जातिगत आरक्षणभारतवर्ष को
प्रतिभाविहीन बनाने का प्रयास !
दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ये जानने के लिए मैंने शब्दकोश देखा जिसमें टुकड़ा,भाग,खंड,आदि अर्थ दलित शब्द के किए गए हैं।मूल शब्द दल से दलित शब्द बना है।मैं कह सकता हूँ कि टुकड़ा,भाग,खंड,आदि शब्दों का प्रयोग कोई किसी मनुष्य के लिए क्यों करेगा?इसके बाद दल का दूसरा अर्थ समूह भी होता है।जैसे कोई भी राजनैतिक या गैर राजनैतिक दल, इन दलों में रहने वाले लोग दलित कहे जा सकते हैं।इसी दल शब्द से ही दाल बना है।चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है।इस प्रकार दलित शब्द के टुकड़े,भाग,खंड,आदि और कितने भी अर्थ निकाले जाएँ किंतु दलित शब्द का अर्थ दरिद्र या गरीब नहीं हो सकता है।
राजनैतिक
साजिश के तहत यदि इस शब्द का अर्थ अशिक्षित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि करके ही
कोई राजनैतिक लाभ लेना चाहे तो यह शब्द ही बदलना पड़ेगा,क्योंकि इस शब्द का
अर्थ शोषित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि करने पर यह ध्यान देना होगा कि इसमें जिन
जिन प्रकारों का वर्णन है वो
सब कोई अपने आप से भले बना हो किंतु किसी के दलित बनने में किसी और का
दोष कैसे हो सकता है?यदि किसी और ने किसी का शोषण करके उसे दलित बनाया
होता तो दलित की जगह दालित होता।जब बनाने वाला कोई और होता है तो आदि अच की वृद्धि होकर जैसे चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है क्योंकि चना आदि यदि चाहें भी कि वे अपने आप से दाल बन जाएँ तो नहीं बन सकते।जैसेः- तिल से बनने के कारण उसे तैल कहा जाता है।बाकी सारे तैलों का तो नाम रख लिया गया है तैल तो केवल तिल से ही पैदा हो सकता है।ऐसे ही वसुदेव के पुत्र होने के कारण ही तो वासुदेव कहे गए। इसी प्रकार दलित की जगह दालित होता। चूँकि शब्द दलित है इसलिए किसी और का इसमें क्या दोष ?वैसे भी किसी ने क्या सोच कर दलित कहा है यह तो वही जाने किंतु इस ईश्वर
की बनाई हुई सृष्टि में कम से कम हम तो किसी को दलित नहीं कह सकते ऐसा
कहना तो उस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि का अपमान है।हमारा तो भाव है कि
सीय राम मय सब जग जानी ।
करउँ प्रणाम जोरि जुग पानी।।
मैं तो ईश्वर का स्वरूप समझकर सबको प्रणाम करता हूँ
और अपने हिस्से का प्रायश्चित्त भी करने को न केवल तैयार हूँ बल्कि दोष का
पता लगे बिना ही मैंने इस जीवन को धार पर लगाकर प्रायश्चित्त किया
भी है।यदि हमारे पूर्वजों के कारण समाज का कोई वर्ग अपने को बेरोजगार,गरीब
या धनहीन समझता है तो मैं अपने हिस्से का जो भी मुनासिब प्रायश्चित्त हो
आगे भी करना चाहता हूँ ।मेरी सविनय यह ईच्छा भी है कि मुझे इस आरोप के लिए
जो भी उचित दंड हो मिलना चाहिए इसके बाद हम अपने परिजनों को इस आरोप से अलग
करना चाहते हैं ।साथ ही हमारा यह भी निवेदन है कि हम अपने विषय में जो
जानकारियाँ दे रहे हैं उनकी सच्चाई के लिए किसी भी एजेंसी से जाँच कराने
को तैयार हैं ।दलितों का शोषण कभी किसी ने किया ही नहीं है शोषण के कहाँ हैं प्रमाण !फिर आरक्षण क्यों ?
No comments:
Post a Comment