Monday, 18 July 2016

सरकारें केवल मुट्ठीभर लोगों के सुख भोगने के लिए ही बनती हैं क्या ! पार्टी कार्यकर्ताओं का सरकार पर कोई हक़ नहीं होता है !

     राजनैतिक पार्टियों के बड़े नेता लोग ही सरकार  बनने पर सरकार के मालिक होते हैं देश के सारे सुख सुविधाओं  के साधन उनके और उनके नाते रिस्तेदारों के लिए ही होते हैं ऐसी लोकमान्यता है!ऐसे नेता लोग ही छोटे कार्यकर्ताओं को पढ़ाते हैं त्याग वैराग्य का पाठ!
     सरकार में सम्मिलित नेता और पार्टी के बड़े पदाधिकारी लोग खुद तो भोगते हैं सरकार के सारे सुख संसाधन और कार्यकर्ताओं को पढ़ाते हैं सेवा समर्पण के पाठ !ऐसे बड़प्पन विहीन बड़े नेताओं की बातों पर पार्टी कार्यकर्ताओं को भरोसा क्यों करना चाहिए क्या ?
    राजनैतिक पार्टी के आम कार्यकर्ताओं की कितनी दुर्दशा हो रही होती है उनकी अपनी पार्टी की सरकार बन जाने के बाद !हर प्रभावी नेता जहरीला हो चुका होता है उसके सारे आचार व्यवहार बदल चुके होते हैं अब तो वो कार्यकर्ताओं के मुख के सामने लात करके बैठने लगते हैं उनका सीधा इशारा होता है मुश्किल से पद मिला है पीछा छोड़ो कुछ कमाने खाने दो !
  ये पार्टी के आम कार्यकर्ता धोबी के कुत्ते की तरह हर कहीं से दुद्कार कर भगा दिए जाते हैं नेताओं के दरवाजे से तो ये ऐसे खदेड़े जाते हैं कि न कह पाते हैं न सह पाते हैं !
    सरकार बनाने में पार्टी के प्रत्येक कार्यकर्ता का संघर्ष लगा होता है किंतु उसे भोगते हैं केवल मंत्री सांसद विधायक या पार्टी के बड़े पदाधिकारीगण और मुख्य रुतबा तो उनके साढू साले आदि ससुराल वाले लोगों का होता है ! घर खानदान वाले लोग और नाते रिश्तेदार लोग भी पुरुखों के नाम बता बता कर फायदा उठा ही लेते हैं !
   जिन पार्टी कार्यकर्ताओं ने सरकार बनवाने के दिन दिन रात रात भर मेहनत की होती है उन कार्यकर्ताओं से निपटने के लिए मंत्री जी के दरवाजे पर लगी होती है पुलिस !उन्हें प्रोटोकाल समझाए जा रहे होते हैं।उन्हें मंत्री जी के दरवाजे से दुदकार कर भगाया जा रहा होता है ।बारे अनुशासन !मैं तो कहता हूँ कि पार्टियों में कार्यकर्ता भर्ती ही नहीं किए जाने चाहिए सभी बड़े नेताओं को अब अपने ससुराल वालों की कृपा से ही जीतने चाहिए चुनाव !  जिन्होंने कठोर परिश्रम करके पार्टी को विजय दिलवाने में अहं भूमिका निबाही थी उन्हें क्या मिला !
    माना कि किसी भी राजनैतिक पार्टी में सभी कार्यकर्ताओं  को पार्टी के दायित्व नहीं दिए जा सकते और सभी कार्यकर्ताओं को सरकार में पदाधिकार भी नहीं दिए जा सकते !संघ के संस्कार भी यही हैं कि स्वार्थ से नहीं सेवा से जुड़ो !फिर भी भाजपा छोड़कर क्यों जा रहे हैं कुछ लोग !
     इसी भावना पर समर्पित होते है स्वयंसेवक और पार्टी के कार्यकर्ता लोग !किंतु उनके समर्पण और सेवा भावना को उनकी कमजोरी समझना पार्टी के स्वास्थ्य के लिए शुभ नहीं है । उनके साथ पार्टी के पदाधिकारी जैसा वर्ताव करते हैं और सरकार के मंत्रियों सांसदों विधायकों के यहाँ जैसा गैर जिम्मेदार बर्ताव किया जाता है उससे उनका आहत होना स्वाभाविक है कुछ कार्यकर्ताओं ने तो वीडियो तक बना रखे हैं जिन्हें देखने के बाद निराशा तो होती ही है !
   विशेष समस्या तब तैयार होती है जब पार्टी के आदर्श माने जाने वाले सीनियर लोग  जिनकी नक़ल करने की भावना कार्यकर्ताओं में होती है यदि वे ही सरकार और संगठन में बनी अपनी हैसियत का उपयोग अपने और अपने नाते रिस्तेदारों के स्वार्थ साधनों के लिए करने लगें और कार्यकर्ताओं से वैराग्य की अपेक्षा की जाए !ये कहाँ तक न्यायसंगत है ! सबकुछ जान समझ कर  भी कार्यकर्ता  अपनी इच्छाएँ कैसे कुचल दें !सीनियर पदाधिकारियों को भी अपना आदर्श बड़प्पन बचाए रखने के लिए कार्यकर्ताओं से ऐसी अपेक्षा भी नहीं रखनी चाहिए !पार्टी की सरकार बनने में साझेदारी प्रत्येक कार्यकर्ता की होती है इसलिए सबकी भावना का भी सम्मान होना चाहिए ।
    पार्टी के सरकारी पदाधिकारियों के जो  नाते रिस्तेदार पार्टी भावना में कभी सम्मिलित ही न रहे हों सरकार बनने के बाद मंत्री जी के घर के वे ही मालिक होते हैं अपनी जरूरतों के लिए उनकी जी हुजूरी करते फिरते हैं पार्टी कार्यकर्ता !ऐसे तो कार्यकर्ता न होने पर भी वे स्वार्थ साधन कर सकते थे फिर उन्हें पार्टी के प्रति समर्पण का क्या लाभ !  
     आखिर अटल सरकार  के समय कितने लोग गए थे पार्टी छोड़कर ?और अब क्या हो रहा है !
          सरकार बनी है कार्यकर्ताओं के सहयोग से तो उसका लाभ भाजपा के आमकार्यकर्ता को भी तो होना चाहिए ! किसी भी पार्टी के सभी कार्यकर्ता न सरकार में सम्मिलित किए जा सकते हैं और न संगठन में किंतु इस बात का एहसास तो सभी को करवाया ही जाना चाहिए कि वो भी पार्टी के अंग हैं उनसे अपरिचितों जैसा व्यवहार क्यों ? सरकार बनने का लाभ केवल कुछ लोगों और उनके नाते रिस्तेदारों को ही क्यों पहुँचाया जाए आखिर वो कार्यकर्ता कहाँ जाए जो समर्पित तो है किंतु उसकी  न संगठन सुनता है न सरकार !वो तो  बिलकुल बेकार हैं  !ऐसे लोगों की जरूरत पार्टी को वास्तव में नहीं है क्या ?जिन्हें सरकार और संगठन में  सम्मिलित नहीं किया जा सकता उनकी भी इतनी तो सुनी ही जाए कि उन्हें भी लगे कि देश में अब अपनी पार्टी की सरकार है यदि उनके साथ पराएपन का ही व्यवहार किया जाता रहा और उनके समर्पण का  सम्मान ही नहीं होगा तो वो आगामी चुनावों में क्यों जूझेंगे पार्टी को विजय दिलाने के लिए !और उन मुट्ठी भर लोगों के बलपर पार्टी चुनाव जीत लेगी क्या जो थोड़े से लोग आज सरकार समेटे घूम रहे हैं और कुछ  लोगों के हाथों में पार्टी के पद हैं बाकी कार्यकर्ताओं को सरकार बनने से क्या मिला !देश में जब  दूसरी पार्टियों की सरकार थी उनका तब कोई वजूद नहीं था वही स्थिति आज है पैसा ,पद ,पावर,पहचान में से उसे भी कुछ तो मिले ! यदि सारी समाज के साथ ही उनका भी विकास होना है तो वो अलग से पार्टी के लिए परिश्रम क्यों करें ! आम कार्यकर्ताओं को तो ये भी नहीं पता लग पा रहा है कि पार्टी को उनकी सेवाओं की जरूरत है भी या नहीं !
      सांसदों मंत्रियों के पास पावर हैं इसलिए वो अपने काम करवा लेते हैं अपने नाते रिस्तेदारों परिचितों के काम करवा लेते हैं पार्टी के पदाधिकारी चैन सिस्टम से जुड़े होते हैं इसलिए उन्हें कृपा पूर्वक उनके भी काम करने पड़ते हैं किंतु जो न पार्टी पदाधिकारी हैं और  मंत्री जी के नाते रिस्तेदार उन पार्टी कार्यकर्ताओं को कितना जलील किया जाता है मंत्रियों के घर ये उनकी आत्मा ही जानती है !उन्हें वो मोबाईल नंबर  दिए  जाते हैं जो उठाए नहीं जाते !मंत्रियों के आवास पर मंत्री जी को समस्या सुनाने के लिए कार्यकर्ता लोग सुबह से आम जनता की तरह लाइन में खड़े हो जाते हैं सबकी अपनी मजबूरी होती है वरना कौन जाए उनसे मिलने !
       मंत्री जी के कालिन्दे सबसे  पता  और परिचय पूछते हैं जिसके पद और कद में कुछ दम दिखाई दिया या परिचित निकले उन्हें तो दूसरे कमरे में बुला कर मिला दिया जाता है मंत्री जी से  !बाकी अपने अपने कामों  के लिए बैठे शोषित पीड़ित कार्यकर्ताओं  को एक दो बार रसगुल्ले दिखाकर एप्लीकेशन माँगने की रस्म निभाई जाती है इसके बाद बता दिया जाता है कि मंत्री जी जरूरी काम से निकल गए !एप्लीकेशनों की न कोई रिसीविंग मिलती है और न ही  कोई कार्यवाही  होती है और उन्हें जो फोन नंबर दिए गए होते हैं वो पहली बात तो उठते नहीं हैं और यदि उठ भी गए तो किसी की कोई जवाब देही नहीं होती है । ईमेल और  डाक द्वारा भेजे गए पत्रों में लिखे गए काम होने तो दूर रहा  उन पत्रों के उत्तर देने  की जरूरत भी नहीं  समझी जाती !कार्यकर्ता  सोचते हैं कि पत्र पहुँचा नहीं है वो बार बार लिखा करते हैं उधर वो रद्दी की टोकरी में फेंका करते हैं !बारी अपनी सरकार !
       जिन भाग्यशाली लोगों के पत्रों के जवाब दिए जाते हैं वो न जाने किस चन्दन की लेखनी से लिखते होंगे पत्र !वैसे मेरा तो सरकार से इतना ही निवेदन है कि मंत्रियों के आवास पर कार्यकर्ताओं की समस्याएँ सुनने के नाम पर उनकी परिस्थितियों का मजाक उड़ाना बंद किया जाए और उन्हें सीधे मना कर दिया जाए कि मंत्री जी उन्हें मिलने लायक नहीं समझते ! आश्चर्य है !संघ संस्कारों की दुहाई देने वाले लोग दूसरी पार्टियों से   अधिक अप्रिय वर्ताव कर रहे हैं अपनी पार्टी के आम कार्यकर्ताओं के साथ !सपा जैसी पार्टियाँ अपने कार्यकर्ताओं के गैर कानूनी व्यवहारों पर भी उन्हें मुसीबत में अकेला नहीं छोड़ती हैं उनकी मदद करती हैं दूसरी ओर भाजपा के संस्कारवान  आम कार्यकर्ताओं  को अपनी सरकार से यदि नैतिक मदद भी न मिले तो लानत है उन्हें कार्यकर्ता कहलाने की !
       सरकार और संगठन में सम्मिलित  लोगों के अलावा भी ऐसा बहुत बड़ा वर्ग है जिसने भाजपा का जनाधार बढ़ाने और पार्टी को विजय दिलाने में समर्पित भावना से सहयोग किया है।खुद मैंने भी 10-12 घंटे बिना नागा दो वर्ष तक प्रतिदिन समय दिया है इसलिए मुझे एक एक वो व्यक्ति याद है जिसने सोशल साइटों पर विरोधी पार्टी वालों को मुखतोड़ जवाब देकर उन्हें निरुत्तर करता रहा है ।हम लोग भाजपा सरकार बनवाने के लिए निस्वार्थ भावना से सोशल साइटों में सुबह से लग जाते थे और देर रात तक लगातार सक्रिय रहा करते थे । पार्टी के लिए किए गए जिनके परिश्रम के  प्रमाण आज भी सोशल साइटों पर विद्यमान  हैं किंतु सरकार का स्वाद अकेले लेने में लगे पार्टी के मालिक लोगों के पास किसी अन्य कार्यकर्ता की भावनाओं को पढने के लिए समय ही कहाँ है !आश्चर्य है कि सरकार बन जाने के बाद उन्हें आज कोई पहचानने को तैयार नहीं हैं । सरकारों में बैठे लोग उन्हें आज ठेंगा दिखा रहे हैं और संगठन में बैठे लोग उनकी पात्रता में कमियाँ गिना रहे हैं !
      आज जब बो लोग हमसे पूछते हैं कि सरकार तो अपनी बन गई किंतु अपनी तो कोई नहीं सुनता किससे कहें अपनी बात !तो मैंने समझाया कि सोमवार से शुक्रवार 2 -5 बजे के बीच केंद्रीय कार्यालय चले जाओ वहाँ सुनी जाएगी तुम्हारी बात किंतु पता लगा कि वहाँ दिए गए पत्रों पर न कार्यवाही होती है और न जवाब दिए जाते हैं जितने बार जाओ पत्र लेकर ऐसे रख लिए जाते हैं जैसे वास्तव में उनके काम की भी कोई कदर होगी किंतु न जाने कहाँ फ़ेंक दिए जाते हैं वो पत्र जिनके जवाब तक नहीं जाते हैं यही हाल प्रधानमंत्री जी और गृहमंत्री जी के यहाँ का है डाक से भेजे गए पत्र हों या जीमेल से भेजे गए पत्र न कार्यवाही न जवाब !ऐसी सरकारों से आम कार्यकर्ता को क्या लाभ !
      पार्टी के लिए दिनरात एक कर देने वाले ऐसे दायित्व विहीन स्वार्थ विहीन समर्पित कार्यकर्ताओं की निराश भीड़ें सोशल साइटों से नदारद हैं आज !आखिर क्यों क्या सरकार पर उनका कोई हक़ नहीं होना चाहिए !संगठन के पदों पर बैठे लोग उन्हें पहचानने को तैयार नहीं हैं सरकारों में बैठे लोग उन्हें ठेंगा दिखा रहे हैं उन बेचारों के काम करने और उनसे मिलने का तो समय ही नहीं देते हैं उनके द्वारा जरूरी कार्यों के लिए लिखे गए पत्र रद्दी की टोकरियों में फेंक दिए जाते हैं काम करना तो दूर मना करने तक की जिम्मेदारी नहीं समझी जाती है ! सच्चाई यदि यही है तो इस सरकार के बनने से उन्हें क्या मिला और जिस पार्टी में उनके बलिदान का सम्मान ही न हो क्यों जुड़े रहेंगे उससे वे लोग !
      बंधुओ ! मैं सन 1986 में बनारस में रहता था वहीँ से संघ के कई आयामों से जुड़ा रहा हूँ विश्व हिंदू परिषद  के अधिक  नजदीक रहा और हमारे लायक जब जो काम हमें बताया गया उसे समर्पण भावना से करने का प्रयास  करता रहा हूँ यही पहचान है कि कई संगठनों के कई वरिष्ठ लोगों का स्नेह भाजन रहा हूँ ।संगठन के प्रति इसी लगाव के कारण पिछले तीन वर्षों से इंटरनेट पर बीजेपी के प्रचार प्रसार में प्रतिदिन 10 -12  घंटे प्रतिदिन बिना नागा न केवल समय देता रहा हूँ अपितु कई सौ आर्टिकल इन्हीं विषयों पर प्रकाशित हैं जो लाखों बार पढ़े जा चुके हैं जिनमें भाजपा के प्रति समर्पित मित्रों की भी काफी बड़ी संख्या है भाजपा के प्रचार प्रसार के लिए मैं भी दिन रात समर्पित रहा हूँ । वैसे भी संगठन  ने हमें किसी लायक समझा हो न समझा हो किंतु मैनें संगठन के हित  में जब जो जरूरी समझा है उसमें कभी कंजूसी नहीं की है ।जिसके गवाह पार्टी से जुड़े वो लाखों कार्यकर्ता हैं जो इंटरनेट के विविध माध्यमों से जुड़े हैं ।
       उन्हीं में से कई मित्रों के मैसेज और फोन आए कि भाई साहब आप जिस सरकार की प्रशंसा लिखे जा रहे हो वहाँ  वैसा कुछ नहीं है कभी मंत्रियों के यहाँ मिलने आप भी जाइए और अपनी आँखों से देखिए अपने मंत्रियों का व्यवहार कांग्रेसियों से अधिक उपेक्षात्क व्यवहार किया जा रहा है !उनकी सलाह पर मैं भी मंत्रियों के यहाँ मिलने जाना ही चाहता था तब तक मुझे भी एक काम पड़ गया ! कानपुर का एक  छोटा  सा प्रकरण था किंतु  गुंडा गर्दी से जुड़ा होने के नाते गलत था मैं उसमें सरकार और संगठन से केवल इतनी मदद चाहता था कि  गुंडागर्दी करके हमें नुकसान करने की धमकी देने वालों से केवल इतना कह दिया जाए कि वो कानून अपने हाथ में न लें कानूनी कार्यवाही करें जो उचित होगा वो मान लिया जाएगा ! इस बहुत छोटी सी बात के लिए पचासों पत्रों के बाद सरकार में सुनवाई न होना और पार्टी पदाधिकारियों की वो हरकतें और बचकाने जवाब जो अनपढ़ और अनभिज्ञ लोगों को मूर्ख बनाने के लिए  दिए और किए जाते हैं । हमारी गलती केवल इतनी थी कि हम अपने प्रति हो रही गुंडागर्दी रोकने के लिए नैतिक मदद माँग  रहे थे । इसमें गलत क्या था !क्या इसे अपनी सरकार की उपलब्धि मान लें !
       अब तो कार्यकर्ता लोग भी कहने ले हैं कि सरकार बनते ही पागल हो उठाते हैं लोग !क्या यही संस्कार हमें संगठन में सिखाए गए हैं कई बार याद आता है कि -
    " श्रद्धेय रज्जू भैया जी से मेरा कोई परिचय नहीं था फिर भी हम अपने एक मित्र के साथ उन्हें अपनी एक पुस्तक भेंट करने पहुँचे तो मुझे अंदर बुला लिया गया मैंने देखा वो अल्पाहार ले रहे थे शिष्टाचार वश हम दोनों बाहर आ गए  तो हमें तुरंत फिर बोलाया गया मैंने उनसे प्रार्थना की कि आप स्वल्पाहार ले लें हम बाद में आ जाएँगे  वो हँसकर  कहने  लगे कि तुम हमारे बेटे नहीं हो क्या पिता पुत्र साथ बैठकर खाते नहीं हैं ! तब तक हम दोनों के लिए भी गाजर का हलुआ आ गया हम दोनों को अपनी दोनों ओर बैठा लिया हम दोनों भी खाने लगे हलुआ !"उनके इस बड़प्पन पर आज भी समर्पित है मन !"
     इसी प्रकार से करगिल युद्ध पर  मैंने काव्य लिखा मेरा मन अटल जी को भेंट करने का था किंतु PM से मिलना कठिन होता है फिर भी मैंने उन्हें एक पत्र लिखा किंतु उसका उत्तर पत्र  मेरे पास आया कि अटल जी व्यस्त हैं अभी समय नहीं मिल सकता आखिर वो प्रधानमन्त्री थे व्यस्तता स्वाभाविक थी ,फिर भी निराश मैंने रात 8 बजे प्रधानमन्त्री निवास पर फोन किया तो मुझसे  कहा गया कि अभी व्यस्तता के कारण समय नहीं मिल सकता किंतु मैंने विशेष निवेदन किया तो कहा गया कि अब कल का कार्यक्रम तो निश्चित हो चुका है बाद में देखा जाएगा मैंने फिर हाथ की और कहा कि मुझे कल ही समय चाहिए मेरे मन में भी अपनी सरकार होने के नाते इतना भरोसा तो था कि यदि अधिक कठिनाई नहीं हुई तो मेरा निवेदन ठुकराया नहीं जाएगा !इसलिए मैंने फोन पर ही उनसे पूछ दिया कि अटल जी से आप मुझे नहीं मिलने दे रहे हैं या अटल जी मुझसे नहीं मिलना चाह रहे हैं ! शायद मेरा  यह प्रश्न सुनकर वे शांत हो गए और कहा आप अपना कोई फोन नंबर दो देखते हैं मैंने दे दिया । वहाँ रात 12 बजे फ़ोन आया कि पास बनवाकर कल 1.40 pm पर आप आ जाओ ! रात दो बजे मैंने कानपुर के सांसद श्री श्याम बिहारी मिश्र जी को फोन करके पास बनवाने के लिए कहा उनका स्वास्थ्य कुछ खराब था फिर भी उन्होंने बुरा नहीं माना बल्कि  सुनकर बहुत खुश हुए कहा कल दस बजे आ जाना हम साथ साथ चलेंगे ऐसा ही हुआ वहाँ जाने पर लगभग 20 मिनट का मुझे समय मिला मुझसे उन्होंने शिक्षा संबंधी कई बातें पूछीं लेखन के बारे में कुछ प्रश्न किए कुछ कविताएँ सुनाने को कहा मैंने सुनाईं इसके बाद प्रेम पूर्वक बिदा ली और चले आए ! ये कंधार विमान अपहरण के तीन दिन पहले का अवसर था !
       उस सरकार के समय स्वयं नरेंद्र मोदी जी का व्यवहार हमारे प्रति काफी स्नेह पूर्ण रहा !उन्होंने हमारी  'भक्त राज रावण ' नामक पुस्तक के प्रकाशन में आ रही आर्थिक बाधाओं को दूर करके हमारा उत्साह संवर्धन के लिए प्रभात जी के पास फोन किया और उनसे कहा कि " प्रभात जी !आपको पता है कि मैं कलम के धनी का बहुत सम्मान करता हूँ मेरे परिचित एक 'नारायण' हैं जो अभी 'शेष' रह गए हैं आप इनकी मदद करें !(ये मोदी जी के द्वारा मेरे नाम की की हुई व्याख्या थी) आदि आदि ! एक ओमप्रकाशसिंह जी (बाँदा ) के उनके साथ थे गुजरात जाने के बाद भी मैं फोन करता था और वो मुझे 'कारगिल विजय' वाले वाजपेयी के नाम से पहचान लिया करते थे ।
      कुलमिलाकर  अटल जी की सरकार के समय सरकार से लेकर संगठन तक सभी पदाधिकारियों में जो अपनापन था जो मिलनसारिता थी न जाने क्यों अब नीचे से ऊपर तक सभी का रुख बदला  बदला  सा लगता है जो ठीक नहीं है अभी तीन वर्ष अवशेष हैं सरकार की छवि सुधारने की कोशिश की जाए तो इतना समय कम नहीं होता है । सरकार का वर्तमान काँग्रेसीकरण  देखकर वर्तमान भाजपाई कार्यकर्ता आश्चर्य चकित है !
                            दस बारह वर्षों में इतना बड़ा बदलाव !
                तब और अब की भाजपा में इतना अंतर क्यों ?
आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एवं श्री श्याम बिहारी मिश्र जी के साथ 
आचार्य डॉ.शेष नारायण  वाजपेयी

श्रद्धेय श्री रज्जू भइया जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 


आदरणीय  डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी के साथ 
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी                श्रीमान कुशाभाऊ ठाकरे जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
श्रीमती सुषमा स्वराज जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
        श्री मदनलाल खुराना जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी







                                          






                            
                                                                                                                                                                              

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