Wednesday, 22 April 2015

दिल्ली के सरकारी और निगम स्कूलों में शिक्षा की उड़ाई जा रही हैं धज्जियाँ ! बारे 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान' !

   स्कूलों का निगरानी तंत्र कहाँ है अपने आपसे कोई अधिकारी क्यों जाएगा स्कूलों में और चला भी जाएगा तो कक्षाओं में क्यों जाएगा चाय पानी पिलाकर आफिस से ही वापस भेज दिया जाएगा !बारे अधिकारी !बारी सरकार !क्या ऐसे हो सकती है पढ़ाई !देश की सरकारी शिक्षा को शिक्षकों से केवल नैतिकता की उम्मीद वो चाहें  तो मानें या न मानें !
    विदित हो कि शिक्षा को लेकर कई स्कूलों में निजी तौर पर मेरा जाना आना होता रहता है शिक्षा के विषय में बच्चों से बात करना मेरा स्वभाव है शिक्षा कैसी इसके बहुत लोगों के पास बहुत आँकड़े हो सकते हैं किंतु सच्चाई तो बच्चों से बात करने पर ही पता लगती जो भोग रहें हैं इस प्रकार की अव्यवस्था ! इसी क्रम में मैंने एक दिन पूर्वी दिल्ली के कृष्णानगर  के  निगम प्रतिभा विद्यालय डबल स्टोरी बिल्डिंग की बच्चियों से बात की सौभाग्य से एक केंद्रीय मंत्री की क्लीनिक के सामने है यह स्कूल किन्तु कोई मंत्री किसी स्कूल जैसी छोटी जगह क्यों चला जाएगा जब तक उसे सम्मान सहित बुलाया न जाए !शिक्षिकाओं को इस बात पर पूरा भरोसा भी है इसलिए उन्हें ऐसे वैसे सरकारी लोगों का कोई भय नहीं दिखता है ।वैसे भी वे स्कूलों की कमियों की लिस्ट बनाकर रखती हैं कोई पहुंचे भी तो वाही पकड़ा देती हैं वो चले आते हैं जबकि उन्हें पूछना चाहिए कि शिक्षा क्यों नहीं हो रही है किंतु कोई क्यों पूछे उसका अपना क्या नुक्सान !उनएक बच्ची ने तो यहांतक कहा कि जिनके पास पैसे हैं वो प्राइवेट में पढ़ते हैं ट्यूशन भी पढ़ते हैं उन्हें नौकरी मिलने  के लाले होते हैं हमें कौन पूछेगा ! जिनकी शिक्षा की किसी की जिम्मेदारी ही नहीं है
के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते होंगे !
     खैर ,इस स्कूल में सुबह लड़कियों की कक्षाएँ चलती हैं जहाँ बच्चियों से बात करके पता चला कि शिक्षिकाएँ अपने कर्तव्य का पालन न करती हुई निष्ठुरता पूर्वक बच्चियों के  भविष्य से खिलवाड़ करती जा रही हैंबच्चियाँ अपने भविष्य को लेकर चिंतित दिखीं ! किसी शिक्षिका के स्कूल आने जाने का कोई निश्चित समय नहीं है कक्षाओं में बैठकर पढ़ाने की अपेक्षा एक आध चक्कर मार लेती हैं बस उसमें यदि कुछ बता आईं तो ठीक अन्यथा किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं है कहीं एक जगह बैठकर चला करती हैं मीटिंगें घर गृहस्थी की बातें अन्यथा मार्किट करने निकल जाती हैं फिर आ जाती हैं !महोदय !गैर जिम्मेदारी का आलम ये है कि बच्चियों की देख  रेख तक में कोताही बरती जा रही है किसी का ध्यान उन पर नहीं अभिभावक तो उनके सहारे छोड़कर चले जाते हैं अपनी बच्चियाँ  इसके बाद की जिम्मेदारी किसकी है !इतनी इतनी सैलरी देने के बाद क्या इनसे इतनी भी अपेक्षा नहीं रखी जा सकती कि ये बच्चियों के भविष्य को सुधारने में ईमानदारी बरतें !ऐसी परिस्थिति में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं को खोखला आडम्बर क्यों न माना जाए  !
         आपकी सरकार से अभी भी उम्मीद है कि आप कुछ करेंगे और सोचेंगे इन गरीबों की बच्चियों के भविष्य विषय में और आप ऐसा कर भी रहे हैं जिसके लिए सादर साधुवाद !एक ऐसी ही बेटी का पिता होने के कारण बच्चियों के शैक्षणिक भविष्य एवं सुरक्षा के लिए चिंतित होना हमारा कर्तव्य है । चूँकि मेरी बच्ची भी यहीं पढ़ती है इसलिए निजी तौर पर इन लोगों से निवेदन अनेकों बार कर चुका हूँ किंतु उन पर इसका असर होते नहीं दिखता है क्योंकि उन्हें पता है कि हमसे उनका लाभ होता नहीं है हानि हम कर नहीं सकते हैं !इसी आशा से आप से निवेदन किया है अपेक्षा है कि आपके ही प्रयास से कुछ सुधार होगा !
                                                                                                                       

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