Wednesday, 29 June 2016

सरकारी कर्मचारियो ! तुम चाहते तो भ्रष्टाचार मिटा सकते थे क्योंकि भ्रष्टाचार के माता पिता तुम्हीं हो !

    गंगानदी  भगवान के चरणों से निकलती है किंतु भ्रष्टाचार की नदी अधिकारियों कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !
    भ्रष्टाचार से कमाई करके सरकारों में सम्मिलित लोगों का हिस्सा उन्हें पहुँचाते हैं वे खुश  होकर इनकी सैलरी बढ़ा दिया करते हैं ये न बढ़ावें तो वो  चले जाते हैं हड़ताल में !सरकार में सम्मिलित लोग घबरा जाते हैं कि ये कहीं पोल न खोल दें अपने भ्रष्टाचार की इसलिए मना लेते हैं इन्हें और मान लेते हैं उनकी अच्छी बुरी सभी माँगें ! यदि सरकार  ईमानदार हो तो इन्हें निकाल बाहर करे और नई  भर्ती करले किंतु ईमानदार हो तब तो ! 
    भ्रष्टाचार करने वाले सरकारी अधिकारी कर्मचारी ही तो हैं जनता के पास ऐसे कोई अधिकार ही नहीं होते कि वो भ्रष्टाचार करे ! ये तो भीषण सैलरी उठाने वाले सरकारी लोग ही कर सकते हैं । ऊपर से बढ़ाती  जा रही है सरकार !सरकार को चाहिए कि सैलरी बढ़ाने से पहले उनसे कहे कि भाई घूस लेना अब तो बंद करो ! जिन्दा मुर्दा सब तुम्हीं खा जाओगे तो ग़रीबों किसानों मजदूरों को हम क्या देंगे !
    वैसे भी सरकारी कर्मचारियों  से काम लेना सरकार के बश की बात नहीं है और आम जनता की वो सुनते नहीं हैं घूस देकर आते हैं सैलरी उठाकर रिटायर हो जाते हैं । जब चाहते हैं तब सैलरी बढ़वा लेते हैं ।काम के नाम पर ऐसे हैं कि शिक्षकों की परीक्षा लेने पहुँचते हैं मीडिया वाले तो शिक्षकों को कुछ आता जाता नहीं है घूस देकर भर्ती हुए हैं तो अब उन्हें सैलरी चाहिए बश !
    खैर ,सरकार के हर विभाग का लगभग यही हाल है अयोग्य अधिकारियों कर्मचारियों को ये समझ में ही नहीं आ रहा है कि काम शुरू कहाँ से करें और हमें करना क्या है तब तक बेचारे रिटायर हो जाते हैं उनकी इसी  अयोग्यता के कारण ही सभी प्रकार के अपराध बढ़ रहे हैं कुल मिलाकर सरकार के किसी काम में कोई क्वालिटी नहीं है केवल घोषणाएँ हो रही हैं काम के विषय में सोच रहे हैं कि अगली पञ्च वर्षीय  योजना में करेंगे । सरकार का कोई विभाग भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है इसलिए योग्य अधिकारियों कर्मचारियों की नियुक्तियाँ हों तो कैसे हों और योग्यता विहीन लोग अपराधों को कैसे करें कंट्रोल !
        भ्रष्टाचार करने वाले सरकारी कर्मचारी ही तो हैं !कुछ भ्रष्टाचार करते हैं कुछ हिस्सा लेते हैं कुछ केवल भ्रष्टाचारी कमाई की पार्टियाँ खाते हैं कुछ घूस नहीं लेते हैं तो पता उन्हें भी सबकुछ होता है कि हमारी आफिस में सरकार का बनाया हुआ कौन सा कानून तोड़ने का रेट क्या है !और अपनी आफिस में कितने का कारोबार हो रहा है प्रतिदिन !जानते सबकुछ हैं कब कब कौन कौन कितनी कितनी कर रहा है कमाई !ऐसे सभी लोग सम्मिलित माने जाएँगे भ्रष्टाचार में !
   अरे सरकारी कर्मचारियो ! आप लोग जिम्मेदारी निभाना देश के श्रद्धेय सैनिकों से सीखिए !उन्हें जो  जिम्मेदारी सौंपी जाती है उसे पूरी करके ही लौटते हैं न कोई मजबूरी न कोई बहाना न कोई किंतु परंतु !उनके दृढ निश्चयी स्वभाव से देश के दुश्मनों के दिल थर्राते हैं हिम्मत नहीं पड़ती है भारत की ओर ताकने की !उन्हें पता है कि ये मर मिटेंगे किंतु पीछे नहीं हटेंगे !हमारे सैनिक केवल कर्मचारी ही नहीं अपितु देश के सेवक भी हैं वे सैलरी के लिए नहीं अपितु वे देश के लिए शहीद होते हैं !
      दूसरी ओर सरकारी आफिसों के अधिकारी कर्मचारी !जनता दिन दिन भर आफिसों में दौड़ते रहते हैं काम न करना पड़े इसलिए एक दूसरे का नाम और फोन नंबर बता बता कर दिन  करते हैं जनता को !अगर कोई कुछ ज्यादा टाइट पड़ा तो सब मिलकर उसका  देते हैं जो उस दिन गैरहाजिर होता है ! अब कोई क्या कर लेगा इनका !इंटरनेट नहीं आ रहा है बता कर कभी उठ जाते हैं कुर्सियाँ छोड़कर !कई बार काम के लिए आए लोगों के मुख सुबह से पनि नहीं गया होता है इनका नास्ता लंच सब कुछ हो चुका होता है फिर भी चाय पीने चले जाते हैं जनता से कहते हैं कल आना !कंप्यूटर प्रिंटर खराब बता बता कर कई कई दिन मस्ती मार लेते हैं ये !यही कारण है दस हजार रूपए पाने वाले प्राइवेट स्कूलों के शिक्षक पढ़ाते हैं और साथ हजार सैलरी लेने वाले सरकारी शिक्षक नाक कटाते हैं देश के सैनिक इतनी बेइज्जती सहने से पहले मर मिटते किंतु जिन कर्मचारियों को शर्म नहीं है उनसे क्या आशा !दस हजार रूपए पाने वालेकोरियर कर्मी ,प्राइवेट मोबाईल कंपनियों के कर्मचारी नाक काट रहे हैं साठ साठ हजार लेने वाले सरकारियों की !  
         अरे कर्मचारियो !तुम्हें धिक्कार है तुम्हारे विभागों के  भ्रष्टाचार, कामचोरी, गैरजिम्मेदारी से जनता तंग है फिर भी इतनी सारी सैलरी और फिर भी असंतोष ! सारा  भ्रष्टाचार जब सरकारी आफिसों में होता है उसे रोकने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है भ्रष्ट लोगों को पकड़ने और पकड़वाने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है जनता के काम करने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है अपनी जिम्मेदारी निभाने में कहाँ खरे उतर पा रहे हैं सरकारी अधिकारी कर्मचारी!
    सरकार जो कानून बनाती है वो कानून सरकारी कर्मचारी बेचने  लगते हैं उनसे अपराधी खरीदते हैं और ठाठ से करते हैं अपराध ! दिन दोपहर में बीच चौराहे पर लूट लिए जाते हैं लोग  हो रहे हैं अपराध ! किए जा रहे हैं मर्डर आदि !  
भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी तो भ्रष्टाचार से कमा ही रहे हैं उन्हें सैलरी क्यों ?सरकार उनकी पहचान क्यों नहीं करती क्यों नहीं छेड़ती है कोई "भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान!"
      सरकार जो नियम बनाती है सरकारी मशीनरी का एक बड़ा वर्ग उन्हें बेच कर पैसे कमाता  है भारी भरकम सैलरी भी उठाता है ।सरकारी निगरानी तंत्र इतना लचर या भ्रष्ट है कि नियमों कानूनों को तोड़ने जोड़ने बेचने खरीदने की मंडी बन गया  है सरकारी कामकाज !लगभग हर आफिस में अलग अलग काम के हिसाब से घूस के पैसे फिक्स हैं !भ्रष्टाचार की भारत बहुत बड़ीमंडी है !जहाँ भ्रष्ट लोग नित्यप्रति करोड़ों का कारोबार उस भ्रष्टाचार के बल पर चला रहे हैं जिसे सरकारी नियम कानून गलत मानते हैं ।जिन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी सरकार की है ये सरकारों का फेलियर नहीं तो क्या है !फिर भी सैलरी !
  सरकारी आफिसों में भ्रष्टाचार के जन्मदाता सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ही तो होते हैं जिनसे गलत काम करवाकर दलाल लोग काली कमाई करने वालों से करोड़ों रूपए कमीशन कमा लेते हैं तो कल्पना कीजिए कितनी कमाई होगी उन भ्रष्ट अधिकारीकर्मचारियों की !ऊपर से हजारों लाखों की सैलरी !उसके ऊपर वेतन आयोगों की सरकारी कृपा !बारी सरकारी नौकरी !इनकी इतनी सुख सुविधाएँ और अपना इतना संघर्ष पूर्ण जीवन देखकर किसान आत्म हत्या न करें तो क्या करें !
    अपराधीलोग, गुंडेलोग और काली कमाई करने वाले धनीलोगों को इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वो अघोषित  रेटलिस्ट मिलती है कि सरकार के द्वारा बनाया गया कौन सा नियम कितने पैसे में तोड़ा जा सकता है ।यही कारण  है कि अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है । जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा है सो कर रहा है उतना बड़ा अपराध !
     मोदी जी !  किसानों गरीबों मजदूरों का भी कोई वेतन आयोग बनाइए आखिए वे भी देश सेवा का ही काम कर रहे हैं उनकी उपेक्षा क्यों ?किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाई जा रही है !दाल और टमाटर महँगे होने की चिंता तो है किंतु किसानों की रक्षा के लिए पहले उठाए जाएँ कठोर कदम !बाद में बढ़ाई जाए कर्मचारियों की सैलरी !वे सैलरी बढ़ाए बिना मरे नहीं जा रहे उन्हें आलरेडी इतना मिल रहा है पहले किसानों मजदूरों गरीबों की ओर देखिए मोदी जी !
   किसानों गरीबों मजदूरों की आमदनी की कितने गुने सैलरी होनी चाहिए सरकारी कर्मचारियों की इसकी भी कोई नीति बनाइए !एक तरफ हजारों का ठिकाना नहीं एक तरफ लाखों बढ़ाए जा रहे हैं ये कुंठा ही गरीबों के अंदर  आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म देती है ।
   आम जनता के टैक्स दी जाने वाली सैलरी कब बढ़ाई जाए कितनी बढ़ाई जाए इसके लिए जनता से क्यों नहीं पूछा जाता जनता के बीच सर्वे क्यों नहीं कराया जाता !सारे फैसले सरकार खुद ले लेती है तभी तो सरकारी आफिसों के लोग आम जनता को कुछ समझते नहीं हैं सरकारी आफिसों में काम के लिए जाने वाली जनता को खदेड़ कर भगा देते हैं सरकारी लोग !कोई सीधे मुख बात नहीं करता है वहाँ । जनता की कोई सुनने वाला नहीं होता है !
   सरकार में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी यदि  जनता का ध्यान नहीं रखते तो ये लोकतंत्र के नाम पर कलंक है कि जनता आज भी सरकारी अधिकारियों को अपनी समस्या बताने में डरती है उसके चार प्रमुख कारण हैं पहली बात वो सुनेंगे नहीं !दूसरी बात वो कुछ करेंगे नहीं ! तीसरी बात वो पैसे माँगेंगे !चौथी बात वो समस्या बढ़ा देंगे !
   कई बार लोगों को जो तंग कर रहा होता है उसके विरुद्ध किए गए कम्प्लेन की सूचना सरकारी विभाग से उस अपराधी को दी जाती है जाती है जो तंग कर रहा होता है फिर अपराधी ही कम्प्लेनर पर करता है अत्याचार !ये सारी कमियाँ दूर किए बिना सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार !अफसोस !ये सरकारें आम जनता के लिए चुनी जाती हैं पेट केवल अपना और अपनों का भरा करती हैं ।
    मोदी  सरकार के दो वर्ष होने का पर्व जनता भी मना रही है क्या ?या केवल सरकार में सम्मिलित लोग और केवल पार्टी के पदाधिकारी ही !कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि जनता को भी विश्वास में लिया जाए और जनता भी मोदी सरकार के वर्षद्वय पर में भावनात्मक रूप से सम्मिलित हो !अन्यथा वर्तमान खुशफहमी कहीं अटल जी की सरकार का फीलगुड बन कर न रह जाए !

   मोदी जी ! जनता का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टनेताओं की धोखाधड़ी का शिकार हो रहा है उसे बचने के लिए कुछ कीजिए !ये दोनों लोग ही करवा रहे हैं सभी प्रकार के अपराध !अन्यथा अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बल पर अपराध करें और उनके पास इतना धन कहाँ होता है कि वे घूस देकर बच जाएँ किंतु मददगारों के बल पर वो उठा जाते हैं बड़े बड़े कदम !इस लिए उन मदद गारों की पहचान करके उन पर अंकुश लगाना होगा !इन लोगों पर अंकुश लगाए बिना 2019 की वैतरणी पार कर पाना आसान नहीं होगा !
 
  इसके अलावा मोदी जी आखिर कैसे बंद हों अपहरण हत्या बलात्कार जैसे अपराध ! अपराधियों को गले लगाते हैं गुंडे और गुंडों को गले लगाती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !इसी प्रकार से अपराध के कारोबार से कमाई करते हैं अपराधी और अपराधियों से कमाई करते हैं भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी !यदि सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होते तो न हत्याएँ होतीं न होते बलात्कार !इसलिए अपराधियों पर अंकुश लगाने से पहले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों पर काबू पावे सरकार !उसके पहले विकास संबंधी सारी बातें बेकार ! 
    प्रधानमंत्री जी ! सरकार के हाथ पैर तो सरकारी अधिकारी और कर्मचारी ही होते हैं जिनके अच्छे बुरे व्यवहार के आधार पर ही सरकार के काम काज का मूल्यांकन  होता है क्योंकि अधिकारियों और कर्मचारियों से ही जनता को जूझना पड़ता है वो ही यदि भ्रष्टाचारी हैं तो आप कितने भी अच्छे बने रहें किंतु जनता के मन में आपकी छवि भ्रष्टाचार समर्थक के रूप में  ही बनी रहेगी !अपराधों पर अंकुश लगाने के नाम पर भाषण चाहें जितने हों किंतु काम बिलकुल नहीं हो रहा है ! 
   जेल में बैठकर  मीटिंगें कर रहे हैं अपराधी !एक साधारण किसान की गारंटी पर हजारों करोड़ का लोन मिल जाता है ऐसे असंख्य अपराध कर रहे हैं सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी इन्हें कोई देखने रोकने वाला ही नहीं है तभी तो अंकुश नहीं लग पा रहा है अपराधों पर !        सरकारी नीतियाँ इतनी अंधी हैं कि अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना तो सरकार के बश का ही नहीं है इनके  भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी सरकार के बश का नहीं है फिर भी इनकी सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार जबकि सरकारी हर काम काज का भट्ठा बैठा रखा  है इन्होंने !आखिर सरकार अपने  कर्मचारियों से इतनी खुश क्यों है!
    सरकारी शिक्षा विभाग ,डाकविभाग दूरसंचार विभाग चिकित्साविभाग चौपट तो इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने कर  रखा है इनसे बहुत कम सैलरी पाकर भी प्राइवेट टीचर, कोरियरकर्मी, प्राइवेटदूर संचार कर्मी,चिकित्साकर्मी अपने अपने क्षेत्र में कितनी अच्छी अच्छी सेवाएँ दे रहे हैं । 
    सरकार के कर्मचारी तो इतने कामचोर हैं कि जिस आफिस के कर्मचारियों की एक एक महीने की सैलरी पर पचासों लाख रूपए खर्च हो रहे होते हैं उस आफिस के कर्मचारी अपना कम्प्यूटर और प्रिंटर बिगाड़ कर उसी बहाने कई कई दिन काम न करके जनता को टरकाया करते हैं ऊपर से जनता के साथ मिलकर वो लोग  भी सरकार तथा सरकारी व्यवस्थाओं को गालियाँ देते हैं !         इनके काउंटरों पर नंबर की तलाश में खड़ी जनता को जानवरों की तरह कभी भी खदेड़ देते हैं ये इटरनेट न आने का बहाना बनाकर!कई कई दिन बीत जाने पर भी काम  न होने पर घूस देने को मजबूर कर दी जाती है जनता !उसके पास इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता है । सरकारी तंत्र की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जहाँ जनता इस विश्वास के साथ शिकायत करे कि उसका काम समय से हो जाएगा !
       सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम कराने के लिए घूस देने के अलावा जनता के पास कोई अधिकार नहीं हैं जिस अधिकारी से शिकायत की जाती है वो उलटे जनता को ही काटने दौड़ता है सरकार तक जनता की पहुँच नहीं होती है !
     कुल मिलाकर अपराध छोटे हों या बड़े इसे करने वाला किसी न किसी कोने में मूर्ख होता है तभी तो ऐसा  रास्ता चुनता है ।अपराधी केवल यंत्र की भाँति होता है इसी कारण ऐसे लोगों का ऊपरी कमाई के लालच में उपयोग करते हैं भ्रष्टअधिकारी कर्मचारी और गुंडेनेता !जहाँ अधिकारियों कर्मचारियों की ऊपरी कमाई का साधन बने हैं अपराधी वहीँ भ्रष्टनेताओं  का दबदबा बनाने में सहायक होते हैं  अपराधी !यही अधिकारी और यही नेता उन अपराधियों की हर समय हर प्रकार से रक्षा करते रहते हैं इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है इसलिए  ऐसे लोगों पर अंकुश लगाए बिना अपराधों पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है । 
     

मोदी जी ! भ्रष्टाचार पर पहले अंकुश लगाइए बाद में सैलरी बढ़ाइए !किसानों की आत्म हत्याएँ पहले बंद कराइए !

     भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी तो भ्रष्टाचार से कमा ही रहे हैं उन्हें सैलरी क्यों ?सरकार उनकी पहचान क्यों नहीं करती क्यों नहीं छेड़ती है कोई "भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान!"
      सरकार जो नियम बनाती है सरकारी मशीनरी का एक बड़ा वर्ग उन्हें बेच कर पैसे कमाता  है भारी भरकम सैलरी भी उठाता है ।सरकारी निगरानी तंत्र इतना लचर या भ्रष्ट है कि नियमों कानूनों को तोड़ने जोड़ने बेचने खरीदने की मंडी बन गया  है सरकारी कामकाज !लगभग हर आफिस में अलग अलग काम के हिसाब से घूस के पैसे फिक्स हैं !भ्रष्टाचार की भारत बहुत बड़ीमंडी है !जहाँ भ्रष्ट लोग नित्यप्रति करोड़ों का कारोबार उस भ्रष्टाचार के बल पर चला रहे हैं जिसे सरकारी नियम कानून गलत मानते हैं ।जिन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी सरकार की है ये सरकारों का फेलियर नहीं तो क्या है !फिर भी सैलरी !
  सरकारी आफिसों में भ्रष्टाचार के जन्मदाता सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ही तो होते हैं जिनसे गलत काम करवाकर दलाल लोग काली कमाई करने वालों से करोड़ों रूपए कमीशन कमा लेते हैं तो कल्पना कीजिए कितनी कमाई होगी उन भ्रष्ट अधिकारीकर्मचारियों की !ऊपर से हजारों लाखों की सैलरी !उसके ऊपर वेतन आयोगों की सरकारी कृपा !बारी सरकारी नौकरी !इनकी इतनी सुख सुविधाएँ और अपना इतना संघर्ष पूर्ण जीवन देखकर किसान आत्म हत्या न करें तो क्या करें !
    अपराधीलोग, गुंडेलोग और काली कमाई करने वाले धनीलोगों को इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वो अघोषित  रेटलिस्ट मिलती है कि सरकार के द्वारा बनाया गया कौन सा नियम कितने पैसे में तोड़ा जा सकता है ।यही कारण  है कि अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है । जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा है सो कर रहा है उतना बड़ा अपराध !
     मोदी जी !  किसानों गरीबों मजदूरों का भी कोई वेतन आयोग बनाइए आखिए वे भी देश सेवा का ही काम कर रहे हैं उनकी उपेक्षा क्यों ?किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाई जा रही है !दाल और टमाटर महँगे होने की चिंता तो है किंतु किसानों की रक्षा के लिए पहले उठाए जाएँ कठोर कदम !बाद में बढ़ाई जाए कर्मचारियों की सैलरी !वे सैलरी बढ़ाए बिना मरे नहीं जा रहे उन्हें आलरेडी इतना मिल रहा है पहले किसानों मजदूरों गरीबों की ओर देखिए मोदी जी !
   किसानों गरीबों मजदूरों की आमदनी की कितने गुने सैलरी होनी चाहिए सरकारी कर्मचारियों की इसकी भी कोई नीति बनाइए !एक तरफ हजारों का ठिकाना नहीं एक तरफ लाखों बढ़ाए जा रहे हैं ये कुंठा ही गरीबों के अंदर  आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म देती है ।
   आम जनता के टैक्स दी जाने वाली सैलरी कब बढ़ाई जाए कितनी बढ़ाई जाए इसके लिए जनता से क्यों नहीं पूछा जाता जनता के बीच सर्वे क्यों नहीं कराया जाता !सारे फैसले सरकार खुद ले लेती है तभी तो सरकारी आफिसों के लोग आम जनता को कुछ समझते नहीं हैं सरकारी आफिसों में काम के लिए जाने वाली जनता को खदेड़ कर भगा देते हैं सरकारी लोग !कोई सीधे मुख बात नहीं करता है वहाँ । जनता की कोई सुनने वाला नहीं होता है !
   सरकार में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी यदि  जनता का ध्यान नहीं रखते तो ये लोकतंत्र के नाम पर कलंक है कि जनता आज भी सरकारी अधिकारियों को अपनी समस्या बताने में डरती है उसके चार प्रमुख कारण हैं पहली बात वो सुनेंगे नहीं !दूसरी बात वो कुछ करेंगे नहीं ! तीसरी बात वो पैसे माँगेंगे !चौथी बात वो समस्या बढ़ा देंगे !
   कई बार लोगों को जो तंग कर रहा होता है उसके विरुद्ध किए गए कम्प्लेन की सूचना सरकारी विभाग से उस अपराधी को दी जाती है जाती है जो तंग कर रहा होता है फिर अपराधी ही कम्प्लेनर पर करता है अत्याचार !ये सारी कमियाँ दूर किए बिना सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार !अफसोस !ये सरकारें आम जनता के लिए चुनी जाती हैं पेट केवल अपना और अपनों का भरा करती हैं ।
    मोदी  सरकार के दो वर्ष होने का पर्व जनता भी मना रही है क्या ?या केवल सरकार में सम्मिलित लोग और केवल पार्टी के पदाधिकारी ही !कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि जनता को भी विश्वास में लिया जाए और जनता भी मोदी सरकार के वर्षद्वय पर में भावनात्मक रूप से सम्मिलित हो !अन्यथा वर्तमान खुशफहमी कहीं अटल जी की सरकार का फीलगुड बन कर न रह जाए !

   मोदी जी ! जनता का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टनेताओं की धोखाधड़ी का शिकार हो रहा है उसे बचने के लिए कुछ कीजिए !ये दोनों लोग ही करवा रहे हैं सभी प्रकार के अपराध !अन्यथा अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बल पर अपराध करें और उनके पास इतना धन कहाँ होता है कि वे घूस देकर बच जाएँ किंतु मददगारों के बल पर वो उठा जाते हैं बड़े बड़े कदम !इस लिए उन मदद गारों की पहचान करके उन पर अंकुश लगाना होगा !इन लोगों पर अंकुश लगाए बिना 2019 की वैतरणी पार कर पाना आसान नहीं होगा !
 

  इसके अलावा मोदी जी आखिर कैसे बंद हों अपहरण हत्या बलात्कार जैसे अपराध ! अपराधियों को गले लगाते हैं गुंडे और गुंडों को गले लगाती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !इसी प्रकार से अपराध के कारोबार से कमाई करते हैं अपराधी और अपराधियों से कमाई करते हैं भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी !यदि सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होते तो न हत्याएँ होतीं न होते बलात्कार !इसलिए अपराधियों पर अंकुश लगाने से पहले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों पर काबू पावे सरकार !उसके पहले विकास संबंधी सारी बातें बेकार ! 
    प्रधानमंत्री जी ! सरकार के हाथ पैर तो सरकारी अधिकारी और कर्मचारी ही होते हैं जिनके अच्छे बुरे व्यवहार के आधार पर ही सरकार के काम काज का मूल्यांकन  होता है क्योंकि अधिकारियों और कर्मचारियों से ही जनता को जूझना पड़ता है वो ही यदि भ्रष्टाचारी हैं तो आप कितने भी अच्छे बने रहें किंतु जनता के मन में आपकी छवि भ्रष्टाचार समर्थक के रूप में  ही बनी रहेगी !अपराधों पर अंकुश लगाने के नाम पर भाषण चाहें जितने हों किंतु काम बिलकुल नहीं हो रहा है ! 
   जेल में बैठकर  मीटिंगें कर रहे हैं अपराधी !एक साधारण किसान की गारंटी पर हजारों करोड़ का लोन मिल जाता है ऐसे असंख्य अपराध कर रहे हैं सरकारी अधिकारी ,कर्मचारी इन्हें कोई देखने रोकने वाला ही नहीं है तभी तो अंकुश नहीं लग पा रहा है अपराधों पर !        सरकारी नीतियाँ इतनी अंधी हैं कि अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना तो सरकार के बश का ही नहीं है इनके  भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी सरकार के बश का नहीं है फिर भी इनकी सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार जबकि सरकारी हर काम काज का भट्ठा बैठा रखा  है इन्होंने !आखिर सरकार अपने  कर्मचारियों से इतनी खुश क्यों है!
    सरकारी शिक्षा विभाग ,डाकविभाग दूरसंचार विभाग चिकित्साविभाग चौपट तो इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने कर  रखा है इनसे बहुत कम सैलरी पाकर भी प्राइवेट टीचर, कोरियरकर्मी, प्राइवेटदूर संचार कर्मी,चिकित्साकर्मी अपने अपने क्षेत्र में कितनी अच्छी अच्छी सेवाएँ दे रहे हैं । 
    सरकार के कर्मचारी तो इतने कामचोर हैं कि जिस आफिस के कर्मचारियों की एक एक महीने की सैलरी पर पचासों लाख रूपए खर्च हो रहे होते हैं उस आफिस के कर्मचारी अपना कम्प्यूटर और प्रिंटर बिगाड़ कर उसी बहाने कई कई दिन काम न करके जनता को टरकाया करते हैं ऊपर से जनता के साथ मिलकर वो लोग  भी सरकार तथा सरकारी व्यवस्थाओं को गालियाँ देते हैं !         इनके काउंटरों पर नंबर की तलाश में खड़ी जनता को जानवरों की तरह कभी भी खदेड़ देते हैं ये इटरनेट न आने का बहाना बनाकर!कई कई दिन बीत जाने पर भी काम  न होने पर घूस देने को मजबूर कर दी जाती है जनता !उसके पास इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता है । सरकारी तंत्र की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जहाँ जनता इस विश्वास के साथ शिकायत करे कि उसका काम समय से हो जाएगा !
       सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम कराने के लिए घूस देने के अलावा जनता के पास कोई अधिकार नहीं हैं जिस अधिकारी से शिकायत की जाती है वो उलटे जनता को ही काटने दौड़ता है सरकार तक जनता की पहुँच नहीं होती है !
     कुल मिलाकर अपराध छोटे हों या बड़े इसे करने वाला किसी न किसी कोने में मूर्ख होता है तभी तो ऐसा  रास्ता चुनता है ।अपराधी केवल यंत्र की भाँति होता है इसी कारण ऐसे लोगों का ऊपरी कमाई के लालच में उपयोग करते हैं भ्रष्टअधिकारी कर्मचारी और गुंडेनेता !जहाँ अधिकारियों कर्मचारियों की ऊपरी कमाई का साधन बने हैं अपराधी वहीँ भ्रष्टनेताओं  का दबदबा बनाने में सहायक होते हैं  अपराधी !यही अधिकारी और यही नेता उन अपराधियों की हर समय हर प्रकार से रक्षा करते रहते हैं इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है इसलिए  ऐसे लोगों पर अंकुश लगाए बिना अपराधों पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता है । 
     

Saturday, 25 June 2016

योग करने के नाम पर उछलने कूदने वाले बाबाओं को क्या समझ में आएगी ज्योतिष जैसी दिव्य विद्या !

    ज्योतिषशास्त्र  को पाखण्ड कहने वाला योगगुरु या पाखंडी ! ऐसे किसी भी घमंडी को शास्त्रार्थ की खुली चुनौती !
     ज्योतिष शास्त्र समय संबंधी पूर्वानुमान का सबसे बड़ा विज्ञान है !कोई योगगुरु ऐसे दिव्य ज्योतिषशास्त्र की निंदा कैसे कर सकता है !वो महामूर्ख ही होगा जो ज्योतिष के रहस्य को समझे बिना ही उसकी निंदा करने लगा हो !    वेदों का नेत्र है ज्योतिषशास्त्र शास्त्रों की निंदा करने वाले पाखंडियों को मुख लगाने का नुक्सान भोगना पड़ेगा सरकार को !मैं तो कहता हूँ कि ज्योतिष के विषय में बेकार की बकवास करने से अच्छा है वो सीधे कहें कि ज्योतिष शास्त्र मुझे समझ में नहीं आता तो मैं समझाने का प्रयास करूँगा !वो कहें कि ज्योतिष शास्त्र में मुझे एलर्जी है इसलिए मैं घृणा करता हूँ तो मैं ऐसे लोगों से कहना चाहता हूँ कि मैं आयुर्वेद के बड़े और प्रमाणित ग्रंथों में अनेकों जगह दिखा दूँगा जहाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर ज्योतिष, ग्रहनक्षत्र, वास्तु, सामुद्रिक, स्वप्न और शकुनों का प्रयोग न केवल किया गया है अपितु इनके प्रभाव प्रभावों के विषय में भी बताया गया है यदि कोई  कि मैंने आयुर्वेद पढ़ा है तो उसे ये पता होना चाहिए और यदि आयुर्वेद को मानता है तो इसे भी मानना चाहिए एक और बड़ी बात आयुर्वेद के ही एक बड़े ग्रंथ में मिलती है कि जो लोग केवल आयुर्वेद पढ़कर आयुर्वेद समझना चाहते हैं वो ठीक नहीं है आयुर्वेद समझने के लिए उन्हें हर शास्त्र का अध्ययन करना चाहिए क्योंकि आयुर्वेद की जड़ें हर शास्त्र तक फैली हैं !इतना सब होने के बाद भी कोई कहे कि मैं आयुर्वेद को तो जनता हूँ किंतु ज्योतिष पाखंड है ये कहाँ तक उचित है !

     जिस ज्योतिष शास्त्र को आयुर्वेद केवल मानता ही नहीं है अपितु आयुर्वेद अधूरा है ज्योतिष शास्त्र के बिना !आयुर्वेद के बड़े बड़े ग्रंथों में ज्योतिष शास्त्र संबंधित बातों को उद्धृत किया गया है  गया है !यदि कोई व्यक्ति ज्योतिष शास्त्र न भी पढ़ा हो केवल आयुर्वेद भी पढ़ा हो तो उसे भी पता होगा ज्योतिष शास्त्र का महत्त्व किंतु जिसने कुछ पढ़ा ही न हो उसके लिए बेकार है ज्योतिष क्या कोई भी शास्त्र ! वो जिस विषय में जितनी चाहे उतनी बकवास करे स्वतंत्र है वो !जितनी योग के नाम पर कसरत करने के लिए हाथ पैर तो कोई भी हिला  डुला सकता है पढ़ा हो या अनपढ़ किंतु ज्योतिष शास्त्र वेदों का नेत्र है !ये उसी को समझ में आएगा जिसके पास दिमाग होगा !ज्योतिष जैसे शास्त्र के विषय में मुख उठा के ऐसे ऐसे लोग बकवास करने लगते हैं जिनमें शास्त्रों को समझने की क्षमता ही नहीं है ।

    आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथों में भी औषधि आहरण से लेकर औषधि निर्माण एवं औषधि दान तक की विधि में ज्योतिष शास्त्र का भरपूर उपयोग किया गया है !औषधि आहरण में स्थान विशेष की चर्चा सुश्रुत संहिता में वास्तु के आधार पर ही की गई है की तक की विधि थ भी कहते हैं !ज्योतिषशास्त्र जन्मपत्री विज्ञान वास्तु विज्ञान को यदि वे गलत कहते हैं तो इधर उधर योग शिविरों कहते क्यों घूम रहे हैं सीधे शास्त्रार्थ करें और गलत सिद्ध करके दिखावें ज्योतिष को !साधू संतों जैसा वेष धारण करके शास्त्रों की निंदा करना निंदनीय है कोई बात यदि किसी को समझ में न आवे इसका मतलब ये नहीं कि वो गलत है !रिओं यदि उन्हें गलत की सत्यता पर यदि संदेह हो तो बाबा जी करें शास्त्रार्थ !सरकार व्यवस्था करे !
    योग शिविरों में ज्योतिष की बुराई करना ठीक नहीं है यदि ज्योतिष की पद्धति गलत सिद्ध होगी तो बंद कर दी जाएगी !दूध का दूध पानी का जाएगा !यदि सही होगी तो ज्योतिष की बुराई बंद हो जाएगी !ऐसे कोई भी कभी भी ज्योतिष की निंदाकरने लगता आखिर ज्योतिष एक विषय है !कोई ज्योतिषी गलत हो सकता है किंतु शास्त्र नहीं !केवल ज्योतिष ही नहीं संपूर्ण धर्म क्षेत्र ही आज भ्रष्टाचार का शिकार है योग्य और सदाचारी लोगों को खोज पाना दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है !धर्म की जितनी विधाएँ हैं सब फेल होती जा रही हैं समाज में बढ़ते अपराध इस बात के सुदृढ़ प्रमाण हैं !पैसे के बल पर भीड़ कहीं कोई कितनी भी इकट्ठी कर ले किंतु समाज सिरे से ख़ारिज करता जा रहा है !ज्योतिष शास्त्र के क्षेत्र में जो ज्योतिष पढ़े नहीं हैं वो भी ज्योतिष की निंदा करते हैं अरे !जिस विषय को आप जानते ही नहीं हैं उसके सही गलत होने का फैसला आप कैसे कर सकते हैं ! आखिर ज्योतिष भी एक शास्त्र है कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए वो शास्त्र से बड़ा कभी नहीं हो सकता !वैसे भी शास्त्रार्थ अपनी पुरानी परंपरा है इसमें कोई बुराई भी नहीं है ! शंका समाधान हो जाए तो क्या बुरा है !
" ग्रहों की मान्यता को पाखंड बताने वाला कोई भी व्यक्ति यदि ज्योतिष पढ़ा हो तो उसे शास्त्रार्थ की खुली चुनौती !"
जिसने ज्योतिष पढ़ी हो उसी से हो सकता है शास्त्रार्थ !और जिसने जिस विषय को पढ़ा ही न हो वो उस विषय को सही या गलत कैसे कह सकता है ।बिना पढ़े लोग तो सारी दुनियाँ को अपने जैसा ही अनपढ़ समझते हैं इसलिए मुख उठाकर कभी किसी को भी कुछ भी बोल देते हैं ऐसे लोगों से शास्त्रार्थ कर पाना कैसेsee more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2016/06/blog-post_20.html "

Thursday, 23 June 2016

विषय - प्राकृतिक आपदाओं के विषय में ज्योतिषीय रिसर्च कार्य के लिए सहायता प्राप्ति हेतु !

 माननीय प्रधानमंत्री जी 
                                सादर प्रणाम !
विषय - महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय रिसर्च कार्य के लिए सहायता प्राप्ति हेतु ! 
 महोदय , 
      मैंने  भारतसरकार  के  प्रमाणित सपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय से ज्योतिष शास्त्र में आचार्य अर्थात (M. A.)किया है इसके बाद "बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी"  से Ph.D की है ।  ज्योतिष आयुर्वेद सहित वेदों और पुराणों आदि में वर्णित  प्राचीनविज्ञान के आधार पर समयविज्ञान की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण शोधकार्य किए हैं इसके आधार पर बच्चे का जन्म होने की साथ साथ ही बच्चों की मनोवृत्तियों का अध्ययन किया जा सकता है 
 कोई बच्चा किस उम्र में जाकर किस अवसर का कैसे और  कितने अच्छे ढंग से सदुपयोग कर सकता है साथ ही किस उम्र में कितने वर्ष या मास तक उसे किस की प्रकार की बुरी लतों या आपराधिक आदतों से बचाया जाना चाहिए जिससे उसके भविष्य की रक्षा हो सकती है 
बच्चों के भविष्य एवं वैवाहिक जीवन को  रहित तथा तलाकमुक्त बनाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण  रिसर्च कार्य किए हैं !संयुक्त परिवारों के टूटने के कारण और निवारण के क्षेत्र में
     महोदया , ज्योतिष शास्त्र  



जिसके आधार पर मैं कह सकता हूँ कितो हमारे इस रिसर्च कार्य को आगे बढ़ाने में सरकार हमारी मदद करे !

                                                                   -निवेदक  भवदीय - 
                                           राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान(रजि.)
                                           --------------------------आचार्यडॉ.शेषनारायण वाजपेयी -------------------------------
एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी
पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसी
K -71 ,छाछी बिल्डिंग, कृष्णा नगर, दिल्ली -110051
Tele: +91-11-22002689, +91-11-22096548
Mobile : +919811226973,


                                                                               



 और  किसी  । रे अनुभव दूसरे मनोरोगी पर
ने पर ग्रंथों के एवं अल्पप्रभावी है ,मनोरोग एवं भावी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान काफी सटीक  साबित हुए हैं आपदा प्रबंधन जैसे कार्यों में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं ।
     महोदय !उस बेरोजगारी से जूझते हुए भी  मैंने 'चिकित्सा में ज्योतिष का योगदान'   'मनोरोग का ज्योतिष से निदान'  'टूटते वैवाहिक संबंधों को बचाने का ज्योतिष निदान"   'वर्षा संबंधी पूर्वानुमान' के विषय में कई प्रभावी शोधकार्य किए हैं । मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि चिकित्सा विज्ञान ज्योतिष के बिना अधूरा है मनोरोग विषय ही ज्योतिष का है इसमें चिकित्सा की विशेष भूमिका नहीं है 
     श्रीमान जी ! इतना ही नहीं ज्योतिषशास्त्र के सहयोग से 
     भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की दिशा में भी शोध जारी है उसमें भी तीस से चालीस प्रतिशत सफलता मिल चुकी है आगे भी प्रयास जारी हैं ! संभव है कि भूकंप जैसे विषयों में पूर्वानुमान लगाने का गौरव भी भारत को मिले ! 
       महोदय ! भूकंप विज्ञान आपदा संबंधी पूर्वानुमान संबंधी रिसर्च पर सरकार इतनी मदद करती है योगासन जैसे विषयों को प्रोत्साहित करने में सरकार इतनी  रूचि ले सकती है तो ज्योतिषविज्ञान के विषय में इतनी उदासीनता क्यों है । सरकार की दृष्टि में इतना पक्षपात क्यों ?
     अतएव आपसे निवेदन है कि हमने भी परिश्रम पूर्वक ज्योतिष के विषय में पढ़ाई करके सरकारी विश्व विद्यायों से डिग्री हासिल की है तो हमें भी आजीविका देना एवं हमारे भी अनुसंधानकार्यों में हमारी भी मदद करना सरकार  का नैतिक दायित्व है ताकि हम भी अपने विषयों से सम्बंधित शोध सरकार के माध्यम से देश समाज और विश्व  सामने रख सकें !

     
'राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान" के तत्वावधान में

पर सरकार इतना भरी न के  ,पर इतने इतने वर्षों से हमारी सबसे बड़ी समस्या ये  

 



 वेदों का नेत्र है ज्योतिषशास्त्र शास्त्रों की निंदा करने वाले पाखंडियों को मुख लगाने का नुक्सान भोगना पड़ेगा सरकार को !मैं तो कहता हूँ कि ज्योतिष के विषय में बेकार की बकवास करने से अच्छा है वो सीधे कहें कि ज्योतिष शास्त्र मुझे समझ में नहीं आता तो मैं समझाने का प्रयास करूँगा !वो कहें कि ज्योतिष शास्त्र में मुझे एलर्जी है इसलिए मैं घृणा करता हूँ तो मैं ऐसे लोगों से कहना चाहता हूँ कि मैं आयुर्वेद के बड़े और प्रमाणित ग्रंथों में अनेकों जगह दिखा दूँगा जहाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर ज्योतिष, ग्रहनक्षत्र, वास्तु, सामुद्रिक, स्वप्न और शकुनों का प्रयोग न केवल किया गया है अपितु इनके प्रभाव प्रभावों के विषय में भी बताया गया है यदि कोई  कि मैंने आयुर्वेद पढ़ा है तो उसे ये पता होना चाहिए और यदि आयुर्वेद को मानता है तो इसे भी मानना चाहिए एक और बड़ी बात आयुर्वेद के ही एक बड़े ग्रंथ में मिलती है कि जो लोग केवल आयुर्वेद पढ़कर आयुर्वेद समझना चाहते हैं वो ठीक नहीं है आयुर्वेद समझने के लिए उन्हें हर शास्त्र का अध्ययन करना चाहिए क्योंकि आयुर्वेद की जड़ें हर शास्त्र तक फैली हैं !इतना सब होने के बाद भी कोई कहे कि मैं आयुर्वेद को तो जनता हूँ किंतु ज्योतिष पाखंड है ये कहाँ तक उचित है !
     जिस ज्योतिष शास्त्र को आयुर्वेद केवल मानता ही नहीं है अपितु आयुर्वेद अधूरा है ज्योतिष शास्त्र के बिना !आयुर्वेद के बड़े बड़े ग्रंथों में ज्योतिष शास्त्र संबंधित बातों को उद्धृत किया गया है  गया है !यदि कोई व्यक्ति ज्योतिष शास्त्र न भी

Wednesday, 22 June 2016

ज्योतिषशास्त्र को पाखण्ड कहने वाला योगगुरु या पाखंडी ! ऐसे किसी भी घमंडी को शास्त्रार्थ की खुली चुनौती !

    ज्योतिष शास्त्र समय संबंधी पूर्वानुमान का सबसे बड़ा विज्ञान है !कोई योगगुरु ऐसे दिव्य ज्योतिषशास्त्र की निंदा कैसे कर सकता है !वो महामूर्ख ही होगा जो ज्योतिष के रहस्य को समझे बिना ही उसकी निंदा करने लगा हो !
    वेदों का नेत्र है ज्योतिषशास्त्र शास्त्रों की निंदा करने वाले पाखंडियों को मुख लगाने का नुक्सान भोगना पड़ेगा सरकार को !मैं तो कहता हूँ कि ज्योतिष के विषय में बेकार की बकवास करने से अच्छा है वो सीधे कहें कि ज्योतिष शास्त्र मुझे समझ में नहीं आता तो मैं समझाने का प्रयास करूँगा !वो कहें कि ज्योतिष शास्त्र में मुझे एलर्जी है इसलिए मैं घृणा करता हूँ तो मैं ऐसे लोगों से कहना चाहता हूँ कि मैं आयुर्वेद के बड़े और प्रमाणित ग्रंथों में अनेकों जगह दिखा दूँगा जहाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर ज्योतिष, ग्रहनक्षत्र, वास्तु, सामुद्रिक, स्वप्न और शकुनों का प्रयोग न केवल किया गया है अपितु इनके प्रभाव प्रभावों के विषय में भी बताया गया है यदि कोई  कि मैंने आयुर्वेद पढ़ा है तो उसे ये पता होना चाहिए और यदि आयुर्वेद को मानता है तो इसे भी मानना चाहिए एक और बड़ी बात आयुर्वेद के ही एक बड़े ग्रंथ में मिलती है कि जो लोग केवल आयुर्वेद पढ़कर आयुर्वेद समझना चाहते हैं वो ठीक नहीं है आयुर्वेद समझने के लिए उन्हें हर शास्त्र का अध्ययन करना चाहिए क्योंकि आयुर्वेद की जड़ें हर शास्त्र तक फैली हैं !इतना सब होने के बाद भी कोई कहे कि मैं आयुर्वेद को तो जनता हूँ किंतु ज्योतिष पाखंड है ये कहाँ तक उचित है !

     जिस ज्योतिष शास्त्र को आयुर्वेद केवल मानता ही नहीं है अपितु आयुर्वेद अधूरा है ज्योतिष शास्त्र के बिना !आयुर्वेद के बड़े बड़े ग्रंथों में ज्योतिष शास्त्र संबंधित बातों को उद्धृत किया गया है  गया है !यदि कोई व्यक्ति ज्योतिष शास्त्र न भी पढ़ा हो केवल आयुर्वेद भी पढ़ा हो तो उसे भी पता होगा ज्योतिष शास्त्र का महत्त्व किंतु जिसने कुछ पढ़ा ही न हो उसके लिए बेकार है ज्योतिष क्या कोई भी शास्त्र ! वो जिस विषय में जितनी चाहे उतनी बकवास करे स्वतंत्र है वो !जितनी योग के नाम पर कसरत करने के लिए हाथ पैर तो कोई भी हिला  डुला सकता है पढ़ा हो या अनपढ़ किंतु ज्योतिष शास्त्र वेदों का नेत्र है !ये उसी को समझ में आएगा जिसके पास दिमाग होगा !ज्योतिष जैसे शास्त्र के विषय में मुख उठा के ऐसे ऐसे लोग बकवास करने लगते हैं जिनमें शास्त्रों को समझने की क्षमता ही नहीं है ।

    आयुर्वेद के शीर्ष ग्रंथों में भी औषधि आहरण से लेकर औषधि निर्माण एवं औषधि दान तक की विधि में ज्योतिष शास्त्र का भरपूर उपयोग किया गया है !औषधि आहरण में स्थान विशेष की चर्चा सुश्रुत संहिता में वास्तु के आधार पर ही की गई है की तक की विधि थ भी कहते हैं !ज्योतिषशास्त्र जन्मपत्री विज्ञान वास्तु विज्ञान को यदि वे गलत कहते हैं तो इधर उधर योग शिविरों कहते क्यों घूम रहे हैं सीधे शास्त्रार्थ करें और गलत सिद्ध करके दिखावें ज्योतिष को !साधू संतों जैसा वेष धारण करके शास्त्रों की निंदा करना निंदनीय है कोई बात यदि किसी को समझ में न आवे इसका मतलब ये नहीं कि वो गलत है !रिओं यदि उन्हें गलत की सत्यता पर यदि संदेह हो तो बाबा जी करें शास्त्रार्थ !सरकार व्यवस्था करे !
    योग शिविरों में ज्योतिष की बुराई करना ठीक नहीं है यदि ज्योतिष की पद्धति गलत सिद्ध होगी तो बंद कर दी जाएगी !दूध का दूध पानी का जाएगा !यदि सही होगी तो ज्योतिष की बुराई बंद हो जाएगी !ऐसे कोई भी कभी भी ज्योतिष की निंदाकरने लगता आखिर ज्योतिष एक विषय है !कोई ज्योतिषी गलत हो सकता है किंतु शास्त्र नहीं !केवल ज्योतिष ही नहीं संपूर्ण धर्म क्षेत्र ही आज भ्रष्टाचार का शिकार है योग्य और सदाचारी लोगों को खोज पाना दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है !धर्म की जितनी विधाएँ हैं सब फेल होती जा रही हैं समाज में बढ़ते अपराध इस बात के सुदृढ़ प्रमाण हैं !पैसे के बल पर भीड़ कहीं कोई कितनी भी इकट्ठी कर ले किंतु समाज सिरे से ख़ारिज करता जा रहा है !ज्योतिष शास्त्र के क्षेत्र में जो ज्योतिष पढ़े नहीं हैं वो भी ज्योतिष की निंदा करते हैं अरे !जिस विषय को आप जानते ही नहीं हैं उसके सही गलत होने का फैसला आप कैसे कर सकते हैं ! आखिर ज्योतिष भी एक शास्त्र है कोई व्यक्ति कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए वो शास्त्र से बड़ा कभी नहीं हो सकता !वैसे भी शास्त्रार्थ अपनी पुरानी परंपरा है इसमें कोई बुराई भी नहीं है ! शंका समाधान हो जाए तो क्या बुरा है !
" ग्रहों की मान्यता को पाखंड बताने वाला कोई भी व्यक्ति यदि ज्योतिष पढ़ा हो तो उसे शास्त्रार्थ की खुली चुनौती !"
     जिसने ज्योतिष पढ़ी हो उसी से हो सकता है शास्त्रार्थ !और जिसने जिस विषय को पढ़ा ही न हो वो उस विषय को सही या गलत कैसे कह सकता है ।बिना पढ़े लोग तो सारी दुनियाँ को अपने जैसा ही अनपढ़ समझते हैं इसलिए मुख उठाकर कभी किसी को भी कुछ भी बोल देते हैं ऐसे लोगों से शास्त्रार्थ कर पाना कैसेsee more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2016/06/blog-post_20.html "

Monday, 20 June 2016

योग का मतलब केवल कसरत व्यायाम ही नहीं है अपितु योग में छिपे हैं अनन्त रहस्य !

     प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का संस्कृत ,धर्मऔर योग के लिए किया गया योगदान अतुलनीय है !उन्होंने अपना काम कर दिया है अब बारी है योग जगत से जुड़े असली योगियों की वो आगे आएँ और बचाएँ योग का गौरव !          
     योग मनुष्य शरीरों से सम्बंधित ब्रह्माण्ड  के रहस्यों को अंतर्जगत में ही सुलझा लेने वाला सबसे बड़ा विज्ञान है । योगसिद्ध व्यक्ति को भूत भविष्य की घटनाएँ अपनी हथेली पर रखे हुए आँवले के समान साफ साफ दिखने लग जाती हैं ।
            प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जीने संस्कृत और धर्म से जुड़े लोगों की हमेंशा से चली आ रही वो शिकायत दूर कर दी है कि सरकारें हमारी सुनती नहीं हैं और प्राचीन ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए सरकारें कुछ करती नहीं हैं मोदी जी इस विषय में इतना अधिक काम कर रहे हैं जितनी संस्कृत समाज को कभी आशा और अपेक्षा थी ही नहीं और न ही इसके पहले की सरकारों ने  प्राचीन ज्ञान विज्ञान के विषय ऐसा कभी सोचा ! अब गेंद प्राचीन ज्ञान विज्ञान से जुड़े हुए लोगों के पाले में है वो चाहें तो अपने अपने विषयों से जुड़ी उपलब्धियाँ परिश्रम पूर्वक खोजें और समाज के सामने प्रस्तुत करें मोदी  सरकार उसे मंच देने को तैयार है !प्राचीन ज्ञान विज्ञान से जुड़े लोगों को अपनी प्रतिभाओं को प्रकट करने का अवसर इतनी आत्मीयता पूर्वक निकट भविष्य में मिलना कठिन ही नहीं असम्भव भी होगा !
        प्रधानमंत्री जी की योग के विषय में जो भूमिका होनी चाहिए थी उन्होंने सम्पूर्ण ताकत लगाई है उसे निभाने में एक झटके में सारे विश्व को योग का मुरीद बना दिया है अब परीक्षा उन लोगों की है जो योग से जुड़े हैं या अपने को योगी कहते हैं वो योग की इज्जत बचाने के लिए जी जान से जुट जाएँ  !खुद अकल न हो तो जंगलों की ओर कूच करें और साधक योगियों की खोज करके  उनसे योगाभ्यास सीखें और विश्व समाज के सामने योग  के नाम पर कुछ तो ऐसा प्रस्तुत करने का प्रयास करें जो लगे भी कि योग है !क्योंकि योगियों की कथा कहानियाँ सुनते रहने वाले समाज को योग से अनंत अपेक्षाएँ हैं जिन्हें हम केवल कसरत व्यायामों से पूर नहीं कर सकते प्रधानमन्त्री जी ने कहा भी था कि 'योग हमारा है ऐसा मैं दावा नहीं करता ' किंतु उनके प्रयास से योग यदि आज जन जन तक पहुँचा कर उन्होंने योग से जुड़े लोगों को ये  अवसर उपलब्ध करवाया है कि वो भारतीय प्राचीन योग की शक्ति सामर्थ्य का  परिचय दें  यदि वो इसमें सफल हो जाते  हैं तो दुनियाँ वैसे ही मान लेगी कि योग वास्तव में भारत की ही प्राचीन विद्या है और इसमें वो अनन्त शक्तियाँ हैं जिनसे हम लोग अनभिज्ञ थे जो भारतीय लोगों ने हमें सिखाया है !इसलिए अब परीक्षा और मौका योग से जुड़े लोगों और योगियों का  है वो चाहें तो प्रधानमंत्री जी के इस प्रयास को उस लक्ष्य तक पहुँचा सकते हैं जिसका हकदार है योग ! 
भूकंप जैसी घटनाओं को पहले से ही देख सकता है योगी !
      भूकंपों का पूर्वानुमान लगा पाना आज विश्व के लिए चुनौती बना हुआ है किंतु यदि असली कोई योगी चाह ले तो पूर्वानुमान लगाना तो दूर रोक सकता है भूकम्प जैसी बड़ी से बड़ी प्राकृतिक आपदाएँ !ऐसे असली योगी आज भी जंगलों कन्दराओं में रह करके  कर रहे हैं तपस्या !
बड़ीसे बड़ी बीमारियों को बिना दवा के भी ठीककर सकता है असलीयोगी ! 
    बड़ी से बड़ी लाइलाज बीमारियाँ महामारियाँ वो बिना किसी दवा के इच्छा मात्र से ही रोक देते हैं वो !दवा खिलाकर बीमारियाँ ठीक करने में सच्चा योगी तो अपने योग का अपमान समझता है !असलीयोगी लोग बीमारियों से समाज को डरवाते नहीं हैं अपितु योगशक्ति के बलपर जीवन से बीमारियों का भय भगाना सिखाते हैं
   असली योगी खाने पीने की चीजों में प्रदूषण का भय नहीं पैदा करता है !
    योग के बल पर ही तो भगवान शंकर ने जहर पिया था ! योग खाने पीने सम्बन्धी प्रदूषण को कंट्रोल करने अर्थात पचा लेने की सामर्थ्य पैदा करता है !  असली योगी कभी नहीं कहते ये 'आटा खाओ'  ये 'तेल पियो" वो तो कहते हैं कुछ भी खाओ कुछ भी पियो यदि आप असली योगाभ्यासी हैं तो जहर भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता !
असली योगी लोग समाज को डरपोक नहीं बनाते हैं !
    शेर भालू जैसे हिंसक जीव जंतु भी असली योगाभ्यासियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते !सर्प बिच्छु आदि भयानक से भयानक  बिषैले जीव जंतु भी योगियों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते !उसी शक्ति के बलपर तो आज भी जंगलों में निर्भीक बिचरण करते हैं असली योगी लोग!सिक्योरिटी आदि तो नकली योगियों को चाहिए होती है असली योगियों में तो वो सामर्थ्य होती है कि वे सारे ब्रह्मांड की रक्षा वो अकेले कर सकते हैं इसीलिए तो बड़े बड़े राजा  लोग अपनी सुरक्षा की भीख योगियों के आश्रमों में जा जाकर माँगा  करते थे  । असली योगियों को भय किस बात का !
समाज सुधार के लिए असली योगी सरकारें नहीं बदलता अपितु समाज का स्वभाव बदल देता है !
    भय मुक्त जीवन और अपराध मुक्त समाज बनाता है अन्यथा केवल साधन करता है अन्य सारे प्रपंचों से दूर रहता है । योगी उद्योगी हो ही नहीं सकता !ये तो असम्भव है । बीमारियों का डर और मृत्यु का भय दिखा दिखाकर दवादारू या खाने पीने वाली चीजें बेचने खर्चने वाले लोग योगी कैसे हो सकते हैं !योगी तोनिडर बनाता है प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है !भयमुक्त जीवन बनाता है ।
योगी लोग कुछ ऐसा करें ताकि विदेशियों को भी  लगे कि योग वास्तव में बहुत बड़ा विज्ञान है !  
     भारतीय प्राचीन ऋषियों मुनियों का युगों युगों तक किया हुआ यह महान अनुसंधान है !अन्यथा योग के नाम पर प्रचारित किए जा रहे कसरत व्यायामों को तो हर देश और हर समाज किसी न किसी रूप में हमेंशा से करता चला आ रहा है उसे ही योग कहने बताने लगने में कहाँ की बुद्धिमानी नहीं है इसमें  कुछ तो योग मिलाया जाए जो योग लगे !
योग सभी प्रकार के अपराधों पर लगाम लगा सकता है!
    सभी प्रकार के अपराध मन से किए जाते हैं और मन पर संयम करना सिखाता है योग !मन पर नियंत्रण होते ही हो सकता है अपराध मुक्त समाज !एक दिन में ऐसी आशा नहीं की जानी चाहिए किंतु उस दिशा का ही सबसे सशक्त माध्यम है योग !
 योग आत्मा को परमात्मा  से मिला सकता है !
    यह केवल कसरत व्यायाम तक ही सीमित नहीं है अपितु यह मन को सभी विकारों से मुक्त करने का सबसे बड़ा साधन है मन के विकार मुक्त होते ही आत्मा और परमात्मा के मिलन का रास्ता प्रशस्त  है योग ! आत्मा और परमात्मा के मिलन को ही 'योग' कहते हैं क्योंकि योग का अर्थ ही होता है 'जुड़ना' है अर्थात आत्मा का परमात्मा से जुड़ना !यह  भारत का अत्यंत प्राचीन विज्ञान है
 टूटते समाज एवं बिखरते परिवारों को जोड़ सकता है योग !
     चूँकि योग का अर्थ ही होता है 'जुड़ना' !इसलिए समाज के सभी प्राणियों के मन में एक दूसरे के प्रति आपस में अपनापन पैदा करता है योग !कई योगियों के आश्रम ऐसे देखे जा सकते हैं जहाँ योग के प्रभाव से उन आश्रमों में रहने वाले या उनके आस पास रहने वाले परस्पर विरोधी स्वभाव वाले हिंसक जीव जंतुओं का भी स्वभाव बदल जाता है और वो एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक रहने लगते हैं !ये है असली योगियों का प्रभाव !ये सारा योग से ही संभव है । 
योग करने के लिए आसन कौन सा हो ?
  इसके लिए महर्षि पतंजलि ने लिखा कि "स्थिर सुखमासनम् " अर्थात एक आसन पर स्थिर होकर सुख पूर्वक बैठे !
योग क्या है ?
   इसके लिए महर्षि पतंजलि कहते हैं कि "योगश्चित्तवृत्ति निरोधः "मन को संयमित करना या मन पर कन्ट्रोल करना ही योग है ! 
शरीरस्वस्थ रखने के लिए महर्षि पतंजलि कहते हैं-
  'कायेंद्रिय सिद्धिरशुद्धि क्षयात्तपसः' 
    अर्थात 'अर्थात तपस्या से शरीर के मलों का नाश  हो जाता है और मलों का नाश होते ही शरीर स्वस्थ एवं इन्द्रियाँ प्रसन्न हो जाती हैं ! इसीलिए योगी को तो रोग होते ही नहीं हैं यदि कोई रोगी भी उनके पास आ जाए तो वे उसे भी योग के द्वारा  स्वस्थ कर देते हैं !दवा खिलाकर रोग ठीक करने में तो असली योगी अपनी बेइज्जती समझते हैं क्योंकि ये तो वैद्यों हकीमों का काम है कोई योगी वैद्यों हकीमोंवाले काम क्यों करेगा !अपने को योगी कहने वाला यदि कोई ऐसा करता है तो वो योगी नहीं हो सकता या फिर उसे योग  पर  भरोसा नहीं है । 
      योगी लोग मृत्यु को भी जीत लेते हैं -
    सच्चे योगी लोगों पर रोग की बात तो छोड़िए मृत्यु भी आक्रमण नहीं कर पाती वे जितने लंबे समय तक चाहते हैं उतने लम्बे समय तक इस दुनियाँ में जीवित रहते हैं ।इसीलिए योगियों की आयु हजारों वर्ष भी होती देखी जाती है । 
योगबल सबसे बड़ा बल है !
     योग में इतनी शक्ति होती है कि योगी लोग कुछ भी बना बिगाड़ सकते हैं इसीलिए राजा महाराजा लोग इन्हें हमेंशा प्रसन्न रखते थे । योगी निडर होते हैं पुलिस के डंडों से डर कर भागते नहीं हैं वो तो अपना शरीर बज्र बना सकते हैं वो दोचार दिन भूखे रहने से लाद कर अस्पताल नहीं ले जाने पड़ते हैं वो तो महीनों वर्षों की समाधि ले जाया करते हैं उन्हें भोजन की चिंता कहाँ होती है वो तो सारी  सृष्टि के सम्राट होते हैं !
योगी लोग तो समाज के मन पर शासन करते हैं !
    किसी राजा महाराजा या मंत्री प्रधानमंत्री को अपनी बात मनवाने के लिए योगियों को अनशन नहीं करना पड़ता वो तो जंगलों में बैठे बैठे इच्छा मात्र से ही उनका मन बदल दिया करते हैं ।
योगी चाह ले तो भ्रष्टाचारमुक्त बना सकता है समाज !
    आज समाज में जितने प्रकार के भ्रष्टाचार पापाचार बलात्कार अपहरण लूट खसोट हत्या आत्महत्या जैसी विकृतियाँ हैं उन्हें मिटाने के लिए यदि कोई योगी चाह ले तो  इच्छा मात्र से नष्ट कर सकता है किंतु ऐसे असली योगी आज हैं कहाँ जो हैं भी वो जंगलों पर्वतों कन्दराओं में कहीं तपस्या का ले रहे होंगे आनंद !
योगी लोग सांसारिक प्रपंचों में  नहीं फँसते!
   जिन घर गृहस्थियों व्यवहारों व्यापारों को भूलने के लिए उन्होंने योग की राह पकड़ी वो फिर उसी में क्यों फँसना चाहेंगे !उनके लिए ऐसा करना तो पतन कारक होगा !जैसे कोई उलटी (वमन) या वोमिटिंग पहले करे और फिर उसे ही चाटने  लगे !इसी प्रकार से जो परिवार व्यापार आदि छोड़ कर योग की शरण में आओ लगो फिर वाही चाटने लगना कोई असली योगी कैसे पसंद करेगा !उसने तो ऐसे सारे प्रपंचों को एक बार भूला  तो बस भूल ही गया !तपस्या का आनंद एक बार जिसे मिल चुका हो उसका कहीं और मन ही नहीं लगता है !
 योगी कभी उद्योगी अर्थात व्यापारी नहीं हो सकता !
    कई बार कुछ लोगों को कहते सुना जाता है कि मैं योगी  भी हूँ व्यापार भी कर लेता हूँ किंतु ऐसे लोग झूठ बोल रहे होते  हैं वो अपने को और दूसरों को भी धोखा दे रहे होते हैं ऐसे लोग गृहस्थी में जाकर धन के अभाव में जो इच्छाएँ पूरी नहीं कर सकते थे ऐसे सारे भोग भोगने के लिए ही तो वे सांसारिक प्रपंचों में फँसते हैं अन्यथा गृहस्थियों व्यवहारों व्यापारों आदि सांसारिक प्रपंचों को भूल कर ईश्वर का चिंतन करने वाला कोई योगाभ्यासी  व्यापार आदि सांसारिक प्रपंचों में क्यों फँसेगा ।परस्पर विपरीत दिशा में जाने वाली दोनों नावों पर पैर रखकर नहीं चला जा सकता !
   केवल  कसरत व्यायाम को  योग नहीं कहा जा  सकता !
   शरीर मोड़ना मरोड़ना तो स्टंट दिखाने वाले या सर्कस वाले लोग भी बहुत अच्छा कर लेते हैं या जिम सेंटरों में शरीर भाँजने वाले लोग प्रतिदिन करते हैं फिल्मी जगत से जुड़े लोग ऐसी ही प्रक्रियाओं के तहत अपना शरीर हल्का और भारी कर लिया करते हैं किंतु ऐसे किसी भी सांसारिक प्रपंचों में फँसे व्यक्ति को या नट नागरों को योगी नहीं कहा जा सकता क्योंकि योग की खेती तो मन पर होती है ।इसीलिए ऐसी शारीरिक गतिविधियाँ योग हो भी नहीं सकती हैं और न ही हैं । 
योग करने के लिए शरीर स्वस्थ होना भी आवश्यक है !
   किसान मजदूर या अन्य परिश्रमी वर्ग को खाने की चिंता होती है किंतु पचाने की नहीं लेकिन जो वर्ग शरीरिक श्रम नहीं करता है उसे पचवाने के लिए व्यायाम का सहारा लेना पड़ता है जैसे शरीर में पानी की कमी हो जाती है तो पानी चढ़ाना पड़ता है खून की कमी हो जाती है तो खून चढ़ाना पड़ता है इसी प्रकार से शरीर में यदि परिश्रम की कमी हो तो परिश्रम करवाना पड़ता है । इसी परिश्रम कराने की प्रक्रिया को आज कल फैशनेबल लोग योग कहने लगे हैं । 
हाथ पैर हिला लेने वाले लोग अपने को योगी मानलेते हैं !
  व्यायाम शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत आवश्यक है और स्वस्थ शरीर से ही योग किया जा सकता है इसलिए योग करने के लिए व्यायाम आदि किसी भी प्रकार से शरीर स्वस्थ रखा  जाना चाहिए !किसानों मजदूरों या अन्य प्रकार से परिश्रम करने वालों को ऐसी कसरतों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है !

Sunday, 19 June 2016

महँगाई पर गरीबों का मजाक उड़ाते घूम रहे हैं उद्योगी जी !कहते हैं "पानी मिलाकर खाओ दाल !"

दाल पतली तो तब करें जब दाल हो किंतु यदि दाल ही न हो तो पतली कैसे करें उद्योगी जी ?
 अरे ! देशवासी  दाल खाएँ यदि वास्तव में इस बात की चिंता है तो चैरिटीचैरिटी चिल्लाते रहने वालेहजारों करोड़ के बाबा जी क्योंनहीं बटवा देते हैंगरीबों को दाल !
     जिस देश में अपने को फकीर कहने वाले बाबा लोग खुद तो मेवा मिष्ठान्न खा रहे  हों और सुख सुविधा पूर्ण जीवन जी रहे हों  और गरीबों को पानी मिलाकर दाल खाने की सलाह दे रहे हैं गरीबों से ऐसी आशा कर रहे हैं उद्योगी जी ! ग़रीबों की दाल रोटी पर ऐसा दृष्टिकोण !  इसका मतलब क्या यह नहीं हुआ कि जिस धनी देश में राजा महाराजा और सेठ साहूकार तो छोड़िए अपने को फकीर कहने वाले बाबालोग भी हजारों करोड़ इकठ्ठा कर लेते हों ऐसे भीरु देश में रहकर भी अपने बुद्धूपन के कारण तुम यदि गरीब ही बने रहे तो खाओ पानी मिलाकर दाल !अर्थात अपने कर्मों का फल खुद भोगो PM साहब को मत तंग करो !
         बंधुओ !उस देश के गरीबों  को पतली दाल खाने की सलाह दी जाए जिस देश में अरबोंपति फकीर हों !ऐसे  देश के रईसों को इसलिए धिक्कार है कि वो गरीबों की आवश्यक आवश्यकताओं की तो उपेक्षा करते जा  रहे हैं और बाबा बैरागियों को अरबोंपति बनाते  जा रहे हैं !आखिर क्यों क्या उपयोग है उनके पास धन का !रही बात व्यापार की तो व्यापार तो बहुत लोग कर रहे हैं उसमें एक संख्या और जुड़ गई !
     हमें याद रखना होगा कि भूख तो गरीबों को भी लगती है और भूख व्यक्ति को अंधा बना देती है और ऐसे अंधेपन  में कोई क्या करता है इसका होश उसे रहता नहीं है इसलिए अपराध मुक्त भारत बनाने के लिए हमें ग़रीबों की भी जरूरतें ध्यान रखनी होंगी !माना  कि  वे उन्हें स्वयं  कमाई करके पूरी करनी चाहिए किंतु यदि वे ईमानदार  और सीधे साधे लोग हैं व्यापारिक छल प्रपंच झूठ साँच बोलना उन्हें नहीं आता है तो इतना कर्तव्य तो हम सभी का है कि रोटी दाल उन्हें भी मिलती रहे उन्हें पानी मिलाकर दाल न खानी पड़े !देश को यह ध्यान रखना चाहिए
         कोई दूसरा कहे तो चल भी जाए किंतु देश की सरकार में अघोषित साझीदार बाबा जी महँगाई पर गरीबों का ऐसा मजाक उड़ावें कि "पतली दाल खाओ इससे दाल बचेगी !"ये असह्य है । 
       पढ़ें मेरा ये लेख -   
महँगाई घटाने भुखमरी हटाने एवं ग़रीबी मिटाने के लिए सरकार ने 
उठाया एक साहसी कदम !

Saturday, 18 June 2016

संस्कृत पढ़ाने वाले शिक्षकों को यदि संस्कृत परीक्षा में बैठा दिया जाए तो 90 प्रतिशत शिक्षक फेल हो जाएँगे !

  संस्कृत शिक्षा के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ !इसलिए संस्कृत न बोल पाने वाले संस्कृतशिक्षकों को तुरंत सेवामुक्त किया जाए !और नए योग्य लोगों को भर्ती किया जाए !
     संस्कृत एक भाषा है और भाषा बोलने से आती है जो शिक्षक बोल ही नहीं पाते हैं उन्हें संस्कृत आती क्या ख़ाक होगी ! आखिर ऐसे बुद्धू बकस संस्कृत शिक्षक लोग संस्कृत पढ़ने के लिए बच्चों को प्रेरित कैसे कर पाएँगे !बच्चे तो अपने शिक्षकों से ही प्रेरित होते हैं !
    जो शिक्षक अँग्रेज़ी अच्छी बोल लेते हैं उनके विद्यार्थी उनकी नकल करते हैं और उनकी प्रशंसा में कहते हैं कि अमुक शिक्षक अँग्रेजी फर्राटेदार बोल लेते हैं इसलिए बच्चे भी उनकी नकल करते करते बोलने लगते हैं फर्राटेदारअंग्रेजी !किंतु संस्कृत शिक्षकों के पदों की  अघोषित नीलामी होने के कारण योग्य लोग योग्य पदों तक पहुँच ही नहीं पाते हैं अयोग्य लोगों से संस्कृत पढ़वा रहीं सरकारें किंतु सरकारों की ऐसी मजबूरी क्या है !केवल खानापूर्ति के लिए अयोग्य शिक्षकों पर खर्च की जा रही है सैलरी !अरे !सरकार यदि ईमानदार है तो संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति पर पारदर्शी  नीति अपनावे और योग्य लोगों को अपनी प्रतिभा प्रदर्शन करने का अवसर दिया जाए !
    चूंकि समाज संस्कृत समझ नहीं पाता है इसलिए मंदिरों के पुजारी पंडे बाबा कथा भोगवती आदि लोग मूर्ख बनाते जा रहे हैं समाज को !किंतु स्कूलों में संस्कृत शिक्षा का स्तर सुधरते ही ऐसे पाखंडी समाज की भी धाँधली बंद हो जाएगी !अंधविश्वास की घटनाओं में कमी आएगी ।
     मंदिरों के पुजारी और धार्मिक स्थानों या तीर्थ स्थलों के पंडे शतप्रतिशत संस्कृत से अनजान होते हैं संस्कृत न जानने के कारण उनकी कराई  हुई पूजा का फल क्या मिलता होगा भगवान ही जाने !और यदि वो किसी तरह पूजा करवा भी लें तो संकल्प नहीं बोल सकते संकल्प का आधा अंश रटकर बोला भी जा सकता है वो यदि बोल भी लें तो बचा हुआ आधा हिस्सा बोलना उनके बश का इसलिए नहीं होता है क्योंकि वे जिसकी पूजा करवा रहे होते हैं "उनकी परेशानी क्या है पूजा कौन सी है किस देवता या ग्रह की है कितनी है किसलिए है "ये सारी चीजें रटकर नहीं बोली जा सकती हैं और न ही कहीं लिखी मिलती हैं क्योंकि ये सबकुछ सबका अपना अपना और अलग अलग होता है इतना रट पाना संभव ही नहीं है !
    ये बिलकुल उसी तरह की प्रक्रिया है जैसे कोर्ट में रजिस्ट्री आदि के कागज तैयार करने वाले लोग एक प्रोफार्मा टाइप का बनाए होते हैं उसी में अलग अलग क्लाइंटों के हिसाब से अलग अलग नाम गाँव पता आदि जोड़ते जाते हैं किंतु इतना करने के लिए भी तो जैसे अँग्रेजी जानना जरूरी होता है वैसे ही संकल्प बोलने के लिए संस्कृत जानना जरूरी होता है !
     संकल्प के साथ जोड़ी जाने वाली विषय सामग्री का ट्रांसलेशन कर पाना उन पंडे पुजारियों के बश का  ही नहीं होता है जिन्होंने संस्कृत नहीं पढ़ी है !यदि किसी को हमारी बात पर संशय हो तो आप अपने  घर से संबंधित पंडे पुजारी या पंडित जी को यह कह कर कोई पाँच वाक्य संस्कृत में अनुवाद(ट्रांसलेशन) करने के लिए उन्हें दें कि बच्चे को स्कूल में मिले हैं आप कर दीजिए ! अपने सामने बैठाकर करवाएँ तो उनके हाव भाव लेखन शैली और बातों से ही सच्चाई पता लग जाएगी बाकी बात तो बाद में होगी !
       अब आप स्वयं सोचिए कि जैसे रजिस्ट्री ही गलत हो रही हो तो उस जमीन पर क्रेता का अधिकार कितना होना चाहिए उसी प्रकार से संकल्प गलत होने पर पूजा कराने वाला तो बिलकुल खाली हाथ होता है । 
      हाँ संस्कृत विद्वानों का एक बड़ा वर्ग अभी भी ऐसा है जो संस्कृत जानता है और वो पूजा पाठ जैसे कर्म काण्ड के कार्यों में रूचि ले रहा है उन पर संदेह नहीं किया जा सकता है किंतु उनकी पहचान कैसे की जाए !ये कठिन काम है इसके लिए जैसे आप अच्छे डाक्टर खोज लेते हैं वैसे ही उन विद्वानों तक भी पहुंचा जा सकता है । 
     साधू संतों और कथावाचकों का संस्कृत ज्ञान - 
        साधू संतों और कथा वाचकों में पाँच प्रतिशत लोग ही संस्कृत के विद्वान हैं बाकी संस्कृत भाषा  के ज्ञान की दृष्टि से बौड़म हैं किंतु उनको कटघरे में इसलिए नहीं खड़ा किया जा सकता है क्योंकि वो कह देंगे  कि हमें तो भजन करना होता है वो किसी भी भाषा में किया सकता है यहाँ तो मंत्र प्रमुख होते हैं वो रट कर बोले जा सकते हैं और ध्यान तो किया ही जा सकता है !उनकी ये बात सच है किंतु जो साधू संत या कथा वाचक वेदों पुराणों शास्त्रों की चर्चा करते या करना चाहते हैं उनके लिए संस्कृत जानना बहुत जरूरी होता है !अन्यथा वो पढ़ेंगे कैसे !
    वैसे भी आजकल तो भागवत कथाओं में जब से भड़ुए घुस आए और भागवत का बैनर लगाकर 'भोगवत' कर रहे हैं वो !इस मौज मस्ती के काम में अब तो लवलहे लड़के लड़कियाँ इसीलिए कूदने लगे हैं कि इसमें कुछ पढ़ना नहीं पड़ता है और धर्म की आड़ में मौज मस्ती पूरी मिलती है संगीतप्रिय नारद जी को विश्वमोहिनी नहीं मिलीं किंतु इन्हें क्या पता मिल ही जाती हों !ये बात भी सच है इसमें केवल सजना सँवरना होता है जो जितना सुन्दर या जो जितना अधिक फूहड़ हो उसे उतने अधिक पूजने वाले लोग !क्योंकि अच्छे लोगों की भीड़ नहीं होती वो तो बहुत कम होते हैं रिजर्वेशन कोच में जनरल बोगी की अपेक्षा कितने कम होते हैं लोग ! 
       धर्मगुरुओं का संस्कृत ज्ञान -
        इस प्रजाति के अधिकाँश लोग अर्थात 99 प्रतिशत लोग धार्मिक मुद्दों पर बकवास करने के लिए टी.वी.चैनलों के द्वारा ही लाल पीले कलर करके वहीँ गढ़ लिए जाते हैं वही समझा दिया करते हैं कि किसको कितना भूत बनके आना है किसे कितने कलरों में आना है किसके गर्दन में कितने दर्जन किस किस बरायटी के कितने कितने रुद्राक्ष लादकर कर आना है ! कुछ लोगों के पास पैसा अधिक होता है वो धन नोचने के लिए टी.वी.चैनलों वाले लोग इन्हें मजबूरी में 'कुछनहीं' तो 'धर्मगुरु' सही वाली कहावत से उन्हें 'धर्मगुरु' या 'धर्माचार्य' कहने लगते हैं  और बहुरूपियों की तरह इन्हें ही वो ज्योतिषी, विद्वान् ,सिद्धयोगी आदि सभी वेदों शास्त्रों पुराणों मान्यताओं परंपराओं संस्कृतियों का ज्ञाता सिद्ध करके इन्हीं से हर विषय में हुल्लड़ मचवाया करते हैं !ऐसी बहसों का न कोई उद्देश्य होता है और न ही कोई परिणाम !न कोई शंका न समाधान !बेशर्मी पूर्वक चीखने चिल्लाने का अभ्यास जिनका जितना होता है ऐसी जगहों के लिए वही 'धर्मगुरु' और 'धर्माचार्य'आदि बना लिए जाते हैं !कभी कभी इनके भँवर में पढ़े लिखे साधू संत विद्वान आदि भी पड़ जाते हैं वो बेचारे इतने शरीफ होते हैं कि वो मौके की तलाश में ही बैठे रहते हैं तबतक हुल्लड़ी मार ले जाते हैं प्रथम स्थान ! 
      कुल मिलाकर इस प्रकार से चिंता जनक है संस्कृत अध्ययन अध्यापन की स्थिति किंतु स्कूलों में यदि संस्कृत की पढ़ाई की गुणवत्ता प्रयास पूर्वक सुधारी जाए तो जब बच्चे संस्कृत बोलने समझने लगेंगे तो संस्कृत से जुड़े पंडे पुजारियों पंडितों साधू संतों और बाबाओं का वर्गीकरण ठीक ठीक कर सकेंगे वे ! साथ ही इन लोगों को भी मजबूरी में ही सही फिर तो संस्कृत पढ़नी ही पड़ेगी !इसलिए स्कूलों में संस्कृत शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाना बहुत जरूरी है !इससे भाषा के साथ साथ संस्कृति की भी रक्षा हो सकेगी क्योंकि भारत का प्राचीन समस्त ज्ञान विज्ञान संस्कृत ग्रंथों में ही है ।
 इसी विषय में पढ़िए हमारा ये लेख -
    संस्कृत न बोल पाने वाले संस्कृतशिक्षकों को तुरंत सेवामुक्त करके बंद किया जाए संस्कृत शिक्षा के साथ खिलवाड़ !seemore... http://bharatjagrana.blogspot.in/2016/06/blog-post_6.html

राजनैतिक पार्टियों में भी किन्नरों जैसा जीवन जी रहे हैं कई प्रतिभा संपन्न बहुमूल्य लोग !

    किसी राजनैतिक पार्टी में किन्नर बनकर रहने से अच्छा है कि आप जनसेवा व्रती बनें और अपनी जीवंतता सिद्ध करें !
       बंधुओ ! सभी भाई बहनों से निवेदन है कि यदि आप राजनैतिक पार्टियों जुड़कर देश सेवा करना चाहते हैं उसके लिए आप किसी राजनैतिक पार्टी से जुड़े भी हैं किंतु वो पार्टी और उसके नेता आपको इतनी गिरी निगाह से देखते हैं कि  वो पार्टी संगठन के सभी पद और सरकार बनने के बाद सरकार के सभी पद वो खुद ले लेते हैं या अपने घर खानदान वाले या नाते रिश्तेदारों ,परिचितों या पैसे वालों को दे देते हैं या फिर पैसे लेकर बेच देते हैं !और आपको केवलवोट और वोटमाँगने वाला मात्र बनाकर रखना चाहते हैं और आपको पार्टी से केवल इसलिए जोड़े रखना चाहते हैं ताकि आप जैसे लोग उनका आदेश पाते ही उनके लिए भौंकने लगें जिससे उनका रूतबा कायम हो,उनकी प्रतिष्ठा बढ़े वो चुनाव जीतें  उन्हें महत्व मिले वो पद पावें और वो सब कुछ बनते रहें और आप उनके बनने खुशियाँ मनाते एवं जगह जगह उनका स्वागत करते घूमते रहें !क्या आप भी अपने को इतनी गिरी हुई निगाहों से देखते हैं यदि हम तो क्यों उनके पीछे पीछे घूमें ?
       ऐसे राजनैतिक पार्टियों के मालिक या नेता लोग आम समाज को यदि इतनी गिरी निगाह से देखते हैं कि उन्हें कोई पद प्रतिष्ठा देने लायक ही नहीं समझते हैं तो आम समाज को भी चाहिए कि वो उसी शैली में ऐसे घमंडी नेताओं और राजनैतिक पार्टियों को अपना भी परिचय दें !
    आप भी ऐसे नेताओं और पार्टियों का बहिष्कार करें  जो आप से कम पढ़े लिखे ,आपसे कम प्रतिभा संपन्न, आप से कम काम करने वाले ,आप से कम चरित्रवान, आप से कम अच्छा बोल लेने वाले ,नशा करने वाले, गाली गलौच करने वाले,गुंडा गर्दी करने वाले लोगों को पद प्रतिष्ठा और महत्त्व देने वाली पार्टियों से आप केवल बेइज्जती सहने के लिए जुड़े हैं क्या ?
     जहाँ आपका कोई मान सम्मान इज्जत प्रतिष्ठा ही न हो तो ऐसी पार्टी को आप तुरंत छोड़ कर शुरू कीजिए अपने निजी सामाजिक कार्य जीवंतता का परिचय दीजिए !यदि आपके अंदर वास्तव में क्षमता है तो आपके कामों से जनता खुश होगी अपने आप !ऐसे में आप किसी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ें या फिर निर्दलीय जनता आपको विजय अवश्य दिलवाएगी क्योंकि हार जीत जनता के वोटों से होती है न कि पार्टियों और नेताओं से !इसलिए आप अपनी प्रतिभा पहचानिए  पहचान बनाइए !
         

केंद्रीय कर्मचारियों की बढ़ेगी सैलरी ! महँगाई काबू करने एवं भुखमरी समाप्त करने के लिए सरकार ने उठाया एक साहसी कदम !

 सरकारों  सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारियों के पेट जिस दिन भर जाएँगे उस दिन ये देश सकून की सांस ले सकेगा !क्योंकि उस दिन भ्रष्टाचार नहीं होगा !
    सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी जैसे चाहें वैसे जनता के कमाए हुए धन को भोगें वो चाहें तो सैलरी लें सैलरी बढ़ा लें ,महँगाई भत्ता लें ,पेंशन लें तब भी न पूरी पर तो घूस से कमा लें !सरकारें जो योजनाएँ बनाती हैं सरकारी कर्मचारी जिस तरह काम करते हैं या सरकारी स्कूलों कार्यालयों में जैसे शिक्षाप्रद श्लोगन लिखवाए जाते हैं उससे तो लगता है कि  सरकारों में सम्मिलित नेता और सरकारी कर्मचारी ईमानदारी पूर्वक जनता के लिए कुछ करना चाह रहे हैं किंतु जाता सब इन्हीं लोगों की जेब में हैं जनता पहले भी खाली हाथ थी और आज भी खाली हाथ है सरकारें आती हैं चली जाती हैं कुछ नए लोगों के माथे पर मंत्री मुंत्री होने का तमगा लग जाता है बस इससे ज्यादा कोई परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ता है देश में !

   भ्रष्टाचार तो सरकारी तंत्र की अतिरिक्त कमाई का नाम है यही तो है सरकारों में सम्मिलित नेताओं और सरकारी कर्मचारियों का सैलरी के अतिरिक्त पार्ट टाइम व्यापार !भ्रष्टाचार की  कमाई में आम जनता सम्मिलित नहीं है ये ख़ुशी की बात है सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी जब तक चाहें तबतक भ्रष्टाचार का दोहन करें और जब चाहें तो बंद कर दें उनकी इच्छा !जनता इसमें क्या कह सकती है वही तो इस देश के मालिक लोग हैं !उनकी आफिसों में काम के समय भी सोने जैसा ठंडा ठंडा कूल कूल मौसम चाहिए बिजली बिल जो आवे सो आवे वो जनता भरेगी दूसरी ओर मई जून के महीने की दोपहर में भी किसान लू के थपेड़ों के बीच खुले आसमान में काम करता है गर्म गर्म पानी पीता है जब वो सरकारी किसी आफिस में किसी काम से जाता है तो ये बेशर्म बाबू लोग उसे लाइन में खड़ा कर देते हैं और घंटों खा जाते हैं उनके !कई बार तो चाय पानी के लिए पैसे माँगने लगते हैं । अरे बेशर्मों !किसान और मजदूरों के धैर्य की परीक्षा मत लीजिए अन्यथा यदि किसान ने भी हिम्मत तोड़  दी तो सोने की रोटियां खाओगे क्या ?
       'वेतनआयोग' किसानों का भी होता तो आत्महत्या क्यों करते किसान !सरकारी कर्मियों की तरह ही बढ़ा लिया करते वो भी अपना वेतन !
    ये स्वार्थी लोग गरीबों किसानों मजदूरों को पढ़ाते हैं "वसुधैव कुटुंबकं "का पाठ ! काश !ये वेतन आयोग को भी पढ़ाया गया होता तो उन्हें भी तो दिखाई पड़तीं गरीबकिसानों की आत्महत्याएँ !

      शायद उनके घमंडी स्वभावों में इस बात का भी एहसास होता कि गरीबों मजदूरों की मासिक आमदनी कितनी है क्या उतने में उनका हो पाता होगा गुजारा ! अपनी घर गृहस्थी चला लेते होंगे वो !अपने बच्चों को कैसे पालते होंगे !कैसे करते होंगें बच्चों के काम काज !कैसे मनाते होंगे तिथि त्यौहार !कैसे कराते होंगे बीमारी आरामी में अपने घर वालों का इलाज !कैसे खरीदते होंगे इतनी महँगी दाल सब्जी ! उनके दुलारे बच्चों के ओंठ तरस जाते होंगे बिना दूध के ! दूध के बिना बीत रहा होगा बचपन !फिर भी उनकी अनदेखी और सरकारी कर्मचारियों की बढ़ाई जा  रही है सैलरी ? हे सरकारी नीति निर्धारको !तुम ग़रीबों को कितनी भी गिरी निगाह से देखो किंतु भारत माता की संतान वो भी हैं ये मत भूलना !बढ़ा लो अपनी सैलरी किंतु याद ये भी रखना कि मातृभूमि को जब जरूरत पड़ेगी तब तुम ज्यादा सैलरी भोगने वालों से पहले अपना और अपनों का बलिदान कर देंगे वो !अरे सरकारी बाबुओ ! उन्हें इतनी गिरी निगाह से मत देखो !वो गरीब हैं गद्दार नहीं हैं ! उन्होंने अपने आचार व्यवहार से अपने कर्तव्य का पालन किया है किंतु वो फलित नहीं हुआ तो इसमें उनका क्या दोष !         
    दूसरी ओर सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाना आखिर ऐसा वो कर क्या रहे हैं देश के लिए न तो अपने काम काज से जनता को खुश रख पा रहे हैं और न ही अपने अपने विभागों से भ्रष्टाचार ही मिटा पा रहे हैं फिर भी सरकार उड़ेले जा रही है सैलरी आखिर क्यों ?उनके पास अभाव आखिर क्या है ?उनकी सैलरी बढ़ाना इतना जरूरी क्यों हैं ?आम जनता की कमाई को सामने रखकर सोचिए कि उनसे कितने गुना अधिक वेतन अपने कर्मचारियों को देना चाहती है सरकार !ऊपर से सरकारी विभागों में काम क्या और कितना होता है ये इंसान तो छोडिए भगवान को भी नहीं पता है फिर भी सरकार खुश है आखिर उनके किस व्यवहार से जनता को भी तो पता लगे !    जब  जनता उनके काम से खुश नहीं है भ्रष्टाचार कम होने का नाम नहीं ले रहा है आम लोगों की आमदनी से बीसों गुना अधिक सैलरी पहले से ही चली आ रही है फिर बढ़ाने की जरूरत क्या है ? सरकार के पास पैसा इतना अधिक हो गया है या वो भूखों मरने की कगार पर आ गए हैं आखिर आत्म हत्याकरने वाले किसानों को भूलकर केवल सरकारी कर्मचारियों पर इतनी मेहरबानी क्यों ?अफसरों की भी कुछ जिम्मेदारी होती है क्या ? अफसर भी कुछ काम करते हैं क्या ? सरकार उन्हें काम के लिए सैलरी देती है क्या ?


  सरकारों में सम्मिलित लोग अपने अधिकारियों कर्मचारियों से यदि जनता के काम नहीं करवा पाते हैं तो उन्हें सैलरी क्यों देते हैं उनकी छुट्टी करके नई भर्तियाँ क्यों न करें !यदि वे भ्रष्टाचारी नहीं हैं तो !

  सरकार के हर विभाग में भ्रष्टाचार के द्वारा अंधाधुंध जनता का शोषण हो रहा है सरकार उसे रोक  नहीं पा रही है फिर भी अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाए जा रही है आखिर क्यों ?

     स्कूलों में जनता के बच्चों को पढ़ाई नहीं मिलती अस्पतालों में जनता को दवाई नहीं मिलती डाक खाने का काम कोरियर से करवाना पड़ता है !ये सरकारी अधिकारी कर्मचारी सरकारी टेलीफोन इंटरनेट इतने बिगाड़े रहते हैं ताकि लोग यहाँ से कटवाकर प्राइवेट कंपनियों की  सेवाएं लेते रहें फिर भी इन्हें भारी भरकम सैलरी देती है सरकार आखिर किस काम की !
    अफसर लोग जनता के किस काम आते हैं वो करते आखिर क्या हैंजनता के काम काज में अफसरों की कोई विशेष  भूमिका ही नहीं दिखती है !अपने अपने पदों की ठसक ,रुतबा आदि  दिखाने एवं सुख सुविधाओं को भोगने में व्यस्त रहते हैं अफसर !जनता से लिया गया सुविधा शुल्क का पैसा सरकारों तक पहुँचाने के माध्यम बने रहते हैं अफसर ! अफसरों के द्वारा वसुलवाई  गई  उगाही की भारी भरकम धनराशि अकेले न पचा कर अपितु सरकारों में सम्मिलित लोग महँगाई भत्ता सैलरी वृद्धि आदि रूपों में दसांश लौटा दिया करते हैं उन्हीं  अफसरों व अन्य सरकारी कर्मचारियों को ! ये सब कुछ बिना लिखा पढ़ी के चलने के कारण इसे कहना गैर कानूनी है किंतु सहना कानूनी है !
     अफसरों की भूमिका -शिक्षा विभाग  के अफसर यदि स्कूलों में सप्ताह में एक चक्कर भी लगाते तो क्या सरकारी शिक्षा व्यवस्था की ये दुर्दशा होती !और यदि शिक्षा की ही भद्द पिटती जा रही है तो अफसरों का काम क्या है किस बात की दी जा रही है इन्हें सैलरी !
   चिकित्सा की योजनाएँ चाहें जितनी बनें किंतु वो लागू हो रही हैं या नहीं ये न सरकारों में सम्मिलित लोग देखते हैं और न अफसर !जनता की कोई सुनता नहीं है ऐसे अफसरों को सैलरी देने की जरूरत क्या है ?
     डॉक, बैंक रेलवे आदि सभी सरकारी विभागों में  काम कराने वालों की भीड़ लगी होती है काम करने वाला बाबू जब चाहता है तब 'नेट' और 'प्रिंटर' ख़राब होने का बहाना बना कर कभी भी उठ खड़ा होता है और जनता के काम करने को मना  कर देता है जनता बेचारी देखकर रह जाती है उसका मुख !ऐसे विभागों में कर्म चारियों की सैलरी पर करोड़ों खर्च हो रहा होता है किंतु एक प्रिंटर का बहाना बनाकर काम बंद कर दिया जाता है ऐसे लोगों पर लगाम लगाने की किसी अधिकारी की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए क्या ?और यदि नहीं तो  इन अधिकारियों को सैलरी किस बात की?
   टेलीफोन विभाग में अधिकारियों का जनता के काम से कोई लेना देना नहीं होता है सब AC में  बैठे बैठे मस्ती काट रहे होते हैं जनता के काम के लिए जिम्मेदार लाखों में सैलरी लेने वाले इन  अधिकारियों को काम करना तो दूर जनता के मुख से काम सुनना पसंद नहीं है धूल मिट्टी से सने शरीरों वाली आम जनता को ये अपने वेलडेकोरेटेड कमरों में घुसने देना पसंद नहीं करते ऐसे कैबिन बनाए क्यों गए तुड़वाए क्यों नहीं जाते !और ऐसे रुतबा पसंद जिम्मेदारी न समझने वाले अधिकारियों को सैलरी क्यों देती है सरकार !
    अचानक बरसात हो जाने पर बिजली चली जाती है अधिकारी आफिसों में राम राज्य भोग रहे होते हैं  लाइनमैंनों से जूझ रही होती है जनता ,जो पैसे देता है उसकी फाल्ट ठीक की जाती है बाकी जब होगी तब होगी इसके लिए जिम्मेदार लोगों की सैलरी क्यों ढो रही है सरकार !इन्हें बाहर क्यों नहीं करती !
    रोडों पार्कों या सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण जब किया जाता है तब अधिकारी कर्मचारी ऐसे लोगों से ऐसे गैर कानूनी कामों के करने की अनाप शनाप कीमत वसूलते हैं फिर निर्माण हो जाने के बाद उन्हें अनलीगल बता बताकर हफता महीना वसूलते हैं जब कोई कम्प्लेन करता है तो कहते हैं लिखित दो जब वो लिखित देता है तो अतिक्रमण करने वाले को भेज देते हैं एक कॉपी फिर वो निपटता है कम्प्लेनर से !तब होते हैं अपराध !सरकार ऐसे गैर जिम्मेदार एवं अतिक्रमण करवाने के लिए दोषी अफसरों को चिन्हित करके इनकी छुट्टी क्यों नहीं कर देती !सभी प्रकार के अपराधों की जड़ हैं ये !
   एक आदमी को कुछ लोगों ने मारा उसका सर फट गया सोलह टाँके आए दूसरे पक्ष ने दरोगा जी का आर्थिक पूजन कर दिया तो दरोगा जी ने घायल को बुलवाया बोले तू क्या खर्च करेगा उसने कहा मेरे पास कुछ नहीं है तो दरोगा जी ने कहा तो तू घर बैठ इस केस में कुछ नहीं होगा क्योंकि जो मैं लिखूंगा केस उसी पर चलेगा अपना घाव तू कितने महीने हरा रख लेगा जो जज को दिखाएगा और जज भी तो इंसान ही होता है फैसला सुनाने का सेवा पानी तो  चाहिए उसे भी और जब तेरे पास कुछ है ही नहीं तो कुछ बेइज्जती थाने में आकर करवाई अब बची खुची कोर्ट में करवाएगा क्या !यहीं माफी माँग ले इन दबंग लोगों से नहीं तो  ये फिर मारेंगे तुझे !सरकार तुझे सिक्योरिटी देगी क्या !ज्यादा से ज्यादा तू फिर रिपोर्ट करेगा जैसे अबकी निपट रहा है वैसे ही फिर निपट जाएगा जब देने के लिए तेरे पास आज कुछ नहीं है तो तब कहाँ से आ जाएगा !फटाफट माँग माफी इनसे कान पकड़ बोल कि आज के बाद आपकी शिकायत करने थाने कभी नहीं आऊँगा !
     ऐसे लोगों के बलपर सरकार अपराध रोकना चाहती है !आखिर इनकी छुट्टी क्यों नहीं करती इनके ऊपर सैलरी जाया क्यों कर रही है सरकार ?   
  ये लोकतंत्र है क्या? जहाँ जनता की राय जानने की जरूरत ही नहीं समझी जाती !जनता को तो पशुओं की तरह बाँध दिया गया है लोकतंत्र के खूँटे में ,बाबू लोग ले रहे जन अधिकारों को नीलाम करने के निर्णय !बारे लोकतंत्र !सरकारी नौकरी हो या राजनीति इसे अपने पवित्र पूर्वज सेवा मानते थे किंतु यदि सेवा है तो सैलरी किस बात की ! और सैलरी है तो सेवा कैसी !
    वैसे भी जिन्हें करोड़पति बनना है वो जाकर देखें  रोजगार व्यापार बड़े बड़े उद्योग ! कमाएँ करोड़ों अरबों कौन रोकता है उन्हें किंतु सेवाकार्य को धंधा बना देना लोकतंत्र के साथ धोखा है !उस पर भी कामचोरी उस पर भी घूस का प्रचलन!साठ हजार सैलरी लेने वाले सरकारी प्राथमिक शिक्षकों पर भरोसा न करने वाले देशवासी दस पंद्रह हजार की सैलरी वाले प्राइवेट शिक्षकों पर भरोसा करते हैं! पीएचडी किए लोग आज  चपरासी की नौकरी तलाश रहे हैं और चपरासी बनने लायक लोग गुलछर्रे उड़ा रहे हैं सरकारी स्कूलों में ! इसमें बहुत बड़ा वर्ग उनका है जिन्हें जो विषय बच्चों  को पढ़ाना है वो शिक्षकों को स्वयं नहीं आता है ।जब योग्य एवं सस्ते शिक्षक सहज उपलब्ध हैं फिर भी सरकार को ऐसे शिक्षक ही मंजूर हैं वो भी अधिक सैलरी देकर !सरकार में बैठे लोगों की अपनी जेब से जाता होता तो भी क्या ऐसा ही करते सरकारों में बैठे जनता के प्रति सरकारी गैर जिम्मेदार लोग !
   सैलरी बढ़ाते समय ईमानदारी पूर्वक देशवासियों की ओर भी देखा जाए !देश वासियों की भी परिस्थिति समझी जाए!किसान क्या ख़ुशी ख़ुशी कर रहे हैं आत्म हत्या !इस महँगाई में बच्चे कैसे पाल रहे होंगे गरीब लोग!ये निर्लज्जता नहीं तो क्या है कि जनता के खून पसीने की कमाई से दी जाने वाली सैलरी के विषय में भी जनता की राय जाननी जरूरी नहीं समझी जाती है आखिर क्यों ? विधायकों, सांसदों और  कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने के लिए  कराइए जनमत संग्रह !जानिए  जनता की भी राय !

  
   बंधुओ ! सैलरी किसी को भी दी जाए वो देश वासियों के खून पसीने की कमाई होती है !किसी की भी सैलरी निर्धारित करते समय क्यों न कराया जाए जनमत संग्रह !  

     ये कैसा लोकतंत्र !जहाँ जनता के मत की परवाह ही न हो !सैलरी बढ़ाने की बात सरकारी कर्मचारियों की हो या सांसदों विधायकों की इसका फैसला खुद क्यों ले लेती हैं सरकारें !भारत लोकतांत्रिक देश है इसके लिए क्यों न कराया जाए जनमत संग्रह ! 
   हजारों लाखों की सैलरी पाने वाले लोगों की सैलरी बढ़ाई  जाए  दूसरी ओर अपने भूखे बच्चों का पेट न भर पाने की पीड़ा न सह पाने वाले किसान आत्महत्या करें तो करते रहें !बारे लोकतंत्र !!
 "अंधा बाँटे रेवड़ी अपने अपने को देय !"
    बारी सरकारें बारी सरकारी नीतियाँ धिक्कार है ऐसी गिरी हुई सोच को!सैलरी बढ़ाने की सिफारिश करने वाले लोग सरकारी जिनकी सैलरी बढ़नी होती है वो लोग सरकारी जिन्हें सैलरी बढ़ाकर देनी है वो तो साक्षात सरकार हैं ही !बारे लोकतंत्र ! 
  जो सांसद विधायक नहीं हैं और सरकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन्हें जीने का अधिकार भी  नहीं है क्या या वे इंसान नहीं हैं क्या !वो गरीब ग्रामीण किसान मजदूर ऐसी महँगाई में कैसे जी रहे होंगें !कभी उनके विषय में भी सोचिए !
   केवल अपना और अपनों का ही पेट भरने के लिए नेता बने थे क्या !किसी बेतन आयोग की सिफारिशें हों या कुछ और बहाना बनाकर सैलरी बढ़ाने की बात हो किंतु ऐसे निर्णय सरकार और सरकारी कर्मचारी ही मिलकर क्यों  ले लेते हैं इसमें जनता को सम्मिलित क्यों नहीं किया जाता है ! 
   राजनीति हो या सरकारी नौकरी यदि ये सर्विस अर्थात सेवा है तो सैलरी क्यों और सैलरी है तो सेवा कैसी !सेवा  और सैलरी साथ साथ नहीं चल सकते !और यदि ऐसा है तो धोखा है !सांसद विधायक या सरकारी सर्विस करने वाले लोग सेवा करने के लिए गए और आज हजारों लाखों की सैलरी उठा रहे हैं फिर भी अपने को सेवक बताते हैं! देश वासियों के साथ इतना बड़ा कपट !धिक्कार है ऐसी सरकारों को जो केवल अपनी और अपने कर्मचारियों की ही चिंता रखती हों बाकी देशवासियों को इंसान ही न समझती हों !बारेलोकतंत्र !!
   सरकारों में सम्मिलित नेताओं और सरकारी कर्मचारियों की आपसी  मिली भगत से एक दूसरे की या फिर अपनी अपनी सैलरी बढ़ाने का ड्रामा सहना आम जनता के लिए अब  दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा है जानिए क्यों ?

     प्रजा प्रजा में भेद भाव का तांडव अब नहीं चलने दिया जाएगा !जनता तय करेगी सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों की जिम्मेदारियाँ ! काम करने के बदले जो सरकारी कर्मचारी जनता से घूस लेकर उसका कुछ हिस्सा सरकारों को भी देते हैं बदले में सरकारें उनकी सैलरी सुविधाओं का ध्यान रखती हैं ।इसलिए ऐसे किसी भी प्रकार के आदान प्रदान का विरोध किया जाएगा !कोई  बेतन आयोग बने या कुछ और इनमें आम जनता तो सम्मिलित नहीं की जाती है वो सब सरकारी लोग  होने के कारण सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ा लेते हैं और किसानों को दिखाते हैं पैंतीस पैंतीस रूपए के चेक रूपी ठेंगे ! बारे लोक तंत्र !
   सांसदों ,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाकर गरीबों को अब और अधिक जलील नहीं होने दिया जाएगा !

       भारत माता को जितने दुलारे सांसद विधायक एवं अन्य सरकारी कर्मचारी हैं उससे कम दुलारे देश के किसान और मजदूर नहीं हैं । जो किसान भारत माता के सपूतों के पेट भरता है उसे जलील करना कहाँ तक ठीक है जो मजदूर देश वासियों की सेवा के लिए अपना खून पसीना  बहाता है बिल्डिंगें बनाता है रोड बनाता है नदी नहरें बनाता है भारत माता के आँचल को स्वच्छ और पवित्र रखने के लिए देश की साफ सफाई में लगा रहता है पेड़ पौधे लगाकर खेतों में फसलें उगाकर देश को हरा भरा बनाता है वातावरण को शुद्ध बनाने का प्रयास करता है । भारत माता को सजा सँवारकर देश का सम्मान बढ़ाता है देश को गौरव प्रदान करता है देश को रोग मुक्त बनाता है सांसदों ,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाकर ऐसे किसानों मजदूरों को जलील किया जाना कहाँ तक ठीक है ! 
    यह जानते हुए भी कि अधिकाँश सांसद ,विधायक एवं सरकारी कर्मचारी अपने अपने दायित्वों का निर्वाह ठीक से नहीं कर रहे हैं ,काम न करने, हुल्लड़ मचाने, हड़ताल करने , धरना प्रदर्शन करने तथा अपनी माँगें मनवाने एवं विरोधियों से माँफी मँगवाने की जिद में अपना समय सबसे अधिक बर्बाद करते हैं वे !वो भी सरकारी सैलरी भोगते हुए सरकारी सुख सुविधाएँ लेते हुए भी ड्यूटी टाइम में इस प्रकार के मनोरंजन में सबसे अधिक समय बर्बाद करते हैं कुछ तो सरकारी सुरक्षा के घेरे में रहते हुए भी ऐसे आडम्बर करते हैं ! ये कहाँ तक उचित है ? आम जनता की आय के आस पास आवश्यकतानुशार रखी जाए सांसदों विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी !
      आम जनता की मासिक आय यदि दो हजार है सरकारी अफसरों कर्मचारियों की सैलरी भी अधिक से अधिक दो गुनी चौगुनी कर दी जाए किंतु उसे सौ गुनी कर देना आम जनता के साथ सरासर अन्याय है !
     यदि किसी ने शिक्षा के लिए परिश्रम किया है तो उसका सम्मान होना ही चाहिए इससे इंकार नहीं किया जा सकता किंतु किसी का सम्मान करने के लिए औरों को अपमानित करना कहाँ तक ठीक है !उसमें भी उस वर्ग पर क्या बीतती होगी जो IAS,PCS जैसी परीक्षाओं में बैठता रहा किंतु बहुत प्रयास करने पर भी सफल नहीं हो पाया !या Ph.D.की किंतु नौकरी नहीं लग पाई जबकि उसके साथी की लग गई उसकी तो सैलरी लाखों में और दूसरे को हजारों नसीब नहीं होते !आखिर उसकी गलती क्या है !वो भी तब जबकि सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है जिसे रोकने में अब तक की सरकारें नाकामयाब रही हैं उसका दंड भोग रहे हैं पढ़े लिखे बेरोजगार लोग !आखिर उनकी पीड़ा कौन समझे !  कुछ बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को छोड़ कर सिक्योरिटी किसी को क्यों मिले और मिले तो हर किसी को मिले ! 
      वर्षा ऋतु में छै छै  फिट ऊँची बढ़ी फसलें में छिपे हिंसक जीवों से , आसमान से कड़कती बिजली से , पैरों के नीचे बड़ी बड़ी घासों में छिपे बैठे बिशाल सांपों से भयंकर भय होते हुए भी रात के घनघोर अँधेरे में खेत से  पानी निकालने के लिए कंधे पे फरुहा रख कर निकल पड़ते हैं किसान ! जहाँ हर पल मौत से सामना हो रहा होता है जिनके परिश्रम से देश के अमीर गरीब सबका पेट पलता  है !उनकी कोई सुरक्षा नहीं दूसरी ओर साफ सुथरे रोडों  के बीच सरकारी आवासों में आराम फरमा रहे नेताओं को दी जा रही है सिक्योरिटी इसे क्या कहा जाए !वैसे भी जिन शरीरों को रखाने के लिए जनता को इतनी भारी भरकम धनराशि खर्च करने पड़ रही हो ऐसे बहुमूल्य शरीरों का बोझ जनता पर डालने की अपेक्षा इन्हें भगवान को वापस करने के लिए ही प्रार्थना क्यों न की जाए !
 अब बात सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ने बढ़ाने की !

    आज थोड़ी भी महँगाई बढ़ी या त्यौहार पास आए तो महँगाई भत्ता केवल उनके लिए बाकी देशवासियों को बता देते हैं कि तुम्हारा शोषण ब्राह्मणों ने किया है तुम उन्हीं के शिर में शिर दे मारो !
    भारत माता के परिश्रमी एवं ईमानदार सपूत अकर्मण्य सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बोझ आखिर कब तक ढोते रहेंगे ?

    गरीब किसान मजदूर या गैर सरकारी लोग जो दो हजार रूपए महीने भी कठिनाई से कमा  पाते हैं वो भी दो दो  पैसे बचा कर अपने एवं अपने बच्चों के पालन पोषण से लेकर उनकी   दवा आदि की सारी व्यवस्था करते ही हैं उनके काम काज भी करते हैं और ईमानदारी पूर्ण जीवन भी जी लेते हैं ।जिन्हें नौकरी नहीं सैलरी नहीं उन्हें पेंशन भी नहीं !
   अफसरों को एलियनों की तरह दूसरी दुनियाँ का जीव बनाकर क्यों परोसा जा रहा है समाज में ?आखिर उन्हें आम जनता से घुलमिल कर क्यों नहीं रहना चाहिए !आज के जीवन में अफसरों का समाज को सीधा कोई सहारा नहीं है क्योंकि अफसर जनता से मिलते ही नहीं हैं बात क्या सुनेंगे और काम क्या करेंगे !आफिसों में कमरे पैक करके बैठने वाले अफसरों से आम जनता को  क्या आशा !वो तो केवल नेताओं की भाषा समझते हैं !बाकी जनता के प्रति कहाँ होती है इंसानी दृष्टि !

  अफसर AC वाले कमरों में बिलकुल पैक होकर रहते हैं जिन्हें खोल कर नहीं रखा जा सकता इससे आम जनता अफसरों के कमरों में घुसने से डरा करती है और यदि घुस भी पाई तो वो आफिस उनके प्राइवेट रूम की तरह सजा सँवरा होता है जहाँ पहुँच कर आम जनता को अपराध बोध सा हुआ करता है उस पर  भी किसी ने थोड़ा भी कुछ कह दिया तो बेचारे  डरते हुए बाहर आ जाते हैं क्या सरकारी अफसरों का रोल केवल इतना है कि जनता को झिड़क झिड़क कर भगाते रहें बश !आखिर उनका चेंबर अलग करने की जरूरत क्या है आम जनता से घुल मिल कर काम करने में उनकी बेइज्जती क्यों समझी जाती है ?
    देश की जनसँख्या के एक बहुत बड़े बर्ग को आज तक एक पंखा नसीब नहीं है ,सरकारी आफिसों के AC रोककर उन तक क्यों न पहुँचाई जाए बिजली आखिर वो भी तो इसी लोकतंत्र के अंग हैं उनके भी पूर्वजों ने  तो लड़ी होगी आजादी की लड़ाई !उस आजादी को देश की मुट्ठी भर आवादी भोग रही है आखिर क्यों ?ऊपर से सैलरी बढ़ाने का फरमान !बारे लोकतंत्र !!
 सामाजिक सुरक्षा की आशा पुलिस विभाग से कैसे की जाए !आखिर वो भी तो सरकारी कर्मचारी ही हैं !
      आखिर पुलिस से ही ईमानदार सेवाओं की उम्मीद क्यों ? वे क्यों और कैसे बंद करें अपराध और बलात्कार ! 
     जब सरकारी शिक्षक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं तो मदद कर रहे हैं प्राइवेट प्राथमिक स्कूल !अन्यथा उनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती क्यों जा रही है ! इसीप्रकार से सरकारी अस्पतालों के बदले चिकित्सा सेवाएँ सँभाल रहे हैं प्राइवेट नर्सिंग होम !सरकारी डाक विभाग की इज्जत बचा रहे हैं कोरिअर वाले ! दूर संचार विभाग विभाग की मदद कर रही हैं प्राइवेट मोबाईल कंपनियाँ !जबकि पुलिस विभाग को तो खुद ही जूझना पड़ता है आखिर उन्हें भी तो सरकारी कर्मचारी होने का गौरव प्राप्त है वो क्यों सँभालें अपने सरकारी नाजुक कन्धों पर !प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी भी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं!फिर भी सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ानी जरूरी है आखिर क्यों ? 
    सुविधाओं के अभाव की आड़ में काम न करने वाले सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने का औचित्य क्या है ? 
    सरकारी विभागों में एक छोटी सी कमी का बहाना ढूँढ़ कर लोग दिन दिन भर के लिए अघोषित छुट्टी मार लिया करते हैं ऐसे लोगों की सैलरी बढ़ाई जाती है क्यों ?आज सरकार का कोई विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार नहीं है फिर भी सरकारें बढ़ाती जाती हैं उनकी सैलरी आखिर क्यों ?
   जनता से कहा जाता है कि CFL जलाओ बिजली बचाओ !जबकि सरकारी आफिसों में AC लगाने का प्रयोजन क्या है ?
 सरकारीविभागों के आफिस काम करने के लिए हैं या कि सुख भोगने के लिए ! 

     सरकारी आफिसों के AC जितनी बिजली चबा जाते हैं उतने में पूरे देश को प्रकाशित किया जा सकता है और सबको पंखे की सुविधा उपलब्ध कराई  जा सकती है आखिर ग़रीबों को पंखा क्यों नहीं चाहिए वो भी अखवार पढ़ते होंगे उन्हें भी डेंगू का भय सताता होगा ! किंतु बेचारे क्या करें देश की बेशर्म मल्कियत भोग रही है आजादी !सरकारी विभागों के AC नहीं बंद किए जा सकते आम आदमी से कहा जाता है CFL जलाओ बिजली बचाओ !दूसरी रोड लाइट कहो दिन भर जलती रहे !आखिर वो सरकारी कर्मचारी होने के नाते देश के मालिक हैं सब कुछ कर सकते हैं ग़रीबों पर ऐसा अत्याचार आखिर कैसे सहा जाए !

   ACमें रहने वाले लोग आलसी हो जाते हैं काम करना उनके बश का नहीं रह जाता आयुर्वेद के अनुशार ठंडा खान पान रहन सहन आलस्य बढ़ाता है और निद्रा लाता है । AC वाले विभागों में कर्मचारियों से जनता गिड़गिड़ाया करती है लंबी लंबी लाइनें लगी रहती हैं अफसर कैमरे में सब कुछ देख रहे होते हैं किंतु अपने कमरे का दरवाजा खोलकर आम जनता से उसकी समस्याएँ पूछने में तौहीन समझते हैं ऐसे लोग फील्ड पर जाकर सरकारी कामों की क्वालिटी अच्छी करने का प्रयास करेंगे इसकी तो उम्मींद भी नहीं की जानी चाहिए !
     कुल मिलाकर सरकारी कर्मचारियों की पचासों हजार की सैलरी ऊपर से प्रमोशन उसके ऊपर महँगाई भत्ता आदि आदि और उसके बाद बुढ़ापा बिताने के लिए बीसों हजार की पेंसन ! इतने सबके बाबजूद सरकारी कर्मचारियों के एक वर्ग का पेट नहीं भरता है तो वो काम करने के बदले घूँस भी लेते हैं इतना सब होने के बाद भी सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक पढ़ाते  नहीं हैं अस्पतालों में डाक्टर सेवाएँ  नहीं देते हैं डाक विभाग कोरिअर से पराजित है दूर संचार विभाग मोबाईल आदि प्राइवेट विभागों से पराजित है जबकि प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं। ऐसी परिस्थिति में सरकारी लोगों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाते रहना कहाँ तक न्यायोचित है !
   सरकारें जितने भी शक्त से शक्त कानून बनाती हैं उससे व्यवस्थाओं में सुधार तो होता नहीं दिखता हाँ सरकारी कर्मचारियों को कमाने के लिए एक नई खिड़की जरूर खुल जाती है !सरकारी लोग उस गलती के नाम पर भी पैसे माँगने लगते हैं गलती सुधारने पर ध्यान किसका होता है और हो भी क्यों यहाँ देश उनका अपना तो है नहीं  वो तो भाड़े पर सेवाएँ दे रहे हैं और किराए के टट्टू तो किराए  करेंगे काम !
       बंधुओ !देश हमारा अपना परिवार है हम सब लोग यहाँ मिलजुल कर रहते हैं हम सबका हमारे सबके प्रति आत्मीय व्यवहार करने का कर्तव्य है  इस भावना के बिना पुलिस के लट्ठ के बलपर या कानूनी शक्ति के आधार पर जबर्दश्ती किसी से काम तो लिया जा सकता है सेवा नहीं सेवा के लिए तो समर्पण चाहिए और समर्पण तन और मन से नहीं अपितु आत्मा से होता है जिनकी आत्मा पुण्यों से  प्रक्षालित होती है वे अपने से अधिक दूसरों के दुःख का एहसास स्वयं करते हैं वे किसी भी वर्ग के क्यों न हों ! सरकारी कर्मचारियों में भी आत्मवान लोग हैं किंतु उनकी संख्या कम है दूसरी बात वो विवश हैं वो स्वतंत्र होते तो हमारा देश भी वास्तव में आज लोकतंत्र होता !