Tuesday, 21 November 2017

आकृतियों शब्दों समय

समय और शब्दों का संबंधों के बनने बिगड़ने में बहुत बड़ा महत्त्व !
    'शब्दविज्ञान' भारत की प्राचीन परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा है इस आधार पर किसी प्रकरण पर विचार विमर्श करते समय संबंधित लोगों के मुख से निकले पहले शब्द का पहला अक्षर बहुत महत्वपूर्ण होता है उस अक्षर के आधार पर उस प्रकरण में उस व्यक्ति के द्वारा भविष्य में किए जाने वाले योगदान का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
     इसी विधा के आधार पर किसी व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर का अनुसंधान करके उसी के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यह व्यक्ति किस देश शहर गाँव आदि में कितना संतुष्ट रह सकता है एवं किस संगठन राजनैतिकपार्टियाँ  संस्थाएँ  परिवार आदि के विकास में कितना योगदान दे सकता है !साथ ही किस व्यक्ति के साथ इसका कैसा व्यवहार रहेगा एवं कौन व्यक्ति इसके साथ कैसा व्यवहार करेगा ?
 इसी नाम के आपसी सामंजस्य न बैठ पाने के कारण बहुत लोगों ने अपनों के अपनेपन को खो दिया है इससे वैवाहिक जीवन नष्ट हो रहे हैं परिवार बिखरते जा रहे हैं समाज टूटता जा रहा है !जब नाम विज्ञान के विचार की परंपरा थी तब कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे सभी दूसरे के साथ शांति पूर्ण ढंग से रह लिया करते थे !
     कई राजनैतिकपार्टियाँ संगठन  संस्थाएँ आदि इसी नामविज्ञान का दंश आज भी झेल रहे हैं जिनमें या तो विभाजन हो चुके हैं या विभाजन के लिए तैयार बैठे हैं !ऐसे तथ्य तर्कों प्रमाणों अनुभवों उदाहरणों के साथ यदि कभी किसी उचित मंच पर रखना प्रारम्भ किया जाए तो आम समाज के शिक्षित अशिक्षित आदि सभी वर्ग के लोग बहुत बड़ी संख्या में शब्दविज्ञान के विशाल प्रभाव को स्वीकार करने पर विवश होंगे !
       प्राचीनकाल में संभवतः इसीलिए नामकरण संस्कार की परंपरा थी जिसके आधार पर 'जन्मनाम' तो निश्चित हो जाता था किंतु व्यवहार के लिए पुकारने का नाम अलग से ऐसा रख लिया जाता था जिससे घर के सम्पूर्ण सदस्यों के साथ मधुर वर्ताव बना रहे !इसीलिए विवाह के बाद कन्या का नाम बदलने की परंपरा कुछ समाजों समुदायों में आज भी है !
     जिस ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का नाम उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर रखा गया वो जीवंत हो उठे बाकी  जिनका जैसा सामंजस्य उनको वैसी सफलता !रामचरित मानस में इस विधा का अधिक से अधिक पालन किया गया है वहाँ  पात्रों के नाम बदल पाना संभव न था इसलिए गोस्वामी जी ने घटनाओं और पात्रों के संवादों में आवश्यकतानुसार पात्रों के पर्यायवाची शब्दों का चयन किया है !
      ऐसी परिस्थिति में नामविज्ञान या शब्दविज्ञान के महत्त्व को समझते हुए सरकारी स्तर पर ऐसे अनुसंधान कार्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !

                       समय और आकृतियों का स्वभाव पर प्रभाव !

     समय बदलने से स्वभाव बदल जाता है और स्वभाव के अनुशार आकृतियाँ बदलती रहती हैं !जैसे कुछ स्वभाव स्थिर होते हैं वैसे ही कुछ आकृतियाँ भी स्थिर होती हैं !कुछ स्वभाव परिवर्तित होता रहता है उतनी ही आकृतियाँ भी बदलती रहती हैं !
    'आकृतिविज्ञान' भारतीय संस्कृति का हमेंशा से अभिन्न हिस्सा रहा है प्रकृति से लेकर पुरुष तक सबकी आकृति परिवर्तनों पर अनुसंधान किया जाता रहा है !सूर्य चंद्रमा की आकृति !इंद्र धनुष की आकृति ,बादलों की आकृति, आकाश में चमकने वाली बिजली की आकृति ऐसी ही समय समय पर आकाश में प्रकट होने वाली विभिन्न आकृतियाँ !इसी प्रकार से पृथ्वी और प्रकृति के विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ने वाली अनेकों प्रकार की आकृतियाँ !भवनों की आकृतियाँ ,पशुओं पक्षियों की आकृतियाँ या स्त्री पुरुषों की आकृतियाँ कुछ स्थाई होती हैं कुछ अस्थाई होती हैं जो अस्थाई या स्वनिर्मित होती हैं उनका प्रभाव भी अस्थाई ही होता है किंतु जो स्थाई अर्थात प्रकृति निर्मित होते हैं उनके स्थाई स्वभाव होते हैं !स्वभाव और आकार अर्थात आकृति का हमेंशा से अन्योन्याश्रित संबंध रहा है !जो व्यक्ति जैसा होता है वैसा उसका स्वभाव होता है इसी प्रकार से जो व्यक्ति जैसा दिखता है वैसा स्वभाव बनाने के लिए वो प्रयासरत होता है !इसीलिए तो किसी के शरीर का श्रृंगार देखकर किसी व्यक्ति के मन की बासना का पता लग जाता है !कम कपड़े पहनने वाले या अश्लील वेषभूषा धारण करने वाले स्त्री पुरुष औरों की अपेक्षा यौन दुर्घटनाओं के शिकार होते अधिक देखे जाते हैं !
      आकृतिविज्ञान के आधार पर किसी स्त्री या पुरुष के संभावित स्वभावजन्य विकारों का अनुसंधान करके उनके द्वारा भविष्य में घटित होने वाले अच्छे बुरे कार्यों का पूर्वानुमान बहुत पहले लगाया जा सकता है ! इसके द्वारा अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की पहचान में मदद मिल सकती हैं एवं अत्यधिक कामी पुरुषों स्त्रियों को अलग से पहचाना जा सकता है जिसके आधार पर उनसे वर्ताव करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं !राजनैतिकपार्टियों संगठनों  संस्थाओं आदि में कार्यकर्ताओं की शरीराकृतियों के अनुशार क्षमता परख कर जिम्मेदारी दी जाए तो वे उसका उत्साह पूर्वक निर्वाह कर सकेंगे !अन्यथा नहीं !
    इसी प्रकार से  ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का चयन करते समय यदि उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर पात्रों की आकृति का चयन करके यदि उचित भूमिका सौंपी जाए तो उस भूमिका में जीवंतता आ जाती है अन्यथा नहीं !


समय और शब्दों का संबंधों के बनने बिगड़ने में बहुत बड़ा महत्त्व !
    'शब्दविज्ञान' भारत की प्राचीन परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहा है इस आधार पर किसी प्रकरण पर विचार विमर्श करते समय संबंधित लोगों के मुख से निकले पहले शब्द का पहला अक्षर बहुत महत्वपूर्ण होता है उस अक्षर के आधार पर उस प्रकरण में उस व्यक्ति के द्वारा भविष्य में किए जाने वाले योगदान का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
     इसी विधा के आधार पर किसी व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर का अनुसंधान करके उसी के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यह व्यक्ति किस देश शहर गाँव आदि में कितना संतुष्ट रह सकता है एवं किस संगठन राजनैतिकपार्टियाँ  संस्थाएँ  परिवार आदि के विकास में कितना योगदान दे सकता है !साथ ही किस व्यक्ति के साथ इसका कैसा व्यवहार रहेगा एवं कौन व्यक्ति इसके साथ कैसा व्यवहार करेगा ?
 इसी नाम के आपसी सामंजस्य न बैठ पाने के कारण बहुत लोगों ने अपनों के अपनेपन को खो दिया है इससे वैवाहिक जीवन नष्ट हो रहे हैं परिवार बिखरते जा रहे हैं समाज टूटता जा रहा है !जब नाम विज्ञान के विचार की परंपरा थी तब कितने बड़े बड़े संयुक्त परिवार हुआ करते थे सभी दूसरे के साथ शांति पूर्ण ढंग से रह लिया करते थे !
     कई राजनैतिकपार्टियाँ संगठन  संस्थाएँ आदि इसी नामविज्ञान का दंश आज भी झेल रहे हैं जिनमें या तो विभाजन हो चुके हैं या विभाजन के लिए तैयार बैठे हैं !ऐसे तथ्य तर्कों प्रमाणों अनुभवों उदाहरणों के साथ यदि कभी किसी उचित मंच पर रखना प्रारम्भ किया जाए तो आम समाज के शिक्षित अशिक्षित आदि सभी वर्ग के लोग बहुत बड़ी संख्या में शब्दविज्ञान के विशाल प्रभाव को स्वीकार करने पर विवश होंगे !
       प्राचीनकाल में संभवतः इसीलिए नामकरण संस्कार की परंपरा थी जिसके आधार पर 'जन्मनाम' तो निश्चित हो जाता था किंतु व्यवहार के लिए पुकारने का नाम अलग से ऐसा रख लिया जाता था जिससे घर के सम्पूर्ण सदस्यों के साथ मधुर वर्ताव बना रहे !इसीलिए विवाह के बाद कन्या का नाम बदलने की परंपरा कुछ समाजों समुदायों में आज भी है !
     जिस ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का नाम उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर रखा गया वो जीवंत हो उठे बाकी  जिनका जैसा सामंजस्य उनको वैसी सफलता !रामचरित मानस में इस विधा का अधिक से अधिक पालन किया गया है वहाँ  पात्रों के नाम बदल पाना संभव न था इसलिए गोस्वामी जी ने घटनाओं और पात्रों के संवादों में आवश्यकतानुसार पात्रों के पर्यायवाची शब्दों का चयन किया है !
      ऐसी परिस्थिति में नामविज्ञान या शब्दविज्ञान के महत्त्व को समझते हुए सरकारी स्तर पर ऐसे अनुसंधान कार्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए !

                       समय और आकृतियों का स्वभाव पर प्रभाव !

     समय बदलने से स्वभाव बदल जाता है और स्वभाव के अनुशार आकृतियाँ बदलती रहती हैं !जैसे कुछ स्वभाव स्थिर होते हैं वैसे ही कुछ आकृतियाँ भी स्थिर होती हैं !कुछ स्वभाव परिवर्तित होता रहता है उतनी ही आकृतियाँ भी बदलती रहती हैं !
    'आकृतिविज्ञान' भारतीय संस्कृति का हमेंशा से अभिन्न हिस्सा रहा है प्रकृति से लेकर पुरुष तक सबकी आकृति परिवर्तनों पर अनुसंधान किया जाता रहा है !सूर्य चंद्रमा की आकृति !इंद्र धनुष की आकृति ,बादलों की आकृति, आकाश में चमकने वाली बिजली की आकृति ऐसी ही समय समय पर आकाश में प्रकट होने वाली विभिन्न आकृतियाँ !इसी प्रकार से पृथ्वी और प्रकृति के विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ने वाली अनेकों प्रकार की आकृतियाँ !भवनों की आकृतियाँ ,पशुओं पक्षियों की आकृतियाँ या स्त्री पुरुषों की आकृतियाँ कुछ स्थाई होती हैं कुछ अस्थाई होती हैं जो अस्थाई या स्वनिर्मित होती हैं उनका प्रभाव भी अस्थाई ही होता है किंतु जो स्थाई अर्थात प्रकृति निर्मित होते हैं उनके स्थाई स्वभाव होते हैं !स्वभाव और आकार अर्थात आकृति का हमेंशा से अन्योन्याश्रित संबंध रहा है !जो व्यक्ति जैसा होता है वैसा उसका स्वभाव होता है इसी प्रकार से जो व्यक्ति जैसा दिखता है वैसा स्वभाव बनाने के लिए वो प्रयासरत होता है !इसीलिए तो किसी के शरीर का श्रृंगार देखकर किसी व्यक्ति के मन की बासना का पता लग जाता है !कम कपड़े पहनने वाले या अश्लील वेषभूषा धारण करने वाले स्त्री पुरुष औरों की अपेक्षा यौन दुर्घटनाओं के शिकार होते अधिक देखे जाते हैं !
      आकृतिविज्ञान के आधार पर किसी स्त्री या पुरुष के संभावित स्वभावजन्य विकारों का अनुसंधान करके उनके द्वारा भविष्य में घटित होने वाले अच्छे बुरे कार्यों का पूर्वानुमान बहुत पहले लगाया जा सकता है ! इसके द्वारा अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की पहचान में मदद मिल सकती हैं एवं अत्यधिक कामी पुरुषों स्त्रियों को अलग से पहचाना जा सकता है जिसके आधार पर उनसे वर्ताव करते समय सावधानी बरती जानी चाहिए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं !राजनैतिकपार्टियों संगठनों  संस्थाओं आदि में कार्यकर्ताओं की शरीराकृतियों के अनुशार क्षमता परख कर जिम्मेदारी दी जाए तो वे उसका उत्साह पूर्वक निर्वाह कर सकेंगे !अन्यथा नहीं !

    इसी प्रकार से  ग्रन्थ उपन्यास काव्य नाटक फ़िल्म आदि में पात्रों का चयन करते समय यदि उनके दायित्व के अनुशार या अन्य पात्रों के साथ निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर पात्रों की आकृति का चयन करके यदि उचित भूमिका सौंपी जाए तो उस भूमिका में जीवंतता आ जाती है अन्यथा नहीं !

Monday, 13 November 2017

107 Copy

107 Copy सहज दर्शन !
भूकंप और सांख्य दर्शन !
         सांख्य-दर्शन का मुख्य आधार सत्कार्यवाद है।भूकंप ,आँधी तूफान हो या बाढ़ आदि किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा या अन्य कोई भी कार्य अपनी उत्पत्ति के पूर्ण कारण में विद्यमान रहता है जैसे तिल में तेल , दूध में घी अर्थात कार्य अपने कारण का सार होता है ! इस सिद्धान्त के अनुसार, बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती।फलतः, इस जगत की उत्पत्ति शून्य से नहीं अपितु मूल सत्ता से ही हुई है।कार्य अपनी उत्पत्ति के पूर्ण कारण में विद्यमान रहता है इसलिए कार्य की खोज के लिए कारण की खोज होना बहुत आवश्यक है ! तिल और तेल के प्रकरण में कारण है तिल और कार्य है तेल !तिल रूपी कारण के प्रत्येक  हिस्से में तेल पहले से ही विद्यमान रहता है ! इसीप्रकार से दूध की प्रत्येक बूँद में घी पहले से ही विद्यमान रहता है इसलिए तेल संबंधी किसी भी अनुसंधान के लिए तिलों के विषय में जानकारी होनी ही चाहिए और घी के विषय में किसी भी अनुसंधान के लिए दूध के विषय में सम्पूर्ण जानकारी रखनी आवश्यक है !क्योंकि  कार्य अपने कारण का सार अर्थात तत्व होता है! कार्य और  कारण वस्तुतः समान प्रक्रिया के व्यक्त और अव्यक्त रूप हैं।कार्य व्यक्त रूप है और कारण अव्यक्त रूप है !कारण रूप में प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने वाला कार्य जब अपने अर्थात कार्य रूप में होता है तो प्रकट हो जाता है अर्थात प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने लगता है !जैसे तिलों के अंदर स्थित तेल और दूध में मिला हुआ घी दिखाई नहीं पड़ता है किंतु तेल और घी अपने अपने रूपों में आसानी से पहचाने जाते हैं !
      सांख्य दर्शन का उद्देश्य है  सत्कार्यवाद और इसके दो भेद हैं पहला परिणामवाद और दूसरा विवर्तवाद। परिणामवाद से तात्पर्य है कि जब कारण स्वयं ही कार्य रूप में परिवर्तित हो जाता है जैसे दूध ही दही रूप में रूपांतरित हो जाता है। विवर्तवाद के अनुसार परिवर्तन वास्तविक न होकर आभास मात्र होता है। जैसे-रस्सी में सर्प का आभास हो जाना।
     कार्य कारण की ही एक अवस्था है कार्य कारण भाव से जब हम भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं को तो देखते हैं ये आपदाएँ या घटनाएँ ही कार्य हैं!इस कार्य के होने का आधार भूत निश्चित कारण जाने बिना यह कहने लगना कि भूकंप आने का कारण अमुक है कुछ समय बाद कुछ और बता देना उसके बाद कुछ और कह देना ऐसे कारणों की खोज में दिग्विहीन भटकाव को अनुसंधान शोध या रिसर्च कैसे माना जा सकता है !कार्य की प्रवृत्ति समझे बिना और कार्य का कारण से कोई सीधा सुदृढ़ संबंध खोजे बिना भी मनगढंत काल्पनिक कारणों को  गिनाने लग्न ये रिसर्च तो हो ही नहीं सकता अपितु रिसर्च भावना का उपहास है !
       जैसे - भूकंप एक कार्य है तो इसका कारण  क्या है ?तेल का कारण तिल है और और घी का कारण दूध है तो भूकंप का कारण क्या है ?अर्थात तेल तिलों से बनता हैं घी दूध से बनता है तो भूकंप कैसे बनते हैं किस तत्व से बनते हैं कब और किन परिस्थितियों में बनते हैं यह सबकुछ जाने बिना भी भूकम्पों के आने का सुनिश्चित कारण गिनाने लगना विषय के प्रति गंभीरता  का अभाव प्रदर्शित करता है !
     भूकंप जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न का सीधा और विश्वसनीय उत्तर किसी के पास कोई नहीं मिलता है किंतु इस उत्तर का पता लगाए बिना भूकंपों पर कैसा रिसर्च !
   सांख्य दर्शन के विवर्तवाद की पद्धति के अनुसार तो जैसे रस्सी को देख कर सर्प होने का झूठा भ्रम हो जाता है उसी प्रकार से भूकम्पों के विषय में अनेकों प्रकार के झूठे भ्रम होते जा रहे हैं !जैसे -
  • भूकंपों के आने का कारण ज्वालामुखी बताए गए किंतु यदि ऐसा होता तो जिन क्षेत्रों में ज्वालामुखी नहीं होते हैं वहाँ भूकंप क्यों आता है ?
  • महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में कृत्रिम झील बनाई गई उसमें पानी भरा गया उसके  बाद वहाँ काफी भूकंप आने लगे !तब भूकंपों के आने का कारण कृत्रिम झीलों को बताया गया !किंतु यदि ऐसा होता तो जहाँ झीलें नहीं बनाई गई हैं वहाँ भूकंप क्यों आता है ?दूसरी बात जहाँ जहाँ झीलें बनाई गई हैं सब जगह  भूकंप क्यों नहीं आता है !
  • जमीन के अंदर की गैसों को भूकंपों के आने का कारण माना गया !यदि ऐसा होता तो गैसें तो पृथ्वी में सब जगह समान रूप से हैं फिर भूकंपों के प्रकोप सब जगह एक जैसे तो नहीं होते क्यों ?
  • धरती के अंदर जिन प्लेटों की परिकल्पना की गई है जिनके काँपने से भूकंप आने की बात बताई गई है किंतु गैसों के दबाव से प्लेटों के भ्रंशन की कल्पना पर तब तक विश्वास कैसे किया जा सकता है जब तक कार्य और कारण का कोई सीधा एवं विश्वसनीय संबंध सिद्ध न किया जा सके !
     ऐसी परिस्थिति में इतने सारे भ्रमों और कल्पनाप्रसूत तर्कों के आधार पर भूकंप जैसी इतनी विशाल घटना के घटित होने का कारण कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है !कदाचित ऐसी सभी बातों पर भरोसा किया भी जाए तो भी भूकम्पों के आने का वास्तविक कारण तो कोई एक होगा सभी तो नहीं हो सकते ! 
        सांख्य दर्शन और भूकंप - ब्रह्मांड के निर्माण में प्रकृति और पुरुष दोनों की अहम् भूमिका है इसमें प्रकृति अचेतन और पुरुष चेतन है !प्रकृति स्वतंत्र रूप से स्वत: समस्त विश्व की सृष्टि करती है। जगत् और जीवन में प्राप्त होने वाले जड़ एवं चेतन, दोनों ही रूपों के मूल रूप से जड़ प्रकृति, एवं चिन्मात्र पुरुष इन दो तत्वों की सत्ता मानी जाती है।जड़ प्रकृति सत्व, रजस एवं तमस् - इन तीनों गुणों की साम्यावस्था का नाम है। इस प्रकार सांख्यशास्त्र के अनुसार सारा विश्व त्रिगुणात्मक प्रकृति का वास्तविक परिणाम है।प्रकृति भी पुरुष की ही भाँति अज और नित्य  है सांख्य-दर्शन के अनुसार, बिना कारण के कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती। फलतः, इस जगत की उत्पत्ति किसी शून्य से नहीं अपितु मूल सत्ता से हुई है इस बात को मानना ही होगा।ऐसी परिस्थिति में भूकंप की उत्पत्ति भी तो शून्य से नहीं होती होगी आखिर उनका भी आधारभूत कोई कारण तो होता ही होगा क्योंकि कारण के बिना कार्य का घटित होना असंभव है !जैसे बिछी हुई शय्या जड़ है भले ही उसका स्वयं अपने लिए कोई उपयोग हो या न भी हो किन्तु शय्या को देखकर ये अनुमान तो होता है कोई व्यक्ति है जो इसका उपयोग करेगा !इसी प्रकार से प्रकृति भी जड़ है और उसका अपने लिए कोई उपयोग नहीं है अतः उसका उपयोग करने के लिए कोई चेतन पुरुष है ऐसा प्रतीत होता है !
    प्राकृतिक आपदाओं का आधार हैं समय समय पर होने वाले प्रकृति परिवर्तन - 
  प्रकृति के प्रत्येक अंश में प्रतिक्षण परिवर्तन होते देखे जा रहे हैं प्रत्येक वस्तु प्रतिक्षण बदलती जा रही है कुछ के परिवर्तनों की गति अत्यंत धीमी होती है इसलिए वे लंबे समय बाद पहचाने जाते हैं जबकि कुछ बदलाव  प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रहे होते हैं और कुछ प्रत्यक्ष होने के साथ साथ दिखाई नहीं पड़ते हैं अपितु अनुभव जन्य होते हैं !जैसे दूध का परिवर्तन ही तो दही है देखने में भले ही वो बाद में भी दूध की तरह ही सफेद लगता रहे किंतु वास्तव में देखा जाए तो उसमें परिवर्तन हो चुका होता है ! वस्तुतः दही भी दूध की ही बदली हुई अवस्था विशेष ही तो है !
     प्रकृति में स्थित परस्पर विरोधी गुण वाले तत्व भी आपस में मिलकर पिंड से लेकर ब्रह्माण्ड तक की रचना कर देते हैं !जैसे -समझने के लिए सत्व रज तम ये तीन गुण परस्पर विरोधी हैं ऐसे तो रुई तेल अग्नि भी परस्पर विरोधी होते हैं किंतु इनका संतुलित प्रयोग करके जैसे दीपक की रचना कर दी जाती है उसी प्रकार से परस्पर विरोधी इन तीनों गुणों से इस संसार की रचना की गई है !इन्हीं तीनों गुणों की साम्यावस्था ही प्रकृति है किंतु इनमें चेतन के संयोग से वैषम्य आने लगता हैयही विषमता विभिन्न प्रकार की आपदाओं का कारण बनती है !
   
 प्रकृति और पुरुष के संयोग से ही होता है सृष्टि का निर्माण !
        किसी बगीचे में आम के पेड़ में आम लगे हुए हैं उसके नीचे एक लँगड़ा व्यक्ति बैठा है तो दूसरा अंधा है !अंधे को आम दिखाई नहीं पड़ते हैं और लँगड़ा देखकर भी तोड़ नहीं सकता है!ऐसी परिस्थिति में अंधा व्यक्ति लंगड़े को यदि अपने कंधे पर बैठा ले तो दोनों को फल खाने को मिल सकते हैं इसी प्रक्रिया से जड़ प्रकृति और चेतन पुरुष ने मिलकर इस सृष्टि की रचना की है !प्रकृति में क्रिया शक्ति तो है किंतु चेतनता नहीं है इसलिए प्रकृति अंधे के समान है !पुरुष चेतन है !किंतु उसमें क्रिया शक्ति नहीं है !त्रिगुणात्मिका प्रकृति पुरुष अर्थात चेतन से भिन्न है !
प्रकृति विकृति भाव -इसमें तत्व रूपी प्रकृति अन्य तत्वों को उत्पन्न करती है  जबकि स्वयं किसी से उत्पन्न नहीं होती है !तत्व पुरुष न किसी से उत्पन्न होता है और न ही किसी को उत्पन्न करता है !
सूर्य चंद्र वायु ,अग्नि जल वायु ,पित्त कफ वायु ,दुःख सुख मोह !आदि संसार के साथ ही उत्पन्न होते हैं ! 

 
  

Saturday, 11 November 2017

प्राकृतिक तनाव -copy

प्राकृतिक तनाव -सहज चिंतन

 मानव शरीर की तरह ही यह विशाल संसार है इस संसार और प्रकृति को समझने के लिए भी मानव शरीर और मानव आहारों व्यवहारों को ही आधार मानना होगा और उसी तरह की सोच बनानी होगी !मानव मन की तरह ही प्रकृति भी स्वतंत्रता से रहना चाहती है !प्रकृति हमारी परवाह न भी करे तो भी उसका गुजारा हो सकता है किंतु प्रकृति का सहारा लिए बिना  हम तो जीवित रह ही नहीं सकते !प्रकृति पीयूष (अमृत ) के बिना समस्त प्राणियों का कोई आस्तित्व ही नहीं है ! जो प्रकृति हमारे जीवन के लिए साक्षात आधार स्वरूपा है जिसकी मर्यादा (सीमा) के अंदर रहकर प्रकृति की पसंद को ध्यान में रखते हुए ही हम कुछ भी  बना  या बिगाड़ सकते हैं उससे अलग रहकर हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं ! प्रकृति के स्वभाव के विरुद्ध हमारे द्वारा किए गए परिवर्तनों को हमारे प्रयासों की परवाह किए बिना प्रकृति स्वयं ही नष्ट कर देती है! इसके लिए प्रकृति ने कुछ निश्चित मानक बना रखे हैं समय समय पर जिनका  उपयोग करके आत्म शोधन किया करती है !हमारे द्वारा किए गए अनधिकृत निर्माणों को हटाने के लिए प्रकृति भूकंपों का सहारा लेती है !हमारे द्वाराफैलाए गए वायु प्रदूषण को हटाने के लिए प्रकृति आँधी तूफानों का सहारा लेती है इसी प्रकार से हमारे द्वारा प्रदूषित की गई झीलों नदियों और तालाबों के शोधन के लिए प्रकृति बाढ़  वा  भीषण  बाढ़ या सुनामी जैसी  विशेष योजनाओं के द्वारा सबकुछ साफ करती चली जाती है !
     भूकम्पों  आँधी तूफानों या बाढ़ और सुनामियों को जो अज्ञानी लोग प्राकृतिक आपदाओं के नाम से दुष्प्रचार किया करते हैं ऐसे बुद्धि बिहीन लोगों को इस बात का अनुमान ही नहीं है कि यदि कभी दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ कि  पाँच  दस वर्ष के लिए भूकम्प आँधी तूफान और बाढ़ एवं सुनामी  जैसी प्रकृतिशोधक घटनाएँ घटनी बंद हो जाएँ  तो पृथ्वी पर जीवन बचना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होगा !वस्तुतः जिस प्रकार का प्रदूषण बढ़ता है प्रकृति उसी माध्यम से शोधन प्रारंभ करती है और उस प्रदूषण को हटा कर बाक़ी संसार को जीवित बचा लेती है !
      वायु जनित प्रदूषण को सुदूर आकाश में ले जाकर सूर्य किरणों के अत्युष्ण ताप से गरम करके वायु का शोधन करके फिर उपयोगी बना लेती है ! इसी प्रकार से जल जनित प्रदूषण को बाढ़ और सुनामियों के माध्यम से समुद्र के अंदर ले जाती है जहाँ समुद्र का खारापन  उन जलों का शोधन करता है इसके बाद उस शुद्ध जल की बादलों के द्वारा सारी पृथ्वी पर  वितरण अर्थात सप्लाई कर दी जाती है !
      प्रकृति अनंत काल से सुनियोजित एवं सुव्यवस्थित ढंग से अत्यंत जिम्मेदारी पूर्वक जीवन को सँवारती सुधारती सब सुख सुविधाएँ प्रदान करती एवं सुरक्षा करती चली आ रही है !प्रकृति यदि इतनी जिम्मेदार और संवेदन शील न होती तब तो निरंकुश भी हो सकती थी !बाढ़ और सुनामियाँ सब कुछ बहा कर ले जा सकती थीं !आँधी तूफान आदि सब कुछ उड़ाकर ले जा सकते थे !भूकंप सब कुछ नष्ट कर सकते थे !आखिर इनके हाथ किसने पकड़ रखे हैं और किसने रोक रखा है इन्हें ऐसा करने से !वस्तुतः प्रकृति हमारी वास्तविक माता है जो किसी का कभी अहित नहीं कर सकती सबके साथ अत्यंत उत्तम एवं आत्मीय बात व्यवहार करती दिखती है !
          जैसे कोई मनुष्य प्रेमवश किसी के घर में रहने चला जाए वहाँ बत्ती भी जलावे पंखे कूलर हीटर गीजर का भी आनंद ले कपड़े धोवे शौच आदि क्रियाओं में पानी का उपयोग करता रहे टंकियों में गंदगी जमती चली जाए !कुल मिलाकर सम्पूर्ण सुविधाओं का उपयोग तो करे किंतु उस घर की सफाई न करे !ऐसा कितने दिन चल पाएगा !आखिर उसके भी धैर्य की कोई सीमा तो होगी ही !अपने घर को ख़राब होता कितने दिन और कैसे देख लेगी और कैसे सह लेगा !यही स्थिति तो इस संसार की है हमें प्रकाश गर्मी पानी हवा आदि सब कुछ तो मिल रहा है यहाँ रहने का भी कोई किराया हमें नहीं देना पड़ता है !हम प्रेम पूर्वक रहते जा रहे हैं !किंतु गंदगी जब बहुत अधिक बढ़ जाती है तब जैसे मकान मालिक सारे संबंधों को भूलकर घर खाली करवा लेता है उसी प्रकार से प्रकृति भूकंपों के माध्यम से उलट पलट करके बहुत बड़े बड़े क्षेत्र खाली करवा लेती है !मकान मालिक तो उस घर में कुछ भी कर सकता है वो तो पूरा तोड़कर बना भी सकता है जैसे मकान मालिक अपने घर को अच्छा बनाने के लिए सभी प्रकार की तोड़ फोड़ कर सकता है !ऐसे ही ये प्रकृति भी इस संसार में भूकम्पों आदि के माध्यम से कितनी भी बड़ी तोड़फोड़ कर सकती है ! घर में यदि अधिक गंदगी हो जाए तो मकान मालिक उसे साफ करने के लिए अपने घर की धुलाई भी कर सकता है ऐसे ही वर्षा के द्वारा प्रकृति भी धुलाई करती है ! जैसे गन्दी टंकियों को साफ करने के लिए सफाई करने वाला पहले उनका पानी निकालता है फिर उनकी धुलाई करता है इसके बाद उनमें साफ पानी भरता है !ठीक इसी प्रकार से प्रकृति भी करती है ग्रीष्म  अर्थात गर्मी की ऋतु में पहले नदियों तालाबों को सुखा कर खाली करवा लेती है इसके बाद बार बार बाढ़ लाकर उनकी गंदगी को बहा कर ले जाती है और नदियों में साफ पानी भर देती है ! जैसे घरों में पानी को शुद्ध करने के लिए पानी गर्म करके शुद्ध किया जाता है उसी प्रकार से जिन झीलों नदियों तालाबों को प्रकृति पूरी तरह से खाली नहीं कर पाती है उस जल को ग्रीष्म ऋतु में अपनी  गर्मी के द्वारा गरम करके शुद्ध कर लेती है ! इसी प्रकार से उस घर में वायु प्रदूषण यदि अधिक बढ़ जाता है तो बड़े एग्जास्ट आदि लगा करके शुद्ध करना होता है !ऐसे ही  दुर्गंध जहाँ जितनी अधिक होती है प्रकृति भी वहाँ वैसे निर्णय लेती है कहीं हवा चला कर गंध समाप्त करती है कहीं के लिए आँधी तूफान और भूकंप जैसे भयानक निर्णय प्रकृति को लेने पड़ते हैं !
      ऐसे बड़े निर्णयों को लेने से180 दिन पहले से उस तरह की भावी घटनाओं की सूचना प्रकृति अपने लक्षणों के माध्यम से संसार को देने लगती है !जिन्हें प्रकृति के लक्षणों पेड़ पौधों बनस्पतियों समेत समस्त प्राकृतिक वातावरण का अनुभव है उन्हें ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाते अक्सर देखा जाता है!प्राचीन काल में ऐसी अवधारणाएँ बहुत अधिक प्रचलन में थीं सुदूर जंगलों के लोग भी ऐसे ही संकेतों के आधार पर भविष्य में घटित होने वाली कई बड़ी प्राकृतिक घटनाओं का भी पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !
     प्रकृति में भी सुख दुःख तनाव रोग आरोग्य आदि सभी कारण विद्यमान हैं जैसे मनुष्य जीवन में जन्म हो मृत्यु हो स्वस्थ हो अस्वस्थ हो सुखी हो दुखी हो लाभ हो हानि हो आदि सभी कुछ तो अपने आप से होता जा रहा है मनुष्य बेचारा अत्यंत छोटे शिशु की तरह सब कुछ सहता  चला जा रहा है बस !कभी कभी थोड़े हाथ पैर चला लेता है कभी चिल्ला पड़ता है कभी कुछ और किंतु वो क्या चाहता है क्या नहीं  इसकी परवाह किए बिना प्रकृति माँ को बालक के लिए जो कुछ करना हितकर लगता है वो माँ अपने मन से करती चली जाती है इस विषय में बच्चे से उसका कोई संवाद नहीं  हो सकता है और न वो बच्चे की परेशानी पूछ सकती है और न बच्चा बता ही सकता है !बच्चे की क्रियाएँ प्रतिक्रियाएँ अलग चला करती हैं और माँ की अलग !बच्चा  माँ के विषय में कुछ सोचता है या नहीं किंतु माँ तो बच्चे के विषय  में ही सब कुछ सोचती है और बच्चे का हित जैसे जितना अच्छा हो सकता है माँ उस पर पूरा ध्यान केंद्रित रखती है वो बच्चे से दूर रहकर भी हृदय से बच्चे के पास ही होती है ! बच्चे को जब जिस  वस्तु की आवश्यकता होती है माँ उसे लेकर बच्चे के पास उपस्थित हो जाती है !बच्चे को जब भूख लगती है तो माँ के स्तनों से दूध बहने लगता है बच्चे के लिए माँ के स्तनों में उमड़े दूध का बहना चाह कर भी माँ बंद नहीं कर सकती है !
     बिल्कुल इसीप्रकार से प्रकृति माता संसार के सभी प्राणियों का ध्यान रखती है मनुष्यों को जिस ऋतु में जिस तत्व की जितनी आवश्यकता होती है उस ऋतु में उस तत्व से संबंधित फल फूल आदि उड़ेलने लगती है प्रकृति माँ !औषधियों से लेकर आवश्यकता की सभी वस्तुएँ औषधियाँ सुलभ करवाती रहती है !यही प्रकृति गर्मी में नदियों को सुखाकर साफ करती है फिर वर्षा ऋतु में बाढ़ के वेग से पहले नदी तालाब आदि पृथ्वी पात्रों की धुलाई करती हैं फिर उसमें स्वच्छ जल भरती है ऐसे ही वायु का शोधन करती हैं !भूकम्पों आदि के माध्यम से पृथ्वी का संतुलन बनाए रखती हैं !      
      प्रकृति को निर्जीव मानकर प्रकृति के साथ अनात्मीय व्यवहार करने वाले लोग भूकंप संबंधी रिसर्च के नाम पर लोग गड्ढे खोदते और उनमें मिट्टी पूर्ति रहते हैं उन्हें लगता होगा शायद रिसर्च इसी को कहते हैं !इसी प्रकार से  प्राकृतिक  विषयों  में सरकारें मंत्रालय गठित करती हैं जिसके संचालन में करोड़ों अरबों रुपए खर्च कर  देती हैं ! ये धन जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्स रूप में प्राप्त करती हैं सरकारें !जिस धन को  जिस रिसर्च के लिए खर्च किया जा रहा है विशेष कर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में वहाँ से  ऐसा कोई परिणाम तो  निकलता दिखा नहीं जिससे जनता को भूकंप आदि के विषय में कुछ बताया जा सके इस रिसर्च में जिसकी कमाई  खर्च  हो  रही है !आधुनिक विश्व वैज्ञानिक अभी तक ये बताने की स्थिति में नहीं हैं कि भूकंप आता आखिर क्यों है ! वे लोग भूकंप आने के जो कारण आज बता पाते हैं उन्हें वे लोग ही दस पाँच वर्ष बीतते बीतते स्वयं बदल देते हैं फिर कुछ और कहने लगते हैं !
     ज्वालामुखी ,कृत्रिमजलाशय या जमीन के अंदर की गैसों के दबाव से अंतःप्लेटों का कम्पन आदि इन तीनों को रिसर्चकारों के द्वारा समय समय पर बताया बदलता जाता रहा है रिसर्च के नाम पर भारी भरकम गड्ढे खोदे जाते हैं बाद में उनमें मिट्टी भर दी जाती है इस प्रकार से गड्ढे खोदने और उन्हें पूरने में खर्च होने वाले भारी भरकम खर्चों के बिल सरकारों को भेज दिये जाते हैं वर्तमान समय में इस विषय में विश्व वैज्ञानिकों का यही हाल है संभवतः इसे ही रिसर्च बताया जा रहा है! इसके अलावा भी अगर कुछ किया जाता हो तो मुझे उसके बारे में पता नहीं है !इतना अवश्य अनुमान लगा लिया जाता है कि इतने वर्षों की बहुखर्चीली रिसर्च के बाद भी भूकंपों को रोकने या इनका पूर्वानुमान लगाने में सफलता मिलना तो दूर अपितु मेरी जानकारी के अनुशार अभी तक भूकंपों के आने के विषय में निश्चित कारणों  को विश्वास पूर्वक बता पाने में सफल नहीं हो पाया है विराट विश्व का आधुनिक भूकंप विज्ञान !भूकम्पों को खोजने के लिए अपनाई जा रही प्रायः सभी प्रक्रियाओं के द्वारा बताए जा रहे सभी कारणों का प्रमाणित किया जाना अभी तक बाकी  है ! 
       वस्तुतः मानसून अर्थात बादलों को देख कर वर्षा की भविष्यवाणी करने लगना एवं धरती को काँपते देखकर धरती में गड्ढे खोदने लगना और रोगी की स्थिति बिगड़ते देखकर उसे न स्वस्थ होने लायक कह देना आदि बातों पर अनुसंधान यदि आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से ही किया जाए तो किसी बौद्धिक व्यक्ति के लिए इसमें तर्कसंगत वैज्ञानिक विचारों के दर्शन दुर्लभ हो जाएँगे !
     

तनाव copy

तनाव -   सहज चिंतन 

       मनोरोग या तनाव के विषय में सबसे बड़ी समस्या यह है कि हर किसी का स्वभाव सोच सुख दुःख रोगनिरोग हानि लाभ आदि उसके अपने समय के अनुशार सारे जीवन मिलता छूटता या बनता बिगड़ता रहता है !ऐसी परिस्थिति में किसी के जीवन के किस वर्ष में क्या मिलेगा या क्या छूटेगा क्या बनेगा और क्या बिगड़ेगा आदि परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाकर हम आगे से आगे अपने हित  साधन के लिए प्रयास करते चले जाएँगे !
   जब जिस व्यक्ति या वस्तु के मिलने या बिछुड़ने का समय प्रारंभ होना होगा उसका पूर्वानुमान लगाकर जिससे हम मिलकर चलना चाहते हैं या जिसे हम खोना या नाराज नहीं करना चाहते हैं !उतने समय के लिए ऐसी वस्तुओं की  सुरक्षा  पर अधिक ध्यान देंगे एवं ऐसे संबंधों को बचाने के लिए सहनशीलता से सहेंगे अर्थात सब कुछ सहकर एवं  सारे हानि लाभ उठाकर भी संबंधों को बचाने का प्रयास पहले से ही करने लगेंगे !इस प्रक्रिया से संबंध बचा लिए जाते हैं !कई बार यदि सामने वाले का  समय भी यदि हमसे अलग होने का चल रहा हो तो उसे भी इसी प्रक्रिया का पालन  होगा और उसे भी सहनशीलता का परिचय देना होगा अन्यथा केवल एक तरफ से किए जाने वाले प्रयास कितने भी अधिक  क्यों न कर लिए जाएँ फिर भी वे संबंध बचाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं  होते हैं !इसलिए ऐसे संबंधों को बचाने के लिए समय प्रारंभ होने से पहले ही दोनों तरफ से प्रयास शुरू कर देने चाहिए !क्योंकि समय प्रारम्भ हो जाने के बाद लोगों का स्वभाव  अनुशार ही बदलते चला जाता है समय प्रभाव से बदले हुए स्वभाव के कारण सामने वाले की बात व्यवहार विचार एवं कार्यों के प्रति अरुचि अनादर एवं घृणा की भावना पनपने लगती है मन ऐसे संबंधों को इतना बोझ समझने लगता है कि छोटी छोटी गलतियाँ पकड़ कर भी ऐसे संबंधों को तोड़ने का बहाना खोजा करता है !
     ऐसी परिस्थितियों में समय के संचार को न समझ पाने वाले लोग समय की ऐसी करवटों से तंग आकर संबंधित लोगों से ऊभकर उनसे संबंध ही समाप्त कर लेते हैं !कई बार माता पिता ,भाई बहन ,पति पत्नी ,पिता पुत्र आदि  निजी एवं आवश्यक संबंध भी छूटते देखे जाते हैं !
     समय के ऐसे ही प्रभाव से ऐसी ही घृणा की भावना कुछ देशों प्रदेशों या शहरों घरों आदि से हो जाती है जहाँ हम रहना जाना  या  काम नहीं करना चाहते इसीलिए लोग देशों प्रदेशों ,शहरों घरों आदि को छोड़ते देखे जाते हैं !
     इसी प्रकार कुछ वस्तुओं से सम्बंधित व्यापारों से घृणा होने लगती है इसीलिए ऐसे व्यापारों से अरुचि होने लगती है लोग नौकरी या काम धंधा छोड़कर घर बैठ जाते हैं और दूसरे कामों की उन्हें जानकारी अनुभव या अभ्यास नहीं  होता  और चले आ रहे कामों से उन्हें घृणा होने लगती है !
     ऐसी परिस्थितियों में ही कुछ लोग कुछ संगठन राजनैतिक दलों नेताओं उनके बिचारों आदि से घृणा करने लगते हैं और अपने ही मन में उनसे दूरी बनाने लगते हैं उनकी निंदा चुगली या बुराई करने लगते हैं !जैसे ही तनाव कर्क समय व्यतीत हो जाता है वैसे ही सबकुछ पहले के जैसा ही हो जाता है !
    समय का दूसरा पक्ष ये भी है कि हम से जब जिस व्यक्ति या वस्तु को छोड़ने का समय आता है और हम उसे छोड़न भी चाहते हैं तो ऐसे समय का पूर्वानुमान लगाकर उतने समय में उन वस्तुओं व्यक्तियों से धीरे धीरे किनारा कर लिया करते हैं और वे छूट जाया करते हैं !किन्तु कई बार ऐसा होता है कि जिसे हम तो छोड़ना चाहते हैं किंतु उसका समय हमें छोड़ने का नहीं चल रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में हम तो उसे छोड़ते जाते हैं किंतु वो चिपक रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में यदि हमें लगता है कि उसका छूटना हमारे लिए हितकर है तो उसे छोड़ने के लिए हमें सम्पूर्ण प्रयास कर लेना चाहिए !धीरे धीरे वो छूट ही जाता है !
     समय का असर स्वभाव पर भी पड़ता है इससे समय समय पर हमारी सोच बदलती रहती है जिससे हम कभी किसी व्यक्ति वस्तु स्थान भाव विचार या खाने पीने के सामान आदि को अच्छा समझने लगते हैं तो कभी उसी व्यक्ति वस्तु स्थान भाव विचार आदि को हम पसंद नहीं करने लगते हैं कई बार तो वही सब कुछ हमें बहुत बुरा लगने लगता है !
     सोच पर भी समय का असर इतना अधिक होता है कि अक्सर जिस परिस्थिति में हम प्रसन्न रहा करते हैं अच्छे ढंग से हमारा समय व्यतीत हो रहा होता है और प्रायः हम अपने आस पास की परिस्थितियों से संतुष्ट रह रहे होते हैं !उसी परिस्थिति में बिना किसी बदलाव के और बिना किसी बाहरी दबाव के कई बार हम किसी विषय को बहुत अधिक सोचने लगते हैं और उस विषय को हम अपने लाभ हानि सुख दुःख सम्मान अपमान आदि के भाव से जोड़कर निराश और भयभीत होने लगते हैं !कई बार ऐसी अवस्था थोड़े समय की होती है तो कई बार ये समय काफी लंबा होता है !जब समय थोड़ा होता है तब तो बहुत आसानी से व्यतीत हो जाता है और जब समय अधिक होता है तब यही मानसिक तनाव निद्रा बाधित करता है उससे पेट ख़राब होता है उससे आगे पेट में गैस बनने लगती है गैस ऊपर चढ़ कर हृदय प्रदेश में पहुँचती है तब तो घबड़ाहट होने लगती है जब यही और ऊपर अर्थात मस्तिष्क प्रदेश में पहुँचती है तब चक्कर आता है सिर में दर्द होता है आँखों में जलन होने लगती है जब यही वायु शरीर के संधिस्थानों में पहुँचती है तब तो शरीर भारी लगने लगता है अपने हाथ पैर भी पराए जैसे बोझिल लगने लगते हैं इस प्रकार से हमारी रुग्ण सोच हमें धीरे धीरे मानसिक और शारीरिक रूप से रोगी बनाती चली जाती है !कई बार बुरी परिस्थितियों में हमारी अच्छी सोच हमें प्रसन्नता प्रदान करती है उससे हमारा मनोबल और शारीरिक बल अचानक बढ़ जाता है ! ऐसी सभी प्रकार की सोच भी हमारे अपने समय से ही प्रभावित होती है !
    हमारे स्वास्थ्य पर भी हमारे समय का असर होता है जीवन में जब जैसा समय होता है तब तैसा स्वास्थ्य रहता है जीवन में कई बार तो समय इतना अधिक प्रतिकूल अर्थात बुरा होता है कि समय के दुष्प्रभाव से रोग न केवल पनपने लगते हैं अपितु इतने अधिक बढ़ जाते हैं कि उनमें उतने समय के लिए समय का वेग इतना अधिक होता है कि चिकित्सक चिकित्सा औषधियाँ आदि सब कुछ निष्फल सिद्ध होते चले जाते हैं समय से प्रोत्साहित रोग का वेग इतना अधिक प्रबल होता है !
       ऐसे सभी प्रकार के स्वभाव सोच सुख दुःख रोगनिरोग हानि लाभ आदि सब कुछ अपने समय के अनुशार सारे जीवन मिलता छूटता या बनता बिगड़ता रहता है ये समय हर किसी के जन्म के समय पर अआधारित होता है कि उसे जीवन में कब अर्थात किस वर्ष या किस महीने किस प्रकार के समय के समय का सामना करना पड़ेगा और उसके कारण किस समय हमारा जीवन किस प्रकार की शारीरिक मानसिक आर्थिक आदि परिस्थितियों से जूझ रहा होगा !ऐसी सभी परिस्थितियों का पूर्वानुमान जन्म के समय पर रिसर्च पूर्वक उसी आधार पर सम्पूर्ण जीवन का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !

प्रधानमंत्री जी !पाई पाई और पल पल का हिसाब देने वाली बात पर यदि अभी भी कायम हैं तो केवल इतना कर दीजिए -

  PMसाहब!केवल जनता को नंगा करने के लिए आन लाइन  और नेताओं अधिकारियों कर्मचारियों की सम्पत्तियाँ आन लाइन क्यों न की जाएँ !
  आनलाइन करना ही है तो सबकुछ कर दीजिए में आपकी बहुत रूचि है ही और कर भी रहे हैं तो अफसरों और नेताओं की संपत्तियाँ एवं उनके परिजनों की संपत्तियाँ भी आन लाइन कर ही दीजिए ताकि जनता को भी पता लगे कि इन लोगों के पास बेईमानी से इकठ्ठा किया गया धन है कितना !किस सन में कौन सी संपत्ति खरीदी और उसके पैसे उनके पास उस समय कहाँ से आए !इन्हें किसी ने गिफ्ट कीं  तो क्यों ?उस गिफ्टर की संपत्तियाँ भी जाँचिए और उसके अच्छे बुरे सभी कामों का व्यौरा आन लाइन कर दीजिए ! 
    इसके बाद बिना पक्षपात के भ्रष्ट नेताओं अफसरों के विरुद्ध कार्यवाही कीजिए उनमें से जो ईमानदार हैं उन्हें उनके हिस्से का सम्मान पाने योग्य बनाइए जिसके कि वो हकदार हैं !ऐसे अफसर और नेता जिन्होंने परिश्रम भी खूब किया ईमानदारी का पूरी तरह पालन किया !इसके बाद भी वो कोई सुख सुविधा शौक शान आदि का कोई  सामान  खरीदने लगें तो पडोसी और नाते रिस्तेदार उन्हें कोसने लगते हैं कि बेईमानी की कमाई के बल पर खरीद रहे हैं ! एक ईमानदार अफसर का बच्चा दूसरे खंड से गिरा कोमा में चला गया उसका इलाज इतना महँगा था कि वो कराने की हैसियत में नहीं थे तो उनके किसी रिस्तेदार को सेना से रिटायर होने पर कुछ  फंड मिला था उनके सहयोग से उन बेचारों का बच्चा बच पाया जबकि  रिस्तेदारपड़ोसी आदि कह रहे थे जैसी कमाई करेंगे वैसे ही निकलेगी !ऐसी परिस्थिति में कितना दुःख होता होगा !यही स्थिति नेताओं की भी है !इसलिए ऐसे लोगों को भी ईमानदारी प्रस्तुत करने का अवसर उपलब्ध कराया  चाहिए !
  वर्तमान भ्रष्ट राजनीति की स्थिति ये है कि  नेता लोग यदि राजनीति में न होते कहीं और होते तो वहां इतनी बड़ी समस्या पैदा कर रहे होते जिसका समाधान किसी के पास होता ही नहीं !ऐसे ये बेचारे देश और समाज के लिए भले ही न कुछ कर पा रहे हों लेकिन लोग जी तो ले रहे हैं अन्यथा ये सुख सुविधा भोगने का शौकीन ये अयोग्य एवं अकर्मण्य वर्ग यदि बेरोजगार होता तो कितना खतरनाक होता सोचकर सिहर उठता है मन !ऐसे लोग अपने फायदे के लिए किसी से भी समझौता कर सकते थे !
   भ्रष्टाचार समाप्त हो ही गया तो राजनीति वाले खाएँगे क्या ?रहेंगे कहाँ ?आखिर कैसे जिएँगे कैसे ?इनके बच्चे पलेंगे कैसे ?ऐसे लोगों के साथ कोई अपने बेटा बेटी की शादी क्यों करना चाहेगा !इसीलिए तो भ्रष्टाचार की ही चमक इनके परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर दमक रही होती है !
     भ्रष्टाचार तो नेताओं के पापी पेट का सवाल होता है !वस्तुतः राजनीति स्वयं में तो सेवाकर्म ही है उसमें ईमानदारी से कमाई के साधन हैं ही नहीं !बेईमानी करें कैसे पकड़ जाएँगे !इसीलिए बेईमान अफसरों कर्मचारियों के कुकर्मों में उनकी मदद कर देते हैं उन्हीं के साथ अपना भी कमीशन सेट कर लेते हैं आजादी के बाद आज तक यही होता चला आ  रहा है !
        ईमानदार नेतालोग  बड़े बड़े पदों पर पहुँचकर भी गरीब या सामान्य ही बने रहते रहते हैं और बेईमान नेताओं में से कोई निगमपार्षद या ग्राम प्रधान भी बन जाएँ तो भी दो चार दूकान खेत खलिहान तो बना ही लेते हैं! इससे बड़े नेताओं की तो प्रापर्टियाँ कितनी हैं उसका सही सही हिसाब तो उनके मरने के बाद उनकी तीसरी पीढ़ी ही लगा पाती है  अपनी जिंदगी में तो वो गिन नहीं पाते हैं !इसीलिए तो अक्सर ये कहते सुना जाता है कि हमारे बाबा जमींदार थे बाप को कोई जमींदार नहीं बताता !बेईमानों को बाप कोई नहीं बनाना चाहता !
    इसीलिए तो ईमानदार योग्य सुशिक्षित चरित्रवान परिश्रमी एवं जनता की सेवा करने वालों की राजनीति कहीं कोई पूछ ही नहीं बची है ! ऐसे लोग राजनीति में पहले तो घुसने नहीं दिए जाते हैं घुस गए तो उनके पास दो ही रास्ते होते हैं या तो किसी पार्टी के भ्रष्ट बेईमान नेता की जी हुजूरी करने में सफल हो गए तो कभी कुछ बनाए भी जा सकते हैं अन्यथा हासिए पर पड़े रहते हैं !इन्हें पूछता कौन है ! 
    किसी ईमानदार को राजनैतिक दलों के प्रमुख लोग नेता इसलिए नहीं बना सकते कि वो इन्हें बेईमानी नहीं करने देगा !इसीप्रकार से किसी सुशिक्षित व्यक्ति को भी नेता इसलिए नहीं बना सकते क्योंकि वो सजीव व्यक्ति कानून और संविधान के अनुशार स्वयं भी निर्णय लेना चाहेगा !संसद आदि सदनों की चर्चा में भाग लेते समय सब कुछ स्वयं समझेगा  और अपनी बात स्वयं कहेगा भी !अपने निर्णय भी स्वयं लेगा ! इन पागलों के कहने से अकारण हुल्लड़ नहीं मचाने लगेगा !भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही करने की जिद करने लगेगा !राजनीति में होने वाले पापों का पर्दाफास करने लगेगा इसलिए किसी विजातीय को राजनीति में घुसाना ठीक ही नहीं समझते हैं बेईमान पार्टियों के भ्रष्ट नेता लोग !
     ये लोग किसी चरित्रवान को नेता इसलिए नहीं बनाते कि किसी के पास जब धन धान्य बहुत बढ़ जाता है सब सुख सुविधाएँ इकट्ठी कर ली जाती हैं तब उन्हें भोगने का मन भी करता है चरित्रवान व्यक्ति इसका विरोध करेगा !
    वस्तुतः सेक्स मन में बसता है मन की प्रसन्नता जैसे जैसे बढ़ती जाती है वैसे वैसे बासना(सेक्स)बेलगाम होती जाती है!ऊँचे ऊँचे पद प्रतिष्ठा पा  जाने के बाद प्रसन्नता तो बढ़ती ही है किंतु जब योग्य लोगों को ऊँचे पद मिलते हैं तब तो वो अपनी प्रसन्नता पचाने में सफल हो जाते हैं किंतु अयोग्य नेता अधिकारी उद्योगपति या बाबा लोग ऐय्यासी में फँस जाते हैं !इसके लिए वे सेवाकार्यों या सामाजिक कार्यों का सहारा लेते देखे जाते हैं !कुछ आसन व्यायाम सिखाते हैं दवाएँ बेचते हैं राशन बेचते हैं स्कूल खोल लेते हैं ब्यूटीपार्लर खोल लेते हैं उसी में खोज लिया करते हैं अपनी अपनी बासना पूर्ति के साधन !
      ऐसे में मनुष्य का बन बासना अर्थात सेक्स की ओर भागता है ऐसे ही सेक्स के लिए बड़े बड़े बाबा लोग पागल हो उठते हैं नेताओं की कौन कहे !इसीलिए तो चरित्रवान लोगों को अपने आसपास न नेता रखते हैं और न बाबा लोग !क्योंकि चरित्रवान लोग इनके दुष्कर्मों में आड़े आते रहेंगे !
    इसीलिए चोरी चकारी लूट घसोट घपले घोटाले करने वाले लोगों को नेता बना लेते हैं तो वो भ्रष्टाचार के द्वारा खुद भी कमाई करते हैं और अपने गिरोह के सरदार (पार्टी प्रमुख ) का भी घर भरते हैं !अपराधियों के अपराध में कमीशन घूस खोर अधिकारियों कर्मचारियों के भ्रष्टाचार में कमीशन आदि सब जगह से केवल आमदनी ही होती है !इसी बलपर चल रही है अधिकाँश राजनीति !
      ईमानदार योग्य सुशिक्षित चरित्रवान परिश्रमी एवं जनता की सेवा करने में रूचि रखने वाले लोग अपनी शिक्षा से चरित्र से आदर्श आचार व्यवहार से परिश्रम से जनसेवा से समाज को बदलने की क्षमता रखते हैं किंतु जिन नेताओं के पास इनमें से कुछ होगा ही नहीं वे तो अपराध होता तो पुलिस कम्प्लेन करवा देंगे बात बात में कमिटी गठित कर देंगे पति पत्नी की लड़ाई होगी तो तलाक करवा देंगे !कोई अच्छा काम इन्हें सूझ ही नहीं सकता इनकी सोच इतनी गन्दी होती है !
  मैंने भी राजनीति में जाने के लिए अपना योग्यता प्रमाणपत्र है राजनैतिक दल के पास भेजा कई कई बार भेजा किंतु इन्होंने मुझे कभी इस योग्य भी नहीं समझा कि हमें भी राजनैतिक कार्यों में सहयोगी बना लेते मैं इनकी बेईमानी में साथ भले ही न दे पाता किन्तु ईमानदारी में तो दे ही सकता था !भ्रष्टाचार करने में साथ न देता तो भ्रष्टाचार भगाने में तो जरूर साथ देता  !


     http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/drshesh-narayan-vajpayee-drsnvajpayee.html

Friday, 10 November 2017

भ्रष्टाचार की रोटियाँ खाने वाले पापी लोग भ्रष्टाचार को समाप्त कर देंगे क्या ?यदिकर भी दें तो नेताओं के पास कमाई के साधन ही और दूसरे क्या हैं ?

   नेता लोग यदि राजनीति में न होते कहीं और होते तो वहां इतनी बड़ी समस्या पैदा कर रहे होते जिसका समाधान किसी के पास होता ही नहीं !ऐसे ये बेचारे देश और समाज के लिए भले ही न कुछ कर पा रहे हों लेकिन लोग जी तो ले रहे हैं अन्यथा ये सुख सुविधा भोगने का शौकीन ये अयोग्य एवं अकर्मण्य वर्ग यदि बेरोजगार होता तो कितना खतरनाक होता सोचकर सिहर उठता है मन !ऐसे लोग अपने फायदे के लिए किसी से भी समझौता कर सकते थे !
   भ्रष्टाचार समाप्त हो ही गया तो राजनीति वाले खाएँगे क्या ?रहेंगे कहाँ ?आखिर कैसे जिएँगे कैसे ?इनके बच्चे पालेंगे कैसे ?ऐसे लोगों के साथ कोई अपने बेटा बेटी की शादी क्यों करना चाहेगा !इसीलिए तो भ्रष्टाचार की ही चमक इनके परिवार के हर सदस्य के चेहरे पर दमक रही होती है !
     भ्रष्टाचार तो इनके पापी पेट का सवाल होता है !वस्तुतः राजनीति स्वयं में तो सेवाकर्म ही है उसमें ईमानदारी से कमाई के साधन हैं ही नहीं !इसीलिए तो ईमानदार नेतालोग  बड़े बड़े पदों पर पहुँचकर भी गरीब या सामान्य ही बने रहते रहते हैं और बेईमान नेताओं में से कोई निगमपार्षद या ग्राम प्रधान भी बन जाएँ तो दो चार दूकान खेत खलिहान तो बना ही लेते हैं! इससे बड़े नेताओं की तो प्रापर्टियाँ कितनी हैं उसका सही सही हिसाब तो उनके मरने के बाद उनकी तीसरी पीढ़ी ही लगा पाती है  अपनी जिंदगी में तो वो गिन नहीं पाते हैं !इसीलिए तो अक्सर ये कहते सुना जाता है कि हमारे बाबा जमींदार थे बाप को कोई जमींदार नहीं बताता !बेईमानों को बाप कोई नहीं बनाना चाहता !
    इसीलिए तो ईमानदार योग्य सुशिक्षित चरित्रवान परिश्रमी एवं जनता की सेवा करने वालों की राजनीति कहीं कोई पूछ ही नहीं बची है ! ऐसे लोग राजनीति में पहले तो घुसने नहीं दिए जाते हैं घुस गए तो उनके पास दो ही रास्ते होते हैं या तो किसी पार्टी के भ्रष्ट बेईमान नेता की जी हुजूरी करने में सफल हो गए तो कभी कुछ बनाए भी जा सकते हैं अन्यथा हासिए पर पड़े रहते हैं !इन्हें पूछता कौन है ! 
    किसी ईमानदार को राजनैतिक दलों के प्रमुख लोग नेता इसलिए नहीं बना सकते कि वो इन्हें बेईमानी नहीं करने देगा !इसीप्रकार से किसी सुशिक्षित व्यक्ति को भी नेता इसलिए नहीं बना सकते क्योंकि वो सजीव व्यक्ति कानून और संविधान के अनुशार स्वयं भी निर्णय लेना चाहेगा !संसद आदि सदनों की चर्चा में भाग लेते समय सब कुछ स्वयं समझेगा  और अपनी बात स्वयं कहेगा भी !अपने निर्णय भी स्वयं लेगा ! इन पागलों के कहने से अकारण हुल्लड़ नहीं मचाने लगेगा !भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही करने की जिद करने लगेगा !राजनीति में होने वाले पापों का पर्दाफास करने लगेगा इसलिए किसी विजातीय को राजनीति में घुसाना ठीक ही नहीं समझते हैं बेईमान पार्टियों के भ्रष्ट नेता लोग !
     ये लोग किसी चरित्रवान को नेता इसलिए नहीं बनाते कि किसी के पास जब धन धान्य बहुत बढ़ जाता है सब सुख सुविधाएँ इकट्ठी कर ली जाती हैं तब उन्हें भोगने का मन भी करता है चरित्रवान व्यक्ति इसका विरोध करेगा !
    वस्तुतः सेक्स मन में बसता है मन की प्रसन्नता जैसे जैसे बढ़ती जाती है वैसे वैसे बासना(सेक्स)बेलगाम होती जाती है!ऊँचे ऊँचे पद प्रतिष्ठा पा  जाने के बाद प्रसन्नता तो बढ़ती ही है किंतु जब योग्य लोगों को ऊँचे पद मिलते हैं तब तो वो अपनी प्रसन्नता पचाने में सफल हो जाते हैं किंतु अयोग्य नेता अधिकारी उद्योगपति या बाबा लोग ऐय्यासी में फँस जाते हैं !इसके लिए वे सेवाकार्यों या सामाजिक कार्यों का सहारा लेते देखे जाते हैं !कुछ आसन व्यायाम सिखाते हैं दवाएँ बेचते हैं राशन बेचते हैं स्कूल खोल लेते हैं ब्यूटीपार्लर खोल लेते हैं उसी में खोज लिया करते हैं अपनी अपनी बासना पूर्ति के साधन !
      ऐसे में मनुष्य का बन बासना अर्थात सेक्स की ओर भागता है ऐसे ही सेक्स के लिए बड़े बड़े बाबा लोग पागल हो उठते हैं नेताओं की कौन कहे !इसीलिए तो चरित्रवान लोगों को अपने आसपास न नेता रखते हैं और न बाबा लोग !क्योंकि चरित्रवान लोग इनके दुष्कर्मों में आड़े आते रहेंगे !
    इसीलिए चोरी चकारी लूट घसोट घपले घोटाले करने वाले लोगों को नेता बना लेते हैं तो वो भ्रष्टाचार के द्वारा खुद भी कमाई करते हैं और अपने गिरोह के सरदार (पार्टी प्रमुख ) का भी घर भरते हैं !अपराधियों के अपराध में कमीशन घूस खोर अधिकारियों कर्मचारियों के भ्रष्टाचार में कमीशन आदि सब जगह से केवल आमदनी ही होती है !इसी बलपर चल रही है अधिकाँश राजनीति !
      ईमानदार योग्य सुशिक्षित चरित्रवान परिश्रमी एवं जनता की सेवा करने में रूचि रखने वाले लोग अपनी शिक्षा से चरित्र से आदर्श आचार व्यवहार से परिश्रम से जनसेवा से समाज को बदलने की क्षमता रखते हैं किंतु जिन नेताओं के पास इनमें से कुछ होगा ही नहीं वे तो अपराध होता तो पुलिस कम्प्लेन करवा देंगे बात बात में कमिटी गठित कर देंगे पति पत्नी की लड़ाई होगी तो तलाक करवा देंगे !कोई अच्छा काम इन्हें सूझ ही नहीं सकता इनकी सोच इतनी गन्दी होती है !
  मैंने भी राजनीति में जाने के लिए अपना योग्यता प्रमाणपत्र है राजनैतिक दल के पास भेजा कई कई बार भेजा किंतु इन्होंने मुझे कभी इस योग्य भी नहीं समझा कि हमें भी राजनैतिक कार्यों में सहयोगी बना लेते मैं इनकी बेईमानी में साथ भले ही न दे पाता किन्तु ईमानदारी में तो दे ही सकता था !भ्रष्टाचार करने में साथ न देता तो भ्रष्टाचार भगाने में तो जरूर साथ देता !
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Monday, 6 November 2017

काम न करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों की छुट्टी क्यों नहीं करती है सरकार !घूस का पैसा ऊपर तक जाता है इसीलिए तो !

     अवैधनिर्माण अवैधकब्जे  एवं अवैध काम घूसलेकर होने देने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को आज तक दी गई सैलरी वापस क्यों न ली जाए और उन्हें सेवामुक्त क्यों न किया जाए!जब उन्होंने अपना काम ही नहीं किया तो सैलरी किस बात की !
    चारों ओर अवैध कब्जे,अवैध काम काज,अवैध निर्माण !ऊंचाई के मानकों को लाँघती बिल्डिंगें आदि सब कुछ बिना घूस लिए करने दिया होगा इन्होंने क्या ! अरे ये अधिकारी हैं या भिखारी ?सरकार इनके पोल खोलने को डरती क्यों है क्या वास्तव में भ्रष्टाचार की कमाई ऊपर तक जाती है ?यदि नहीं तो भय किस बात का निर्भीक भावना से अत्याचारियों पर कार्यवाही करने से क्यों डरती है सरकार !अरे प्रशासकों ये तुम्हारा धर्म है 'धर्मो रक्षति रक्षितः' !भ्रष्टाचार सबसे बड़ा अधर्म और भ्रष्टाचारी सबसे बड़े अधर्मी हैं !!
   अवैध कब्जे करवाकर या अवैध निर्माणों से कितना पैसा इकठ्ठा किया गया होगा कहाँ गया वो ब्लैकमनी !स्विस बैंकों से पैसा लेन का संकल्प लेने वाले बहादुर प्रशासकों से निवेदन है कि वो पहले अपने देश के अधिकारियों कर्मचारियों की सम्पत्तियों की जाँच ही करवा लें नौकरी लगने के समय कितनी थीं और आज कितनी हैं संपत्तियाँ क्या उन सम्पत्तियों का सैलरी से कोई तालमेल खाता है यदि नहीं तो करें उन पर कार्यवाही उनकी अतिरिक्त संपत्तियाँ देश के राजस्व में सम्मिलित करें !ऐसे लोगों ने काम भी नहीं किया ऊपर से घूस भी सैलरी भी !वाह !!वारी सरकार !!!उधर दिल दहला देने वाली किसानों की आत्म हत्याएँ फिर भी सरकार इस विषय पर मौन क्यों है !
    ऐसे अविश्वसनीय अधिकारियों कर्मचारियों पर विश्वास क्यों करती है सरकार ?जब काम करने के लिए ये अधिकारी लोग घूस अलग से ले ही लेते हैं तो इन्हें सैलरी किस बात की देती है सरकार ?यदि ये सर्वे सच है तो ऐसे अधिकारियों को सैलरी देने के लिए टैक्स रूप में मिली जनता के खून पसीने की कमाई का दुरूपयोग नहीं किया जाना चाहिए !
    सांसदों विधायकों के खिलाफ मामलों कार्यवाही होती ही कहाँ है !
    सभी प्रकार के अपराध राजनीति से निकलते हैं उनमें कमाई भी अच्छी होती है नेताओं की अकूत सम्पत्तियों के स्रोत अपराध और भ्रष्टाचार के अलावा और हैं क्या ?बचपन में प्रायः नेता सामान्य परिवारों से आते हैं नौकरी व्यापार आदि कभी कोई कटे देखे नहीं जाते चुनाव जीतते ही बरसने लगती है लक्ष्मी सारी उत्तम सुख सुविधाएँ कोठियों पर कोठियाँ गाड़ियों पर गाड़ियाँ आखिर आती कहाँ से हैं इनके विरुद्ध मामला दर्ज नहीं होता हो भी गया तो गवाही नहीं मिलते !अपराधी होने के बाद भी साक्ष्यों के अभाव में बाइज्जत बरी होकर ऐसे निकलते हैं जैसे गंगा नहाकर आए हों !ऊपर से एक ईमानदारी का तमगा लग जाता है !हिम्मत है तो सरकार इनकी सम्पत्तियों की जाँच करवावे और पूछे किस सं में कैसे खरीदी हैं ये !किंतु ऐसा इसलिए नहीं हो सकता है क्योंकि ऐसी कार्यवाही करने वाले भी तो डरते हैं कि कल को उन पर कार्यवाही होने लगेगी कमाई तो उन्होंने भी वैसे ही की होती है इसलिए राजनीति में आने के बाद बड़े बड़े अपराधी पवित्र हो जाते हैं क्या कभी उन पर भी कार्यवाही होगी ?