Friday, 28 April 2017

महापुरुषों के नाम पर छुट्टियाँ नहीं तो तिथि त्योहारों पर छुट्टियाँ क्यों ?सरकारी छुट्टियों का महत्त्व !

   हिंदुओं के त्यौहार मुस्लिम नहीं मनाते और मुस्लिमों के त्यौहार हिंदू नहीं मनाते किंतु दोनों के त्योहारों में छुट्टियाँ दोनों भोगते हैं क्यों ? जिन त्यौहारों को जो मनाते ही नहीं हैं उन्हें उन त्योहारों पर छुट्टी क्यों दी जाए !
   सरकार चाहे तो त्यौहारों के दिन भी सरकारी आफिस खुले रह सकते हैं और जनता के काम किए जा सकते हैं जिस धर्म का जो त्यौहार हो उन्हें छोड़कर बाकी लोग तो आवें आफिस ! कितने त्योहारों पर सभी दुकानदार दुकानें  बंद कर देते हैं किसान लोग किसानी बंद कर देते हैं मजदूर लोग मजदूरी करना छोड़ देते हैं मैकेनिक या रिपेयरिंग जैसे काम करने वाले या जॉबवर्क करने वाले अपना अपना काम बंद कर देते हैं !किंतु उन सबका वो काम अपना होता है जबकि सरकारी कर्मचारी जनता के काम को कभी अपना समझते ही नहीं हैं समझें तो करें !आफिस आकर साइन करने की सैलरी मिलती है तो वो आफिस आकर साइन कर जाते हैं और साइन करने की सैलरी सरकार को देनी होती है तो सरकार सैलरी दे देती है काम करवाने के लिए जनता को घूस देनी होती है तो घूस देकर जनता अपना काम करवा लेती है !बस !!सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है !
    मुख्यमंत्री जन समस्याएँ सुनने के लिए अपने यहाँ भीड़ लगाते हैं किंतु जनसमस्याएँ जब अपने को ही सुननी हैं तो उन जिलों के अधिकारियों कर्मचारियों को सैलरी किस बात की दी जाती है !वैसे भी मुख्यमंत्री के समस्याएँ सुनने से और वहाँ आने वाली भीड़ की संख्या देखकर ये तो पता !लग ही जाता है कि सरकारी विभागों के काम काज की गैर जिम्मेदारी अकर्मण्यता से जनता तंग है !मुख्यमंत्री को उनसे काम करवाना चाहिए वे खुद बैठ जाते हैं जन समस्याएँ सुनने !ऊपर से कहते हैं सरकार अच्छा काम कर रही है !
   सरकारी विभागों के कर्मचारियों को बात बात में छुट्टी इसलिए चाहिए कि वे आफिस आकर ही क्या करते हैं वैसे ही घर रह जाते हैं ठेके पर काम होता हो तो घर वाले भी धक्का देकर सुबह ही भगा देते कितना भी बड़ा त्यौहार क्यों न होता  टिपिन में गुझिया रख देते और कह दिया  करते कि जाओ त्यौहार हम लोग शाम को मना लेंगे किन्तु आफिस जाएँ न जाएँ काम करें न करें सैलरी तो मिलती ही है तो घर वाले भी निश्चिन्त होते हैं
    सरकारी कर्मचारियों की यूनियन क्यों बनी हैं इसका मतलब क्या  नहीं है कि सरकार अपने विरुद्ध हड़ताल करने की उन्हें सुविधा मुहैया करवा रही है !वो यूनियन वाले ड्यूटी टाइम में मीटिंग करते हैं पार्टियां करते हैं सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खोल देने की धमकी देकर हड़ताल कर देते हैं सर्कार ईमानदार हो तो उन्हें सस्पेंड करके नई नियुक्तियाँ कर दे किंतु सरकार का भ्रष्टाचार में जब अपना पैर फँसा होता है तो शक्त एक्शन लें कैसे !वो भी तो सरकार की पोल खोल देंगे !इसी लिए सरकार अपने अधिकारी कर्मचारियों को पटाए रखती है भारी भरकम सैलरी उसके ऊपर बाकी सारी सुख सुविधाएँ !समाज में ऐसी खातिर दारी तो लोग दामादों की नहीं कर पाते हैं जैसी सरकार अपने कर्मचारियों की करती है !सरकार ईमानदार हो तो उनके आगे दुम हिलाने की क्या जरूरत !

    अधिकारी यदि ईमानदारी पूर्वक काम ही करते होते तो अपराधी पैदा ही नहीं होते !जो हो चुके थे वे मैदान छोड़कर अब तक न जाने कब भाग गए होते चूँकि अपराधी लोग अपने अपने कामों को बखूभी अंजाम दे रहे हैं इसका मतलब अधिकारी अकर्मण्य हैं डरपोक हैं या फिर घूस खोर !
    जिन अधिकारियों का तबादला किया जाता है वे काम बहुत अच्छा करते हैं उनकी कार्य कुशलता से यहाँ रामराज्य आ चुका है इसलिए अब इन 'मेकरऑफरामराज्यों'  को कहीं और 'मेकिंगऑफरामराज्य' के लिए तबादला किया जा रहा होता है या कुछ और !
   ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों को छोड़कर कभी कभी ऐसा भी होते देखा जाता है कि कुछ अधिकारियों ने कुछ जिलों के कुछ विभागों का बेड़ा गर्क कर रखा होता है कुछ करना या कुछ अच्छा करना उनकी नियत में होता ही नहीं है सरकार उनसे पीछा छोड़ाने के लिए तबादले कर करके पाँच वर्ष पार कर लेती है | ऐसे अधिकारी जिस सरकार के कार्यकाल में जहाँ कहीं भी अपनी सेवाएँ देते हैं वहाँ के लोगों को इतना अधिक तंग कर देते हैं कि स्थापित सरकारों की कब्र खोदने में कमी नहीं छोड़ते ऐसा घटिहा काम करते हैं !ऐसे यमदूतों से सरकारें अपना अपना पीछा छोड़ाया करती हैं और ऐसे तेजाबी लोगों को कहीं एक जगह अधिक दिन तक टिकने नहीं देती हैं तबादले पर तबादले !बस !!समय पार कर लेती हैं !
      सैलरी देनी सरकारों की मजबूरी है नहीं देंगे तो वो कोर्ट जाकर ले लेंगे !इसके अलावा सरकार और उनका बिगाड़ ही क्या सकती है !समय से आफिस जाने को बोलेगी तो पहुँच जाएँगे !नहीं पहुँचेंगे तो नहीं सही एक दिन की सैलरी ही तो काट लेगी सरकार !तो काट ले !देने वाले और बहुत मिल जाएँगे !
     बहुत लोगों को आज भी गलत फहमी है कि बड़े बड़े अधिकारी लोग बहुत पढ़े लिखे बहुत योग्य होते होंगे इसलिए वे हमारा काम अच्छे ढंग से करेंगे !किंतु वे इतना दिमाग नहीं लगाते हैं कि उनकी पढाई ने उन्हें नौकरी दिला दी उसमें आपका तो कुछ लगा नहीं फिर वे अपनी शिक्षा को सरकार और जनता के काम क्यों आने दें !इसीलिए अपनी उच्च शिक्षा का गरूर पाले आफिसों में AC चलाकर बैठे रहते हैं अधिकारी !वहीँ बैठे बैठे घंटी बजा बजाकर चाय दूध समोसा जूस मँगा मँगाकर खाया पिया करते हैं !शाम को अपनी योग्यता अपने दिमाग में समेटे अपने घर चले जाते हैं !
    वस्तुतः यदि वे इतने ही योग्य और ईमानदार होते तो भगवान ने उन्हें उनका दायित्व निर्वाह करने का दिमाग भी तो दिया ही होता किंतु अपने विभागों से संबंधित जनता के काम करने लायक उनके पास दिमाग की कमी होने के कारण ही तो वो अपनी सेवाओं से जनता को संतुष्ट नहीं कर पाते हैं बेचारे !तभी तो जनता उन्हें डंडा दिलाने के लिए ही विधायकों सांसदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों के यहाँ मारी मारी फिरा करती है यदि इनमें काम करने की अकल ही होती तो जनता मुख्यमंत्री से मिलने सुबह पाँच बजे क्यों पहुँच जाती उसे कोई शौक तो होती नहीं है अधिकारी अपना काम करने में फेल हुए तभी तो जनता को इधर उधर भटकना पड़ता है !
     अधिकारियों की योग्यता का जनता को लाभ क्या मिला जब उन्हें काम करने के लिए सिफारिशी लेटर नेताओं से ही लिखवाकर ले जाने पड़ते हैं !वैसे जो सैलरी लेते हैं इतनी लज्जा तो उन्हें भी लगनी ही चाहिए कि बिना किसी सिफारिस के उन्हें जनता के काम स्वयं  करने चाहिए !
   सरकार के सारे स्कूल बर्बाद अस्पताल बर्बाद टेलीफोन बर्बाद हैं यही तो उपलब्धि है भारत में सरकारी काम काज की | आखिर क्यों ?सारी लापरवाही की जाँच हो तो जड़ में कोई न कोई लापरवाह या घूस खोर अधिकारी कर्मचारी ही निकलेगा !यहाँ तक कि सरकार के अधिकाँश विभागों में लोग अधिकारियों के रवैए से तंग हैं सरकार उनके बलपर बड़ी बड़ी योजनाओं का बखान किया करती है किंतु जो अधिकारी अभीतक जनता के छोटे छोटे कामों की गारंटी नहीं दे सके वे बड़े बड़े काम क्या करेंगे !ऐसे लोगों से तंग सरकारें उनके तबादले कर कर के अपना मन बहलाया और काम चलाया करती हैं !
           दिल्ली में एक अवैध काम चल रहा था मैं कुछ लोगों के साथ SDM साहब के पास शिकायत लेकर गया उन्होंने सात महीने दौड़ाया बाद में कहा लग रहा है अवैध काम करने वालों ने उन्हें घूस दे दी है इसीलिए वो लोग मेरी बात ही नहीं सुनते हैं !
       पूर्वी दिल्ली में एक बिल्डिंग जिसमें सोलह फ्लैट हैं उन फ्लैट वालों के अलावा किसी बाहरी व्यक्ति ने स्थानीय प्रशासन का आर्थिक पूजन करके EDMC से बिना परमीशन लिए बिल्डिंग में रहने वालों से बिना NOC लिए बिल्डिंग की छत पर मोबाईल टॉवर लगवा दिया गया और पिछले 10-12 वर्षों से किराया ले रहा है वो अवैध टावर मालिक उसमें से कुछ EDMC वालों को भी दे रहा होगा अन्यथा उस अवैध टावर को EDMC बेचारे अब तक हटवा चुके होते !
   जो चीज अवैध है वो हटनी चाहिए इसीलिए तो हैं अधिकारी कर्मचारी किन्तु वे अपने कर्तव्य का पालन ही न करें तो उन बीमारू लोगों को अधिकारी कहने और मानने में शर्म लगती है !ऐसे मनहूस लोग कमिश्नर हों या अन्य अधिकारी ऐसे लोगों को न जाने किस ख़ुशी में सरकार सैलरी बाँटे जा रही है उनसे काम लेना सरकार के बश का नहीं है !
        इसी अवैध मोबाईल टावर को हटवाने के लिए EDMCके एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि हम लोगों ने सामने वाली पार्टी को स्टे दिला दिया है अब वो स्टे तब तक बढ़ता जाएगा जब तक तुम लोग लाख दो लाख खर्च नहीं करोगे क्योंकि मोबाईल कंपनियाँ करोड़ दो करोड़ तो ऐसे ही जजों को दे देती हैं इसलिए वे क्यों सुनेंगे आपकी बात !ऐसे ही घूस निगम अधिकारी कर्मचारियों को देती हैं इसलिए उनके अवैध टॉवर हटाने के लिए हम पैरवी ही क्यों करेंगे !इसीलिए इस अवैध मोबाईल टॉवर को हटवाने के लिए तुम कितने लाख खर्च करोगे !ये बताओ !ऐसे होता है सरकारी काम काज !ईमानदारी पसंद प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री दोनों हैं तब भी अधिकारियों कर्मचारियों का यदि वही रवैया है तो काँग्रेस क्या बुरी थी जिसे बेईमान बताकर ये ईमानदार लोग सत्ता में आए थे !
   हर गैर कानूनी काम को करने की अधिकारी अनुमति तो नहीं देते किंतु वो हो कैसे उसका इंतजाम पूरा कर देते हैं उसके अलग अलग चार्जेज होते हैं जो अवैधकर्मियों को पे करने होते हैं | भ्रष्ट सरकारों की इतनी हिम्मत नहीं होती है कि जहाँ जो अवैध काम चल रहे हैं उन्हें रोकने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को सस्पेंड करके उन्हें आज तक दी गई सैलरी उनसे वापस ले जब उन्होंने अपना काम ही नहीं किया तो सैलरी किस बात की ! किन्तु सरकार अपने अधिकारियों कर्मचारियों का बचाव हमेंशा किया करती है ! उनके विरुद्ध जनता में बहुत आक्रोश दिखेगा तो ट्रांसफर करके ठंडा कर देती है समाज को !
         गाँवों में सारे अवैध कब्जे करवाने का सारा जुगाड़ लेखपाल बताता है वही पैसे लेकर झूठ साँच नाम चढ़ा देता है बड़ा काम हुआ तो बड़े अधिकारियों से सेटिंग करवाकर उसकी दलाली खुद ले लेता है और अधिकारी को अधिकारी का हिस्सा दिला देता है  !
   कुल मिलाकर सरकारी काम काज में आज अधिकारियों कर्मचारियों की भूमिका क्या है !सरकारी आफिसों में अधिकारियों के कमरे आरामगाह बनाए ही क्यों जाते हैं यदि सरकार उनसे वास्तव में काम लेना चाहती है  तो !आफिसें यदि इतनी सुख दायिनी हों तो काम करने का मन किसका होगा वो भी तब जब उनसे कोई हिसाब किताब पूछने वाला ही न हो !वो बेचारे काम क्यों करेंगे !अधिकारी काम नहीं करेंगे तो उनके जूनियर लोग क्या उनसे इतना भी नहीं सीखेंगे कि सरकारी नौकरी काम करने के लिए होती ही नहीं है !ये बात सरकार को भी समझ लेनी चाहिए और तबादलों का दिखावा बंद कर देना चाहिए करनी है तो कुछ ठोस कारवाही करे ताकि जनता का भी भरोसा उनके प्रति बड़े !अवैध बूचड़ खाने रोकने का दायित्व किसका था उन अधिकारियों कर्मचारियों पर होनी चाहिए थी कठोर कार्यवाही किंतु ऐसे काम अचानक रोकने पर उनकी घूस भले बंद हो जाती है किन्तु अवैध काम करने वालों की तो रोजी रोटी ही मर जाती है !गलती अधिकारियों की भुगते समाज !क्यों ?

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