Sunday, 24 August 2014

जिसने मरना सीख लिया है

जिसने मरना सीख लिया है
जीने का अधिकार उसी को
जो काँटों के पथ पर आया
फूलो का उपहार उसी को
जिसने गीत सजाये अपने
तलवारो के झनझन स्वर पर
जिसने भैरव राग अलाप
े रिमझिम गोली के वर्सन पर
जो वलिदानो का प्रेमी है
इस जगती का प्यार उसी को
Lik

Thursday, 21 August 2014

ब्राह्मणवाद या सवर्णवाद जैसी संकीर्ण सोच ईश्वर शत्रुओं को भी न दे !

      सवर्णों ने किसी का शोषण कभी किया ही नहीं है किन्तु अपना शोषण सहा भी नहीं है और दलितों ने सहा है आज भी सहते जा  रहे हैं फिर भी दोष सवर्णों को देते हैं आखिर आरक्षण की इच्छा ही क्यों अपनी भुजाओं के भरोसे स्वाभिमान पूर्वक क्यों नहीं जीना सीखते !

      सवर्णों ने कभी किसी जाति का शोषण नहीं किया है हाँ अपना शोषण किसी को करने भी नहीं दिया है !सवर्ण लोग अपनी जाति  वाले अपराधियों को भी क्षमा नहीं करते रावण को मारने की माँग ब्राह्मणों ने ही उठाई थी इसी प्रकार से क्षत्रिय लोगों ने युद्ध हमेंशा क्षत्रिय राजाओं के विरुद्ध लड़े हैं !

     समाज के कुछ कामचोर,अकर्मण्य  मक्कार लोग बिना  किसी योग्यता के बिना कुछ किए धरे बहुत सारा धन इकठ्ठा करके सुख सुविधा  पूर्ण का जीवन जीना  चाहते हैं ऐसे सफेदपोश लोग जातिवाद क्षेत्रवाद संप्रदायवाद आदि के बलपर समाज को बरगलाकर अपना घर भरते हैं जबकि ऐसे लोग किसी जाति क्षेत्र या संप्रदाय से कोई ख़ास सम्बन्ध नहीं रखते इन्हें केवल अपना शरीर और अपने  परिवार आदि का ही घर भरने के लिए जातिवाद क्षेत्रवाद संप्रदायवाद  आदि का मुखौटा ओढ़ना पड़ता है और ये शोषण की प्रवृत्ति अनादि काल से चली आ रही है ये कुछ लालच देकर समाज के किसी एक वर्ग को अपना निशाना बनाते हैं उसे पहले अपने चंगुल में फँसाते हैं और फिर बेइज्जती तो उनकी कराते हैं और घर अपना भरते हैं ये लोग सवर्ण होने के बाद भी सवर्णों का और दलित होने के बाद भी दलितों का शोषण करने में हिचकते नहीं हैं । सवर्णों में भी गरीब लोग हैं उन्होंने गरीबत सह ली है किन्तु इन सामाजिक दलालों के हाथ अपना सम्मान स्वाभिमान बेचा नहीं है । जो लोग इनके दिए लालच में फँस गए वे आजतक आरक्षण के भिखारी बने हुए हैं वो दलाल आरक्षणार्थियों को  बहुत कुछ दिला चुके हैं बहुत कुछ दिला रहे हैं और बहुत  कुछ आगे दिलाने का आश्वासन दे रहे हैं फिर भी लेने वाले गरीब ही बने हैं और दलालों की मौज हो रही है अब उन दलालों की निगाहें जाति,क्षेत्र, संप्रदायवाद आदि के नाम पर सवर्णों की भी शान्ति भंग करने पर लगी हुई हैं जिससे सवर्णों या सम्पूर्ण समाज को सतर्क रहने की आवश्यकता है । मुझे ऐसे लोगों की सलाहें आजकल खूब आ रही हैं । 

    बंधुओ ! ब्राह्मणवाद से ब्राह्मणों को कुछ नहीं मिलेगा आखिर संख्या कितनी है ब्राह्मणों की ! इस लोकतंत्र में सिर गिने जाते हैं इसलिए सारी समाज को साथ लिए बिना न ब्राह्मणों का भला हो सकता है और न ही समाज का ! ब्राह्मणवाद  या सवर्णवाद पनपाने  से राजनीति में ब्राह्मण और सवर्ण वाद के नाम पर दलितों की तरह ही ब्राह्मणों और सवर्णों में भी कुछ नए चौधरी तैयार होकर राजनीति  में कुछ पद प्रतिष्ठा पा जाएँगे इसके अलावा और क्या होगा जो पार्टी या सरकार उनका और उनके सगे सम्बन्धियों का हित  साधन नहीं करेगी तब सवर्णों में स्वाभिमान की हवा भरकर सवर्ण भीड़ें इकट्ठा करके सरकारों पर दबाव बनाया जाएगा और जैसे ही पार्टी और सरकारें दबाव में आ जाएँगी तो अपना निजी हित  साधन होगा ! भिखारी बनाकर खड़े तो सारे सवर्ण किए जाएँगे किन्तु फायदा केवल सवर्णों के स्वयंभू चौधरी उठाएँगे ! 

      दलितों के मसीहा लोगों ने सवर्णों को बदनाम कर करके केवल अपने घर भरे हैं दलितों को कुछ नहीं दिया है दलित जहाँ थे वहीँ हैं उन दलितों के चौधरियों की अकूत सम्पदा की आज जाँच होनी चाहिए कि वह आई कहाँ से ?जाँच का दायरा  इस प्रकार का बने कि जिस दिन वो राजनीति में आए थे तब उनके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है जो संपत्ति बढ़ी है वह आई कहाँ से ! उचित तो ये है कि ऐसी जाँच सभी नेताओं की होनी चाहिए किन्तु दलित नेताओं की इसलिए जरूर होनी चाहिए क्योंकि उनकी गरीबत  के लिए सवर्णों को कोसा जाता रहा है आखिर यह सच जनता के सामने आना तो चाहिए कि दलितों के नाम पर दी जा रही आरक्षण आदि सुविधाएँ आखिर जा कहाँ रही हैं  !

       दलितों से आरक्षण की भीख मँगवा मँगवा कर दलित नेताओं ने उन्हें तो सरकारी भिखारी सिद्ध करवा दिया और लाभ स्वयं लेते रहे दलित नेताओं को आप स्वयं देखिए आज खुद तो अनाप शनाप प्रॉपर्टियाँ  बना रहे हैं बड़े बड़े उद्योग लगा रहे हैं और जहाजों पर चढ़े घूम रहे हैं किन्तु उन दलित बेचारों को क्या मिला जिनका मिस यूज हुआ !

      मैं कभी नहीं चाहूँगा कि ब्राह्मणवाद  या सवर्णवाद  फैलाकर सवर्णों को इसप्रकार का बेचारा बनाकर कभी सरकार के सामने भीख का कटोरा पकड़ा कर खड़ा किया जाए !और जो लोग इस प्रकार के विचारों से हमें जोड़ने के लिए संपर्क भी कर रहे हैं मैं उनसे क्षमा माँगता हूँ क्योंकि मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि इतनी संकीर्ण सोच का हमें मित्र तो नहीं ही मिले किन्तु शत्रु भी न मिले जो जाति क्षेत्र और धर्म के नाम पर आरक्षण की भीख माँगकर समाज पर बोझ बन कर जिए और अपने पिछड़ेपन का दोष किसी और पर मढ़ता रहे आखिर जब उनके पूर्वजों का या उनका शोषण हुआ था तभी उन लोगों ने इसका विरोध करके अपने को बचाया क्यों नहीं था आज सवर्णों के पास कुछ हो या न हो सुखी हों या दुखी हों किन्तु आज भी कोई सरकार उनका मिसयूज कोई लालच देकर नहीं कर सकती! सरकारों और राजनैतिक दलों को भी पता है कि बेवकूफ किसे बनाया जा सकता है किसे नहीं ,जिसे बनाया जा सकता है वे उसे ही बनाते हैं सबको नहीं बना सकते !यही कारण है कि सरकारें और राजनैतिक दल एवं राजनेता सवर्णों को मान प्रतिष्ठा  पूर्वक सम्मान स्वाभिमान की बातें बताकर  पटाते हैं और असवर्णों (दलितों ) को रोटी अर्थात आरक्षण आदि सुविधाएँ दिखाकर पटाते हैं ! क्योंकि असवर्ण जाति  क्षेत्र के नाम पर फिर उनसे जुड़ जाएगा किन्तु सवर्ण लोग अपनी जाति  वाले अपराधियों को भी क्षमा नहीं करते रावण को मारने की माँग ब्राह्मणों ने ही की थी इसी प्रकार से क्षत्रिय लोगों ने युद्ध हमेंशा क्षत्रिय राजाओं के विरुद्ध ही लड़े हैं ये सवर्णों की जीवित मानसिकता का परिचय है इसी  कारण सवर्णों को बेवकूप नहीं बनाया जा सकता क्योंकि उन्हें पता है कि सवर्ण लोग सवर्णों के अपराध को भी सह नहीं पाएँगे ! 

      आखिर ये व्यवहार दलित लोग दलित नेताओं के साथ क्यों नहीं करते हैं उनसे क्यों नहीं पूछते हैं बिना कुछ किए धरे उनकी अकूत संपत्ति बढ़ने का राज !आखिर जब वो राजनीति में आए थे तब उनके पास इतनी या इससे आधी चौथाई संपत्ति भी थी क्या ?

       इन सब उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए मैं कभी नहीं चाहूँगा कि कोई भी सवर्ण अपने सम्मान स्वाभिमान की लगाम किसी अन्य सवर्ण को दे जो उसका मिसयूज करता रहे ।

Saturday, 16 August 2014

साईं प्रकरण पर शास्त्रार्थ में भी कुछ लोग स्वार्थ खोज रहे हैं आखिर क्यों ?

      शास्त्रार्थ के नाम पर कुछ लोग धमकाते घूम रहे हैं कि उनके पास कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर कोई नहीं दे सकता !अर्थात यदि उनके प्रश्न जानना चाहते हो तो उनका आर्थिक पूजन करो !अन्यथा इतना सारा ड्रामा करने की अपेक्षा उन्हें अपने प्रश्न सीधे क्यों नहीं पूछ लेने चाहिए !                                         कुछ स्वयंभू विद्वान शास्त्रार्थ का नाम सुनकर ऐसा सक्रिय हो गए हैं कि उन्होंने इसमें भी दिमाग लगाना शुरू कर दिया है कि धनार्जन कैसे किया जाए !एक अपरिचित व्यक्ति पंडितों की वेष भूषा में हमसे मिलने आए उन्होंने नेट पर हमारे विषय में पढ़ा होगा कि मैं सनातन धर्मी हूँ और सनातन धर्म में फैलाए जा रहे पाखण्ड के विरोध में लिखता हूँ यह सब सोच समझकर उन्होंने कहा कि शंकराचार्य जी ने शास्त्रार्थ आखिर क्यों रखा है क्या वो केवल अपने को ही विद्वान समझ रहे हैं तो उनसे मैंने कहा निःसंदेह !वो बहुत बड़े विद्वान हैं दूसरी बात वो सनातन धर्म के शीर्ष धर्माचार्य हैं तीसरी बात उन्होंने सनातन धर्म में घुसपैठ करके पाखण्ड फैला रहे साईंयों के विरुद्ध आवाज उठाई है इसलिए समस्त सनातन धर्मियों के वैदुष्य पर उनका अधिकार भी है कि वो अपने शास्त्रीय कर्तव्य का निर्वहन करते हुए विद्वानों को उत्साहित करें कि विद्वान लोग आगे आएँ और सनातन धर्म को पाखण्ड मुक्त बनाने में अपने अपने दायित्व का निर्वाह करें !

     इसपर उन विद्वान महानुभाव ने हमसे कहा कि मेरे पास पाँच प्रश्न ऐसे हैं जो मैं अगर साईं के पक्ष के लोगों से पूछ दूँ तो वो निरुत्तर होकर वापस चले जाएँगें इसी प्रकार से पाँच प्रश्न हमारे पास ऐसे भी हैं कि यदि वे प्रश्न हम सनातनधर्म के शास्त्रीय विद्वानों या शंकराचार्य जी से ही पूछ दें तो उन्हें निरुत्तर होकर वो सभा छोड़ने पर मजबूर होना होगा किन्तु मैं नहीं चाहता कि सनातन धर्म की बेइज्जती हो इसलिए ये बात मैं आपको बता रहा हूँ ! इस मैंने उनसे कहा कि आप अपने प्रश्नों के बारे में मुझे बताएँ आखिर वे प्रश्न क्या हैं तो उन्होंने अपने प्रश्न हमें बताने से यह कहते हुए मना  कर दिया कि ये ऐसे नहीं होगा हम शास्त्रार्थ तो शास्त्रार्थ सभा में ही करेंगे तो मैंने उनसे कहा कि किसी भी सभा में मैं आपके शास्त्रीय प्रश्नों का उत्तर देने या शास्त्रार्थ करने के लिए तैयार हूँ बशर्ते ! आपकी शास्त्रीय शिक्षा और हमारी शिक्षा समान हो तो अन्यथा कई बार लोग आते हैं और चोंच लड़ाकर चले जाते हैं वो तो ये कहने लायक हो जाते हैं कि मैंने उनसे शास्त्रार्थ किया था किन्तु हमारी शैक्षणिक सामर्थ्य का उपहास हमें झेलना पड़ता  है इसलिए मैं आपके प्रश्नों का सामना करने को तैयार हूँ बशर्ते आप हमारी शैक्षणिक सामर्थ्य का सामना करने को तैयार हों !उन्होंने हमारी शिक्षा के बारे में जानना चाहा तो मैंने यह लिंक उन्हें दे दिया - (यहलिंकदेखें-http://snvajpayee.blogspot.com/2012/10/drshesh-narayan-vajpayee-drsnvajpayee.html )

     इस पर वो हम पर न केवल नाराज हुए अपितु बिना कोई कांटेक्ट नम्बर दिए हुए मुझे घमंडी कहते हुए वो चले गए -

   मैंने उन्हें यह भी बताने की कोशिश की कि शंकराचार्य जी ने साईंयों को पहले समझाया था कि वो सनातन धर्म में भ्रष्टाचार फैलाने से बाज आएँ किन्तु साईंयों ने न केवल उनके शास्त्रीय आदेश की अवहेलना की अपितु पैसे का प्रदर्शन करते हुए कुछ मीडिया के लोगों एवं कुछ पंडित और बाबाओं का आर्थिक पूजन करके उन्हें अपने पक्ष में प्रभावित कर लिया और सनातन धर्मशास्त्रों के विरुद्ध साईं को भगवान बनाने के समर्थन में उन बेचारों से बयान दिलवाए जाने लगे टी.वी.चैनल भी साईंयों के द्वारा किए गए अपने आर्थिक पूजन से प्रभावित होकर न केवल साईंयों  के गुण गाने लगे अपितु उनके समर्थन में धर्म संसद आयोजित करने लगे जिसमें धर्म एवं धर्म शास्त्रों का एक भी प्रमाण बोले बिना केवल चोंचें लड़वाई जाती रहीं जिसमें सनातन धर्म में फैलते पाखण्ड के विरोध में शंकराचार्य जी के द्वारा उठाई जा रही बातों को विवादित बयान बताया जाता रहा चूँकि टी.वी.चैनलों पर यह सब कुछ इतना अधिक फैल चुका था जिससे इस भ्रम का शास्त्रीय निराकरण होना बहुत आवश्यक हो गया था इसीलिए पक्षपाती मीडिया को एक तरफ करके अब शास्त्रार्थ सभा में लोगों को  आमने सामने बात करने का अवसर मिलेगा  और दोनों ओर से शास्त्रीय विचार सामने लाए जाएँगे ,जब साईँ समर्थक भी हमारे भाई बंधु ही हैं तो धर्मशास्त्रों की बातें उन्हें भी माननी होंगी यही धर्म है । 

    वैसे भी   शास्त्रार्थ का उद्देश्य कभी किसी को निरुत्तर करने का नहीं   होता यह बात और है कि जिसका जैसा शास्त्रीय अध्ययन है वो उतनी देर उस शास्त्रीय बहस में टिक पाता  है अंततः उसे पीछे हटना ही होता है किन्तु इसका यह मतलब कतई नहीं होता कि  पराजित हो गया इसलिए वो अयोग्य है अपितु उसका अभिप्राय यह लगाया जाना चाहिए कि वह अन्य लोगों की अपेक्षा शास्त्र का अधिक विद्वान था तब तो सम्मिलित हुआ शास्त्रार्थ में ! इसलिए सम्मान उसका भी होता है और होना भी चाहिए !

      अब रही बात शास्त्रीय विद्वानों की एक से एक बड़े विद्वान सनातन धर्म में हो चुके हैं आज भी हैं और आगे भी होते रहेंगे दूसरी बात सनातन धर्म चूँकि सभी धर्मों से प्राचीन है और इसकी शास्त्रीय समृद्धि रूपी गाय हमेंशा हम सनातन धर्मियों पर उपकार करती रही है !यहाँ भी कुछ लोग तो इस गाय के ज्ञान रूपी दूध घी का आनंद लेते रहे तो कुछ लोग गाय के गोबर और मूत्र को लेकर न केवल उसकी दुर्गन्ध स्वयं सूँघते रहे अपितु  समाज को भी बताते रहे कि देखो सनातन धर्मी लोग ऐसी गायों  को पूजते हैं जिनके मल मूत्र में इतनी गंध होती है! इसके पीछे का कारण यह रहा कि उन्हें अपने अज्ञान के कारण हमेंशा यह लगता रहा कि गायों के भी मलमूत्र होता है और उसमें भी दुर्गन्ध होती है यह बात सनातन धर्मियों को पता ही नहीं है अन्यथा वो गाय के दूध का प्रयोग ही नहीं करते इस भ्रम में उन्होंने अपने को गाय के मल मूत्र का अन्वेषक मान  लिया और समाज को चुनौती देते फिरने लगे कि मेरे पास गाय के विषय में कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो पूछ कर मैं बड़े बड़ों को निरुत्तर कर सकता हूँ किन्तु मैं पूछना इसलिए नहीं चाहता कि इससे सनातन धर्म की बेइज्जती हो जाएगी क्योंकि सनातन धर्मी गाय को पूजते हैं किन्तु उन्हें गाय के मल मूत्र के विषय में पता नहीं है यह खोज स्वयं मैंने ही की है !

    एक दिन किसी विद्वान से वे ऐसे ही मिथ्या अहंकार बश उलझ गए कि जो मैं जानता हूँ वह किसी को पता नहीं है तो उस विद्वान ने उन्हें समझाया कि जब से सृष्टि बनी प्रारम्भ से ही लोग गाय के दुग्ध को अमृतोपम मानते रहे हैं और गाय के मल मूत्र को औषधि मान कर अनंत काल से उसका लाभ लेते रहे हैं !जैसे ही उन्होंने गाय के दूध और मल मूत्र के विषय में जानकारी दी तो उस शास्त्रार्थी अन्वेषक को अपने अज्ञान का पता लग गया और इन्हें बड़ा संकोच हुआ यह देखकर उन विद्वान महानुभाव ने समझाया कि गलती आपकी वहाँ नहीं है जहाँ आप समझ रहे हैं अपितु गलती वहाँ हुई है जिसे आप अभी भी समझना नहीं चाह रहे हैं उन्होंने  पूछा कि वो कैसे ?

     इस पर विद्वान ने कहा कि आपको अपने ज्ञान और ज्ञान के विषय में तो पता हो सकता है इसी प्रकार से आप कम या अधिक पढ़े लिखे भी हो सकते हैं यह तो सब कुछ संम्भव हैं किन्तु दूसरा किस विषय को कितना जानता है या नहीं, योग्य है या अयोग्य ,आपके प्रश्न का उत्तर वो दे सकता है या नहीं इन सबका मूल्यांकन आप नहीं कर सकते और यदि आप करते हैं तो ये आपकी सबसे बड़ी मूर्खता है !आखिर इस सृष्टि सागर में विद्या पर जितना अधिकार आपका है उतना ही किसी और का जितना परिश्रम आप कर सकते हैं उतना ही कोई और जितने विद्वान गुरु आपको मिल सकते हैं उतने ही किसी और को भी फिर आप किसी और को यह चुनौती कैसे दे सकते हैं कि आपके शास्त्रीय प्रश्नों के उत्तर कोई और दे ही नहीं सकता है !ऐसी धारणा वाले लोग शास्त्रीय स्वाध्याय के क्षेत्र में अपने जैसा हर किसी को समझने लगते हैं और जो विद्वान होता है वो दूसरे को भी विद्वान ही मानकर चलता है बाद में जो हो सो हो क्योंकि किसी विद्वान के मन में दूसरे विद्वान के परिश्रम का भी  सम्मान होता है -

 विद्वज्जनेव जानाति विद्वज्जन परिश्रमम् ।       

     इस विषय में धर्म सम्राट  स्वामी करपात्री जी महाराज और हरिहर कृपालु जी के बीच शास्त्रार्थ की चर्चा मैंने भी सुनी है - जो शास्त्रार्थ हरिहर कृपालु जी की तरफ से ही टाला गया था रहें होंगे उसके कुछ सामाजिक कारण जिनके विषय में मुझे पता नहीं है किन्तु वे भी उद्भट विद्वान थे फिर भी धर्म सम्राट  स्वामी करपात्री जी महाराज से किसी ने कह दिया कि संभवतः उन्होंने पराजय के भय से ऐसा किया होगा तो महाराज जी ने उसी क्षण उन्हें यह कहते हुए रोका कि शास्त्रार्थ में कभी किसी की पराजय नहीं होती हाँ विजय जरूर होती है किन्तु वो किसी व्यक्ति की नहीं होती  अपितु विजय तो शास्त्र की ही होती है क्योंकि  शास्त्रार्थ में हमेंशा तर्क भले कोई भी देता रहे किन्तु सर्व सम्मति से स्वीकार वही किया जाता है जो शास्त्रीय सच होता है तो शास्त्रार्थ से शास्त्र का एक नया अर्थ एक नया पक्ष एक नया अभिप्राय सामने आता है  इससे कुछ लोगों के अथक परिश्रम से लाभ सारे  शास्त्रीय समाज को हो जाता है उन्हें बिना किसी विशेष परिश्रम के एक नए अर्थ का लाभ हो जाता है जो अंततः सनातन धर्मियों की ज्ञान संपदा को बढ़ाने वाला होता है इससे लाभ तो सनातन धर्म का ही होता है ,क्योंकि मेरी जानकारी में शास्त्रार्थ की परंपरा किसी अन्य  धर्म में नहीं है ! इसलिए इसका सबसे बड़ा लाभ उन लोगों को होता है जिनका अध्ययन बहुत अधिक नहीं होता है । 

   इसलिए शास्त्रार्थ को किसी की जीत हार के रूप में न देखकर अपितु इसे शास्त्र की विजय के रूप में देखा जाना चाहिए !

            

Friday, 8 August 2014

मुक्त लेखन


जिंदगी में आप कितने खुश हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है अपितु महत्वपूर्ण यह है कि आपके कारण कितने लोग खुश हैं !





कुछ लोग कहते हैं कि साईं को संत मान कर पूजने में क्या बुराई है ?
साईं सेवक बंधुओं ! हमारा निवेदन मात्र इतना है कि पूज तो किसी को भी सकते हो पूजने में बुराई क्या है कण कण में ईश्वर का बास है तो उसी भावना से पूजिए फिर साईं कहाँ से आ गए !और यदि साईं को ही पूजना है तो सोच कर देखो जब साईं की प्राण प्रतिष्ठा का कोई मन्त्र नहीं होता है इसलिए इनकी प्राण प्रतिष्ठा तो हो नहीं सकती और साईं  के अपने प्राण तो ऊपर जा चुके हैं  संग मरमर पत्थरों में साईं के नाक मुख कान आदि बनाकर
लेकिन तुम्हारे बाप मरेंगे तो उनके आनंद-अनुभूति के, उनके समाधि के, उनके ध्यान के तुम हकदार नहीं हो जाओगे। भीतर का धन ऐसे नहीं दिया जाता कि उसकी वसीयत कर दी कि मरते वक्त जैसे वसीयत लिख गये कि मेरा सारा धन मेरे बेटे का और मेरी समाधि भी, और मेरा ध्यान भी इसी का। कि मेरे चार बेटे हैं तो चारों समाधि को बांट लेना। ध्यान या समाधि बांटी नहीं जाती, न दी जाती न ली जाती।




    
दो. जौं चाहउ सुख शांति घर भरा रहै धन धाम ।शुभ प्रभात तौ बोलना मित्रो 'जय श्री राम '॥

प्रिय तुम मेरे स्वप्न नहीं हो,जीवन की सच्चाई हो !
कोमल दिल का स्पंदन हो,धड़कन की शहनाई हो !
                                    
मनुष्य कितना मूर्ख है |
प्रार्थना करते समय समझता है कि भगवान सब सुन रहा है,
पर निंदा करते हुए ये भूल जाता है।
पुण्य करते समय यह समझता है कि भगवान देख रहा है,
पर पाप करते समय ये भूल जाता है।
दान करते हुए यह समझता है कि भगवान सब में बसता है,


सनातन धर्म की परंपरा में असंख्य बड़े बड़े तपस्वी सिद्ध महापुरुष  हुए हैं किसके किसके नाम गिनावें कोई छूट न जाए इस भय से मैं सभी  को प्रणाम कर लेता हूँ ,सूर ,तुलसी ,मीरा जैसे और भी अनेकों भक्त कवि हुए हैं जिन्हें अवतारी महापुरुष मानने में कोई बुराई नहीं है जिन्होंने भक्ति सरिता बहाई है अपने जिस परंपरा में



"अच्छा समय  और अच्छी समझ एक साथ कभी किसी को नहीं आते समय आता है तब समझ नहीं होती और समझ होती है तो समय निकल जाता है !"

विवादों में रहने वाली बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन नहीं छोड़ना चाहती है भारत    P-7 News 

      भारत छोड़ना कौन चाहता है नवाज शरीफ आए थे तो बार बार ऐसे घूम घूम कर भारत में आकर अच्छा लगने की बात पत्रकारों को बता रहे थे लग रहा था कि वो भी कहीं ऐसा ही न सोच लें कि यहाँ आकर जब इतना अच्छा लगा तो यहाँ रहने पर न जाने कितना अच्छा लगेगा और सच भी यही है तसलीमा नसरीन ने तो रहकर भी देख लिया कि इन आधुनिकता के झंझावातों के विकार भारत में भी आ गए होंगे ये माना जा सकता है किन्तु इन सबके बाद भी संस्कारों के देश भारत में अभी भी बुराई को बुराई कहने और मानने की परंपरा है और एक दूसरे के अच्छे विचार बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार करने की परंपराएं सुरक्षित हैं कुछ विकारों और भ्रष्टाचारों के बाबजूद शासक और शासितों के बीच आपसी विश्वास कायम है ! शास्त्रीय संस्कारों  के देश भारत की क्षमा भावना को विश्व जानता है यहाँ बड़े से बड़े अपराधी अत्याचारी आतंकवादी जैसे मानवता के शत्रुओं को भी न्याय पाने का पूर्ण अवसर दिया जाता है हमारी उदात्त भावना से विश्व सुपरिचित है !इसीलिए तो कहा गया है कि -
                                           "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा "



क्या निर्मम अपराधी हो सकते हैं नाबालिग?-IBN-7 
क्यों नहीं !अपराध सोचे तो मन से जाते हैं विशेषकर सेक्सापराध और उनका निश्चय भी मन से ही किया जाता है सेक्सानन्द लेने की इच्छा भी मन में ही होती   तन तो मन की आज्ञा का पालन करते हुए उस सोच की मात्र मदद करता है मूल कारण तो मन ही है और मन कभी बालिक या नाबालिक नहीं होता है वो तो हमेंशा एक जैसा रहता है इसलिए नाबालिक बच्चे अपराध भी कर सकते हैं और निर्मम अपराध भी !बशर्ते उनका शरीर उस लायक हो !

अंगार न लिखना मित्र कभी झुलसेंगे लोग तवाही से । 

श्रंगार लिखा यदि तो टूटेंगे तटबंध मनाही के ॥

यदि प्यार लिखा तो दुराचार की ओर बढ़ रही तरुणाई ।  अब सदाचार संस्कार लिखो अति उत्तम शिष्टाचार लिखो !  

  लेखक -दो. शेष नारायण वाजपेयी 

 

किस्मत वो तवायफ है, जो सिर्फ मेहनत करने वालों के
साथ सोती है।

 

Thursday, 7 August 2014

kaangres

संविधान की तौहीन है बेनीवाल को हटाना: कांग्रेस-IBN-7

  किन्तु अयोध्या आंदोलन के समय भाजपा की चारों सरकारें क्यों बर्खास्त कर दी गई थीं और ये काम किया किसने था अगर ये मान भी लिया जाए कि उत्तर प्रदेश सरकार कानून व्यवस्था को बनाए एवं  बचाए रखने में सफल नहीं हुई तो केवल उत्तर प्रदेश सरकार पर कार्यवाही होती वहां तक तो ठीक माना  भी जा सकता था किन्तु अलग अलग प्रदेशों की जनता ने उन उन प्रदेशों में भाजपा की सरकारें चुनी थीं उस जनता की इच्छा के विरुद्ध उन उन प्रदेशों की सरकारों को क्यों हटाया गया था आखिर उनका क्या दोष था ?तब कहाँ चली गई थी नैतिकता ?

धर्म परिवर्तन

गाजियाबाद: धर्म परिवर्तन के बाद नाबालिग से रेप -अमर उजाला 

बंधुओ ! अभी मेरठ की घटना ठंडी हुई भी नहीं थी कि गाजियाबाद में भी ....!

   आखिर ये सब हो क्या रहा है उ.प्र. की सपा सरकार समेत सभी धर्म निरपेक्ष नामक दल हमेंशा हिन्दू संगठनों को कोसा करते हैं इन जड़ लोगों ने वोट लोभ के कारण  ही सच्चाई छिपाने के लिए हिन्दू संगठनों को भगवा आतंकवादी कहा होगा।जो लोग ऐसा अक्सर कहा करते हैं कहीं उन लोगों का इस धर्म परिवर्तन से कोई सम्बन्ध तो नहीं है ! यदि मेरठ और गाजियाबाद में दो घटनाएँ एक ही प्रकार की सामने आती हैं और लगभग एक ही समय आती हैं इसका मतलब यह भी तो हो सकता है कि ये सब कुछ पहले से ही बड़े पैमाने पर चल रहा है किन्तु सारा मामला प्रकाश में आ ही न पा रहा हो संभव ये भी है कि मोदी जी की सरकार आ जाने के कारण अब ऐसे अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाने का साहस हो गया है हो सकता है कि इससे पहले ऐसे लोगों की आवाज दबा दी जाती रही हो किन्तु इस क्षेत्र में इस तरह की घटनाएँ अत्यंत दुर्भाग्य पूर्ण हैं मुस्लिम बंधुओं को चाहिए कि वे ऐसी घटनाओं का पर्दाफाश करने के लिए स्वयं आगे आएँ और प्रशासन का सहयोग करें साथ ही ऐसे तत्वों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए !अन्यथा यदि ये काम हिन्दू समाज को करना पड़ा तो तनाव बढ़ भी सकता है क्योंकि बच्चियों पर हो रहे अत्याचारों पर सहनशीलता दिनोंदिन जवाब देती जा रही है !

राहुल गांधी

  संसद में केवल एक व्यक्ति की बात सुनी जा रही है- राहुल गांधी 

   किन्तु राहुल जी ! वो एक व्यक्ति अपनी बात बोलता है इसलिए उसकी सुनी जा रही है और उसकी सरकार है इसलिए उसकी सुनी जा रही है आपको बुरा क्यों लग रहा है जो बोलेगा उसी की तो सुनी जाएगी आप तो किसी और के द्वारा लिखा लिखाया पढ़ते हो कहाँ तक सुने जाएँ वही पुराने धुराने आरोप वही घिसे पिटे भाषण ! एक बार केवल कलावती की कथा सुनाई थी आपने जिसमें कोई विशेष बात नहीं थी, सुना है संसद का समय बहुमूल्य होता है जनता का धन खर्च होता है इस पर तो वहाँ जनता के कामों के लिए ही चर्चा हो तो वही अच्छा होगा कलावती की कथा सुनाने के लिए तो नहीं ही होगा वो तो कहीं भी सुनाई जा सकती है ।

  संसद में केवल एक व्यक्ति की बात सुनी जा रही है- राहुल गांधी

  वैसे भी राहुल जी ! जो सरकार आपके द्वारा कलावती की कथा सुनती रही उसका तो मोक्ष हो गया ! ये सरकार अभी नई बनी है ये अपना मोक्ष क्यों चाहेगी !इसलिए आपकी कथा नहीं सुन रही है !

 

संसद में केवल एक व्यक्ति की बात सुनी जा रही है-राहुल गांधी

   राहुल जी ! जनता बातें करने वाले को नहीं अपितु काम करने वाले को पसंद करती है और उसी की सुनती है ! आपको जनता ने काम करने को दस वर्ष समय दिया तब आप काम करने की जगह कलावती की कहानियाँ सुनाते रहे और आपकी सरकार बेकार निकल गई अब आपकी बात आखिर क्यों सुनी जाए नया क्या बताओगे अगर कुछ करना आपके बश का ही होता तो तब करके दिखा देते जब आपकी सरकार थी अन्यथा आज बताने की क्या जरूरत !

संसद में केवल एक व्यक्ति की बात सुनी जा रही है-राहुल गांधी

    किन्तु राहुल जी !लोकतंत्र में तो जनता ही सर्वोपरि होती है जिसकी जनता सुनती है उसी की सब सुनते हैं लेकिन अबकी चुनावों में आपकी बात जनता ने ही नहीं सुनी तो कोई क्यों सुने !जब तक जनता ने आपकी सुनी तो लोग भी आपकी कथा कहानियां सुन सुन कर मेजें थपथपाते रहे किन्तु आज वही आपकी आलोचना कर रहे हैं क्योंकि आज जनता जनार्दन ने आपसे मुख फेर लिया है !

   

 

  

 

Sunday, 3 August 2014

   
                     आस्था के नाम पर साईं को सनातन धर्म मंदिरों में  कैसे घुसाया जा सकता है ?

        मंदिर सनातन धर्म के हैं साईं का सनातन धर्म से कोई सबंध नहीं है तो फिर अपनी आस्था के नाम पर सनातन धर्म के मंदिरों में साईं को भगवान बनाकर कैसे घुसा दिया गया ! ऐसे किसी को प्रधान मंत्री बताकर प्रधानमंत्री निवास में और किसी  को राष्ट्रपति बताकर राष्ट्रपति निवास में अपनी आस्था का हवाला देकर घुसाया जा सकता है क्या ?
        अपनी आस्था अपने घर तक आप को जो ठीक लगे वो करो किन्तु मंदिरों नहीं क्योंकि वहाँ की परम्पराएँ सनातन धर्म के शास्त्रों के अनुशार चलती हैं उन्हें वैसा चलने देना चाहिए !

                         मंदिरों में मूर्तियाँ घुसा देने से साईं भगवान नहीं हो सकते ! 
       यदि आपको अपने घर के किसी सदस्य को राष्ट्रपति कहना है तो कहिए किन्तु आप आस्था का हवाला देकर चाहोगे कि उसे भी राष्ट्रपति भवन में रख दिया जाए तो क्या ये संभव है और यदि  चोरी से या जबर्दश्ती घुस कर राष्ट्रपति भवन की कोई थोड़ी जगह में कब्ज़ा कर भी ले और अपने कमरे के दरवाजे पर अपना नाम लिख दे और उसके साथ राष्ट्रपति लिख दे तो क्या उसे राष्ट्रपति मान लिया जाएगा ?
        बंधुओं !  ऐसे किसी असंवैधानिक व्यक्ति को भारतीय कानून राष्ट्रपति तो नहीं ही मानेगा अपितु अपराधी मानकर उस पर कानूनी कार्यवाही करके उसे राष्ट्रपति भवन से बाहर निकालेगा !वही जिस प्रकार से जगद्गुरु शंकराचार्य जी सनातन धर्म के मंदिरों में जबर्दश्ती घुसाए गए साईं को बहार खदेड़ रहे हैं !


                




      हमें याद रखना होगा कि केवल राष्ट्रपति भवन में रहने से कोई राष्ट्रपति नहीं बन जाता अपितु भारत के  संविधान में वर्णित नियमानुशार कोई राष्ट्रपति बनता है और जब भारतीय संविधान किसी के राष्ट्रपतित्व को स्वीकार कर लेता है तो वो राष्ट्रपति भवन में रहने भी लगता है !

                  उस तो क्या उसे बाहर नहीं निकाला जाएगा घर में रख भी आए देंगे साईं की मूर्तियों की तरह