप आचरण कर सकें !इससे ये लोग अपनी भूमिका का निर्वाह तो ठीक से करेंगे ही साथ ही देश के अधिकारियों कर्मचारियों के साथ भी उनका तालमेल और अधिक अच्छा बना रह सकेगा !
            निवेदक -
       डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
के-71 ,छाछी बिल्डिंगचौक ,कृष्णा नगर,दिल्ली -51
  09811226973

 

  




तैयार करें दिया गया हो तो आपसे दिया
          

में  उच्च शिक्षा अनिवार्य की जाए ताकि वे बोलें  तो दूसरे सुनें और दूसरे बोलें तो उन्हें भी समझ में आवे ! ज्ञान के अभाव में यदि कुछ बोलने लायक न भी हों  तो  उनमें कम से कम सदनों में होने वाली चर्चा को समझने की सामर्थ्य तो होनी ही चाहिए !
    शिक्षित लोगों का राजनैतिक पार्टियों में प्रवेश अब आसान नहीं होता है और यदि हो भी गया तो उन्हें कोई खास जिम्मेदारी नहीं दी जाती है चुनाव प्रक्रिया अधिक खर्चीली होने के कारण राजनैतिकदल बनाकर या अकेले चुनाव लड़ना शिक्षित लोगों के बस का बहुत कम होता है । ऐसे में शिक्षित लोग राजनीति में सम्मिलित होना मुश्किल होता जा रहा है । 
       राजनैतिक पार्टियों के मालिक लोग अपने नेताओं के बेटा बेटियों पर तो भरोसा कर लेते हैं और उन्हें आसानी से प्रवेश दे भी दे  देते हैं बाकी उन्हें पार्टी वर्करों के नाम पर प्रायः ऐसी लेबर चाहिए होती है जो उनके स्वामित्व को चुनौती न दे सके और उन्हीं की  आज्ञा  का पालन करती रहे ।उनका इशारा पाकर वो शोर मचावें और उन्हीं के इशारे से शांत हो जाएँ !वो इतने अयोग्य हों कि उनके स्वामित्व के लिए संकट न खड़ा कर सकें !इसीलिए वो दलितों पिछड़ों महिलाओं के नाम पर मनमानी किया करते हैं ।
        महोदय !कई बार छोटी छोटी बातों के समझने और समझने की योग्यता के अभाव में मानने न मानने को लेकर या किसी के लिए किसी ने कोई गलत शब्द बोल दिया हो !किसी सदस्य  के द्वारा किसी दूसरे सदस्य के लिए बोले गए सही शब्द का भी अर्थ उसने गलत समझ लिया हो ! ऐसे कारणों से माफी माँगने मँगाने की परिस्थिति पैदा हो जाए और वो माफी न माँगे तो सदन की बहुमूल्य कार्यवाही बंद करवा देते हैं ।
         ये बात जब सभी लोग स्वीकार करते हैं कि संसद समेत सभी सम्मानित सदन ज्ञान और अनुभवों के आदान प्रदान पूर्वक निर्णय लेने के मंच हैं वहाँ जो बोलने लायक न हों समझने की भी योग्यता न रखते हों सुझाव देना उनके बश का न हो ऐसे सदस्यों के भाग लेने का मतलब आखिर क्या होता है। 
       अतएव आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि राजनीति में चुनाव लड़ने के लिए उच्च शिक्षा अनिवार्य की जाए  ताकि सदन की चर्चाओं में अपशब्दों के प्रयोग बंद हो एवं गैर जरूरी व्यर्थ के बाद विवाद में संसद का बहुमूल्य समय बर्बाद न हो !
       

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