दाल पतली तो तब करें जब दाल हो किंतु यदि दाल ही न हो तो पतली कैसे करें उद्योगी जी ?
अरे ! देशवासी दाल खाएँ यदि वास्तव में इस बात की चिंता है तो चैरिटीचैरिटी चिल्लाते रहने वालेहजारों करोड़ के बाबा जी क्योंनहीं बटवा देते हैंगरीबों को दाल !
जिस देश में अपने को फकीर कहने वाले बाबा लोग खुद तो मेवा मिष्ठान्न खा रहे हों और सुख सुविधा पूर्ण जीवन जी रहे हों और गरीबों को पानी मिलाकर दाल खाने की सलाह दे रहे हैं गरीबों से ऐसी आशा कर रहे हैं उद्योगी जी ! ग़रीबों की दाल रोटी पर ऐसा दृष्टिकोण ! इसका मतलब क्या यह नहीं हुआ कि जिस धनी देश में राजा महाराजा और सेठ साहूकार तो छोड़िए अपने को फकीर कहने वाले बाबालोग भी हजारों करोड़ इकठ्ठा कर लेते हों ऐसे भीरु देश में रहकर भी अपने बुद्धूपन के कारण तुम यदि गरीब ही बने रहे तो खाओ पानी मिलाकर दाल !अर्थात अपने कर्मों का फल खुद भोगो PM साहब को मत तंग करो !
बंधुओ !उस देश के गरीबों को पतली दाल खाने की सलाह दी जाए जिस देश में अरबोंपति फकीर हों !ऐसे देश के रईसों को इसलिए धिक्कार है कि वो गरीबों की आवश्यक आवश्यकताओं की तो उपेक्षा करते जा रहे हैं और बाबा बैरागियों को अरबोंपति बनाते जा रहे हैं !आखिर क्यों क्या उपयोग है उनके पास धन का !रही बात व्यापार की तो व्यापार तो बहुत लोग कर रहे हैं उसमें एक संख्या और जुड़ गई !
हमें याद रखना होगा कि भूख तो गरीबों को भी लगती है और भूख व्यक्ति को अंधा बना देती है और ऐसे अंधेपन में कोई क्या करता है इसका होश उसे रहता नहीं है इसलिए अपराध मुक्त भारत बनाने के लिए हमें ग़रीबों की भी जरूरतें ध्यान रखनी होंगी !माना कि वे उन्हें स्वयं कमाई करके पूरी करनी चाहिए किंतु यदि वे ईमानदार और सीधे साधे लोग हैं व्यापारिक छल प्रपंच झूठ साँच बोलना उन्हें नहीं आता है तो इतना कर्तव्य तो हम सभी का है कि रोटी दाल उन्हें भी मिलती रहे उन्हें पानी मिलाकर दाल न खानी पड़े !देश को यह ध्यान रखना चाहिए
कोई दूसरा कहे तो चल भी जाए किंतु देश की सरकार में अघोषित साझीदार बाबा जी महँगाई पर गरीबों का ऐसा मजाक उड़ावें कि "पतली दाल खाओ इससे दाल बचेगी !"ये असह्य है ।
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महँगाई घटाने भुखमरी हटाने एवं ग़रीबी मिटाने के लिए सरकार ने
उठाया एक साहसी कदम !
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